Sunday, November 4, 2012

हिमाचल विधानसभा की सभी 68 सीटों पर हो रहा है मतदान आज



शिमला : हिमाचल प्रदेश में कल 68 विधानसभा सीटों के लिए रविवार को होने वाले चुनाव को लेकर उम्मीदवारों के दिलों की धड़कनें बढ़ गई हैं। चुनाव प्रेम कुमार धूमल और वीरभद्र सिंह जैसे दिग्गजों

 के लिए अग्निपरीक्षा है जिन्होंने अपने-अपने ढंग से मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की है। कांग्रेस ने जहां अपने चुनाव प्रचार में सत्ता विरोधी लहर पैदा करने की कोशिश की, वहीं सत्तारुढ़ भाजपा ने महंगाई और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर अपनी पूरी ताकत झोंक दी।

भाजपा और कांग्रेस सभी 68 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि बसपा ने 66 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। हिमाचल लोकहित पार्टी (36), तृणमूल कांग्रेस (25), सपा (16), माकपा (15), राकांपा (12), स्वाभिमान पार्टी (12), भाकपा (7) और शिवसेना चार सीटों पर चुनाव लड़ रही है। 105 निर्दलीय भी चुनावी अखाड़े में अड़े में हैं। मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा पंजाब की तर्ज पर हिमाचल में इतिहास लिखने की उम्मीद लगाए बैठी है। पंजाब में अकाली भाजपा गठबंधन ऐतिहासिक परिपाटी के विपरीत लगातार दूसरी बार सत्ता में आया था। काफी हद तक पंजाब की तरह ही हिमाचल में भी 1977 से कभी किसी दल की लगातार दूसरी बार सरकार नहीं बनी। 4 नवम्बर का चुनाव साबित करेगा कि भाजपा इतिहास बना पाती है या फिर कांग्रेस उत्तराखंड को दोहराती है।

चुनाव मैदान में ताल ठोंकने वाले कुल 459 प्रत्याशियों में से 27 महिलाएं हैं। चुनाव के लिए 7253 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। सबसे ऊंचा मतदान केंद्र 15 हजार फुट की ऊंचाई पर लाहौल स्पीति के हिक्किम में स्थापित किया गया है। मतों की गिनती 20 दिसंबर को होगी। वर्ष 2007 में 41 सीटों पर भाजपा जीती थी जबकि कांग्रेस 23 सीटों में ही सिमट गई थी। निर्दलीय तीन सीटों पर विजयी रहे थे और बसपा सिर्फ एक सीट पर ही कब्जा करने में कामयाब हो पाई थी। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही खेमों के लिए राज्य में भ्रष्टाचार एक बड़ा चुनावी मुद्दा है। कांग्रेस को कोयला, 2जी और राष्ट्रमंडल खेल जैसे घोटालों की वजह से गंभीर आरोपों का सामना करना पड़ रहा है।

हालांकि, समूचे चुनाव प्रचार में भ्रष्टाचार का आरोप बड़ा मुद्दा बना रहा, लेकिन कांग्रेस ने धमूल और उनके मंत्रिमंडल सहकर्मियों पर जवाबी हमला कर इनके प्रभाव को कम करने की कोशिश की है। वीरभद्र सिंह सार्वजनिक रूप से धूमल पर यह आरोप लगा चुके हैं कि उन्होंने कीमती जमीन कम दामों पर खास लोगों को दे दी। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर वीरभद्र के खिलाफ भाजपा का आक्रामक वार उस समय कुछ कुंद पड़ गया जब पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी पर भी आरोप लग गए। कल तक के परिदृश्य के अनुसार महंगाई का मुद्दा सबसे मजबूत मुद्दा बनकर उभरा है। भाजपा नेतृतव ने घरेलू गैस और डीजल के दामों में वृद्धि को कांग्रेस के खिलाफ सशक्त हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और मतदाताओं से कहा कि ऐसे में उनके घर का खर्च कैसे चलेगा।

हिमाचल जहां रेल नेटवर्क नगण्य है, वहां डीजल अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा है और घर पर वैकल्पिक ईंधन के अभाव में एलपीजी गैस भी काफी जरूरी है। धूमल ने कांग्रेस नीत केंद्र सरकार द्वारा सब्सिडी वाले सिलेंडरों की संख्या घटाए जाने पर इंडक्शन चूल्हा पेश कर 22.31 लाख महिला मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की। स्थानीय कांग्रेस नेताओं को इसके चलते आखिरी क्षणों में एलपीजी के दामों में एक और वृद्धि को वापस लेने के लिए केंद्र पर दबाव बनाना पड़ा।

भाजपा के बागियों द्वारा बनाई गई हिमाचल लोकहित पार्टी ने लड़ाई को रोचक बना दिया है। 68 में से 22 सीटों पर बागी असर डाल सकते हैं। 2007 के चुनावों में भी ऐसा ही हुआ था जब 22 सीटों पर जीत का फासला ढाई हजार से कम मतों का था। 40 सीटों पर जीत का अंतराल पांच हजार से कम मतों का था। ऐसे में धूमल और वीरभद्र की शक्ति आखिरी क्षणों में प्रभावित हो सकती है।

हिमाचल में 50.01 प्रतिशत मत अगड़ी जातियों के हैं। अनुसूचित जाति 25.59, अन्य पिछड़ा वर्ग 4.32 और अल्पसंख्यकों के तीन प्रतिशत मत हैं। परंपरागत तौर पर अनुसूचित जातियों का वोट कांग्रेस के खाते में जाता रहा है। हिमाचल लोकहित पार्टी के रूप में तीसरी ताकत, बसपा, राकांपा और तृणमूल कांग्रेस की उपस्थिति भी परिणामों पर असर डालेगी। निर्दलीय भी चुनावी गणित को प्रभावित करेंगे जिन्हें 2007 में आठ प्रतिशत मत मिले थे। उस समय भाजपा को 43.78 प्रतिशत और कांग्रेस को 38.90 प्रतिशत मत मिले थे। पिछले चुनाव में बसपा ने 7.26 प्रतिशत मत हासिल किए थे। माकपा के खाते में 0.57 और भाकपा की झोली में 0.19 प्रतिशत वोट गए थे।

इस बार हिमाचल लोकहित पार्टी का हिस्सा बने वाम दल अपने प्रदर्शन में सुधार की उम्मीद कर रहे हैं। दो बार मुख्यमंत्री रहे धूमल यदि जीत दोहराते हैं तो 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में उनकी ताकत बढ़ जाएगी। इस चुनाव में सबकी नजरें कांग्रेस की 84 वर्षीय विद्या स्टोक्स पर भी होंगी जो चुनाव में सबसे उम्रदराज उम्मीदवार हैं।

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