Pages

Friday, October 16, 2015

बीफ पर बहस करने से पहले पढ़ें इससे जुड़े वैज्ञानिक तथ्य

गोमांस के कारण बीफ का मुद्दा देश में गर्माया हुआ है। राजनेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे हैं और उनके गुर्गे आम जनता के बीच एक दूसरे के प्रति जहर घोलने का काम कर रहे हैं। और वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं कि बीफ के मानव शरीर या पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ते हैं। इन सबके बीच संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने बीफ नहीं खाने की सलाह दी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है। आप चौंक जरूर गये होंगे, लेकिन यह सच है। चलिये पर्यावरण से जोड़ कर बीफ से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों से हम आपको रू-ब-रू करवाते हैं। ये तथ्य यूएनईपी और येल यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के हवाले से हैं। दिल्ली से आगरा तक कार से जाते हैं, तब जितना कार्बन एमिशन होता है, उतना एक किलोग्राम बीफ से होता है। बीफ के बढ़ते व्यापार के कारण पशुपालन भी बढ़ा यानी पर्यावरण कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा बढ़ी जो उनके पाद से निकलती है। भारत में ज्यादातर पशुओं का पालन-पोषण उन्हें काटने के लिये नहीं दूध और खेती के लिये किया जाता है। दुनिया में उत्सर्जित होने वाली ग्रीन हाउस गैसों की 18 प्रतिशत तो पशु मांस से ही होती है। जबकि यातायात की वजह से 15%। यूएन कहता है कि बीफ खाने वाले लोग पर्यावरण प्रेमी नहीं होते हैं, लेकिन बीफ खाने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। गाय या भैंस का 
मीट पर्यावरण के लिये नुकसानदायक होता है। मीट की वजह से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित होती हैं।