Tuesday, May 20, 2014

यूपी और बिहार में मुस्लिम वोट क्यों हुए बेअसर ?

नई दिल्ली
कांग्रेस १६% मुस्लिम वोट्स के दम पर केन्देर पर ६० साल तक काबिज रही ! देश में पहली बार हुआ है के मोदी के नाम पर हिन्दुओ ने एक जुट हो कर भाजपा को वोट दिया है ! भाजपा को इस गलत फहमी में नहीं रहना चाहिए के मुस्लिम या मिनिओरिटी वोट उसे मिले है या कभी भविष्य   में मिलने की सम्भावना है !
'सेक्युलर' पार्टियों ने बहुत कोशिशें कीं कि मुस्लिम बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर वोट करें, इसके बावजूद बीजेपी ने इतनी बड़ी जीत जिस वजह से दर्ज की, उसे 'रिवर्स पोलराइजेशन' कहा जा सकता है।

यूपी और बिहार में बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की, जबकि दोनों जगहों पर मुसलमानों की अच्छी-खासी संख्या है। नतीजे घोषित होने के बाद बीजेपी के जनरल-सेक्रटरी अमित शाह ने हमसे बात करते हुए कहा, 'पार्टी ने इसलिए सफलता पाई है क्योंकि ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा है, जो वोट बैंक की पॉलिटिक्स का हिस्सा नहीं हैं।'

2011 की जनगणना के मुताबिक भारत के 1.2 अरब लोगों में करीब 15 फीसदी मुसलमान हैं। 35 सीटों पर वोटरों में उनकी संख्या करीब एक-तिहाई है। 38 सीटों पर वोटरों में उनकी संख्या 21-30 फीसदी है। अगर उन 145 सीटों को भी शामिल किया जाए, जहां मुसलमान वोटर 11-20 फीसदी हैं, तो यह माना जा सकता है कि मुस्लिम वोटर 218 सीटों के नतीजों पर असर डालने की क्षमता रखते हैं। यूपी और बिहार मिलाकर लोकसभा की 120 सीटें हैं, जिसमें से यूपी में 18 फीसदी और बिहार में 16 फीसदी मुस्लिम हैं। इसलिए 'सेक्युलर' दांव अतार्किक नहीं था।

अकेले यूपी की 80 में से 32 सीटों पर मुसलमानों की संख्या करीब 15 फीसदी या इससे ज्यादा है। लेकिन इन 32 सीटों में से समाजवादी पार्टी को केवल 2 सीटें मिलीं और 30 सीटों पर बीजेपी जीती।

बीजेपी ने उन 8 क्षेत्रों में जीत दर्ज की, जहां मुसलमानों की संख्या 40 फीसदी के करीब है, जिनमें सहारनपुर, अमरोहा, श्रावस्ती, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद और रामपुर शामिल हैं। भारत के इतिहास में पहली बार उत्तर प्रदेश से कोई मुस्लिम सांसद नहीं है।

यही ट्रेंड बिहार में भी है। बिहार में जिन 17 सीटों पर मुस्लिमों की संख्या 15 फीसदी से ज्यादा है, वहां बीजेपी ने 12 सीटें जीती हैं। बाकी 5 में से जेडी(यू) को 1 सीट मिली है और बाकी आरजेडी-कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन को गई हैं।

महाराष्ट्र में मुस्लिमों की संख्या 14 फीसदी है। यहां पर बीजेपी और सहयोगी पार्टियों ने 48 में से 42 सीटों पर जीत दर्ज की है। ज्यादा मुस्लिम वोटरों वाली सभी सीटों पर बीजेपी और सहयोगी पार्टियों ने जीत दर्ज की। मुंबई और महाराष्ट्र के बाकी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के मुस्लिम पॉकेट्स में कम वोटिंग हुई। इसके अलावा कांग्रेस-एनसीपी और आम आदमी पार्टी के बीच वोट बंटने की वजह से वे बेअसर हो गए।

गोवंडी से समाजवादी पार्टी काउंसिलर रईस शेख कहते हैं, 'मुंबई नॉर्थ-ईस्ट के मुस्लिम बहुल इलाके गोवंडी में 40 फीसदी वोट पड़े, जबकि इसी लोकसभा क्षेत्र के गुजराती बहुल मुलुंड में 60 फीसदी वोट पड़े। मुस्लिम वोट मेधा पाटकर और एनसीपी के वर्तमान सांसद संजय दीना पाटिल के बीच बंट गए। इसकी वजह से बीजेपी के किरीट सोमैय्या की जीत आसान हो गई।'

