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Tuesday, July 20, 2010

गुरु के बल से ही मिलते हैं भगवान

हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा का दिन गुरु की आराधना का है। यह अवसर गुरु-शिष्य परंपरा की महत्व को बताता है। इस वर्ष यह पुण्य अवसर २५ जुलाई को आएगा।
शास्त्र कहते हैं गुरु से मंत्र लेकर वेदाध्ययन करने वाला शिष्य ही साधना की योग्यता पाता है। गुरु हमेशा वंदनीय और पूजनीय होते हैं। व्यावहारिक जीवन में भी पाते हैं कि बिना गुरु के मार्गदर्शन या सहायता के किसी कार्य या परीक्षा में सफलता कठिन हो जाती है। किंतु गुरु मिलते ही लक्ष्य आसान हो जाता है। सफलता कदम चूमती है। इस प्रकार गुरु शक्ति का ही रुप है। वह किसी भी व्यक्ति के लिए एक अवधारणा और राह बन जाते हैं, जिस पर चलकर व्यक्ति मनोवांछित परिणाम पा लेता है। इस प्रकार बगैर गुरु बनाए कोई साधना सफल नहीं होती।
कहते हैं ईश्वर के कोप से गुरु रक्षा कर सकते हैं। पर जब गुरु रुष्ट हो जाए तो असफलता और कष्टों से ईश्वर भी रक्षा नहीं कर पाता। यही कारण है कि गुरु का महत्व भगवान से ऊपर बताया गया है। गुरु ही हमें जीवन में अच्छे-बुरे, सही-गलत, उचित-अनुचित का फर्क बताता है। जो सफल जीवन के लिए बहुत आवश्यक है। गुरु ही हमें गोविन्द यानि भगवान से मिला सकता है। सद्गुरु कबीरदासजी ने इसीलिए कहा है-

गुरु गोबिन्द दोउ खड़े काके लागू पाय।
बलिहारी आपनी गोबिन्द दियो बताय