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Tuesday, August 3, 2010

कश्मीर में युवा आक्रोश को समझना होगा

कश्मीर में हालात काबू से बाहर जा रहे हैं और इस बार कारण सीमा-पार से भेजे गए आतंकियों की कलशनिकोव नहीं, घाटी के किशोरों के हाथों के पत्थर हैं। 11 जून को तुफैल मट्टू की मौत के बाद कश्मीर ऐसा सुलगा है कि सारी तदबीरें उलटी हो रही हैं। जो सेना अपने बैरकों में वापस जा चुकी थी, उसे फ्लैग मार्च करना पड़ा।

जब सरकारी कफ्यरू खत्म होता है तो स्थानीय गरमपंथी बंद का आह्वान कर देते हैं। इस जद्दोजहद में आम कश्मीरी का दो महीना निकल गया है। केंद्र सरकार यह तो स्वीकार करती है कि हालात नाजुक हैं, पर इसका हल क्या हो, इस पर कोई मतैक्य नहीं है।

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह की सरकार के आदेश लगभग अमान्य हो चुके हैं। इस सरकार में कांग्रेस भी शामिल है, जो केंद्र में भी सत्ता में है। घाटी की प्रमुख विपक्षी पार्टी इस आग को बुझाने के बजाय उसमें तेल डाल रही है क्योंकि कांग्रेस ने उसका साथ छोड़ अब्दुल्लाह का हाथ थामा है। राजनीतिकों की घाटी में एक नहीं चल रही। यहां तक कि हुर्रियत के धड़ों की भी बोलती बंद है।

पत्थरबाजी में शामिल युवकों और किशोरों ने कभी कश्मीर में सामान्य हालात नहीं देखे क्योंकि बीस साल से वहां हालात असामान्य रहे हैं। उनको राजनीतिक नेतृत्व में भरोसा नहीं है और यह सबसे बड़ा चिंता का विषय है। यह सच है कि कट्टरपंथी हुर्रियत अपने पाकिस्तानी आकाओं के इशारे पर युवाओं के गुस्से को हिंसक और विध्वंसक बना रही है, पर हुर्रियत को कोसने से जमीनी हकीकत नहीं बदलेगी। गलतियां गिनने की बजाय अभी उन्हें सुधारने की जरूरत है।

हालिया गुस्से के पीछे कारण है केंद्र और राज्य सरकारों का रवैया, जिसने मान लिया कि विकास दर को तेज करने भर से घाटी में खुशहाली छा जाएगी। मानवाधिकार के मुद्दों पर बातें बहुत की गईं, पर ठोस नतीजे में बहुत देर कर दी गई। युवाओं में धैर्य की स्वाभाविक कमी होती है। माछिल की नकली मुठभेड़ एक शर्मनाक घटना थी और दोषी अफसर पर कार्रवाई तुरंत होनी चाहिए थी।

अव्वल तो माछिल होता ही नहीं, बशर्ते पथरीबल के दोषियों को जल्द सजा दी जाती। सुरक्षाबल के एक अफसर ने मेडल और इनाम के लालच में युवकों को खरीदकर मार दिया और मुठभेड़ की संज्ञा दे दी। अगर उस अफसर पर जल्द और सख्त कार्रवाई होती तो युवक नहीं भड़कते। इससे सेना की इज्जत और बढ़ती और देश की भी। इंसाफ के बगैर विकास अर्थहीन है, यह सिर्फ कश्मीर में नहीं, पूरे देश का सच है।