Saturday, September 26, 2015

जतिंदर जिम्मी बने बरनाला सर्कल के प्रधान



शिअदप्रदेशाध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के दिशा-निर्देशों पर शुक्रवार को बरनाला के देहाती शहरी जत्थेबंदक ढांचे की घोषणा की गई। शहरी विंग की सूची जारी करते हुए प्रधान संजीव शौरी ने बताया कि एडवोकेट राजीव गुप्ता, गुरविंदर सिंह, जीवन धनौला और गुरपाल तपा को जिला महासचिव, जतिंदर जिम्मी को बरनाला सर्कल का प्रधान मनोनीत किया। वहीं उग्रसेन को तपा सर्कल प्रधान और बाबू अजय को भदौड़ का प्रधान लगाया है। 

सीनियर वाइस प्रधान में सुखमहिंदर, अरुण, लक्की, दविंदर सिंहू, चरनजीत, नाजर सिंह और चरनजीत मैनेजर लिए हैं। राजीव वर्मा, बलविंदर, टीटू दीक्षित, तेजिंदर, रामपाल, रजनीश, दीनानाथ, सुखचैन, गुरचरन सिंह, गुरबचन, अजायब वाइस प्रधान बनाए गए हैं। कैशियर रूपिंदर अजय को और कमल शर्मा को पीआरओ नियुक्त किया है। नगर पार्षद करमजीत, इकबाल, कृष्ण कुमार, दर्शन कलेर, मुख्तयार सिंह, सुखपाल, सुरजीत, अमरजीत, महाबीर, सतिंदर, हाकम सिंह, राजिंदर, विशाल, धर्म सिंह, नाहर सिंह, मुख्तयार सिंह सचिव, जत्थेबंदक सचिव में यादविंदर, हरभजन, तेजा सिंह, सुखदेव, रछपाल, केवल, बलविंदर, गुरचरन, सुरजीत, रणजीत, रणधीर, हरजीत, बलराज, सुरजीत लिए हैं। हरनाम सिंह, बंत सिंह, बहादर सिंह, परवीन, जयपाल, राजीव, मनजीत, भूपिंदर, बंत सिंह, प्रीतम, बलवीर, मलकीत, हरनेक, गुरप्रीत, सुरजीत, अशोक, मलकीत, स्वर्ण, अमरीक, गमदूर, सरबजीत, जगरूपचंद, नरेश, विष्णु को कार्यकारी सदस्य बनाया है। 

तेजासिंह और संत दरबार सिंह बने सरपरस्त 

देहातीजिला प्रधान परमजीत सिंह ने तेजा सिंह और संत दरबार सिंह को सरपरस्त और साधू सिंह, जरनैल, महिंदर, गुरचरन, निहाल सिंह को सीनियर उपाध्यक्ष, करनैल सिंह, गुरतेज, कमिकर, शिंगारा, प्रेम को उपाध्यक्ष, जयपाल, गुरतेज, महिंदरपाल, हरदीप, बलदेव को महासचिव, अलबेल सिंह, बाघ सिंह, सुखविंदर, बचितर, हरचंद को सचिव, रणजीत, हरदेव, सरपंच मलकीत, जसवीर, बिक्कर सिंह को प्रचार सचिव, गुरजिंदर गोपाल प्रेस सचिव और सरबजीत, गुरजश्नजीत, कुलवंत, गुरदीप बिक्कर सिंह को तालमेल सचिव नियुक्त किया है। हरभजन, फतेह सिंह, मनजीत, हरपाल, हरमेल को जत्थेबंदक सचिव, गुरविंदर और कुलवंत को जिला लीगल एडवाइजर बनाया है। जंग सिंह और सर्कल जत्थेदार में मक्खन सिंह, चमकौर सिंह, सुखविंदर, बलराज, करमजीत, दर्शन सिंह, जरनैल सिंह, बाबू सिंह दर्शन सिंह वित्त सचिव बनाए गए हैं। सुरिंदर, भोला सिंह विर्क, रूपिंदर संधू, अजमेर सिंह, बलदेव, बीरइंदर, बुटा सिंह, चेतन, संत जश्वीर, हरपालइन्द्र को स्टेट कमेटी के लिए चुना है। गुरदियाल, गुरमीत, हरभजन, दिया सिंह, दर्शन सिंह, महिंदर सिंह, सरबजीत सिंह, साहिब सिंह, सरबजीत सिंह, बलवीर, हरमेश सिंह, सुरिंदर, गुरजंट सिंह, गुरमेल, चरनजीत सिंह, मग्घर सिंह, मेजर सिंह, जीत सिंह, चंद सिंह, भुपिंदर, जगराज, लखविंदर, सतनाम रूडेकेकलां, जीत सिंह, नाजर सिंह, गुरमीत सिंह, भगवानदास, केवल सिंह, शिंगारा, जीत सिंह, जगरूप सिंह, गुरमुख, गुरमीत, चेतराम, गुरमेल, गुरमेल सिंह, दर्शन सिंह, राजिंदर, भोला सिंह, सरपंच जीत सिंह, सूबेदार हरपाल सिंह, मगघर सिंह कुब्बे, सेवक सिंह, डोगर सिंह उगोके, हरनेक सिंह पंडौरी, सुरजीत सिंह, तेजा सिंह बल्लोके, अमरीक सिंह शैहणा, जबर सिंह, गुरजट सिंह, जत्थेदार तारा सिंह मेहता को कार्यकारी सदस्य लिया गया है। 
 देहाती प्रधान परमजीत खालसा ने कहा कि किसी को भी निराश नहीं किया जाएगा। बहुत जल्द दूसरी सूची और जारी की जाएगी, जिसमें जो नेता रह गए हैं उन्हें एडजस्ट किया जाएगा। काम करने वालों को बराबर का मान-सम्मान दिया जाएगा। 

धूल फांक रहे बस स्टैंड पर ~ 3 लाख में लगे सीसीटीवी कैमरे

बरनाला| शहरके बस स्टैंड पर दो साल पहले पुलिस नगर सुधार ट्रस्ट की तरफ से तीन लाख रुपए खर्च कर कुल 22 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे। मगर छह माह बाद ही ये सभी कैमरे खराब हो गए और किसी ने इनको ठीक करवाने पर ध्यान नहीं दिया। शहरवासियों की ओर से प्रशासन से कई बार कैमरे ठीक करवाने की अपील की जा चुकी है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। वहीं बस स्टैंड परिसर में लड़ाई-झगड़े स्नैचिंग की कई वारदात हो चुकी है। एक माह पहले ही यहां बस का इंतजार कर रही महिला के कानों से बाइक सवार बालियां छीनकर फरार हो गए थे। दो माह पहले ही बस स्टैंड के अंदर दो गुटों में हुई झड़प में तीन लोग घायल हो गए थे। अगर बस स्टैंड में लगे यह कैमरे ठीक हो तो यहां सुरक्षा पुख्ता हो सकती है। जिसका फायदा आमजन के साथ पुलिस को भी होगा।

