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Friday, November 19, 2010

hamam me sab nange hai

भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर सभी पार्टियों के राजनेताओं का रवैया कितना समान होता है, इसके दिलचस्प उदाहरण इन दिनों देखे जा सकते हैं। इन दिनों जब दिल्ली में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला गूंज रहा है और मुंबई में आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाले की गूंज अभी मद्धिम नहीं पड़ी है, कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु से एक जमीन घोटाले की आवाजें आ रही हैं।

मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा पर आरोप है कि उन्होंने सस्ती दरों पर सरकारी जमीन आवंटित करवाकर अपने बेटों की रियल एस्टेट कंपनी को गलत फायदा पहुंचाया। 2जी स्पेक्ट्रम में जहां तत्कालीन केंद्रीय संचार मंत्री ए राजा और आदर्श सोसायटी के मामले में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण इस्तीफे दे चुके हैं, वहीं येदियुरप्पा अभी पद की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। तीन अलग-अलग पार्टियों के तीन अलग-अलग राजनेताओं के ये उदाहरण बताते हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में सभी का रंग-ढंग कितना समान है।

येदियुरप्पा ने यह तो स्वीकार किया है कि उनके सत्ताकाल में उनके बेटों को जमीनें आवंटित की गईं (इस स्वीकारोक्ति से बचने का कोई रास्ता नहीं था, क्योंकि आवंटन के दस्तावेज मौजूद हैं)। लेकिन उन्होंने कहा है कि ऐसा करते हुए ठीक वही प्रक्रिया अपनाई गई, जो उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले अपनाई जाती रही है।

गौर कीजिए, 2जी स्पेक्ट्रम के मामले में क्या ए राजा ने भी अपनी सफाई में ठीक यही दलील नहीं दी थी कि उन्होंने पहले चली आ रही प्रक्रिया ही अपनाई है? ठीक इसी तरह येदियुरप्पा ने कहा है कि अगर बेटों को जमीन आवंटन में कुछ गलत हुआ है, तो वह जमीन लौटा देंगे। आदर्श सोसायटी में नाम सामने आने पर अशोक चव्हाण की पहली प्रतिकि्रया क्या ठीक यही नहीं थी कि उनके रिश्तेदार फ्लैट लौटाने को तैयार हैं?

राजा व चव्हाण ने भी तब तक पद नहीं छोड़ा था, जब तक उनकी पार्टियों ने उन्हें इसके लिए बाध्य नहीं किया और पार्टियों ने भी उन्हें तब तक बाध्य नहीं किया, जब तक कि इसके खतरनाक राजनीतिक नतीजों की आशंका को देखते हुए ऐसा करना अनिवार्य नहीं हो गया। भ्रष्टाचार के मामले सामने आने पर न सिर्फ आरोपी राजनेताओं का रवैया समान है, बल्कि उनकी पार्टियों का भी।

लेकिन सभी पार्टियों के समान अवसरवादी रंग-ढंग के कारण भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई और कठिन हो गई है। उम्मीद बची है तो अन्य लोकतांत्रिक व संवैधानिक संस्थाओं के कारण। मीडिया, न्यायपालिका और सीएजी जैसी संस्थाओं की सक्रिय भूमिका की बदौलत ही ये सभी मामले प्रकाश में आ सके हैं।