Thursday, May 2, 2013

अगर ये एक गलती न करता तो जिंदा होता सरबजीत


नई दिल्ली। लाहौर की कोटलखपथ जेल में हुए हमले के बाद डीप कोमा गए सरबजीत सिंह की बुधवार-गुरुवार की रात 1:30 पर मौत हो गई। सरबजीत पर हुए हमले में उन्हें बहुत गंभीर चोटें आई थी। बुधवार रात ही सरबजीत का परिवार उनसे मिलकर वापस भारत आया था। एक छोटी सी गलती के चलते सरबजीत सिंह पाकिस्तान पहुंचा।
 
इसके बाद वो दोबारा वतन नहीं लौट सका और उसकी जिंदगी भारत और पाकिस्तान के राजनीतिक रिश्तों की भेंट चढ़ गई। वह भारत के ‌लिए सरबजीत सिंह ढिल्लों बना रहा लेकिन पाकिस्तान के लिए कभी वह मंजीत रहा तो कभी खुशी मुहम्मद तो कभी सरबजीत।
 
पाकिस्तानी सेना ने उसे 30 अगस्त, 1990 को गिरफ्तार किया था। 1990 में पाकिस्तान के लाहौर और फैसलाबाद में सीरियल बम ब्लास्ट हुआ था जिसमें करीब 14 लोग मारे गए थे। सरबजीत सिंह को इसी आरोप में संदेह के आधार पर कैदी बनाया गया है जबकि पाक सरकार के पास अब तक इस बात के पुख्ता सबूत मौजूद नहीं है कि सरबजीत का उस मामले में हाथ था। सरबजीत को गलत पहचान के चलते गिरफ्तार किया गया था।
भिखीव‌िंड का रहने वाला है सरबजीत
पंजाब में तरनतारन जिले के भिखीविंड गांव के रहने वाले सरबजीत सिंह के पिता सुलक्षण सिंह ढिल्लों यूपी रोडवेज में नौकरी करते थे। 1986 में उनके रिटायर होते ही परिवार के हालात बदतर हो गए। परिवार की गुजारा चादरों की कढ़ाई से होने वाली कमाई की मोहताज हो गई।सरबजीत की गिरफ्तारी
सरबजीत की शादी सुखप्रीत से कर दी गई। उन दिनों सरबजीत को शराब की लत लग गई थी। सरबजीत के परिजनों का दावा है कि 28 अगस्त, 1990 की एक शाम नशे की हालत में सरबजीत सरहद पार कर पाकिस्तान पहुंच गया। उसके बाद सरबजीत कभी घर नहीं लौटा।सरबजीत की बड़ी बेटी स्वप्नदीप उस वक्त महज तीन वर्ष की थी। छोटी बेटी पूनम मां के पेट में थी। पाकिस्तानी दस्तावेज के मुताबि‌क 29 और 30 अगस्त के दरम्यान ही पाकिस्तानी सेना ने उसे सरहदी इलाके से गिरफ्तार किया था।चंद दिनों बाद उसे लाहौर, मुल्तान और फैसलाबाद बम धमाकों का आरोपी बनाया गया जिसमें 14 लोगों की मौत हुई थी। उसे रॉ का एजेंट बताया गया और उसकी मंजीत के रूप में शिनाख्त की गई। पाकिस्तान की स्पेशल टेररिस्ट कोर्ट ने एक साल बाद तीन अक्टूबर 1991 को उसे फांसी की सजा सुना दी।28 साल के सरबजीत को कोट लखपत जेल के डेथ सेल में रखा गया। हालांकि सबरजीत की बहन दलबीर कौर और उसके जीजा ने उसकी बेगुनाही साबित करने के लिए पाकिस्तान की ऊंची अदालतों का दरवाजा खटखटाया। दलबीर कौर ने इसके लिए अपनी 45 बीघा जमीन बेच दी। 2001 में लाहौर हाईकोर्ट ने सरबजीत को सजा-ए-मौत दे दी।
अगर ये एक गलती न करता तो जिंदा होता सरबजीत