जज की बेटी ने बुलाए शार्प शूटर और करवा दी अपने प्रेमी की हत्या

Thursday, September 24, 2015

बिना खर्च पाएं सेहत और चुस्ती - स्वामी चिन्मय नन्द जी महाराज


हवा व हरियाली के बीच किए जाने वाले पारंपरिक व्यायामों की कोई तुलना नहीं। बंद कमरे में घंटों पसीना बहाने की तुलना में खुले में दौड़ना या साइकिल चलाना ज्यादा फायदेमंद है।ये शब्द स्वामी चिन्मय नन्द जी महाराज ने पंचकुला में एक योग शिविर में शिरकत करते हुए कहे ! स्वामी चिन्मय नन्द जी महाराज ने कहा के 
योगिक क्रिया व ध्यान सांसों के जरिए तन-मन को साधने की क्रिया है। इससे चिंता, तनाव और मनोरोग दूर होते हैं। स्फूर्ति का एहसास होता है। हावर्ड मेडिकल स्कूल में मनोचिकित्सक जॉन डेनिनर पिछले पांच साल से पारंपरिक योग व ध्यान के जरिए मस्तिष्क क्रियाओं और जींस पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन कर रहे हैं। उनके अनुसार योग व ध्यान निरोगी रहने के लिए कारगर हैं। तन और मन की यह तकनीक शरीर में तनाव और रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करने वाले जींस को प्रभावित करती है।
योग विशेषज्ञों के अनुसार योग से शरीर में वायु तत्व की पूर्ति होती है। आहार संबंधी समस्याएं, हाई बीपी, कोलेस्ट्रॉल और मोटापे से जुड़ी समस्याओं से मुक्ति मिलती है। रोजाना आधा घंटा योगाभ्यास सेहत के लिए उत्तम है। इसके बाद शरीर पर सरसों, तिल या अश्वगंधा तेल की मालिश करके स्नान के पश्चात कुछ देर शांत चित्त ध्यान करना दिन की शुरुआत को बेहतर और तरोताजा बना सकता है। स्वामी चिन्मय नन्द जी महाराज ने कहा के शरीर को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने के लिए साइक्लिंग बेहतरीन उपाय है। साइकिल चलाना आसान भी है और इससे मांसपेशियों का लचीलापन भी बना रहता है। 80 किलोग्राम वजन का कोई व्यक्ति एक घंटे साइकिल चलाने पर 650 से ज्यादा कैलोरी की खपत कर सकता है। इससे पैर व शरीर का निचला हिस्सा मजबूत व सही आकार में बना रहता है। चढ़ाई वाली जगह पर साइक्लिंग करने से शरीर के ऊपरी हिस्से को मजबूती मिलती है। हृदय तंत्र को स्वस्थ रखने के लिए हफ्ते में 150 मिनट साइकिल जरूर चलाएं। इससे हृदय रोग, मधुमेह, मोटापे और बीपी की समस्या को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। साइकिल चलाने वालों में  फ्रेक्चर का खतरा कम होता है।

 स्वामी चिन्मय नन्द जी महाराज ने कहा के रक्तचाप, हाईबीपी, मधुमेह और दिल की बीमारियों से बचने के लिए सुबह की दौड़ आवश्यक है। नियमित दौड़ लगाने से याददाश्त तेज होती है और मानसिक रोगों की चपेट में आने की आशंका 30 फीसदी तक कम हो जाती है। एक औसत भार वाले व्यक्ति के एक मील दौड़ लगाने पर 100 कैलोरी की खपत होती है और मेटाबॉलिज्म की दर बढ़ जाती है। दौड़ने से पहले हल्की स्ट्रेचिंग करने से चोटिल होने की आशंका कम हो जाती है। दौड़ते समय गति अचानक बहुत कम या ज्यादा नहीं करनी चाहिए।
बागवानी
प्रकृति के करीब रहने का एक अच्छा तरीका है बागवानी, जिसे हॉर्टीकल्चर थेरेपी का नाम भी दिया गया है। मनपसंद पौधे लगाने और उनकी देखभाल करने से शारीरिक व्यायाम तो होता ही है, थकान और तनाव भी दूर हो जाते हैं। विभिन्न शोध यह बात साबित करते हैं कि फूलों को सूंघना और बगीचे की साफ-सफाई करना रक्तचाप को नियंत्रित करता है। यहां तक कि हरियाली को देखना मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहतर होता है। इससे तनाव और बेचैनी में कमी आती है।
तेज गति से चलें
विशेषज्ञों का मानना है कि सुबह ताजी हवा में टहलने से मस्तिष्क में एंडॉर्फिन हार्मोन उत्पन्न होते हैं, जिससे मूड अच्छा रहता है। मन में सकारात्मक विचार आते हैं। टहलने से हृदय और अन्य अंगों को पोषण देने वाली धमनियों में ब्लॉकेज की आशंका कम हो जाती है। मधुमेह रोगियों के लिए तेज गति से चलना ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने में मदद करता है और स्ट्रोक का खतरा कम हो जाता है। साल 2013 में अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की पत्रिका आर्टरियोस्केल -रॉसिस, थ्रोम्बोसिस एंड वेस्कुलर बायोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार तेज गति से टहलना हाई बीपी, मधुमेह और हृदय रोगों को रोकने में मदद करता है। शुरुआत 10 मिनट आराम से टहलने से करें। धीरे-धीरे गति बढ़ाते हुए समय-सीमा को बढ़ाएं। तेज गति से टहलने पर 30 मिनट में 90 से 200 कैलोरी तक बर्न होती है। रोज आधा घंटा तेज गति से चलना हफ्ते भर में 630-1400 कैलोरी कम कर सकता है। समरण रहे की परम पूजय स्वामी चिन्मयानन्द जी महाराज ने विशव को कैंसर मुक्त करने का लक्ष्य लिया हुआ है

दुख में जागें सुख में जागें -स्वामी चिन्मयानन्द जी महाराज

छोटे-छोटे जीवन के दुखों से प्रयोग शुरू करना पड़ेगा। जीवन में रोज छोटे दुख आते हैं, रोज प्रतिपल वे खड़े हैं। और दुख ही क्यों, सुख से भी प्रयोग करना पड़ेगा, क्योंकि दुख में जागना उतना कठिन नहीं है, जितना सुख में जागना कठिन है। सुख में दूर होना और भी कठिन है, क्योंकि सुख में हम पास होना चाहते हैं, और पास होना चाहते हैं; दुख में तो हम दूर होना ही चाहते हैं। यानी दुख में यह पक्का पता चल जाए कि दुख दूर है। अगर हम को यह पता चल जाए तो दुख से हमारा छुटकारा हो जाए। तो दुख में भी जागने के प्रयोग करने पड़ेंगे और सुख में भी जागने के प्रयोग करने पड़ेंगे। और इन प्रयोगों में जो उतरता है, वह कई बार स्वेच्छा से दुख वरण करके भी प्रयोग कर सकता है। सारी तपश्चर्या का मूल रहस्य इतना ही है। वह स्वेच्छा से दुख को वरण करके किया गया प्रयोग है।यह शब्द स्वामी चिन्मयानन्द जी महाराज ने ओशो आश्रम में बात करते हुए कहे !स्वामी जी ने कहा के ओशो की पुस्तक मैं मृत्यु सिखाता हूं, में आचार्य रजनीश ने लिखा है के जैसे एक आदमी उपवास कर रहा है, भूखा खड़ा है। वह भूख का प्रयोग कर रहा है... आमतौर से जो लोग उपवास करते हैं, उन्हें ख्याल भी नहीं होता कि क्या कर रहे हैं वे। वे सिर्फ भूखे हैं और कल भोजन करना है, उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। लेकिन उपवास का जो मौलिक प्रयोग है, वह यह है कि भूख है और भूख मुझसे दूर है, इसका अनुभव करना है, मैं भूखा नहीं हूं। तो भूख को अपने हाथ से पैदा करके यह जानने की भीतर चेष्टा चल रही है कि भूख वहां है, राम को भूख लगी है। मैं भूखा नहीं हूं। मैं जान रहा हूं कि भूख लगी है। और इसे जानना है, जानना है, जानना है... और उस घड़ी पर पहुंच जाना है, जहां भूख और मेरे बीच एक फासला हो, मैं भूखा न रह जाऊं। भूख में भी, मैं भूखा न रह जाऊं। शरीर भूखा रहे और मैं जानूं। मैं सिर्फ जानने वाला रह जाऊं। तब तो उपवास का बड़ा गहरा अर्थ हो जाता है। उसका अर्थ सिर्फ भूखा रहना नहीं है। अनशन और उपवास का यही फर्क है।  उपवास का मतलब है आवास- निकट, और निकट। किसके? किसके पास? अपने पास। अपने पास रहना और शरीर से दूर। तब फिर यह भी हो सकता है कि एक आदमी भोजन किए हुए भी उपवास में हो, क्योंकि अगर भोजन करते हुए भी वह जानता हो कि भोजन दूर हो रहा है और मैं कहीं और हूं तो उपवास है। और यह भी हो सकता है कि एक आदमी भोजन न किए हुए भी उपवास न हो, क्योंकि वह जानता हो कि मैं भूखा हूं। मैं भूखा मरा जा रहा हूं। उपवास तो एक मनोवैज्ञानिक बोध है, भूख से भिन्नता का।

