Thursday, June 11, 2015

न्यूटन की भविष्यवाणी- 2060 में खत्म हो जाएगी दुनिया, जानिए कैसे किया था कैलकुलेशन?

 यह दुनिया कब तक चलती रहेगी? कब इस दुनिया का अंत होगा? यह सवाल हर किसी के मन में उठता है। नास्त्रेदमस समेत कई भविष्यवक्ताओं ने अलग-अलग भविष्यवाण‍ियां कीं। उन्हीं में से एक फादर ऑफ मॉडर्न साइंस सर इसाक न्यूटन भी थे, जिन्होंने कहा था कि यह दुनिया 2060 में खत्म हो जायेगी। खास बात यह है कि न्यूटन ने यह ऐसे ही नहीं कहा था। इसके नीछे भी एक फॉर्मूला था। गति के नियम के तमाम फॉर्मूलों का अविष्कार करने वाले न्यूटन ने 1704 में एक नोट लिखा था। न्यूटन का वह नोट उन पत्रों के साथ मिला, जो उन्होंने लिखे थे। 1727 में न्यूटन के निधम के बाद उनके लिखे हुए सभी नोट उनके घर पर मिले। 1936 में न्यूटन के पत्रों की नीलामी हुई, तो इंग्लैंड के अर्थशास्त्री जॉन मेयनार्ड कीन्स ने उसे खरीदा। बाद में उसे जेरुसेलम के एक स्कॉलर ने किताब का रूप दिया। किताब का नाम पड़ा "सीक्रेट्स ऑफ न्यूटन"। किताब आज भी यूनिवर्सिटी ऑफ जेरुसेलम में है। [पढ़ें-लखनऊ की बेलीगारद में आत्माओं से जुड़ी एक सच्ची घटना] 1904 में न्यूटन ने लिखा नोट- "इंसान लिनेन के कपड़े पहनने लगा है, दायां हाथ ऊपर करके नदियों के पानी के ऊपर चलने लगता है और बायां हाथ ऊपर करके स्वर्ग जैसा अनुभव प्राप्त कर सकता है। अगर इंसान यह सोचता है कि वह हमेशा के लिये रहेगा, तो ऐसा बिलकुल नहीं है। उनका भी समय आयेगा। जब इंसान धर्म को मानना बंद कर देगा, तभी से उसका अंत शुरू हो जायेगा और दुनिया भी एक दिन खत्म हो जायेगी। 'यह सब कुछ समय के लिये रहेगा। एक समय आयेगा, जब आधा समय रह जायेगा'।"न्यूटन ने यह नोट डेनियल की किताब में पढ़ा था, जिसके अंत में समय का तकाजा किया गया। "समय, समय और आधा समय"। न्यूटन ने उसी के आधार पर कैलकुलेशन किया और उत्तर आया साढ़े तीन साल, यानी 1,260 दिन। उसके बाद वैज्ञानिक गणना की और उसमें दिन वर्ष में बदल गये। यानी 1,260 साल में दुनिया खत्म हो जायेगी। न्यूटन के मन में सवाल उठा कि यह काउंटडाउन कब से शुरू होगा, तो उन्होंने उसी आधार पर न्यूटन ने 1704 अंत में लिखा कि 800AD को मानक बनाया। न्यूटन तर्क था कि 800AD में रोम में धार्मिक क्रांति आयी और रोम के राजा चालीमैगने ने शासन से ऊपर पोप को स्थान दिया। न्यूटन की गणना के आधार पर 800 + 1260 = 2060AD यानी साल 2060 में यह दुनिया खत्म हो जायेगी। न्यूटन ने 1704 में ही लिख दिया कि यह दुनिया 2060 के पहले तो पक्का खत्म नहीं होगी। पृथ्वी की उम्र अगर 2060 से आगे बढ़ी, तो यह वो साल होगा, जब तबाही शुरू होगी। यूनिवर्सिटी ऑफ जेरुसेलम की इस किताब के अनुसार न्यूटन ने करीब 10 लाख शब्दों के अलग-अलग नोट लिखो थे, जिसमें धर्म की बात की थी। यही नहीं गुरुत्वाकर्षण बल व उसके सिद्धांत के अलावा न्यूटन ने कई ग्रहों का भी अध्ययन किया। न्यूटन से जुड़ी तमाम अनसुनी बातें दि न्यूटन प्रोजेक्ट में संग्रहीत की गई हैं।
 