गलत पहचान का शिकार तो नहीं 
 
पाकिस्तान की अदालत में जो पासपोर्ट पेश किया गया उस पर 1 मार्च 1980 की तारीख दर्ज है और उस पर नाम लिखा है खुशी मुहम्मद का लेकिन तस्वीर है सरबजीत की। मानवाधिकार संगठनों का इस पर सवाल है कि पासपोर्ट पर छपी तस्वीर दस साल पुरानी है जबकि सरबजीत उस समय सिर्फ 28 साल का था।2005 में पाकिस्तानी ने सरबजीत के इकबालिया बयान का एक वी‌डियो भी जारी किया था लेकिन उस वीडियो में सरबजीत का नाम लिखा था ज‌बकि अब तक पाकिस्तान उसे मंजीत सिंह मानता था। 2005 में ही एक गवाह मीडिया के सामने आया जिसने सरबजीत की पहचान की थी। उसने मीडिया से कहा कि उस पर दबाव डालकर यह बयान दिलवाया गया था। यह भी पता लगा कि धमाकों के एफआईआर में उसका नाम नहीं, किसी मंजीत का नाम था।
अगर ये एक गलती न करता तो जिंदा होता सरबजीत

गिरफ्तारी के बाद नहीं दी परिवार को जानकारी
 
पाकिस्तानी सेना ने 1990 में जब सरबजीत को गिरफ्तार किया तो उसके परिवार को जानकारी नहीं दी जबकि ऐसा किया जाना जरूरी है। अप्रैल 2006 में सरबजीत ने परिवार को खत लिखकर अपने बारे में खबर दी और अपनी रिहाई की कोशिश करने की गुहार की।
 
उसके बाद 2006 में मुंबई के लोकल में सीरियल धमाकों के बाद उसने एक चौंकाने वाला खत लिखा जिसमें उसने खराब हालत की सूचना दी। इस बीच पाकिस्तानी राष्ट्रपति ने सरबजीत की दया याचिका खारिज कर दी और खबर आई कि उसको एक अप्रैल 2008 को फांसी दे दी जाएगी।
परिवार के साथ सरबजीत की मुलाकात
2008 में ही लाहौर के कोट लखपत जेल में पाकिस्तान में नाउम्मीद परिवार से 22 साल बाद सरबजीत की पहली मुलाकात हुई। उसी साल 26 नवंबर 2008 को देश का अब तक का भारत में सबसे बड़ा आतंकवादी हमला हुआ। इन धमाकों के तार पाकिस्तान से जुड़े थे जिस वजह से दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट आ गई और इसके बाद सरबजीत की रिहाई की उम्मीद पूरी तरह से टूट गई। सुप्रीम कोर्ट में सरबजीत की रिहाई की पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई लेकिन परिवार के मुताबिक सरबजीत की याचिका इस‌लिए खारिज की गई क्योंकि उसका वकील उस तारीख पर पहुंचा ही नहीं। इसके बाद सरबजीत के लिए राष्ट्रपति के पास पांच दया याचिकाएं भेजी गई। 28 मई 2012 को पांचवी दया याचिका भेजी गई। 2008 में पाकिस्तान के हुक्मरान बदल गए। नए प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी ने फांसी की सजा टाल दी। ले‌किन रिहाई पर चुप्पी बनी रही। उसकी रिहाई की उम्मीद तब बढ़ी जब वहां के मानवाधिकार मामलों के मंत्री अंसार बर्नी सरबजीत की रिहाई के सुबूतों को जुटाने भारत आए। यह पहला मौका था जब सरबजीत मामले की जांच भारत की जमीं तक पहुंची थी। लेकिन यहां भी ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला जिससे उसकी बेगुनाही साबित हो।इसके एक महीने बाद पाकिस्तानी मीडिया में सरबजीत की रिहाई की खबर आई लेकिन यह अफवाह साबित हुई थी। दरअसल पाकिस्तान सरकार ने सरबजीत के बदले सुरजीत की रिहाई का आदेश दिया था। 21 नंवबर 2012 को कसाब को फांसी दे दी गई।

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