Wednesday, March 27, 2013

शिवराज 'शौचालय' से 'सचिवालय' तक, बुरा न मानो होली है...

रामगोपाल शर्मा  
 
शिवराज 'शौचालय' से 'सचिवालय' तक, बुरा न मानो होली है... ...मुख्यमंत्री निवास - सूर्य की किरणें आलोकित होने को हैं और देश के हृदय प्रदेश का मुख्यमंत्री जाग्रत अवस्था में आते ही... फोन पर..

वंदे मातरम्...। जयहिंद...। गुडमार्निंग... कुछ समझ में नहीं आ रहा - शयनकक्ष में मोहन भागवत जी का फोन - जी शिवराज बोल रहा हूं। भाई साब... प्रणाम करता हूं।

बातचीत बताना असंभव क्योंकि सूत्र संचालक के 'संकेत'' शिवराज ही समझ सकते हैं। बात खत्म होते ही ताम्रपत्र का जल पिया और थोड़ा सा टहले - प्रेशर बन गया, जाने को उद्यत - पर यह क्या... आज तो सेवक के स्थान पर साधनाजी स्वयं चाय के साथ। मुख्यमंत्री ''प्रेशर'' के बावजूद रुक गये। एक कहावत है, किसी भी सफलता के पीछे किसी न किसी महिला का हाथ होता है, यह विश्व का आठवां आश्चर्य है (नजर न लगे) साधनाजी के 'चरण'' शिवराज जी के घर में पड़ते ही - ''जैत'' की ''जुताई'' छोड़कर 'सत्ता' की 'वनरोपिणी'तैयार कर रहे हैं। पूरा देश जानता है - भैय्या का दाम्पत्य जीवन सुखी है। टचवुड

खैर, चाय की तरफ सी.एम. ने ऐसे देखा जैसे बकरा कसाई को और म.प्र. का नौकरशाह आम आदमी को देखता है - चाय किसी तरह पी ही थी, सी.एम. बाथरूम की तरफ बढ़े ही थे कि हरकारा आ पहुंचा ''आई.जी.इंटेलीजेंस आई हैं'' - नीचे उतरना पड़ा - पेट में गुड़-गुड़, पूरे प्रदेश की रिपोर्ट ली (बताना संभव नहीं) - बदमाश कांग्रेसी ले भगेंगे - अपन क्यों भाजपा की बद्दुआ लें। आई.जी. गईं - साहब ऊपर आ गये एक पैर अंदर एक बाहर (बाथरूम) प्रेशर बढ़ चुका था।

दरवाजे पर 'हरकारा' भाई साब आये हैं - झल्ला कर सी.एम. बोल पड़े (वैसे सी.एम. कभी नाराज नहीं होते) कौन भाई साब? हम आपको बता दें कि ये भाई साब वो भाई साब हैं जिनकी भूमिका दूसरी बार सत्ता सौंपने में प्रमुख रही है वैसे  शिवराज जी के भाई साबों की कमी नहीं है, वे जिससे एक बार दिल से भाई साब बोल दें तो आदमी ''बाबूलाल गौर'' और बहन जी बोल दें तो ''उमा भारती'' की तरह शेष जीवन जीने को मजबूर हो जाता है - एक को दिल से भाई साब बोला था तो पुन: प्रदेशाध्यक्ष के सपने देखते देखते मैहर के दर्शन को मजबूर हो गये। फिर पूछा कौन से भाई साब -

उसने आव देखा न ताव, तपाक से बोल पड़ा - आपके ''आंख कान'' । वे समझ गये थे भाई साब और कोई नहीं वे भाई साब हैं जो छवि बनाने के विभाग के सर्वे सर्वा थे, अब अगली सरकार बनाने के लिये योजनाओं पर योजनायें तैयार कर रहे हैं।

उनका वश चले तो उनकी भी पंचायत बुलवा सकते हैं जो न 'पौरुष' के प्रतीक हैं न 'शक्ति' के। इन लोगों की हालत भी हम जैसे कलम घसीटों की तरह है जिनकी इज्जत दो कौड़ी की करके रख दी गई है - जो चापलूस किस्म के हैं वे चांदी चीर रहे हैं उनकी पत्नियां जब कुम्हार से 'मटका' खरीदती हैं तो कार से नहीं उतरतीं - और हमारी एक अदद बीबी बुधनी से बस में दो मटके लेकर आ रही थीं। बेचारी को क्या पता था उस दिन कक्का जी का किसान आंदोलन है - वे आए और प्रणाम करके हमारी धरम पत्नी से दोनों मटके झटक के ले गये।

अब तक हरीश आ चुके थे - उन्होंने बता ही दिया, सर प्रिंसीपल सेक्रेटरी टू सी.एम. श्रद्धेय, आदरणीय, पूज्यनीय मनोज जी आये हैं - एक बात बता दें अधिनस्थ स्टाफ वही सफल होता है अपने बॉस का नाम तो दूर पद सम्बोधन तक न करे।
वे समझ गये मध्यप्रदेश में छोटे कद का बड़ा आदमी आया है - प्रणाम करके बैठ गये - बातचीत शुरू...
मुख्यमंत्री, बोलिये भाई साब...
(चेहरा पेट की खलबली से तमतमा रहा है लेकिन गोपनीयता भंग कैसे करें?) भाई साहब ने बोलना शुरू किया।
मनोज जी - ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : ।
(यहां मनोज जी की बातचीत प्रकाशित नहीं की जा रही है अन्यथा कांग्रेसी ले भगेंगे।)
सी.एम. फिर इसका विकल्प क्या है?

मनोज जी - ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : ।
सी.एम. - हमें केवल विकास चाहिये, उसमें जो भी रोड़ा हो हटा दीजिये।
मनोज जी - ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : ।
सी.एम. - आपने पिछले चुनाव में तो पचौरी जी वाले मामले में विजय श्री प्राप्त कर ली थी - आप पर पूरी कार्य योजना रहती थी - आपने कमाल कर दिया था - आपने हमें पुन: सत्ता सौंपी थी - अब क्या परेशानी हो रही है? क्या आपके अब उन सज्जन से सम्बन्ध समाप्त हो गये जो एक साथ दो-दो राजनैतिक दलों का चुनाव संचालन करना जानते हैं। कहां हैं वो आजकल...?

मनोज जी - ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : ।
(इसी बीच सुषमाजी का फोन - हां हां जानता हूं उदयपुर (देहरा) नहीं... हां हां तो मैं बात कर लूंगा जी, मैं फोन लगवाता हूं। पटवा जी से भी बात कर लूंगा... प्रेशर बढ़ चुका, पेट में भारी खलबली, अचानक तेजी में उठकर ऊपर चले गये और कहा कोई भी आये तो मना कर देना -

प्रेशर बढ़ चुका था... हरीश को पता नहीं था, वो दौड़ते हुए ऊपर आ गये और बोले .... सर... गुजरात से मोदी जी का फोन है...
सी.एम. - हां, बात करायें...
मोदी जी - अरे भाई.. मध्यप्रदेश में आजकल ये क्या छप रहा है, अभी तक तो केवल गुजरात का विकास ही छाया हुआ था, अब ये हो क्या रहा है?

''भाई साब आप तो जानते हैं मैंने भी आपका एक गुर तो सीख ही लिया है कि मध्यप्रदेश में विकास की ही बात करता हूं - एक बार एक पत्रकार के पुत्र को प्रथम पुत्र की प्राप्ति हुई, मैं अस्पताल में था तो मीडिया वालों ने प्रतिक्रिया जानना चाही तो मैंने कहा मैं तो केवल विकास की बात करता हूं। इस घटना से हमारे प्रदेश में विकास के रास्ते खुलेंगे और पत्रकारों के मनोबल में वृद्धि होगी। पत्रकार वृद्ध थे, वे दादा बने थे, लड़का भी पत्रकार था, उस दिन का दिन है कि आज का दिन है पता नहीं, राकेश का हाथ है या लाजपत का सारा मीडिया चिल्ला रहा है - आपकी जगह मैं भी प्रधानमंत्री हो सकता हूं।

हालांकि हमारे खबर छपाऊ विभाग ने उस पत्रकार को न तो माखनलाल में जगह दी, न संदेश का प्रधान सम्पादक बनाया, न ही अपने लोगों की तरह ''माध्यम'' का रास्ता दिखाया और तो और उस बेचारे को साल भर से विज्ञापन तक के लिये मोहताज कर दिया। वह आज भी मेरे प्रशस्ति गान में लगा हुआ है। अब मैं क्या कर सकता हूं...

अब भाई साब आप मान लें अगर मीडिया शिवराज को चाहता है तो मेरी गलती नहीं है - मैं तो मिलता भी नहीं हूं..., मुझे अच्छी तरह याद है कि मैं उन पत्रकारों को तो याद नहीं करता जो मेरी छबि बनाने में लगे हैं। हां ये मुंह लगे पत्रकार ही हैं जो जबरिया मिलते रहते हैं।

हमारे यहां मीडिया के अनेक पत्रकार संगठन हमारे खबरिया विभाग के कारण बन गये हैं - इसलिये जो प्रमुख संगठन हैं उनकी दादागिरी नहीं चल पाती - हमारे लिये तो ''विकास'' ही सब कुछ है -
भाई साब, दरअसल आज आडवाणी जी आ रहे हैं - मैं रात को लगाऊं तो कैसा रहेगा? हां हां पटवा जी से भी बात कर लूंगा। (प्रेशर बढ़ चुका था, वे बाथरूम की तरफ बढ़े ही थे और बाथरूम में जाने ही वाले थे कि कार लग गई।)
साब... आडवाणी जी की अगवानी करने चलना है - चलो। वही पजामा, वही कुर्ता - हवाई अड्डे अपने नेता के स्वागत में एक ''भरे पेट'' का मुख्यमंत्री हाथ जोड़ प्लास्टिक मुस्कान के साथ आडवाणी जी के सामने खड़ा था, जो पूरे प्रदेश का पेट भरता है वह हवाई अड्डे के स्टेट हैंगर पर भी अपना पेट खाली नहीं कर पाया। यहां सोचा ही था कि यहीं निपट लें, लेकिन मनोज जी का फोन....

भाई सा. वो मोदी जी का कनवरशेसन अड़वाणी जी को जरूर बता दें - मुख्यमंत्री तपाक से बोले, भाई आपको कैसे पता चला कि हमारी और मोदी जी की क्या बात हुई। भाई सा. सुबह के ही अखबारों की हैडलाइन में मध्यप्रदेश, गुजरात से आगे जाने की होड़ में खड़ा है - अब अकेले मोदी नहीं हैं प्रधानमंत्री की दौड़ में... आप भी हैं... गुजरात के पी.एस. का मुझे फोन आया था - मुझे विश्वास था मोदी जी आपको फोन करेंगे, आज मौका अच्छा है - आडवाणी जी नाराज चल ही रहे हैं। लगे हाथ ''अटल ज्योति'' की भी बात कर लें और लक्ष्मीकांत जी से विदिशा लोकसभा की रिपोर्ट भी मंगवा लें, सम्भावना देख लें, लक्ष्मीकांत जी को कह जरूर दें। आडवाणी जी के वापस जाने के पूर्व यह रिपोर्ट बताना जरूरी है।
जी...
गाड़ी सरपट दौड़ रही है - 11.40 हो चुका है - वल्लभ भवन में मंत्री मंडल के सदस्य प्रतीक्षा कर रहे हैं अपने नेता की जरूरी बैठक है - चीफ सेकेट्री का फोन...
Sir - We are waiting for you.
C.M. - But I want only 5 minut for my personal problum
C.S. - Sir some one candidate in our cabinet, He cring where is Shivraj Ji ....
C.M. - I know, O.K. I am coming  (उन्होंने सोचा अब मंत्रिमंडल की बैठक के बाद ही निपट लेंगे...)

...और काफिला वल्लभ भवन पहुंच गया। मंत्रिमंडल की बैठक की बातें होली के मौके पर भी बताईं तो सीक्रेट एक्ट लगा के हमारी दुर्गति कर सकते हैं तो अपन अंदर की बातें क्यों बतायें? हमें न तो कांतिलाल कुछ दे देंगे, न राहुल भैया।

अभी कम से कम दो अदद बच्चे और एक अदद पत्नी को पाल तो रहे हैं - अब तो बता रहे हैं लाईन में लगाकर श्रद्धानिधि भी देगी सरकार।

खैर, सी.एम. ने सोचा मंत्रिमंडल की बैठक के बाद निपट लेंगे - पेट अभी भी गुड़.. गुड़... बना हुआ था। गुडग़ुड़ाहट इतनी बढ़ गई थी जैसे कि सोनियाजी के बाद राहुल भैया को मध्यप्रदेश की चिंता सताने लगी है। नियमानुसार साधनाजी द्वारा तैयार ''ब्रेकफास्ट'' ज्यों का त्यों सचिवालय सी.एम. के कक्ष में आ चुका है - और जनसम्पर्क मंत्री लक्ष्मीकांत - अपना पहले से आसन लगाये बैठे हैं - सी.एम. बाथरूम जाना चाहते हैं, परंतु विदिशा की राजनैतिक स्थिति (सुषमाजी राघवजी सहित) जो आडवाणी जी को हवाई अड्डे पर देना है वह लक्ष्मीकांत जी के हाथ में है...
लक्ष्मीकांत - भाई साब एक नजर डाल लेते।

सी.एम. - लक्ष्मीकांत जी मुझे आप पर पूरा भरोसा है - । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । +=  आपकी पंगत की भी तो । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ + &  : । += ऽ&+ ऽ  शिकायतें करवाई थीं... ये लोग कहते हैं..। += ऽ&+ ऽ +  पत्रकारों को आपकी दाढ़ी और माथे का चन्दन अच्छा लगता है - महामाई का आशीर्वाद बताते हैं, ये लोग यह भी कहते सुने गये हैं कि ऽ&+ ऽ +. आपकी हिम्मत की दाद देता हूं। लक्ष्मीकांत जी आपने कैसे कैसों को झेला है - आपके ही वश की बात है -
नहीं सर... आपकी बदौलत

नहीं नहीं लक्ष्मीकांत जी आप अपनी मर्यादा में रहकर अपना कद बढ़ाते रहें, मुझे चिंता नहीं है...।
... छिपाता नहीं हूं एक दिन की बात है दुबारा मंत्री बनने पर आपने अपने निवास पर पत्रकारों को भोजन दिया था - याद है उसी दिन एक जगह (मंत्रीजी) के यहां भी ठीक उसी समय भोजन था, कौए उड़ रहे थे उधर... खैर, अपने अपने सम्बन्ध हैं, हमें भी सलाह मिलती है पर ये खबरिया विभाग वालों की काटा-पीटी से हम परेशान हैं, इसलिये हमने सलाह लेना ही बंद कर दी अब तो। हमारे एक ही सलाहकार हैं - हमारे भाई साब (मनोज जी)... उनने ही बनवाई थी अब वे बनवायेंगे।

लक्ष्मीकांत जी एक भीतर की बात बताता हूं, उस समय पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का एक पत्रकार के यहां फोन आया था, उन्होंने कहा था - अकेले 'मनोज जी को'' हमें दे दो हम 'भाजपा को धूल चटा देंगे'' - इसलिये हमने उन्हें खबरिया विभाग का ही मालिक बनाए रखा, सरकार दोबारा बन गई। हमें भरोसा है हम नहीं आए तो साधना जी सम्हालेंगी प्रदेश की कमान। रहेगी भाजपा ही।
इन्होंने ही हमें बताया था कि यह तो बांसुरी विभाग है जितनी हवा भरोगे उतनी बजेगी पर अभी का पता नहीं है।

हां पिछले साल एक नेतानुमा पत्रकार ने होली का विशाल कार्यक्रम रखा था, खबरिया विभाग के आला अफसरों को रंग गुलाल के साथ बांसुरी भी भेंट की थी - बस क्या था, उसकी बांसुरी में खबरिया विभाग ने ऐसी हवा भरी कि फट के गरदन में आ गई। अब तो बात आई गई हो गयी, मैं तो इन चीजों में उलझता भी नहीं हूं।
विदिशा की जो रिपोर्ट है वह अच्छी ही होगी - अपन को बहुत लम्बा चलना है। विदिशा, रायसेन के पत्रकारों को पकड़े रहो, अपन को तो उनसे ही ........ है। बाकी 'दिल्ली'' और 'लन्दन''  'चैनल'' 'सोसल मीडिया'' 'स्वतंत्र लेखकों'' और 'फीचर्स'' के लिये मनोज जी हैं ही।

....आप एक काम और कर दो, हमारी ये इमेज तो बन ही गई है कि हम सीधे सादे मुख्यमंत्री हैं हम जैसे अंदर हैं वैसे बाहर हैं, हमारे परिजनों पर रंग फेंकने के आरोप नहीं हैं - पर हमारे नाम पर लोग रंग गुलाल तो ठीक, कालिख पोतने से भी नहीं चूक रहे, उनके लिये क्या करें?
लक्ष्मीकांत - भाई सा. मुझसे भी अनुभवी लोग यहां हैं, कई लोगों के यहां तो आप खुद चले जाते हैं...
जैसे?
मा. .... जी मा. ....जी, और तो और आप जैसे लोगों से भी सलाह लेते हैं मैं अदना सा आदमी जिसकी सोच सिरोंज नटेरन और शमशाबाद से आगे नहीं है - हां आपने उच्च शिक्षा देकर स्थान दिया है, पर मैं अभी भी ''कलम घिस्सू'' लोगों से ही सीखता रहता हूं।

... अच्छा अंग्रेजी में संदेश की तरह जो निकाला था वह कैसा निकल रहा है?
- भाई सा. उसी से तो मोदी जी पीडि़त हुये हैं - पूरे देश में तहलका मचा दिया - खबरिया विभाग की यही फितरत है, जिस अधिकारी को सजाये बतौर कहीं पदस्थ कर दो तो वह ''कमाल'' कर देता है।
... अच्छा अच्छा ये माध्यम... भाई साहब - रहने दो - उनसे बात कर लेना, यहां तो सबके खूंटे हैं....
आपका....?
फिर प्रेशर आया.... काफिला रास्ते में, रात के 11 बज रहे हैं - समिधा चलो। (वहां भी संकोच में नहीं कह पाये) लगा कि ये लोग क्या सोचेंगे - मुख्यमंत्री जैसा आदमी 'समिधा'' में 'शौच'' की बात करता है, पूरा मध्यप्रदेश पड़ा है।
पहले एक कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे उन्होंने सर्वाधिक ध्यान विश्रामगृहों के शौचालयों पर ही दिया था दरअसल उनकी ''हाईट'' अधिक थी -
शिवराज जी तो एक ही चम्मच से नमकीन और मीठा दोनों खा लेते हैं, लेकिन उन मुख्यमंत्री के नमकीन भी अलग थे तो चम्मच भी अलग ही हुआ करते थे। अंतर देखिए...
कमाल की बात ये है कि शिवराज सिंह वो मुख्यमंत्री हैं जिसे ''कल्लु बुआ के टूटे चश्मे'' की याद भी रहती है और ''जुम्मन शेख की पंचर की दुकान किसने हटाई'' उसका भी ध्यान उन्हें रहता है। वह हाल ही विधवा हुई कमला की विधवा पेंशन के बारे में भी पूछता है, और जानकारी प्राप्त करते हुए यदि उसे पेंशन नहीं मिली तो सक्षम अधिकारी को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर देता है।

लेकिन वाह रे लोकतंत्र... जो मुख्यमंत्री सबके पेट भरने की जिम्मेवारी का वहन कर रहा है वह अभी तक अपना पेट खाली नहीं कर पा रहा, वह अभी भी गुड़ गुड़ कर रहा है।

इतनी सज्जनता भी ठीक नहीं कि आप इतना संकोच करें कि अगर बात नहीं करूंगा तो अमुक आदमी बुरा मान जायेगा। अरे आपके मुंह लगे अधिकारियों से पूछो जो देखने के बाद भी आप ही से मीटिंग का बहाना लेकर ढीट बने रहते हैं और आम आदमी से कतराते हैं - इनके बंगलों से उत्तर मिलता है कि साहब बाथरूम में हैं। क्या विसंगति है मध्यप्रदेश के अफसरशाह बाथरूम में हैं और मुख्यमंत्री को शौचालय से सचिवालय तक की व्यस्तता में बाथरूम नसीब नहीं होता। आप इतना तो सीख ही सकते हैं कि नौकरशाह केवल आपको प्रसन्न रखते हैं और आप पूरे प्रदेश को -

हमारा रंग और गुलाल स्वीकारें,
मध्यप्रदेश को ऊंचाईयों पर पहुंचा कर
मोदी की राह दिल्ली पधारें....
आप बनो प्रधानमंत्री वे बनें राष्ट्रपति
हमारी पत्नी तो घर की मुर्गी है
हमें बना रहने दो उसका पति।......
...

