देश की जनसंख्या तेजी से साथ बढ़ती जा रही है। इसके साथ ही आवास की समस्या भी एक प्रमुख समस्या के रूप में हम सभी के सामने है। बाजार में जमीन भी है और मकान भी हैं। लेकिन वास्तविकता यह भी है कि आम आबादी जिसे हम निर्धन भी कहते हैं कि आज भी स्वयं का एक कमरे या दो कमरे के मकान से वंचित है। इसका कारण यही है कि मकानों और फ़्लैटों की कीमतें आसमान छू रही है। अधिकांश बिल्डर्स जो मकान बना रहे हैं वे आम आदमी या गरीब वर्ग के लिए नहीं हैं। जिनके पास 20 लाख से अधिक की रकम हैं वे तो कोई फ़्लैट या मकान खरीद सकते हैं लेकिन आम आदमी के पास इतना धन कहां आता है? इसी प्रकार लोन लेने में भी आम आदमी को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अगर किसी आम आदमी को मकान या फ़्लैट चाहिए तो उसके पास सर्वप्रथम बैंक स्टेटमेंट हो, पैन कार्ड हो, और आयकर संबंधी कागजात तथा आय संबंधी प्रमाणपत्र। हमारी केन्द्र और राज्य सरकारों ने कभी इस दिशा में ध्यान नहीं दिया। आम आदमी जिसे हम श्रमिक वर्ग भी कह सकते हैं या जो ई.डब्ल्यू.एस वर्ग का हो के पास बैंकों से लोन लेने संबंधित कागजात नहीं होते हैं। अगर हैं भी तो आधे अधूरे । जब उसके पास ये कागजात ही नहीं हैं तो उसे मकान आखिर मिलेगा तो कैसे? सवाल यही है कि जब तक आम आदमी को रहने के लिए एक या दो कमरे का मकान नहीं मिल जाता तब तक विकसित उत्तर प्रदेश या विकसित भारत की कल्पना नही की जा सकती है।
वास्तविकता यह भी है कि आम आदमियों और ईडब्लूएस वर्ग के मकान बनाने और उसे सुलभ कराने की कोई प्रभावकारी योजना केन्द्र और राज्य स्तर पर नहीं हैं जबकि देश की अधिकांश आबादी गरीब है और विभिन्न साधनों से वंचित हैं । मै कहना चाहूँगा कि राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 24 के बाई पास पर कई किलोमीटर की लंबी कालोनियां की श्रृंखला और बसा दी गई है। दुख की बात यह है कि इन कालोनियों में सीवर और पानी जैसी अनेका-अनेक आवश्कताओं की कमी देखी जा सकती है । इन कालोनियों मे रहने वाले लोगों को कोई लोन नहीं मिलता है। मूलभूत सुविधाओं का अभाव है इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। इन कालोनियों के निवासियों को आखिर मूलभूत सुविधऐं कौन देगा? कौन उनके लिए पार्क बनवाएगा और कौन उनके लिए अन्य सुविधएं देगा? इस पर समस्त राजनीतिक दल चुप है।
अब मैं बातें करता हूँ सरकारी नियमो की। सरकार आज गरीबों याने ईडब्ल्यूएस वर्ग के मकानों के लिए भी कारपार्किंग की जगह छोडने की माँग करती है, ई.डब्ल्यू.एस वर्ग के मकानों के लिए क्या कार पाकिंग एक आवश्यकता है? एक आम आदमी अपने रहने के लिए ठीक ठाक मकान की कल्पना करता है। सबसे पहले उसकी इस कल्पना को साकार किया जाना चाहिए। अगर सरकार दिशा में अपने नियमो में संशोधन कर ले तो आम आदमी को मकान सस्ते दरों पर कुछ प्राईवेट बिल्डर भी उपलब्ध करा सकते हैं। तीन से पांच लाख रुपए में शानदार मकान गरीबों के लिए बनाये जा सकते हैं।
इसके लिए एफ0ए0आर0 के अंदर कोई छूट न देकर 200 यूनिट से प्रति एकड़ 400 से 500 प्रति हेक्टेयर की छूट दी जानी चाहिए। इसके तहत कम पूंजी वाला व्यकित जो आज किराया दे रहा है रहने के लिए उसे स्वयं का अपना मकान मिल सकता है। इस राशि को वह किश्त के रूप में देकर स्वयं मकान का मालिक बन सकता है और गरीब बस्तियों मे रहने वाले लोग शानदार मकानों में रह सकते हैं। कई बिल्डर इस दिशा में काम करना चाहते हैं लेकिन सरकार को अपने नियमों और व्यवस्था तंत्र में एक विकसित और विकासोन्मुख भावना का परिचय देना होगा।
