पटना. तमाम अटकलों और एग्जिट पोल्स को दरकिनार कर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने बिहार विधानसभा चुनाव में धमाकेदार जीत दर्ज दी। विधानसभा की 243 सीटों में से महागठबंधन ने 178 सीटों पर बंपर जीत हासिल की। आरजेडी को 80, जेडीयू को 71 और महागठबंधन की तीसरी पार्टी कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं। दूसरी ओर, एनडीए को करारी हार का सामना करना पड़ा। दिवाली के ठीक पहले महागठबंधन की इस जीत ने भाजपा गठबंधन को तगड़ा झटका दिया। एनडीए को 58 सीटें हीं मिली।
महागठबंधन को क्लीन स्वीप, भाजपा को सिर्फ पांच
फर्स्ट फेज में पहला बड़ा मुद्दा रहा विशेष पैकेज। पीएम मोदी ने 6 रैलियां की। 36 सीटों तक पहुंचे। वहीं, महागठबंधन ने पैकेज की घोषणा के बहाने बिहारियों की बोली लगाने को मुद्दा बनाया। डीएनए विवाद भी उछाला। एनडीए का अति आत्मविश्वास पहले चरण में ही उसके लिए घातक साबित हुआ। 2010 के परिणाम के आधार पर कुल 49 में से सिर्फ 13 सीटें एनडीए के पाले में थीं। 34 सीटों पर जीत बरकरार रखने की चुनौती महागठबंधन के सामने थी। एनडीए इस मुगालते में रहा कि धुआंधार प्रचार और घटक दलों के कुछ दिग्गजों के चलते पुरानी सीटों के अलावा कम से कम 10 नई सीटें उसके खाते में आ जाएंगी। लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस और हम के प्रदेश अध्यक्ष शकुनी चौधरी मैदान में थे। दोनों हारे।
दूसरा चरण : रिजर्वेशन जैसे मुद्दों ने महागठबंधन को दी बढ़त
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा का बयान क्या दिया, लालू-नीतीश को निर्णायक मुद्दा मिल गया। वहीं, भाजपा ने बीफ पर लालू वाले बयान पर घेरा। शैतान के जवाब में ब्रह्मपिशाच और राक्षस जैसे बयान आए। हम के जीतन राम मांझी, रालोसपा के प्रदेश अध्यक्ष डा. अरुण कुमार और जहानाबाद के पूर्व सांसद डा. जगदीश शर्मा का प्रभाव क्षेत्र होने के बावजूद एनडीए को सफलता नहीं मिली। इनके दम पर सवर्णों के अलावा महादलित, चंद्रवंशी और कुशवाहा बिरादरी के वोटों का आसरा एनडीए को था, लेकिन यह समीकरण काम नहीं आया।
तीसरा चरण : दाल के मुद्दे पर महंगाई ने बीजेपी को दी पटखनी
दाल की बढ़ती कीमत को महागठबंधन ने मुद्दा बनाया। घर की मुर्गी दाल बराबर जैसे सियासी तीर चले। हरियाणा में दलित बच्चों की मौत पर केंद्रीय मंत्री वीके सिंह के बयान का महागठबंधन ने अच्छे से फायदा उठाया। विधानसभा के पिछले चुनाव परिणाम को देखें तो इस फेज में महागठबंधन और एनडीए के बीच बराबरी की टक्कर हो सकती थी। कुल 50 में से 19 सीटें भाजपा के पास थी। जदयू की जीत 23 सीटें थीं। राजद का सात सीटों पर कब्जा था।
चौथा चरण : 56 में 26 लाकर भाजपा ने बचाई लाज
इस फेज में जिन इलाकों में चुनाव हुआ, वो एनडीए के आधार इलाकों में आता है। कुल 55 में से 26 सीटें भाजपा के पक्ष में थी। पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी, गोपालगंज और सीवान जिलों से एनडीए को पहले से ज्यादा बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी। यह नहीं हो सका। बेतिया में भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रेणु देवी को हार का सामना करना पड़ा। फिर भी चंपारण में एनडीए की इज्जत कुछ हद तक बच पाई। थारुओं के बीच राज्य सरकार की नाराजगी का लाभ एनडीए को मिला। पूर्णमासी राम एवं वैद्यनाथ प्रसाद महतो जैसे दिग्गजों की हार से महागठबंधन को भी झटका।
पांचवां चरण : गाय और ओवैसी का भी नहीं मिला लाभ
मुस्लिम बहुल सीटों वाले इस दौर में भाजपा ने धार्मिक आरक्षण का मुद्दा उठाया। गाय का विवादित विज्ञापन छपवाया। ओवैसी भी मैदान में थे। लेकिन बीजेपी को सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण का कोई फायदा नहीं हुआ। 57 में से 23 सीटों पर भाजपा का कब्जा था। लोजपा के खाते में भी दो सीटें थीं। इस लिहाज से देखें तो अपनी 25 सिटिंग सीटों को बचाने के अलावा कुछ अधिक सीटों पर जीत हासिल करना एनडीए का लक्ष्य था। एनडीए ने बढ़े हुए वोट को एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर से जोड़कर अपने पक्ष में माना। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।बिहार में नितीश लालू ने मरी बाजी ,बीजेपी चारो खाने चिट