बीतीरात शहर के केसी रोड के पास नाका लगाकर चालान काट रहे एसडीएम और अकाली दल के शहरी जिला प्रधान संजीव शौरी के बीच चालान काटने को लेकर हुई बहस इस कदर बढ़ गई की दोनों आमने-सामने हो गए। दोनों ने एक दूसरे के साथ दुर्व्यवहार करने बदतमीजी करने के आरोप लगाए। एसडीएम ने तो अकाली दल के प्रधान पर कानून हाथ में लेते ड्यूटी में विघ्न डालने का भी आरोप लगा दिया। एसडीएम ने पूरे मामले को डीसी बरनाला के पास पहुंचाया तो वहीं अकाली दल के प्रधान ने पार्टी हाइकमांड तक सारी बात पहुंचा कार्रवाई की मांग की है। दरअसल बरनाला के एसडीएम अमनवीर सिद्धू के लंबी छुट्टी पर जाने के कारण बरनाला के एडीएम का का एडिशनल चार्ज तपा के एसडीएम राजपाल सिंह को सौंपा गया है। राजपाल सिंह ने मंगलवार को ही अपना चार्ज संभाला था की पहले ही दिन वह अकाली दल के प्रधान से उलझ पड़े। एसडीएम ने नाके पर एक बाइक को रोककर जब उसका चालान करने लगे तो ऐन मौके पर संजीव शौरी ने फोन कर एसडीएम को बाइक छोड़ने को कहा था, एसडीएम के मना करने पर मामला बढ़ गया। मंगलवार रात को कच्चा कालेज रोड पर एसडीएम राजपाल सिंह चालान काट रहे थे। उनके साथ एसएचओ सिटी दविंदर सिंह भी थे। नाके दौरान एसडीएम ने एक बाइक सवार व्यक्ति को रोककर जब उसका बाइक बंद करने लगे तो व्यक्ति ने प्रधान संजीव शौरी को फोन किया। संजीव शौरी ने एसडीएम को फोन कर बाइक छोड़ने को कहा तो एसडीएम ने प्रधान की नहीं मानी तो तैश में आए प्रधान संजीव शौरी और पार्टी के जिला उपाध्यक्ष राजीव वर्मा रिम्पी सीधा एसडीएम के पास नाके पे पहुंच गए। जहां शौरी ने दोबारा एसडीएम को बाइक छोड़ने को कहा तो एसडीएम नहीं माने। बाद में डीसी के कहने पर बाइक छोड़ दी। डीसी भुपिंदर सिंह राय ने कहा कि एसडीएम को दफ्तर बुलाकर समझा दिया है। भविष्य में ऐसी नौबत कभी नहीं आने देंगे। संजीव शौरी ने कहा कि व्यक्ति के पास कागज पूरे थे तो एसडीएम उसका जबरन चालान काट रहे थे जब उन्हें छोड़ने को कहा गया तो वह उनसे ही दुर्व्यवहार पर उतर आए। जिसकी पूरी जानकारी पार्टी हाईकमांड को दे दी है। एसडीएम राजपाल सिंह का कहना है कि वह नाका लगा ट्रैफिक नियमों की अवहेलना करने वालों के चालान कर रहे थे कि प्रधान संजीव शौरी उनके पास पहुंच गए और अपनी ही पार्टीबाजी का उन पर रौब झाड़ने लगे। शौरी ने कानून को हाथ में लेते उनकी ड्यूटी में बाधा भी डाली
Thursday, September 8, 2016
Wednesday, September 7, 2016
किसानों का कर्ज माफ और बिजली बिल आधा करेंगे- कांग्रेस
- देवरिया: कल यूपी के देवरिया में राहुल गांधी की खाट सभा राहुल के भाषण से ज्यादा चर्चा में है. राहुल के जाते ही खाट सभा की लूटमार शूरु हो गई. राहुल की खाट सभा आगे भी होती रहेगी. खबर ये है कि खाट सभा को हिट बनाने के लिए 10 हजार खाटों का ऑर्डर दिया गया है.खटिया खड़ी करने का मुहावरा आपने सुना होगा. फिल्म में खटिया सरकाने पर तो गाना ही बन गया. लेकिन यहां तो फर्स्ट डे, फर्स्ट शो में ही कांग्रेस की खटिया लुट गई. करीब आठ हजार लोग उत्तर प्रदेश के देवरिया में इस पहली खाट पंचायत के गवाह बने और इसमें से डेढ़ हजार लोग तो खटिया लेकर भी चलते बने. किसी ने एक तो किसी ने दो-दो उठा रखी थी.फ्री का नारा राहुल गांधी देकर गए. लेकिन पांच मिनट भी नहीं बीते कि लोगों ने उसे अमल में लाना शुरू कर दिया. कांग्रेस की खटिया घर-घर पहुंच गई. वो भी तब जबकि ये न तो घोषणापत्र में होगा न राहुल गांधी के वादों में.! हालत ये हो गई कि कुशीनगर की अगली सभा में ऐलान तक करना पड़ा कि खाट छोड़कर जाएं. क्योंकि यही खाट राहुल गांधी की अगली सभा में जाएगी. एक खाट की कीमत 800 से हजार रुपये की है. यानी 12 से 15 लाख की खाट देवरिया में लुट गई.खाट लगाने का काम कांग्रेस ने ठेकेदार को दे रखा है. लेकिन अब कांग्रेस खाट के पैसे भरेगी. हालांकि देवरिया के कुशीनगर में 600 लकड़ी के खाट लगे थे और 100 लोहे की खाट. अब चुनौती अगले दिन से खाट लगाने और खाट बचाने की भी रहेगी.खटिये का कॉन्सेप्ट प्रशांत किशोर लेकर आए हैं. हर जगह प्रशांत किशोर खुद मौजूद हैं और खाट सम्मेलन का इंतजाम अपने हाथों में लिए हुए हैं. ये वही प्रशांत किशोर हैं जो नरेंद्र मोदी के लिए चाय पे चर्चा और नीतीश कुमार के लिए घर-घर दस्तक कार्यक्रम कर चुके हैं. मोदी और नीतीश को सत्ता तक पहुंचाने के बाद प्रशांत किशोर अब राहुल की राजनीति चमकाने में लगे हैं. राहुल के लिए रैंप वॉक कराया लेकिन इस बार खाट ज्यादा ही चर्चा में है.इस खटिया एपिसोड से पहले राहुल बस पर नारा लिखवाकर आए थे, कर्ज माफ और बिजली हाफ. राहुल कह रहे हैं कि यूपी में सत्ता में लौटे तो किसानों का कर्ज माफ कर देंगे और बिजली बिल आधा हो जाएगा.उत्तर प्रदेश में कुल 2 करोड़ किसान हैं और हर किसान पर करीब 27 हजार 300 का कर्ज है. ऐसे में कर्ज की रकम जोड़ी जाए तो करीब 50000 करोड़ बनती है. 2009 में कांग्रेस ने पूरे देश में किसानों का कर्ज 60 हजार करोड़ कर्ज माफ किया था.