हिन्दुत्व का लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर है - स्वामी चिन्मयानन्द

हिन्दुत्व का लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर है  यह शब्द परम पूजय स्वामी चिन्मयानन्द जी महाराज ने अपने श्री मुख से कहे स्वामी जी ने सनातन धरम के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा के हिन्दुत्व को प्राचीन काल में सनातन धर्म कहा जाता था।  कुछ पंथ या मजहब कहते हैं कि ईश्वर से डरोगे, संयम रखोगे तो मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा और सरकशी का जीवन बिताओगे तो नरक मिलेगा । स्वर्ग में सुन्दर स्त्री मिलती है; मनचाहे भोजन का, सुगन्धित वायु का और कर्णप्रिय संगीत का आनंद मिलता है; नेत्रों को प्रिय लगने वाले दर्शनीय स्थल होते हैं अर्थात् पांचों ज्ञानेन्द्रियों को परम तृप्ति जहाँ मिले वहीं स्वर्ग है । नरक में यातनाएँ मिलती हैं पुलिसिया अंदाज में; जैसे अपराधी से उसका अपराध कबूल करवाने या सच उगलवाने के लिए व्यक्ति को उल्टा लटका देना, बर्फ की सिल्लियों पर लिटा देना आदि या आतंकवादियों, डकैतों और तस्करों के कुकृत्य की तरह जो शारीरिक और मानसिक यातना देने की सारी सीमाएँ तोड़ देते हैं । नरक में इससे अधिक कुछ नहीं है ।
स्वर्ग के जो सुख बताये गये हैं, उन सुखों को विलासी राजाओं और बादशाहों ने इस धरती पर ही प्राप्त कर लिया । और नरक की जो स्थिति बतायी गयी है, मजहब और पंथ के नाम पर आतंकवादी इस धरती को ही नरक बना रहें हैं । नरक का भय दिखाकर तो हम ईश्वर को सबसे बड़ा आतंकवादी ही साबित करेंगे । वस्तुत: ईश्वर को स्वर्ग के सुख या नारकीय यातना से जोड़ने का कोई सर्वस्वीकार्य कारण उपलब्ध नहीं है ।
हिन्दू धर्म में जो संकेत मिलते हैं उसके अनुसार स्वर्ग और नरक यहीं हैं । हमारे शरीर एवं इन्द्रियों की क्षमताएँ सीमित हैं । हम अत्यधिक विषयासक्ति के दुष्परिणामों से बच नहीं सकते । किन्तु हिन्दू समाज में भी स्वर्ग और नरक के लोकों के अन्यत्र स्थित होने को मान्यता दी गयी है । यदि हम इसे सही मान लें तो जिन लोगों ने नेक काम किये हैं उन्हें स्वर्ग में और जिन लोगों ने बुरे काम किये हैं उन्हें नरक में होना चाहिए । चाहे सुख हो या यातना दोनों को शरीर के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है । इस स्थिति में स्वर्ग की आबादी तो बहुत बढ़ जानी चाहिए । अप्सराओं की संख्या तो सीमित है; वे कितने लोगों का मन बहलाती होंगी? वस्तुत: यह धरती ही स्वर्ग है, यह धरती ही नरक है । इस धरती को नरक बनने से रोकने और स्वर्ग में बदलने का उत्तरदायित्व हमारा है । यह कार्य सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना और सामूहिक प्रयास से ही सम्भव है । इसीलिए धर्म की आवश्यकता है ।
हिन्दुत्व कहता है कि यदि हमने सत्कर्म किये हैं और हमें लगता है कि पूर्ण कर्म-फल नहीं मिला तो हमारा पुनर्जन्म हो सकता है - अतृप्त कामना की पूर्ति के लिए । और यदि हमने दुष्कर्म कियें हैं तो कर्म-फल भोगने के लिए हमारा पुनर्जन्म होगा । किन्तु यदि संसार से हमारा मोह-भंग हो जाता है, कर्मों में आसक्ति समाप्त हो जाती है, कोई कामना शेष नहीं रहती या ईश्वर में असीम श्रद्धा और भक्ति के कारण ईश्वर को पाने की इच्छा ही शेष रहती है तो हम पुनर्जन्म सहित सभी बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं, मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं । इस प्रकार हिन्दुत्व का परम लक्ष्य स्वर्ग-प्राप्ति न होकर मोक्ष की प्राप्ति है ।इसलिए ये बिलकुल सत्य है के 
हिन्दुत्व का लक्ष्य स्वर्ग-नरक से ऊपर है!

