करीब छह दशक से देश की सियासत के गवाह रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी अपने राजनीतिक अनुभवों को साझा करने का मन बना रहे हैं। आडवाणी ने अपने करीबी मित्रों से किताब लिखने की योजना का खुलासा किया है।
उनके करीबियों की मानें तो आडवाणी की पुस्तक में खासतौर पर जनसंघ का जनता पार्टी में विलय, इसके बाद जनता पार्टी के ध्वस्त होने के बाद भाजपा की स्थापना का विस्तार से जिक्र होगा।
हालांकि, आडवाणी ने किताब लिखने की शुरुआत नहीं की है, लेकिन उन्होंने मन बना लिया है। इस क्रम में आडवाणी ने अपने करीबियों के साथ भाजपा की स्थापना से जुड़ी कई दिलचस्प जानकारियां भी साझा की हैं।
वर्ष 1977 में सत्ता हासिल करने के महज तीन साल के भीतर जनता पार्टी के बिखरने के बाद अटल न तो नई पार्टी बनाना चाहते थे और न ही नई पार्टी का अध्यक्ष ही बनना चाहते थे।
आडवाणी के नई पार्टी बनाने के प्रस्ताव को अटल ने खारिज कर दिया था। अटल तब जनता पार्टी के किसी गुट से जुड़े रहना चाहते थे। उस दौरान चंद्रशेखर भी अटल-आडवाणी के साथ पार्टी बनाने का प्रस्ताव ले कर आए थे।
हालांकि तब चंद्रशेखर नहीं चाहते थे कि अटल पार्टी की कमान संभालें।
पार्टी बनाने पर अटल के राजी होने के बाद आडवाणी ने तत्कालीन चुनाव आयुक्त एसएल शकधर से मुलाकात कर नई पार्टी के लिए अटल की पसंद के चुनाव चिह्न साइकिल की मांग की थी।
किसी अन्य दल को यह चुनाव निशान आवंटित होने के कारण आडवाणी ने कमल को पसंद किया। उस समय आडवाणी के समक्ष चुनाव चिह्न के रूप में गुलाब के फूल का भी विकल्प था।
उनके करीबियों की मानें तो आडवाणी की पुस्तक में खासतौर पर जनसंघ का जनता पार्टी में विलय, इसके बाद जनता पार्टी के ध्वस्त होने के बाद भाजपा की स्थापना का विस्तार से जिक्र होगा।
हालांकि, आडवाणी ने किताब लिखने की शुरुआत नहीं की है, लेकिन उन्होंने मन बना लिया है। इस क्रम में आडवाणी ने अपने करीबियों के साथ भाजपा की स्थापना से जुड़ी कई दिलचस्प जानकारियां भी साझा की हैं।
वर्ष 1977 में सत्ता हासिल करने के महज तीन साल के भीतर जनता पार्टी के बिखरने के बाद अटल न तो नई पार्टी बनाना चाहते थे और न ही नई पार्टी का अध्यक्ष ही बनना चाहते थे।
आडवाणी के नई पार्टी बनाने के प्रस्ताव को अटल ने खारिज कर दिया था। अटल तब जनता पार्टी के किसी गुट से जुड़े रहना चाहते थे। उस दौरान चंद्रशेखर भी अटल-आडवाणी के साथ पार्टी बनाने का प्रस्ताव ले कर आए थे।
हालांकि तब चंद्रशेखर नहीं चाहते थे कि अटल पार्टी की कमान संभालें।
पार्टी बनाने पर अटल के राजी होने के बाद आडवाणी ने तत्कालीन चुनाव आयुक्त एसएल शकधर से मुलाकात कर नई पार्टी के लिए अटल की पसंद के चुनाव चिह्न साइकिल की मांग की थी।
किसी अन्य दल को यह चुनाव निशान आवंटित होने के कारण आडवाणी ने कमल को पसंद किया। उस समय आडवाणी के समक्ष चुनाव चिह्न के रूप में गुलाब के फूल का भी विकल्प था।