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Sunday, January 9, 2011

मिठाई के डिब्बे में मिली प्याज


अभी कुछ दिनों से पहाड़ी आलू के आतंक से मुक्ति मिली ही थी कि अब प्याज ने खून के आंसू रुला दिए हैं। ऊपर से जमाने वालों की एहसान-फरामोशी देखिए। किसी से सहानुभूति क्या खाक करेंगे, महंगाई की मार से कोई रो रहा है, तो उसके सामने प्याज काटने बैठ जाएंगे। अमीर आदमी यह सोचकर हैरान हो रहा है कि अस्सी रुपये दिहाड़ी पाने वाला आदमी पचास रुपये प्रति किलो प्याज लेकर कैसे खा पाएगा! यह तो दुनिया का आठवां आश्चर्य होगा कि इतनी कम आमदनी में इतनी महंगी चीज खाकर भी हम भारतवासी सबसे ज्यादा खुश रहने वाले आदमी माने जाते हैं। आज ही अखबार में विज्ञापन देखा है कि टीवी या माइक्रोवेव खरीदने पर बीस किलो प्याज फ्री। गरीब आदमी की खास पसंद मूंग की दाल तो सौ रुपये प्रति किलो के ऊपर चली गई है और अमीर का चिली-चिकन और पिज्जा-नूडल्स काफी सस्ते में मिल रहा है। गरीब आदमी को जलील करने की यह तो हद हो गई। आम आदमी सूखी रोटी और अचार के साथ एक-आध प्याज खाकर खुश हो लेता था, मगर जमाने वाले को यह भी गंवारा न हुआ।
मजाक करने की भी कोई हद होती है! बाजार में आटा बीस रुपये किलो मिल रहा है और बीस रुपये मासिक किस्त पर मोबाइल भी उपलब्ध है। सब्जियों के दाम तो ऐसे आसमान छू रहे हैं, जैसे देश में भ्रष्टाचार का रिकॉर्ड नित नई ऊंचाइयों को छूता जा रहा है। गरीब आदमी दाल-रोटी खा रहा था और राम का नाम ले रहा था, मगर बहुराष्ट्रीय मगरमच्छों को यह भी रास नहीं आया। फटाक से सरकार के कान फूंक दिए। पहले तो करोड़ों टन प्याज का निर्यात कर दिया गया और अब वही प्याज विदेशों से आयात करके करोड़ों के वारे-न्यारे किए जा रहे हैं। अब तो कोई घर में मिठाई भी लेकर आता है, तो इच्छा होती है कि काश इसके बदले दो-चार किलो प्याज ही ले आता! पिछले दिनों आलू ने भी काफी कोहराम मचाया और तीस रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकता रहा। पहाड़ी आलू के नाम पर जनता लुटती रही।
खैर वैसे भी आलू तो दलबदलू नेता की तरह होता है। उसे जिस सब्जी में भी डाल दो, वैसा ही स्वाद अख्तियार कर लेता है। लेकिन प्याज ऐसा बेशर्म नहीं होता, वह अपना जायका नहीं बदलता है। कुछ सब्जियां तो बिना प्याज के बन ही नहीं सकती हैं। एक तो पहले से ही आम आदमी के क्षुद्र जीवन में दुखों का अंबार लगा था, सस्ते प्याज के कटते ही लोगों की आंखों में आंसू आ जाते थे। आंसू बहाकर बेचारे गरीब का दुख कम हो जाता था। अब तो वह भी दुश्वार हो गया। अब न प्याज रहेगा और न ही आम आदमी उसे काट पाएगा और न ही अपने दुखों से निजात ही पा सकेगा