चुनाव विश्लेषक पिछले चुनावों के ट्रेंड को देखते हुए कहते हैं कि मुस्लिम वोटों का वहां पर सबसे ज्यादा असर दिखता है, जहां वे करीब 10 फीसदी हैं। कई उम्मीदवारों के बीच एक उम्मीदवार के लिए उनकी वोटिंग से रिजल्ट तय हो जाता है। जहां पर मुस्लिम 20 फीसदी या इससे ऊपर हैं, वहां पर उनका वोट बेअसर हो जाता है क्योंकि वहां कई मुस्लिम कैंडिडेट की वजह से वोट बंट जाता है। चुनाव विश्लेषक कहते हैं कि कई बार हिंदू वोटों का काउंटर-पोलराइजेशन होता है। ऐसा लगता है कि यूपी में काउंटर-पोलराइजेशन की वजह से बीजेपी को मदद मिली। ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के एमए खालिद कहते हैं, 'भविष्य में मुस्लिमों को अपनी स्ट्रैटिजी बदलनी होगी और अपने विकल्प खुले रखने होंगे।'अंत  यही कहा जा सकता है के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के मुस्लिम  वोट कांग्रेस-एनसीपी , समाजवादी पार्टी ,बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच वोट बंटने की वजह से वे बेअसर हो गए है ! इसका जयादा श्रेय आम आदमी पार्टी को ही जाता है !

मोदी की जीत में परदे के पीछे काम करने वाले लड़के

नई दिल्ली
16वीं लोकसभा में बीजेपी की शानदार जीत के पीछे नरेंद्र मोदी की पहल पर बनाई गई अनुशासित और समर्पित युवाओं की टीम है जो दिन रात परदे की पीछे से रणनीति पर काम करती रही। मोदी के कैंपेन को असरदार बनाने के लिए यह टीम मीलिटरी की तरह मारक रणनीति और विपक्षी पार्टियों के हर दांव को नाकाम करने में अहम भूमिका अदा कर रही थी। इस टीम के सारे यंग टेकी गुजरात से थे। यह टीम मोदी को चुनाव रैलियों में उनके भाषण से 15 मिनट पहले राहुल-सोनिया के भाषण से अपडेट करा देती थी।

ये सारे यंग टेकी बीजेपी हेडक्वॉर्टर 11, अशोक रोड स्थित इलेक्शन वॉर रूम के रडार पर रहते थे। यहीं से नरेंद्र मोदी के हर कैंपेन की योजना जमीन पर उतारी गई। रणनीति बनाने के मामले में बेमिसाल प्रतिभा रखने वाले मॉलिक्युलर बायलॉजिस्ट और अहमदाबाद में टोरंट फर्मासूटिकल्स के वाइस प्रेजिडेंट(डिस्कवरी रिसर्च) विजय चौथाइवाले को बीजेपी चुनावी ऑपरेशन के लिए दिल्ली लाई थी।

यूनाइडेट किंगडम बेस्ड अक्वीजिशन ऐंड मर्जर वकील मनोज लाडवा मोदी की रिसर्च अनैलेसिस ऐंड मैसेजिंग टीम को लीड कर रहे थे। यह टीम उत्तर प्रदेश के लखनऊ और बनारस कंट्रोल रूम से काम कर रही थी। मोदी के डिजिटल कैंपेन को दिल्ली में सिलिकन वैली से आए अरविंद गुप्ता और गांधीनगर में हीरेन जोशी हैंडल कर रहे थे।

चैथाइवाले ने इकनॉमिक टाइम्स से कहा कि हम साथ मिलकर राजनीतिक, गैर राजनीतिक और रचनात्मक पक्षों को शामिल कर पूरे कैंपेन को अंजाम दे रहे थे। चौथाइवाले मूल रूप से नागपुर के रहने वाले हैं लेकिन वह 18 सालों से अहमदाबाद में रह रहे हैं। चौथाइवाले आरएसएस बैकग्राउंड से हैं। 4 महीने पहले इन्हें मोदी ने कैंपेन में मदद करने के लिए कहा था। उन्होंने कहा कि भले मैं संघ बैकग्राउंड से हूं लेकिन मेरे लिए यह पहला इलेक्शन कैंपेन है। इन्हें संघ और राज्यों के नेताओं के साथ दिल्ली और गांधीनगर में समन्वय की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

लाडवा की भूमिका ज्यादा बड़ी थी। लाडवा भी मूल रूप से गुजराती हैं, लेकिन वह यूके में रहते हैं। इनके परिवार वाले बीजेपी से जुड़े हैं। चुनाव में लाडवा को यूके से बुलाकर बीजेपी ने जिम्मेदारी सौंपी। यह मोदी के कैंपेन के लिए इनपुट्स तैयार करते थे। बीजेपी के अजेंडा सेटिंग में लाडवा की बड़ी भूमिका रही। मोदी चुनावी रैलियों में किन मु्द्दों पर जोर देंगे, लाडवा इसकी रणनीति तैयार करते थे।

