साईं बाबा के बारे में बहुत भ्रम फैला है। वे हिन्दू थे या मुसलमान? क्या वे कबीर, नामदेव, पांडुरंग आदि के अवतार थे। कुछ लोग कहते हैं कि वे शिव के अंश हैं और कुछ को उनमें दत्तात्रेय का अंश नजर आता है। अन्य लोग कहते हैं कि वे अक्कलकोट महाराज के अंश हैं। इसके विपरीत अब लोग मानने लगे हैं कि वे यवन देश के एक मुस्लिम फकीर थे। क्या सचमुच ऐसा था?
यदि हम आचार्य चतुरसेन का उपन्यास 'सोमनाथ' पढ़ें तो पता चलता है कि मुगल और अंग्रेजों के शासनकाल में ऐसा अक्सर होता था कि जासूसी या हिन्दू क्षेत्र की रैकी करने के लिए सूफी संतों के भेष में फकीरों की टोली को भेजा जाता था, जो गांव या शहर के बाहर डेरा डाल देती थी। इनका काम था सीमा पर डेरा डाल कर वहां के लोगों और राजाओं की ताकत का अंदाजा लगाना और प्रजा में विद्रोह भड़काना।
अक्सर सूफी संतों की मजार आपको शहर या गांव की सीमा पर मिलेगी, क्योंकि सीमा पर से टोह लेने में आसानी भी होती और खतरा भी नहीं रहता था। चूंकि हिन्दुओं के मन में प्राचीनकाल से संतों के प्रति श्रद्धा और विश्वास सिखाया गया है, तो वे किसी भी संत पर सवाल नहीं उठाते और उसे संदेह की दृष्टि से नहीं देखते थे। खासकर गांव की भोली-भाली जनता तो संतों की तरह कपड़े पहने लोगों पर सहज ही विश्वास कर उसके चरणों में झुक जाती है। ये कथित संत आजीवन यहीं रहकर एक तरह जासूसी का कार्य करते तो दूसरी ओर धर्म का काम।
साईं के विरोधी और कट्टर हिन्दुओं का तर्क है कि ऐसे कई सूफी संत हुए हैं जिन्होंने राम-कृष्ण की भक्ति के माध्यम से हिन्दुओं को धीरे-धीरे इस्लाम के प्रति श्रद्धावान बनाया और अंतत: उन्हें इस्लाम की ओर मोड़ दिया। आज भी ऐसे कई संत सक्रिय हैं। साईं बाबा भी इसी साजिश का एक हिस्सा है।
साईं के बारे में ऐसे लोगों का तर्क है कि साई अपना ज्यादातर वक्त मुस्लिम फकीरों के संग बिताते थे। वे कुछ महीनों तक अजमेर में भी रहे थे। साई पूर्णत: एक मुस्लिम फकीर थे और मुसलमानों की तरह ही उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन-यापन किया। आओ जानते हैं कि साईं विरोधियों का साईं के बारे में क्या है तर्क...
