Sunday, April 28, 2013

बाज़ार में बिकने को तैयार, पत्रकार



संतोष भारतीय

पत्रकारिता प्रतिस्पर्धा का पेशा है. प्रतिस्पर्धा रिपोर्ट, स्टोरी और स्कूप के क्षेत्र में होती है. प्रतिस्पर्धा निर्भीकता में होती है, साहस में होती है और पत्रकारिता के पेशे के ये गुण आभूषण होते हैं, क्योंकि संपादक इन्हीं गुणों के आधार पर अपने साथियों या साथ काम करने वालों की समीक्षा करता है. लेकिन आज इससे अलग दृश्य देखने को मिल रहा है. पत्रकारिता के पवित्र पेशे में ऐसे लोग घुस गए हैं, जिन्हें अगर हम दलाल कहें, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. ऐसे पत्रकार, जो निहित स्वार्थों की ख़ातिर सरकार और विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए काम करने में अपना गौरव समझते हैं, वे अच्छी रिपोर्ट करने की जगह पीआर जर्नलिज्म करना ज़्यादा सही समझते हैं.
पत्रकारों का एक तबक़ा ऐसा भी है, जो बिना कहे दलालों की श्रेणी में शामिल होना चाहता है, उसका तरीक़ा भी मज़ेदार है. ख़बर लिखना और उसका संपूर्ण झूठाकरण कर देना उसका शगल बन गया है. गपशप जैसे कॉलमों में बिना नाम के ख़बरें लिखना, फिर उसे ले जाकर सत्ता या राजनीतिक दलों से जुड़े व्यक्तियों को दिखाना और उनसे यह अपेक्षा करना कि वे उन्हें उसका छोटा ही सही, लेकिन मूल्य दें, का चलन बढ़ता ही जा रहा है. अच्छे-अच्छे संपादक ऐसे महान सहयोगियों के आगे ख़ुद को बेबस पाते हैं. यह अफसोसजनक इसलिए भी है, क्योंकि ऐसे पत्रकार बेशर्मी के साथ सही को ग़लत साबित करने और ईमानदार एवं बेख़ौ़फ़ पत्रकारों के ख़िला़फ़ माहौल बनाने की सुपारी लेते दिखाई देते हैं. दरअसल, इनका ख़ुद कोई मु़क़ाम नहीं होता, पर यह मुक़ाम वाले लोगों की तस्वीर बिगाड़ने का काम करना अपनी शान समझते हैं.
दरअसल, ऐ  मने लाने की कोशिश करते हैं और शायद यही पत्रकार देश में आशा और विश्‍वास का माहौल बनाए हुए हैं. देश में आम आदमी जब हर तरफ़ से हार जाता है, तो वह आख़िरी कोशिश के तौर पर पत्रकार के पास जाता है. पहले तब़के के पत्रकार ऐसे पीड़ित लोगों के दर्द का भी सौदा कर लेते हैं, लेकिन दूसरे तब़के के पत्रकार अपना जी-जान उनकी तकलीफ के कारण को सामने लाने में लगा देते हैं.
प्रभाष जोशी दूसरी तरह के पत्रकारों के आदर्श रहे. आज भी लोग उन्हें इसलिए याद करते हैं, क्योंकि उन्होंने हमेशा सच्चाई का साथ दिया. प्रभाष जोशी को याद करने और उन्हें अपना आदर्श मानने वाले पत्रकारों से यह आशा तो की ही जा सकती है कि वे सच्चाई के पक्ष में हमेशा उसी तरह अपना हाथ खड़ा करेंगे, जैसे प्रभाष जोशी हमेशा किया करते थे.


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