वह क्रिएटिव टीम पीयूष पांडे के साथ भी जुड़े थे। वह हर दिन 9:30 बजे सुबह मीटिंग शुरू करते थे। इस मीटिंग में हर दिन का अजेंडा तय किया जाता था और एक यूनिफॉर्म मेसेज तैयार किया जाता था। इस मीटिंग में बीजेपी के सभी प्रवक्ताओं को आना जरूरी होता था। 10: 30 बजे तक एक ब्रीफिंग नोट तैयार कर पार्टी के अहम लोगों के बीच बांट दिया जाता था।

ओबामा के कैंपेन की भी स्टडीः लाडवा ने कहा कि हमने दुनिया भर के चुनावी कैंपेन की स्टडी की है। इसमें बराक ओबामा और टोनी ब्लेयर के कैंपेन भी शामिल हैं। यह टीम ऐसा मेसेज या स्लोगन तैयार करती थी जो विभिन्न क्षेत्रों में लोगों की जुबान पर चढ़ जाए। मोदी को देश के खास क्षेत्रों में बोलने के लिए यह टीम खास इनपुट्स तैयार कर देती थी।

सोनिया, राहुल की रैली पर खास नजरः मोदी अपनी रैली में कोस्टल इलाके में मछुआरों पर और पूर्वोत्तर में घुसपैठ पर रणनीति के तहत फोकस करते थे। सबसे अहम बात यह है कि ज्यादातर टीमों की कमान युवाओं के पास थी। इन टीमों की नजर विपक्षी पार्टियों की रैलियों पर भी होती थी। सोनिया और राहुल गांधी की स्पीच पर मोदी टीम की खास नजर रहती थी।

15 मिनट में हर अपडेटः चौथाइवाले ने कहा कि विपक्षी पार्टियों के आरोपों पर हम पॉइंट्स तैयार कर मोदी को स्पीच देने से 15 मिनट पहले मुहैया कराते थे। लाडवा ने कहा कि हमारा बिल्कुल साफ अजेंडा था कि विपक्षी पार्टियों की तरफ से उठाए गए हर इश्यू पर मोदी बेबाक जवाब दें।

मोदी सरकार में राजनाथ गृह और जेटली वित्त मंत्री?

नई दिल्ली
नरेंद्र मोदी आज बीजेपी संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद राष्ट्रपति से मिलकर सरकार बनाने के दावा पेश करेंगे। इस बीच, उनके मंत्रिमंडल के स्वरूप को लेकर मंथन जारी है। बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के गृह मंत्री और अरुण जेटली के वित्त मंत्री बनाए जाने की संभावना है।

मंत्रिपदों को लेकर जहां सस्पेंस खत्म होता दिख रहा है, वहीं अभी तक पार्टी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी की भूमिका को लेकर सवाल बना हुआ है। पहले ऐसी खबर आई थी कि राजनाथ से मुलाकात में आडवाणी लोकसभा अध्यक्ष बनने को लेकर राजी हो गए थे, लेकिन पार्टी ने अभी इस पर कुछ भी तय नहीं किया है। पार्टी के शीर्ष नेता अभी भी असमंजस में हैं कि आडवाणी को किस तरह मेंटर की भूमिका में फिट किया जाए।

राजनाथ सिंह और अरुण जेटली ने जहां कैबिनेट के दो टॉप मंत्रालयों पर अपना स्लॉट फिक्स कर लिया है, वहीं नरेंद्र मोदी के लिए दो अन्य स्लॉट विदेश और रक्षा मंत्रालय को भरना बड़ी चुनौती होगी। 15वीं लोकसभा में नेता विपक्ष रहीं सुषमा स्वराज की नजर भी कैबिनेट के इन टॉप मंत्रालयों पर है, लेकिन माना जा रहा है कि उन्हें मोदी कैबिनेट में मानव संसाधन और स्वास्थ्य मंत्रालय का जिम्मा सौंपा जा सकता है।

मोदी को पीएम कैंडिडेट घोषित करने के दौरान सुषमा की नाराजगी सामने आई थी, जो मोदी कैबिनेट में उनके रक्षा या विदेश मंत्रालय के दावे को कमजोर करता है। सुषमा स्वराज ने सोमवार को नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। 16 मई को चुनाव नतीजों के बाद उन्होंने ट्वीट करते हुए जीत का श्रेय पार्टी के कार्यकर्ताओं, आरएसएस और मोदी के लीडरशिप को दिया था।

