व्यंग्य लेख -- अब मीडिया बड़ा ही फ़ास्ट हो गया है . छोटे से छोटी घटना पर ऐसी प्रस्तुति देता है कि जिस व्यक्ति के बारे में समाचार दिखाया जा रहा है , उसे भी शक होने लगता है कि क्या वास्तव में “वो “ वैसा ही है .परन्तु खेद का विषय यह रहा कि हाल में तीन नामों को सम्मानित किया गया , परन्तु तीनों का ही इंटरव्यू मीडिया नहीं कर पाया . भारत रत्न मालवीय जी तो खैर पहले ही स्वर्ग में बैठे हैं , वहां तक शायद अभी किसी मीडिया ने अपने रिपोर्टर नियुक्त नहीं किये हैं .पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी जी ,जो भारत रत्न से सम्मानित किये गए हैं ,इस स्थित्ति में नहीं हैं कि उनका इंटरव्यू किया जा सके . तीसरा नाम भी कुछ ऐसा ही है .परन्तु आज के चपर –चपर अंग्रेजी कुतरने वाले युवा एंकरों की नज़रों में क्यों नहीं चढ़ा , इसका मुझे मलाल भी है और अचरज भी .खैर हम ठहरे पुराने ढर्रे के पत्रकार जो आज भी प्रकृतिवादी की छाप ओढ़े हुए हैं ,जो प्रकृति की जड़ों से जुड़े हुए हैं , जो मानते हैं कि पेड़ पौधों व पशु –पक्षियों में भी भावनाएं होती हैं . आज भी उनको स्नेह देते हैं , उनकी भावनाओं की कद्र करते हैं ,उनके हाव –भाव को समझते हैं , उनकी ख़ुशी –गम को महशूस करते हैं . कुछ हद तक उनसे वार्तालाप भी कर पाने में सक्षम हैं .पशु –पक्षी भी इस मानवीय पीढ़ी की भाषा समझते हैं .जब हम ' छे: छे:' करते हैं तो गायें पानी पीने लग जाती हैं , “हिब्बो –हिब्बो “ कहते ही भैंस पानी में मुंह टेक देती है , “ थूवे –थूवे “ कहतें हैं तो ऊँट पानी पीना शुरू कर देता है . सवेरे सवेरे जब हम धूप सेक रहे थे तो गली से गुजरते एक ऊंट पर निगाह पड़ गयी .ऊंट के पैरों में चपलता थी ,चाल में प्रफुल्लता थी , आँखों में गर्व की चमक थी ,मुंह में झाग उफन रहे थे , जो मस्ती का प्रतीक प्रतीत हो रहे थे ,और ऊंट अपनी फूली हुई जिह्वा को बार बार बाहर निकाल कर पुन्झारे ( पूंछ को ऊपर नीचे पीटना ) मार कर किसी विशेष प्रसन्नता को प्रकट कर रहा था . मैंने ऊंट से पूछा –अरे ऊंट भाई , इतना खुश कैसे ? ऊंट ने अपने दांत पीसते हुए बताया –वो बहुत खुश है ,क्योंकि राजस्थान सरकार ने मरुस्थलीय जहाज की महता को समझते हुए ऊंट को राज्य पशु घोषित किया है . मेरी आँखों में भी चमक आ गयी , चलो बैठे –बिठाये एक लेख का विषय मिल गया . मैनें ऊंट से तुरंत ऊंटरव्यू यानि ऊंट का इंटरव्यू लेने की सहमति चाही तो ,ऊंट भी सहर्ष तैयार हो गया . मैनें तुरंत प्रश्न दागा –ऊंट भाई आपकी नस्ल राज्य पशु घोषित किये जाने पर , कैसा महसूस कर रही है ? ऊंट – क्षमा चाहूँगा , अब अंग्रेजी का युग है , थोडा सा आप भी चेंज करो . आगे से हमारी प्रजाति को ऊंट नहीं ,स्टेट एनिमल कैमल कहकर पुकारो तो हमें अच्छा लगेगा .हालांकि हमारी प्रजाति वसुंधरा मैया का सदा उपकार मानेगी , परन्तु हम सीधे तो उनसे सुरक्षा कारणों से मिल नहीं पा रहे हैं ,अतः आप पत्रकार लोगों से निवेदन है कि हमारी तरफ से वसुंधरा जी का आभार प्रकट कर देना और एक रिक्वेस्ट भी कर देना कि हमें राज्य पशु की बजाय हिंदी में राज्य जीव से पुकारा जाए तो हमें और भी अच्छा लगेगा . क्योंकि अंग्रेजी में मैंन इज ए सोशल एनिमल कहा जाता है तो फिर आप आदमी को हिंदी में सामाजिक पशु क्यों नहीं पुकारते .यह भेदभाव अच्छा नहीं लगता , बल्कि अखरता है . प्रश्न –आपको राज्य पशु यानि स्टेट एनिमल का दर्जा दिये जाने से क्या फर्क आएगा ? ऊंट – बहुत फर्क आएगा .जीवन का जीना इज्जत के लिए ही तो है .पानी मिले सो उबरे मोती , मानस चून .अब हम दूसरे जीवों से बेहतर पायदान पर आ विराजे हैं .फिर अगर कोई सम्मान देने से फर्क ही नहीं पड़ता है , तो आप लोग क्यों भारत रत्न ,पदम् विभूषण या पदम् श्री पाकर फूल जाते हो ? प्रश्न –अभी हाल में वाजपेयी जी को भारत रत्न देने पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है ? ऊंट –चलो देर आये दुरुस्त आये .परन्तु अब जबकि वाजपेयी जी सुख दुःख , गम- ख़ुशी की अनुभूति सीमा से पार हो चुके हैं , तो उनके लिए भारत रत्न भी छोटा पड़ जाता है .उनको भारत रत्न बहुत पहले दे दिया जाना चाहिये था .आप की मनुष्य जाति में मेरा -तेरा और राजनैतिक गोटियों का कुछ ज्यादा ही महत्व है .फिर भी ऐसे महापुरुष को तो भारत रत्न नहीं ,बल्कि भारत महारत्न या विश्व रत्न या ब्रह्माण्ड रत्न जैसी उपाधियाँ दी जाएँ तो और अच्छा लगेगा . प्रश्न –पर इस प्रकार के सम्मान पदक तो प्रचलन में ही नहीं हैं ? ऊंट--( हँसते हुए ) क्या बच्चों वाली बातें करते हो ? चलन प्रचलन में लाना तो आप लोगों के ही हाथ में है . अब मैं चलता हूँ , मुझे देर हो रही है . प्रश्न –ऊंट जी , बस चलते चलते एक प्रश्न . आप इस अवसर कोई सन्देश देना चाहेंगे ? ऊंट –हाँ , बस , इतना ही कि हमारे नाम पर कोई चारा घोटाला न कर दिया जाये . ऊंट को दूर तक जाते देख मुझे लगने लगा है कि उसे राज्य पशु की बजाय राज्य जीव का दर्जा क्यों मिलना चाहिये .
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