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Friday, January 14, 2011

राजभवन में सेक्‍स : एक वयोवृद्ध राज्यपाल का इस्तीफा

राज्यपाल जैसे उच्च संवैधानिक पद पर बैठे एक वयोवृद्ध राजनेता के नैतिक आचरण का सवालों के घेरे में आना बेहद दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। शनिवार की सुबह जब एक तेलुगु टीवी चैनल ने तीन महिलाओं के साथ एक बुजुर्ग व्यक्ति की सीडी दिखाई और दावा किया कि यह व्यक्ति आंधप्रदेश के राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी हैं, तब राजभवन सीडी दिखाने पर रोक के लिए हाई कोर्ट गया और इसे षड्यंत्र बताया।यह सिलसिला आगे बढ़ता तो कोई नहीं जानता कि ऊंचे संवैधानिक पद की प्रतिष्ठा पर आई आंच किस हद तक जाती। इसलिए केंद्र ने उनसे इस्तीफा लेकर सही किया, आंध्र की मौजूदा नाजुक हालत और संवैधानिक पद की गरिमा दोनों के लिहाज से भी। अब वह सीडी की प्रामाणिकता को लेकर जहां और जैसे चाहें, कानूनी और राजनीतिक लड़ाई लड़ सकते हैं।

अगर इटली के मौजूदा प्रधानमंत्री सिल्वियो बलरुस्कोनी और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन जैसे अपवाद उदाहरण छोड़ दें (जो सेक्स स्कैंडलों में नाम आने के बाद भी पद पर बने रहे), तो अमेरिका और यूरोप में राजनेताओं पर अवैध रिश्तों के आरोप आए दिन लगते हैं और ज्यादातर मामलों में उन्हें तत्काल इस्तीफा देना पड़ता है। यह तब है जब वहां के समाजों में यौन स्वतंत्रता को ज्यादा सामाजिक स्वीकृति मिली हुई है।

हमारे देश में उच्च पदों पर आसीन राजनेताओं पर निजी जीवन में नैतिकता के उल्लंघन के उदाहरण ज्यादा नहीं हैं। हमारी परंपरा, संस्कृति और आचार-व्यवहार ऐसा रहा है कि अब भी एकनिष्ठ पारिवारिक जीवन की प्रतिष्ठा कायम है और उल्लंघन के मामलों को आम तौर पर अनदेखा किया जाता है। लेकिन टेलीविजन मीडिया के विस्फोट और स्टिंग ऑपरेशन के प्रचलन के साथ स्थितियां बदल सकती हैं।

केंद्र सरकार के लिए इस्तीफा लेना ही पर्याप्त नहीं है। जरूरत इस बात की है कि राजभवनों को रिटायर और वयोवृद्ध राजनीतिज्ञों व अफसरों की आरामगाह न बनने दिया जाए। यह प्रथा आजादी के बाद से ही चली आ रही है और इसकी तीखी आलोचना होती रही है। लेकिन राजनीतिक सुविधा की खातिर पार्टियां यह सुधार नहीं होने देतीं। कम से कम अब सरकार को राजभवनों में कर्मठ और ऊर्जावान लोगों को सुशोभित करना चाहिए, जो हाल ही में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के पद से मुक्त हुए गोपालकृष्ण गांधी की तरह अविवादास्पद सक्रियता और नैतिक सत्ता के नए मानदंड कायम कर सकें।