प्राणि-सेवा ही परमात्मा की सेवा है - स्वामी चिन्मयानन्द

ईश्वर निराकार हैउसकी सेवा नहीं की जा सकती । किन्तु वह संसार के प्राणियों में अधिक व्यक्त है । अत: जो प्राणि-सेवारत है वह वास्तव में परमात्मा की सेवा ही करता है ।यह शब्द परम पूजय स्वामी चिन्मयानन्द जी महाराज ने अपने श्री मुख से कहे स्वामी जी ने सनातन धरम के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा के हिन्दुत्व को प्राचीन काल में सनातन धर्म कहा जाता था। हिन्दुओं के धर्म के मूल तत्त्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान आदि हैं जिनका शाश्वत महत्त्व है। अन्य प्रमुख धर्मों के उदय के पूर्व इन सिद्धान्तों को प्रतिपादित कर दिया गया था। इस प्रकार हिन्दुत्व सनातन धर्म के रूप में सभी धर्मों का मूलाधार है क्योंकि सभी धर्म-सिद्धान्तों के सार्वभौम आध्यात्मिक सत्य के विभिन्न पहलुओं का इसमें पहले से ही समावेश कर लिया गया था। मान्य ज्ञान जिसे विज्ञान कहा जाता है प्रत्येक वस्तु या विचार का गहन मूल्यांकन कर रहा है और इस प्रक्रिया में अनेक विश्वास, मत, आस्था और सिद्धान्त धराशायी हो रहे हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आघातों से हिन्दुत्व को भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसके मौलिक सिद्धान्तों का तार्किक आधार तथा शाश्वत प्रभाव है।