1. 'साई' शब्द फारसी का है जिसका अर्थ होता है 'संत'। उस काल में आमतौर पर भारत के पाकिस्तानी हिस्से में मुस्लिम संन्यासियों के लिए इस शब्द का प्रयोग होता था। शिर्डी में साईं सबसे पहले जिस मंदिर के बाहर आकर रुके थे उसके पुजारी ने उन्हें साईं कहकर ही संबोधित किया था। मंदिर के पुजारी को वे मुस्लिम फकीर ही नजर आए तभी तो उन्होंने उन्हें साईं कहकर पुकारा।
2. साईं ने यह कभी नहीं कहा कि 'सबका मालिक एक'। साईं सच्चरित्र के अध्याय 4, 5, 7 में इस बात का उल्लेख है कि वे जीवनभर सिर्फ 'अल्लाह मालिक है' यही बोलते रहे। कुछ लोगों ने उनको हिन्दू संत बनाने के लिए यह झूठ प्रचारित किया कि वे 'सबका मालिक एक है' भी बोलते थे। यदि वे एकता की बात करते थे, तो कभी यह क्यों नहीं कहा कि 'राम मालिक है' या 'भगवान मालिक है।'
3. कोई हिन्दू संत सिर पर कफन जैसा नहीं बांधता, ऐसा सिर्फ मुस्लिम फकीर ही बांधते हैं। जो पहनावा साईं का था, वह एक मुस्लिम फकीर का ही हो सकता है। हिन्दू धर्म में सिर पर सफेद कफन जैसा बांधना वर्जित है या तो जटा रखी जाती है या किसी भी प्रकार से सिर पर बाल नहीं होते।
4. साईं बाबा ने रहने के लिए मस्जिद का ही चयन क्यों किया? वहां और भी स्थान थे, लेकिन वे जिंदगीभर मस्जिद में ही रहे। मस्जिद के अलावा भी तो शिर्डी में कई और स्थान थे, जहां वे रह सकते थे। मस्जिद ही क्यों? भले ही मंदिर में न रहते, तो नीम के वृक्ष के नीचे एक कुटिया ही बना लेते। उनके भक्त तो इसमें उनकी मदद कर ही देते।
5. साईं सच्चरित्र के अनुसार साईं बाबा पूजा-पाठ, ध्यान, प्राणायाम और योग के बारे में लोगों से कहते थे कि इसे करने की कोई जरूरत नहीं है। उनके इस प्रवचन से पता चलता है कि वे हिन्दू धर्म विरोधी थे। साईं बाबा का मिशन था- लोगों में एकेश्वरवाद के प्रति विश्वास पैदा करना। उन्हें कर्मकांड, ज्योतिष आदि से दूर रखना।
6. मस्जिद से बर्तन मंगवाकर वे मौलवी से फातिहा पढ़ने के लिए कहते थे। इसके बाद ही भोजन की शुरुआत होती थी। उन्होंने कभी भी मस्जिद में गीता पाठ नहीं करवाया या भोजन कराने के पूर्व 'श्रीगणेश करो' ऐसा भी नहीं कहा। यदि वे हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात करते थे तो फिर दोनों ही धर्मों का सम्मान करना चाहिए था।
7. साईं को सभी यवन मानते थे। वे हिन्दुस्तान के नहीं, अफगानिस्तान के थे इसीलिए लोग उन्हें यवन का मुसलमान कहते थे। उनकी कद-काठी और डील-डौल यवनी ही था। साईं सच्चरित्र के अनुसार एक बार साईं ने इसका जिक्र भी किया था। जो भी लोग उनसे मिलने जाते थे उन्हें मुस्लिम फकीर ही मानते थे, लेकिन उनके सिर पर लगे चंदन को देखकर लोग भ्रमित हो जाते थे।
8. बाबा कोई धूनी नहीं रमाते थे जैसा कि नाथ पंथ के लोग करते हैं। ठंड से बचने के लिए बाबा एक स्थान पर लड़की इकट्ठी करके आग जलाते थे। उनके इस आग जलाने को लोगों ने धूनी रमाना समझा। चूंकि बाबा के पास जाने वाले लोग चाहते थे कि बाबा हमें कुछ न कुछ दे तो वे धूनी की राख को ही लोगों को प्रसाद के रूप में दे देते थे। यदि प्रसाद देना ही होता था तो वे अपने भक्तों को मांस मिला हुआ नमकीन चावल देते थे।
9. आजकल साईं बाबा को पुस्तकों और लेखों के माध्यम से ब्राह्मण कुल में जन्म लेने की कहानी को प्रचारित किया जा रहा है। क्या कोई ब्राह्मण मस्जिद में रहना पसंद करेगा?
