नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों की साख तो दांव पर रहेगी ही, इन दलों में आधे दर्जन से अधिक ऐसे नेता पुत्र हैं जिनकी साख भी दांव पर रहेगी।
इन नेता पुत्रों में सबसे पहला नाम आता है कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पुत्र और पार्टी महासचिव राहुल गांधी का तो उनके बाद हैं समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव। पूर्व केंद्रीय मंत्री व भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सांसद मेनका गांधी के बेटे वरुण गांधी, राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के अध्यक्ष अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष जितेंद्र प्रसाद के बेटे व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह भी इसी श्रेणी में आते हैं। ये पिछले कुछ साल से उत्तर प्रदेश में अपनी और पार्टी की जमीन मजबूत करने में जुटे हुए हैं।
राहुल तो आए दिन उत्तर प्रदेश का दौरा करते रहते हैं और उनका यह दौरा हमेशा सुर्खियों में रहता है लेकिन चुनावी मौसम में यदि उनका दौरा हो तो वह बहुत मायने रखता है। हाल ही में प्रदेश का पांच दिनों का दौरा कर राहुल ने न सिर्फ कांग्रेस का चुनावी शंखनाद किया बल्कि प्रदेश की राजनीति को भी गरमा दिया।
इसी प्रकार अखिलेश ने क्रांति रथ पर सवार होकर पूरे प्रदेश का भ्रमण किया। वह सपा के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। सपा से अमर सिंह की विदाई के बाद से ही वह अपनी एक अलग पहचान बनाने में लगे हैं। बहुत हद तक इसमें उन्हें सफलता भी मिली है। राजनीतिक हलकों में अक्सर चर्चा होती रहती है कि राहुल का उत्तर प्रदेश में असली मुकाबला तो अखिलेश से ही होगा।
जयंत राजनीति में अभी नए हैं लेकिन वह युवा है और जोश से लबरेज हैं। वह भी पार्टी के प्रभाव वाले क्षेत्रों में गली-गली और घर-घर घूमकर प्रचार-प्रसार में लगे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में वह पहली बार मथुरा संसदीय क्षेत्र से चुनकर आए।
आगामी चुनाव में इन नेता पुत्रों में किसकी कितनी साख दाव पर रहेगी इसके बारे में राजनीतिक विश्लेषक जी. वी. एल. नरसिम्हा राव बताते हैं, "राहुल हों या अखिलेश या फिर जयंत और वरुण। सबसे बड़ी साख तो राहुल गांधी की दांव पर है। क्योंकि उन्हें पार्टी के सबसे बड़े चेहरे के रूप में आगे किया गया है। अन्य के साथ ऐसा नहीं है। अखिलेश और जयंत की अपेक्षा उनकी पार्टी और पिता की साख कहीं अधिक दांव पर रहेगी। हां, अखिलेश कुछ साल से लगातार मेहनत कर रहे हैं और अपनी पहचान छोड़ने में लगे हैं लेकिन उस स्तर पर नहीं पहुंचे हैं कि उनकी साख दांव पर रहे।"
उन्होंने कहा, "रही बात वरुण की तो भाजपा ने वरुण को बहुत अधिक महत्व नहीं दिया है। पार्टी यदि उन्हें किसी एक चेहरे के रूप में आगे करती तो उनकी साख दांव पर होती लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है और न ही इसके संकेत मिले हैं। ऐसे में भाजपा का प्रदर्शन खराब होता है तो वरुण की साख नहीं गिरेगी और अच्छा होता है तो उन्हें इसका श्रेय भी नहीं मिलेगा।"
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के समाज विज्ञान विभाग में प्रोफेसर आनंद कुमार ने फेसएन फेक्टस से बातचीत में कहा, "उत्तर प्रदेश चुनाव में सही मायनों में साख तो राजनीतिक दलों की दांव पर रहेगी। जहां तक नेता पुत्रों का सवाल है, इनकी साख इस बात को लेकर दांव पर रहेगी कि कौन विरासत सम्भलाने के मामले में अपनी योग्यता साबित कर पाता है।"
उन्होंने कहा, "उत्तर प्रदेश चुनाव में राहुल, अखिलेश, जयंत, पंकज पहली बार अपना दमखम और जौहर दिखाएंगे। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि वे कैसे खुद को साबित करते हैं।"