आर्य समाज जैसे कुछ संगठनों ने हिन्दुत्व को आर्य धर्म कहा है और वे चाहते हैं कि हिन्दुओं को आर्य कहा जाय। वस्तुत: 'आर्य' शब्द किसी प्रजाति का द्योतक नहीं है। इसका अर्थ केवल श्रेष्ठ है और बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य की व्याख्या करते समय भी यही अर्थ ग्रहण किया गया है। इस प्रकार आर्य धर्म का अर्थ उदात्त अथवा श्रेष्ठ समाज का धर्म ही होता है। प्राचीन भारत को आर्यावर्त भी कहा जाता था जिसका तात्पर्य श्रेष्ठ जनों के निवास की भूमि था। वस्तुत: प्राचीन संस्कृत और पालि ग्रन्थों में हिन्दू नाम कहीं भी नहीं मिलता। यह माना जाता है कि परस्य (ईरान) देश के निवासी 'सिन्धु' नदी को 'हिन्दु' कहते थे क्योंकि वे 'स' का उच्चारण 'ह' करते थे। धीरे-धीरे वे सिन्धु पार के निवासियों को हिन्दू कहने लगे। भारत से बाहर 'हिन्दू' शब्द का उल्लेख 'अवेस्ता' में मिलता है। विनोबा जी के अनुसार हिन्दू का मुख्य लक्षण उसकी अहिंसा-प्रियता है
हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दुरितीरित:।
एक अन्य श्लोक में कहा गया है
ॐकार मूलमंत्राढ्य: पुनर्जन्म दृढ़ाशय:
गोभक्तो भारतगुरु: हिन्दुर्हिंसनदूषक:
ॐकार जिसका मूलमंत्र है, पुनर्जन्म में जिसकी दृढ़ आस्था है, भारत ने जिसका प्रवर्तन किया है, तथा हिंसा की जो निन्दा करता है, वह हिन्दू है।
चीनी यात्री हुएनसाग् के समय में हिन्दू शब्द प्रचलित था। यह माना जा सकता है कि हिन्दू' शब्द इन्दु' जो चन्द्रमा का पर्यायवाची है से बना है। चीन में भी इन्दु' को इन्तु' कहा जाता है। भारतीय ज्योतिष में चन्द्रमा को बहुत महत्त्व देते हैं। राशि का निर्धारण चन्द्रमा के आधार पर ही होता है। चन्द्रमास के आधार पर तिथियों और पर्वों की गणना होती है। अत: चीन के लोग भारतीयों को 'इन्तु' या 'हिन्दु' कहने लगे। मुस्लिम आक्रमण के पूर्व ही 'हिन्दू' शब्द के प्रचलित होने से यह स्पष्ट है कि यह नाम मुसलमानों की देन नहीं है।
भारत भूमि में अनेक ऋषि, सन्त और द्रष्टा उत्पन्न हुए हैं। उनके द्वारा प्रकट किये गये विचार जीवन के सभी पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं। कभी उनके विचार एक दूसरे के पूरक होते हैं और कभी परस्पर विरोधी। हिन्दुत्व एक उद्विकासी व्यवस्था है जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता रही है। इसे समझने के लिए हम किसी एक ऋषि या द्रष्टा अथवा किसी एक पुस्तक पर निर्भर नहीं रह सकते। यहाँ विचारों, दृष्टिकोणों और मार्गों में विविधता है किन्तु नदियों की गति की तरह इनमें निरन्तरता है तथा समुद्र में मिलने की उत्कण्ठा की तरह आनन्द और मोक्ष का परम लक्ष्य है।
हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति अथवा जीवन दर्शन है जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को परम लक्ष्य मानकर व्यक्ति या समाज को नैतिक, भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति के अवसर प्रदान करता है। हिन्दू समाज किसी एक भगवान की पूजा नहीं करता, किसी एक मत का अनुयायी नहीं हैं, किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रतिपादित या किसी एक पुस्तक में संकलित विचारों या मान्यताओं से बँधा हुआ नहीं है। वह किसी एक दार्शनिक विचारधारा को नहीं मानता, किसी एक प्रकार की मजहबी पूजा पद्धति या रीति-रिवाज को नहीं मानता। वह किसी मजहब या सम्प्रदाय की परम्पराओं की संतुष्टि नहीं करता है। आज हम जिस संस्कृति को हिन्दू संस्कृति के रूप में जानते हैं और जिसे भारतीय या भारतीय मूल के लोग सनातन धर्म या शाश्वत नियम कहते हैं वह उस मजहब से बड़ा सिद्धान्त है जिसे पश्चिम के लोग समझते हैं । कोई किसी भगवान में विश्वास करे या किसी ईश्वर में विश्वास नहीं करे फिर भी वह हिन्दू है। यह एक जीवन पद्धति है; यह मस्तिष्क की एक दशा है। हिन्दुत्व एक दर्शन है जो मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं के अतिरिक्त उसकी मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकता की भी पूर्ति करता है। अत: जो प्राणि-सेवारत है वह वास्तव में परमात्मा की सेवा ही करता है ।

सर दर्द ,रुसी और बदहजमी दूर करने के आयुर्वेदिक उपाय

परम पूजय स्वामी चिन्मयानन्द जी महाराज ने आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के उपयोग पर जोर देते हुए कहा के हमें अपने जीवन में आयुर्वेदिक के महत्व को समजना चाहिए ! स्वामी जी ने कहा के रोजमर्रा के जीवन में उपयोग के लिए और शरीर को निरोग रखने के लिए कुदरत ने हमें करोड़ो जड़ी बूटिया और पेड़ पोदे दिए है जिसके उपयोग से हम अपने शरीर को निरोग रख सकते है  स्वामी जी ने कहा के सर के दर्द से लाखो लोग परेशान रहते है और अंग्रेजी दवाये खा खा कर कई और रोगो  को  न्योता देते है जब के देसी नुक्सो से सर दर्द को हमेशा हमेशा के लिए दूर किया जा सकता है !

