2017 में अगले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में राज्य का कोई भी छोटा-बड़ा मुद्दा सियासी रूप ले सकता है। इस परिस्थिति में बात अगर जाति-धर्म से जुड़ी हो तो फिर वो मुद्दा राजनीति से कैसे अछूता रह सकता है। ऐसा ही कुछ हो रहा है उत्तर प्रदेश के कैराना में, जहां अलग अलग सूत्रों के माध्यम से अलग-अलग खबरें चल रही है। कुछ रिपोर्टों का मानना है कि कई हिंदू परिवारों ने दहशत में आकर वहां से पलायन किया है, जबकि कुछ अन्य रिपोर्टों के मुताबिक यह महज चुनावी लाभ लेने के लिए एक मुद्दा है। आइए जानते हैं क्या है कैराना सच....
क्या है यह पूरा विवाद- इस पूरे विवाद की शुरुआत तब हुई जब स्थानीय बीजेपी सासंद हुकुम सिंह 346 हिंदू परिवारों की सूची सौंपते हुए यह आरोप लगाया कि कैराना को कश्मीर बनाने की कोशिश की जा रही है। हुकुम सिंह ने कहा कि यहां हिंदुओं को धमकाया जा रहा है, जिससे हिंदू परिवार बड़ी संख्या में पलायन कर रहे हैं। हुकुम सिंह के इतना कहते ही बीजेपी ने अखिलेश सरकार पर हमला बोल दिया। बीजेपी ने न सिर्फ अखिलेश सरकार के कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए बल्कि इसे सोची समझी रणनीति भी करार दिया। बीजेपी सांसद हुकुम सिंह ने दावा किया है कि उन्होंने कैराना से पलायन करने वाले हर घर का सत्यापन कराया है, जबकि इस लिस्ट में ऐसे भी नाम शामिल हैं जो आर्थिक और कारोबारी वजह से पलायन कर चुके थे। इनके पलायन का संबंध न किसी आतंकी माहौल से था और न ही मुस्लिम समुदाय के खौफ से। मामला बढ़ने पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दखल देते हुए राज्य सरकार को नोटिस भेजकर चार हफ्ते के अंदर जवाब की मांग की है। दूसरी तरफ, बीजेपी ने 9 सदस्यीय जांच कमेटी बनाकर सियासी गरमाहट और बढ़ा दी है. कमेटी आज कैराना पहुंचेगी और हिंदुओं के पलायन के बारे में जानकारी जुटाएगी।
क्या है हकीकत- कुल मिलाकर अब यह पूरी तरह सियासी मुद्दा बन चुका है और इस मुद्दे पर विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी भी की जा रही है। सांसद हुकुम सिंह ने दावा किया गया है कि पिछले पांच सालों में कैराना में हिन्दुओं की आबादी 22 फीसदी कम हो गई है। अब तक की पड़ताल में जो सबसे अहम बात सामने आई है वो यह है कि इलाक़े में बिगड़ती कानून व्यवस्था की वजह से कुछ मुस्लिम परिवार भी इलाके से पलायन कर चुके हैं। एक तरफ जहां ऐसा कहा जा रहा है कि यहां व्यापारियों से रंगदारी मांगी जाती है तो दूसरी तरफ पिछले आठ से दस सालों में कैराना से लोग बेहतर कमाई और नौकरी के लिए बाहर जाते जाते रहे हैं जिसमें मुस्लिम परिवार भी शामिल हैं। बीजेपी द्वारा दी गई सूची में कुछ लोग ऐसे हैं जो सालों पहले मर चुके हैं तो कुछ ने कभी कैराना छोड़ा ही नहीं, जबकि कुछ ऐसे भी हैं जो कारोबार, रोजगार और बेहतर भविष्य के लिए बाहर गए हैं।