इन नेता पुत्रों में सबसे पहला नाम आता है कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पुत्र और पार्टी महासचिव राहुल गांधी का तो उनके बाद हैं समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव। पूर्व केंद्रीय मंत्री व भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सांसद मेनका गांधी के बेटे वरुण गांधी, राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के अध्यक्ष अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष जितेंद्र प्रसाद के बेटे व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह भी इसी श्रेणी में आते हैं। ये पिछले कुछ साल से उत्तर प्रदेश में अपनी और पार्टी की जमीन मजबूत करने में जुटे हुए हैं।
राहुल तो आए दिन उत्तर प्रदेश का दौरा करते रहते हैं और उनका यह दौरा हमेशा सुर्खियों में रहता है लेकिन चुनावी मौसम में यदि उनका दौरा हो तो वह बहुत मायने रखता है। हाल ही में प्रदेश का पांच दिनों का दौरा कर राहुल ने न सिर्फ कांग्रेस का चुनावी शंखनाद किया बल्कि प्रदेश की राजनीति को भी गरमा दिया।
इसी प्रकार अखिलेश ने क्रांति रथ पर सवार होकर पूरे प्रदेश का भ्रमण किया। वह सपा के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। सपा से अमर सिंह की विदाई के बाद से ही वह अपनी एक अलग पहचान बनाने में लगे हैं। बहुत हद तक इसमें उन्हें सफलता भी मिली है। राजनीतिक हलकों में अक्सर चर्चा होती रहती है कि राहुल का उत्तर प्रदेश में असली मुकाबला तो अखिलेश से ही होगा।
जयंत राजनीति में अभी नए हैं लेकिन वह युवा है और जोश से लबरेज हैं। वह भी पार्टी के प्रभाव वाले क्षेत्रों में गली-गली और घर-घर घूमकर प्रचार-प्रसार में लगे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में वह पहली बार मथुरा संसदीय क्षेत्र से चुनकर आए।
आगामी चुनाव में इन नेता पुत्रों में किसकी कितनी साख दाव पर रहेगी इसके बारे में राजनीतिक विश्लेषक जी. वी. एल. नरसिम्हा राव बताते हैं, "राहुल हों या अखिलेश या फिर जयंत और वरुण। सबसे बड़ी साख तो राहुल गांधी की दांव पर है। क्योंकि उन्हें पार्टी के सबसे बड़े चेहरे के रूप में आगे किया गया है। अन्य के साथ ऐसा नहीं है। अखिलेश और जयंत की अपेक्षा उनकी पार्टी और पिता की साख कहीं अधिक दांव पर रहेगी। हां, अखिलेश कुछ साल से लगातार मेहनत कर रहे हैं और अपनी पहचान छोड़ने में लगे हैं लेकिन उस स्तर पर नहीं पहुंचे हैं कि उनकी साख दांव पर रहे।"
उन्होंने कहा, "रही बात वरुण की तो भाजपा ने वरुण को बहुत अधिक महत्व नहीं दिया है। पार्टी यदि उन्हें किसी एक चेहरे के रूप में आगे करती तो उनकी साख दांव पर होती लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है और न ही इसके संकेत मिले हैं। ऐसे में भाजपा का प्रदर्शन खराब होता है तो वरुण की साख नहीं गिरेगी और अच्छा होता है तो उन्हें इसका श्रेय भी नहीं मिलेगा।"
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के समाज विज्ञान विभाग में प्रोफेसर आनंद कुमार ने फेसएन फेक्टस से बातचीत में कहा, "उत्तर प्रदेश चुनाव में सही मायनों में साख तो राजनीतिक दलों की दांव पर रहेगी। जहां तक नेता पुत्रों का सवाल है, इनकी साख इस बात को लेकर दांव पर रहेगी कि कौन विरासत सम्भलाने के मामले में अपनी योग्यता साबित कर पाता है।"
उन्होंने कहा, "उत्तर प्रदेश चुनाव में राहुल, अखिलेश, जयंत, पंकज पहली बार अपना दमखम और जौहर दिखाएंगे। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि वे कैसे खुद को साबित करते हैं।"