१. तेज़ पत्ती की काली चाय में निम्बू का रस निचोड़ कर पीने से सर दर्द में अत्यधिक लाभ होता है.
२ .नारियल पानी में या चावल धुले पानी में सौंठ पावडर का लेप बनाकर उसे सर पर लेप करने भी सर दर्द में आराम पहुंचेगा.
३. सफ़ेद चन्दन पावडर को चावल धुले पानी में घिसकर उसका लेप लगाने से भी फायेदा होगा.
४. सफ़ेद सूती का कपडा पानी में भिगोकर माथे पर रखने से भी आराम मिलता है.
५. लहसुन पानी में पीसकर उसका लेप भी सर दर्द में आरामदायक होता है.
६. लाल तुलसी के पत्तों को कुचल कर उसका रस दिन में माथे पर २ , ३ बार लगाने से भी दर्द में राहत देगा.
७. चावल धुले पानी में जायेफल घिसकर उसका लेप लगाने से भी सर दर्द में आराम देगा.
८. हरा धनिया कुचलकर उसका लेप लगाने से भी बहुत आराम मिलेगा.
९ .सफ़ेद  सूती कपडे को सिरके में भिगोकर माथे पर रखने से भी दर्द में राहत मिलेगी.
परम पूजय महाराज स्वामी चिन्मयानन्द  जी ने कहा के आजकल महिलाये और पुरष बालो की रुसी से बहुत परेशान रहते है जिसको बड़ी आसानी से ठीक किया जा सकता है 
१. नारियल के तेल में निम्बू का रस पकाकर रोजाना सर की मालिश करें.
२. पानी में भीगी मूंग को पीसकर नहाते समय शेम्पू की जगह प्रयोग करें.
३. मूंग पावडर में दही मिक्स करके सर पर एक घंटा लगाकर धो दें.
४ रीठा पानी में मसलकर उससे सर धोएं.
५. मछली, मीट अर्थात nonveg त्यागकर केवल पूर्ण शाकाहारी भोजन का प्रयोग भी आपकी सर की रूसी दूर करने में सहायक होगा.
परम पूजय महाराज स्वामी चिन्मयानन्द  जी ने कहा के आजकल बदहजमी और गैस  से लोग  बहुत परेशान रहते है जिसको बड़ी आसानी से ठीक किया जा सकता है 
१. भोजन हमेशा समय पर करें.
२. प्रतिदिन सुबह देसी शहद में निम्बू रस मिलाकर चाट लें.
३. हींग, लहसुन, चद गुप्पा ये तीनो बूटियाँ पीसकर गोली बनाकर छाँव में सुखा लें, व् प्रतिदिन एक गोली खाएं.
४. भोजन के समय सादे पानी के बजाये अजवायन का उबला पानी प्रयोग करें.
५. लहसुन, जीरा १० ग्राम घी में भुनकर भोजन से पहले खाएं.
६. सौंठ पावडर शहद ये गर्म पानी से खाएं.
७. लौंग का उबला पानी रोजाना पियें.
 ८. जीरा, सौंफ, अजवायन इनको सुखाकर पावडर बना लें,शहद के साथ भोजन से पहले प्रयोग करें.