ਪੰਜਾਬ ਭਾਜਪਾ ਵੱਲੋਂ ਜ਼ੋਨਲ ਤੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਇੰਚਾਰਜਾਂ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ

ਚੁੱਘ ਨੂੰ ਦੁਆਬਾ, ਰਾਠੌਰ ਮਾਝਾ ਅਤੇ ਸੈਣੀ ਨੂੰ ਮਿਲਿਆ ਮਾਲਵਾ ਜ਼ੋਨ
ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ, 26 ਮਾਰਚ -ਭਾਰਤੀ ਜਨਤਾ ਪਾਰਟੀ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸੂਬਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਸ੍ਰੀ ਕਮਲ ਸ਼ਰਮਾ ਨੇ ਸੂਬੇ ਦੇ ਤਿੰਨ ਜ਼ੋਨਾਂ ਦੇ ਇੰਚਾਰਜਾਂ ਦੀਆਂ ਨਿਯੁਕਤੀਆਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੇ ਇੰਚਾਰਜਾਂ ਦੇ ਨਾਵਾਂ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਇਸ ਤਹਿਤ ਤਰੁਣ ਚੁੱਘ ਨੂੰ ਦੋਆਬਾ ਜ਼ੋਨ ਦਾ ਇੰਚਾਰਜ ਲਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ ਜਦਕਿ ਰਾਕੇਸ਼ ਰਾਠੌਰ ਨੂੰ ਮਾਝਾ ਅਤੇ ਜਗਤਾਰ ਸਿੰਘ ਸੈਣੀ ਨੂੰ ਮਾਲਵਾ ਜ਼ੋਨ ਦਾ ਇੰਚਾਰਜ ਲਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ। ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਇੰਚਾਰਜਾਂ ਦੀ ਸੂਚੀ ਵਿਚ ਦੋਆਬਾ ਜ਼ੋਨ ਦੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ਦਾ ਇੰਚਾਰਜ ਵਿਨੋਦ ਸ਼ਰਮਾ ਨੂੰ ਲਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ, ਜਦਕਿ ਰੋਪੜ ਅਤੇ ਮੋਹਾਲੀ ਲਈ ਸ੍ਰੀਮਤੀ ਸੁਦੇਸ਼ ਸ਼ਰਮਾ ਨੂੰ, ਜਲੰਧਰ ਦਿਹਾਤੀ ਲਈ ਆਦਰਸ਼ ਭਾਟੀਆ, ਪਟਿਆਲਾ ਨਾਰਥ ਦਿਹਾਤੀ ਲਈ ਰਾਜ ਕੁਮਾਰ ਪਾਠੀ ਨੂੰ, ਪਟਿਆਲਾ ਸਾਊਥ ਦਿਹਾਤੀ ਲਈ ਗੁਰਤੇਜ ਸਿੰਘ ਢਿੱਲੋਂ ਨੂੰ, ਲੁਧਿਆਣਾ ਸ਼ਹਿਰੀ ਲਈ ਤਰੁਣ ਚੁੱਘ ਨੂੰ, ਜਲੰਧਰ ਸ਼ਹਿਰੀ ਲਈ ਜਗਤਾਰ ਸਿੰਘ ਸੈਣੀ ਨੂੰ, ਕਪੂਰਥਲਾ ਅਤੇ ਜਲੰਧਰ ਨਾਰਥ ਦਿਹਾਤੀ ਲਈ ਵਿਜੈ ਸਾਂਪਲਾਂ ਨੂੰ ਅਤੇ ਅਰੁਣੇਸ਼ ਸ਼ਾਕਰ ਨੂੰ ਨਵਾਂ ਸ਼ਹਿਰ ਦਾ ਇੰਚਾਰਜ ਲਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ। ਮਾਝਾ ਜ਼ੋਨ ਤਹਿਤ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦਿਹਾਤੀ ਲਈ ਰਜਿੰਦਰ ਮੋਹਨ ਛੀਨਾ, ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਸ਼ਹਿਰੀ ਲਈ ਰਾਕੇਸ਼ ਰਾਠੌਰ ਨੂੰ, ਤਰਨਤਾਰਨ ਲਈ ਰਜਿੰਦਰ ਮੋਹਨ ਛੀਨਾ, ਬਟਾਲਾ ਲਈ ਸੁਭਾਸ਼ ਸ਼ਰਮਾ, ਗੁਰਦਾਸਪੁਰ ਅਤੇ ਪਠਾਨਕੋਟ ਲਈ ਉਮੇਸ਼ ਸ਼ਾਕਰ, ਮੁਕੇਰੀਆਂ ਲਈ ਵੀਰਾ ਵਾਲੀ, ਖੰਨਾ ਲਈ ਸ੍ਰੀਮਤੀ ਸੰਤੋਸ਼ ਕਾਲੜਾ, ਮੋਗਾ ਲਈ ਜੀਵਨ ਗੁਪਤਾ, ਜਗਰਾਓਂ ਲਈ ਸੰਤੋਸ਼ ਕਾਲੜਾ ਅਤੇ ਫਤਿਹਗੜ੍ਹ ਸਾਹਿਬ ਲਈ ਗੁਰਦੇਵ ਸ਼ਰਮਾ ਦੇਬੀ ਨੂੰ ਇੰਚਾਰਜ ਲਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੀ ਮਾਲਵਾ ਜ਼ੋਨ ਤਹਿਤ ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ ਲਈ ਅਸ਼ੋਕ ਭਾਰਤੀ ਨੂੰ, ਫਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ਅਤੇ ਫਰੀਦਕੋਟ ਲਈ ਮੋਹਨ ਲਾਲ ਸੇਠੀ, ਮੁਕਤਸਰ ਲਈ ਸੰਦੀਪ ਰਿਣਵਾਂ, ਬਠਿੰਡਾ ਸ਼ਹਿਰੀ ਅਤੇ ਦਿਹਾਤੀ ਲਈ ਬੀਬੀ ਗੁਰਚਰਨ ਕੌਰ, ਮਾਨਸਾ ਲਈ ਸ੍ਰੀਮਤੀ ਅਰਚਨਾ ਦੱਤ, ਬਰਨਾਲਾ ਲਈ ਜਤਿੰਦਰ ਕਾਲੜਾ, ਪਟਿਆਲਾ ਸ਼ਹਿਰੀ ਲਈ ਰਾਜ ਖੁਰਾਣਾ, ਸੰਗਰੂਰ 1 ਲਈ ਦਿਆਲ ਦਾਸ ਸੋਢੀ ਅਤੇ ਸੰਗਰੂਰ 2 ਲਈ ਰਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਗਿੰਨੀ ਨੂੰ ਇੰਚਾਰਜ ਲਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ।

अब कॉर्न फ्लेक्स से सुधरेगी सेक्स लाइफ!


अब कॉर्न फ्लेक्स से सुधरेगी सेक्स लाइफ!
 
आपने कभी सोचा है कि बाजार में एक ऎसा नाश्ता उपलब्ध होगा जो आपकी कामेच्छा को बढाने में सहायक होगा। नहीं ना लेकिन यह सच है। कनाडा के एक उद्यमी पीटर एरिल्चके दिमाग में ये बात घर कर गई। इसके बाद उन्होंने बाजार में ऎसा कॉर्न फ्लेक्स पेश किया है जो आपकी कामेच्छा को बढाने का दावा कर रहा है। पुरूष और महिलाओं के लिए ये अलग-अलग पैक में उपलब्ध है।

"सेक्स सेरियल" नामक इस उत्पाद का स्लोगन ही है- "फ्यूल योर फायर"। इसका मतलब है कि आपने इसका इस्तेमाल किया तो आपकी कामेच्छा बढ सकती है। इस उत्पाद को बनाने वालों का दावा है कि यह प्राकृतिक तौर पर हारमोन के स्तर को संतुलित करते हुए सेक्स की इच्छा को बढाने में सहायक है। हालांकि पीटर एरिल्च ख़ुद ही ये मानते हैं कि ये नाश्ता तुरंत असर नहीं दिखाता।

उन्होंने विदेशी अखबार सन से कहा है, "ऎसा नहीं है कि आपने एक कटोरी सेक्स सेरियल कॉर्न फ्लैक्स लिया हो और 20 मिनट के अंदर ही आपकी कामेच्छाचरम में पहुंच जाएगी।" वैसे इस उत्पाद को तैयार करने के लिए कई पोषण विशेषज्ञों की मदद ली गई है। इन पोषण विशेषज्ञों के मुताबिक मधुमक्खियों के पराग, काला तिल, बलू बेरी और कद्दू के मिश्रण से बने पोषक तत्व पुरूषों की यौन क्षमता को बढाने में सहायक होते हैं। वहीं अदरक, सूरजमुखी के बीज, बादाम और पटुए के बीज के मिश्रण से बने पोषक तत्व महिलाओं की यौन क्षमता को बढाने में कारगर होते हैं। पीटर एरिल्च के मुताबिक वे स्वास्थ्य और भोजन उद्योग दोनों के लिहाज से ऎसा उत्पाद लाना चाहते थे जिसे लोगों के जीवन शैली बेहतर बने। 

पीटर एरिल्च ने कहा, "यौन स्वास्थ्य एक अहम पहलू है, हर कोई इस मामले में गंभीर होता है।" हालांकि इस उत्पाद की विश्वसनीयता को आंका जाना बाकी है। लेकिन उत्पाद की वेबसाइट पर कुछ लोग इसके इस्तेमाल के बाद दिलचस्प टिप्पाणियां लिख रहे हैं। मसलन एक ने लिखा है कि मैं निश्चित तो नहीं हूं लेकिन इस नाश्ते के बाद मेरी सेक्स लाइफ बेहतर हुई है। एक महिला ने लिखा है कि ये काफी रोमांटिक ब्रेकफास्ट है। अगर आप इस नाश्ते को खरीदने के लिए उतावले हो रहे हों तो आपको इसके लिए लंबा इंतजार करना होगा। फिलहाल ये उत्पाद अभी सिर्फ कनाडा के बाजारों में ही उपलब्ध है।

सेक्स" को ज्यादा एन्जॉय करते है नास्तिक लोग!


धार्मिक लोग सेक्स को अधिक एन्जॉय नहीं कर पाते। हाल ही में हुए एक सवेंü में इस बात का खुलासा हुआ है।अमेरिका में कुछ समय पूर्व हुए एक शोध में ये बात सामने आई है। रिसर्च के मुताबिक, जो लोग पूजा-पाठ से दूर होते हैं, वे सेक्स को ज्यादा एन्जॉय करते हैं।

रिसर्च के मुताबिक, आस्तिक लोग सेक्स के दौरान सहज महसूस नहीं करते। इतना ही नहीं आस्तिक लोग सेक्स के दौरान नए प्रयोग करने में भी सहज नहीं होते।यदि धार्मिक लोग सेक्स के दौरान एक्सपेरिमेंट कर भी लेते हैं तो बाद में उन्हें पछतावा या अफसोस होने लगता है और दोबारा से प्रयोग करते में झिझकते हैं।

इधर नास्तिक लोग ना सिर्फ सेक्स के दौरान नए-नए प्रयोग करते हैं बल्कि वे सेक्स पर खुलकर बात भी करते हैं। नास्तिक लोग अपने सेक्स के अनुभवों को दूसरों से बांटने में भी नहीं हिचकते। कल्पना करने और अपनी फेंटेसिज को एप्लाई करने में भी ऎसे लोग पीछे नहीं रहते। नास्तिक लोग अपने पार्टनर के साथ सेक्स के दौरान बराबर सक्रिय भूमिका भी निभाते हैं। वहीं धार्मिक लोग बेहद एक्टिव नहीं होते। ये सवेंü डेली मेल में प्रकाशित हुआ था जिसके मुताबिक, आस्तिक लोग सेक्स पोजीशन ट्राई करने में भी हिचकते हैं जबकि नास्तिक लोग सेक्स को लेकर बिल्कुल नहीं हिचकते।

ये रिसर्च अमेरिका की कैनसास यूनिवर्सिटी में करवाई गई थी जिसमें लगभग 14,500 आस्तिक और नास्तिक प्रवृति के लोगों को शामिल किया गया। सभी लोगों का निश्चित ऎज गु्रप था और सभी को सेक्स के बारे में अच्छी जानकारी थी।सभी सप्ताह भर समान रूप से सेक्स करते रहे। लेकिन पाया गया कि नास्तिक प्रवृति के लोग जहां सेक्स को खूब एन्जॉय कर रहे हैं वहीं आस्तिक लोग सेक्स करने से भी झिझकते हैं।

होली की कहानियाँ


होली की कहानियाँ

होली भारत के सबसे पुराने पवोंü में से है। यह कितना पुराना है इसके विषय में ठीक जानकारी नहीं है लेकिन इसके विषय में इतिहास पुराण व साहित्य में अनेक कथाएँ मिलती है। इस कथाओं पर आधारित साहित्य और फि़ल्मों में अनेक दृष्टिकोणों से बहुत कुछ कहने के प्रयत्न किए गए हैं लेकिन हर कथा में एक समानता है कि असत्य पर सत्य की विजय और दुराचार पर सदाचार की विजय और विजय को उत्सव मनाने की बात कही गई है।

राधा और कृष्ण की कथा

होली का त्योहार राधा और कृष्ण की पावन प्रेम कहानी से भी जुडा हुआ है। वसंत के सुंदर मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का एक अंग माना गया है। मथुरा और वृन्दावन की होली राधा और कृष्ण के इसी रंग में डूबी हुई होती है। बरसाने और नंदगाँव की लठमार होली तो प्रसिद्ध है ही देश विदेश में श्रीकृष्ण के अन्य स्थलों पर भी होली की परंपरा है। यह भी माना गया है कि भक्ति में डूबे जिज्ञासुओं का रंग बाह्य रंगों से नहीं खेला जाता, रंग खेला जाता है भगवान्नाम का, रंग खेला जाता है सjावना बढ़ाने के लिए, रंग होता है प्रेम का, रंग होता है भाव का, भक्ति का, विश्वास का। होली उत्सव पर होली जलाई जाती है अंहकार की, अहम् की, वैर द्वेष की, ईर्ष्या मत्सर की, संशय की और पाया जाता है विशुद्ध प्रेम अपने आराध्य का, पाई जाती है कृपा अपने ठाकुर की।

शिव पार्वती और कामदेव की कथा


शिव और पार्वती से संबंधित एक कथा के अनुसार हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाये पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आए। उन्होंने पुष्प बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी। शिवजी को बडा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोल दी। उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गया। फिर शिवजी ने पार्वती को देखा। पार्वती की आराधना सफल हुई और शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस कथा के आधार पर होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।

एक अन्य कथा के अनुसार कामदेव के भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति ने विलाप किया और शंकर भगवान से कामदेव को जीवित करने की गुहार की। ईश्वर प्रसन्न हुए और उन्होने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। यह दिन होली का दिन होता है। आज भी रति के विलाप को लोक संगीत के रूप मे गाया जाता है और चंदन की लक़डी को अग्निदान किया जाता है ताकि कामदेव को भस्म होने मे पी़डा ना हो। साथ ही बाद मे कामदेव के जीवित होने की खुशी मे रंगो का त्योहार मनाया जाता है।

प्रह्लाद और होलिका की कथा


होली का त्यौहार प्रह्लाद और होलिका की कथा से भी जुडा हुआ है। विष्णु पुराण की एक कथा के अनुसार प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर देवताओं से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि वह न तो पृथ्वी पर मरेगा न आकाश में, न दिन में मरेगा न रात में, न घर में मरेगा न बाहर, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न मानव से मारेगा न पशु से। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद वह स्वयं को अमर समझ कर नास्तिक और निरंकुश हो गया। वह चाहता था कि उनका पुत्र भगवान नारायण की आराधना छो़ड दे, परन्तु प्रह्लाद इस बात के लिये तैयार नहीं था। हिरण्यकश्यपु ने उसे बहुत सी प्राणांतक यातनाएँ दीं लेकिन वह हर बार बच निकला। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। अत: उसने होलिका को आदेश दिया के वह प्रह्लाद को लेकर आग में प्रवेश कर जाए जिससे प्रह्लाद जलकर मर जाए। परन्तु होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उसने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने का प्रयत्न किया। होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। इस घटना की याद में लोग होलिका जलाते हैं और उसके अंत की खुशी में होली का पर्व मनाते हैं।

कंस और पूतना की कथा (पूतनावध)


