कांगड़ा: माता ज्वाला देवी मंदिर देश के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थानों में से एक है। ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीधार पहाड़ी के बीच बसा है। आपको बता दें कि मां ज्वाला देवी तीर्थ स्थल को देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माना जाता है। शक्तिपीठ वह स्थान कहलाते हैं जहां-जहां भगवान विष्णु के चक्र से कटकर माता सती के अंग गिरे थे।
मान्यता है कि मां ज्वाला के दरबार में जो भी भक्त नारियल चढ़ाता है उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। दरअसल नारियल ही एक ऐसी चीज है जो मां के ज्यादातर मंदिरों में चढ़ाने के लिए पवित्र मानी जाती है। इसकी कहानी बेहद दिलचस्प है। यह कहानी जुड़ी है मां ज्वाला यानि माता पार्वती से। कहते हैं कि ध्यानु भक्त मां सती का रूप माने जाने वाली मां ज्वाला जी का परम भक्त था।
अकबर के शासनकाल के दौरान वह भक्तों की एक टोली के साथ दिल्ली से दर्शन के लिए हिमाचल के कांगड़ा स्थित मां ज्वाला के दरबार आ रहा था। इसी दौरान अकबर ने उसकी रास्ते में परीक्षा ले ली। जब अकबर ने उसे वहां जाने का कारण पूछा तो ध्यानु भक्त ने कहा कि मां ज्वाला ही इस दुनिया में सबसे शक्तिशाली है और सबकी मुरादें पूरी करती है। तभी अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सिर काट दिया और कहा कि यदि तुम्हारी मां ज्वाला में इतनी ही शक्ति है तो इसका सिर दोबारा जोड़ कर लाओ।
ध्यानु काफी हैरान हुआ और मां के दरबार में पहुंचकर दिन रात तपस्या करने लगा। मगर मां ने दर्शन नहीं दिए। आखिरकार ध्यानु ने मां को प्रसन्न करने के लिए अपना सिर काटकर मां को अर्पित कर दिया। तभी उसे मां ज्वाला शेर पर सवार होकर दिखाई दी। मां ज्वाला जी के विशाल रूप को देखकर ध्यानु प्रार्थना करने लगा। मां ने भी अपने भक्त की मुराद पूरी की और दोनों के सिर वापस जोड़ दिए।
इसके बाद मां ज्वाला जी ने ध्यानु से कहा कि भविष्य में कोई ऐसा काम न करे, इसके लिए मां एक उपाय बताती हूं। जो भी भक्त मुझे शुद्घ नारियल अर्पित करेगा, उसकी सारी मनोकामनाएं अपने आप पूरी हो जाएंगी। इसी के बाद से मां ज्वाला जी के दरबार में नारियल चढ़ाया जाने लगा। हालांकि अब कई मंदिरों में नारियल चढ़ाने पर पाबंदी है लेकिन अभी भी हिमाचल के कई मंदिरों में इसकी परंपरा जारी है।