तो ऐसे और दुख भी पैदा किए जा सकते हैं स्वेच्छा से भी। लेकिन स्वेच्छा से पैदा किए गए दुख बहुत गहरा प्रयोग हैं। एक आदमी कांटे पर भी लेट सकता है सिर्फ यह जानने के लिए कि कांटे मुझे नहीं चुभ रहे हैं, कांटे कहीं और छिदे हुए हैं और मैं कहीं और हूं। मैं कहीं और हूं, इस अनुभव के लिए दुख आमंत्रित भी किया जा सकता है। लेकिन अभी तो अन-आमंत्रित दुख ही काफी हैं। उन्हें और आमंत्रित करते जाने की कोई जरूरत नहीं है। दुख हमेशा ही बहुत हैं। अभी उनसे ही प्रयोग शुरू करना चाहिए। दुख ऐसे ही चले आते हैं। आए हुए दुख में भी यदि ये बोध रखा जा सके कि मैं भिन्न हूं, मैं दूर हूं तो दुख साधना बन जाता है। आए हुए सुख में भी साधना करनी पड़ेगी, क्योंकि दुख में तो हो सकता है कि हम अपने को धोखा भी दे दें, क्योंकि मन मानने को करता है कि दुख मैं नहीं हूं, लेकिन सुख को तो मन मानने को करता है कि मैं सुख हूं। इसलिए सुख में साधना और मुश्किल हो जाती है। असल में सुख से दूर अनुभव करना सबसे बड़ा दुख है। सुख से अपने को दूर अनुभव करना बहुत दुख है, क्योंकि वहां तो मन होता है कि डूब जाओ पूरे और भूल जाओ कि मैं अलग हूं। सुख डुबाता है, दुख तो वैसे ही तोड़ता है और अलग करता है। दुख के तो हम मजबूरी में ही साथ हैं, ऐसा मान पाते हैं, लेकिन सुख को तो हम पूरे प्राणों से अंगीकार कर लेना चाहते हैं।

आए हुए दुख में जागें, आए हुए सुख में जागें, और कभी-कभी प्रयोग के लिए आमंत्रित दुख में भी जागें। क्योंकि आमंत्रित दुख में थोड़ा फर्क है। क्योंकि जिसे हम बुलाते हैं, जिसे हम न्योता देते हैं, उसके साथ हम पूरे कभी नहीं डूब सकते। क्योंकि वह बुलाया हुआ है, निमंत्रित है, यह बोध भी फासला पैदा करता है। अतिथि कभी भी हम नहीं हो सकते। घर में आया हुआ अतिथि हमसे अलग ही है। जब हम दुख को अतिथि की तरह बुला लेते हैं कभी, तब वह अलग ही होता है, क्योंकि हमने उसे बुलाया है।
और ध्यान रहे, दुख को बुलाना एक बहुत महत्वपूर्ण प्रयोग है, क्योंकि सुख को सब बुलाना चाहते हैं, दुख को कोई भी बुलाना नहीं चाहता। और मजे की बात यह है कि जिस दुख को हम नहीं बुलाना चाहते, वह आता है; और जिस दुख को हम बुलाते हैं, वह आ ही नहीं पाता। आ भी जाता है तो द्वार के बाहर ही खड़ा रह जाता है। जिस सुख को हम बुलाते हैं, वह कभी नहीं आता; और जिस सुख को हम नहीं बुलाते, वह आ जाता है। तो दुख को जब बुलाने की क्षमता कोई जुटा लेता है, तब उसका मतलब यह है कि वह इतना सुखी हो गया है कि अब दुख बुला सकता है। अब दुखों को कहा जा सकता है कि आओ और ठहर जाओ। और अगर दुखों के प्रति हम जागते चले जाएं तो वह क्षमता आ जाएगी मृत्यु के क्षण तक कि हम मृत्यु में भी जाग सकेंगे। इसकी निरंतर तैयारी करनी पड़ेगी। और अगर यह तैयारी पूरी हो जाती है तो मृत्यु की घटना अद्भुत घटना है। पर इसकी तैयारी करनी पड़ेगी, ध्यान इसकी तैयारी है।

ध्यान, धीरे-धीरे कैसे मरा जाता है स्वेच्छा से, उसका प्रयोग है। कैसे हम भीतर सरकते हैं और कैसे हम शरीर को छोड़ते चले जाते हैं, उसका प्रयोग है। और ध्यान की तैयारी चले और चलती रहे तो मृत्यु के क्षण में पूर्ण ध्यान उपलब्ध हो जाएगा। और यह जो मृत्यु होगी जागे हुए, ऐसे व्यक्ति की आत्मा फिर जागी हुई ही जन्म लेती है। यह जो एक जन्म है जागे हुए व्यक्ति का, ऐसे ही व्यक्तियों को हम अवतार, तीर्थंकर, बुद्ध, जीसस और कृष्ण कहते रहे हैं। ऐसे लोगों को हम आदमी से अलग गिनते रहे हैं। उसका इतना ही कारण है कि वे निश्चित हमसे बहुत अलग हैं। और यह उनकी अंतिम यात्रा है इस पृथ्वी पर। और इसलिए कुछ उनमें है, जो हममें नहीं है; और कुछ उनमें है, जो हम तक पहुंचाने की वे अथक चेष्टा करते रहेंगे। फर्क उनमें और हममें इतना ही है कि उनका यह जन्म और पिछली मृत्यु जाग्रत हुई है, इसलिए यह पूरा जीवन जागा हुआ है।

चले जाने के बाद भी लोक में रहता है मनुष्य - स्वामी चिन्मयनन्द जी महाराज


कोई भी मनुष्य जब अपने पूर्वजों का श्राद्ध करता है, तब किसका श्राद्ध करता है, किस चीज का श्राद्ध करता है? क्या वह आत्मा का श्राद्ध करता है? नहीं। आत्मा सर्वव्यापी अर्थात् विभु है। उसके लिए मरण नहीं है, स्थानांतर अथवा लोकांतर नहीं है। इसलिए आत्मा के श्राद्ध का तो प्रश्न ही नहीं उठता। ये शब्द स्वामी चिन्मयनन्द जी महाराज ने एक विशेष भेटवार्ता में कहे !
स्वामी चिन्मयनन्द जी महाराज ने कहा के तब क्या मनुष्य देह का श्राद्ध करता है? नहीं, देह का भी नहीं। देह की तो राख या मिट्टी हो जाती है। कदाचित् देह अन्य प्राणियों का आहार बन कर उनके साथ एकरूप भी हो गई हो। मृत देह को खाने वालों सियारों, भेडि़यों या गिद्धों का हम श्राद्ध नहीं करते। अथवा संभव हो कि देह में कीड़े पड़ गए हों और उनका ही एक बड़ा देश बस गया हो; लेकिन उनकी तृप्ति के लिए भी हम तर्पण नहीं करते अथवा पिंड नहीं रखते।

अब बाकी बचता है मरने वाले मनुष्य की वासनाओं का समुच्चय अथवा पीछे रहने वाले लोगों के मन में रही मृतक-संबंधी भावनाओं का समुच्चय। जिन दो वासनात्मक और भावनात्मक देहों द्वारा मनुष्य मृत्यु के बाद शेष रहता है, इन दो में से एक देह का अथवा दोनों देहों का श्राद्ध संभव तो है।

लोक-कल्पना यह है कि मरा हुआ पूर्वज महाशूर, क्रूर, पेटू या आलसी हो तो उसका वासना समुच्चय अथवा लिंग-शरीर बाघ या भेडि़ए के शरीर में जन्म लेता है। यदि वह मिलनसार न होगा तो बाघ की योनि प्राप्त करेगा। समान शील वालों का संघ बनाने की वृत्ति वाला होगा तो भेडि़ए की योनि उसके लिए अधिक अनुकूल सिद्ध होगी। परंतु श्राद्ध इन बाघों या भेडि़यों का नहीं होता। 

ऐसा हो, तब तो उनके नाम पर खीर और लड्डू अर्पण करने के लिए किसी वेद-शास्त्र-संपन्न ब्राह्मण को बुलाने पर यह तमाशा हो सकता है कि हमारे पूर्वज खीर और लड्डू के बदले उसी ब्राह्मण को ही पसंद करें और चट कर जाएं; और श्राद्ध में एक समय जो पशु हत्या होती थी, उसके बदले ब्रह्महत्या हो जाए!
(मानव-पिता मनु भगवान ने कहा है कि 'मां स भक्षयिताऽमुत्र यस्य मांसं इहाद्म्यहम् इति मांसस्य मांसत्वम्'- जिसका मांस यहां मैं खाता हूं, व (स:) मुझे (मां) परलोक में खाएगा। इसलिए मांस को मांस कहते हैं। इस न्याय से यदि हम श्राद्ध का विचार करें तो कहना होगा कि दुनिया में सब जगह श्राद्ध ही चल रहा है।)

पूर्वजों में कोई अपने कर्मों, वासनाओं और संस्कारों के अनुरूप किसी भी योनि में गया हो और वहां अपनी पुरानी वासनाओं की तृप्ति करते-करते नई वासनाओं का बंधन रचता हो तो उससे हमारा कोई वास्ता नहीं। हमारा कोई पूर्वज शरीर छोड़ कर चला गया हो तो भी इस लोक में उसका संपूर्ण नाश नहीं होता। उसके द्वारा किए गए अच्छे-बुरे कर्म, उसके द्वारा प्रेरित अच्छी-बुरी प्रवृत्तियां और उसके द्वारा मानव-स्वभाव के विकास में की गई वृद्धि- यह सब उसके चले जाने के बाद भी इस लोक में मौजूद रहता है।

उसके साथ जिनका संबंध था, उन सगे-संबंधी, शत्रु-मित्र आदि लोगों की स्मृति और भावना में वह पहले की तरह ही जीवित रहता है; इतना ही नहीं, उसके बाकी रहे स्मृतिगत  जीवन में दिन-प्रतिदिन परिवर्तन भी होते रहते हैं। मृत्यु के बाद उसका निवास एक ही शरीर में नहीं रहता; स्मृति के रूप में, कार्य के रूप में अथवा प्रेरणा के रूप में वह जितने समाज में व्याप्त होगा, उस समस्त समाज में उसका निवास होता है; और उसके इस जीवन को लक्ष्य में रख कर ही उसका श्राद्ध संभव हो सकता है। शिवाजी महाराज जैसे पुण्यश्लोक राजा ने मोक्ष प्राप्त किया हो या इस देश अथवा दूसरे देश में राष्ट्र-पुरुष का जन्म लिया हो; उनकी इस नई यात्रा- कैरियर- का हम श्राद्ध नहीं करते। आज हम उन शिवाजी महाराज का श्राद्ध करते हैं, जो हमारे हृदय में बस कर जीते हैं, वहां बड़े होते हैं- विभूति के रूप में बढ़ते हैं। 
श्राद्ध मरे हुए जीवों का नहीं होता; परंतु देहत्याग करने के बाद उनका जो अंश समाज में जीवित रहता है, समाज के द्वारा प्रवृत्ति करता है, विकसित होता है और पुरुषार्थ करता है, उसी का श्राद्ध हो सकता है। यह मरणोत्तर सामाजिक जीवन ही सच्चा पारलौकिक जीवन है।

फास्टवे के विरुद्ध केबल ऑपरेटर्स हाईकोर्ट पहुंचे, सुखबीर को नोटिस

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बिहार में भाजपा को ही फायदा नजर आ रह है

अंग्रेजी हुकूमत के समय से ही देश के नेताओं व समाजसेवियों ने जाति प्रथा को खत्म करने का अथक प्रयास किया था। इसके लिए कई बार आंदोलन हुआ। आजादी के कुछ वर्ष बाद भी नेताओं ने इस प्रयास को आगे बढ़ाया। काफी हद तक इसमें सफलता भी मिली। लेकिन बाद के वर्षो में नेताओं ने सत्ता के लोभ में जाति की राजनीति करनी शुरू कर दी। अब तो जाति देखकर प्रत्याशियों को चुनाव में टिकट दिया जा रहा है। टिकट बंटवारे में प्रत्याशियों की योग्यता और पकड़ को नजरअंदाज किया जाता है। इससे स्थिति बिगड़ती जा रही है। जाति की राजनीति से देश विकास की ओर नहीं, बल्कि विनाश की ओर बढ़ रहा है। देश की आजादी के समय राजनीति में लोग राष्ट्र प्रेम व सेवा की भावना से आते थे। लेकिन अब सत्ता के लोभ में लोग राजनीति में आ रहे हैं। ऐसी राजनीति को देखकर मन में घृणा होती है।

पहले की राजनीति समाजसेवा के लिए पूर्ण रूप से समर्पित राजनीति थी, जबकि आज की राजनीति एक व्यवसाय बनकर रह गई है।चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी राष्ट्रीय भावना व लोक कल्याण से लवरेज होते थे। नेता अपनी सादगी, ईमानदारी, व नम्रता के कारण मतदाताओं के बीच अपने लगते थे। ये लोग साइकिल व पैदल चलकर मतदाताओं से संपर्क करते थे। टिन की कटिंग कर के चुनाव चिन्ह व प्रत्याशी का नाम अंकित करते थे। दीवारों पर खुद ब्रश से पेटिंग करते थे। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कार्यकर्ता घर से रोटी पानी  लेकर  वोट मांगने निकलते थे। गांव के लोग चाहे उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता दूसरे दल के साथ हो, लेकिन आदर सत्कार के लिए तत्पर रहते थे। कोई कटुता नहीं, कोई द्वेष नहीं।
परन्तु आज की राजनीती का अलग ही दरिष्य देखने को मिल रहा है आज राजनीती में पैसे और जात -पात  का बोलबाला है !हठी के दन्त खाने के और दिखने के और वाली कहावत आज लागु होती दिखाई दे रही है !भाजपा और ओबीसी एक दूसरे को  रोज पानी पी पी कर कोसते नहीं थकते !पर चुनाव में दोनों की मिली भगत साफ दिखाई दे रही है ! एम आई एम ने बिहार में अपने कैंडिडेट्स मुस्लिम बहुल खेतर में उतार दिए है जो मुस्लिम वोट बैंक को काट कर भाजपा को ही फायदा देते नजर आ रहे है !अमित शाह का चुनावी गणित यहाँ ठीक बैठता लग रहा है !
अब चर्चा कर लेते हैं बिहार के वोटर की मौजूदा सोच क्या कहती है। 
तीन या चार जातियों की तमन्ना किसी भी कीमत पर भाजपा को जीत दिलाने की है। मगर उनकी बिहार की आबादी में हिस्से दारी १५% से भी कम है। हाँ मगर लोजपा और माझी के साथ आजाने से एन डी ए घठबंधन का वोट शेयर काफी बढ़ा है जिसके कारण भाजपा सभी सीटों पर मुकाबले की सिथति में आ गयी है जिससे भाजपा को फायदा होने के आसार है !  जनता की पहली पसंद नितीश कुमार ही हैं और एक विशेष वर्ग को छोड़ कर कहीं भी एन्टीइनकेम्पेसी के पद्धचिन्ह दिखाई नहीं पड़े। नितीश के हिस्से की सीटों पर यादव १५% मुस्लिम १४% महादलित नितीश समर्थको को मिला कर सरकार बनाने के समीकरण बैठा रहे है !
 पिछले चुनाव में मुस्लिम दलित महादलित वोटो का नितीश एनडीए घटबन्धन और राजद के बीच बटवारा हो गया था। इसबार भी ये बटवारा जारी रहने की संभावना बन रही है ! 
आगे होने वाले बदलाव घटनाओ पर आधारित होंगे। अगर कोई बड़ी घटना नहीं घटी तो परिणाम ऐसे ही आने की संभावना है। 
आएये जानते है बिहार की लीडरशिप के बारे में 


नाम:सुशील मोदी

सुशील मोदीः जेपी आंदोलन से पहचान और अब सोशल मीडिया के शहंशाह
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के नेता सुशील कुमार मोदी जितना राजनीति में सक्रिय है उतना ही सोशल मीडिया में अपनी उपस्थिति बराबर बनाये हुए हैं। छात्र जीवन से राजनीति में सक्रिय सुशील कुमार मोदी 1971 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के 5 सदस्यीय कैबिनेट के सदस्य निर्वाचित हुए हैं। 1973-1977 में मोदी पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के महामंत्री बने उसी वर्ष लालू प्रसाद यादव अध्यक्ष और रविशंकर प्रसाद संयुक्त सचिव चुने गये थे।
मोदी एवं आंदोलन सुशील कुमार मोदी छात्र जीवन से एक आंदोलनकारी छात्र रहे हैं। 1972 में मोदी पहली बार छात्र आंदोलन के दौरान 5 दिन जेल में रहे। जेपी आंदोलन एवं आपातकाल के दौरान 1974 में उनको 5 बार मीसा में गिरफ्तार किया गया। आपातकाल के 19 महीने की जेल यात्रा को मिलाकार मोदी 24 महीने जेल में रहे।
भाजपा में दायित्वः भारतीय जनता पार्टी में सुशील कुमार मोदी को कई दायित्व दिये गये। 1995 में मोदी भाजपा विधानमंडल के मुख्य सचेतक निर्वाचित हुए और उसी वर्ष उनको भाजपा ने राष्ट्रीय मंत्री भी बनाया। वर्ष 2004 में मोदी भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने और 2005 में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बने। बिहार सरकार में मोदी वर्ष 2000 में संसदीय कार्य मंत्री बने और 2005 में लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर बिहार विधान परिषद के सदस्य बने। 2012 में मोदी दूसरी बार बिहार विधानसभा के सदस्य बने। 2005 में मोदी बिहार के उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री बने।
जीवन परिचय
जन्म: 5 जनवरी 1952 पिता: स्व मोती लाल मोदी माता: स्व रत्ना देवी पत्नी: प्रो डाॅ जेसी सुशील मोदी, प्राचार्य, वीमेन्स ट्रेनिंग कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय शिक्षा: पटना साइंस कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय से स्नातक।