बीजेपी ने क्यों उठाया मुद्दा- बीजेपी कैराना के मुद्दे को उत्तर प्रदेश में होने वाली आगामी विधानसभा चुनावों के दौरान भुनाना चाहती है। जाहिर है कैराना मुद्दे से पूरे राज्य में ध्रुवीकरण करने में सहायता मिलेगी। जाहिर है कि बीजेपी ने इलाहाबाद में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में स मुद्दे को जोर शोर से उठाते हुए यह साफ कर दिया कि पश्चिम यूपी में यह बड़ा चुनावी मुद्दा बनने जा रहा है। ऐसे में चुनावी बिगुल फूंकते ही कैराना का मुद्दा पार्टी के हाथ लगा है। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कैराना के मुद्दे को जिस प्राथमिकता से उठाया है, निश्चित रूप से उसके दूरगामी संकेत है।
पार्टी के बड़े-बड़े दिग्गज नेता और मंत्री इस मुद्दे पर प्रदेश सरकार पर जमकर हमला बोल रहे है। कैराना मुद्दे की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अखिलेश सरकार को घेरने वालों में बीजेपी के योगी आदित्यनाथ, अमित शाह, राजनाथ सिंह और किरन रिजिजू जैसे दिग्गज नेता भी शामिल हैं।यह मुद्दा बीजेपी के लिए दादरी और अयोध्या से भी बढ़कर हैं इसलिए भी है क्योंकि यह पश्मिमी यूपी का अहम हिस्सा तो है ही साथ में यहां मुस्लिम आबादी काफी ज्यादा है। मुस्लिम औऱ जाट आबादी के मद्देनजर से यह इलाका काफी अहम हो जाता है।
आपको बता दें कि 1980 में इसी इलाके से चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए किसी भी तरह के कर्ज और टैक्स के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था। पश्चिमी यूपी में अजगर (अहिर, जाट, गुज्जर,राजपूत) वोट बैंक पर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की अच्छी पैठ थी और इसने सभी राजनीतिक दलों को अपनी तरफ झुकने के लिए मजबूर किया। मुलायम सिंह भी पश्चिमी यूपी में अच्छी पकड़ रखते हैं और मुलायम ने मुस्लिमों को भी इस गुट में जोड़ लिया था।
इससे पहले मुजफ्फरनगर के दंगों ने इलाके की शांति को लंबे समय तक के लिए खत्म करके रख दिया था। हालांकि मुजफ्फरनगर दंगों का सियासी फायदा बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में लिया था। ऐसे में बीजेपी पश्चिमी यूपी को नजरअंदाज नहीं कर सकती है और वह पूरी कोशिश में जुटी है कि उसे एक बड़े वर्ग का वोट हासिल हो सके। ऐसे में अगर वोटों का ध्रुवीकरण होता है तो पार्टी को जबरदस्त सफलता हासिल हो सकती है।2014 के लोकसभा चुनाव में सभी 19 संसदीय क्षेत्र जोकि पश्चिमी यूपी की जाट बेल्ट में थे जिसमें सहारनपुर,फतेहपुर सीकरी शामिल हैं भाजपा के खाते में गई थी। मुजफ्फरनगर के दंगों के बाद भाजपा को बड़ी संख्या में हिंदुओं की विभिन्न जातियों का वोट मिला था।
क्या है कैराना का इतिहास- पंडित भीमसेन जोशी और रोशन आरा बेगम जैसे बड़े शास्त्रीय संगीतकार देने वाले कैराना को प्राचीन काल में कर्णपुरी के नाम से जाना जाता था और माना जाता है कि महाभारत काल में कर्ण का जन्म यहीं हुआ था। हालांकि इसका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं मिला है। यह कहानी भी कम प्रचलित नहीं है कि कैराना का नाम ‘कै और राणा’ नाम के राणा चौहान गुर्जरों के नाम पर पड़ा और माना जाता है कि राजस्थान के अजमेर से आए राणा देव राज चौहान और राणा दीप राज चौहान ने कैराना की नींव रखी। कैराना के आस-पास कलश्यान चौहान गोत्र के गुर्जर समुदाय के 84 गांव हैं। सोलहवीं सदी में मुग़ल बादशाह जहांगीर ने अपनी आत्मकथा तुज़ुक-ए-जहांगीरी में कैराना की अपनी यात्रा के बारे में लिखा है। माना जाता है कि अपने समय के महान संगीतकार मन्ना डे जब किसी काम से कैराना पहुंचे थे तो कैराना की सीमा में घुसने से पहले महान संगीतकारों के इस क्षेत्र के सम्मान में उन्होंने अपने जूते उतारकर हाथ में रख लिए थे।
