16 मई 2007 : मनमोहन सिंह की अगुवाई वाले केंद्रीय मंत्रिमंडल में संचार मंत्री बनाए गए ए.राजा
28 अगस्त 2007 : संचार नियामक ट्राई ने विस्तृत सिफारिशें कर नीलामी के जरिए स्पेक्ट्रम लाइसेंस का मूल्य तय करने का आग्रह सरकार से किया
28 अगस्त 2007 : संचार मंत्रालय और दूरसंचार विभाग ने ट्राई की इन सिफारिशों को मानने से इनकार करते हुए स्पेक्ट्रम लाइसेंस के मूल्य से संबंधित वर्ष 2001 की पूर्ववर्ती नीति पर ही अमल करने की बात कही। इस नीति में जून 2001 में तय लाइसेंस शुल्क के साथ-साथ पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर लाइसेंस देने की बात कही गई है।
20-25 सितंबर 2007 : राजा के परिवार द्वारा बनाई गई खास कंपनियों से वास्ता रखने वाली कई फर्मों मसलन यूनीटेक, लूप, डाटाकॉम और स्वान ने 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस पाने के लिए आवेदन किया।
दिसंबर 2007 : दूरसंचार विभाग (डॉट) की उपर्युक्त नीति का भारी विरोध करने वाले दो अधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया अथवा रिटायर हो गए। स्वान की तरफदारी पर विरोध जताने वाले दो अन्य अधिकारियों का तबादला कर दिया गया।
1-10 जनवरी 2008 : पर्यावरण मंत्रालय में राजा के पूर्व सचिव सिद्धार्थ बेहुरा डॉट के सचिव बनाए गए। विधि मंत्रालय की राय को दरकिनार किया गया। डॉट ने दस दिन के भीतर नौ लाइसेंस जारी कर दिए जिनमें से ज्यादातर उपर्युक्त कंपनियों के खाते में गए।
सितंबर-अक्टूबर 2008 : स्वान ने तकरीबन 4200 करोड़ रुपये में अपने 45 फीसदी शेयर संयुक्त अरब अमीरात की एक कंपनी एतिसलत को बेच दिए, जबकि स्वान को लाइसेंस 1537 करोड़ रुपये में ही मिल गए थे। यूनीटेक वायरलेस ने अपने 60 फीसदी शेयर नार्वे की कंपनी टेलीनॉर को 6200 करोड़ रुपये में बेच दिए, जबकि उसे डॉट से लाइसेंस 1661 करोड़ रुपये में ही मिल गया था। यूनीटेक व स्वान ने जिन मूल्यों पर अपने शेयर बेचे उस आधार पर नौ नए 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस का कुल मूल्य 70022.42 करोड़ रुपये बैठता है, जबकि इन लाइसेंसों के लिए डॉट को कुल 10772 करोड़ रुपये ही मिले थे। इस तरह डॉट को 59249.74 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
15 नवंबर 2008 : मुख्य सतर्कता आयोग ने राजा को कारण बताओ नोटिस भेजा। अपनी जांच के बाद आयोग ने प्रधानमंत्री को विस्तृत रिपोर्ट भेजकर राजा के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग दोहराई।
29 नवंबर 2008- स्वामी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे पत्र में स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा के खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत देने की मांग की।
21 अक्टूबर 2009 : सीबीआई ने इस घोटाले में एफआईआर दर्ज की।
28 अप्रैल 2010 : इस घोटाले में राजा की संदिग्ध भूमिका को साबित करने वाले टेप के विस्तृत विवरण मीडिया में नजर आए। विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री से राजा को हटाने की मांग की।
अक्टूबर 2010 : सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की धीमी जांच के लिए सीबीआई की खिंचाई की
10 नवंबर 2010 : कैग द्वारा पेश की गई रिपोर्ट से 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में 1.74 लाख करोड़ रुपये के घोटाले की बात सामने आई। इसमें राजा की भूमिका पर अंगुली उठाई।
11 नवंबर 2010 : संचार मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा कि सरकार के नीतिगत निर्णय पर सवाल उठाने का अधिकार कैग को नहीं है। विपक्षी दलों ने राजा को हटाने की मांग करते हुए संसद नहीं चलने दी।
14 नवंबर 2010- राजा ने दिया इस्तीफा
19 नवंबर 2010- सुप्रीम कोर्ट ने 2जी स्पेक्ट्रम मामले में प्रधानमंत्री की कथित चुप्पी पर सरकार से जवाब मांगा।
3 दिसंबर 2010- दूरसंचार मंत्रालय ने उन कंपनियों को नोटिस भेजना शुरू किया जिन पर स्पेक्ट्रम हासिल करने के बाद सेवा शुरू न करने और गलत सूचनाएं देकर लाइसेंस हासिल करने का आरोप था। इन कंपनियों में स्वान, वीडियोकॉन, श्याम टेलीकॉम, एसटेल, इस्तेसलात और लूप मोबाइल शामिल।
8 दिसंबर 2010- रतन टाटा का नाम भी उछला स्पैक्ट्रम घोटाले में।
9 दिसंबर 2010- जांच के लिए रिटायर्ड जस्टिस शिवराज वी. पाटिल की एक सदस्यीय कमेटी का गठन।
12 दिसंबर 2010- नीरा राडिया और वीर सांघवी की बातचीत के टेप का खुलासा
16 दिसंबर 2010- 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में करीब पौने दो लाख करोड़ के घोटाले की जांच कर रही सीबीआई ने पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा, कापरेरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया, पूर्व ट्राई चेअरमैन प्रदीप बैजल के अलावा इन से जुड़े कई लोगों के ठिकानों पर छापे मारे।
14 दिसंबर 2010- केंद्रीय विधि मंत्रालय ने 2जी स्पेक्ट्रम हासिल करने वाली 85 कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने को हरी झंडी दी।
31 जनवरी 2011- पाटिल ने पेश की रिपोर्ट
2 फरवरी 2011- राजा को सीबीआई ने किया गिरफ्तार