अब मैं बात करता हू गाजियाबाद की। गाजियाबाद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का हिस्सा है। यह दिल्ली की सीमा से लगा है लेकिन यहाँ पर नोएडा और गुडगाँव जैसी सुविधाओं का अभाव है। इस ओर न तो केन्द्र और न ही उत्तर प्रदेश सरकार ने ध्यान दिया है । जितने भी राष्ट्रीय राजमार्ग दिल्ली से होकर गाजियाबाद के रास्ते निकलते हैं उन में 100 प्रतिशत उत्तराखण्ड का यातायात संचालित होता हैं। नैनीताल, मसूरी और हरिद्वार जाने के लिए गाजियाबाद के गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग से ही होकर किसी वाहन को गुजरना पडता है। इन्ही मार्ग से 90 प्रतिशत उत्तर प्रदेश का भी यातायात संचालित होता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 24, 54 और 91 इसका उदाहरण हैं। इन मार्गो की सबसे ज्यादा अनदेखी की गई है। यहाँ पर दिल्ली की आबादी की भी बसावत है।
इन मार्गो की उपेक्षा का ही परिणाम है कि इन मार्गो पर आने वाले क्षेत्रों में और बस्तियों में नागरिक सुविधाओं का अभाव है। मैं यह भी स्पष्ट कर दूँ कि एनसीआर बोर्ड के पास धन की कमी नही है लेकिन उसका सही उपयोग इन मार्गो और क्षेत्रो में नहीं हो पा रहा है। नोएडा और गुडगाँव जैसा सौंदर्य मेट्रो और अन्य सुविधाओं का इस क्षेत्रों में अभाव हैं। इसके लिए मेरा सुझाव यह भी है कि राज्य सरकार को जो राजस्व प्राप्त होता है उसका एक निशिचत हिस्सा इस क्षेत्रो के विकास पर खर्च होना चाहिए। इसी प्रकार केन्द्र सरकार को भी जो टैक्स प्राप्त होता है उसका भी एक हिस्सा इस क्षेत्रों के विकास कार्य में किया जाए क्योंकि गाजियाबाद से ही तीन राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरते हैं जो उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य राज्यों को जोड़ते हैं। आखिर गाजियाबाद सबसे ज्यादा राजस्व उत्तर प्रदेश सरकार के खजाने में जमा करता है। यहां सर्वाधिक उद्योग हैं। यहां के व्यापारियों और उद्योगपतियों के माध्यम से राज्य सरकार को सबसे अधिक राजस्व प्राप्त होता है। सरकार दावा तो करती है कि यहा के लोगों का आय बढ़ रही है लेकिन संसाधनो का सही उपयोग नहीं हो पा रहा है। इस क्षेत्रों के विकास के लिए कोष का आवंटन सही तरीके से हो चाहिए।
अब, मैं बात करता हूँ भूमि अधिग्रहण की। किसानों की जो जमीन अधिग्रहीत की जाती है वह बाजार मूल्य पर किसानों के साथ धोखा है। अगर सरकार 15 प्रतिशत किसी भूमि पर खर्च कर दे तो उसकी कीमत 2 से तीन गुना हो जाती है। इसी प्रकार सरकार जो भूमि अधिग्रहीत करती है उसे कई -कई गुना ज्यादा दाम पर बिल्डरों को या अन्य संस्थाओं को देती है। कम कीमत पर जमीन लेकर सरकार द्वारा ज्यादा दामों पर बेचने के मामले में ध्यान देना होगा कि सरकार कोई व्यापारी नहीं है। सरकार को निश्चित रकम जुटाने का अधिकार है लेकिन जमीन पर व्यापार करने का हक नहीं है लेकिन ऐसा हो रहा है। सरकार जमीन के मामले में आज व्यापारी हो गई है। किसी भी जमीन का विकास शुल्क नाम मात्र का ही होता है। सरकार विकास शुल्क के नाम पर क्यों ज्यादा दामों में प्लाट बेचती है? इसी प्रकार किसानों की जो जमीन अधिग्रहीत की जाती है उसका 40 प्रतिशत हिस्सा पाने का हकदार भी किसान होता है लेकिन किसान इन तथ्यों पर ध्यान ही नहीं देते हैं। जिन सोसायटियों और किसानों की जमीन अधिग्रहीत होती है उनका 40 से 50 प्रतिशत मुआवजे के रूप में जमीन दी जाती है विकास शुल्क लेकर।
