यह पेड न्यूज से भी खतरनाक है
कॉरपोरेट घराने के इशारे पर ए राजा को संचार मंत्री बनाने के लिए 2009 में वैष्णवी कम्युनिकेशन की मालकिन नीरा राडिया के साथ मिल कर कुछ पत्रकारों ने परदे के पीछे एक खेल खेला था. मीडियाकर्मियों पर ऐसे आरोप पहले भी लगे हैं, लेकिन सबूतों के अभाव में मामला दब गया.
अब पहली बार देश के तथाकथित कुछ बड़े पत्रकारों को उद्योगपतियों के इशारे पर ऐसा करते सुना गया है. हाल ही में इससे संबंधित टेप सार्वजनिक होने के बाद मीडिया की साख पर जबरदस्त चोट लगी है. पहले माना जाता था कि राजनेता और कॉरपोरेट घराने ही ऐसा खेल करते हैं.यह पेड न्यूज से ..लेकिन अब मीडिया की हस्तियां भी इस खेल में शामिल हो गयी है.
यानी अब राजनेता, कॉरपोरेट घराने और मीडिया, तीनों मिल कर ऐसे कारनामों को अंजाम दे रहे हैं. जबकि मीडिया का काम इन कारनामों का खुलासा करना होता है. मीडिया की पहचान उसकी साख ही है. लेकिन ऐसे कारनामों के बाद राजनेताओं की कारगुजारियों को उजागर करने और उनसे सख्त सवाल पूछने में भी पत्रकारों को शर्म आयेगी.
मेरा मानना है कि इस टेप में जिन पत्रकारों का नाम आया है, उन्हें कुछ समय के लिए इस पेशे से दूर हो जाना चाहिए. अगर इन पत्रकारों को सजा नहीं दी गयी, तो वे भी वैसे राजनेताओं की Þोणी में शामिल हो जायेंगे,जो किसी मामले में शामिल होने के बावजूद अपने पदों पर बने रहते हैं.
मैं पिछले 25 साल से इस पेशे से जुड़ा हूं, लेकिन आज तक ऐसी शर्मनाक स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा था. लेकिन टेप की बातें सुनने के बाद शर्म आती है. इस काम में दर्जनों पत्रकार शामिल हो सकते हैं, जो विभिन्न संस्थानों में ऊंचे ओहदे पर काबिज हैं. अगर उन्हें सजा नहीं दी गयी, तो नये पत्रकारों से नैतिक मूल्यों की उम्मीद करना बेमानी है.
नाम सार्वजनिक होने के बाद जिस तरह ये लोग सफ़ाई पेश कर रहे हैं, वह और भी हैरान करनेवाली बात है. जिन पत्रकारों की भूमिका संदिग्ध है, उनके खिलाफ़ ऐडटर्स गिल्ड को कार्रवाई करनी चाहिए. मैं इस मामले को प्रेस काउंसिल के सामने भी ले जाऊंगा, ताकि दोषी पत्रकारों के खिलाफ़ कार्रवाई की जा सके.
क्योंकि अगर इन पत्रकारों पर कार्रवाई नहीं की गयी, तो इससे पत्रकारिता को काफ़ी नुकसान होगा. कार्रवाई कर एक संदेश देने की कोशिश होनी चाहिए कि अगर भविष्य में कोई ऐसा करेगा, तो उसे भी सजा भुगतनी पड़ेगी.
यह मामला पेड न्यूज की बढ़ती प्रवृत्ति से भी खतरनाक है. पेड न्यूज के खेल में कॉरपोरेट घराने शामिल नहीं हैं, लेकिन 2जी मामले में बड़े पत्रकार, कॉरपोरेट घराने के हितों के लिहाज से काम करते दिख रहे हैं. पहले माना जाता था कि मीडिया निष्पक्ष तरीके से काम करती है. लेकिन अब इसकी साख दिनोंदिन कम होती जा रही है.
मीडिया के कमजोर और बिकाऊ होने का मतलब है, लोकतांत्रिक व्यवस्था का कमजोर होना. इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए मीडिया के लोगों को ही पहल करनी होगी. सबसे पहले अखबार के संपादकों को हर साल अपनी संपत्ति सार्वजनिक करनी चाहिए. किसके पास कितनी संपत्ति है, संपत्ति का स्र्ोत क्या है.
यह सिलसिला तत्काल शुरू होना चाहिए. इससे लोगों में पत्रकारिता के प्रति विश्वास बहाल होगा. हालिया प्रकरण से पत्रकार नहीं, पत्रकारिता की साख पर चोट पहुंची है