भारतीय सेना ने मणिपुर सीमा से आगे बढ़कर म्यांमार के इलाके में उग्रवादियों पर जैसी प्रभावी कार्रवाई की, उससे देश का मनोबल ऊंचा हुआ है। प्राप्त सूचनाओं के मुताबिक 45 मिनट के अंदर भारतीय जवानों ने उग्रवादियों के ठिकाने को तबाह कर दिया। वहां अनेक बागी मारे गए। समन्वित कार्रवाई के तहत नगालैंड सीमा पर भी हमला बोला गया, जहां से म्यांमार में खदेड़ते हुए 15 से ज्यादा उग्रवादियों को मार गिराया गया।
पिछले हफ्ते मणिपुर के चंदेल जिले में सेना की टुकड़ी पर उत्तर-पूर्व के विभिन्न् अलगाववादी गुटों के नए बने मोर्चे ने घातक हमला किया था, जिसमें तकरीबन 20 जवान शहीद हुए। इससे देश आहत हुआ। उत्तर-पूर्व में नए सिरे से आतंकवादी उथल-पुथल की आशंकाएं गहराईं।
मगर अब भारतीय सेना ने न केवल उत्तर-पूर्व, बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में भी सक्रिय आतंकवादियों को कड़ा संदेश दिया है। पैगाम साफ है। राष्ट्रविरोधी तत्वों को करारा जवाब दिया जाएगा। भारतीय ठिकानों या हितों पर आक्रमण अब ऐसे तत्वों के लिए महंगा सौदा साबित होगा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि ये कार्रवाई करते हुए भारतीय बलों ने किसी अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं किया, बल्कि उन्हें म्यांमार का सहयोग मिला।
ऐसी खबरें हैं कि भारतीय सेना की कार्रवाई समाप्त होते ही म्यांमार के सुरक्षा बलों ने पूरे इलाके को घेर लिया। ऐसा इसलिए संभव हुआ, क्योंकि दिसंबर 2010 में भारतीय गृह मंत्रालय और म्यांमार के अधिकारियों के बीच एक महत्वपूर्ण करार हुआ था। इसके तहत सहमति बनी कि दोनों देशों के सुरक्षा बल आतंकवादियों का पीछा करते हुए एक-दूसरे के इलाके में जा सकते हैं। उस सुविधा का वर्तमान भारतीय राजनीतिक एवं सैन्य नेतृत्व ने कुशलता से उपयोग किया, जिसके लिए वे प्रशंसा के पात्र हैं।
बहरहाल, यह सफलता चाहे जितनी महत्वपूर्ण हो, मगर अभी निश्चिंत बैठने का वक्त नहीं आया है। अतीत में उत्तर-पूर्व (खासकर नगालैंड और मिजोरम) में भारतीय सुरक्षा बल कहीं अधिक बड़ी बगावतों पर काबू पाने में सफल रहे। इसके बावजूद उस क्षेत्र को अलगाववादियों से मुक्त नहीं किया जा सका। असल में चंदेल जिले की घटना से पहले दो दशक तक पूरे पूर्वोत्तर में सुरक्षा बलों पर इतना बड़ा हमला नहीं हुआ। कारण था उग्रवादी गुटों पर बढ़ा दबाव, जिस वजह से कई गुट युद्धविराम के लिए विवश हुए।
हाल में जिन गुटों ने नया मोर्चा बनाया, उनमें उल्फा (परेश बरुआ) जैसे अलग-थलग पड़े समूह ही ज्यादा हैं। एनएससीएन का खपलांग गुट भी नगालैंड में बहुत बड़ी ताकत नहीं है। फिर भी नए मोर्चे को लेकर चिंता बढ़ी तो इसकी वजह यह थी कि उन्हें चीन की एजेंसियों से मदद के संकेत मिले। कम ताकत के बावजूद विदेशी मदद से संचालित ऐसे गुट अकसर आतंक का माहौल बनाए रखने में सफल हो जाते हैं। यह खतरा अभी बरकरार है। यानी लड़ाई अभी बाकी है। मगर इस बीच संतोष की बात यह है कि अब भारतीय बल भी ईंट का जवाब पत्थर से देने को तैयार हैं।