परकाश सिंह बादल से जब पूछा गया कि पंजाब में ज़बरदस्त जीत का श्रेय वह किसे देंगे तो जवाब था पांच साल तक कायम रहे भाईचारे और विकास को। इसमें उन्होंने दोनों बातें कह दीं। सरदार बादल सभ्याचार और भाईचारे के स्तंभ हैं और काकाजी सुखबीर बादल विकास पुरुष की छवि बनाने में कामयाब रहे हैं।
इस बार नया ये भी था कि चुनाव की कमान सुखबीर सिंह बादल के हाथ थी। वह सूबे और पार्टी, दोनों में अपना लोहा मनवाना चाहते थे। टिकट बांटने से लेकर प्रचार की सारी रणनीति इस बार छोटे बादल के हाथ थी।
बड़े बादल ने इन पर इतना भरोसा जताया कि स्टार प्रचारक होने के बावजूद वह अपने गृह क्षेत्र से कम ही निकले और सुखबीर बादल को प्रचार का मंच भी सौंप दिया। यह सुखबीर बादल की जीत है, जिन्होंने पूरे राज्य में गठबंधन के लिए प्रचार किया।
अपनी उपलब्धियों को गिनाया और आगे के वादों पर जनता का भरोसा जीता। परिवार टूटने के बाद मनप्रीत बादल ने पार्टी बनाकर एक बड़ी चुनौती दी। कई अकाली भी सुखबीर के बढ़ते प्रभाव से नाराज़ थे और मौके की तलाश में थे। सुखबीर अपने एजेंडे पर कायम रहे।
सकारात्मक सोच, बिना कांग्रेस को निशाना बनाए, विकास को मुद्दा बनाने में सफल रहे। आज पार्टी के भीतर और बाहर उनके विरोधियों की हवा निकल गई है। अपने कंधे पर पार्टी को एंटी-इनकंबेंसी के दरिया के पार ले गए। सुखबीर बादल ने पार्टी का मौक़फ़ बरकरार रखते हुए दोहराया है कि मुख्यमंत्री तो परकाश सिंह बादल ही बनेंगे।
पर मंगलवार के नतीजे से साफ़ हो गया कि वह राज्य को नेतृत्व देने की क्षमता रखते हैं। प्रश्नचिन्ह थे, उसका उत्तर मिल गया है। परकाश सिंह बादल जब भी रिटायर हों, वह अपनी पार्टी के लिए आश्वस्त हो सकते हैं।