कंस ने मथुरा के राजा वसुदेव से उनका राज्य छीनकर अपने अधीन कर लिया स्वयं शासक बनकर आत्याचार करने लगा। एक भविष्यवाणी द्वारा उसे पता चला कि वसुदेव और देवकी का आठवाँ पुत्र उसके विनाश का कारण होगा। यह जानकर कंस व्याकुल हो उठा और उसने वसुदेव तथा देवकी को कारागार में डाल दिया। कारागार में जन्म लेने वाले देवकी के सात पुत्रों को कंस ने मौत के घाट उतार दिया। आठवें पुत्र के रूप में कृष्ण का जन्म हुआ और उनके प्रताप से कारागार के द्वार खुल गए। वसुदेव रातों रात कृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के घर पर रखकर उनकी नवजात कन्या को अपने साथ लेते आए। कंस ने जब इस कन्या को मारना चाहा तो वह अदृश्य हो गई और आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाले तो गोकुल में जन्म ले चुका है। कंस यह सुनकर डर गया और उसने उस दिन गोकुल में जन्म लेने वाले हर शिशु की हत्या कर देने की योजना बनाई। इसके लिए उसने अपने आधीन काम करने वाली पूतना नामक राक्षसी का सहारा लिया। वह सुंदर रूप बना सकती थी और महिलाओं में आसानी से घुलमिल जाती थी। उसका कार्य स्तनपान के बहाने शिशुओं को विषपान कराना था। अनेक शिशु उसका शिकार हुए लेकिन कृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए और उन्होंने पूतना का वध कर दिया। यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था अत: पूतनावध की खुशी में होली मनाई जाने लगी।

राक्षसी ढुंढी की कथा


राजा पृथु के समय के समय में ढुंढी नामक एक कुटिल राक्षसी थी। वह अबोध बालकों को खा जाती थी। अनेक प्रकार के जप-तप से उसने बहुत से देवताओं को प्रसन्न कर के उसने वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे कोई भी देवता, मानव, अस्त्र या शस्त्र नहीं मार सकेगा, ना ही उस पर सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई असर होगा। इस वरदान के बाद उसका अत्याचार बढ़ गया क्यों कि उसको मारना असंभव था। लेकिन शिव के एक शाप के कारण बच्चों की शरारतों से वह मुक्त नहीं थी। राजा पृथु ने ढुंढी के अत्याचारों से तंग आकर राजपुरोहित से उससे छुटकारा पाने का उपाय पूछा। पुरोहित ने कहा कि यदि फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन जब न अधिक सर्दी होगी और न गर्मी सब बच्चे एक एक लक़डी लेकर अपने घर से निकलें। उसे एक जगह पर रखें और घास-फूस रखकर जला दें। ऊँचे स्वर में तालियाँ बजाते हुए मंत्र पढ़ें और अग्नि की प्रदक्षिणा करें। ज़ोर ज़ोर से हँसें, गाएँ, चिल्लाएँ और शोर करें। तो राक्षसी मर जाएगी। पुरोहित की सलाह का पालन किया गया और जब ढुंढी इतने सारे बच्चों को देखकर अग्नि के समीप आई तो बच्चों ने एक समूह बनाकर नग़ाडे बजाते हुए ढुंढी को घेरा, धूल और कीच़ड फेंकते हुए उसको शोरगुल करते हुए नगर के बाहर खदे़ड दिया। कहते हैं कि इसी परंपरा का पालन करते हुए आज भी होली पर बच्चे शोरगुल और गाना बजाना करते हैं।

उप्र में लोकसभा चुनाव के लिये सजती बिसातें


 
 
   
लोकसभा चुनाव में बाजी मारने के लिये सभी दलों के आका आक्रामक नजर आ रहे हैं। विरोधियों को पटखनी देने के लिए उनकी कमजोर नब्ज पर चोट की जा रही है इसके लिए नेताओं के ड्रांइग रूम में रणनीतियां बनाई और बिगाड़ी जा रही हैं तो वोटरों को अपने जाल में फंसाने के लिए नेताओं द्वारा विवादास्पद मुद्दों को हवा भी दी जा रही है। इस खेल में सपा−बसपा, कांग्रेस−भाजपा कोई भी पीछे नहीं है। दूसरों की पगड़ी उछाल कर उन्हें कमजोर तो अपने को मजबूत बताने के लिए सभी नेता एड़ी−चोटी का जोर लग रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं। लोकसभा चुनाव में अभी भी एक वर्ष से अधिक का समय बचा है, लेकिन प्रदेश की राजनीति जिस तरह से परवान चढ़ रही है उससे तो यही लगता है कि जैसे चुनाव का समय नजदीक आ गया हो। आधा दर्जन से अधिक राजनैतिक पार्टियां पूरी गंभीरता के साथ अधिक से अधिक सीटों पर कब्जा करने के लिए बिसात बिछा रही हैं। वर्तमान स्थिति की बात की जाये तो इस समय राज्य की 80 लोकसभा सीटों पर पांच राजनैतिक दलों के विभिन्न नेता कब्जा जमाये हुए हैं जिसमें समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के 22−22, बसपा के 21, भाजपा के 10 और राष्ट्रीय लोकदल के 05 सांसद हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भले ही पांच दलों का वर्चस्व रहा हो लेकिन चुनावी संग्राम में करीब दो दर्जन राजनैतिक दलों ने अपनी किस्मत आजमाई थी, यह और बात थी कि उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। इसका यह मतलब नहीं है कि इन दलों के हौसले पस्त पड़ गये हैं अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के लिये भी छोटे−छोटे दलों के कई नेता अभी से जोड़−तोड़ में लग गये हैं। पीस पार्टी, अपना दल, जस्टिस पार्टी, जनता दल यू, राष्ट्रीय जनता दल, तृणमूल कांग्रेस जैसे तमाम राजनैतिक दलों के नेता किसी भी तरह से उत्तर प्रदेश में अपना आधार तैयार करने में लगे हुए हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव में किसके खाते में कितनी सीटें जायेंगी, यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है, लेकिन प्रदेश के चार बड़ी राजनैतिक पार्टियों में शामिल कांग्रेस, भाजपा, सपा और बसपा की बात की जाये तो 2014 में इन दलों के प्रत्याशी करीब−करीब सभी सीटों पर ताल ठोंकते नजर आयेंगे तो राष्ट्रीय लोकदल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी ताकत आजमायेगी। सभी राजनैतिक दलों को अपनी जमीनी हकीकत का अहसास है, लेकिन दावों की बात की जाये तो कोई भी राजनैतिक दल 55−60 से कम सीटें जीतने की बात नहीं कर रहा है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव तो इससे भी दो कदम आगे निकल गये हैं। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि विधान सभा चुनाव में बहुमत की सरकार बनने से लोगों में उम्मीद जगी है कि लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब होगी। इस बार उत्तर प्रदेश के अलावा अन्य राज्यों से भी जीत मिलेगी। उन्होंने कहा कि लोकसभा के चुनाव कभी भी हो सकते हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश में कार्यकर्ताओं को सभी 80 लोकसभा सीटों पर जीत का लक्ष्य देते हुए कहा कि पार्टी के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। यूपी हमारे हाथ में है। किसी दल को दिल्ली में बहुमत मिलने वाला नहीं है। अब परिवर्तन समाजवादी पार्टी ही ला सकती है। यादव ने लखनऊ में जब यह बात कार्यकर्ताओं के सामने कही तो उस समय उनके साथ समाजवादी पार्टी के कई बड़े नेता भी मौजूद थे, लेकिन कोई भी समाजवादी नेता जमीनी हकीकत समझने को तैयार ही नहीं था। अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार जनता की कसौटी पर खरी नहीं उतर रही है। युवा सीएम का प्रदेश को स्वच्छ छवि वाली सरकार देने का दावा खोखला साबित हो चुका है। फिर भी समाजवादी पार्टी बढ़त की उम्मीद लगाये बैठी है तो यह उसका भोलापन ही कहा जायेगा।
आश्चर्यजनक बात यह है कि देश की गद्दी पर काबिज होने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे मुलायम सिंह कोई स्पष्ट नीति बनाकर आगे बढ़ने की कोशिश करने के बजाये हवा में बातें ज्यादा कर रहे हैं। विधानसभा चुनाव के बाद से आज तक समाजवादी पार्टी के मुखिया ने कुछ ऐसा नहीं किया जिससे विपक्षियों को सपा की ताकत का अहसास हो सके। सरकार की क्लास लेना उनकी दिनचर्या बन गई है। पार्टी के प्रदेश कार्यालय में ही उनका ज्यादा समय गुजरता है। समाजवादी पार्टी के केन्द्रीय कार्यालय दिल्ली में यदाकदा ही वह दिखाई देते हैं। वहीं बैठे−बैठे वह किसी को किसी को पुचकारते हैं तो किसी को डांटते−फटकारते हैं। अखिलेश सरकार की खामियों पर वह प्रदेश सपा कार्यालय में ही बैठ कर नजर रखते हैं तो देश की दुर्दशा के लिये कांग्रेस को कुसूरवार मानते हैं। कार्यकर्ता उनकी बातों पर ताली बजाते हैं।
बहरहाल, प्रदेश की सभी 80 सीटों पर जीत का दावा करके मुलायम ने अपनी काफी किरकिरी करा ली है। आज तक उत्तर प्रदेश के इतिहास में कभी ऐसा नहीं हुआ कि जब सभी सीटों पर किसी एक दल का कब्जा हो गया हो। यह बात मुलायम को न जाने क्यों समझ में नहीं आ रही है। उनकी बातों में विरोधाभास अधिक नजर आता है। एक तरफ तो वह अखिलेश सरकार की असफलता के लिये उसकी लगातार खिंचाई करते हैं तो दूसरी तरफ उम्मीद लगाये बैठे हैं कि मतदाता प्रदेश की समाजवादी सरकार के कामकाज से खुश होकर लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के लिये वोट करेंगे। सरकार ही नहीं संगठनात्मक रूप से भी समाजवादी पार्टी जनता की कसौटी पर खरी नहीं उतर रही है। उसके नेता जनसेवा करने की बजाये लूट−खसूट और कानून व्यवस्था से खिलवाड़ करने में लगे हैं। दागियों ने समाजवादी पार्टी को अपना अड्डा बना रखा है। सपा प्रमुख को ब्यूरोक्रेसी की खामियां तो नजर आती हैं लेकिन अपनी सरकार की छवि ठीक करने की उन्हें चिंता नहीं रहती। अगर मुलायम सिंह सरकार की छवि के प्रति सच में गंभीर होते तो आपराधिक प्रवृति के कई नेताओं के पास लाल बत्ती नहीं होती। राजनैतिक पंडित तो यहां तक कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव की बातों में राजनीति का पुट ज्यादा रहता है। इसीलिये अखिलेश सरकार के मंत्री बेलगाम होते जा रहे हैं। उन्हें पता है कि वोट बैंक की राजनीति मुलायम के सिर चढ़कर बोलती है और जिस नेता के पास वोट बैंक है, उससे नेताजी कुछ नहीं कहते।
बात सपा प्रमुख के दावों और राजनैतिक पंडितों के अनुमान की कि जाये तो वह सपा को 20 से अधिक सीटें देने को तैयार नहीं हैं। इसके पीछे वह कारण बताते हैं। उनका कहना है कि समाजवादी पार्टी ने विधानसभा का चुनाव अखिलेश को आगे करके लड़ा था। अखिलेश युवा थे, उनकी बातों को लोगों ने गंभीरता से लिया, लेकिन सत्ता हाथ में आते ही अखिलेश की असलियत सबके सामने आ गई। वह भी अपराधियों को संरक्षण देने में पीछे नहीं हैं। उनके मंत्रिमंडल में कई दागी हैं। ऐसे में अबकी बार उनका जादू शायद ही मतदाताओं के सिर चढ़ कर बोले।
बसपा भी विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बेचैन लग रही है। वह लोकसभा चुनाव में सपा से हिसाब बराबर कर देना चाहती है। बसपा ने तमाम सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिये हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा के खाते में 21 सीटें आईं थीं। उस समय बसपा की ठीक वैसी ही स्थिति थी जैसी आज समाजवादी पार्टी की है। तब बसपा को सत्ता में आये करीब दो वर्ष हुए थे। जनता की नाराजगी उनसे बढ़ने लगी थी, फिर भी 21 सीटें उनके खाते में आ ही गईं। अबकी बार यह आंकड़ा थोड़ा सुधर सकता है। उनकी सीटें 23 तक पहुंच जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। बसपा को इसलिये बढ़त की उम्मीद लग रही है क्योंकि अब जनता को लगने लगा है कि बसपा राज वर्तमान राज से फिर सही था। भले ही मायावती पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों, लेकिन वह समाजवादी सरकार के आका की तरफ नौकरशाही के सामने लाचार नहीं रहती थीं। ब्यूरोक्रेट्स उनके ईशारों पर काम करते थे। इसका फायदा जनता को भी मिलता था। सड़कें सुधर गईं थीं। माया राज के डेढ़−दो साल को किनारे कर दिया जाये तो बसपा राज में गुंडागर्दी आज के मुकाबले काफी कम दिखती थी। उनके समय में साम्प्रदायिक दंगों की वारदातें काफी कम हुईं। निचोड़ यह है कि वह जो काम चाहती थीं, उसे नौकरशाहों से करा लेती थीं। अब ऐसा नहीं होता। मायावती को जिस वजह से नुकसान हुआ, वह किसी से छिपी नहीं है। बसपा सुप्रीमो सत्ता हासिल करने के बाद जातिवाद की राजनीति से काफी हद तक दूर चली गई थीं, जबकि सपा राज में इसका उलटा हो रहा है। प्रदेश की जनता का भला करने की बजाये सपा सरकार जनता को अलग−अलग बांट कर देखती और सुविधाएं बांटती है। जिस कारण समाज का एक बड़ा तबका उनसे नाराज चल रहा है। मायावती इसका फायदा उठा सकती हैं।
बात कांग्रेस की कि जाये तो 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को लम्बे समय के बाद ठीकठाक जीत हासिल हुई थी। उसके 22 सांसद जीत कर आये थे। इससे पूर्व वह 1989 में उसके सांसदों की संख्या दो अंकों में पहुंच पाई थी। तब उसके 15 सांसद जीते थे। इसके बाद कांग्रेस प्रदेश में कभी दो अंकों में नहीं पहुंच पाई थी। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भले ही सपा के युवराज अखिलेश यादव पिछड़ गये थे, लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जो भी जीत हासिल हुई थी उसका श्रेय राहुल गांधी को दिया गया था। अबकी राहुल भावी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में सामने हैं। उनके कंधों पर पूरे देश की जिम्मेदारी होगी। वह शायद यूपी को इतना समय न दे पायें। वैसे यूपी में वह अपना ग्लैमर भी खोते जा रहे हैं। प्रदेश में कांग्रेस के पास कार्यकर्ताओं की कोई टीम नहीं है। संगठन भी कमजोर ही है। सोनिया गांधी में भी अब पहले जैसी तेजी नहीं दिखती है। उस पर केन्द्र सरकार की दिन पर दिन गिरती छवि कांग्रेस के लिये मुश्किल बनी हुई है। अबकी नहीं लगता है कि कांग्रेस 22 का आंकड़ा छू पायेगी। उसकी सीटों में गिरावट होना तय है। कांग्रेस 15 से 18 तक सीटें भी हासिल कर ले तो यह उसका सौभाग्य होगा।
भाजपा की तो बात ही निराली है। वहां कार्यकर्ता कम नेता ज्यादा पैदा होते हैं। फिर भी उम्मीद की जानी चाहिए कि भाजपा के गिरने का ग्राफ 2014 में थम जायेगा। उसे सत्ता विरोधी लहर का फायदा मिल सकता है। राजनाथ सिंह जो उत्तर प्रदेश से ही आते हैं उनके भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से प्रदेश के कार्यकर्ताओं में जोश जागा है। कल्याण की वापसी, उमा भारती का उत्तर प्रदेश में बढ़ता आधार, समाजवादी पार्टी की तुष्टिकरण की नीति और कांग्रेस की खराब छवि आदि ऐसी बातें हैं जो भाजपा के लिये प्लस प्वांइट हैं। वह इसे कितना भुना पाती है, यह उस पर निर्भर करता है। उम्मीद पर दुनिया कायम है और भाजपा भी अब उत्तर प्रदेश से कम से कम 25 सीटें तो जीतना चाहेगी ही तभी उसकी केन्द्र में दावेदारी मजबूत होगी। बदले माहौल में राजनीति पंडित भी भाजपा को फायदा मिलने की बात से इंकार नहीं करते हैं और उसे बीस सीटें देने को तो तैयार हैं।
बाकी बची बात राष्ट्रीय लोकदल की तो उसकी छवि दिन पर दिन खराब होती जा रही है। उसके नेताओं पर सत्ता के करीब रहने की चाहत का असर साफ दिखता है। चौधरी चरण सिंह के नाम पर राजनैतिक रोटियां सेंक रहे अजित सिंह की सीटों की संख्या भी तीन तक सिमट सकती है। वैसे राजनीति में कब किस करवट ऊंट बैठ जाये कोई नहीं जानता। नेताओं की चाहत पर अक्सर जनता की चोट भारी पड़ती है।

अफजल पर राजनीति और आश्वस्त सरकार


   
   