10. साईं के समय दो बार अकाल पड़ा लेकिन साईं उस वक्त अपने भक्तों के लिए कुछ नहीं कर पाए। एक बार प्लेग फैला तो उन्होंने गांव के सभी लोगों को गांव से बाहर जाने के लिए मना किया, क्योंकि कोई जाकर वापस आएगा तो वह भी इस गांव में प्लेग फैला देता, तो उन्होंने लोगों में डर भर दिया कि जो भी मेरे द्वारा खींची गई लकीर के बाहर जाएगा, वह मर जाएगा। इस डर के कारण भोली-भाली जनता गांव से बाहर नहीं गई और लोगों ने इसे चमत्कार के रूप में प्रचारित किया कि साईं ने गांव की प्लेग से रक्षा की। प्लेग उनके गांव में नहीं आ सका। साईं के पास कई ऐसे लोग आते जाते थे, जो उन्हें बाहर की दुनिया का हालचाल बता देते थे।
11. साईं का जन्म 1830 में हुआ, पर इन्होंने आजादी की लड़ाई में भारतीयों की मदद करना जरूरी नहीं समझा, क्योंकि वे भारतीय नहीं थे। वे अंग्रेजों के जासूस थे। अफगानिस्तानी पंडारियों के समाज से थे और उन्हीं के साथ उनके पिता भारत आए थे। उनके पिता का नाम बहरुद्दीन था और उनका नाम चांद मियां।
12. साईं के विरोधी साईं चरित में उल्लेखित घटना का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि 1936 में हरि विनायक साठे (एक साईं भक्त) ने अपने साक्षात्कार में नरसिम्हा स्वामी को बोला था कि बाबा किसी भी हिन्दू देवी-देवता या स्वयं की पूजा मस्जिद में नहीं करने देते थे, न ही मस्जिद में किसी देवता के चित्र वगैरह लगाने देते।
एक बार उन्होंने शिवरात्रि के अवसर पर बाबा से पूछा कि वे बाबा की पूजा महादेव या शिव की तरह कर सकते हैं? तो बाबा ने साफ इंकार कर दिया, क्योंकि वे मस्जिद में किसी भी तरह के हिन्दू तौर-तरीके का विरोध करते थे। फिर भी साठे साहेब और मेघा रात में फूल, बेलपत्र, चंदन लेकर मस्जिद की सीढ़ियों पर बैठकर चुपचाप पूजा करने लगे। तब तात्या पाटिल ने उन्हें देखा तो पूजा करने के लिए मना किया। उसी वक्त साईं की नींद खुल गई और उन्होंने जोर-जोर से चिल्लाना और गालियां देना शरू कर दिया जिससे पूरा गांव इकट्ठा हो गया और उन्होंने साठे और मेघा को खूब फटकार लगाई।
13. साईं सच्चरित्र साईं भक्तों और शिर्डी साईं संस्थान द्वारा बताई गई साईं के बारे में सबसे उचित पुस्तक है। पुस्तक के पेज नंबर 17, 28, 29, 40, 58, 78, 120, 150, 174 और 183 पर साईं ने 'अल्लाह मालिक' बोला, ऐसा लिखा है। पूरी पुस्तक में साईं ने एक बार भी किसी हिन्दू देवी-देवता का नाम नहीं बोला और न ही कहीं 'सबका मालिक एक' बोला। साईं भक्त बताएं कि जो बात साईं ने अपने मुंह से कभी कही ही नहीं, उसे साईं के नाम पर क्यों प्रचारित किया जा रहा है?
14. साईं को राम से जोड़ने की साजिश : 12 अगस्त 1997 को गुलशन कुमार की हत्या के ठीक 6 महीने बाद 1998 में साईं नाम के एक नए भगवान का अवतरण हुआ। इसके कुछ समय बाद 28 मई 1999 में 'बीवी नंबर 1' फिल्म आई जिसमें साईं के साथ पहली बार राम को जोड़कर 'ॐ साईं राम' गाना बनाया था।
15. बाबा बाजार से खाद्य सामग्री में आटा, दाल, चावल, मिर्च, मसाला, मटन आदि सब मंगाते थे और इसके लिए वे किसी पर निर्भर नहीं रहे थे। भिक्षा मांगना तो उनका ढोंग था। बाबा के पास घोड़ा भी था। शिर्डी के अमीर हिन्दुओं ने उनके लिए सभी तरह की सुविधाएं जुटा दी थीं। उनके कहने पर ही कृष्णा माई गरीबों को भोजन करवाती थीं, मस्जिद में साफ-सफाई करती थीं और सभी तरह की देख-रेख का कार्य करती थीं।
16. साईं मेघा की ओर देखकर कहने लगे, 'तुम तो एक उच्च कुलीन ब्राह्मण हो और मैं बस निम्न जाति का यवन (मुसलमान) इसलिए तुम्हारी जाति भ्रष्ट हो जाएगी इसलिए तुम यहां से बाहर निकलो। -साई सच्चरित्र।-(अध्याय 28)
* एक एकादशी को उन्होंने पैसे देकर केलकोर को मांस खरीदने लाने को कहा। -साईं सच्चरित्र (अध्याय 38)
* बाबा ने एक ब्राह्मण को बलपूर्वक बिरयानी चखने को कहा। -साईं सच्चरित्र (अध्याय 38)
* साईं सच्चरित्र अनुसार साईं बाबा गुस्से में आते थे और गालियां भी बकते थे। ज्यादा क्रोधित होने पर वे अपने भक्तों को पीट भी देते थे। बाबा कभी पत्थर मारते और कभी गालियां देते। -पढ़ें 6, 10, 23 और 41 साईं सच्चरित्र अध्याय।
* बाबा ने स्वयं कभी उपवास नहीं किया और न ही उन्होंने किसी को करने दिया। साईं सच्चरित्र (अध्याय 32)
* 'मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो। मैं तो एक फकीर हूं, मुझे गंगाजल से क्या प्रयोजन? -साई सच्चरित्र (अध्याय 28)
क्या कहते है साईं विरोधी
साईं विरोधी कहते हैं कि साईं अफगानिस्तान का एक पिंडारी लुटेरा था। इसके लिए वे एक कहानी बताते हैं कि औरंगजेब की मौत के बाद मुगल साम्राज्य खत्म-सा हो गया था केवल दिल्ली उनके अधीन थी। मराठों के वीर सपूतों ने एक तरह से हिन्दू साम्राज्य की नींव रख ही दी थी, ऐसे समय में मराठाओं को बदनाम करके उनके इलाकों में लूटपाट करने का काम ये पिंडारी करते थे।
जब अंग्रेज आए तो उन्होंने पिंडारियों को मार-मारकर खत्म करना शुरू किया। इस खात्मे के अभियान के चलते कई पिंडारी अंग्रेजों के जासूस बन गए थे।
साईं के विरोधी कहते हैं कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना में 500 पिंडारी अफगान पठान सैनिक थे। उनमें से कुछ सैनिकों को अंग्रेजों ने रिश्वत देकर मिला लिया था। उन्होंने ही झांसी की रानी के किले के राज अंग्रेजों को बताए थे। युद्ध के मैदान से रानी जिस रास्ते पर घोड़े के साथ निकल पड़ीं, उसका रास्ता इन्हीं पिंडारी पठानों ने अंग्रेजों को बताया। अंत में पीछा करने वाले अंग्रेजों के साथ 5 पिंडारी पठान भी थे। उनमें से एक शिर्डी के कथित साईं बाबा के पिता थे जिसे बाद में झांसी छोड़कर महाराष्ट्र में छिपना पड़ा था। उसका नाम था बहरुद्दीन। उसी पिंडारी पठान भगोड़े सैनिक का बेटा यह शिर्डी का साईं है, जो वेश्या से पैदा हुआ और और जिसका नाम चांद मियां था।