नितीश कुमार -



जेपी आंदोलन से खड़े हुए नीतीश कुमार 
वर्ष 1974-1977 में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन की उपज रहे नीतीश कुमार उस समय समाजसेवी एवं राजनेता सत्येन्द्र नारायण सिन्हा के काफी करीबी रहे थे। पटना के राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान से विद्युत अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) की शिक्षा के साथ ही नीतीश कुमार जेपी आंदोलन में कूद पड़े। वर्ष 1985 में नीतीश कुमार पहली बार बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गये। इसके बाद 1987 में उन्हें युवा लोकदल का अध्यक्ष बनाया गया।
1989 में बिहार जनता दल के सचिव बने और उसी साल लोकसभा चुनाव में लोकसभा सदस्य चुने गये थे। राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद 1990 में पहली बार नीतीश कुमार केन्द्रीय मंत्रीमंडल में बतौर कृषि राज्यमंत्री की हैसियत से शामिल हुए। वर्ष 2000 में नीतीश कुमार केवल सात दिनों के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बने। सात दिन बाद उनको त्यागपत्र देना पड़ा। उसी साल वे फिर से केन्द्रीय मंत्रीमंडल में कृषि मंत्री बने। मई 2001 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में नीतीश कुमार केन्द्रीय रेलमंत्री रहे।
2004 के लोकसभा चुनाव में बिहार की बाढ़ और नालंदा से चुनाव लड़े लेकिन बाढ से चुनाव हार गये। नंवबर 2005 में राष्ट्रीय जनता दल की बिहार में पंद्रह साल पुरानी सत्ता को उखाड़ फेकने में सफल हुए और मुख्यमंत्री बने। 2010 के बिहार विधानसभा चुनावों में अपने विकास कार्यों के आधार पर भारी बहुमत से गठबंधन को विजयी बनाया और पुन: मुख्यमंत्री बने। 2014 में लोकसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। और 22 फरवरी 2015 को पुन मुख्यमंत्री बने। नीतीश कुमार से टिवटर के जरिये बात कर सकते हैं।
ट्विटर पर @NitishKumarJDU
जन्म तिथि: 1 मार्च 1951
जन्म स्थान: बख्तियापुर, जिला- पटना, राज्य- बिहार
पिता का नाम: स्वर्गीय श्री कविराज राम लखन सिंह
माता का नाम: श्रीमती परमेश्वरी देवी
शिक्षा: बीएससी अभियांत्रिकी, इंजीनियरिंग
राजनीतिक सफर 1985-89: सदस्य, बिहार विधान सभा 1986-87: सदस्य, याचिका समिति, बिहार विधान सभा 1987-88: अध्यक्ष, युवा लोक दल, बिहार 1987-89: सदस्य, सार्वजनिक उपक्रमों, बिहार विधान सभा पर समिति 1989: महासचिव, जनता दल, बिहार 1989: 9वीं लोकसभा में सांसद चुने गये 1989-16/7/1990: सदस्य, सदन समिति (इस्तीफा दे दिया) 4/1990-11/1990: संघ राज्य, कृषि एवं सहकारिता मंत्री आपरेशन 1991: लोकसभा सदस्य 1991-93: महासचिव, जनता दल 98-99: केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने मंत्री, रेल 98-99 : केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने मंत्री, भूतल परिवहन (अतिरिक्त प्रभार) 2005 : मुख्यमंत्री, बिहार 22.02.2015 पुन: मुख्यमंत्री
नाम:लालू यादव
लालू प्रसाद यादवः वाकपटुता और जमीनी समझ से पाई सफलता
लालू प्रसाद यादव बिहार की राजनीति का एक बड़ा नाम है। वैसे रेलमंत्री के तौर पर भी उनकी बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। 11 जून 1947 को बिहार के गोपालगंज जिले के फूलवरिया गांव में जन्मे लालू ने प्रारंभिक शिक्षा गोपालगंज से प्राप्‍त की। कॉलेज की पढ़ाई के लिए वे पटना चले आए। पटना के बीएन कॉलेज से इन्‍होंने स्‍नातक तथा राजनीति शास्‍त्र में स्‍नातकोत्‍तर की पढ़ाई पूरी की। इसके अलावा पटना लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की।
लालू प्रसाद कॉलेज के समय से ही छात्र राजनीति से जुड़ने लगे। इसी दौरान वे जयप्रकाश नारायण आंदोलन का हिस्‍सा बने और जयप्रकाश नारायण, राजनारायण, कर्पुरी ठाकुर तथा सतेन्‍द्र नारायण सिन्‍हा जैसे राजनेताओं से मिलकर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। 29 वर्ष की आयु में ही वे जनता पार्टी की ओर से 6ठी लोकसभा के लिए चुन लिए गए।
लालू प्रसाद 10 मार्च 1990 को पहली बार बिहार प्रदेश के मुख्‍यमंत्री बने तथा दूसरी बार 1995 में मुख्‍यमंत्री बने। 1997 में लालू प्रसाद जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल पार्टी बनाकर उसके अध्‍यक्ष बने। 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में ये बिहार के छपरा संसदीय सीट से जीतकर केंद्र में यूपीए शासनकाल में रेलमंत्री बने और रेलवे को काफी मुनाफा दिलवाया। 2009 में एक बार फिर वे लोकसभा के लिए चुन लिए गए। लालू प्रसाद 8 बार बिहार विधानसभा के सदस्‍य भी रह चुके हैं तथा 2004 में वे पहली बार बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता बने। 2002 में छपरा संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में वे दूसरी बार लोकसभा सदस्‍य बने।
चारा घोटाले से राजनीतिक कॅरियर फंसा
लालू प्रसाद पर 9.50 बिलियन के चारा घोटाले का आरोप भी है, जो इन्‍होंने अपने बिहार के मुख्‍यमंत्री के शासनकाल में किया था। इसी सिलसिले में वे कई बार जेल भी जा चुके हैं। 3 अक्‍टूबर 2013 को रांची स्थित सीबीआई के विशेष अदालत ने 5 साल की सजा और 25 लाख का जुर्माने की सजा सुना दिया। कोर्ट ने लालू प्रसाद को चाईबासा कोषागार से 37 करोड़ 68 लाख रूपए को गबन करने का आरोप में दोषी पाया था।
बोलने की शैली के लिए मशहूर
लालू प्रसाद अपने बोलने की शैली के लिए मशहूर हैं। इसी शैली के कारण लालू प्रसाद भारत सहित विश्‍व में भी अपनी विशेष पहचान बनाए हुए हैं। अपनी बात को कहने का लालू यादव का खास अदांज है। बिहार की सड़कों को हेमा मालिनी के गालों की तरह बनाने का वायदा हो या रेलवे में कुल्हड़ की शुरुआत, लालू यादव हमेशा ही सुर्खियों में रहते हैं। इनकी रुचि खेलों तथा सामाजिक कार्यों में भी रही है। 2001 में वे बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के अध्‍यक्ष भी रह चुके हैं और आज उनका बड़ा बेटा तेजप्रताप बिहार क्रिकेट रणजी टीम का सदस्‍य है।
नाम:जीतनराम मांझी
बिहार के 23वें मुख्यमंत्री रहे जीतन राम मांझी महादलित मुसहर समुदाय के पहले मुख्यमंत्री रहे। 20मई 2014 को जनता दल (यूनाइटेड) के नेता के रूप में मांझी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 20 फरवरी 2015 को पद से इस्तीफा दे दिया।
मांझी का जन्म 6 अक्तूबर 1944 को बिहार के गया जिले के खिजरसराय के महकार गांव में हुआ। उनके पिता रामजीत राम मांझी खेतिहर मजदूर थे। 1966 में मांझी ने गया महाविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की। जीतन राम मांझी की पत्नी शान्ति देवी है और उनके दो बेटे और पांच बेटियां हैं। मांझी ने 1966 में टाइपिस्ट के रूप में नौकरी शुरू की और 1980 में नौकरी छोड़ राजनीति में कदम रखा।
विधान सभा क्षेत्र: मखदुमपुर
शैक्षणिक योग्यता: बीए, मगध विश्वविद्यालय
कुल संपत्ति का विवरण: 18 लाख 14 हजार रुपए
फौजदारी मुकदमें: शून्य
राजनीतिक प्रवेशः जीतन राम मांझी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के टिकट पर 1980 में राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने फतेहपुर क्षेत्र से विधानसभा चुनाव जीता। मांझी ने कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों बिन्देशवरी दुबे, सत्येन्द्र नारायण सिन्हा और जगन्नाथ मिश्रा के नेतृत्व में लगातार मंत्रिमंडल में राज्य के एक मंत्री के रूप में काम किया। 2008 में बिहार केबिनेट में चुने गये। मुख्यमंत्री बनने के 10 महीनों के बाद नीतीश कुमार ने उन्हें पद छोड़ने को कहा और ऐसा न करने पर उनको पार्टी से निष्कासित कर दिया।
जदयू से मोहभंगः 20 फरवरी 2015 को बहुमत साबित न कर पाने के कारण उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी अलग पार्टी राजनीतिक मोर्चे हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा बनाई।
सोशल मीडियाः जीतन राम मांझी भी फेसबुक जैसी सामाजिक मीडिया पर सक्रिय है।
नया समीकरणः 11 जून 2015 को जीतन राम मांझी ने भाजपा के साथ गठबंधन की घोषणा की।
पप्पू यादव
राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने पहली बार लोक सभा चुनाव 1991 में जीता, उसके बाद 1996, 1999 और 2004 में भी अलग अलग चुनाव क्षेत्रों से एसपी, एलजेपी और आरजेडी पार्टी से चुनाव जीते। यही नहीं पप्पू यादव 2015 के बेस्ट परफॉर्मिंग सासंद भी हैं।