किसानों का कर्ज माफ करके यूपीए दोबारा सत्ता में आ गई. लेकिन वो पूरे देश का था. इस बार सिर्फ यूपी में 50 हजार करोड़ कर्ज माफ करना होगा, अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो. ये वही कांग्रेस है जो दिल्ली में केजरीवाल की मुफ्त की राजनीति का विरोध कर चुकी है. लेकिन अब फ्री के फॉर्मूले के भरोसे ही है.राहुल गांधी ने देवरिया में अपनी खटिया खड़ी रैली की शुरुआत की है. आधी बिजली माफ आप की नीति है लेकिन कॉंग्रेस को इस अनुकरण से कोई लाभ नहीं होगा.एक दिन पहले ही अखिलेश सरकार फ्री में स्मार्ट फोन बांटने का एलान कर चुकी है. जाति की राजनीति यूपी के लिए नई नहीं है और अब कांग्रेस भी यही दांव आजमा रही है. ब्राह्मण सम्मेलन करके कांग्रेस के नेता धड़ल्ले से वादे किए जा रहे हैं जबकि राहुल गांधी तो जात-पात से ऊपर उठने की वकालत कर चुके हैं.उत्तर प्रदेश में कांग्रेस 27 सालों से सत्ता से दूर है, दिल्ली की सत्ता गए भी दो साल बीत गए हैं. इसलिए यूपी में वापसी के लिए कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. उसूल पीछे छूट चुके हैं और आवाज बदल चुकी है. प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर जिस प्रशांत किशोर को साउंड रिकॉर्डिस्ट कह चुके हैं, अब उसी की बोली बोलकर कांग्रेस कुर्सी वापस पाना चाह रही है.
आसान नहीं है डेल्ही से पंजाब की डगर दिनों दिन मुश्किल होता जा रहा है रास्ता ,विवादों में घिरती जा रही आप
अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री,दिल्ली
पंजाब में सत्ता पाने का स्वपन संजोय बैठी आम आदमी पार्टी की डेल्ही से पंजाब की राह अब आसान नहीं लग रही ! केजरीवाल के चेहरे को आगे कर के ही अब शायद पंजाब की कुर्सी पर कब्ज़ा किया जा सकता है ! केजरीवाल की आंख पंजाब के चीफ मिनिस्टर की कुर्सी पर है ! क्यों के डेल्ही के चीफ मिनिस्टर की पावर एक म्युनिसिपल प्रेजेंट जैसे ही होती है ! इस लिए लगता है के पंजाब को केजरीवाल हर हालात में हासिल करना चाहते है !उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल जी का अस्तीफा भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है ! कभी कभी तो लगता है के केजरीवाल खुद ही नहीं चाहते कि उनकी पार्टी के किसी नेता का कद इतना बड़ा हो जाय के वो अपने दम पर वोट ले सके !कई उदारहरण है अतीत में योगेंद्र यादव ,बिन्नी ,प्रशांत भूषण इत्यादि ! ऐसा ही पंजाब में हुआ ,स्टार प्रचारक भगवंत मान अचानक नाछेरी बन गया ,उस के मुह से शराब की बॉस आने लगी है ,कोई बताएगा के भगवंत मान मेंबर पार्लियामेंट तो अब बना है इससे पहले क्या वो रिक्शा चलता था ? कभी व्हिस्की या स्कोच की बास आती है क्या वो देसी ठहरा पीता है ! सुच्चा सिंह छोटेपुर को भी छोटा कर दिया !क्या केजरीवाल साहेब ये तो नहीं चाहते के पंजाब की चीफ मिनिस्टर सुनीता केजरीवाल हो ! स्वपन देखना बुरी बात नहीं पर पहले चुनाव तो जीत लो साहेब !यह डेल्ही नहीं है पंजाब के लोग सर आँखों पर भी बड़ी जल्दी बिठाते है पर धुल चटाने ने में भी देर नहीं लगाते ! अभी तो दिल्ली में ही आपकी पार्टी की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. अश्लील सीडी कांड का मामला भी शांत भी नहीं हुआ कि आपकी पार्टी के एक विधायक ने सीएम केजरीवाल को चिट्ठी लिखकर 'आप' के टॉप नेताओं पर पार्टी को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया है. कर्नल देवेंद्र सेहरावत ने अपनी चिट्ठी में कहा है कि 'आप' के नेता पंजाब में भी महिलाओं का शोषण कर रहे हैं. 'आप' विधायक के इस तरह के सनसनीखेज आरोपों के बाद पंजाब विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी इस पार्टी के अब राह इतनी आसान नहीं दिख रही है. पंजाब विधानसभा चुनाव में पहली बार किस्मत आजमा रही इस पार्टी ने जितने भी पत्ते फेंके, एक-एक कर सभी चुनाव से पहले ढेर होते जा रहे हैं. ! केजरीवाल सरकार के कैबिनेट मंत्री संदीप कुमार अश्लील सीडी कांड में फंसे. तो सीएम ने तत्काल उन्हें कैबिनेट से बर्खास्त किया. पुलिस ने संदीप कुमार को तुरंत गिरफ्तार भी कर लिया लेकिन सीडी में दिख रही महिला के आरोपों के बाद पूर्व कैबिनेट मंत्री की मुसीबतें बढ़ गई हैं. महिला ने आरोप लगाया कि नशे की हालत में उसके साथ रेप किया गया है.बात यहीं तक नहीं रुकी. पार्टी के सीनियर नेताओं में से एक आशुतोष ने संदीप कुमार का बचाव करते हुए उनकी तुलना महात्मा गांधी और नेहरू से कर दी. इस मुद्दे पर विपक्ष ने केजरीवाल सरकार पर हमला बोल दिया ! इस हालात में 'डैमेज कंट्रोल' करना केजरीवाल सरकार के लिए आसान नहीं दिखाई दे रहा है. इसी बीच, सेहरावत ने आरोप लगा दिया है कि आप के नेता पंजाब में टिकट देने या उसके वादे के एवज में महिलाओं का शोषण कर रहे हैं. सेहरावत ने आशुतोष, दिलीप पांडेय और पार्टी की पंजाब ईकाई के प्रभारी संजय सिंह का भी नाम ले लिया है.!