1857 के दौरान हिन्दुस्तान में हिन्दू और मुसलमानों के बीच अंग्रेजों ने फूट डालने की नीति के तहत कार्य करना शुरू कर दिया था। इस क्रांति के असफल होने का कारण यही था कि कुछ हिन्दू और मुसलमान अंग्रेजों की चाल में आकर उनके लिए काम करते थे। बंगाल में भी हिन्दू-मुस्लिम संतों के बीच फूट डालने के कार्य को अंजाम दिया गया। इस दौर में कट्टर मुसलमान और पाकिस्तान का सपना देखने वाले मुसलमान अंग्रेजों के साथ थे।
साईं के पिता जो एक पिंडारी ही थे, उनका मुख्य काम था अफगानिस्तान से भारत के राज्यों में लूटपाट करना। एक बार लूटपाट करते-करते वे महाराष्ट्र के अहमदनगर पहुंचे, जहां वे एक वेश्या के घर में रुक गए। फिर वे उसी के पास रहने लगे। कुछ समय बाद उस वेश्या से उन्हें एक लड़का और एक लड़की पैदा हुई। लड़के का नाम उन्होंने चांद मियां रखा। लड़के को लेकर वे अफगानिस्तान चले गए। लड़की को वेश्या के पास ही छोड़ गए। अफगानिस्तान उस काल में इस्लामिक ट्रेनिंग सेंटर था, जहां लूटपाट, जिहाद और धर्मांतरण करने के तरीके सिखाए जाते थे।
उस समय अंग्रेज पिंडारियों की जबरदस्त धरपकड़ कर रहे थे इसलिए बहरुद्दीन भेस बदलकर लूटपाट करता और उसने अपने संदेशवाहक के लिए अपने बेटे चांद मियां (साईं) को भी ट्रेंड कर दिया था। चांद मियां चादर फैलाकर भीख मांगता था। चांद मियां चादर पर यहां के हाल लिख देता था और उसे नीचे से सिलकर अफगानिस्तान भेज देता था। इससे जिहादियों को मराठाओं और अंग्रेजों की गतिविधि के बारे में पता चल जाता था।
यह साईं अफगानिस्तान का एक पिंडारी था जिसे लोग यवनी कहकर पुकारते थे। यह पहले हिन्दुओं के गांव में फकीरों के भेष में रहकर चोरी-चकारी करने के लिए कुख्यात था। यह हरे रंग की चादर फैलाकर भीख मांगता था और उसे काबुल भेज देता था। किसी पीर की मजार पर चढ़ाने के लिए उसी चादर के भीतर वह मराठा फौज और हिन्दू धनवानों के बारे में सूचनाएं अन्य पिंडारियों को भेजता था ताकि वे सेंधमारी कर सकें। इसकी चादर एक बार एक अंग्रेज ने पकड़ ली थी और उस पर लिखी गुप्त सुचनाओं को जान लिया था।
1857 की क्रांति का समय अंग्रेजों के लिए विकट समय था। ऐसे में चांद मियां अंग्रेजों के हत्थे चढ़ गए। अहमदनगर में पहली बार साईं की फोटो ली गई थी। अपराधियों की पहले भी फोटो ली जाती थी।
यही चांद मियां 8 साल बाद जेल से छुटकर कुछ दिन बाद एक बारात के माध्यम से शिर्डी पंहुचा और वहां के सुलेमानी लोगों से मिला जिनका असली काम था गैर-मुसलमानों के बीच रहकर चुपचाप इस्लाम को बढ़ाना।
इस मुलाकात के बाद साईं पुन: बारातियों के साथ चले गए। कुछ दिन बाद चांद मियां शिर्डी पधारे और यहीं उन्होंने अल-तकिया का ज्ञान लिया। मस्जिद को जान-बूझकर एक हिन्दू नाम दिया गया और उसके वहां ठहराने का पूरा प्रबंध सुलेमानी मुसलमानों ने किया।