हत्याकांड में बने थे आरोपी
फरवरी 2008 में मार्क्सवादी कमयूनिस्ट पार्टी के विधायक अजीत सरकार की हत्या के आरोप में निचली आदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था। उस दौरान 2009 में पप्पू यादव पर आम चुनाव लड़ने से रोक लग गई थी। 2014 के आम चुनावों में पप्पू यादव ने शरद यादव को हराया था।

कैश फॉर वोट मामला
नवंबर 2013 में रिलीज हुई आत्मकथा द्रोहकाल का पाथिक में पप्पू यादव ने 2001 में पूर्व वित्तीय मंत्री यशवंत सिंहा ने उनके पार्टी के तीन सांसदों को एनडीए में शामिल होने के लिए पैसे दिए थे। उन्होंने दावा कर लिखा कि 2008 में ट्रस्ट वोट के दौरान कांग्रेस और भाजपा दोनों ने सांसदों के समर्थन के लिए 40 करोड़ देने का वादा किया था।
 रानीतिक पार्टिया -
जीवन परिचय
जन्म: 24 दिसंबर, 1967
पत्नी: रंजीत रंजन, कांग्रेस नेता है और सुपौल से सांसद हैं।
संतान: एक बेटा, एक बेटी
शिक्षा: बी.एन मंडल विश्वविद्यालय, बीए राजनीति विज्ञान और इगनू से आप्दा प्रबंधन और मानवाधिकार में डिप्लोमा

नाम:भाजपा
भारतीय जनता पार्टी का उदय 1980 में हुआ। इससे पहले 1977 से 1979 तक इसे जनता पार्टी और उससे भी पहले 1951 से 1977 तक भारतीय जन संघ के नाम से जाना जाता रहा था। भाजपा को हिंदुत्व की अवधारणा पर चलने के कारण राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ या आरएसएस की राजनीतिक इकाई भी कहा जाता है।
भारतीय जनता पार्टी का इतिहास तीन हिस्सों में बांटा हैः
भारतीय जन संघ
इसकी स्थापना श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में की। पार्टी को पहले आम चुनाव में कोई ख़ास सफलता नहीं मिली लेकिन इसे पहचान जरूर मिली। भारतीय जन संघ ने शुरू से ही कश्मीर की एकता, गौ रक्षा, ज़मींदारी प्रथा और परमिट-लाइसेंस-कोटा राज ख़त्म करने जैसे मुद्दों पर ज़ोर दिया। 1975 में आपातकाल के दौरान दूसरी विपक्षी पार्टियों की तरह जन संघ के भी हज़ारों कार्यकर्ता और नेता जेल गए।
जनता पार्टी
1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस की हार हुई। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और भारतीय जन संघ के अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री और लालकृष्ण आडवाणी को सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया गया। लेकिन आपसी गुटबाज़ी और लड़ाई की वजह से ये सरकार 30 महीनों में ही गिर गई।
भारतीय जनता पार्टी
1980 के चुनावों में विभाजित जनता पार्टी की हार हुई। भारतीय जन संघ जनता पार्टी से अलग हुआ और इसने अपना नाम बदल कर भारतीय जनता पार्टी रख लिया। अटल बिहारी वाजपेयी पार्टी इसके अध्यक्ष बने। भाजपा ने बोफ़ोर्स तोप सौदे को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को घेरा। 1989 के चुनावों में भाजपा ने विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल से सीटों का तालमेल किया। इन चुनावों में भाजपा ने लोकसभा में अपने सदस्यों की संख्या 1984 में दो से बढ़ाकर 89 तक पहुंचाई। विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार को भाजपा ने बाहर से बिना शर्त समर्थन दिया। बाद में पार्टी नेताओं ने अपने इस फ़ैसले को अनुचित भी ठहराया।
चुनाव चिह्न्: कमल
बिहार के प्रमुख नेता: सुशील कुमार मोदी, नंद किशोर यादव, मंगल पाण्डेय, रवि शंकर प्रसाद, सीपी ठाकुर, राधा मोहन सिंह, भोला सिंह, अश्विनी चौबे, गिरिराज सिंह, गोपाल नारायण सिंह, शाहनवाज हुसैन।
बिहार से भाजपा सांसद :  सतीश कुमार दूबे- वाल्मिकी  नगर, नित्यानंद राय- उजियारपुर, ओम प्रकाश यादव- सीवान, रामा देवी-शिवहर, छेदी पासवान- सासाराम, राजीव प्रताप रूडी- सारण, राधा मोहन सिंह- पूर्वी चंपारण, शत्रुघ्न सिन्हा-पटना साहिब, रामकृपाल यादव- पाटलिपुत्र, डॉ. संजय जायसवाल पश्चिम चंपारण, गिरिराज सिंह- नवादा, अजय निषाद- मुजफ्फरपुर, जर्नादन सिंह सिग्रीवाल- महराजगंज, हुकुमदेव नारायण यादव- मधुबनी, विरेंद्र कुमार चौधरी-झंझारपुर, जनक राम-गोपालगंज, हरि मांङी-गया, कीर्ति आजाद-दरभंगा, अश्विनी कुमार चौबे-बक्सर, भोला सिंह-बेगूसराय, सुशील कुमार सिंह-औरंगाबाद, राजकुमार सिंह-आरा।
राज्यसभा सांसद : धर्मेद्र प्रधान, रविशंकर प्रसाद, आरके सिन्हा और सीपी ठाकुर
बिहार भाजपा अध्यक्ष- मंगल पांडेय
विधानमंडल के नेता-सुशील कुमार मोदी।
संदन में प्रतिपक्ष के नेता- नंदकिशोर यादव
राज्य प्रभारी: भूपेंद्र यादव, पता-4, मीणा बाग, मौलाना आजाद रोड, नई दिल्ली-110001
चुनाव प्रभारी-अनंत कुमार
संपर्कः भाजपा प्रदेश कार्यालय, वीरचंद पटेल पथ