अंत में हिन्ट के पाठकों के लिए मैं यही कहना चाहूंगा कि गरीबों के लिए मकान देने का लक्ष्य अगर केन्द्र और राज्य सरकार का है तो उसके लिए वातावरण बनाया जाना चाहिए। सभी को इस दिशा में राजनीजिक हितों से ऊपर उठकर आम आदमी के बारे में सोचना होगा। नियमों और कानूनों में संसोधन होना चाहिए तथा इस नियमों की जानकारी वृहत्त स्तर पर सार्वजनिक की जानी चाहिए। इसके अलावा गाजियाबाद के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय राजधनी क्षेत्रों की मूल भावना को लागू करने के लिए सामूहिक प्रयास हर स्तर पर होने चाहिए। सभी राजनीतिक दलों को गाजियाबाद के विकास की दिशा में एकमत होना होगा तभी केंद्र और राज्य सरकार को उसके लक्ष्य के अनुक्रम में मदद की जा सकती है। जो तीन राष्ट्रीय राजमार्ग दिल्ली से लेकर गुजरते हैं उनके विकास और उन मार्गो के आसपास की आबादी पर ध्यान देना जरूरी है। केंद्र सरकार प्रत्यक्ष करों के आधर पर गाजियाबाद के लिए एक कोष स्थापित कर सकती है जिससे एक जनपद का व्यापक स्तर पर विकास हो
वास्तविकता यह भी है कि आम आदमियों और ईडब्लूएस वर्ग के मकान बनाने और उसे सुलभ कराने की कोई प्रभावकारी योजना केन्द्र और राज्य स्तर पर नहीं हैं जबकि देश की अधिकांश आबादी गरीब है और विभिन्न साधनों से वंचित हैं । मै कहना चाहूँगा कि राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 24 के बाई पास पर कई किलोमीटर की लंबी कालोनियां की श्रृंखला और बसा दी गई है। दुख की बात यह है कि इन कालोनियों में सीवर और पानी जैसी अनेका-अनेक आवश्कताओं की कमी देखी जा सकती है । इन कालोनियों मे रहने वाले लोगों को कोई लोन नहीं मिलता है। मूलभूत सुविधाओं का अभाव है इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। इन कालोनियों के निवासियों को आखिर मूलभूत सुविधऐं कौन देगा? कौन उनके लिए पार्क बनवाएगा और कौन उनके लिए अन्य सुविधएं देगा? इस पर समस्त राजनीतिक दल चुप है।
अब मैं बातें करता हूँ सरकारी नियमो की। सरकार आज गरीबों याने ईडब्ल्यूएस वर्ग के मकानों के लिए भी कारपार्किंग की जगह छोडने की माँग करती है, ई.डब्ल्यू.एस वर्ग के मकानों के लिए क्या कार पाकिंग एक आवश्यकता है? एक आम आदमी अपने रहने के लिए ठीक ठाक मकान की कल्पना करता है। सबसे पहले उसकी इस कल्पना को साकार किया जाना चाहिए। अगर सरकार दिशा में अपने नियमो में संशोधन कर ले तो आम आदमी को मकान सस्ते दरों पर कुछ प्राईवेट बिल्डर भी उपलब्ध करा सकते हैं। तीन से पांच लाख रुपए में शानदार मकान गरीबों के लिए बनाये जा सकते हैं।
इसके लिए एफ0ए0आर0 के अंदर कोई छूट न देकर 200 यूनिट से प्रति एकड़ 400 से 500 प्रति हेक्टेयर की छूट दी जानी चाहिए। इसके तहत कम पूंजी वाला व्यकित जो आज किराया दे रहा है रहने के लिए उसे स्वयं का अपना मकान मिल सकता है। इस राशि को वह किश्त के रूप में देकर स्वयं मकान का मालिक बन सकता है और गरीब बस्तियों मे रहने वाले लोग शानदार मकानों में रह सकते हैं। कई बिल्डर इस दिशा में काम करना चाहते हैं लेकिन सरकार को अपने नियमों और व्यवस्था तंत्र में एक विकसित और विकासोन्मुख भावना का परिचय देना होगा।
अब मैं बात करता हू गाजियाबाद की। गाजियाबाद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का हिस्सा है। यह दिल्ली की सीमा से लगा है लेकिन यहाँ पर नोएडा और गुडगाँव जैसी सुविधाओं का अभाव है। इस ओर न तो केन्द्र और न ही उत्तर प्रदेश सरकार ने ध्यान दिया है । जितने भी राष्ट्रीय राजमार्ग दिल्ली से होकर गाजियाबाद के रास्ते निकलते हैं उन में 100 प्रतिशत उत्तराखण्ड का यातायात संचालित होता हैं। नैनीताल, मसूरी और हरिद्वार जाने के लिए गाजियाबाद के गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग से ही होकर किसी वाहन को गुजरना पडता है। इन्ही मार्ग से 90 प्रतिशत उत्तर प्रदेश का भी यातायात संचालित होता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 24, 54 और 91 इसका उदाहरण हैं। इन मार्गो की सबसे ज्यादा अनदेखी की गई है। यहाँ पर दिल्ली की आबादी की भी बसावत है।