एक षड्यंत्र के तहत चांद मियां को चमत्कारिक फकीर के रूप में प्रचारित किया गया और गांव की भोली-भाली हिन्दू जनता उसके झांसे में आने लगी। चांद मियां कई तरह के जादू-टोने और जड़ी-बूटियों का जानकार था इसलिए धीरे-धीरे गांव में लोग उसको मानने लगे। बाद में मंडलियों द्वारा उसके चमत्कारों का मुंबई में भी प्रचार-प्रसार किया गया जिसके चलते धनवान लोग भी उसके संपर्क में आने लगे।
साईं ने हिन्दू-मुस्लिम एकता की बातें करके मराठाओं को उनके ही असली दुश्मनों से एकता निभाने का पाठ पढ़ाया। यह मराठाओं की शक्ति को कमजोर करने का षड्यंत्र था। सिर्फ साईं ही नहीं, ऐसे कई ढोंगी संत उस काल में यही कार्य पूरे महाराष्ट्र में कर रहे थे। मराठाओं की शक्ति से सभी भयभीत हो गए थे तो उन्होंने 'छल' का उपयोग शुरू कर दिया था।
पर पीछे ही पीछे साईं का असली मकसद था लोगों को इस्लाम की ओर बढ़ाना, इसका एक उदाहरण साईं सच्चरित्र में है कि साईं के पास एक पोलिस वाला आता है जिसे साईं मार-मार भगाने की बात कहता है। अब असल में हुआ यह कि एक पंडितजी ने अपने पुत्र को शिक्षा दिलवाने के लिए साईं को सौंप दिया था लेकिन साईं ने उसका खत्ना कर दिया।
जब पंडितजी को पता चला तो उन्होंने कोतवाली में रिपोर्ट कर दी। साईं को पकड़ने के लिए एक पुलिस वाला भी आया जिसे साईं ने मारकर भगाने की बात कही थी। उस वक्त साईं छुपकर भागने का प्रयास भी करते हैं लेकिन पुलिस वाला उसका फोटो खींच लेता है। साईं का जो बुर्का पहने वाला फोटो है, वह उसी दौरान का है।
साईं बाबा कौन थे सवाल यह नहीं है लेकिन यहां यह कहना जरूरी है कि साईं बाबा हिन्दू धर्म के विरोधी नहीं थे। उन्होंने सभी धर्मों के क्रियाकांड और पाखंड का विरोध किया था। से सच्चे अर्थों में एक वेदांती थे, जो कुरितियों और धार्मिक कट्टरपन के खिलाफ थे।
फेसबुक पर साईं के विरोधियों के कई पेज बने हुए हैं जिसमें साईं बाबा के बारे में आपत्तिजनक बातें और फोटो मिल जाएंगे। साईं विरोधियों की इस कहानी में कितनी सच्चाई है यह कहना मुश्किल है, हालांकि इस काहानी का कोई आधार नहीं है, क्योंकि उन्होंने साईं सच्चरित्र की जिन बातों का उल्लेख किया है उसे संदर्भ के साथ पढ़ने पर ही इसका खुलासा होगा। उन्होंने संदर्भ हटाकर इस तरह की बातें प्रचारित कीं जिसके चलते लोगों में भ्रम फैल रहा है। इसलिए यहां यही कहना होगा कि जो लोग साईं बाबा के बारे में कम जानकारी रखते हैं उन्हें साई सच्चरित्र और साईं लीला पढ़ना चाहिए।
जब अंग्रेज आए तो उन्होंने पिंडारियों को मार-मारकर खत्म करना शुरू किया। इस खात्मे के अभियान के चलते कई पिंडारी अंग्रेजों के जासूस बन गए थे।