संप्रग सरकार ने संसद हमला मामले में दोषी ठहराये गये अफजल गुरु को फांसी पर चढ़ाया तो इसके साथ ही राजनीति भी शुरू हो गयी। विपक्ष कह रहा है कि इस वर्ष होने वाले 9 राज्यों के विधानसभा चुनाव और अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए यह कदम उठाया गया तो सरकार की दलील है कि कानून ने विधिपूर्वक अपना कार्य किया। लेकिन वजह जो भी हो, भारत की सॉफ्ट स्टेट की छवि को तोड़ने में यह कदम जरूर मददगार साबित होगा।
अब 21 फरवरी से शुरू हो रहे संसद के बजट सत्र में सरकार के हौसले बुलंद रहेंगे और राष्ट्रपति के अभिभाषण में अपनी उपलब्धियों का बखान संप्रग सरकार खूब कर सकती है। यह सरकार के लिए काफी सुखद क्षण हैं कि क्योंकि उस पर छह महीने पहले नीतिगत फैसले तक लेने में ढिलाई बरतने के आरोप देश ही नहीं विदेश में भी लग रहे थे लेकिन हाल के कुछ फैसलों से अब उसकी छवि पहले से बेहतर हुई है। पिछले छह महीने से सरकार और कांग्रेस ने एकदम कमर कस रखी है और समय के हिसाब से कभी सख्त आर्थिक तो कभी राजनीतिक फैसले लेकर उस पर तेजी से अमल कर रही है। पिछले माह जयपुर में हुई कांग्रेस की चिंतन बैठक में तय किया गया था कि विपक्ष जिन जिन संभावित मुद्दों पर आने वाले चुनावों में कांग्रेस को घेर सकता है उन उन मुद्दों का हल निकाल कर विपक्ष को नए मुद्दों की खोज करने में ही समय व्यतीत करने को विवश कर दिया जाए। अफजल की सजा पर अमल भी विपक्ष के तरकश के सभी तीरों को खत्म कर देने के प्रयास के तहत हुआ हो, ऐसा संभव है।
यह भी संभव है कि तय रणनीति के अनुसार गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कांग्रेस की चिंतन बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी पर हिन्दू आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए आतंकी प्रशिक्षण केंद्र चलाने का आरोप लगाया हो। बाद में कांग्रेस पार्टी ने शिंदे के इस आरोप से किनारा भी कर लिया और दूसरी तरफ भाजपा और संघ परिवार को अन्य मुद्दों को दरकिनार कर भगवा आतंकवाद मुद्दे पर धरने प्रदर्शन करने के लिए बाध्य कर दिया। जब भगवा आतंकवाद मुद्दा छा गया तो अफजल की फांसी पर अमल कर सभी तरह के आतंकवाद को एक ही चश्मे से देखने का दावा किया गया। जो शिंदे भगवा आतंकवाद को लेकर विपक्ष के निशाने पर थे उनकी स्थिति अब पहले से बहुत मजबूत हो गयी है क्योंकि उन्होंने राष्ट्रपति की ओर से अफजल गुरु की दया याचिका खारिज करने के तुरंत बाद उसको फांसी दिए जाने संबंधी आदेश पर हस्ताक्षर कर दिये। नरम व्यक्ति की अपनी छवि को तोड़ते हुए शिंदे ने बतौर गृहमंत्री तीन महीने के भीतर दो दुर्दांत आतंकवादियों- अजमल कसाब और अफजल गुरु को फांसी दिलवाकर और वह भी बड़े ही गुपचुप तरीके से, अपनी कार्यक्षमता को सिद्ध किया है। हालांकि यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि इससे पहले शिंदे जिन मंत्रालयों में रहे उनमें कभी कोई बड़ा कार्य नहीं कर पाये ऐसे में यहां सवाल यह भी उठता है कि वह कहीं से निर्देशित तो नहीं हो रहे?
यह बात सही है कि अफजल को फांसी से केंद्र सरकार ने आतंकवाद को साफ संदेश दिया है कि किसी भी सूरत में भारत विरोधी कार्रवाई को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। लेकिन ऐसे मामलों पर तुरंत कार्यवाही होने से ही आतंकवादियों का मनोबल गिराया जा सकता है। सन 2005 में जब अफजल की सजा ए मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी मुहर लगायी थी तभी यदि सजा पर अमल कर दिया जाता तो संभव है कि उसके बाद हुई आतंकी घटनाओं को अंजाम देने से पहले आतंकवादी दस बार सोचते। अफजल को फांसी की टाइमिंग पर सवाल अब भले विपक्ष उठा रहा हो लेकिन उसके मामले को जान बूझकर लटकाने के आरोप भी कांग्रेस पर लगते रहे। खुद अफजल ने भी ऐसा ही कुछ आरोप कांग्रेस पर लगाया था। 2008 में आए अफजल के एक साक्षात्कार के मुताबिक उसने कहा था, 'मैं तिल तिलकर मरना नहीं चाहता। लेकिन केंद्र सरकार फांसी नहीं देगी इसलिए मेरी मंशा है कि आडवाणी प्रधानमंत्री बन जाएं क्योंकि वही एकमात्र ऐसा व्यक्ति है जो उसकी फांसी पर जल्द फैसला ले सकता है'।
कसाब और अफजल मामले के बाद अब जब समझौता ट्रेन धमाका और मालेगांव बम धमाके के आरोपियों की दोषसिद्धि और सजा पर अमल की बात आएगी तो कांग्रेस सरकार उन पर भी तेजी से कार्यवाही कर हर तरह के आतंकवाद को एक ही नजर से देखने की बात और पुख्ता तरीके से कह सकेगी। अफजल को फांसी से होने वाले कुछ असरों की बात करें तो जिस तेजी के साथ कसाब और अफजल की सजा को अंजाम दिया गया उससे आतंकवादियों के मन में यह खौफ तो जरूर पैदा होगा कि अब सरकार सख्त फैसले लेने में हिचक नहीं रही है। साथ ही उन आतंकवादियों की बारी भी अब जल्द आ सकती है जोकि मौत की सजा पर अमल की प्रतीक्षा कर रहे हैं। राजनीतिक रूप से जो असर पड़े हैं उनमें प्रमुख यह है कि पिछले कुछ दिनों से भाजपा और संघ परिवार की ओर से देश में जो हिन्दुत्ववाद का माहौल बनाया जा रहा था उसको कांग्रेस ने राष्ट्रवाद के माहौल में बदल दिया है और राहुल बनाम मोदी की बहस भी अब कुछ दिनों तक थमने के आसार हैं। हालांकि अब इन अटकलों को भी बल मिला है कि सरकार समय से पहले चुनाव करा सकती है।
इस मामले को लेकर राजनीति पहले से ही होती रही है इसलिए अब कोई नई बात नहीं दिखाई पड़ती। भाजपा अब तक जिंदा कसाब और अफजल को लेकर सरकार को घेरती रहती थी वहीं अब कांग्रेस चुनावों में कसाब और अफजल की मौत का श्रेय लेने से नहीं हिचकेगी। कांग्रेस नेता और सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी के एक बयान से इस बात की पुष्टि भी होती है जिसमें उन्होंने कहा, ''जिन्होंने आतंकवादियों को पनाह दी और उनके साथ कंधार गए’’ उन्हें अन्य के नेतृत्व वाली सरकारों पर अंगुली उठाने के पहले आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।''
बहरहाल, इस मामले पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को सबसे ज्यादा श्रेय जाता है क्योंकि उन्होंने दया याचिका पर अपने पूर्ववर्तियों की तरह निर्णय को लटकाया नहीं। उनके सख्त तेवरों से साफ है कि आतंकवाद किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और वह महज रबर स्टाम्प बने रहने वाले राष्ट्रपति नहीं हैं।

हिंदू अपमानित तो क्या भारत गौरवान्वित?

   
   
गृहमंत्री श्री शिंदे साहब द्वारा विश्व के सबसे बड़े हिंदू संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा देश के प्रमुख विपक्ष भाजपा पर आतंकवादी तैयार करने के शिविर चलाने और हिंदू आतंकवाद फैलाने का नाम लेकर जो आरोप लगाया गया, वह इतना आत्मदैन्य से भरा गैर जिम्मेदाराना बयान है कि जिसके बारे में सिर्फ केवल इतना ही कहा जा सकता है कि सर, अगर कोई देश के कानून और संविधान के विरुद्ध काम कर रहा है, उसे पकडि़ये, सजा दीजिए पर उस पर हल्के स्तर का राजनीतिक खेल तो मत करिए।
जिस हिंदू समाज ने पिछले एक हजार साल से विदेशी बर्बर आक्रमणकारियों का सामना किया, जिस विधर्मी और अधर्मी आक्रमणकारियों ने हमारे तीन हजारे से अधिक मंदिर नष्ट किए, हम्पी जैसा विश्वविख्यात नगर जला दिया, 18 बार दिल्ली को लूटा और यहां नरसंहार किया, तलवार के बल पर धर्मांतरण किया, उसके बावजूद जिसने उन तमाम मतावलंबियों के प्रति नफरत न रखते हुए खंडित आजादी के बाद भी सबको समान अधिकार दिए, तीन-तीन मुस्लिम राष्ट्रपति, वायुसेना अध्यक्ष, सर्वोच्च न्यायाधीश, मंत्रिमंडलीय सचिव, आईबी के प्रमुख, आनंद और सम्मान के साथ होने दिए, क्या उस हिेंदू के मानस में ऐस घृणा का तत्व हो सकता है कि जिसे पहचान कर शिंदे साहब ने आतंकवाद के साथ हिंदू शब्द जोड़ने की जरूरत समझी?
आतंकवाद कायरों का काम है। जो डरपोक और चोर-उचक्कों की तरह आघात करना चाहते हैं वे आतंकवाद का सहारा लेते हैं। वीर युद्ध करते हैं और या तो शत्रु को नियमों के अंतर्गत लड़े गए युद्ध में परास्त करते हैं या वीरगति को प्राप्त होते हैं। जिस वर्ष हम दुनिया के सबसे महान और क्रांतिकारी हिंदू संन्यासी स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती मना रहे हैं, उसी वर्ष वही सरकार जिसने 150वीं जंयती का शासकीय स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किया, हिंदुओं पर एक सामान्यीकृत लांछन लगा रही है। आश्चर्य की बात यह है कि हिंदू आतंकवाद का शब्द प्रयोग किए जाने पर वे राजनीतिक दल भी चुप रहे जिनमें 90-95 प्रतिशत तक हिेंदू हैं और जो बार-बार इस बात पर आपत्ति करते हैं कि आतंकवाद के साथ इस्लामी शब्द नहीं जोड़ना चाहिए। शायद वे मानते हैं कि जब हिंदुओं पर आघात होता है तो उसका अर्थ है केवल और केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा भाजपा पर आघात, इसलिए उस आघात का जवाब देने की जिम्मेदारी भी इन्हीं संगठनों पर है।
यह एक मानसिकता है जो लगातार विदेशी आक्रमणों के कारण आम हिंदू को दब्बू तथा अपने हिंदुपन के प्रति क्षमा तथा लज्जा का बोध रखने वाला बना गयी। दुनिया में केवल हिंदुओं में ही ऐसे लोग मिलेंगे जो हिंदू कहे जाने पर अचकचाकर संकोच के साथ कहेंगे- साहब, मैं तो इंसान हूं, मैं सब धर्मों में यकीन करता हूं। अपने को आग्रहपूर्वक हिंदू कहने का कोई अर्थ नहीं है। केवल हिंदू धर्म के आश्रमों, मठों और मंदिरों में अक्सर अल्लाह, जीसस तथा जरथुस्त्र के प्रतीक मिलते हैं और वहां लिखा रहता है- सब धर्मों का सार एक है, ईश्वर एक है, अल्लाह को भजो या जीसस की उपासना करो, पहुंचोगे उसी एक निराकार, परम ब्रह्म की ओर।
लेकिन यह बात किसी ईसाई या मुसलमान से आप कहें तो वह छाती तानकर, माथा उठाकर सीधे-सीधे बोलेगा कि मुझे गर्व है कि मैं ईसाई या मुसलमान हूं और मैं केवल अपने मत या मज़हब के अलावा बाकी सभी मतों और मजहबों को झूठा तथा जन्नत तक ले जाने में असमर्थ मानता हूं इसलिए उन सबके मतांतरण के लिए मैं दुनिया भर से चंदे इकट्ठा करके प्रभु के सच्चे प्रकाश की ओर ले चलने का अधिकार सुरक्षित रखता हूं।
जिस देश में हिंदुओं का बहुमत हो और जिन्होंने एक हजार साल तक विदेशी आक्रमणकारियों के जुल्म् और अत्याचार झेले हों, उन्होंने यह नहीं कहा कि कम से कम अब आजादी के बाद तो हमें अपने धर्म, मंदिर और आस्था के सांस्कृतिक तौर-तरीकों की सुरक्षा का संवैधानिक अधिकार दो तथा हमारे गरीब, अनपढ़ और मजबूर लोगों का अन्य मतों में मतांतरण पूरी तरह से काननून बंद करने का प्रावधान बनाओ। हिंदू तो इतने उदारवादी और अपने ही समाज को खत्म तथा तोड़ने की साजिशों के प्रति उदासीन रहे कि उन्होंने गैर-हिंदू अल्पसंख्यकों को वे विशेषाधिकार भी दे दिए जो खुद उन्हें प्राप्त नहीं है।
अगल-बगल में जहां कहीं हिंदू अल्पसंख्यक तथा मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, वहां मंदिर तोड़े जाते हैं, शमशान घाट तक खत्म् कर दिए जाते हैं, हिंदू बच्चे स्कूल में अपने धर्म के प्रतीक पहनकर नहीं जा सकते, अपने धर्म ग्रंथ संस्कृत में पढ़ने की सुविधा नहीं पाते, उन्हें नागरिकता के समान अधिकार नहीं मिलते और यहां तक कि अपने ही देश में एकमात्र मुस्लिम बहुल प्रांत जम्मू-कश्मीर के कश्मीर खंड से हिंदुओं को प्रताडि़त और अपमानित करके निकाल दिया गया।
फिर भी हिंदुओं में से कोई ऐसा संगठन नहीं खड़ा हुआ जिसने हिंदू राज के लिए गैर हिंदुओं के समापन का ऐलान किया हो। बल्कि दुनिया के सबसे बड़े और शक्तिशाली हिंदू संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिंदू राज की थियोक्रेसी यानी सांप्रदायिक या पंथ पर टिकी शासन व्यवस्था का निषेध किया। हम भारत के सेक्यूलर संविधान और उसकी लोकतांत्रिक, बहुलतावादी अवधारणा को ही भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ मानते हैं।
फिर भी यदि कोई हिंदू आतंकवाद जैसा शब्द इस्तेमाल करता है तो क्या यह भारत की गौरवशाली सभ्यता, परम्परा और उसके इतिहास का अपमान नहीं? यदि केवल कुछ व्यक्तियों के गलत आचरण के कारण पूरे समाज को दोषी ठहराना है तो क्या नैना साहनी हत्याकांड या 1984 के बर्बर सिख नरसंहार के लिए समूची कांग्रेस को दोषी ठहराते हुए कांग्रेसी आतंकवाद जैसे शब्द प्रयोग प्रचलन में लाये जाने चाहियें? हिंदू समाज और उसकी महान परंपरा भारत की पहचान है। इसीलिए स्वामी विवेकानंद ने आह्वान किया था कि- गर्व से कहो कि तुम हिंदू हो और केवल तभी तुम स्वयं को हिंदू कहाने योग्य कहे जाओगे जब तुम अपना आदर्श और अपना नायक गुरु गोविंद सिंह को मानो। उनकी शक्ति और भक्ति से प्रेरणा लेकर ही तुम इस भारत की सच्ची संतान हो सकते हो। शिंदे साहब क्या आपने यह सब पढ़ा है?

चलती कार में दुष्कर्म किए जाने का आरोप लगाया



   
   
अमृतसर में 22 साल की एक लड़की ने आरोप लगाया है कि कल रात चार लोगों ने चलती कार में उसके साथ दुष्कर्म किया। एडीसीपी अपराध हरजीत सिंह बरार ने कहा कि लड़की के बयान के अनुसार कल रात करीब आठ बजे वह घर जाने के लिए बस की प्रतीक्षा कर रही थी, उसी समय कुछ लोगों ने उसे एक कार में खींच लिया। पुलिस के अनुसार लड़की ने आरोप लगाया कि करीब 45 मिनट तक चार लोगों ने बार बार उसके साथ दुष्कर्म किया और बाद में उसे गाड़ी से बाहर फेंक दिया।
पुलिस के अनुसार आरोपी फरार हैं। पीड़ित एक मोबाइल फोन कंपनी में काम करती है। उसे एक राजकीय अस्पताल में दाखिल कराया गया है जहां उसकी मेडिकल जांच करायी गयी। पुलिस के अनुसार डाक्टरों की एक टीम ने उसके साथ यौन संबंध बनाए जाने की पुष्टि की है हालांकि उसके शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं हैं। बरार ने कहा कि लड़की के फोन के कॉल डिटेल से पता लगता है कि घटना के पहले और बाद में एक खास नंबर से कई बार फोन आए। पुलिस को संदेह है कि आरोपी लड़की के परिचित हैं।

पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने किया मेट्रो में सफर

   
   
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने कल दिल्ली मेट्रो रेल में पहली बार सफर किया। ‘उत्कृष्टा की संस्कृति’ बनाने के लिये उन्होंने डीएमआरसी की सराहना की। कलाम ने केंद्रीय सचिवालय से राजीव चौक तक का सफर किया जहां उन्होंने रूट बदलने की सुविधा का जायजा लिया। इसके बाद वह राजीव चौक से रामकृष्ण आश्रम मार्ग स्टेशन पहुंचे। आरके आश्रम मार्ग से कलाम ने वापस बाराखंभा रोड मेट्रो स्टेशन का रुख किया जहां उन्होंने इस स्टेशन का अवलोकन किया।

कुछ और देश भी मनाते हैं होली जैसे पर्व

   
   
रंग, गुलाल, अबीर के साथ मनाई जाने वाली होली भारत का एक अनूठा पर्व है जिसका आनंद लेने के लिए दूसरे देशों से भी लोग यहां आते हैं। विदेशों में उन तमाम स्थानों पर होली मनाई जाती है जहां भारतीय बसे हैं। लेकिन ऐसे भी देश हैं जहां होली तो नहीं मनाई जाती लेकिन होली से मिलते जुलते पर्व मनाए जाते हैं। इन पर्वों की खास बात यह होती है कि इनका रंग किसी भी तरह होली के रंग से फीका नहीं होता। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया आदि में नव वर्ष पर खूब गुब्बारे छोड़े जाते हैं। हवा वाले गुब्बारे तो आसमान में छोड़े जाते हैं लेकिन पानी वाले गुब्बारे भी तैयार किए जाते हैं। साथ ही पानी की बौछार लोगों पर डाली जाती है। बहरहाल, सुरक्षा कारणों से इसके प्रति लोगों का उत्साह थोड़ा कम हुआ है।
समाज शास्त्री उर्मिला सक्सेना कहती हैं, ''पर्व भले ही अलग अलग देशों में अलग अलग हों और उन्हें मनाने का तरीका भी अलग अलग हो, लेकिन सबका मूल मंत्र एक ही होता है− शांति और सद्भाव। समाज को एक दूसरे से जोड़ने का यह अभिनव तरीका सदियों से चला आ रहा है।'' थाईलैंड, म्यांमार, कम्बोडिया और लाओस− ये एशिया के ऐसे देश हैं जहां जल उत्सव मनाया जाता है। इन देशों में इस पर्व के नाम अलग अलग हैं। सूर्य के मेष राशि में प्रवेश और उससे जुड़ी मान्यताओं के अनुसार, यह पर्व तिथियों के अनुसार, इन देशों में नव वर्ष के आगमन पर मनाया जाता है।
इस पर्व में भी पानी का ही खास महत्व होता है। लोग एक दूसरे को इस तरह भिगोते हैं मानो होली खेल रहे हों। एशिया में इस समय तक सर्दी का बिस्तर बंध चुका होता है और गर्मी की गर्माहट बढ़ने लगती है इसलिए खिली धूप में पानी की बौछार लोगों को खूब अच्छी लगती है। म्यांमार में यह पर्व मेकांग और थिंगयान कहलाता है। वहां भी यह होली की तरह ही मनाया जाता है। वहां धारणा है कि इस पर्व में पानी की धारा के साथ−साथ सभी बुराइयां धुल जाती हैं। युवा पीढ़ी इस परंपरा का जमकर आनंद उठाती है।
कंबोडिया में यह जल पर्व चाउन चानम थेमी और लाओस में पियामी कहलाता है। वहां इसे नयी फसल के लिए शुभ संकेत के तौर पर मनाया जाता है। स्पेन में मनाया जाने वाले 'ला टोमाटीना' पर्व का धर्म से कोई संबंध नहीं है और न ही इसका कोई प्राचीन इतिहास है। यह पर्व एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें एक दूसरे पर खूब टमाटर फेंके जाते हैं। इस पर्व की शुरुआत 1950 से हुई और इसका खूब विरोध भी हुआ। 1950 में सरकारी तौर पर शुरू होने के बाद 1957 में इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया, लेकिन दो साल बाद यह प्रतिबंध हटा दिया गया। स्पेन के बुनोल वलेनसिया में हर साल अगस्त माह के आखिरी शनिवार को लोग लाल सुर्ख टमाटर ले कर एकत्र होते हैं। इसके लिए एक नियम है। जब हार्न बजता है तब ही टमाटरों की बौछार शुरू होती है और दूसरी बार हार्न बजते ही लोग रुक जाते हैं। देखते देखते टमाटर की बौछार होती है और कुचले टमाटर का मलीदा एकत्र हो जाता है। इसमें टमाटर फेंकने से पहले इसे खुद ही फोड़ना पड़ता है। टमाटर के अलावा कोई और चीज नहीं फेंकी जाती। ला टोमाटीना हर साल एक लाख किलोग्राम से अधिक टमाटर अपने नाम कर जाता है।