पाकिस्तान की चेतावनी- हमारे पास न्यूक्लियर बम, हमें म्यांमार न समझे भारत

इस्लामाबाद. म्‍यांमार की तरह सीमा में घुस कर ऑपरेशन की चेतावनी पर पाकिस्तान ने पलटवार किया है। पाकिस्तान ने चेताया है कि वह म्यांमार नहीं है, वह एक न्यूक्लियर देश है और सीमा पार करने की किसी भी कार्रवाई का जवाब देगा। पाकिस्तान के रक्षा मंत्रालय से जुड़े मंत्री राणा तनवीर हुसैन ने भारत को चेतावनी के लहजे में कहा, ''हम म्यांमार नहीं हैं, क्या आपको हमारी सैन्य शक्ति का अहसास नहीं है? पाकिस्तान एक न्यूक्लियर देश है, हमारे पास न्यूक्लियर बम है।'' बता दें कि भारत ने बुधवार को संकेत दिया था कि वह म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों में अपने दुश्मनों (उग्रवादियों-आतंकवादियों) के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सीमा लांघ सकता है।
मंत्री राठौड़ ने दी थी चेतावनी
केंद्रीय मंत्री राज्यवर्द्धन राठौड़ ने बुधवार को इंडियन आर्मी के ऑपरेशन की प्रशंसा करते हुए कहा था कि म्यांमार में ऑपरेशन पड़ोसी देशों के लिए एक चेतावनी है, जो आतंकियों को पनाह दिए हुए हैं। भारत अपने दुश्मनों को अब खोज कर और सीमा लांघ कर मारेगा। राठौड़ के बयान का मोदी सरकार के कई मंत्रियों ने भी समर्थन किया था। कुछ मंत्रियों ने कहा था 26/11 मुंबई हमले के बाद भारतीय सेना को पड़ोसी देश के लिए खिलाफ इस प्रकार की कार्रवाई करनी चाहिए थी।पाक मंत्री ने कहा- दिन में ख्वाब देखना बंद करे भारत
पाक के गृह मंत्री चौधरी निसार अली खान ने चेतावनी दी है कि हिंदुस्तानी नेता दिन में ख्वाब देखना बंद करें। हमें म्यांमार न समझें। अगर हिमाकत की तो अंजाम भी भुगतना होगा। रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा, ''ऐसे बयानों से बातचीत का माहौल खराब होगा। अगर भारत ने कोई पहल की तो सबक हम भी सिखा सकते हैं।'' पाकिस्तान में विपक्षी नेता इमरान खान ने भी ऐसे ही राग अलापे। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने भी चेतावनी के अंदाज में कहा है कि न तो पाकिस्तान की फौज ने चूड़ियां पहन रखी हैं, न ही वह म्यांमार है। उन्होंने कहा, '' भारत को इस्लामाबाद के बारे में कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए।''
पाकिस्तान सेना में गंभीर मंथन
म्यांमार में भारत के ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान में इसकी चर्चा जोरों पर है। रावलपिंडी में सेना के हेडक्वाटर्स में आर्मी चीफ जनरल राहील शरीफ ने एक फॉर्मेशन कमांडोज कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया। इसके बाद पाकिस्तान की सेना की ओर से बयान जारी करते हुए कहा गया, ''भारत की शत्रुतापूर्ण कार्रवाई पर हमने नोटिस लिया है। भारत बयानबाजी और अपने एक्शन के जरिए पाकिस्तान को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है।''
म्यांमार में ऑपरेशन
4 जून की सुबह मणिपुर के चंदेल जिले में घात लगाकर किए गए हमले में फौज के 20 जवान शहीद हुए थे। इसके बाद भारतीय सेना की ओर से इस हमले का जवाब देने का प्लान बनाया गया था। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल की रणनीति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हरी झंडी मिलने के बाद सोमवार और मंगलवार की दरमियानी रात ऑपरेशन को अंजाम दिया गया। स्पेशल फोर्स के जवानों को म्यांमार सीमा के भीतर उग्रवादियों के कैंपों के नजदीक हेलिकॉप्टर की मदद से जमीन पर उतारा गया था। सेना ने अपनी कार्रवाई में 50 से ज्यादा उग्रवादियों को ढेर कर दिया था।
पाकिस्तान में ऐसे ऑपरेशन की संभावना की वास्तविक स्थिति:
यह सच है कि पाकिस्तान एक न्यूक्लियर नेशन है।
सैन्य सहयोग के लिए भारत ने म्यांमार के साथ वर्षों तक कोशिश की और इस क्षेत्र में काम किया।
दोनों देशों के बीच कड़वे संबंधों और कश्मीर के मुद्दे को देखते हुए ऐसे ऑपरेशन का होना कठिन।
भारत ने अगर पश्चिमी सीमा पर इस प्रकार से सीमा लांघ कर ऑपरेशन को अंजाम दिया तो वह पाकिस्तान के साथ युद्ध की शुरुआत ही मानी जाएगी।
संख्या में मजबूत भारतीय सेना के खिलाफ पाकिस्तान के सैन्य बल ने हमेशा ही कड़ा रुख अपनाया है।

आतंकियों को ईंट का जवाब पत्थर से

                   