साईं के विरोधी कहते हैं कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना में 500 पिंडारी अफगान पठान सैनिक थे। उनमें से कुछ सैनिकों को अंग्रेजों ने रिश्वत देकर मिला लिया था। उन्होंने ही झांसी की रानी के किले के राज अंग्रेजों को बताए थे। युद्ध के मैदान से रानी जिस रास्ते पर घोड़े के साथ निकल पड़ीं, उसका रास्ता इन्हीं पिंडारी पठानों ने अंग्रेजों को बताया। अंत में पीछा करने वाले अंग्रेजों के साथ 5 पिंडारी पठान भी थे। उनमें से एक शिर्डी के कथित साईं बाबा के पिता थे जिसे बाद में झांसी छोड़कर महाराष्ट्र में छिपना पड़ा था। उसका नाम था बहरुद्दीन। उसी पिंडारी पठान भगोड़े सैनिक का बेटा यह शिर्डी का साईं है, जो वेश्या से पैदा हुआ और और जिसका नाम चांद मियां था।
1857 के दौरान हिन्दुस्तान में हिन्दू और मुसलमानों के बीच अंग्रेजों ने फूट डालने की नीति के तहत कार्य करना शुरू कर दिया था। इस क्रांति के असफल होने का कारण यही था कि कुछ हिन्दू और मुसलमान अंग्रेजों की चाल में आकर उनके लिए काम करते थे। बंगाल में भी हिन्दू-मुस्लिम संतों के बीच फूट डालने के कार्य को अंजाम दिया गया। इस दौर में कट्टर मुसलमान और पाकिस्तान का सपना देखने वाले मुसलमान अंग्रेजों के साथ थे।
साईं के पिता जो एक पिंडारी ही थे, उनका मुख्य काम था अफगानिस्तान से भारत के राज्यों में लूटपाट करना। एक बार लूटपाट करते-करते वे महाराष्ट्र के अहमदनगर पहुंचे, जहां वे एक वेश्या के घर में रुक गए। फिर वे उसी के पास रहने लगे। कुछ समय बाद उस वेश्या से उन्हें एक लड़का और एक लड़की पैदा हुई। लड़के का नाम उन्होंने चांद मियां रखा। लड़के को लेकर वे अफगानिस्तान चले गए। लड़की को वेश्या के पास ही छोड़ गए। अफगानिस्तान उस काल में इस्लामिक ट्रेनिंग सेंटर था, जहां लूटपाट, जिहाद और धर्मांतरण करने के तरीके सिखाए जाते थे।
उस समय अंग्रेज पिंडारियों की जबरदस्त धरपकड़ कर रहे थे इसलिए बहरुद्दीन भेस बदलकर लूटपाट करता और उसने अपने संदेशवाहक के लिए अपने बेटे चांद मियां (साईं) को भी ट्रेंड कर दिया था। चांद मियां चादर फैलाकर भीख मांगता था। चांद मियां चादर पर यहां के हाल लिख देता था और उसे नीचे से सिलकर अफगानिस्तान भेज देता था। इससे जिहादियों को मराठाओं और अंग्रेजों की गतिविधि के बारे में पता चल जाता था।
यह साईं अफगानिस्तान का एक पिंडारी था जिसे लोग यवनी कहकर पुकारते थे। यह पहले हिन्दुओं के गांव में फकीरों के भेष में रहकर चोरी-चकारी करने के लिए कुख्यात था। यह हरे रंग की चादर फैलाकर भीख मांगता था और उसे काबुल भेज देता था। किसी पीर की मजार पर चढ़ाने के लिए उसी चादर के भीतर वह मराठा फौज और हिन्दू धनवानों के बारे में सूचनाएं अन्य पिंडारियों को भेजता था ताकि वे सेंधमारी कर सकें। इसकी चादर एक बार एक अंग्रेज ने पकड़ ली थी और उस पर लिखी गुप्त सुचनाओं को जान लिया था।
1857 की क्रांति का समय अंग्रेजों के लिए विकट समय था। ऐसे में चांद मियां अंग्रेजों के हत्थे चढ़ गए। अहमदनगर में पहली बार साईं की फोटो ली गई थी। अपराधियों की पहले भी फोटो ली जाती थी।
