पटना: बिहार में सतारूढ़ भारतीय जनता
पार्टी (भाजपा) और जनता दल (युनाइटेड) का 17 वर्षो से चल रहा गठबंधन मोदी
के नाम पर अब टूटने के कगार पर है। भाजपा ने जहां गोवा अधिवेशन में
नरेन्द्र मोदी को अगले चुनाव अभियान के लिए चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष
बनाकर केन्द्र की कुर्सी हथियाने के लिए सबसे बड़ा दांव लगाया है, वहीं
नीतीश कुमार ने भी मोदी के नाम पर गठबंधन से अलग होने का अपना आखिरी दांव
खेला है।
बिहार के मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद कहते हैं कि नीतीश, मोदी का विरोध कर मुसलमानों का वोट हासिल करना चाहते हैं, परंतु उनकी चुनरी में दाग लगा है। वैसे मोदी के नाम पर नीतीश का विरोध कोई नया नहीं है। वर्ष 2008 में जब बिहार के कोसी क्षेत्र में भयंकर बाढ़ आई थी, तब मोदी ने गुजरात से भी बड़ी मात्रा में राहत पहुंचाई थी। परंतु बिहार के मुख्यमंत्री ने उस मदद को भी लौटा दिया था।
इसके बाद वर्ष 2010 में पटना में हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल नेताओं को मुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री आवास में एक भोज का आमंत्रण दिया, परंतु जैसे ही उन्हें मालूम चला था कि इस बैठक में मोदी उपस्थित हैं तो उन्होंने इस भोज का न्योता ही वापस ले लिया था।
नीतीश का मोदी विरोध यहीं नहीं रुका। इस घटना के छह महीने बाद बिहार विधानसभा चुनाव में मोदी को प्रचार के लिए नहीं आने दिया गया। हालांकि इसका विरोध भाजपा के कई नेताओं ने उस समय किया था, परंतु नीतीश उस वक्त भाजपा के थिंकटैंकों को समझाने में सफल हो गए थे। इस चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) भारी बहुमत से दोबारा बिहार में सता में लौटा था।
पिछले लोकसभा चुनाव में भी मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश के विरोध के कारण बिहार में प्रचार के लिए नहीं आए। मुख्यमंत्री नीतीश इसके अलावा भी मोदी का विरोध समय-समय पर करते रहे हैं। वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री ने घोषणा कर दी थी कि प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार धर्मनिरपेक्ष छवि और पिछड़े राज्यों की पीड़ा समझने वाला होना चाहिए। उन्होंने भाजपा से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम घोषित करने की अपील की थी।
बिहार में महाराजगंज लोकसभा उपचुनाव में जद(यू) के उम्मीदवार और राज्य के मंत्री पी$ के. शाही के हार जाने और गोआ के अधिवेशन में मोदी को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद दोनों दलों की तल्खियां बढ़ गई। वर्तमान स्थिति में भाजपा मोदी के नाम से पीछे नहीं हटना चाह रही है, वहीं जद(यू) मोदी को अपनाने को तैयार नहीं है। बिहार के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सी$ पी$ ठाकुर कहते हैं कि मोदी के नाम पर भाजपा के पीछे हटने का प्रश्न ही नहीं है। यह पार्टी का अंदरूनी मामला है।
बिहार के मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद कहते हैं कि नीतीश, मोदी का विरोध कर मुसलमानों का वोट हासिल करना चाहते हैं, परंतु उनकी चुनरी में दाग लगा है। वैसे मोदी के नाम पर नीतीश का विरोध कोई नया नहीं है। वर्ष 2008 में जब बिहार के कोसी क्षेत्र में भयंकर बाढ़ आई थी, तब मोदी ने गुजरात से भी बड़ी मात्रा में राहत पहुंचाई थी। परंतु बिहार के मुख्यमंत्री ने उस मदद को भी लौटा दिया था।
इसके बाद वर्ष 2010 में पटना में हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल नेताओं को मुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री आवास में एक भोज का आमंत्रण दिया, परंतु जैसे ही उन्हें मालूम चला था कि इस बैठक में मोदी उपस्थित हैं तो उन्होंने इस भोज का न्योता ही वापस ले लिया था।
नीतीश का मोदी विरोध यहीं नहीं रुका। इस घटना के छह महीने बाद बिहार विधानसभा चुनाव में मोदी को प्रचार के लिए नहीं आने दिया गया। हालांकि इसका विरोध भाजपा के कई नेताओं ने उस समय किया था, परंतु नीतीश उस वक्त भाजपा के थिंकटैंकों को समझाने में सफल हो गए थे। इस चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) भारी बहुमत से दोबारा बिहार में सता में लौटा था।
पिछले लोकसभा चुनाव में भी मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश के विरोध के कारण बिहार में प्रचार के लिए नहीं आए। मुख्यमंत्री नीतीश इसके अलावा भी मोदी का विरोध समय-समय पर करते रहे हैं। वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री ने घोषणा कर दी थी कि प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार धर्मनिरपेक्ष छवि और पिछड़े राज्यों की पीड़ा समझने वाला होना चाहिए। उन्होंने भाजपा से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम घोषित करने की अपील की थी।
बिहार में महाराजगंज लोकसभा उपचुनाव में जद(यू) के उम्मीदवार और राज्य के मंत्री पी$ के. शाही के हार जाने और गोआ के अधिवेशन में मोदी को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद दोनों दलों की तल्खियां बढ़ गई। वर्तमान स्थिति में भाजपा मोदी के नाम से पीछे नहीं हटना चाह रही है, वहीं जद(यू) मोदी को अपनाने को तैयार नहीं है। बिहार के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सी$ पी$ ठाकुर कहते हैं कि मोदी के नाम पर भाजपा के पीछे हटने का प्रश्न ही नहीं है। यह पार्टी का अंदरूनी मामला है।