सरकार द्वारा तमाम तरीके से समझाए जाने के बाद भी पंजाब और हरियाणा में कई ऐसे किसान हैं, जो फसल कटाई के बाद खेतों में बचे फसल के पुआल को जलाना बंद नहीं कर रहे हैं। साल में दो बार व्यापक स्तर पर पुआल जलाने के कारण बड़े स्तर पर प्रदूषण फैलता है और यह दिल्ली तथा अन्य उत्तर भारतीय क्षेत्र में प्रदूषण का एक बड़ा कारण है।
दोनों ही राज्यों में गेहूं की कटाई लगभग पूरी हो चुकी है और अधिकारी किसानों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे खेत में पुआल नहीं जलाएं। दोनों ही राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पुआल जलाए जाने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर चिंतित हैं। हरियाणा में अधिकारियों ने किसानों को चेतावनी दी है कि गेहूं के पुआल जलाने पर लगी पाबंदी का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। जबकि पंजाब में इस नुकसानदेह प्रथा को समाप्त करने के लिए जिलों और गांवों के लिए ईनाम घोषित किए गए हैं।
युवा कृषक और पर्यावरणविद कुलतार सिंह ने कहा कि पुआलों को उखाड़ने में लगने वाले समय को बचाने के लिए किसान आम तौर पर ऐसा करते हैं। इससे उन्हें तुरंत तो फायदा हो सकता है, लेकिन लंबे समय में इससे भूमि की ऊर्वरता और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। हरियाणा के पर्यावरण विभाग ने वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1981 के तहत अधिसूचना जारी कर खेत में फसलों के पुआल जलाएं जाने पर पाबंदी लगा दी है।
हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा कि राज्य सरकार ने एक निर्देश जारी किया है कि फसलों के पुआल न जलाए जाएं, क्योंकि इससे कटाई के मौसम में वायु प्रदूषण बढ़ता है। उन्हें पुआल को मशीन से निकालना चाहिए और उसका उपयोग चारे या खाद के लिए करना चाहिए। हाल के वर्षों में बोर्ड ने कुरुक्षेत्र और फरीदाबाद के विशेष पर्यावरण अदालत में 32 किसानों के विरुद्ध मामला दर्ज किया है।
पंजाब में सरकार ने इस प्रथा को रोकने के लिए हाल में ही जिलों और गांवों के लिए एक करोड़ रुपये तथा एक लाख रुपये ईनाम की घोषणा की है।
पंजाब सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि इसे रोकने के लिए दंड देने का परिणाम नहीं निकल रहा है, इसलिए हमने ऐसे जिलों और गांवों को पुरस्कृत करने का फैसला किया है, जो फसलों के पुआल जलाना बंद कर देते हैं। इसके लिए हरियाणा सरकार विभिन्न मशीनों के उपयोग को बढ़ावा दे रही है।
कृषि विभाग के एक अधिकारी अशोक कुमार ने कहा कि किसानों को हैप्पी-सीडर, टर्बो सीडर, शेडर, बेलिंग मशीन और जीरो-सीड-कम-फर्टिलाइजर ड्रिल खरीदने के लिए सब्सिडी दी जा रही है। वैज्ञानिक रणबीर दहिया ने कहा कि कटाई सत्र में जलाने की इस क्रिया से प्रदूषण कई गुना बढ़ जाता है। खेत की ऊर्वरता भी घटती है।
एक टन धान की खड़ी पुआल जलाने से 5.5 किलोग्राम नाइट्रोजन, 2.3 किलोग्राम फास्फोरस, 25 किलोग्राम पौटेशियम और 1.2 किलोग्राम सल्फर का नुकसान होता है। इससे जमीन गर्म हो जाती है, जिससे चूहे, सांप और अन्य कई जीव-जंतु भी मर जाते हैं, जो फसलों के लिए फायदेमंद होते हैं। दहिया ने कहा कि यदि फसलों के पुआल को जमीन में ही रहने दिया जाए, तो जमीन की ऊर्वरता बढ़ती है।
दोनों ही राज्यों में गेहूं की कटाई लगभग पूरी हो चुकी है और अधिकारी किसानों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे खेत में पुआल नहीं जलाएं। दोनों ही राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पुआल जलाए जाने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर चिंतित हैं। हरियाणा में अधिकारियों ने किसानों को चेतावनी दी है कि गेहूं के पुआल जलाने पर लगी पाबंदी का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। जबकि पंजाब में इस नुकसानदेह प्रथा को समाप्त करने के लिए जिलों और गांवों के लिए ईनाम घोषित किए गए हैं।
युवा कृषक और पर्यावरणविद कुलतार सिंह ने कहा कि पुआलों को उखाड़ने में लगने वाले समय को बचाने के लिए किसान आम तौर पर ऐसा करते हैं। इससे उन्हें तुरंत तो फायदा हो सकता है, लेकिन लंबे समय में इससे भूमि की ऊर्वरता और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। हरियाणा के पर्यावरण विभाग ने वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1981 के तहत अधिसूचना जारी कर खेत में फसलों के पुआल जलाएं जाने पर पाबंदी लगा दी है।
हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा कि राज्य सरकार ने एक निर्देश जारी किया है कि फसलों के पुआल न जलाए जाएं, क्योंकि इससे कटाई के मौसम में वायु प्रदूषण बढ़ता है। उन्हें पुआल को मशीन से निकालना चाहिए और उसका उपयोग चारे या खाद के लिए करना चाहिए। हाल के वर्षों में बोर्ड ने कुरुक्षेत्र और फरीदाबाद के विशेष पर्यावरण अदालत में 32 किसानों के विरुद्ध मामला दर्ज किया है।
पंजाब में सरकार ने इस प्रथा को रोकने के लिए हाल में ही जिलों और गांवों के लिए एक करोड़ रुपये तथा एक लाख रुपये ईनाम की घोषणा की है।
पंजाब सरकार के एक प्रवक्ता ने कहा कि इसे रोकने के लिए दंड देने का परिणाम नहीं निकल रहा है, इसलिए हमने ऐसे जिलों और गांवों को पुरस्कृत करने का फैसला किया है, जो फसलों के पुआल जलाना बंद कर देते हैं। इसके लिए हरियाणा सरकार विभिन्न मशीनों के उपयोग को बढ़ावा दे रही है।
कृषि विभाग के एक अधिकारी अशोक कुमार ने कहा कि किसानों को हैप्पी-सीडर, टर्बो सीडर, शेडर, बेलिंग मशीन और जीरो-सीड-कम-फर्टिलाइजर ड्रिल खरीदने के लिए सब्सिडी दी जा रही है। वैज्ञानिक रणबीर दहिया ने कहा कि कटाई सत्र में जलाने की इस क्रिया से प्रदूषण कई गुना बढ़ जाता है। खेत की ऊर्वरता भी घटती है।
एक टन धान की खड़ी पुआल जलाने से 5.5 किलोग्राम नाइट्रोजन, 2.3 किलोग्राम फास्फोरस, 25 किलोग्राम पौटेशियम और 1.2 किलोग्राम सल्फर का नुकसान होता है। इससे जमीन गर्म हो जाती है, जिससे चूहे, सांप और अन्य कई जीव-जंतु भी मर जाते हैं, जो फसलों के लिए फायदेमंद होते हैं। दहिया ने कहा कि यदि फसलों के पुआल को जमीन में ही रहने दिया जाए, तो जमीन की ऊर्वरता बढ़ती है।