नाम:जनता दल यूनाइटेड

पार्टी को लोगों के बीच जदयू के नाम से जानी जाती है। यह भारत की क्षेत्रीय पार्टी है। पार्टी का दबदबा मुख्यतः बिहार के अलावा झारखंड में है। लोकसभा सीट के लिहाज से यह पांचवीं बड़ी पार्टी है। 545 सीटों वाली लोकसभा में इसके 20 सांसद हैं।
जबकि राज्यसभा में आठ सीट इस पार्टी के पास हैं। इस पार्टी के संस्थापक शरद यादव हैं। इस पार्टी की जड़ें मुख्यतः जनता पार्टी से जुड़ी हैं। जनता पार्टी का निर्माण इंदिरा गांधी के समय में कांग्रेस विरोधी पार्टी के तौर पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने किया था। 1999 में जनता पार्टी जनता दल के रूप में टूट गई। जद सेक्यूलर का निर्माण एचडी देवेगौड़ा ने किया। अक्टूबर 2003 में लेाकजनशक्ति पार्टी और समता पार्टी मिलकर बन गया जनता दल यूनाइटेड। जार्ज फर्नांडिज और शरद यादव ने मिलकर जदयू बना लिया।
जदयू इस समय बिहार की सबसे बड़ी और प्रमुख पार्टी है। वर्तमान में सरकार में रहते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। बिहार में वैसे तो पिछले चुनाव और इस लोकसभा चुनाव से पहले तक ये पार्टी एनडीए की घटक दल थी। लेकिन लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम पर जदयू ने एनडीए छोड़ दिया था। ताजा घटनाक्रम में अब बिहार में जदयू, लालू की जनता दल और कांग्रेस पार्टी ने गठबंधन कर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। पिछले चुनाव तक नीतीश के लिए लालू यादव उनके प्रमुख विपक्षी हुआ करते थे।
चुनाव निशानः जनता दल यूनाइटेड का चुनाव निशान तीर का निशान है। असल में यह चुनाव निशान विभाजन से पूर्व के जनता दल का था। बाद में समता पार्टी से विलय के बाद पार्टी ने चुनाव निशान हरी पट्टियों के बीच तीर को चुना।
पार्टी के प्रमुख नेताः
जयदू के प्रमुख नेताओं की सूची निम्नलिखित हैः
शरद यादव, अध्यक्षः वह पार्टी के अध्यक्ष हैं।
साथ ही 15वीं लोकसभा में मधेपुरा संसदीय सीट से सांसद भी हैं। उन्हें संसद में अपनी उत्कृष्ट भूमिका के लिए 2012 का सर्वश्रेष्ठ सांसद अवार्ड से भी सम्मानित किया गया।
केसी त्यागी, महासचिवः वह राज्यसभा से सांसद हैं। इसके अलावा इन पर जदयू के प्रवक्ता पद की भी जिम्मेदारी है।
शिवानंद तिवारीः राज्यसभा में जदयू के प्रतिनिधि के तौर पर सांसद हैं। इसके अलावा वह पार्टी महासचिव और प्रवक्ता भी हैं। यह लालू की राजद को छोड़कर पार्टी में शामिल होने वाले नेताओं में से हैं।
नीतीश कुमारः वर्तमान विधानसभा में सदन के नेता और मुख्यमंत्री हैं।
इसके अतिरिक्त जावेद राजा (महासचिव), भीम सिंह (महासचिव), मौलाना गुलाम रसूल बालियावी (महासचिव), अफाक अहमद खान राष्ट्रीय सचिव, वीरेंद्र सिंह भिदुरी, राष्ट्रीय सचिव और राजीव कुमार जायसवाल राष्ट्रीय सचिव।

नाम:लोजपा
यह भारत की खासतौर पर बिहार की शीर्ष स्थानीय पार्टी है। पार्टी का जनाधार निचली जाति और दलित समुदाय के बीच है। इस पार्टी की स्थापना सन 2000 में वरिष्ठ राजनेता राम विलास पासवान ने किया था। उस समय बहुत कम लोगों को साथ लेकर उन्होंने पार्टी का शुरू किया था। पार्टी का लक्ष्य गरीब और निचले तबके को जोड़ना था। तभी पार्टी का नाम रखा गया लोक जनशक्ति पार्टी।
कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के गठबंधन में पार्टी ने हमेशा अच्छा प्रदर्शन किया है। 2004 लोकसभा चुनाव में गठबंधन के साथ पार्टी ने चार सीटों पर कब्जा किया। इसके बाद विधानसभा चुनाव में भी पासवान 29 सीटों को समेटने में कामयाब रहे।
चुनाव चिह्नः चुनाव आयोग ने लोक जनशक्ति पार्टी को चुनाव निशान के तौर पर बंगला निर्धारित किया है।
पार्टी के बड़े नेताः
रामविलास पासवानः राष्ट्रीय अध्यक्ष, वह राज्यसभा से सांसद भी हैं। 2004 लोकसभा में वह सरकार में शामिल थे। उन्हें यूपीए सरकार में रसायन मंत्री और स्टील मंत्रालय दिया गया था।
राम चंद्र पासवानः राष्ट्रीय उपाध्यक्ष। 14वीं लोकसभा में बिहार के रोसेरा संसदीय क्षेत्र से सांसद थे।
इसके अलावा अब्दुल खालिक, सूर्य नारायण यादव, एके बाजपेई, सूरज भान, अहमद अशफाक करीम, माहेश्वर सिंह, पी चंद्रगेसान, काली प्रसाद पांडे, कुमार सर्वजित आदि बड़े नेता हैं।



नाम:कांग्रेस
आजादी के बाद से सबसे ज्यादा रहा शासन बिहार में कांग्रेस का शासन आजादी के बाद हुए पहले विधानसभा से ही है। राज्य में बिना गठबंधन के ही छह बार कांग्रेस ने सत्ता चलाई है। पार्टी के लिहाज से यही एक पार्टी है जिसने सबसे ज्यादा समय तक बिहार में शासन चलाया। अगर बात गठजोड़ से सरकार चलाने की करें तो बिहार में आजादी के बाद से दसवीं लोकसभा तक लगातार कांग्रेस का ही अधिपत्य रहा।
बिहार में प्रदेश कांग्रेस कमेटी की स्थापना तो आजादी के पहले ही 1921 में हुई थी। बिहार प्रदेश कांग्रेस ने पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से लेकर बिहार के पहले मुख्यमंत्री कृष्णा सिन्हा और जगन्नाथ मिश्रा, बिंदेश्वरी दुबे, सीताराम केसरी, सदानंद सिंह जैसे बड़े नाम और चेहरे दिए हैं। पटना स्थित सदाकत आश्रम से न सिर्फ बिहार की राजनीति चलती है बल्कि एक समय में आजादी की लड़ाई और केंद्र की राजनीति भी यहीं से हुआ करती थी।
सोशल मीडियाः फेसबुक पर बिहार कांग्रेस का कोई पेज नहीं। लेकिन बिहार कांग्रेस अध्यक्ष से आप कनेक्ट हो सकते हैं।https://www.facebook.com/bihar.pcc
बडे़ चेहरे जो हैं पार्टी की ताकत

अशोक चौधरी, अध्यक्ष बिहार कांग्रेस सीपी जोशी, महासचिव, बीपीसीसी वर्तमान में सांसदः किशनगंज से मोहम्मद असरारुल हक सुपौल से रंजीत रंजन 2010 विधानसभा के विधायक कहलगांव से सदानंद सिंह कस्बा से मोहम्मद अफाक आलम बहादुरगंज से मोहम्मद तौसिफ आलम किशनगंज से मोहम्मद जवाएद

नाम:सीपीआई(एम)
चुनाव चिन्ह - हासिया, हथौड़ा और तारा
पार्टी का उद्देश्य - किसान, मजदूर और गरीबों के वाजिब हक के लिए संघर्ष करना
स्टेट सेक्रेटरी - अवधेश कुमार 
सचिव मंडल के प्रमुख सदस्यों के नाम : सर्वोदय शर्मा, अरुण कुमार मिश्र, अजय कुमार, गणेश शंकर सिंह, रामाश्रय सिंह, ललन चौधरी, विजयकांत ठाकुर (केंद्रीय कमेटी के सदस्य)
संपर्क - सीपीआई(एम), जमाल रोड, पोस्ट ऑफिस के नजदीक, पटना-80001
फैक्स - 0612-2203325
वेबसाइट :www.cpim.org
ई-मेल : cpimbihar@gmail.com
वर्तमान विधानसभा में पार्टी के सदस्यों की संख्या- शून्य

पीएम मोदी के गुरु स्वामी दयानंद ब्रह्मलीन

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आध्यात्मिक गुरु स्वामी दयानंद सरस्वती बुधवार देर रात ब्रह्मलीन हो गए। वेदांत के ज्ञाता स्वामी दयानंद को उनकी इच्छा पर बुधवार सुबह ही जौलीग्रांट स्थित हिमालयन अस्पताल से शीशमझाड़ी स्थित आश्रम लाया गया था।

स्वामी दयानंद सरस्वती का कुशलक्षेम जानने के लिए बुधवार सुबह से ही आश्रम में अनुयायियों और साधु संतों की कतार लगी रही। अस्पताल से साथ आई डॉक्टरों की टीम उनके स्वास्थ्य की लगातार निगरानी किए हुए थी। बुधवार रात दस बजकर 55 मिनट पर स्वामी दयानंद ने अंतिम सांस ली। स्वामी दयानंद सरस्वती के ब्रह्मलीन होने की सूचना पर काफी संख्या में उनके अनुयायी और साधु संत आश्रम में पहुंच गए।