इन मार्गो की उपेक्षा का ही परिणाम है कि इन मार्गो पर आने वाले क्षेत्रों में और बस्तियों में नागरिक सुविधाओं का अभाव है। मैं यह भी स्पष्ट कर दूँ कि एनसीआर बोर्ड के पास धन की कमी नही है लेकिन उसका सही उपयोग इन मार्गो और क्षेत्रो में नहीं हो पा रहा है। नोएडा और गुडगाँव जैसा सौंदर्य मेट्रो और अन्य सुविधाओं का इस क्षेत्रों में अभाव हैं। इसके लिए मेरा सुझाव यह भी है कि राज्य सरकार को जो राजस्व प्राप्त होता है उसका एक निशिचत हिस्सा इस क्षेत्रो के विकास पर खर्च होना चाहिए। इसी प्रकार केन्द्र सरकार को भी जो टैक्स प्राप्त होता है उसका भी एक हिस्सा इस क्षेत्रों के विकास कार्य में किया जाए क्योंकि गाजियाबाद से ही तीन राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरते हैं जो उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य राज्यों को जोड़ते हैं। आखिर गाजियाबाद सबसे ज्यादा राजस्व उत्तर प्रदेश सरकार के खजाने में जमा करता है। यहां सर्वाधिक उद्योग हैं। यहां के व्यापारियों और उद्योगपतियों के माध्यम से राज्य सरकार को सबसे अधिक राजस्व प्राप्त होता है। सरकार दावा तो करती है कि यहा के लोगों का आय बढ़ रही है लेकिन संसाधनो का सही उपयोग नहीं हो पा रहा है। इस क्षेत्रों के विकास के लिए कोष का आवंटन सही तरीके से हो चाहिए।
अब, मैं बात करता हूँ भूमि अधिग्रहण की। किसानों की जो जमीन अधिग्रहीत की जाती है वह बाजार मूल्य पर किसानों के साथ धोखा है। अगर सरकार 15 प्रतिशत किसी भूमि पर खर्च कर दे तो उसकी कीमत 2 से तीन गुना हो जाती है। इसी प्रकार सरकार जो भूमि अधिग्रहीत करती है उसे कई -कई गुना ज्यादा दाम पर बिल्डरों को या अन्य संस्थाओं को देती है। कम कीमत पर जमीन लेकर सरकार द्वारा ज्यादा दामों पर बेचने के मामले में ध्यान देना होगा कि सरकार कोई व्यापारी नहीं है। सरकार को निश्चित रकम जुटाने का अधिकार है लेकिन जमीन पर व्यापार करने का हक नहीं है लेकिन ऐसा हो रहा है। सरकार जमीन के मामले में आज व्यापारी हो गई है। किसी भी जमीन का विकास शुल्क नाम मात्र का ही होता है। सरकार विकास शुल्क के नाम पर क्यों ज्यादा दामों में प्लाट बेचती है? इसी प्रकार किसानों की जो जमीन अधिग्रहीत की जाती है उसका 40 प्रतिशत हिस्सा पाने का हकदार भी किसान होता है लेकिन किसान इन तथ्यों पर ध्यान ही नहीं देते हैं। जिन सोसायटियों और किसानों की जमीन अधिग्रहीत होती है उनका 40 से 50 प्रतिशत मुआवजे के रूप में जमीन दी जाती है विकास शुल्क लेकर।
अंत में हिन्ट के पाठकों के लिए मैं यही कहना चाहूंगा कि गरीबों के लिए मकान देने का लक्ष्य अगर केन्द्र और राज्य सरकार का है तो उसके लिए वातावरण बनाया जाना चाहिए। सभी को इस दिशा में राजनीजिक हितों से ऊपर उठकर आम आदमी के बारे में सोचना होगा। नियमों और कानूनों में संसोधन होना चाहिए तथा इस नियमों की जानकारी वृहत्त स्तर पर सार्वजनिक की जानी चाहिए। इसके अलावा गाजियाबाद के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय राजधनी क्षेत्रों की मूल भावना को लागू करने के लिए सामूहिक प्रयास हर स्तर पर होने चाहिए। सभी राजनीतिक दलों को गाजियाबाद के विकास की दिशा में एकमत होना होगा तभी केंद्र और राज्य सरकार को उसके लक्ष्य के अनुक्रम में मदद की जा सकती है। जो तीन राष्ट्रीय राजमार्ग दिल्ली से लेकर गुजरते हैं उनके विकास और उन मार्गो के आसपास की आबादी पर ध्यान देना जरूरी है। केंद्र सरकार प्रत्यक्ष करों के आधर पर गाजियाबाद के लिए एक कोष स्थापित कर सकती है जिससे एक जनपद का व्यापक स्तर पर विकास हो