एस बैंड जैसे घोटाले से परमाणु ठिकाने भी आ सकते हैं दुश्मन की निगरानी में
नई दिल्ली. 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बाद सामने आ रहे नए घोटाले को जानकार देश की सुरक्षा के लिए भी बड़ा खतरा बता रहे हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह ने दैनिक भास्कर.कॉम से बातचीत में कहा कि एस बैंड स्पेक्ट्रम इस तरह निजी कंपनी को दिया जाना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकता है। उनका मानना है कि इसके जरिए दुश्मन देश आपके परमाणु ठिकानों समेत तमाम अहम जगहों पर नजर रख सकता है। उनके मुताबिक ऐसी तकनीक के जरिए आसानी से जासूसी की जा सकती है।
दरअसल, देवास मल्टीमीडिया को आवंटित हुए 70 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम के जरिए दूर-दराज के इलाकों में भी अपनी पहुंच बढ़ाई जा सकती है। दूरदर्शन ने देश के दूरदराज के इलाकों में अपना प्रसारण पहुंचाने के लिए इस स्पेक्ट्रम और तकनीक का इस्तेमाल किया था। इस स्पेक्ट्रम के जरिए तकरीबन पूरे देश में संपर्क किया जा सकता है, इसलिए यह मामला सिर्फ सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने का नहीं है बल्कि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा भी सीधे तौर पर जुड़ा है।
आरोप है कि देवास मल्टीमीडिया को बिना नीलामी के स्पेक्ट्रम आवंटित कर दिए गए और सुरक्षा संबंधी संवेदनशील नियमों की भी अनदेखी की गई। सीएजी को संदेह है कि एस -बैंड स्पेक्ट्रम आवंटन में सरकारी खजाने को करीब दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा है। इस रकम के जरिए सरकारी घाटे को कम किया जा सकता था जो इस साल करीब ३.८० लाख रुपये का है। z हालांकि, सीएजी की यह रिपोर्ट अभी पूरी नहीं है। डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस ने कहा है कि अंतरिक्ष और देवास टेलीकम्युनिकेशन के बीच हुई डील पर जल्द ही फैसला लिया जा सकता है। डिपार्टमेंट का कहना है कि ऑडिटिंग चल रही है। डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस सीधे तौर पर प्रधानमंत्री के तहत आता है। इसलिए एस बैंड स्पेक्ट्रम घोटाले में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह पर सवाल उठ रहे हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी ने इस मामले में डॉ. मनमोहन सिंह को घेरा है।
अंतरिक्ष विभाग और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) संदेह के दायरे में हैं, जिन पर आरोप है कि उन्होंने बिना नीलामी के बैंड एक निजी कंपनी को आवंटित किया। बीजेपी ने इस घोटाले की पूरी जांच करवाने की मांग की है। 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला केवल 1.7 लाख करोड़ रुपयों का है।
देवास मल्टीमीडिया इसरो से जुड़ी कंपनी अंतरिक्ष के साथ मिलकर सेटेलाइट ब्रॉडबैंड सर्विस मुहैया कराने का काम करती है। सरकार ने पिछले साल थ्री जी मोबाइल सर्विस के लिए 15 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की नीलामी से 67,719 करोड़ रुपये कमाए थे। सरकार को ब्रॉडबैंड वायरलेस एक्सेस सर्विस के स्पेक्ट्रम की नीलामी से 38,000 करोड़ रुपये की आमदनी हुई। ऑपरेटरों ने इस स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल 4 जी मोबाइल सेवा में करने का प्रस्ताव दिया।
सीएजी ने 2005 में इसरो द्वारा इस संबंध में किए गए करार की जांच शुरू कर दी है। यह करार इसरो की ही एक शाखा एंट्रिक्स कार्पोरेशन लिमिटेड ने निजी कंपनी देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ करीब 600 करोड़ रुपए में किया गया। इस कंपनी को इस करार से जबर्दस्त लाभ हुआ। इस कंपनी के डायरेक्टर डॉ. एमजी चंद्रशेखर हैं, जो पहले इसरो में ही वैज्ञानिक थे। 2010 में केंद्र सरकार को 3जी मोबाइल सर्विस के लिए केवल 15 मेगाहर्ट्ज की नीलामी पर 67,719 करोड़ रुपए मिले थे।
इस डील के बाद देवास मल्टिमीडिया को ब्राडबैंड स्पेक्ट्रम के कुल 2500 मेगाहर्ट्ज बैंड में से 70 मेगाहर्ट्ज बैंड मिले। ये बैंड पहले दूरदर्शन के पास थे जो सैटेलाइट और इन 70 मेगाहर्ट्ज बैंड की मदद से देशभर में अपने कार्यक्रम प्रसारित करता था। वर्तमान में इनकी कीमत काफी ज्यादा है।
सीएजी को शंका तब हुई, जब उन्हें पता चला कि इसरो ने पहले दिए कांट्रेक्ट्स में स्पेक्ट्रम को दूसरी कंपनी को किराए पर न दिए जाने की शर्त हमेशा रखी लेकिन इस कांट्रेक्ट में ऐसी कोई शर्त नहीं रखी गई।इस करार के माध्यम से एस बैंड, जिसकी रेंज 2500 से 2690 मेगाहर्ट्ज के बीच है, पहली बार निजी क्षेत्र के लिए खोला गया। सीएजी को पुख्ता जानकारी है कि करार करने में न केवल इसरो के नियमों का उल्लंघन किया गया बल्कि प्रधानमंत्री दफ्तर, कैबिनेट और स्पेस कमीशन को भी अंधेरे में रखा गया।
वापस लिया जा सकता है स्पेक्ट्रम
टेलीकम्यूनीकेशंस विभाग के उच्च अधिकारियों के मुताबिक देवास मल्टीमीडिया को ब्रॉडबैंड सेवाओं के परीक्षण करने के लिए दिए गए स्पेक्ट्रम को जल्द ही वापस ले लिया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो देवास को स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल के लिए पूर्ण तौर पर लाइसेंस के लिए आवेदन करना पड़ेगा। देवास ने अपने ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिए ट्रायल स्पेक्ट्रम के लिए आवेदन किया था। देवास मल्टीमीडिया ने कहा, नहीं हुआ कोई घोटालादेवास मल्टीमीडिया कंपनी ने कहा है कि उन्हें अभी तक किसी भी तरह के कोई कांट्रेक्ट आवंटित होने के संबंध में कोई अधिकृत जानकारी नहीं मिली है। कंपनी के अनुसार उनके पास कोई स्पेक्ट्रम नहीं हैं और वे जो भी सेवाएं देंगे, वह इसरो से लीज पर लिए गए सैटेलाइट ट्रांसपोंडर की मदद से देंगे। इस परिस्थिति में सैटेलाइट और स्पेक्ट्रम, दोनों इसरो के ही होंगे, कंपनी केवल उनका इस्तेमाल करेगी।