पंजाब के संगरूर से आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान दुवारा संसद का वीडियो बनाए जाने के मामले ने बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है. मान के इस वीडियो के बाद न सिर्फ विपक्ष, बल्कि 'आप' के सांसदों ने भी मोर्चा खोल दिया. मान की संसद सदस्यता खत्म किए जाने की मांग तक भी हो चुकी है !.आम आदमी पार्टी ने पिछले दिनों सुच्चा सिंह छोटेपुर को पार्टी के पंजाब संयोजक पद से हटा दिया था. पंजाब के माझा इलाके से ताल्लुक रखने वाले सुच्चा सिंह की इलाके के पार्टी नेताओं में खासी पैठ है और इलाके की कई सीटों पर जीत-हार तय करने में वह अहम साबित हो सकते थे. ! आप' में मौजूदा संकट से निपटने के लिए अब अरविंद केजरीवाल पंजाब चुनाव में पार्टी की कमान संभालने जा रहे हैं. केजरीवाल का 'मिशन पंजाब' 8 सितंबर से शुरू हो रहा है. उन्होंने राजनीति की दुनिया में नए गुरप्रीत घुग्गी को सुच्चा सिंह की जगह पार्टी संयोजक की जिम्मेदारी दे दी है इस जुमेवारी पर घुघी और केजरीवाल कितने कामयाब होते है ये तो आने वाला समय ही बताएगा फ़िलहाल तो यही कहा जा सकता है के आसान नहीं है डेल्ही से पंजाब की डगर........ दिनों दिन मुश्किल होता जा रहा है रास्ता
इसके अलावा मान की इमेज एक नशेड़ी के तौर पर बन गई है. 'आप' के ही बर्खास्त सांसद हिरेंद्र सिंह खालसा ने लोकसभा स्पीकर से शिकायत करते हुए कहा कि उनकी सदन में सीट को बदल दिया जाये क्योंकि उनकी बगल वाली सीट पर बैठने वाले भगवंत मान संसद में शराब पीकर आते हैं और उनके मुंह से शराब की बदबू आती है. नशामुक्त पंजाब का सपना दिखाने वाली आम आदमी पार्टी के लिए मान सहारा की जगह मुसीबत बन चुके हैं.
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×सुच्चा ने छोड़ा साथ, सिद्धू से जुड़ सकते हैं
Tuesday, September 6, 2016
प्रदेश में स्वच्छ और ईमानदार सरकार के लिए दे भाजपा को वोट- पंकज सिंह अन्ना स्टाइल की टोपी पहनकर करने वालो की निं
भाजपा के प्रदेश महासचिव पंकज सिंह ने रेलवे रोड बजरिया स्थित गुरुसिंह सभा धर्मशाला में आयोजित एक सभा में अपील की की भ्रष्टाचार से मुक्त और सुशासन के लिए भाजपा को ही वोट दे | उन्होंने कहा की गाज़ियाबाद विधान सभा क्षेत्र से भाजपा के प्रत्याक्षी अतुल गर्ग स्वच्छ छवि के ईमानदार व्यक्ति है | वह पूर्व मेयर डी.सी.गर्ग के पुत्र है जिनका कार्यकाल आरोप मुक्त रहा और विकास के लिया जाना जाता है | गाज़ियाबाद और प्रदेश की स्थिति आज किसी से छुपी नहीं है | सबसे ज्यादा रेवेन्यू देने वाले इस शहर के विकास और व्यवस्था परिवर्तन के लिए भाजपा को ही वोट देने की उन्होंने अपील की |
इस मौके पर उन्होंने विपक्षी प्रत्याक्षी के समर्थको द्वारा अन्ना स्टाइल में मैं…….हूँ की टोपी पहने जाने की भी निंदा की और कहा जिन पर भ्रष्टाचार का सबसे ज्यादा आरोप है वही संत अन्ना की नक़ल उतार रहे है कितनी हास्यापद स्थिति है | व्यापारी नेता गुलशन माकन ने कांग्रेस, बसपा और सपा सरकारों की निंदा करते हुए भाजपा के ही पक्ष में मतदान करने का आग्रह किया | व्यापारी दीपक तलवार ने कहा की क्या आप उस सरकार को सत्ता में लाना चाहेंगे जो भ्रष्टाचार का विरोध कर रहे निहत्थे लोगो पर सोते समय लाठिया बरसाती है | सञ्चालन कर रहे व्यापारी प्रेम प्रकाश गर्ग ने कहा की केवल भाजपा ही बिना जातिवाद, भेदभाव के कार्य करती है | बेदाग़ छवि के प्रत्याक्षी अतुल गर्ग को ही वोट दे |
इस मौके पर उन्होंने विपक्षी प्रत्याक्षी के समर्थको द्वारा अन्ना स्टाइल में मैं…….हूँ की टोपी पहने जाने की भी निंदा की और कहा जिन पर भ्रष्टाचार का सबसे ज्यादा आरोप है वही संत अन्ना की नक़ल उतार रहे है कितनी हास्यापद स्थिति है | व्यापारी नेता गुलशन माकन ने कांग्रेस, बसपा और सपा सरकारों की निंदा करते हुए भाजपा के ही पक्ष में मतदान करने का आग्रह किया | व्यापारी दीपक तलवार ने कहा की क्या आप उस सरकार को सत्ता में लाना चाहेंगे जो भ्रष्टाचार का विरोध कर रहे निहत्थे लोगो पर सोते समय लाठिया बरसाती है | सञ्चालन कर रहे व्यापारी प्रेम प्रकाश गर्ग ने कहा की केवल भाजपा ही बिना जातिवाद, भेदभाव के कार्य करती है | बेदाग़ छवि के प्रत्याक्षी अतुल गर्ग को ही वोट दे |
हर गरीब को मकान मिल सकते हैं … बशर्ते!