बंदरंग रिश्तों में नया रंग भरती है होली


   
   
बसंत आगमन के साथ प्रकृति जब नए सिरे से खुद को संवारती है, तो उसकी छटा निराली होती है। वह अपनी सारी गांठें खोलकर खुद को विविध रंगों के माध्यम से अभिव्यक्त करती है। उस समय पेड़−पौधों की हरियाली और नाना प्रकार के पुष्प अपनी रंग बिरंगी छटा से मन मोह लेते हैं। तब मनुष्य का मन जैसे तरूण हो उठता है। होली आते−आते यह तरूणाई मादकता में डूबने इतराने लगती है। इस दृष्टि से देखें तो होली मन को गांठें खोल देने का त्योहार है।
यह ऐसा त्योहार है, जिसमें सभी धर्मों और समुदायों के लोग एक दूसरे को गुलाल लगाकर और गले मिल कर मन के मैल को भी इस मौके पर धो लेते हैं। दुनिया की किसी संस्कृति में ऐसा पर्व नहीं है, जिसमें मनुष्य एक दूसरे पर रंग डाल कर बदरंग हो गए रिश्ते में भी नया रंग भर लेते हैं। तन पर पिचकारियों की फुहार पड़ते ही और गालों पर एक दूसरे को गुलाल मलते हुए भारतीय समाज अपने सारे गिले−शिकवे दूर कर लेता है। क्यों न हो, जब इस देश की प्रकृति अलग−अलग मौसम से अपना मिजाज बदल लेती है, तो भला यहां के लोग भी लंबे समय तक एक रंग में ही क्यों रंगे रहें।
होली पर हर रंग अपना एक अलग संदेश लेकर आता है। गोरी के गालों पर जब पिया लाल रंग लगाते हैं तो यह उसके प्रति प्यार की गरमाहट को ही अभिव्यक्त करता है। और लाल रंग में सराबोर पत्नी जब पलट कर अपने पति, देवर, बहनोई या भाइयों को हरे रंग का गुलाल लगाती है, तो वह संबंधों में निर्मलता और प्रकृति से नारी के संबंध को ही प्रकट करती है। इसी प्रकार जब प्रियजनों को पीला रंग लगाया जाता है, तो हम यह संकेत देना चाहते हैं कि चलो हम फिर से अपने संबंधों को शुद्ध कर लें। शुभ अवसरों पर पीले रंग का कितना महत्व है, यह हर भारतीय समझता है। हम चाहें जामुनी रंग लगाएं या काला रंग, सभी का एक ही संदेश है कि मन से उदासी के रंग को दूर करो।
होली उत्साह से भरपूर त्योहार है। थोड़ी मस्ती, थोड़ी उछल कूद और थोड़ी चुहलबाजी ये सब होली पर दिखते हैं। रंग−गुलाल से खिला मन तब और आह्लादित हो जाता है, जब घर पर ठंडाई और पकवान खाने को मिलते हैं। उत्तर और पूर्वी भारत में इस मौके पर तो इतने पकवान बनते हैं कि सोचना पड़ता है कि क्या खाएं और क्या छोड़ें। होली पर मस्ती करने के बाद यों भी भूख बढ़ जाती है। खोए और चाशनी में बनी गुझिया, गरमा−गरमा जलेबी, गुड़ और चीनी के पुए, मालपुए, गरमागरम पकौड़े, दही भल्ले और ठंडाई तो खासतौर से बनते हैं। एकल और संयुक्त परिवारों में महिलाएं सुबह से पकवान बनाने में जुट जाती हैं। उनमें प्यार और उल्लास देखते बनता है। दिल से बनाए ये पकवान खाने वाले के मन में भी मिठास घोल देते हैं। मित्रों और संबंधियों के घर सुबह या फिर शाम ढलने पर लोग जब जाते हैं, तो उनका तरह−तरह के पकवानों से ही स्वागत होता है। होली पर जिस तरह से रंगों से हम अपना स्नेह प्रकट करते हैं उसी तरह से पकवानों का भी संदेश है कि साल भर इसी तरह रिश्तों में भी मिठास बनाए रखना।
होली वस्तुतः मन की गांठें खोल देने का त्योहार है। इस दिन लोग पुराने मन मुटाव को भूल कर सद्भाव की नई शुरुआत करते हैं। होली पर जो लोग दूसरे को चोट पहुंचाने, अभद्रता करने और स्त्रियों को रंग लगाने के बहाने उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाने का प्रयास करते हैं, उनमें दूर ही रहना चाहिए। उनकी हरकतों से यह साबित होता हैं कि वे सभ्य नहीं हैं और उनके मन का एक रंग है यानी काला। जिस पर किसी रंग का असर नहीं होता।
होली को कभी बदरंग न होने दें। क्योंकि विविध रंग मिल कर ही सतरंगी बनते हैं। इस अवसर हर मनुष्य समाज और परिवार में रिश्तों का ऐसा इंद्रधनुष बनाएं जिसमें मर्यादा तो है ही, एक ऐसी गरिमा भी हो, जिसकी गरमाहट अगली होली तक बनी रहे।

ऐसे भगत सिंह को कोई कैसे बिसरा सकता है!

   
   
आश्चर्य की बात है कि भगत सिंह की याद में कोई सभा या गोष्ठी नहीं आयोजित हुई। जबकि आज भी हर भारतीय उन्हें याद करता है। 82 साल पहले 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी पर लटकाया गया था। उनके गुजरे आठ दशक से ज्यादा हो गए, लेकिन उन्हें खोने का गम कम नहीं हुआ है। अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन ने देश को एकजुट किया था और भगत सिंह को लेकर भावनाएं इतनी मजबूत थीं कि कोई भी व्यक्ति अपने बेटे का नाम हंसराज वोहरा नहीं रखना चाहता था, क्योंकि हंसराज ने ही अपने कॉमरेड से साथ दगाबाजी की थी, और सरकारी गवाह बनने को राजी हुआ था।
हंसराज भगत सिंह का करीबी दोस्त था और गिरफ्तार होते ही उसने भेद खोल दिया था। हालांकि उसका कहना था कि भगत सिंह के साथ फांसी पर लटकाए गए सुखदेव ने पुलिस को सारा कुछ बता दिया था। फिर भी हंसराज ने पुलिस को विस्तार से बताया था कि क्रांतिकारी कहां बम बनाते थे और उन लोगों में से कई लोग देश में कहां हैं।
भगत सिंह के पिता ने ट्रिब्यूनल के समक्ष लिखित अनुरोध पेश कर कहा था कि उनका बेटा बेगुनाह है और पुलिस अधिकारी जॉन साडंर्स की हत्या से उनका कुछ लेना-देना नहीं है। भगत सिंह ने इस बयान के लिए अपने पिता को कभी माफ नहीं किया था, जबकि वे जानते थे कि उनके पिता सच्चे देशभक्त थे, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। फांसी को लेकर पिता के पुत्रमोह ने भगत सिंह को अशांत कर दिया था। लेकिन उन्होंने महसूस किया था कि उनके पिता की यंत्रणा भरी आंखों ने खेद जाहिर कर दिया है।
भगत सिंह ने पत्र लिखकर अपने पिता को लताड़ा था। उन्होंने अपने पिता को लिखा था, 'मैं यह समझ नहीं पा रहा कि इस मुकाम पर और इन हालातों में आपने इस तरह का दरखास्त देना कैसे वाजिब समझा।... आप जानते हैं कि मेरा राजनीतिक विचार आपसे हमेशा अलग रहा है। मैं आपकी सहमति-असहमति का परवाह किए बगैर हमेशा स्वतंत्र रूप से काम करता रहा हूं।
हेड जेल वॉर्डन चरत सिंह ने उन्हें संकेत दिया कि मुलाकात के लिए आवंटित समय खत्म हो चुका है। लेकिन भगत सिंह रूके रहे। परिवार के प्यार से वे अभिभूत हो गए थे। वे सोच में डूबे हुए थे। चरत सिंह ने उन्हें जल्दी करने को कहा। रिश्तेदारों ने बारी-बारी से भगत सिंह को गले लगाया। उन्होंने मां का चरण स्पर्श किया। उन्होंने ऐसा श्रद्धा भाव से किया, लेकिन सभी की आंखों में आंसू आ गए थे। उनकी बहन फफक-फफक कर रोने लगी थी। भगत सिंह अशांत हो गए थे। उन लोगों से उनका कहा हुआ अंतिम शब्द था- साथ बने रहो।
इसके बाद उन्होंने हाथ जोड़ा और चले गए। अपने सेल में लौटते वक्त उन्होंने लोहे के सींखचे के पीछे सुखदेव और राजगुरू को असहाय और अकेला खड़ा पाया। चरत सिंह के मना करने के बावजूद वे उन लोगों से बात करने के लिए रूक गए। उन लोगों से उन्होंने कहा, अब किसी भी दिन हो सकती है फांसी। उन लोगों ने सहमति से सिर हिलाया। सेल में लौटने के बाद भगत सिंह ने अपने कुरते को छुआ, जो परिवार वालों की आंसुओं से तर हो गया था। उनका सबसे छोटा भाई कुलतार लगातार रोता रहा था। बड़े भाई से गले मिलकर जब उन्होंने अलविदा कहा तो भाई ने सिसकते हुआ कहा था, 'तुम्हारे बिना जीवन का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।' उनका निष्कपट, दुखभरा चेहरा भगत सिंह को याद आता रहा था। सेल के अंदर ढकेल कर दरवाजा बंद कर दिए जाने पर उन्होंने पेन उठाया और उर्दू में एक खत लिखा। वे सामान्य तौर से व्यक्तिगत खत उर्दू में ही लिखा करते थे।
कुलतार को लिखा खत पूरा हो गया था। उन्हें भरोसा था कि उनके शब्दों से उनके भाई को शांति मिलेगी। लेकिन उन पर भरोसा करने वाले हजारों लोगों का क्या होगा? भाई को खत लिखने के बाद भगत सिंह अपने नोटबुक के पास पहुंचे। इस नोटबुक में ना तो उनकी व्यक्तिगत बातें थीं और ना ही इसमें उनकी प्रतिक्रियाएं दर्ज थीं। उन्होंने जिन किताबों को पढ़ा था, उसकी कुछ पसंदीदा पंक्तियां इसमें लिखी हुई थीं। इनमें अधिकांशतः अरस्तू, प्लेटो, हॉब्स, लॉक, ट्राटस्की, बर्नाड रसल, कार्ल मार्क्स और एजेंल्स की लाइनें अंग्रेजी में लिखी हुई थीं।
भारतीय लेखकों में उन्होंने रवींद्र नाथ ठाकुर और लाजपत राय को पढ़ा था। भगत सिंह को कविताएं भी काफी पसंद थीं। वे वर्डसवर्थ, ब्रॉयन और उमर खैय्याम की कविताओं का पाठ कर सकते थे। लेकिन गालिब उनके पसंदीदा कवि थे और नोटबुक में उन्हें बार-बार उद्धृत किया गया था। परिवार वालों से हुई मुलाकात ने उन्हें भावनात्मक रूप से तोड़ दिया था, लेकिन भगत सिंह इससे उबर कर अपनी किताबों में खो गए थे।
उन्हें फांसी पर लटकाए जाने की खबर ज्यों ही फैली, पूरा देश शोक में डूब गया। पूरे देश में जुलूस निकले। हजारों लोगों ने खाना नहीं खाया। लोगों ने शोक जताने के लिए काली पट्टी बांध कर अपना-अपना कारोबार बंद रखा। अंग्रेज घरों में बंद रहे। भारतीय राजनीतिक नेताओं में जवाहर लाल नेहरू ने सबसे पहले श्रद्धांजलि अर्पित की।
नेहरू ने कहा कि भगत सिंह बहादुर योद्धा था जिन्होंने शत्रुओं का सामना खुले मैदान में किया। वे देशप्रेम से ओत-प्रोत नौजवान थे। वे चिंगारी की तरह थे, जिसकी लपट बहुत कम समय में देश के एक भाग से दूसरे भाग तक फैली और चारों ओर के अंधकार को मिटाया। महात्मा गांधी ने मुक्तभाव से शहीद नायक के साहस की प्रशंसा की। उन्होंने कहा, 'भगत सिंह और उनके साथियों की मौत हजारों लोगों के लिए निजी क्षति है। मैं इन नौजवानों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।..'
लेकिन कई लोगों को यह बात पच नहीं पा रही थी, जो गांधी जी से इस बात को लेकर खफा थे कि उन्होंने भगत सिंह और उनके साथियों को बचाने के लिए कुछ नहीं किया। लोगों के गुस्से का सामना कर रहे कांग्रेस नेताओं ने फांसी से बचाने में अपनी नाकामयाबी को लेकर कई तरह से बयान दिए। लेकिन कोई बयान लोगों के गुस्से को शांत नहीं कर सका।
पिछले तीन साल से हम भारतीय और पाकिस्तानी उस चौराहे पर भगत सिंह की जयंती मनाते हैं, जिस चौराहे पर उन्हें फांसी दी गई थी। हम मोबत्तियां जलाते हैं और उनके फोटो पर फूल-माला चढ़ाते हैं। हमें याद है असफाकउल्ला की फांसी, जो गले में कुरान लटका कर निम्न पंक्तियों को गाते हुए सूली पर चढ़ा था। ये पंक्तियां देशभक्ति की भावनाओं का इजहार करती हैं, न कि धार्मिक भावनाओं कीः
कुछ आरजू नहीं है, आरजू तो यह
रख दे कोई जरासी खाके वतन कफन में

होली के रंगों में घातक कैमिकल भी होते हैं

   
   
होली भारत का एक प्रमुख सौहार्द भरा पर्व है। इस त्यौहार पर मस्ती और धमाल भी जमकर होता है। रंगों का यह पर्व प्राचीन काल से ही वसन्तोत्सव के रूप में मनाया जाता रहा है। महाभारत काल में भी होली का त्यौहार मनाया जाता था और मुग़ल काल में भी खूब हर्षोल्लास के साथ होली खेली जाती थी। तब होली खेलने हेतु रंग बनाने के लिए अनेक प्राकृतिक पदार्थों का ही उपयोग किया जाता था। विभिन्न फल, फूल और पलों का प्रयोग होता था। इस प्रकार प्राप्त रंग आदि त्वचा और कपड़ों को हानि नहीं पहुंचाते थे अपितु वे त्वचा में निखार ही लाते थे। पर आज ऐसा नहीं है। हम जाने−अनजाने उन तमाम हानि रहित पदार्थों से दूर हो गये हैं। अब विज्ञान की अनेक खोजों और बढ़ती जनसंख्या के कारण रंगों की दुनिया ही बिलकुल बदल गयी है।
आजकल बड़े पैमाने पर विभिन्न रसायनों के प्रयोग से कम खर्च में अधिक सामग्री तैयार की जाती है। इस प्रकार तैयार रंगों में ऐसे अनेक रसायन होते हैं जो त्वचा और कपड़ों के लिए नुकसानदेह होते हैं। घटिया और सस्ते रंग प्रायः डाई आधारित होते हैं। यही हाल गुलाल का भी है। ये रंग−गुलाल दिखने में गहरे, आकर्षक होते हैं पर वास्तव में होते खतरनाक हैं। प्रायः रंग तीन तरह के होते हैं− बेसिक, डायरेक्टर और एसिड रंग। बेसिक रंग बहुत चमकीले होते हैं। ये सूती कपड़ों को अधिक हानि नहीं पहुंचाते, साथ ही धूप से ये रंग उड़ भी जाते हैं। साबुन से धोने पर ये रंग आसानी से छूट जाते हैं। डायरेक्टर रंग सूती कपड़ों पर जल्दी चढ़ जाते हैं। लाल, नीले और काले रंगों के रूप में मिलने वाले इन्हीं रंगों का प्रायरू होली पर प्रयोग खूब किया जाता है। एसिड रंग सभी तरह के कपड़ों पर आसानी से चढ़ जाते हैं। धुलाई के बाद कपड़ों पर इनके धब्बे रह जाते हैं। इन्हें छुड़ाने के लिए सूती, रेशमी और सिंथेटिक कपड़ों को नमक के पानी में एक या अधिक बार डुबाकर रखने के बाद धोना चाहिए। सफलता न मिलने पर पानी में सोडियम थियोसल्फाइट व वाशिंग सोडा बराबर मात्रा में मिलाकर गर्म करने के बाद उसमें डुबाकर कपड़े धोने चाहिए। गर्म पानी में साधारण नमक मिला कर भी उपयोग किया जा सकता है। रेशमी और ऊनी कपड़ों से रंग छुड़ाने के लिए सोडियम हाइड्रोसल्फाइट का उपयोग करना चाहिए। ये रंग त्वचा के लिए बहुत नुकसानदेह होते हैं अतः इनके प्रयोग से बचना चाहिए। विभिन्न रंगों का हमारी त्वचा पर शीघ्र प्रभाव पड़ता है। इसलिए यथाशीघ्र रंग छुड़ाने का प्रयास करना चाहिए। रंगों से आंख, कान, नाक, मुंह, बाल ही नहीं अपने शरीर की त्वचा को भी बचाना आवश्यक है।
बाजार में उपलब्ध अधिकांश रंग हमारे लिए घातक ही सिद्ध होते हैं। विशेष रूप से रासायनिक रंग बहुत नुकसान पहुचाते हैं। त्वचा से रंग छुड़ाने के लिए पहले नहाने के साबुन और पानी का इस्तेमाल करें। इसके अलावा पानी में फिटकरी डालकर उपयोग में लाएं। पानी में भिगोए हुए नींबू या आंवले के सूखे टुकड़े या पानी में निचोड़ा गया नींबू या पानी में फिटकरी मिलाकर रंग छुड़ाने के लिए उपयोग में लाए जा सकते हैं। कुछ लोग होली पर पेंट, ग्रीस, तारकोल जैसे पदार्थ भी उपयोग करते हैं। इन्हें छुड़ाने के लिए प्रभावित स्थान पर मुलायम कपड़े में मिट्टी का तेल लगाकर थोड़ा रगड़ कर साफ करना चाहिए। फिर कपड़े में साबुन लगाकर साफ करना चाहिए। इसके बाद गुनगुने पानी में मेंहदी या कच्चा दूध डालकर नहाना चाहिए। शरीर पर लगे गुलाल को पहले उसे झाड़कर साफ करें उसके बाद ही साबुन या शेम्पू का प्रयोग करें। गुलाल छुड़ाने के लिए मिट्टी के तेल का उपयोग नहीं करना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कम से कम आप तो ऐसे हानिकारक रंगों का उपयोग न करें। आजकल बाजार में अनेक सुरक्षित रंग और गुलाल मिल रहे हैं जिनका उपयोग करना अच्छा विकल्प है।
आप चाहें तो घर में ही विभिन्न फल, फूल, सब्जी, पलों आदि से निरापद रंग बना सकते हैं। इस तरह बनाकर उपयोग में लाए गये रंग न आपको और न ही किसी और को किसी तरह का नुकसान पहुंचाएंगे। गेंदे के सूखे फूलों की पंखुडि़यों, पिसी हल्दी, बेसन और पानी के उपयोग से पीला रंग बनाएं। हरा रंग बनाने के लिए पालक, पुदीना या मेंहदी पाउडर और पानी का उपयोग करें। जकरांडा के सूखे फूलों को पानी के साथ पीसने से नीला रंग, चुकन्दर को कद्दूकस कर पानी में मिलाकर गुलाबी−लाल रंग, लाल अनार के छिलकों या सूखे लाल गुलाब की पंखुडि़यों को पानी में उबालकर लाल रंग बनाया जा सकता है। रंग बनाने में टेसू के फूलों का उपयोग तो सर्विवदित है ही। यह सभी सामग्री घर−बाजार में आसानी से मिल जाती है, बस थोड़ा समय और सूझबूझ चाहिए।

