नई दिल्ली: दुनिया की एकमात्र सुपरसोनिक
क्रूज मिसाइल और भारत के सैन्य कौशल की प्रतीक ‘ब्रह्मोस’ के लिए अगले 20
साल तक कोई चुनौती नहीं है। यह दावा किसी और ने नहीं, बल्कि स्वयं ब्रह्मोस
के जनक शिवतनु पिल्लई ने किया है।
वैज्ञानिक और ब्रह्मोस एयरोस्पेस के मुख्य कार्यपालक अधिकारी तथा प्रबंध निदेशक पिल्लई ने कहा ‘ब्रह्मोस का समकक्ष अभी तैयार किया जाना है। और अगले 20 साल में शत्रु से इसे कोई चुनौती नहीं मिल सकती।’
पिल्लई भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित इस उत्कृष्ट प्रौद्योगिकी के विकास को लेकर भावी रूपरेखा के बारे में अपने विचार जाहिर कर रहे थे। वह डीआरडीओ के आरएंडडी विभाग के प्रमुख नियंत्रक हैं और उन्हें ‘ब्रह्मोस का जनक’ भी कहा जाता है।
उन्होंने एक नयी किताब में इस मिसाइल प्रौद्योगिकी को, युवा शक्ति द्वारा संचालित भारत को सुरक्षित और उसका बेहतर भविष्य बनाने वाली 10 प्रमुख एवं दुर्लभ उन्नत प्रौद्योगिकियों में एक बताया है।
पिल्लई ने ‘थॉट्स फॉर चेंज, वी कैन डू इट’ नामक यह किताब पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम के साथ मिल कर लिखी है। यह किताब दो प्रख्यात वैज्ञानिकों की सोच दर्शाती है जिसमें भारत के युवा वर्ग से ऐसा बेहतर भविष्य बनाने की दिशा में काम करने के लिए प्राचीन वैज्ञानिक कौशल को फिर से अपनाने का आह्वान किया गया है जहां बहुप्रौद्योगिकियां एक दूसरे को परस्पर काटेंगी और परस्पर संचालित होंगी।
उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा ‘इस तथ्य पर हमें गर्व है कि दुनिया की एकमात्र सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल और भारत रूस सहयोग की प्रतीक ब्रह्मोस की भारतीय नौसेना और सेना को सफलतापूर्वक आपूर्ति की जा चुकी है तथा भारतीय वायुसेना के लिए इसका हवाई संस्करण भी अगले कुछ साल में तैयार हो जाएगा।’
पिल्लई ने कहा कि इस मिसाइल के निर्माण के लिए भारत ने दिशानिर्देश के साथ साथ वैमानिकी, सॉफ्टवेयर और हवाईढांचे संबंधी कलपुर्जे मुहैया कराए हैं।
यह मिसाइल भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ और रूस के एनपीओ माशिनोस्ट्रोयेनिया के बीच रणनीतिक भागीदारी के तहत विकसित की गई है। यह एक स्टील्थ क्रूज मिसाइल है जिसकी मारक क्षमता 290 किमी और गति 2.8 मैक से 3 मैक है। इसका नाम ब्रह्मोस भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नामों को मिला कर रखा गया है।
वैज्ञानिक और ब्रह्मोस एयरोस्पेस के मुख्य कार्यपालक अधिकारी तथा प्रबंध निदेशक पिल्लई ने कहा ‘ब्रह्मोस का समकक्ष अभी तैयार किया जाना है। और अगले 20 साल में शत्रु से इसे कोई चुनौती नहीं मिल सकती।’
पिल्लई भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित इस उत्कृष्ट प्रौद्योगिकी के विकास को लेकर भावी रूपरेखा के बारे में अपने विचार जाहिर कर रहे थे। वह डीआरडीओ के आरएंडडी विभाग के प्रमुख नियंत्रक हैं और उन्हें ‘ब्रह्मोस का जनक’ भी कहा जाता है।
उन्होंने एक नयी किताब में इस मिसाइल प्रौद्योगिकी को, युवा शक्ति द्वारा संचालित भारत को सुरक्षित और उसका बेहतर भविष्य बनाने वाली 10 प्रमुख एवं दुर्लभ उन्नत प्रौद्योगिकियों में एक बताया है।
पिल्लई ने ‘थॉट्स फॉर चेंज, वी कैन डू इट’ नामक यह किताब पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम के साथ मिल कर लिखी है। यह किताब दो प्रख्यात वैज्ञानिकों की सोच दर्शाती है जिसमें भारत के युवा वर्ग से ऐसा बेहतर भविष्य बनाने की दिशा में काम करने के लिए प्राचीन वैज्ञानिक कौशल को फिर से अपनाने का आह्वान किया गया है जहां बहुप्रौद्योगिकियां एक दूसरे को परस्पर काटेंगी और परस्पर संचालित होंगी।
उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा ‘इस तथ्य पर हमें गर्व है कि दुनिया की एकमात्र सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल और भारत रूस सहयोग की प्रतीक ब्रह्मोस की भारतीय नौसेना और सेना को सफलतापूर्वक आपूर्ति की जा चुकी है तथा भारतीय वायुसेना के लिए इसका हवाई संस्करण भी अगले कुछ साल में तैयार हो जाएगा।’
पिल्लई ने कहा कि इस मिसाइल के निर्माण के लिए भारत ने दिशानिर्देश के साथ साथ वैमानिकी, सॉफ्टवेयर और हवाईढांचे संबंधी कलपुर्जे मुहैया कराए हैं।
यह मिसाइल भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ और रूस के एनपीओ माशिनोस्ट्रोयेनिया के बीच रणनीतिक भागीदारी के तहत विकसित की गई है। यह एक स्टील्थ क्रूज मिसाइल है जिसकी मारक क्षमता 290 किमी और गति 2.8 मैक से 3 मैक है। इसका नाम ब्रह्मोस भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नामों को मिला कर रखा गया है।