स्वामी दयानंद सरस्वती का पार्थिव शरीर गुरुवार और शुक्रवार को अंतिम दर्शनों के लिए आश्रम में रखा जाएगा। शनिवार को विधि विधान से पार्थिव शरीर को समाधि दी जाएगी। मुनिकी रेती थानाध्यक्ष अव्वल सिंह रावत ने बताया कि गुरुवार सुबह स्वामी दयानंद के पार्थिव शरीर को हिमालयन हॉस्पिटल, जौलीग्रांट भेजा जाएगा। पार्थिव शरीर को दो दिन सुरक्षित रखने के लिए अस्पताल में लेप लगाया जाएगा। इसके बाद आश्रम में लोग पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन कर सकेंगे।

11 सितंबर को पीएम मिलने आए थे
इसी 11 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने आध्यात्मिक गुरु स्वामी दयानंद सरस्वती से मिलने के लिए ऋषिकेश आए थे। स्वामी दयानंद ने प्रधानमंत्री मोदी को वेदांत का ज्ञान कराया था।

Wednesday, September 23, 2015

सिप्पी मर्डर केस : सिप्पी की फ्रेंड थी जज की बेटी, होगी पूछताछ


चंडीगढ़ । मेरे परम मितर नेशनल शूटर व हाईकोर्ट के एडवोकेट सुखमनप्रीत सिंह उर्फ सिप्पी के कत्ल के मामले में चंडीगढ़ पुलिस एक जज की लड़की से पूछताछ कर सकती है। इस लड़की से सिप्पी की गहरी दोस्ती थी। सिप्पी अक्सर सेक्टर-27 व 26 में उससे मिलने आता था। घरवालों ने शंका जताई है कि रविवार रात सिप्पी का कत्ल हुआ, उस दिन वह सेक्टर-27 में उसी लड़की से मिलने गया होगा। दोस्तों ने पुलिस को बताया कि सिप्पी और लड़की में गहरी दोस्ती थी, लेकिन दो महीने से बोलचाल कम हो गई थी। लड़की का पहले सिप्पी के घर आना-जाना था। कत्ल के बाद लड़की न सिप्पी के घर पहुंची, न संस्कार में गई। घर के लोगों को यही बात खटकी। पुलिस लड़की के फोन की टावर लोकेशन हासिल कर रही है।
सिप्पी और जज की बेटी में गहरी दोस्ती थी। दो महीने से बोलचाल कम हुई।लड़की का सिप्पी के घर आना-जाना था, लेकिन मौत के बाद नहीं पहुंची।जहां सिप्पी का कत्ल हुआ, वहां से एक लड़की को कार में भागते देखा गया।
सूत्रों के मुताबिक पुलिस को सेक्टर-27 निवासी ने बताया है कि जब गोली चलने की आवाज आई तो उसने एक लड़की को वहां से भागते देखा था। लड़की सफेद रंग की छोटी कार (सैंट्रो जैसी) में भागी थी। दो लड़के अलग सफेद कार में भागे थे। पुलिस ने जानकारी देने वाले इस शख्स का नाम डिस्कलोज नहीं किया है। हालांकि इन बयानों से खुलासा हो गया है कि कत्ल के वक्त पार्क में सिप्पी के साथ एक लड़की थी। कत्ल चाहे सुपारी देकर हुआ हो, लेकिन सिप्पी के कत्ल में किसी लड़की का रोल है। कॉल डिटेल में खुलासा हुआ है कि पिछले कुछ दिनों से सिप्पी दिल्ली के नंबर पर भी किसी लड़की से बातचीत कर रहा था

काॅल डिटेल के अाधार पर खुलासा हुआ है कि सेक्टर-27 में पहुंचने से पहले सिप्पी ने सेक्टर-46 में रहने वाले अपने दोस्त मेहर, दिल्ली की एक लड़की और अंग्रेज सिंह से बात की थी। तीनों से काफी देर तक बात हुई। लड़की को छोड़कर बाकी दोनों से पुलिस ने पूछताछ कर ली है, जिसमें कुछ खास निकलकर नहीं आया है। दिल्ली की इस लड़की को पुलिस ने जांच में शामिल होने को कहा है। इसके साथ ही पुलिस सिप्पी के कई करीबियों से भी लगातार पूछताछ कर रही है। सिप्पी के फोन का लॉक अभी तक नहीं खुला है। लॉक खुलवाने के लिए प्राइवेट आईटी कंपनियों की मदद ली जा रही है।



मोहाली | सीएम प्रकाश सिंह बादल मंगलवार को मोहाली में सिप्पी के घर पहुंचे और घरवालों को सांत्वना दी। बादल ने इस दौरान मोहाली पुलिस को फटकारा कि पहले शिकायत की ठीक से जांच क्यों नहीं हुई। फिर सीएम ने डीजीपी सुमेध सिंह सैणी को फोन मिला दिया और कहा कि हर हालत में कातिलों को पकड़ो। सिप्पी उनका दोहता था, खुद आउट ऑफ द वे जाकर केस की जांच करो। भले मामला चंडीगढ़ का हो, लेकिन पंजाब पुलिस हर हाल में इस केस को सॉल्व करे। चाहे कातिल बड़े आदमी क्यों न हों,हर हाल में पकड़े जाएं। बादल ने यूटी के एसएसपी सुखचैन सिंह गिल से भी बात की और कहा कि सिप्पी उनके घर का लड़का था, कातिल बचें न। इससे पहले बादल करीब 15 मिनट तक सिप्पी की मां, भाई व अन्य रिश्तेदारों से मिले। 
सीएम के जाने के बाद एसएसपी सुखचैन सिंह गिल समेत यूटी पुलिस के अन्य अफसर सिप्पी के घर गए। करीब चार घंटे तक उन्होंने डिटेल जांच की।

‘स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मष्तिष्क निवास करता है’-जेलर स कुलवंत सिंह


मानव जीवन की सफलता के लिए 3 शक्तियों के विकास की आवश्यकता है-मानसिक, आत्मिक, शारीरिक । इन 3 शक्तियों के विकास के लिए विचारकों ने भिन्न-भिन्न उपाय बताये हैं Iएक कहावत है ‘स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मष्तिष्क निवास करता है’ I खेलकूद से व्यक्तित्व का विकास होता है I खेल शरीर को हष्ट पुष्ट बनाने का सुन्दर साधन है I खेल स्फूर्ति, ताजगी और गतिशीलता के अस्त्र हैं I जीवन मैं स्वास्थ्य का विशेष महत्व है और अच्छे स्वास्थ्य के लिए खेलों का अपना महत्व है I ‘खेल के मैदान मैं केवल स्वास्थ्य ही नहीं बनता, वरन मनुष्य बनता है’ I खेल खिलाडी की आत्मा है और खेल की भावना इस आत्मा का श्रृंगार है I खेल की भावना खिलाडी को पारस्परिक सहयोग, संगठन, अनुशासन और सहनशीलता की शिक्षा देती है Iजब खिलाडी खेल के मैदान मैं खेलता है तो उसका रोम-रोम पुलकित हो उठता है I खेल में भाषा के नाम पर भेदभाव नहीं होते, पंजाबी हो या बंगाली सभी मिलकर खेलते हैं I राजाओं के समय भी तरह तरह के खेल होते थे और उनको सरंक्षण प्राप्त था ये कहना है बरनाला सुब जेल के जेलर स कुलवंत सिंह का !
जेलर स कुलवंत सिंह जो के एक्स आर्मी मैन है की खेलो में विशेष रूचि है और जब से वो बरनाला जेल के जेलर बन कर आये है तब से ये रूचि उनकी जेल में  कैदियों में भी देखने को मिल रही है !स कुलवंत सिंह जी रोजाना अपने कैदियों  के साथ योगा एक्सरसाइज और कई तरह की गेम्स बी खेलते है !बरनाला जेल के कैदियों के भी खेलने का काफी उत्साह देखने को मिला !
सजा तो आखिर सजा ही है पर अगर जेलर स कुलवंत सिंह की सोच के साथ कैदियों के साथ बर्ताव करे तो वो दिन दूर नहीं जब जेल से सजा खत्म करने के बाद बाहर आकर व्यक्ति एक  नए और अच्छे समाज की सरचना करने में मोहरी होंगे !

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