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति ने दी होली की बधाई

 
 
 
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने रंगों के त्योहार होली के अवसर पर देशवासियों को शुभकामनाएं दी हैं। राष्ट्रपति ने होली की पूर्व संध्या पर अपने संदेश में कहा, ‘‘होली के अवसर पर मैं अपने सभी देशवासियों को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। वसंत के आगमन का प्रतीक यह पर्व सभी के लिए प्रसन्नता, आशा और कामनाओं की पूर्ति का अग्रदूत है।’’
मुखर्जी ने कहा, ‘‘होली के विभिन्न रंग हमारी विविध और बहु सांस्कृतिक विरासत को प्रतिबिंबित करते हैं। मैं कामना करता हूं कि रंगों का यह त्योहार हमारे राष्ट्रीय मूल्यों में हमारे विश्वास को सुदृढ़ करे और एकता, सद्भाव और सभी की भलाई को बढ़ावा दे।’’ ऊपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा कि देशभर में हषरेल्लास के साथ मनाया जाने वाला होली का यह त्योहार विविधता में एकता और सभी मनुष्यों के बीच समानता के विचारों को सुदृढ़ करता है। अंसारी ने इस मौके पर सभी के जीवन में शांति समृद्धि और प्रसन्नता की कामना की।

ਪੁਲਿਸ ਇੰਸਪੈਕਟਰ ਤੇ ਸਿਪਾਹੀ ਰਿਸ਼ਵਤ ਲੈਂਦੇ ਰੰਗੇ ਹੱਥੀ ਕਾਬੂ


ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ, 26 ਮਾਰਚ    -ਪੰਜਾਬ ਵਿਜੀਲੈਂਸ ਬਿਉਰੋ ਨੇ ਜਲੰਧਰ ਵਿਖੇ ਆਬਕਾਰੀ ਵਿਭਾਗ ਵਿਚ ਤਾਇਨਾਤ ਇੱਕ ਪੁਲਿਸ ਇੰਸਪੈਕਟਰ ਤੇ ਸਿਪਾਹੀ ਨੂੰ ਅੱਜ 5,000 ਰੁਪਏ ਦੀ ਰਿਸ਼ਵਤ ਲੈਂਦਿਆਂ ਰੰਗੇ ਹੱਥੀਂ ਕਾਬੂ ਕਰ ਲਿਆ | ਇਹ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿੰਦੇ ਹੋਏ ਵਿਜੀਲੈਂਸ ਬਿਉਰੋ ਦੇ ਮੁੱਖ ਡਾਇਰੈਕਟਰ-ਕਮ-ਡੀ.ਜੀ.ਪੀ ਪੰਜਾਬ ਸ੍ਰੀ ਸੁਰੇਸ਼ ਅਰੋੜਾ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਇੰਸਪੈਕਟਰ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸਿਪਾਹੀ ਹਰਦੀਪ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਵਿਜੀਲੈਂਸ ਦੀ ਛਾਪਾਮਾਰ ਟੀਮ ਨੇ ਪਿੰਡ ਪੱਲੀਵਾਲ ਤਹਿਸੀਲ ਨਕੋਦਰ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਜਲੰਧਰ ਦੇ ਵਾਸੀ ਜਿੰਦਰਪਾਲ ਤੋਂ ਪੰਜ ਹਜ਼ਾਰ ਦੀ ਰਿਸ਼ਵਤ ਲੈਂਦਿਆਂ ਮੌਕੇ 'ਤੇ ਹੀ ਕਾਬੂ ਕਰਕੇ ਰੰਗੇ ਹੋਏ ਨੋਟ ਕਬਜ਼ੇ ਵਿਚ ਲੈ ਲਏ | ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਉਕਤ ਸ਼ਿਕਾਇਤਕਰਤਾ ਨੇ ਵਿਜੀਲੈਂਸ ਬਿਉਰੋ ਕੋਲ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਕੀਤੀ ਸੀ ਕਿ ਇਹ ਇੰਸਪੈਕਟਰ ਅਤੇ ਸਿਪਾਹੀ ਨੇ ਉਸ ਦੇ ਘਰ ਦੀ ਜਬਰਨ ਤਲਾਸ਼ੀ ਲਈ ਪਰ ਉੱਥੋਂ ਕੁੱਝ ਵੀ ਨਹੀਂ ਮਿਲਿਆ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਇਹ ਕਰਮਚਾਰੀ ਉਸ ਉੱਪਰ ਆਬਕਾਰੀ ਕਾਨੂੰਨ ਤਹਿਤ ਮੁਕੱਦਮਾ ਦਰਜ ਕਰਨ ਧਮਕੀ ਦੇ ਕੇ ਉਸ ਤੋਂ ਪੰਜ ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਦੀ ਰਿਸ਼ਵਤ ਮੰਗ ਰਹੇ ਹਨ | ਵਿਜੀਲੈਂਸ ਵੱਲੋਂ ਇਸ ਦਰਖਾਸਤ ਦੀ ਪੜਤਾਲ ਦਰੁਸਤ ਪਾਏ ਜਾਣ 'ਤੇ ਸ੍ਰੀ ਸਤਪਾਲ ਡੀ.ਐਸ.ਪੀ ਵਿਜੀਲੈਂਸ ਬਿਉਰੋ ਜਲੰਧਰ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠਲੀ ਟੀਮ ਨੇ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਦਿਆਂ ਇੰਸਪੈਕਟਰ ਅਤੇ ਸਿਪਾਹੀ ਨੂੰ ਨਕੋਦਰ ਦੇ ਰੇਲਵੇ ਸਟੇਸ਼ਨ ਨੇੜੇ ਦੋ ਸਰਕਾਰੀ ਗਵਾਹਾਂ ਦੀ ਮੌਜੂਦਗੀ ਵਿਚ ਰਿਸ਼ਵਤ ਦੀ ਰਕਮ ਸਣੇ ਮੌਕੇ 'ਤੇ ਹੀ ਦਬੋਚ ਲਿਆ | ਇਸ ਸਿਲਸਿਲੇ 'ਚ ਉਕਤ ਮੁਲਜ਼ਮ ਿਖ਼ਲਾਫ਼ ਵਿਜੀਲੈਂਸ ਬਿਉਰੋ ਦੇ ਥਾਣਾ ਜਲੰਧਰ ਵਿਖੇ ਭਿ੍ਸ਼ਟਾਚਾਰ ਰੋਕੂ ਕਾਨੂੰਨ-1988 ਦੀ ਧਾਰਾ 7 ਅਤੇ 13 (2) ਤਹਿਤ ਮੁਕੱਦਮਾ ਦਰਜ਼ ਕਰਕੇ ਮਾਮਲੇ ਦੀ ਹੋਰ ਪੜਤਾਲ ਜਾਰੀ ਹੈ |

ਘਰੋਂ ਭੱਜੀ ਲੜਕੀ ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਵਾਰਸਾਂ ਹਵਾਲੇ ਕੀਤੀ


 


ਬਰਨਾਲਾ, 26 ਮਾਰਚ  -ਪਿਛਲੇ ਦਿਨੀਂ ਪੱਤੀ ਰੋਡ ਬਰਨਾਲਾ ਸਥਿਤ ਇਕ ਕਾਪੀਆਂ ਬਣਾਉਣ ਵਾਲੀ ਫ਼ੈਕਟਰੀ 'ਚ ਕੰਮ ਕਰਦੀ ਇਕ ਨਾਬਾਲਗ ਲੜਕੀ, ਫ਼ੈਕਟਰੀ 'ਚ ਹੀ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਾਥੀ ਵੱਲੋਂ ਉਧਾਲ਼ ਕੇ ਲੈ ਜਾਣ 'ਤੇ ਪੁਲਿਸ ਚੌਾਕੀ ਬੱਸ ਸਟੈਂਡ ਬਰਨਾਲਾ ਵੱਲੋਂ ਉਚਿਤ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਕੇ ਲੜਕਾ ਮਸੂਰ ਆਲਮ ਪੱੁਤਰ ਮੁਹੰਮਦ ਮਾਊਦੀਨ ਵਾਸੀ ਬਿਹਾਰ ਨੂੰ ਗਿ੍ਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਤੇ 16 ਸਾਲਾ ਰਾਜਪੂਤ ਲੜਕੀ, ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਵਾਰਸਾਂ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤੀ | ਲੜਕੇ 'ਤੇ ਬਣਦੀ ਕਾਰਵਾਈ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ | ਉਕਤ ਜਾਣਕਾਰੀ ਡੀ.ਐੱਸ.ਪੀ. ਹਰਮੀਕ ਸਿੰਘ ਦਿਉਲ ਨੇ ਦਿੱਤੀ |

ਅਸਲੇ ਸਮੇਤ ਗਿ੍ਫ਼ਤਾਰ


ਬਰਨਾਲਾ

ਬਰਨਾਲਾ, 26 ਮਾਰਚ  -ਥਾਣਾ ਸਦਰ ਬਰਨਾਲਾ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਜਾਣਕਾਰੀ ਅਨੁਸਾਰ ਸੀ.ਆਈ.ਏ. ਸਟਾਫ਼ ਦੀ ਪੁਲਿਸ ਪਾਰਟੀ ਗਸ਼ਤ ਦੌਰਾਨ ਗੁਰਸੇਵਕ ਸਿੰਘ ਪੱੁਤਰ ਮੱਖਣ ਸਿੰਘ ਜੱਟ ਸਿੱਖ ਪਿੰਡ ਸਹਿਜੜ੍ਹਾ ਨੂੰ ਪਿੰਡ ਖੁੱਡੀ ਕਲਾਂ ਦੇ ਨੇੜੇ ਸ਼ੱਕ ਦੇ ਆਧਾਰ 'ਤੇ ਰੋਕ ਕੇ ਤਲਾਸ਼ੀ ਕੀਤੀ ਤਾਂ ਤਲਾਸ਼ੀ ਦੌਰਾਨ ਉਸ ਕੋਲੋਂ ਰਿਵਾਲਵਰ ਦੇਸੀ, ਇਕ ਜਿੰਦਾ ਕਾਰਤੂਸ, ਇਕ ਚੱਲਿਆ ਖੋਲ ਕਾਰਤੂਸ਼ ਬਰਾਮਦ ਕੀਤਾ | ਆਰਮਜ ਐਕਟ ਤਹਿਤ ਥਾਣਾ ਬਰਨਾਲਾ ਵਿਖੇ ਪਰਚਾ ਦਰਜ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ |

ਬਹੁਚਰਚਿਤ ਕਤਲ ਕੇਸ ਤੇ ਜਬਰ ਜਨਾਹ ਮਾਮਲੇ 'ਚ ਤਿੰਨ ਨੂੰ ਉਮਰ ਕੈਦ

ਬਰਨਾਲਾ, 26 ਮਾਰਚ - ਮਾਣਯੋਗ ਅਦਾਲਤ ਦੇ ਵਧੀਕ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਤੇ ਸੈਸ਼ਨ ਜੱਜ ਸ੍ਰੀ ਬੀ. ਸੀ. ਸੰਧੂ ਨੇ ਬਹੁਤ ਚਰਚਿਤ ਤਿਹਰੇ ਕਤਲ ਕੇਸ ਅਤੇ ਜਬਰਜਨਾਹ ਦੇ ਮਾਮਲੇ 'ਚ ਤਿੰਨ ਦੋਸ਼ੀਆਂ ਨੂੰ ਉਮਰ ਕੈਦ ਅਤੇ ਜੁਰਮਾਨੇ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਸੁਣਾਈ। ਮਿਲੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਅਨੁਸਾਰ ਮ੍ਰਿਤਕਾ ਸੁਨੀਤਾ ਦੇ ਭਰਾ ਜਸਪਾਲ ਸਿੰਘ ਉਰਫ਼ ਸੋਨੂੰ ਪੁੱਤਰ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਚੰਦ ਨਿਵਾਸੀ ਬੁਢਲਾਡਾ ਨੇ ਪੁਲਿਸ ਕੋਲ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਕੀਤੀ ਸੀ ਕਿ ਉਸ ਦੀ ਭੈਣ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਭਣਵਈਏ ਨੇ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਜਿਸ ਦੀ ਪੜਤਾਲ ਥਾਣਾ ਭਦੌੜ ਦੇ ਐੱਸ.ਐੱਚ. ਸ: ਭੁਪਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕੀਤੀ ਪ੍ਰੰਤੂ ਪੜਤਾਲ ਦੌਰਾਨ ਘਟਨਾ ਦੇ ਸਨਸਨੀਖੇਜ ਸਬੂਤ ਪੁਲਿਸ ਦੇ ਹੱਥ ਲੱਗੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਕਿ ਕੁੱਝ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੇ ਮੰਗਤ ਰਾਮ ਪੁੱਤਰ ਰਾਮ ਰਛਪਾਲ ਨਿਵਾਸੀ ਭਦੌੜ ਨੂੰ ਮਾਰ ਕੇ ਸਹਿਣਾ ਦੀ ਨਹਿਰ ਵਿਚ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਰਾਤ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਘਰ ਆ ਕੇ ਸੁਨੀਤਾ ਨਾਲ ਜਬਰਜਨਾਹ ਉਪਰੰਤ ਉਸ ਨੂੰ ਵੀ ਬੜੀ ਬੇਰਹਿਮੀ ਨਾਲ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ। ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਇਸ ਮਾਮਲੇ ਵਿਚ ਤਿੰਨ ਦੋਸ਼ੀਆਂ ਕਰਮਜੀਤ ਸਿੰਘ ਉਰਫ਼ ਕਾਲਾ ਪੁੱਤਰ ਪਵਨ ਕੁਮਾਰ ਨਿਵਾਸੀ ਭਦੌੜ, ਪ੍ਰਮੋਦ ਕੁਮਾਰ ਪੁੱਤਰ ਵਾਸਦੇਵ ਨਿਵਾਸੀ ਸੰਧੂ ਪੱਤੀ ਬਰਨਾਲਾ, ਬਲਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਉਰਫ਼ ਬਿੰਦਰ ਉਰਫ਼ ਸ਼ੇਰੂ ਪੁੱਤਰ ਭੋਲਾ ਸਿੰਘ ਨਿਵਾਸੀ ਬਰਨਾਲਾ ਨੂੰ ਨਾਮਜ਼ਦ ਕੀਤਾ। ਇਸ ਸਬੰਧੀ ਮਾਮਲਾ ਉਕਤ ਅਦਾਲਤ ਵਿਚ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਜਿਸ ਤੇ ਮਾਣਯੋਗ ਅਦਾਲਤ ਦੇ ਵਧੀਕ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਤੇ ਸੈਸ਼ਨ ਜੱਜ ਸ੍ਰੀ ਬਲਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਸੰਧੂ ਨੇ ਇਸ ਘਿਣਾਉਣੇ ਦੋਸ਼ ਵਿਚ ਦੋਸ਼ੀਆਂ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰੀ ਵਕੀਲ ਮੁਮਤਾਜ਼ ਅਲੀ ਦੀਆਂ ਦਲੀਲਾਂ ਨਾਲ ਸਹਿਮਤ ਹੁੰਦੇ ਹੋਏ ਧਾਰਾ 302 ਵਿਚ ਉਮਰ ਕੈਦ ਤੇ 10 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਜੁਰਮਾਨਾ, 364 'ਚ 10 ਸਾਲ ਤੇ 5 ਹਜ਼ਾਰ ਜੁਰਮਾਨਾ, 376 'ਚ ਅੱਧੀ ਉਮਰ ਕੈਦ ਤੇ 5 ਹਜ਼ਾਰ ਜੁਰਮਾਨਾ, 201 ਆਈ.ਪੀ.ਸੀ. 'ਚ 5 ਸਾਲ ਤੇ ਇੱਕ ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਜੁਰਮਾਨਾ, 379 ਆਈ.ਪੀ.ਸੀ. 'ਚ ਇੱਕ ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਜੁਰਮਾਨਾ ਦੇਣ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦਾ ਹੁਕਮ ਸੁਣਾਇਆ ਹੈ। ਇੱਥੇ ਜ਼ਿਕਰਯੋਗ ਹੈ ਕਿ ਮ੍ਰਿਤਕਾ ਸੁਨੀਤਾ ਗਰਭਪਤੀ ਸੀ।

