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Monday, December 6, 2010

सद्दाम हुसैन को फांसी के वक्त दी जा रही थी गालियां, खींचे जा रहे थे फोटो

बगदाद. इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन को फांसी दिए जाने से पहले गार्ड उसे 'जहन्नुम में जाओ' जैसी गालियां दे रहे थे और कई अधिकारी अपने मोबाइल फोन से सद्दाम की तस्वीरें ले रहे थे। विकीलीक्स द्वारा किए गए खुलासे में यह 'सच' सामने आया है। दिसंबर, २००६ में सद्दाम हुसैन को फांसी दी गई, जिसने अंतरराष्ट्रीय विवाद का रूप ले लिया। दरअसल, फांसी दिए जाते समय मोबाइल फोन से लिए गए वीडियो में यह दिखाया गया कि मौके पर मौजूद लोग सद्दाम को गालियां दे रहे थे।

विकीलीक्स पर सामने आए दस्तावेज के मुताबिक इस विवाद के चलते तत्कालीन अमेरिकी राजदूत जालमे खलीलजाद ने कहा था कि सद्दाम के समर्थक खराब तरीके से दी गई फांसी की सज़ा को बहाने के तौर पर इस्तेमाल करेंगे और सद्दाम पर चले मुकदमे की आलोचना करेंगे, जबकि सद्दाम पर बहुत ईमानदारी और तटस्थता के मुकदमा चलाया गया था।

जनवरी, २००७ में भेजे गए गुप्त दस्तावेज के मुताबिक इस मामले में पैरवी करने वाले इराकी वकील मॉन्किथ अल फरौन और खलीलजाद के बीच हुई मीटिंग में कहा था कि सद्दाम को फांसी के तख्त तक ले जाने वाले गार्ड ने हड़काते हुए कहा, 'जहन्नुम में जाओ'। फरौन ने आगे बताया कि उन्होंने मौके पर मौजूद इराकी अधिकारियों को मोबाइल फोन के जरिए सद्दाम की तस्वीरें खींचते देखा जबकि वहां पर मोबाइल फोन प्रतिबंधित था।

विकीलीक्स पर सामने आए दस्तावेज के मुताबिक वकील ने खलीलजाद से हुई मीटिंग में कहा था कि फांसी से पहले जब सद्दाम अपनी आखिरी नमाज पढ़ रहे थे तभी एक गवाह चिल्लाया, मोक्तदा, मोक्तदा, मोक्तदा। सद्दाम के पतन के साथ ही कट्टरपंथी शिया नेता मोक्तदा अल सद्र लगातार मजबूत होता जा रहा था। फांसी की मोबाइल से ली गई तस्वीर और वीडियो इंटरनेट के जरिए पूरी दुनिया में फैल गया और बगदाद की गलियों में बिकने लगा। इस तस्वीर में एक अंधेरे हॉल में काफी गुस्से में दिख रहे सद्दाम एक स्टील प्लेटफॉर्म पर खड़े हैं और उनके हाथ बंधे और गले के चारों ओर रस्सी बंधी हुई है।

इस दस्तावेज के लेखक, जिसकी पहचान साफ नहीं है, ने कहा कि सद्दाम को फांसी दिए जाने की इराकी सरकार की योजना साफ नहीं थी और इसमें कहीं भी समन्वय नहीं था कि गवाहों को काबू में किया जा सके और सही तरीके से फांसी की प्रक्रिया पूरी की जा सके जिसके चलते भ्रम की स्थिति बनी। दस्तावेज से यह भी पता चलता है कि फांसी के गवाह के तौर पर तैयार की गई सूची में एक वक्त करीब २०-३० नाम थे और इस सूची में कई बार फेरबदल की गई।