विदेशी धरती से भारत की आजादी के लिए महासंग्राम छेड़ने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में 66 साल बाद भी रहस्य बरकरार है। उनके बारे में अनेक किस्से कहानियां हैं लेकिन सच कभी सामने नहीं आया। अट्ठारह अगस्त 1945 को ताइवान में जिस विमान हादसे में नेताजी की मौत हो जाने की बात कही जाती है ताइवान सरकार के अनुसार उस दिन कोई विमान हादसा हुआ ही नहीं था। नेताजी के रहस्य पर पुस्तक लिख चुके अनुज धर का मानना है कि 18 अगस्त 1945 को ताइवान के ऊपर विमान हादसे और नेताजी की मौत की कहानी यकीन से परे है। उनका कहना है कि नेताजी की मौत का सच जानबूझकर छिपाया जा रहा है।
ताइवान में कथित विमान हादसे के समय नेताजी के साथ रहे कर्नल हबीबुर रहमान ने इस बारे में आजाद हिन्द सरकार के सूचना मंत्री एसए नैयर रूसी तथा अमेरिकी जासूसों और शाहनवाज समिति के सामने जो विरोधाभासी बयान दिए उनसे यह रहस्य और भी गहरा गया। रहमान ने कभी कहा कि उन्होंने ही नेताजी के जलते हुए कपड़े उतारे थे तो कभी कहा कि वह विमान हादसे में खुद बेहोश हो गए थे और जब आंख खुली तो वह ताइपेई के एक अस्पताल में थे। कभी उन्होंने कहा कि नेताजी का अंतिम संस्कार 20 अगस्त 1945 को हुआ तो कभी अंतिम संस्कार की तारीख 22 अगस्त बताई।
मिशन नेताजी से जुड़े अनुज धर ने कहा कि जब उन्होंने इस बारे में सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सरकार से सच जानना चाहा तो सरकार ने सूचना उपलब्ध कराने से ही मना कर दिया। उन्होंने कहा कि इससे यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि सरकार जानबूझकर नेताजी के बारे में सच छिपा रही है। आजाद हिन्द फौज में शामिल रहे बहुत से सैनिक और अधिकारी दावा कर चुके हैं कि विमान हादसे में नेताजी की मौत नहीं हुई थी। वह आजादी के बाद भी जीवित रहे लेकिन घटिया राजनीति के चलते सामने नहीं आ पाए और गुमनामी का जीवन जीना बेहतर समझा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कथित मौत की जांच के लिए बनाई गई शाहनवाज समिति ने जहां विमान हादसे की बात को सच बताया था वहीं इस समिति में शामिल नेताजी सुभाष चंद्र के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था और कहा था कि विमान हादसे की घटना को जानबूझकर सच बताने की कोशिश की जा रही है।
आजाद हिन्द फौज के कई सेनानियों का दावा है कि फैजाबाद में रहने वाले गुमनामी बाबा नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे और उन्होंने इस रूप में नेताजी से गुप्त मुलाकातों का दावा भी किया है। इस बारे में सच से परदा हटाने के लिए 1999 में गठित मुखर्जी आयोग ने 18 अगस्त 1945 को विमान हादसे में नेताजी की मौत को खारिज कर दिया तथा कहा कि इस मामले में आगे और जांच की जरूरत है। आयोग ने आठ नवम्बर 2005 को अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपी थी। 17 मई 2006 को इसे संसद में पेश किया गया जिसे सरकार ने मानने से इंकार कर दिया।