Tuesday, March 26, 2013

ਜੀਜੇ ਵਲੋਂ ਨਾਬਾਲਗ ਲੜਕੀ ²ਨਾਲ ਜਬਰ ਜਨਾਹ

ਤਰਨ ਤਾਰਨ, 25 ਮਾਰਚ (ਹਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ)-ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਵਿਖੇ ਆਪਣੀ ਭੈਣ ਦਾ ਜਣੇਪਾ ਕਟਾਉਣ ਆਈ ਇਕ ਨਾਬਾਲਗ ਲੜਕੀ ਨਾਲ ਉਸਦਾ ਜੀਜਾ ਹੀ ਲਗਭਗ ਇਕ ਮਹੀਨਾ ਜਬਰ ਜਨਾਹ ਕਰਦਾ ਰਿਹਾ | ਲੜਕੀ ਵੱਲੋਂ ਆਪਣੀ ਮਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਘਟਨਾ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦੇਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਥਾਣਾ ਸਿਟੀ ਵਿਖੇ ਲੜਕੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਦੀ ਸ਼ਿਕਾਇਤ 'ਤੇ ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਉਸਦੇ ਜੀਜੇ ਖਿਲਾਫ ਕੇਸ ਦਰਜ ਕਰ ਲਿਆ | ਜਦ ਕਿ ਇਸ ਮਾਮਲੇ 'ਚ ਨਾਮਜ਼ਦ ਵਿਅਕਤੀ ਅਜੇ ਤੱਕ ਪੁਲਿਸ ਦੀ ਗਿ੍ਫਤ 'ਚੋਂ ਬਾਹਰ ਹੈ | ਥਾਣਾ ਸਿਟੀ ਵਿਖੇ ਦਰਜ ਕਰਵਾਈ ਸ਼ਿਕਾਇਤ 'ਚ ਪੀੜ੍ਹਤ ਲੜਕੀ ਦੀ ਮਾਂ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਉਸ ਦੀ ਵੱਡੀ ਲੜਕੀ ਦੀ ਸ਼ਾਦੀ ਦੋ ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਦੇ ਮੁਹੱਲਾ ਜਸਵੰਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਵਸਨੀਕ ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਹੋਈ ਸੀ | ਕੁਝ ਸਮਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਉਸਦੀ ਵੱਡੀ ਲੜਕੀ ਘਰ ਲੜਕੇ ਨੇ ਜਨਮ ਲਿਆ | ਜਿਸ 'ਤੇ ਉਸ ਦੀ ਛੋਟੀ ਲੜਕੀ ਉਸਦਾ ਜਣੇਪਾ ਕਟਵਾਉਣ ਲਈ ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਆਪਣੀ ਭੈਣ ਘਰ ਆਈ ਹੋਈ ਸੀ | ਜਿਥੇ ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਛੋਟੀ ਬੇਟੀ ਨਾਲ ਲਗਾਤਾਰ ਇਕ ਮਹੀਨਾ ਜਬਰ ਜਨਾਹ ਕੀਤਾ ਤੇ ਇਸ ਬਾਰੇ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਨਾ ਦੱਸਣ ਦੀਆਂ ਧਮਕੀਆਂ ਵੀ ਦਿੱਤੀਆਂ |
ਥਾਣਾ ਸਿਟੀ ਦੀ ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਜਬਰ ਜਨਾਹ ਦੀ ਸ਼ਿਕਾਰ ਲੜਕੀ ਦਾ ਤਰਨ ਤਾਰਨ ਸਿਵਲ ਹਸਪਤਾਲ ਤੋਂ ਮੈਡੀਕਲ ਕਰਵਾਉਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ਖਿਲਾਫ ਕੇਸ ਦਰਜ ਕਰ ਲਿਆ ਹੈ | ਇਸ ਸਬੰਧੀ ਥਾਣਾ ਸਿਟੀ ਦੇ ਐੱਸ.ਐੱਚ.ਓ. ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਪੁਲਿਸ ਵੱਲੋਂ ਜਬਰ ਜਨਾਹ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਜਲਦੀ ਹੀ ਗਿ੍ਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਜਾਵੇਗਾ |

ਕਾਂਗਰਸ ਵਿਰੋਧੀ ਧਿਰ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਉਣ ਵਿਚ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਸਫਲ ਰਹੀ-ਬੱਬੀ ਬਾਦਲ


ਫ਼ਤਹਿਗੜ੍ਹ ਸਾਹਿਬ, 25 ਮਾਰਚ (PUNJ)-ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਧਰਮ ਨਿਰਪੱਖ ਦੱਸਣ ਵਾਲੀ ਕਾਂਗਰਸ ਪਾਰਟੀ ਵਿਰੋਧੀ ਧਿਰ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਉਣ ਵਿਚ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਸਫਲ ਰਹੀ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਵਿਚ ਚੱਲੇ ਸੈਸ਼ਨ ਵਿਚ ਕਾਂਗਰਸੀ ਵਿਧਾਨਕਾਰਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਤੋਂ ਭੱਜ ਕੇ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਜਨਤਾ ਨਾਲ ਵੱਡਾ ਧ੍ਰੋਹ ਕੀਤਾ ਹੈ | ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਗਟਾਵਾ ਯੂਥ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਬੁਲਾਰੇ ਸ. ਹਰਸੁੱਖਇੰਦਰ ਸਿੰਘ ਬੱਬੀ ਬਾਦਲ ਨੇ ਇੱਥੇ ਪੱਤਰਕਾਰਾਂ ਨਾਲ ਗੱਲਬਾਤ ਕਰਦਿਆਂ ਕੀਤਾ | ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਕਾਂਗਰਸੀ ਵਿਧਾਇਕਾਂ ਨੇ ਸੈਸ਼ਨ ਦੌਰਾਨ ਆਪਣੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਤੋਂ ਭੱਜ ਕੇ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਵਿਸ਼ਵਾਸਘਾਤ ਕੀਤਾ ਹੈ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਜਨਤਾ ਕਦੀ ਵੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਧਾਇਕਾਂ ਨੂੰ ਮਾਫ਼ ਨਹੀਂ ਕਰੇਗੀ | ਇਸ ਮੌਕੇ ਤੇ ਭਾਰਤੀ ਘੱਟ-ਗਿਣਤੀ ਤੇ ਦਲਿਤ ਫ਼ਰੰਟ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਪਰਮਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਸਿੱਧੂ, ਯੂਥ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੇ ਕੌਮੀ ਪ੍ਰਚਾਰ ਸਕੱਤਰ ਬਲਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸੈਣੀ, ਸ਼ੋ੍ਰਮਣੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੀ ਐੱਸ.ਸੀ.ਵਿੰਗ ਦੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਸਕੱਤਰ ਜਨਰਲ ਗੁਰਮੁਖ ਸਿੰਘ ਸੁਹਾਹਗੇੜੀ ਆਦਿ ਨੇ ਯੂਥ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੇ ਮੁੱਖ ਬੁਲਾਰੇ ਸ. ਹਰਸੁੱਖਇੰਦਰ ਸਿੰਘ ਬੱਬੀ ਬਾਦਲ ਦਾ ਸਿਰੋਪਾਓ ਭੇਟ ਕਰਕੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਨਮਾਨ ਵੀ ਕੀਤਾ | ਇਸ ਮੌਕੇ ਹੋਰਨਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਭਲਵਾਨ, ਜਗਤਾਰ ਸਿੰਘ ਘੜੂੰਆਂ, ਰਾਹੁਲ ਬਰਾੜ, ਰਣਵੀਰ ਸਿੰਘ, ਜੈਪਾਲ ਬਜਾਜ, ਗੁਰਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ਪੰਡਰਾਲੀ, ਕੁਲਦੀਪ ਸਿੰਘ ਮੁੱਲਾਂਪੁਰ, ਰਣਧੀਰ ਸਿੰਘ ਪੱਪੀ, ਬਲਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਮੰਡੀ ਗੋਬਿੰਦਗੜ੍ਹ, ਗੁਰਜੰਟ ਸਿੰਘ ਨੋਲੱਖਾ, ਗੁਰਮੁੱਖ ਸਿੰਘ ਰੁੜਕੀ, ਬਲਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਚਣੋਂ ਆਦਿ ਵੀ ਹਾਜ਼ਰ ਸਨ |

ਸੋਬਰਾਜਜੀਤ ਦੇ ਪਰਿਵਾਰ ਨੂੰ ਇਨਸਾਫ਼ ਦਿਵਾਉਣ ਲਈ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਵਲੋਂ ਡੀ. ਸੀ. ਦਫ਼ਤਰ ਅੱਗੇ ਰੋਸ ਰੈਲੀ

ਬਰਨਾਲਾ, 25 ਮਾਰਚ -ਸੋਬਰਾਜਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪਰਿਵਾਰ ਨੂੰ ਇਨਸਾਫ਼ ਦਿਵਾਊ ਐਕਸ਼ਨ ਕਮੇਟੀ ਬਰਨਾਲਾ ਵੱਲੋਂ ਡੀ.ਸੀ. ਦਫ਼ਤਰ ਬਰਨਾਲਾ ਦੇ ਦਫ਼ਤਰ ਅੱਗੇ ਵਿਸ਼ਾਲ ਰੋਸ ਰੈਲੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਕਚਹਿਰੀ ਚੌਾਕ ਵਿਖੇ ਅਰਥੀ ਫੂਕ ਮੁਜ਼ਾਹਰਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਜਿਸ 'ਚ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਦੀਆਂ ਸਮੱੁਚੀਆਂ ਜਨਤਕ ਜਮੂਹਰੀ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਨੇ ਸ਼ਮੂਲੀਅਤ ਕੀਤੀ ਤੇ ਕਚਹਿਰੀ ਚੌਾਕ ਵਿਖੇ ਇੱਕ ਚੱਕਾ ਜਾਮ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਇਸ ਮੌਕੇ ਕਮੇਟੀ ਦੇ ਕਨਵੀਨਰ ਸਾਥੀ ਗੁਰਮੇਲ ਸਿੰਘ ਠੱੁਲੀਵਾਲ, ਬੀ.ਕੇ.ਯੂ. ਡਕੌਾਦਾ ਦੇ ਸੀਨੀਆਰ ਮੀਤ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮਨਜੀਤ ਧਨੇਰ, ਜਮਹੂਰੀ ਅਧਿਕਾਰ ਸਭਾ ਸੂਬਾਈ ਨਰਭਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਆਦਿ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸੜਕ ਹਾਦਸੇ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋਇਆ ਜਮਹੂਰੀ ਅਧਿਕਾਰ ਸਭਾ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਸਕੱਤਰ ਸਾਥੀ ਸੋਹਨ ਸਿੰਘ ਦਾ ਇਕਲੌਤਾ ਬੇਟਾ ਸੋਬਰਾਜਜੀਤ ਸਿੰਘ 6 ਫਰਵਰੀ ਨੂੰ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਤੇ ਮੌਤ ਨਾਲ ਦਮ ਤੋੜ ਗਿਆ ਸੀ | ਹਾਦਸੇ ਲਈ ਜਿੰਮੇਵਾਰ ਮਿਊਾਸੀਪਲ ਸੀਵਰੇਜ ਬੋਰਡ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ, ਡੀ.ਐਮ.ਸੀ. ਲੁਧਿਆਣਾ ਦੇ ਡਾਕਟਰਾਂ ਿਖ਼ਲਾਫ਼ ਕਾਰਵਾਈ ਦੀ ਮੰਗ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਬਰਨਾਲਾ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਜਨਤਕ ਜਮਹੂਰੀ ਜਥੇਬੰਦੀਆਂ ਦੇ ਦਬਾਅ ਸਦਕਾ ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਸੀਵਰੇਜ ਬੋਰਡ ਦੇ ਠੇਕੇਦਾਰ ਿਖ਼ਲਾਫ਼ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧਾਰਵਾਂ ਤਹਿਤ ਪਰਚਾ ਦਰਜ਼ ਕਰ ਲਿਆ ਹੈ | ਪਰ ਡੀ.ਐਮ.ਸੀ. ਦੇ ਡਾਕਟਰਾਂ ਵੱਲੋਂ ਇਲਾਜ ਵਿਚ ਅਣਗਹਿਲੀ ਵਰਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਡਾਕਟਰਾਂ ਦੇ ਿਖ਼ਲਾਫ਼ ਅੱਜ ਤੱਕ ਕੋਈ ਕਾਰਵਾਈ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਗਈ | ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਬਰਨਾਲਾ, ਡੀ.ਐਮ.ਸੀ. ਦੇ ਡਾਕਟਰਾਂ ਤੇ ਮੈਨੇਜਮੈਂਟ ਪੱਖੀ ਰਵੱਈਏ ਦੀ ਸਖ਼ਤ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿਚ ਨਿੰਦਾ ਕਰਦਿਆਂ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਕਿ ਡੀ.ਐਮ.ਸੀ. ਲੁਧਿਆਣਾ ਦੇ ਇਲਾਜ ਵਿਚ ਅਣਗਹਿਲੀ ਵਰਤਣ ਵਾਲੇ ਡਾਕਟਾਂ ਦੇ ਿਖ਼ਲਾਫ਼ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਦੇਰੀ ਤੁਰੰਤ ਪਰਚਾ ਦਰਜ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ | ਇਸ ਧਰਨੇ ਨੂੰ ਮਾ: ਪ੍ਰੇਮ ਕੁਮਾਰ, ਗੁਰਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ਰੂੜੇਕੇ, ਮਨਦੀਪ ਸਿੰਘ ਸੱਦੋਵਾਲ, ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਫਰਵਾਹੀ, ਨਵਕਿਰਨ ਪੱਤੀ ਆਦਿ ਨੇ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ |

ਐੱਸ. ਡੀ. ਐਮ.ਬਰਨਾਲਾ ਵੱਲੋਂ ਮੰਡੀਆਂ ਦਾ ਅਚਾਨਕ ਨਿਰੀਖਣ

ਬਰਨਾਲਾ, 25 ਮਾਰਚ (P P)-ਐੱਸ.ਡੀ.ਐਮ. ਬਰਨਾਲਾ ਸ: ਪਰਮਜੀਤ ਸਿੰਘ ਪੱਡਾ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਮਾਰਕੀਟ ਕਮੇਟੀ ਬਰਨਾਲਾ ਤੇ ਮਹਿਲ ਕਲਾਾ ਵੱਲੋਂ ਹਾੜੀ ਸੀਜ਼ਨ 2013 ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਰੱਖਦੇ ਹੋਏ ਬਰਨਾਲਾ ਤੇ ਮਹਿਲ ਕਲਾਂ ਦੀਆਂ ਮੰਡੀਆਂ ਦਾ ਦੌਰਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਉਨ੍ਹਾਂ ਵੱਲੋਂ ਮੰਡੀਆਂ 'ਚ ਪਈਆਂ ਪਾਥੀਆਂ ਨੂੰ ਤੁਰੰਤ ਚੁਕਵਾਉਣ ਲਈ ਹਦਾਇਤਾਂ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ | ਉਨ੍ਹਾਂ ਵੱਲੋਂ ਇਹ ਵੀ ਆਦੇਸ਼ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਕਿ ਜੇਕਰ ਕਿਸੇ ਵਿਅਕਤੀ ਵੱਲੋਂ ਇਹ ਪਾਥੀਆਂ ਮਿਥੇ ਸਮੇਂ ਅੰਦਰ ਨਹੀ ਚੁਕਵਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਤਾਂ ਇਹ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਵੱਲੋਂ ਆਪਣੇ ਪੱਧਰ 'ਤੇ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਣਗੀਆਾ | ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਕੱਤਰ ਮਾਰਕੀਟ ਕਮੇਟੀ ਬਰਨਾਲਾ, ਮਹਿਲ ਕਲਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਇਹ ਹਦਾਇਤ ਕੀਤੀ ਕਿ ਹਾੜੀ ਸੀਜ਼ਨ 2013 ਨੂੰ ਧਿਆਨ 'ਚ ਰੱਖਦੇ ਹੋਏ ਮੰਡੀਆਂ ਦੀ ਮੁੱਢਲੀ ਸਫ਼ਾਈ, ਆਰਜ਼ੀ ਬਿਜਲੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਤੇ ਪੀਣ ਵਾਲੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਪੁਖ਼ਤਾ ਇੰਤਜ਼ਾਮ ਤੁਰੰਤ ਕੀਤੇ ਜਾਣ | ਉਸ ਸਮੇਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਨਛੱਤਰ ਸਿੰਘ ਗਿੱਲ ਸਕੱਤਰ ਮਾਰਕੀਟ ਕਮੇਟੀ ਬਰਨਾਲਾ, ਕੁਲਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਭੁੱਲਰ ਮੰਡੀ ਸੁਪਰਵਾਈਜ਼ਰ ਮਾਰਕੀਟ ਕਮੇਟੀ ਬਰਨਾਲਾ, ਜਸਪਾਲ ਸਿੰਘ ਸਕੱਤਰ ਮਾਰਕੀਟ ਕਮੇਟੀ ਮਹਿਲ ਕਲਾਂ, ਗੁਰਮੀਤ ਸਿੰਘ ਆਕਸਨ ਰਿਕਾਰਡਰ ਮਾਰਕੀਟ ਕਮੇਟੀ ਮਹਿਲ ਕਲਾਂ ਮੌਜੂਦ ਸਨ |

ਜੁਰਮਾਂ ਦਾ ਗੜ੍ਹ ਬਣ ਚੁੱਕੀ ਹੈ ਰਾਜਧਾਨੀ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ


  
ਦਿਨੋਂ-ਦਿਨ ਵਧ ਰਿਹੈ ਲੁੱਟਾਂ-ਖੋਹਾਂ ਤੇ ਦੁਰਘਟਨਾਵਾਂ ਦਾ ਗਰਾਫ਼

ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ, 25 ਮਾਰਚ  - ਜੁਰਮ ਦਾ ਗੜ੍ਹ ਬਣ ਚੁੱਕੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ 'ਚ ਲੁੱਟਾਂ-ਖੋਹਾਂ ਤੇ ਦੁਰਘਟਨਾਵਾਂ ਦਾ ਗਰਾਫ਼ ਵੱਧਦਾ ਹੀ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਸ਼ਹਿਰ 'ਚ ਟ੍ਰੈਵਲ ਏਜੰਟਾਂ, ਜੂਏਬਾਜ਼ਾਂ, ਅੰਨ੍ਹੇਵਾਹ ਕਾਰਾਂ ਭਜਾਉਣ ਵਾਲਿਆਂ ਤੇ ਲੜਕੀਆ ਨਾਲ ਛੇੜਛਾੜ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜ ਵਿਰੋਧੀ ਅਨਸਰਾਂ ਦੇ ਹੌਂਸਲੇ ਬੁਲੰਦ ਹਨ। ਟ੍ਰੈਵਲ ਏਜੰਟਾਂ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰੀਏ ਤਾਂ ਸ਼ਹਿਰ 'ਚ ਇਕ ਇਮੀਗ੍ਰੇਸ਼ਨ ਕੰਪਨੀ ਵੱਲੋਂ ਕਥਿਤ ਤੌਰ 'ਤੇ ਲੁਧਿਆਣਾ ਵਾਸੀ ਨਾਲ 4 ਲੱਖ 70 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਦੀ ਠੱਗੀ ਦਾ ਮਾਮਲਾ ਸਾਮ੍ਹਣੇ ਆਇਆ ਹੈ। ਲੁਧਿਆਣੇ ਦੇ ਪਿੰਡ ਲਾਡੀਆਂ ਕਲਾਂ ਦੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਦਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਦਿਓਲ ਨੇ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਪੁਲਿਸ ਨੂੰ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਦਰਜ ਕਰਾਈ ਕਿ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ 'ਚ ਸੈਕਟਰ 40 ਸਥਿਤ ਐਜੂਸਿਟੀ ਇਮੀਗ੍ਰੇਸ਼ਨ ਕੰਪਨੀ ਦੇ ਨਿਰਦੇਸ਼ਕ ਨਿਤਿਨ ਸ਼ਰਮਾ, ਮੇਜਰ ਪਲਸ ਮਲਹੋਤਰਾ ਤੇ ਮਿਸ ਸਵਿਤਾ ਨੇ ਉਸ ਨਾਲ ਠੱਗੀ ਕੀਤੀ। ਦਿਓਲ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਕੰਪਨੀ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੇ ਸਿੰਗਾਪੁਰ ਸਟੱਡੀ ਵੀਜ਼ਾ ਲਵਾਉਣ ਦੇ ਨਾਮ 'ਤੇ ਉਸ ਤੋਂ 4 ਲੱਖ 70 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਲੈ ਲਏ ਪਰ ਸਟੱਡੀ ਵੀਜ਼ੇ ਦੀ ਥਾਂ ਟੂਰਿਸਟ ਵੀਜ਼ਾ ਲਵਾ ਦਿੱਤਾ। ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਦਿਓਲ ਦੀ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਦੇ ਆਧਾਰ 'ਤੇ ਮਾਮਲਾ ਦਰਜ ਕਰਕੇ ਜਾਂਚ ਆਰੰਭ ਦਿੱਤੀ ਹੈ। ਸ਼ਹਿਰ 'ਚ ਝਪਟਮਾਰਾਂ ਦੀਆਂ ਗਤੀਵਿਧੀਆਂ ਵੀ ਜਾਰੀ ਹਨ। ਸੈਕਟਰ 49 ਦੇ ਅਸ਼ੋਕ ਕੁਮਾਰ ਨਾਂ ਦੇ ਵਿਅਕਤੀ ਨੇ ਪੁਲਿਸ ਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਅੱਜ ਜਦੋਂ ਉਹ ਸੈਕਟਰ 45/46/49/50 ਚੌਂਕ ਨੇੜਿਉਂ ਲੰਘ ਰਿਹਾ ਸੀ ਤਾਂ 2 ਅਣਪਛਾਤੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੇ ਚਾਕੂ ਦੀ ਨੋਕ 'ਤੇ ਉਸ ਤੋਂ 600 ਰੁਪਏ ਲੁੱਟ ਲਏ। ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਨੀਮਾਜਰਾ ਦੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਜਿਤੇਸ਼ ਕੁਮਾਰ ਨੇ ਪੁਲਿਸ ਨੂੰ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਦਰਜ ਕਰਾਈ ਕਿ ਅੱਜ ਜਦੋਂ ਉਹ ਮਨੀਮਾਜਰਾ ਸਥਿਤ ਤਨਿਸ਼ਕ ਸ਼ੋਅਰੂਮ ਦੇ ਪਿਛਲੇ ਪਾਸਿਉਂ ਲੰਘ ਰਿਹਾ ਸੀ, ਉਸ ਵੇਲੇ 2 ਅਣਪਛਾਤੇ ਮੋਟਰਸਾਈਕਲ ਸਵਾਰਾਂ ਨੇ ਉਸ ਤੋਂ ਮੋਬਾਈਲ ਤੇ 1 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਝਪਟੇ ਤੇ ਫਰਾਰ ਹੋ ਗਏ। ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਅੱਜ ਸੈਕਟਰ 26 ਦੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਪੰਕਜ ਤੇ ਰਾਜ ਕੁਮਾਰ ਨੂੰ ਸਨਅਤੀ ਖੇਤਰ ਫੇਸ 3 ਤੋਂ ਜੂਏ ਦੀਆਂ ਬਾਜ਼ੀਆਂ ਲਾਉਂਦਿਆਂ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਕੀਤਾ। ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਪੰਕਜ ਤੋਂ 1510 ਰੁਪਏ ਜਦਕਿ ਰਾਜਕੁਮਾਰ ਤੋਂ 3020 ਰੁਪਏ ਬਰਾਮਦ ਕੀਤੇ। ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਦੋਹਾਂ ਖਿਲਾਫ਼ ਜੂਆ ਵਿਰੋਧੀ ਐਕਟ ਤਹਿਤ ਮਾਮਲਾ ਦਰਜ ਕਰ ਲਿਆ। ਲੜਕੀਆਂ ਨਾਲ ਛੇੜਛਾੜ ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਵੀ ਜਾਰੀ ਹਨ। ਇਕ ਲੜਕੀ ਨੇ ਪੁਲਿਸ ਨੂੰ ਦਿੱਤੀ ਸ਼ਿਕਾਇਤ 'ਚ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸੈਕਟਰ 22ਬੀ ਦੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਮਨੀਸ਼ ਰਾਜਨ ਮਿਸ਼ਰਾ ਨੇ ਉਸ ਨਾਲ ਛੇੜਛਾੜ ਕੀਤੀ ਤੇ ਮੋਬਾਈਲ 'ਤੇ ਧਮਕਾਇਆ। ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਕ ਔਰਤ ਨੇ ਪੁਲਿਸ ਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸੈਕਟਰ 26 ਦੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਟਿੰਕੂ ਨੇ ਉਸ ਨਾਲ ਛੇੜਛਾੜ ਕੀਤੀ, ਛੇੜਛਾੜ ਦੇ ਉਪਰੋਕਤ ਦੋਹਾਂ ਮਾਮਲਿਆਂ 'ਚ ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਕਥਿਤ ਦੋਸ਼ੀਆਂ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ।

ਸੁਖਬੀਰ ਵੱਲੋਂ ਕਾਂਗਰਸ ਨੂੰ ਸਿਆਸੀ ਨਕਸ਼ੇ ਤੋਂ ਨੁਕਰੇ ਲਾਉਣ ਦਾ ਸੱਦਾ

 
ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ, 25 ਮਾਰਚ -ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਸ: ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਨੇ ਅੱਜ ਕਾਂਗਰਸ ਪਾਰਟੀ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਸਿਆਸੀ ਨਕਸ਼ੇ ਤੋਂ ਨੁੱਕਰੇ ਲਾਉਣ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੰਦਿਆਂ ਸਪਸ਼ਟ ਤੌਰ 'ਤੇ ਕਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੀਆਂ ਲਗਾਤਾਰ 9 ਜਿੱਤਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਬੇਮਿਸਾਲ ਸਫਲਤਾ ਦਾ ਸਿਹਰਾ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਸਿਰੜੀ ਵਰਕਰਾਂ ਦੀ ਦਿਨ ਰਾਤ ਦੀ ਮਿਹਨਤ ਦੇ ਸਿਰ ਬੱਝਦਾ ਹੈ।
ਅੱਜ ਇੱਥੇ ਪਾਰਟੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਭਰਤੀ ਮੁਹਿੰਮ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਕੇ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਜਥੇਬੰਦਕ ਢਾਂਚੇ ਦੀ ਚੋਣ ਸਬੰਧੀ ਆਮ ਇਜਲਾਸ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਦਿਆਂ ਸ: ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ ਚੋਣਾਂ ਜਿੱਤਣ ਲਈ ਕੋਈ ਜਾਦੂ ਦੀ ਛੜੀ ਨਹੀਂ ਹੈ ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕਿ ਮੀਡੀਆ ਵਿਚ ਪ੍ਰਚਾਰ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਉਹ ਇਹ ਸਫਲਤਾ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਯੋਧੇ ਵਰਕਰਾਂ ਦੇ ਅਣਥੱਕ ਅਤੇ ਇੱਕਮੁੱਠ ਯਤਨਾਂ ਅਤੇ ਮਿਹਨਤ ਸਦਕਾ ਹੀ ਹਾਸਲ ਕਰ ਸਕੇ ਹਨ ਕਿਉਂਕਿ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਇਹ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਸਿਪਾਹੀ ਆਪਣੀਆਂ ਪਰਿਵਾਰਕ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਵਿਸਾਰ ਕੇ ਮਹੀਨਿਆਂ ਬੱਧੀ ਪਾਰਟੀ ਦੀਆਂ ਚੋਣ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਵਿਚ ਸਰਗਰਮ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸਾਡੇ ਅੱਗੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਚੁਣੌਤੀ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਸੰਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਐਨ ਹੇਠਲੇ ਪੱਧਰ ਤੱਕ ਲਿਜਾਣ ਦੀ ਹੈ। ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪਾਰਟੀ ਵਰਕਰ ਸਾਨੂੰ ਸਹੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦੇਣ ਤਾਂ ਜੋ ਭਵਿੱਖੀ ਯੋਜਨਾਵਾਂ ਵਿਚ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਬਿਹਤਰੀ ਲਈ ਹੋਰ ਚੰਗੀ ਵਿਉਂਤਬੰਦੀ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕੇ।
93 ਸਾਲ ਪੁਰਾਣੀ ਪਾਰਟੀ ਦੀਆਂ ਜਥੇਬੰਦਕ ਚੋਣਾਂ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰਦਿਆਂ ਸ: ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਨੇ ਇਕ ਵਿਆਪਕ, ਪੂਰਨ ਪਾਰਦਰਸ਼ੀ ਅਤੇ ਉੱਚ ਤਕਨੀਕੀ ਭਰਤੀ ਮੁਹਿੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ਹੈ ਅਤੇ ਸਮੂਹ ਪਾਰਟੀ ਵਰਕਰਾਂ ਨੂੰ ਨਿਰਦੇਸ਼ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਹਨ ਕਿ ਉਹ ਪਿੰਡ ਪਿੰਡ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚ ਕਰਕੇ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਆਧਾਰ ਨੂੰ ਹੋਰ ਵਿਸ਼ਾਲ ਕਰਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਦੇਸ਼ ਅੰਦਰ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਕਿਸੇ ਸਿਆਸੀ ਪਾਰਟੀ ਵੱਲੋਂ ਇਹ ਪਹਿਲਕਦਮੀ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ ਕਿ ਹਰ ਨਵੇਂ ਮੈਂਬਰ ਦਾ ਮੋਬਾਈਲ/ਲੈਂਡਲਾਈਨ ਨੰਬਰ ਅਤੇ ਈ-ਮੇਲ ਸਿਰਨਾਵਾਂ ਵੀ ਭਰਤੀ ਫਾਰਮ ਵਿਚ ਦਰਜ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇਗਾ ਤਾਂ ਜੋ ਤੁਰੰਤ ਕੋਈ ਵੀ ਸੰਦੇਸ਼ ਹਰ ਵਰਕਰ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਾਇਆ ਜਾ ਸਕੇ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਸੇ ਵੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਫਰਜ਼ੀ ਭਰਤੀ ਵਿਰੁੱਧ ਕਰੜੀ ਚਿਤਾਵਨੀ ਜਾਰੀ ਕਰਦਿਆਂ ਕਿਹਾ ਕਿ 10 ਫ਼ੀਸਦੀ ਨਵੇਂ ਮੈਂਬਰਾਂ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵੱਲੋਂ ਸੰਪਰਕ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇਗਾ ਅਤੇ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ''ਫ਼ਰਜ਼ੀ ਭਰਤੀ'' ਦੀ ਗੱਲ ਸਾਹਮਣੇ ਆਉਣ 'ਤੇ ਇਸ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਆਗੂ ਜਾਂ ਵਰਕਰ ਨੂੰ ਪਾਰਟੀ ਦਾ ਕੋਈ ਅਹੁਦਾ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇਗਾ। ਜਥੇਬੰਦਕ ਚੋਣਾਂ ਲਈ ਇੱਕ ਨਿਰਧਾਰਤ ਸਮਾਂ ਸੀਮਾ ਤੈਅ ਕਰਦਿਆਂ ਉਪ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਭਰਤੀ ਮੁਹਿੰਮ 15 ਮਈ ਤੱਕ ਹੀ ਜਾਰੀ ਰਹੇਗੀ ਅਤੇ ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਇਕ ਦਿਨ ਦਾ ਵੀ ਵਾਧਾ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗਾ ਅਤੇ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਜਥੇਬੰਦਕ ਢਾਂਚੇ ਦਾ ਐਲਾਨ ਜੂਨ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਹਫ਼ਤੇ ਵਿਚ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇਗਾ।
ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਪਾਰਟੀ ਵੱਲੋਂ 22 ਅਤੇ 23 ਅਪ੍ਰੈਲ ਨੂੰ ਪਾਰਟੀ ਦਾ ਦੋ ਦਿਨਾਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਵਰਕਰ ਸਿਖਲਾਈ ਕੈਂਪ ਸ਼੍ਰੀ ਅਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਪਵਿੱਤਰ ਧਰਤੀ 'ਤੇ ਲਾਇਆ ਜਾਵੇਗਾ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਸ ਕੈਂਪ ਦੌਰਾਨ ਵਰਕਰਾਂ ਤੋਂ ਜਾਣਕਾਰੀ ਲੈਣ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਾਰਟੀ ਦੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ, ਪ੍ਰਾਪਤੀਆਂ ਅਤੇ ਇਤਿਹਾਸ ਬਾਰੇ ਜਾਣੂੰ ਕਰਵਾਇਆ ਜਾਵੇਗਾ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਉਹ ਪਾਰਟੀ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਨ ਲਈ ਮਈ ਮਹੀਨੇ ਵਿਚ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾਵਾਰ ਮੀਟਿੰਗਾਂ ਦਾ ਸਿਲਸਿਲਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਪਾਰਟੀ ਵਰਕਰਾਂ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਧੜੇਬੰਦੀ ਵਿਚ ਨਾ ਉਲਝਣ ਅਤੇ ਆਗਾਮੀ ਪੰਚਾਇਤ ਅਤੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪਰੀਸ਼ਦ ਦੀਆਂ ਚੋਣਾਂ ਵਿਚ ਸਰਬਸੰਮਤੀ ਨਾਲ ਚੋਣ ਨੂੰ ਤਰਜੀਹ ਦੇਣ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਪਸ਼ਟ ਕੀਤਾ ਕਿ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗੁੱਟਬੰਦੀ ਅਤੇ ਪਾਰਟੀ ਵਿਰੋਧੀ ਕਾਰਵਾਈ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਪਾਰਟੀ ਆਗੂ ਜਾਂ ਵਰਕਰ ਵਿਰੁੱਧ ਸਖ਼ਤ ਕਾਰਵਾਈ ਹੋਵੇਗੀ।
ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਪਾਰਟੀ ਨੇ ਤਿੰਨ ਮਤੇ ਪਾਸ ਕਰਦਿਆਂ ਦਿੱਲੀ ਤੇ ਮੋਗਾ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵੱਲੋਂ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਵਿਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਨ ਲਈ ਧੰਨਵਾਦ ਕੀਤਾ, ਬੀਤੇ ਇਕ ਸਾਲ ਦੌਰਾਨ ਅਕਾਲ ਚਲਾਣਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਪਾਰਟੀ ਆਗੂਆਂ ਤੇ ਵਰਕਰਾਂ ਲਈ ਸ਼ੋਕ ਮਤਾ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ, ਕਾਂਗਰਸ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਵਿਧਾਇਕਾਂ ਵੱਲੋਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਅੰਦਰ ਬਜਟ ਇਜਲਾਸ ਦੌਰਾਨ ਕੀਤੇ ਗਏ ਦੁਰਵਿਵਹਾਰ ਦੀ ਨਿੰਦਾ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਕਾਂਗਰਸ ਪਾਰਟੀ ਵੱਲੋਂ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਵਿਸਾਰ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਯਾਦ 'ਚ ਖਟਕੜ ਕਲਾਂ ਵਿਖੇ ਸਮਾਗਮ ਕਰਨ ਦੀ ਜਗ੍ਹਾ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਸੂਬਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਦੀ ਤਾਜਪੋਸ਼ੀ ਕਰਨ ਦੀ ਕਾਰਵਾਈ ਦੀ ਨਿਖੇਧੀ ਕੀਤੀ। ਪਾਰਟੀ ਵੱਲੋਂ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੇ ਗਏ ਮਤੇ 'ਚ ਦਿੱਲੀ ਸਿੱਖ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਕਮੇਟੀ ਚੋਣਾਂ ਅਤੇ ਮੋਗਾ ਉਪ ਚੋਣ 'ਚ ਪਾਰਟੀ ਦੀ ਇਤਿਹਾਸਕ ਜਿੱਤ ਯਕੀਨੀ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਕੀਤੇ ਗਏ ਅਣਥੱਕ ਯਤਨਾਂ ਲਈ ਪਾਰਟੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਅਤੇ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਪੰਜਾਬ ਸ: ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਅਤੇ ਪਾਰਟੀ ਪ੍ਰਧਾਨ ਤੇ ਉਪ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਸ: ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਦਾ ਧੰਨਵਾਦ ਕੀਤਾ। ਮੀਟਿੰਗ ਨੂੰ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਸਕੱਤਰ ਜਨਰਲ ਸ:"ਸੁਖਦੇਵ ਸਿੰਘ ਢੀਂਡਸਾ, ਜਨਰਲ ਸਕੱਤਰ ਸ: ਬਲਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਭੂੰਦੜ, ਜਨਰਲ ਸਕੱਤਰ ਪ੍ਰੋ: ਪ੍ਰੇਮ ਸਿੰਘ ਚੰਦੂਮਾਜਰਾ ਅਤੇ ਸਕੱਤਰ ਤੇ ਬੁਲਾਰਾ ਡਾ: ਦਲਜੀਤ ਸਿੰਘ ਚੀਮਾ ਨੇ ਵੀ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ। ਇਹ ਗੱਲ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਤੌਰ 'ਤੇ ਵਰਨਣਯੋਗ ਹੈ ਕਿ ਪਾਰਟੀ ਦੀ ਭਰਤੀ ਦੀ ਚੈਕਿੰਗ ਲਈ ਕਿਸੇ ਨਿੱਜੀ ਏਜੰਸੀ ਦੀ ਸੇਵਾ ਲੈਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਵੀ ਕੀਤਾ ਗਿਆ, ਜੋ ਕਿ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿਚ ਸ਼ਾਇਦ ਇਹ ਪਹਿਲਾ ਮੌਕਾ ਹੈ।

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