देश की जनसंख्या तेजी से साथ बढ़ती जा रही है। इसके साथ ही आवास की समस्या भी एक प्रमुख समस्या के रूप में हम सभी के सामने है। बाजार में जमीन भी है और मकान भी हैं। लेकिन वास्तविकता यह भी है कि आम आबादी जिसे हम निर्धन भी कहते हैं कि आज भी स्वयं का एक कमरे या दो कमरे के मकान से वंचित है। इसका कारण यही है कि मकानों और फ़्लैटों की कीमतें आसमान छू रही है। अधिकांश बिल्डर्स जो मकान बना रहे हैं वे आम आदमी या गरीब वर्ग के लिए नहीं हैं। जिनके पास 20 लाख से अधिक की रकम हैं वे तो कोई फ़्लैट या मकान खरीद सकते हैं लेकिन आम आदमी के पास इतना धन कहां आता है? इसी प्रकार लोन लेने में भी आम आदमी को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अगर किसी आम आदमी को मकान या फ़्लैट चाहिए तो उसके पास सर्वप्रथम बैंक स्टेटमेंट हो, पैन कार्ड हो, और आयकर संबंधी कागजात तथा आय संबंधी प्रमाणपत्र। हमारी केन्द्र और राज्य सरकारों ने कभी इस दिशा में ध्यान नहीं दिया। आम आदमी जिसे हम श्रमिक वर्ग भी कह सकते हैं या जो ई.डब्ल्यू.एस वर्ग का हो के पास बैंकों से लोन लेने संबंधित कागजात नहीं होते हैं। अगर हैं भी तो आधे अधूरे । जब उसके पास ये कागजात ही नहीं हैं तो उसे मकान आखिर मिलेगा तो कैसे? सवाल यही है कि जब तक आम आदमी को रहने के लिए एक या दो कमरे का मकान नहीं मिल जाता तब तक विकसित उत्तर प्रदेश या विकसित भारत की कल्पना नही की जा सकती है।
वास्तविकता यह भी है कि आम आदमियों और ईडब्लूएस वर्ग के मकान बनाने और उसे सुलभ कराने की कोई प्रभावकारी योजना केन्द्र और राज्य स्तर पर नहीं हैं जबकि देश की अधिकांश आबादी गरीब है और विभिन्न साधनों से वंचित हैं । मै कहना चाहूँगा कि राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 24 के बाई पास पर कई किलोमीटर की लंबी कालोनियां की श्रृंखला और बसा दी गई है। दुख की बात यह है कि इन कालोनियों में सीवर और पानी जैसी अनेका-अनेक आवश्कताओं की कमी देखी जा सकती है । इन कालोनियों मे रहने वाले लोगों को कोई लोन नहीं मिलता है। मूलभूत सुविधाओं का अभाव है इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। इन कालोनियों के निवासियों को आखिर मूलभूत सुविधऐं कौन देगा? कौन उनके लिए पार्क बनवाएगा और कौन उनके लिए अन्य सुविधएं देगा? इस पर समस्त राजनीतिक दल चुप है।
अब मैं बातें करता हूँ सरकारी नियमो की। सरकार आज गरीबों याने ईडब्ल्यूएस वर्ग के मकानों के लिए भी कारपार्किंग की जगह छोडने की माँग करती है, ई.डब्ल्यू.एस वर्ग के मकानों के लिए क्या कार पाकिंग एक आवश्यकता है? एक आम आदमी अपने रहने के लिए ठीक ठाक मकान की कल्पना करता है। सबसे पहले उसकी इस कल्पना को साकार किया जाना चाहिए। अगर सरकार दिशा में अपने नियमो में संशोधन कर ले तो आम आदमी को मकान सस्ते दरों पर कुछ प्राईवेट बिल्डर भी उपलब्ध करा सकते हैं। तीन से पांच लाख रुपए में शानदार मकान गरीबों के लिए बनाये जा सकते हैं।
इसके लिए एफ0ए0आर0 के अंदर कोई छूट न देकर 200 यूनिट से प्रति एकड़ 400 से 500 प्रति हेक्टेयर की छूट दी जानी चाहिए। इसके तहत कम पूंजी वाला व्यकित जो आज किराया दे रहा है रहने के लिए उसे स्वयं का अपना मकान मिल सकता है। इस राशि को वह किश्त के रूप में देकर स्वयं मकान का मालिक बन सकता है और गरीब बस्तियों मे रहने वाले लोग शानदार मकानों में रह सकते हैं। कई बिल्डर इस दिशा में काम करना चाहते हैं लेकिन सरकार को अपने नियमों और व्यवस्था तंत्र में एक विकसित और विकासोन्मुख भावना का परिचय देना होगा।
अब मैं बात करता हू गाजियाबाद की। गाजियाबाद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का हिस्सा है। यह दिल्ली की सीमा से लगा है लेकिन यहाँ पर नोएडा और गुडगाँव जैसी सुविधाओं का अभाव है। इस ओर न तो केन्द्र और न ही उत्तर प्रदेश सरकार ने ध्यान दिया है । जितने भी राष्ट्रीय राजमार्ग दिल्ली से होकर गाजियाबाद के रास्ते निकलते हैं उन में 100 प्रतिशत उत्तराखण्ड का यातायात संचालित होता हैं। नैनीताल, मसूरी और हरिद्वार जाने के लिए गाजियाबाद के गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग से ही होकर किसी वाहन को गुजरना पडता है। इन्ही मार्ग से 90 प्रतिशत उत्तर प्रदेश का भी यातायात संचालित होता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 24, 54 और 91 इसका उदाहरण हैं। इन मार्गो की सबसे ज्यादा अनदेखी की गई है। यहाँ पर दिल्ली की आबादी की भी बसावत है।
