Tuesday, September 6, 2016

किसानों को पार्टनर बनाए सरकार


मेरे विचार से जिस भूमि का भू-उपयोग व्यवसायिक अथवा आवासीय है और वह भू-अर्जन से बची है तो भू-स्वामी खुद उक्त भूमि का विकास करता है अथवा बिल्डर को बेंचता या बिल्डर से साझेदारी करता है, उपरोक्त तीनों संभावनाओं में से एक का लाभ भू अर्जन की जाने वाले भू स्वामी को भी मिलना चाहिए।
आवासीय कालोनी, रोड, औद्योगिक क्षेत्रों आदि के लिए ली जाने वाली भूमि के बदले मुआवजा कहने को तो बाजार भाव पर डिपटी कमिश्नर और प्रदेश सरकार के प्रतिनिधि तय करते हैं, पर भाव तय करते समय उस भूमि का मूल्यांकन भूमि की पूर्व स्थिति पर होता है न कि वर्तमान स्थिति पर। पूर्व स्थिति से अभिप्राय: भू उपयोग और भूमि पर पहुंचने की उपलब्ध्ता।
सरकार अपने द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के लिए भू-उपयोग बदलने के लिए स्वतंत्रा हैं, जबकि मुआवजे के समय भूमि का मूल्यांकन पूर्व निर्धरित भू उपयोग पर कृषि आधरित होता है। ऐसे ही कालोनी बनने से पहले अंदर के खेतों की जमीन का मूल्य बहुत कम होता है जबकि योजना बनने के बाद अंदर तक रोड जाने से थोड़ा खर्च करके भूमि का मूल्यांकन बढ़ जाता है। मेरा मानना है कि विकास के लिए अकेले किसानों के हित की बलि देना ठीक नहीं। विकास संबंधी सभी एजेन्सीज को भू-मूल्य पूर्व स्थिति पर नहीं बल्कि भावी योजना में होने वाले उपयोग मूल्य पर आधरित होना चाहिए। अर्थात विकास की भागीदारी का लाभ किसान को मिलना चाहिए। उदाहरण के तौर पर मधुबन योजना को ही लें, माना जा रहा है कि 7500 रुपए प्रति गज से प्लाटों का रेट निकाला जाएगा, जबकि भूमि का मुआवजा 1100 रुपए प्रति वर्ग की दर पर तय किया जा रहा है। अगर पूरी योजना का गणित लगाएं तो 1100 प्रति वर्ग गज के हिसाब से जमीन खरीदकर 50 प्रतिशत जमीन सड़क, पार्क और अन्य कार्यो के लिए छोड़ दी जाए तो 50 प्रतिशत प्लाट निकल आते हैं। 1000 गज जमीन 11 लाख की तथा 500 गज जमीन बिक्री के लिए उपलब्ध् हूई। इस पर विकास इसमें से जीडीए अपने कार्य करने तथा कोष बनाने के लिए 50 प्रतिशत लाभ ले ले तब भी किसानों को 1100+1025 लाभ का अवश्य मिलना चाहिए। यदि बिक्री मूल्य बढ़ता है तो और लाभ बढ़ने की संभावना प्रबल होती है। ओल्गा टेलिस बनाम मुंबई म्यूनिसिपल कार्पोरेशन ,1985 3 एस0सी0सी0 545, ए0आई0आर0 1986 एस0सी0 180 मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि जीवन यापन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। अत: किसानों का मौलिक अधिकार छीन कर अगर विकास प्राधिकरण लाभ कमाता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। अत: इस पर पुन: विचार करने की आवश्यकता है।
भूमि अधिग्रहण अधिनियम की आड़ में विकास प्राधिकरण किसानों की भूमि छीनकर और उचित मुआवजा न देकर संविधन के अनुच्छेद 300 ए का भी उल्लंघन कर रहा है।
मेरे विचार से जिस भूमि का भू-उपयोग व्यवसायिक अथवा आवासीय है और वह भू-अर्जन से बची है तो भू-स्वामी खुद उक्त भूमि का विकास करता है अथवा बिल्डर को बेचता या बिल्डर से साझेदारी करता है। उपरोक्त तीनों संभावनाओं में से एक का लाभ भू अर्जन की जाने वाले भू स्वामी को भी मिलना चाहिए। सरकार को इस योजना के तहत किसानों को मौका देना चाहिए कि अपनी भूमि के बदले उन्हें विकसित भूमि मिले और वे खुद निर्माण कार्य में आगे आएं या इस व्यवसाय से जुड़े लोगों से भागीदारी कर सकें। ऐसा नहीं है कि मै पहली बार या कोई नई बात कर रहा हूं पहले भी गाजियाबाद में डेवलपमेंट चार्ज लेकर 40 प्रतिशत प्लाट के रूप में भूमि किसानों को दे दी जाती थी। इसे भू-स्वामी अपनी दरों पर बेच सकता था। पूर्व मेयर दिनेश चंद गर्ग आज जिस भूमि पर रह रहे हैं वह भी लैंड पालिसी के अंतर्गत मिले प्लाट था जिसे भू-स्वामी से उन्होंने खरीदा। ऐसे अनेक उदाहरण हैं।
केवल अपनी आय बढ़ाने के लिए जीडीए व सरकार ने धीरे-धीरे उक्त पालिसी को बदल दिया। यह कतई उचित नहीं है। यदि गौर से देखा जाए तो आवासीय व्यवसाय में 85 प्रतिशत भूमि का योगदार का भूमि मालिक का होता है। जबकि 15 प्रतिशत योगदान ही केवल पंजी व योजना पक्ष का होता है। जबकि लाभ के बंटवारे में भूस्वामी को केवल भूमि का बाजार मूल्य मिलता है। और लाभ 15 प्रतिशत का योगदान करने वाले योजना पक्ष को मिलता है। मेरा सुझाव है निम्न आय वर्ग व अत्याधिक गरीब वर्ग के लिए इस क्षेत्रा में अलग से सरल नियम बनाकर सीधे किसानों को ही इस क्षेत्रा में प्रोत्साहन किया जा सकता है। इस विषय में मेरा सुझाव है कि शहरी सीमा के 5-10 किलोमीटर के क्षेत्रो में यदि कोई किसान अपनी भूमि पर 40 गज से 80 गज तक के मकान बनाता है तो उसके नक्शे बिना लैंड यूज देखे ;विशेष परिस्थितियों को छोड़कर सामान्यता पास किए जाएगा। और शुल्क न लिया जाए। बिजली की व्यवस्था में सामान्य शुल्क लिया जाए। इ0डब्ल्यू0एस0 व एलआईजी मकानों व प्लाटों पर संपत्ति को गिरवी रखकर बिना आय-प्रमाण पत्र के 7 प्रतिशत के दीर्घकालीन ऋण दिया जाए। 95 प्रतिशत आवश्यकता वाले ई0डब्ल्यू0एस0 व एल0आई0जी0 की 1 प्रतिशत आवासीय योजना भी भारत में नही चल रही है। इससे जिनके पास भूमि है उसी वर्ग को प्रोत्साहित कर भूमि अधिग्रहण व गरीब जनता की आवासीय समस्या एक साथ हल हो सकती है।

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