20 साल से आतंकवाद की आग में जल रहा जम्मू-कश्मीर
नई दिल्ली. जम्मू-कश्मीर पिछले 20 वर्षों से आतंकवाद की आग में जल रहा है। कुछ लोग कहते हैं कि कश्मीर के भारत में मिलने के दिन से ही विवाद और कश्मीर एक-दूसरे के पर्याय रहे हैं।
क्या है मुद्दा
जम्मू-कश्मीर पिछले कुछ दशकों से अशांति और आतंकवाद से जूझ रहा है। सीमापार से हो रही आतंकी घुसपैठ और घाटी के अलगाववादी नेता समस्या को गंभीर बना रहे हैं। कश्मीर की आज़ादी और स्वायत्तता की मांग कथित तौर पर अलगाववादी करते रहे हैं। कश्मीरी की आज़ादी को लेकर चल रहे इस विवाद के बीच आम कश्मीरी हिंसा का शिकार हो रहा है। स्थानीय नागरिक राज्य में तैनात सुरक्षा बलों पर ज्यादती करने का आरोप लगाते हुए सेना को दिए गए विशेष अधिकार समाप्त करने की मांग कर रहे हैं।
क्या है हल
कश्मीर समस्या का शांतिपूर्ण समाधान एक बड़ा सवाल है। अब तक कई फॉर्मूलों पर काम किया जा चुका है। लेकिन कोई भी नतीजा निकलता नहीं दिख रहा है।
फारूख अब्दुल्ला: कश्मीर समस्या के समाधान पर फारूख अब्दुल्ला का फॉर्मूला है कि भारत के हिस्से में आने वाले कश्मीर और गुलाम कश्मीर के बीच नियंत्रण रेखा (एलओसी) को ख़त्म कर दिया जाए ताकि दोनों ओर के कश्मीरी शांतिपूर्ण ढंग से रह सकें। और कश्मीर के दोनों हिस्से भारत और पाकिस्तान की सरकारों के तहत शांतिपूर्ण ढंग से रहें।
उमर अब्दुल्ला: जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला सूबे की स्वायत्तता के हामी रहे हैं। उन्होंने कश्मीर की समस्या के हल के सवाल पर कहा कि कश्मीर की समस्या सियासी है। इसलिए इसका हल भी सियासी होना चाहिए। यहां आर्थिक पैकेज से नहीं पॉलिटिकल पैकेज से बात बनेगी। हमें साथ आकर कश्मीर संकट का हल तलाशने की जरूरत है। इसके साथ ही इस पेचीदा मामले में भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत का जरिया बनने के साथ ही केंद्र-राज्य और अलग-अलग विचारधाराओं के बीच संवाद का सूत्रधार बनना होगा। उमर का कहना है कि उनकी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) कश्मीर की स्वायत्तता की बात करती है। लेकिन हम उससे आगे जाकर किसी और उपाय के भी खिलाफ नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अगर आज़ादी के अलावा कोई ऐसा उपाय है जो भारत और पाकिस्तान को मंजूर हो, साथ ही जम्मू-कश्मीर के लोगों की उम्मीदों को पूरा करने वाला हो तो हमें ऐतराज नहीं है।
महबूबा मुफ्ती: पीपल्स डेमोक्रैटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती का कहना है कि सिर्फ बॉर्डरों को बदलने या खत्म करने से कुछ नहीं होगा। कश्मीर के हालात सुधारने के लिए हमें किसी ऐसे हल की जरूरत है जो इस सूबे के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करता हो।
शबनम लोन: कश्मीर को भारत से अलग करने की वकालत करती रही हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दिवंगत नेता अब्दुल गनी लोन की बेटी और सुप्रीम कोर्ट की वकील शबनम लोन का मानना है कि कश्मीर समस्या का हल तभी हो सकता है जब इस मामले से जुड़ी तीनों पार्टियां-भारत, कश्मीर और पाकिस्तान के लोग बात करेंगे। उन्होंने 2008 के विधानसभा के चुनावों में हिस्सा लिया था। जबकि उनके भाई और अलगाववादी नेता सज्जाद लोन ने इन चुनावों का बहिष्कार किया था।
अमेरिका का फॉर्मूला: अमेरिका ने कश्मीर का जो हल दिया है, उसके अनुसार चिनाब दरिया को सीमा मानकर कश्मीर घाटी को एक अलग अर्द्धस्वतंत्र देश मान लिया जाए। इसी के साथ उसकी सुरक्षा और वित्तीय समस्याओं का निराकरण भारत-पाकिस्तान मिलकर करेंगे। वैसे भी नेशनल कॉन्फ्रेंस जिस स्वायत्तता और पीडीपी जिस सेल्फरुल को लागू कर कश्मीर मुद्दा सुलझाने की मांग कर रहे हैं, वे भी चिनाब योजना के बिगड़े रूप ही माने जाते हैं।
कश्मीर समस्या का यह हल अमेरिका समर्थक कश्मीर के शोध दल ने सुझाया है जिसे 'चिनाब योजना' का नाम भी दिया गया है। यह योजना जम्मू-कश्मीर के तीनों भागों को रीजनल ऑटोनॉमी प्रदान करने के लिए जो रिपोर्ट राज्य सरकार ने तैयार की है, उसमें भी देखी जा सकती है। दोनों में अंतर सिर्फ इतना है कि कश्मीर घाटी पर भारत का ही अधिकार रहेगा। वह अर्द्ध स्वतंत्र मुस्लिम राज्य होगा जिसके लोग भारत व पाकिस्तान कहीं भी आ-जा सकेंगे और उनके पास दोनों देशों के पासपोर्ट होंगे।
कश्मीर समस्या के हल में यह भी सुझाव है कि जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन अंतरराष्ट्रीय निगरानी में हो एवं इसके तहत चिनाब दरिया को सीमा मानकर कश्मीर घाटी को एक अर्द्ध स्वतंत्र मुस्लिम राज्य या देश मान लिया जाए। हालांकि इसे अंअतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं मिलेगी। हालांकि, इस फॉर्मूले में पाक अधिकृत कश्मीर के बारे में ज़्यादा बात नहीं की गई है।
इस फॉर्मूले पर जानकारों की राय है कि अमेरिका कश्मीर समस्या को सिर्फ भारतीय कश्मीर की ही समस्या मानता है तभी तो वह कह रहा है कि अर्द्धस्वतंत्र कश्मीर में कश्मीर घाटी के सभी जिले, कारगिल और डोडा, उधमपुर जिले की एक तहसील, राजौरी जिले की तीन तहसीलों को शामिल करना होगा। उनका यह भी मानना है कि अर्द्धस्वतंत्र कश्मीर की हालत कुवैत जैसी हो सकती है।
केपीएस गिल: घाटी में सबसे पहले कानून का राज कायम होना चाहिए। एक बार जब वहां शांतिपूर्ण हालात हो जाएंगे फिर आप किसी सियासी फैसले के लिए माहौल बना सकते हैं।