इन मार्गो की उपेक्षा का ही परिणाम है कि इन मार्गो पर आने वाले क्षेत्रों में और बस्तियों में नागरिक सुविधाओं का अभाव है। मैं यह भी स्पष्ट कर दूँ कि एनसीआर बोर्ड के पास धन की कमी नही है लेकिन उसका सही उपयोग इन मार्गो और क्षेत्रो में नहीं हो पा रहा है। नोएडा और गुडगाँव जैसा सौंदर्य मेट्रो और अन्य सुविधाओं का इस क्षेत्रों में अभाव हैं। इसके लिए मेरा सुझाव यह भी है कि राज्य सरकार को जो राजस्व प्राप्त होता है उसका एक निशिचत हिस्सा इस क्षेत्रो के विकास पर खर्च होना चाहिए। इसी प्रकार केन्द्र सरकार को भी जो टैक्स प्राप्त होता है उसका भी एक हिस्सा इस क्षेत्रों के विकास कार्य में किया जाए क्योंकि गाजियाबाद से ही तीन राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरते हैं जो उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य राज्यों को जोड़ते हैं। आखिर गाजियाबाद सबसे ज्यादा राजस्व उत्तर प्रदेश सरकार के खजाने में जमा करता है। यहां सर्वाधिक उद्योग हैं। यहां के व्यापारियों और उद्योगपतियों के माध्यम से राज्य सरकार को सबसे अधिक राजस्व प्राप्त होता है। सरकार दावा तो करती है कि यहा के लोगों का आय बढ़ रही है लेकिन संसाधनो का सही उपयोग नहीं हो पा रहा है। इस क्षेत्रों के विकास के लिए कोष का आवंटन सही तरीके से हो चाहिए।
अब, मैं बात करता हूँ भूमि अधिग्रहण की। किसानों की जो जमीन अधिग्रहीत की जाती है वह बाजार मूल्य पर किसानों के साथ धोखा है। अगर सरकार 15 प्रतिशत किसी भूमि पर खर्च कर दे तो उसकी कीमत 2 से तीन गुना हो जाती है। इसी प्रकार सरकार जो भूमि अधिग्रहीत करती है उसे कई -कई गुना ज्यादा दाम पर बिल्डरों को या अन्य संस्थाओं को देती है। कम कीमत पर जमीन लेकर सरकार द्वारा ज्यादा दामों पर बेचने के मामले में ध्यान देना होगा कि सरकार कोई व्यापारी नहीं है। सरकार को निश्चित रकम जुटाने का अधिकार है लेकिन जमीन पर व्यापार करने का हक नहीं है लेकिन ऐसा हो रहा है। सरकार जमीन के मामले में आज व्यापारी हो गई है। किसी भी जमीन का विकास शुल्क नाम मात्र का ही होता है। सरकार विकास शुल्क के नाम पर क्यों ज्यादा दामों में प्लाट बेचती है? इसी प्रकार किसानों की जो जमीन अधिग्रहीत की जाती है उसका 40 प्रतिशत हिस्सा पाने का हकदार भी किसान होता है लेकिन किसान इन तथ्यों पर ध्यान ही नहीं देते हैं। जिन सोसायटियों और किसानों की जमीन अधिग्रहीत होती है उनका 40 से 50 प्रतिशत मुआवजे के रूप में जमीन दी जाती है विकास शुल्क लेकर।
अंत में हिन्ट के पाठकों के लिए मैं यही कहना चाहूंगा कि गरीबों के लिए मकान देने का लक्ष्य अगर केन्द्र और राज्य सरकार का है तो उसके लिए वातावरण बनाया जाना चाहिए। सभी को इस दिशा में राजनीजिक हितों से ऊपर उठकर आम आदमी के बारे में सोचना होगा। नियमों और कानूनों में संसोधन होना चाहिए तथा इस नियमों की जानकारी वृहत्त स्तर पर सार्वजनिक की जानी चाहिए। इसके अलावा गाजियाबाद के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय राजधनी क्षेत्रों की मूल भावना को लागू करने के लिए सामूहिक प्रयास हर स्तर पर होने चाहिए। सभी राजनीतिक दलों को गाजियाबाद के विकास की दिशा में एकमत होना होगा तभी केंद्र और राज्य सरकार को उसके लक्ष्य के अनुक्रम में मदद की जा सकती है। जो तीन राष्ट्रीय राजमार्ग दिल्ली से लेकर गुजरते हैं उनके विकास और उन मार्गो के आसपास की आबादी पर ध्यान देना जरूरी है। केंद्र सरकार प्रत्यक्ष करों के आधर पर गाजियाबाद के लिए एक कोष स्थापित कर सकती है जिससे एक जनपद का व्यापक स्तर पर विकास हो
वास्तविकता यह भी है कि आम आदमियों और ईडब्लूएस वर्ग के मकान बनाने और उसे सुलभ कराने की कोई प्रभावकारी योजना केन्द्र और राज्य स्तर पर नहीं हैं जबकि देश की अधिकांश आबादी गरीब है और विभिन्न साधनों से वंचित हैं । मै कहना चाहूँगा कि राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 24 के बाई पास पर कई किलोमीटर की लंबी कालोनियां की श्रृंखला और बसा दी गई है। दुख की बात यह है कि इन कालोनियों में सीवर और पानी जैसी अनेका-अनेक आवश्कताओं की कमी देखी जा सकती है । इन कालोनियों मे रहने वाले लोगों को कोई लोन नहीं मिलता है। मूलभूत सुविधाओं का अभाव है इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। इन कालोनियों के निवासियों को आखिर मूलभूत सुविधऐं कौन देगा? कौन उनके लिए पार्क बनवाएगा और कौन उनके लिए अन्य सुविधएं देगा? इस पर समस्त राजनीतिक दल चुप है।
अब मैं बातें करता हूँ सरकारी नियमो की। सरकार आज गरीबों याने ईडब्ल्यूएस वर्ग के मकानों के लिए भी कारपार्किंग की जगह छोडने की माँग करती है, ई.डब्ल्यू.एस वर्ग के मकानों के लिए क्या कार पाकिंग एक आवश्यकता है? एक आम आदमी अपने रहने के लिए ठीक ठाक मकान की कल्पना करता है। सबसे पहले उसकी इस कल्पना को साकार किया जाना चाहिए। अगर सरकार दिशा में अपने नियमो में संशोधन कर ले तो आम आदमी को मकान सस्ते दरों पर कुछ प्राईवेट बिल्डर भी उपलब्ध करा सकते हैं। तीन से पांच लाख रुपए में शानदार मकान गरीबों के लिए बनाये जा सकते हैं।
इसके लिए एफ0ए0आर0 के अंदर कोई छूट न देकर 200 यूनिट से प्रति एकड़ 400 से 500 प्रति हेक्टेयर की छूट दी जानी चाहिए। इसके तहत कम पूंजी वाला व्यकित जो आज किराया दे रहा है रहने के लिए उसे स्वयं का अपना मकान मिल सकता है। इस राशि को वह किश्त के रूप में देकर स्वयं मकान का मालिक बन सकता है और गरीब बस्तियों मे रहने वाले लोग शानदार मकानों में रह सकते हैं। कई बिल्डर इस दिशा में काम करना चाहते हैं लेकिन सरकार को अपने नियमों और व्यवस्था तंत्र में एक विकसित और विकासोन्मुख भावना का परिचय देना होगा।