राजधानी दिल्ली से करीब 100 किलोमीटर और उत्तर प्रदेश के मुझफ्फरनगर से 50 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिम में हरियाणा की सीमा पर यमुना किनारे बसा कैराना का ऐतिहासिक महत्व रहा है। उत्तर प्रदेश के शामली जिले का कैराना तहसील पहले मुजफ्फरनगर जिले की तहसील थी। 2011 में मायावती ने शामली को एक अलग जिला घोषित किया, जिसमें कैराना भी शामिल हो गया। कैराना एक लोकसभा और विधानसभा सीट भी है। पिछड़ा इलाका होने के कारण बरसों से यहां के लोग पानीपत, मेरठ, दिल्ली सहित अन्य आस पास के जगहों पर काम की तलाश में जाते रहे है।
क्या है जातीय समीकरण- 2011 जनगणना के मुताबिक कैराना तहसील की की जनसंख्या एक लाख 77 हजार 121है जिसमें कैराना नगर पालिका की आबादी करीब 90 हजार है। कैराना नगर पालिका परिषद के इलाक़े में 81 फीसदीमुस्लिम, 18 फीसदी हिंदू और अन्य धर्मों को मानने वाले लोग 1 फीसदी हैं। यूपी में साक्षरता दर 68 फीसदी है लेकिन कैराना में 47 फीसदी लोग ही साक्षर हैं। शामली के कांधला, कैराना, झिंझाना, आसपास के गांव के अलावा कैराना के आलकला, कायस्थवाड़ा, गुंबद, लालकुआं, बेगमपुरा, दरबारखुर्द, आर्यपुरी, कांधला अड्डा पानीपत रोड में हिंदू-मुस्लिम मिश्रित आबादी है।
क्या कहा गया पुलिस रिपोर्ट में- इस मुद्दे पर कैराना प्रकरण पर सहारनपुर रेंज के डीआईजी एके राघव की रिपोर्ट सामने आई है। खबरों के अनुसार राघव ने डीजीपी मुख्यालय को भेजे अपनी रिपोर्ट में बीजेपी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। राघव ने कहा कि अगले साल यूपी में होने वाले विधानसभा चुनावों में लाभ के लिए बीजेपी हिंदुओं में कथित असुरक्षा की भावना को मुद्दा बनाकर हिंदू मतों का ध्रुवीकरण करना चाहती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सांसद हुकुम सिंह ने भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर जीत हासिल की थी। अब वो अपनी बेटी को भी इसी रास्ते चुनावी मैदान में उतारना चाहता है।
रिपोर्ट मे कहा गया है कि बीजेपी और हिंदू संगठन विधानसभा चुनावों में लाभ लेने के उद्देश्य से हिंदुओं में कथित असुरक्षा की भावना को मुद्दा बनाकर हिंदू मतों का ध्रुवीकरण कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार बड़ी संख्या में व्यापारी और किसान अपनी उन्नति के लिए कस्बा छोड़कर चले गए हैं। डीआईजी ने अपनी रिपोर्ट में किसी बड़े सांप्रदायिक घटना से भी इंकार नहीं किया है। इस पूरे मामले ने अब जोर पकड़ लिया है। बड़े स्तर पर सत्यापन का कर्य जारी है। डीएम खुद अलग से टीमें लगाकर सत्यापन की क्रास चेकिंग करवा रहे हैं। हालांकि पुलिस प्रशासन ने भी सत्यापन में माना है कि सूची में शामिल कुछ परिवारों को दहशत के कारण ही कैराना छोड़ना पड़ा। जरूरत इस बात की है कि यूपी सरकार और केंद्र सरकार दोनों को मामले की निष्पक्ष जांच करवा कर दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए।