कैसे प्रभावित करते हैं रत्न
आकाशीय ग्रहों एवं उनकी स्थितियां लगातार बदलती रहती है। कभी कोई ग्रह पृथ्वी के निकट आ जाता है कभी दूर चला जाता है। कभी अस्त होता है, कभी उदय होता है। जिस समय संतान का जन्म धरती पर होता है उस वक्त आकाश में जो ग्रह जिस राशि में स्थित या पृथ्वी से कितनी दूरी पर स्थित है, वह वैसा ही प्रभाव जन्म लेने वाले पर डालता है। यदि ग्रह पृथ्वी से दूर हो तो कम, निकट हो तो पूरा प्रभाव जातक पर डालता है।सूर्य जो सौरमंडल का राजा है तथा नवग्रहों में भी उसे राजा की उपाधि प्राप्त है। अपनी रश्मियों से सात रंगों की किरणे प्रवाहित करता है, यह सातों रंग सातों ग्रहों के समान ही होते हैं। मनुष्य शरीर में भी इन सातों रंगों का समावेश होता है। परंतु जन्म के वक्त जो ग्रह पृथ्वी से दूर होगा उसका प्रभाव या उस रंग का प्रभाव उसके शरीर पर कम होता है। अत: वह सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा को सही ढंग से ग्रहण नहीं कर पाता तथा विचलित रहता है। अपना काम सही ढंग से नहीं कर पाता, पिछड़ता रहता है, यहीं पर ज्योतिष अहम भूमिका निभाता है। जातक जिस रंग का प्रकाश पकड़ नहीं पा रहा है उसी ग्रह के रंग की नग उसे धारण कराकर प्रकृति और मानव को संतुलित कर दिया जाता है तथा वह व्यक्ति सूर्य ऊर्जा को पूर्णत: धारणकर सही दिशा में आगे बढ़ता है तथा सफलता प्राप्त करता है।