अब मैं बात करता हू गाजियाबाद की। गाजियाबाद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का हिस्सा है। यह दिल्ली की सीमा से लगा है लेकिन यहाँ पर नोएडा और गुडगाँव जैसी सुविधाओं का अभाव है। इस ओर न तो केन्द्र और न ही उत्तर प्रदेश सरकार ने ध्यान दिया है । जितने भी राष्ट्रीय राजमार्ग दिल्ली से होकर गाजियाबाद के रास्ते निकलते हैं उन में 100 प्रतिशत उत्तराखण्ड का यातायात संचालित होता हैं। नैनीताल, मसूरी और हरिद्वार जाने के लिए गाजियाबाद के गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग से ही होकर किसी वाहन को गुजरना पडता है। इन्ही मार्ग से 90 प्रतिशत उत्तर प्रदेश का भी यातायात संचालित होता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 24, 54 और 91 इसका उदाहरण हैं। इन मार्गो की सबसे ज्यादा अनदेखी की गई है। यहाँ पर दिल्ली की आबादी की भी बसावत है।
इन मार्गो की उपेक्षा का ही परिणाम है कि इन मार्गो पर आने वाले क्षेत्रों में और बस्तियों में नागरिक सुविधाओं का अभाव है। मैं यह भी स्पष्ट कर दूँ कि एनसीआर बोर्ड के पास धन की कमी नही है लेकिन उसका सही उपयोग इन मार्गो और क्षेत्रो में नहीं हो पा रहा है। नोएडा और गुडगाँव जैसा सौंदर्य मेट्रो और अन्य सुविधाओं का इस क्षेत्रों में अभाव हैं। इसके लिए मेरा सुझाव यह भी है कि राज्य सरकार को जो राजस्व प्राप्त होता है उसका एक निशिचत हिस्सा इस क्षेत्रो के विकास पर खर्च होना चाहिए। इसी प्रकार केन्द्र सरकार को भी जो टैक्स प्राप्त होता है उसका भी एक हिस्सा इस क्षेत्रों के विकास कार्य में किया जाए क्योंकि गाजियाबाद से ही तीन राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरते हैं जो उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य राज्यों को जोड़ते हैं। आखिर गाजियाबाद सबसे ज्यादा राजस्व उत्तर प्रदेश सरकार के खजाने में जमा करता है। यहां सर्वाधिक उद्योग हैं। यहां के व्यापारियों और उद्योगपतियों के माध्यम से राज्य सरकार को सबसे अधिक राजस्व प्राप्त होता है। सरकार दावा तो करती है कि यहा के लोगों का आय बढ़ रही है लेकिन संसाधनो का सही उपयोग नहीं हो पा रहा है। इस क्षेत्रों के विकास के लिए कोष का आवंटन सही तरीके से हो चाहिए।
अब, मैं बात करता हूँ भूमि अधिग्रहण की। किसानों की जो जमीन अधिग्रहीत की जाती है वह बाजार मूल्य पर किसानों के साथ धोखा है। अगर सरकार 15 प्रतिशत किसी भूमि पर खर्च कर दे तो उसकी कीमत 2 से तीन गुना हो जाती है। इसी प्रकार सरकार जो भूमि अधिग्रहीत करती है उसे कई -कई गुना ज्यादा दाम पर बिल्डरों को या अन्य संस्थाओं को देती है। कम कीमत पर जमीन लेकर सरकार द्वारा ज्यादा दामों पर बेचने के मामले में ध्यान देना होगा कि सरकार कोई व्यापारी नहीं है। सरकार को निश्चित रकम जुटाने का अधिकार है लेकिन जमीन पर व्यापार करने का हक नहीं है लेकिन ऐसा हो रहा है। सरकार जमीन के मामले में आज व्यापारी हो गई है। किसी भी जमीन का विकास शुल्क नाम मात्र का ही होता है। सरकार विकास शुल्क के नाम पर क्यों ज्यादा दामों में प्लाट बेचती है? इसी प्रकार किसानों की जो जमीन अधिग्रहीत की जाती है उसका 40 प्रतिशत हिस्सा पाने का हकदार भी किसान होता है लेकिन किसान इन तथ्यों पर ध्यान ही नहीं देते हैं। जिन सोसायटियों और किसानों की जमीन अधिग्रहीत होती है उनका 40 से 50 प्रतिशत मुआवजे के रूप में जमीन दी जाती है विकास शुल्क लेकर।
अंत में हिन्ट के पाठकों के लिए मैं यही कहना चाहूंगा कि गरीबों के लिए मकान देने का लक्ष्य अगर केन्द्र और राज्य सरकार का है तो उसके लिए वातावरण बनाया जाना चाहिए। सभी को इस दिशा में राजनीजिक हितों से ऊपर उठकर आम आदमी के बारे में सोचना होगा। नियमों और कानूनों में संसोधन होना चाहिए तथा इस नियमों की जानकारी वृहत्त स्तर पर सार्वजनिक की जानी चाहिए। इसके अलावा गाजियाबाद के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय राजधनी क्षेत्रों की मूल भावना को लागू करने के लिए सामूहिक प्रयास हर स्तर पर होने चाहिए। सभी राजनीतिक दलों को गाजियाबाद के विकास की दिशा में एकमत होना होगा तभी केंद्र और राज्य सरकार को उसके लक्ष्य के अनुक्रम में मदद की जा सकती है। जो तीन राष्ट्रीय राजमार्ग दिल्ली से लेकर गुजरते हैं उनके विकास और उन मार्गो के आसपास की आबादी पर ध्यान देना जरूरी है। केंद्र सरकार प्रत्यक्ष करों के आधर पर गाजियाबाद के लिए एक कोष स्थापित कर सकती है जिससे एक जनपद का व्यापक स्तर पर विकास हो
किसानों को पार्टनर बनाए सरकार
मेरे विचार से जिस भूमि का भू-उपयोग व्यवसायिक अथवा आवासीय है और वह भू-अर्जन से बची है तो भू-स्वामी खुद उक्त भूमि का विकास करता है अथवा बिल्डर को बेंचता या बिल्डर से साझेदारी करता है, उपरोक्त तीनों संभावनाओं में से एक का लाभ भू अर्जन की जाने वाले भू स्वामी को भी मिलना चाहिए।