भारतीय सेना ने मणिपुर सीमा से आगे बढ़कर म्यांमार के इलाके में उग्रवादियों पर जैसी प्रभावी कार्रवाई की, उससे देश का मनोबल ऊंचा हुआ है। प्राप्त सूचनाओं के मुताबिक 45 मिनट के अंदर भारतीय जवानों ने उग्रवादियों के ठिकाने को तबाह कर दिया। वहां अनेक बागी मारे गए। समन्वित कार्रवाई के तहत नगालैंड सीमा पर भी हमला बोला गया, जहां से म्यांमार में खदेड़ते हुए 15 से ज्यादा उग्रवादियों को मार गिराया गया।
पिछले हफ्ते मणिपुर के चंदेल जिले में सेना की टुकड़ी पर उत्तर-पूर्व के विभिन्न् अलगाववादी गुटों के नए बने मोर्चे ने घातक हमला किया था, जिसमें तकरीबन 20 जवान शहीद हुए। इससे देश आहत हुआ। उत्तर-पूर्व में नए सिरे से आतंकवादी उथल-पुथल की आशंकाएं गहराईं।
मगर अब भारतीय सेना ने न केवल उत्तर-पूर्व, बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में भी सक्रिय आतंकवादियों को कड़ा संदेश दिया है। पैगाम साफ है। राष्ट्रविरोधी तत्वों को करारा जवाब दिया जाएगा। भारतीय ठिकानों या हितों पर आक्रमण अब ऐसे तत्वों के लिए महंगा सौदा साबित होगा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि ये कार्रवाई करते हुए भारतीय बलों ने किसी अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं किया, बल्कि उन्हें म्यांमार का सहयोग मिला।
ऐसी खबरें हैं कि भारतीय सेना की कार्रवाई समाप्त होते ही म्यांमार के सुरक्षा बलों ने पूरे इलाके को घेर लिया। ऐसा इसलिए संभव हुआ, क्योंकि दिसंबर 2010 में भारतीय गृह मंत्रालय और म्यांमार के अधिकारियों के बीच एक महत्वपूर्ण करार हुआ था। इसके तहत सहमति बनी कि दोनों देशों के सुरक्षा बल आतंकवादियों का पीछा करते हुए एक-दूसरे के इलाके में जा सकते हैं। उस सुविधा का वर्तमान भारतीय राजनीतिक एवं सैन्य नेतृत्व ने कुशलता से उपयोग किया, जिसके लिए वे प्रशंसा के पात्र हैं।
बहरहाल, यह सफलता चाहे जितनी महत्वपूर्ण हो, मगर अभी निश्चिंत बैठने का वक्त नहीं आया है। अतीत में उत्तर-पूर्व (खासकर नगालैंड और मिजोरम) में भारतीय सुरक्षा बल कहीं अधिक बड़ी बगावतों पर काबू पाने में सफल रहे। इसके बावजूद उस क्षेत्र को अलगाववादियों से मुक्त नहीं किया जा सका। असल में चंदेल जिले की घटना से पहले दो दशक तक पूरे पूर्वोत्तर में सुरक्षा बलों पर इतना बड़ा हमला नहीं हुआ। कारण था उग्रवादी गुटों पर बढ़ा दबाव, जिस वजह से कई गुट युद्धविराम के लिए विवश हुए।
हाल में जिन गुटों ने नया मोर्चा बनाया, उनमें उल्फा (परेश बरुआ) जैसे अलग-थलग पड़े समूह ही ज्यादा हैं। एनएससीएन का खपलांग गुट भी नगालैंड में बहुत बड़ी ताकत नहीं है। फिर भी नए मोर्चे को लेकर चिंता बढ़ी तो इसकी वजह यह थी कि उन्हें चीन की एजेंसियों से मदद के संकेत मिले। कम ताकत के बावजूद विदेशी मदद से संचालित ऐसे गुट अकसर आतंक का माहौल बनाए रखने में सफल हो जाते हैं। यह खतरा अभी बरकरार है। यानी लड़ाई अभी बाकी है। मगर इस बीच संतोष की बात यह है कि अब भारतीय बल भी ईंट का जवाब पत्थर से देने को तैयार हैं।

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