यही चांद मियां 8 साल बाद जेल से छुटकर कुछ दिन बाद एक बारात के माध्यम से शिर्डी पंहुचा और वहां के सुलेमानी लोगों से मिला जिनका असली काम था गैर-मुसलमानों के बीच रहकर चुपचाप इस्लाम को बढ़ाना।
इस मुलाकात के बाद साईं पुन: बारातियों के साथ चले गए। कुछ दिन बाद चांद मियां शिर्डी पधारे और यहीं उन्होंने अल-तकिया का ज्ञान लिया। मस्जिद को जान-बूझकर एक हिन्दू नाम दिया गया और उसके वहां ठहराने का पूरा प्रबंध सुलेमानी मुसलमानों ने किया।
एक षड्यंत्र के तहत चांद मियां को चमत्कारिक फकीर के रूप में प्रचारित किया गया और गांव की भोली-भाली हिन्दू जनता उसके झांसे में आने लगी। चांद मियां कई तरह के जादू-टोने और जड़ी-बूटियों का जानकार था इसलिए धीरे-धीरे गांव में लोग उसको मानने लगे। बाद में मंडलियों द्वारा उसके चमत्कारों का मुंबई में भी प्रचार-प्रसार किया गया जिसके चलते धनवान लोग भी उसके संपर्क में आने लगे।
साईं ने हिन्दू-मुस्लिम एकता की बातें करके मराठाओं को उनके ही असली दुश्मनों से एकता निभाने का पाठ पढ़ाया। यह मराठाओं की शक्ति को कमजोर करने का षड्यंत्र था। सिर्फ साईं ही नहीं, ऐसे कई ढोंगी संत उस काल में यही कार्य पूरे महाराष्ट्र में कर रहे थे। मराठाओं की शक्ति से सभी भयभीत हो गए थे तो उन्होंने 'छल' का उपयोग शुरू कर दिया था।
पर पीछे ही पीछे साईं का असली मकसद था लोगों को इस्लाम की ओर बढ़ाना, इसका एक उदाहरण साईं सच्चरित्र में है कि साईं के पास एक पोलिस वाला आता है जिसे साईं मार-मार भगाने की बात कहता है। अब असल में हुआ यह कि एक पंडितजी ने अपने पुत्र को शिक्षा दिलवाने के लिए साईं को सौंप दिया था लेकिन साईं ने उसका खत्ना कर दिया।
जब पंडितजी को पता चला तो उन्होंने कोतवाली में रिपोर्ट कर दी। साईं को पकड़ने के लिए एक पुलिस वाला भी आया जिसे साईं ने मारकर भगाने की बात कही थी। उस वक्त साईं छुपकर भागने का प्रयास भी करते हैं लेकिन पुलिस वाला उसका फोटो खींच लेता है। साईं का जो बुर्का पहने वाला फोटो है, वह उसी दौरान का है।
साईं बाबा कौन थे सवाल यह नहीं है लेकिन यहां यह कहना जरूरी है कि साईं बाबा हिन्दू धर्म के विरोधी नहीं थे। उन्होंने सभी धर्मों के क्रियाकांड और पाखंड का विरोध किया था। से सच्चे अर्थों में एक वेदांती थे, जो कुरितियों और धार्मिक कट्टरपन के खिलाफ थे।
फेसबुक पर साईं के विरोधियों के कई पेज बने हुए हैं जिसमें साईं बाबा के बारे में आपत्तिजनक बातें और फोटो मिल जाएंगे। साईं विरोधियों की इस कहानी में कितनी सच्चाई है यह कहना मुश्किल है, हालांकि इस काहानी का कोई आधार नहीं है, क्योंकि उन्होंने साईं सच्चरित्र की जिन बातों का उल्लेख किया है उसे संदर्भ के साथ पढ़ने पर ही इसका खुलासा होगा। उन्होंने संदर्भ हटाकर इस तरह की बातें प्रचारित कीं जिसके चलते लोगों में भ्रम फैल रहा है। इसलिए यहां यही कहना होगा कि जो लोग साईं बाबा के बारे में कम जानकारी रखते हैं उन्हें साई सच्चरित्र और साईं लीला पढ़ना चाहिए।