आवासीय कालोनी, रोड, औद्योगिक क्षेत्रों आदि के लिए ली जाने वाली भूमि के बदले मुआवजा कहने को तो बाजार भाव पर डिपटी कमिश्नर और प्रदेश सरकार के प्रतिनिधि तय करते हैं, पर भाव तय करते समय उस भूमि का मूल्यांकन भूमि की पूर्व स्थिति पर होता है न कि वर्तमान स्थिति पर। पूर्व स्थिति से अभिप्राय: भू उपयोग और भूमि पर पहुंचने की उपलब्ध्ता।
सरकार अपने द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के लिए भू-उपयोग बदलने के लिए स्वतंत्रा हैं, जबकि मुआवजे के समय भूमि का मूल्यांकन पूर्व निर्धरित भू उपयोग पर कृषि आधरित होता है। ऐसे ही कालोनी बनने से पहले अंदर के खेतों की जमीन का मूल्य बहुत कम होता है जबकि योजना बनने के बाद अंदर तक रोड जाने से थोड़ा खर्च करके भूमि का मूल्यांकन बढ़ जाता है। मेरा मानना है कि विकास के लिए अकेले किसानों के हित की बलि देना ठीक नहीं। विकास संबंधी सभी एजेन्सीज को भू-मूल्य पूर्व स्थिति पर नहीं बल्कि भावी योजना में होने वाले उपयोग मूल्य पर आधरित होना चाहिए। अर्थात विकास की भागीदारी का लाभ किसान को मिलना चाहिए। उदाहरण के तौर पर मधुबन योजना को ही लें, माना जा रहा है कि 7500 रुपए प्रति गज से प्लाटों का रेट निकाला जाएगा, जबकि भूमि का मुआवजा 1100 रुपए प्रति वर्ग की दर पर तय किया जा रहा है। अगर पूरी योजना का गणित लगाएं तो 1100 प्रति वर्ग गज के हिसाब से जमीन खरीदकर 50 प्रतिशत जमीन सड़क, पार्क और अन्य कार्यो के लिए छोड़ दी जाए तो 50 प्रतिशत प्लाट निकल आते हैं। 1000 गज जमीन 11 लाख की तथा 500 गज जमीन बिक्री के लिए उपलब्ध् हूई। इस पर विकास इसमें से जीडीए अपने कार्य करने तथा कोष बनाने के लिए 50 प्रतिशत लाभ ले ले तब भी किसानों को 1100+1025 लाभ का अवश्य मिलना चाहिए। यदि बिक्री मूल्य बढ़ता है तो और लाभ बढ़ने की संभावना प्रबल होती है। ओल्गा टेलिस बनाम मुंबई म्यूनिसिपल कार्पोरेशन ,1985 3 एस0सी0सी0 545, ए0आई0आर0 1986 एस0सी0 180 मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि जीवन यापन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। अत: किसानों का मौलिक अधिकार छीन कर अगर विकास प्राधिकरण लाभ कमाता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। अत: इस पर पुन: विचार करने की आवश्यकता है।
भूमि अधिग्रहण अधिनियम की आड़ में विकास प्राधिकरण किसानों की भूमि छीनकर और उचित मुआवजा न देकर संविधन के अनुच्छेद 300 ए का भी उल्लंघन कर रहा है।
मेरे विचार से जिस भूमि का भू-उपयोग व्यवसायिक अथवा आवासीय है और वह भू-अर्जन से बची है तो भू-स्वामी खुद उक्त भूमि का विकास करता है अथवा बिल्डर को बेचता या बिल्डर से साझेदारी करता है। उपरोक्त तीनों संभावनाओं में से एक का लाभ भू अर्जन की जाने वाले भू स्वामी को भी मिलना चाहिए। सरकार को इस योजना के तहत किसानों को मौका देना चाहिए कि अपनी भूमि के बदले उन्हें विकसित भूमि मिले और वे खुद निर्माण कार्य में आगे आएं या इस व्यवसाय से जुड़े लोगों से भागीदारी कर सकें। ऐसा नहीं है कि मै पहली बार या कोई नई बात कर रहा हूं पहले भी गाजियाबाद में डेवलपमेंट चार्ज लेकर 40 प्रतिशत प्लाट के रूप में भूमि किसानों को दे दी जाती थी। इसे भू-स्वामी अपनी दरों पर बेच सकता था। पूर्व मेयर दिनेश चंद गर्ग आज जिस भूमि पर रह रहे हैं वह भी लैंड पालिसी के अंतर्गत मिले प्लाट था जिसे भू-स्वामी से उन्होंने खरीदा। ऐसे अनेक उदाहरण हैं।
केवल अपनी आय बढ़ाने के लिए जीडीए व सरकार ने धीरे-धीरे उक्त पालिसी को बदल दिया। यह कतई उचित नहीं है। यदि गौर से देखा जाए तो आवासीय व्यवसाय में 85 प्रतिशत भूमि का योगदार का भूमि मालिक का होता है। जबकि 15 प्रतिशत योगदान ही केवल पंजी व योजना पक्ष का होता है। जबकि लाभ के बंटवारे में भूस्वामी को केवल भूमि का बाजार मूल्य मिलता है। और लाभ 15 प्रतिशत का योगदान करने वाले योजना पक्ष को मिलता है। मेरा सुझाव है निम्न आय वर्ग व अत्याधिक गरीब वर्ग के लिए इस क्षेत्रा में अलग से सरल नियम बनाकर सीधे किसानों को ही इस क्षेत्रा में प्रोत्साहन किया जा सकता है। इस विषय में मेरा सुझाव है कि शहरी सीमा के 5-10 किलोमीटर के क्षेत्रो में यदि कोई किसान अपनी भूमि पर 40 गज से 80 गज तक के मकान बनाता है तो उसके नक्शे बिना लैंड यूज देखे ;विशेष परिस्थितियों को छोड़कर सामान्यता पास किए जाएगा। और शुल्क न लिया जाए। बिजली की व्यवस्था में सामान्य शुल्क लिया जाए। इ0डब्ल्यू0एस0 व एलआईजी मकानों व प्लाटों पर संपत्ति को गिरवी रखकर बिना आय-प्रमाण पत्र के 7 प्रतिशत के दीर्घकालीन ऋण दिया जाए। 95 प्रतिशत आवश्यकता वाले ई0डब्ल्यू0एस0 व एल0आई0जी0 की 1 प्रतिशत आवासीय योजना भी भारत में नही चल रही है। इससे जिनके पास भूमि है उसी वर्ग को प्रोत्साहित कर भूमि अधिग्रहण व गरीब जनता की आवासीय समस्या एक साथ हल हो सकती है।
