क्या है सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून?
Source: dainikbhaskar.com | Last Updated 14:04(15/09/10)Comment| Share
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20 साल से जम्मू कश्मीर में लागू है सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून
नई दिल्ली. कश्मीर घाटी में जारी हिंसा के दौर के बीच सेना को मिले विशेष अधिकार से जुड़े कानून को हटाए जाने की बात की जा रही है। इस कानून के तहत सैन्य बलों को किसी व्यक्ति को बिना वारंट के तलाशी या गिरफ्तार करने का अधिकार हासिल है। यदि वह व्यक्ति गिरफ्तारी के लिए राजी नहीं होता है तो सेना उस व्यक्ति को जबरन गिरफ्तार कर सकती है।
सेना के अधिकारी संदेह के आधार पर होने वाली ऐसी गिरफ्तारियों के दौरान जबरन उस व्यक्ति के घर में भी घुस सकते हैं जिसे गिरफ्तार किया जाना है। इस विशेष कानून के तहत सेना के अधिकारियों को कानून तोड़ने वालों पर फायरिंग करने का अधिकार हासिल है। चाहें इस घटना में किसी की जान ही क्यों न चली जाए। ऐसा करने वाले अधिकारियों को किसी तरह की जवाबदेही से छूट दी गई है। यानि ऐसी गिरफ्तारी या फायरिंग का आदेश देने वाले सैन्य अधिकारियों के खिलाफ किसी तरह की कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती है।
यह कानून 1958 में संसद द्वारा पारित किया गया था। अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा के ‘अशांत इलाकों’ में तैनात सैन्य बलों को शुरू में इस कानून के तहत विशेष अधिकार हासिल थे। मणिपुर सरकार ने केंद्र की इच्छा के विपरीत अगस्त 2004 में राज्य के कई हिस्सों से यह कानून हटा दिया था। कश्मीर घाटी में आतंकवादी घटनाओं में बढोतरी होने के बाद जुलाई 1990 में यह कानून जम्मू कश्मीर में लागू किया गया। हालांकि राज्य के लेह लदाख इलाके इस कानून के दायरे से बाहर रखे गए।
मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की कमिश्नर नवनीतम पिल्लई ने 23 मार्च 2009 को इस कानून को खत्म करने की मांग की थी। उन्होंने इस कानून को ‘औपनिवेशिक कानून’ की संज्ञा देते हुए कहा कि यह कानून अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार के मौजूदा मानकों पर खरा नहीं उतरता है। इसके अलावा कई मानवाधिकार संगठन और गैर सरकारी संगठन भी इस कानून को खत्म करने की मांग करते रहे हैं। हालांकि सेना का कहना है कि जवानों को जम्मू कश्मीर में तैनाती के दौरान उनकी जान जोखिम में होती है, ऐसे में सशस्त्र आतंकवादियों से लड़ने के लिए ऐसे कानून होने चाहिए।