आवासीय कालोनी, रोड, औद्योगिक क्षेत्रों आदि के लिए ली जाने वाली भूमि के बदले मुआवजा कहने को तो बाजार भाव पर डिपटी कमिश्नर और प्रदेश सरकार के प्रतिनिधि तय करते हैं, पर भाव तय करते समय उस भूमि का मूल्यांकन भूमि की पूर्व स्थिति पर होता है न कि वर्तमान स्थिति पर। पूर्व स्थिति से अभिप्राय: भू उपयोग और भूमि पर पहुंचने की उपलब्ध्ता।
सरकार अपने द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के लिए भू-उपयोग बदलने के लिए स्वतंत्रा हैं, जबकि मुआवजे के समय भूमि का मूल्यांकन पूर्व निर्धरित भू उपयोग पर कृषि आधरित होता है। ऐसे ही कालोनी बनने से पहले अंदर के खेतों की जमीन का मूल्य बहुत कम होता है जबकि योजना बनने के बाद अंदर तक रोड जाने से थोड़ा खर्च करके भूमि का मूल्यांकन बढ़ जाता है। मेरा मानना है कि विकास के लिए अकेले किसानों के हित की बलि देना ठीक नहीं। विकास संबंधी सभी एजेन्सीज को भू-मूल्य पूर्व स्थिति पर नहीं बल्कि भावी योजना में होने वाले उपयोग मूल्य पर आधरित होना चाहिए। अर्थात विकास की भागीदारी का लाभ किसान को मिलना चाहिए। उदाहरण के तौर पर मधुबन योजना को ही लें, माना जा रहा है कि 7500 रुपए प्रति गज से प्लाटों का रेट निकाला जाएगा, जबकि भूमि का मुआवजा 1100 रुपए प्रति वर्ग की दर पर तय किया जा रहा है। अगर पूरी योजना का गणित लगाएं तो 1100 प्रति वर्ग गज के हिसाब से जमीन खरीदकर 50 प्रतिशत जमीन सड़क, पार्क और अन्य कार्यो के लिए छोड़ दी जाए तो 50 प्रतिशत प्लाट निकल आते हैं। 1000 गज जमीन 11 लाख की तथा 500 गज जमीन बिक्री के लिए उपलब्ध् हूई। इस पर विकास इसमें से जीडीए अपने कार्य करने तथा कोष बनाने के लिए 50 प्रतिशत लाभ ले ले तब भी किसानों को 1100+1025 लाभ का अवश्य मिलना चाहिए। यदि बिक्री मूल्य बढ़ता है तो और लाभ बढ़ने की संभावना प्रबल होती है। ओल्गा टेलिस बनाम मुंबई म्यूनिसिपल कार्पोरेशन ,1985 3 एस0सी0सी0 545, ए0आई0आर0 1986 एस0सी0 180 मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि जीवन यापन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। अत: किसानों का मौलिक अधिकार छीन कर अगर विकास प्राधिकरण लाभ कमाता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। अत: इस पर पुन: विचार करने की आवश्यकता है।
भूमि अधिग्रहण अधिनियम की आड़ में विकास प्राधिकरण किसानों की भूमि छीनकर और उचित मुआवजा न देकर संविधन के अनुच्छेद 300 ए का भी उल्लंघन कर रहा है।
मेरे विचार से जिस भूमि का भू-उपयोग व्यवसायिक अथवा आवासीय है और वह भू-अर्जन से बची है तो भू-स्वामी खुद उक्त भूमि का विकास करता है अथवा बिल्डर को बेचता या बिल्डर से साझेदारी करता है। उपरोक्त तीनों संभावनाओं में से एक का लाभ भू अर्जन की जाने वाले भू स्वामी को भी मिलना चाहिए। सरकार को इस योजना के तहत किसानों को मौका देना चाहिए कि अपनी भूमि के बदले उन्हें विकसित भूमि मिले और वे खुद निर्माण कार्य में आगे आएं या इस व्यवसाय से जुड़े लोगों से भागीदारी कर सकें। ऐसा नहीं है कि मै पहली बार या कोई नई बात कर रहा हूं पहले भी गाजियाबाद में डेवलपमेंट चार्ज लेकर 40 प्रतिशत प्लाट के रूप में भूमि किसानों को दे दी जाती थी। इसे भू-स्वामी अपनी दरों पर बेच सकता था। पूर्व मेयर दिनेश चंद गर्ग आज जिस भूमि पर रह रहे हैं वह भी लैंड पालिसी के अंतर्गत मिले प्लाट था जिसे भू-स्वामी से उन्होंने खरीदा। ऐसे अनेक उदाहरण हैं।
केवल अपनी आय बढ़ाने के लिए जीडीए व सरकार ने धीरे-धीरे उक्त पालिसी को बदल दिया। यह कतई उचित नहीं है। यदि गौर से देखा जाए तो आवासीय व्यवसाय में 85 प्रतिशत भूमि का योगदार का भूमि मालिक का होता है। जबकि 15 प्रतिशत योगदान ही केवल पंजी व योजना पक्ष का होता है। जबकि लाभ के बंटवारे में भूस्वामी को केवल भूमि का बाजार मूल्य मिलता है। और लाभ 15 प्रतिशत का योगदान करने वाले योजना पक्ष को मिलता है। मेरा सुझाव है निम्न आय वर्ग व अत्याधिक गरीब वर्ग के लिए इस क्षेत्रा में अलग से सरल नियम बनाकर सीधे किसानों को ही इस क्षेत्रा में प्रोत्साहन किया जा सकता है। इस विषय में मेरा सुझाव है कि शहरी सीमा के 5-10 किलोमीटर के क्षेत्रो में यदि कोई किसान अपनी भूमि पर 40 गज से 80 गज तक के मकान बनाता है तो उसके नक्शे बिना लैंड यूज देखे ;विशेष परिस्थितियों को छोड़कर सामान्यता पास किए जाएगा। और शुल्क न लिया जाए। बिजली की व्यवस्था में सामान्य शुल्क लिया जाए। इ0डब्ल्यू0एस0 व एलआईजी मकानों व प्लाटों पर संपत्ति को गिरवी रखकर बिना आय-प्रमाण पत्र के 7 प्रतिशत के दीर्घकालीन ऋण दिया जाए। 95 प्रतिशत आवश्यकता वाले ई0डब्ल्यू0एस0 व एल0आई0जी0 की 1 प्रतिशत आवासीय योजना भी भारत में नही चल रही है। इससे जिनके पास भूमि है उसी वर्ग को प्रोत्साहित कर भूमि अधिग्रहण व गरीब जनता की आवासीय समस्या एक साथ हल हो सकती है।
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