वाजपेयी सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे रविशंकर प्रसाद को विदेश मंत्रालय का जिम्मा सौंपा जा सकता है, वहीं पूर्व टेलिकॉम मंत्री अरुण शौरी को फाइनैंस या कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री मिनिस्ट्री का कार्यभार मिल सकता है। इसके अलावा पूर्व बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी को इकॉनमी या ढांचागत (शहरी विकास या भूतल परिवहन) मामलों से जुड़ा मंत्रालय मिल सकता है।

अगर हम बीजेपी के सहयोगियों की बात करें तो एलजेपी अध्यक्ष रामविलास पासवान को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है। हालांकि, अभी तक यह साफ नहीं है कि पासवान को रेल मंत्रालय की जिम्मेदारी मिलेगी या नहीं। बिहार की राजनीतिक हलचल को देखते हुए माना जा रहा है कि पासवान को इन्फ्रास्ट्रक्चर, नैचरल रिसोर्स या टूरिजम से संबंधित मंत्रालय का जिम्मा सौंपा जा सकता है, जो नरेंद्र मोदी की टॉप प्रायॉरिटी में हैं।

लोकसभा चुनाव में यूपी बीजेपी के प्रभारी अमित शाह सरकार में शामिल नहीं होंगे। माना जा रहा है कि शाह बाहर से ही सरकार के पॉलिटिकल मैनेजमेंट में अहम भूमिका अदा करेंगे। गुजरात भवन में नरेंद्र मोदी की अमित शाह और अरुण जेटली से आगे की रणनीति को लेकर लगातार बात हो रही है।

बीजेपी के दूसरे सीनियर लीडर रविशंकर प्रसाद, अनंत कुमार, गोपीनाथ मुंडे, पीयूष गोयल, राजीव प्रताप रूडी,, रमेश बैस, विद्यासागर राव, हर्षवर्धन, वरुण गांधी, किरीट सोमैया और जुएल उरांव को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है। सहयोगियों में रामविलास पासवान के अलावा अकाली नेता हरसिमरत कौर, अनंत गीते, उपेंद्र कुशवाहा और अणुप्रिया पटेल को मंत्रिपद दिए जाने की संभावना है।

Monday, May 19, 2014

सबसे कम वोट के साथ बहुमत पाने वाली पार्टी बनी बीजेपी

BJP's 31% lowest vote share of any party to secure majority

नई दिल्ली
2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने भले ही अपने दम पर बहुमत हासिल किया, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब कोई पार्टी महज 31 पर्सेंट वोट पाकर लोकसभा की आधी से ज्यादा सीटें हासिल करने में कामयाब रही है। इससे पहले 1967 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने 40.8 पर्सेंट वोटों के बलबूते 520 सीटों में 283 सीटें हासिल की थीं।

2014 के लोकसभा चुनावों के आंकड़े कई दिलचस्प तस्वीर पेश करते हैं। यह दिखाते हैं कि अलग-अलग पार्टियों के बीच वोट किस कदर बंटे और बीजेपी एक तिहाई से कम वोट पाने के बाद भी बहुमत के आंकड़े को पार कर गई। बीजेपी कुल वैध मतों के 31 पर्सेंट पाकर 282 सीटें निकालने में कामयाब रही। इसे इस तरह समझ सकते हैं कि 10 में से चार से कम वोटरों ने एनडीए को वोट दिया और एक तिहाई वोटरों ने भी बीजेपी को नहीं चुना। 19.3 पर्सेंट वाली कांग्रेस को चुनने वालों को तादाद इससे भी कम रही। पांच में से एक से भी कम ने उसे वोट दिया।

कांग्रेस की बदकिस्मती यह रही कि उसे मिले 19.3 पर्सेंट वोट 44 सीट ही दिला पाए, जबकि पिछले आम चुनाव में बीजेपी महज 18.5 पर्सेंट वोटों से 116 सीटें जीतने में सफल रही थी। इन चुनावों का एक दिलचस्प आंकड़ा यह भी है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों को मिलाकर 50 पर्सेंट वोट मिले, यानी दूसरी सभी पार्टियों को मिले वोटों के बराबर हैं।

यदि कांग्रेस और बीजेपी के सहयोगियों के वोट भी साथ में जोड़ दिए जाएं, तो भी मतों का बहुत बड़ा हिस्सा इन दोनों से दूर रहा। NDA को कुल वैध मतों के 38.5% मिले, जबकि यूपीए के हिस्से में 23 % से कुछ कम आए। दोनों को मिला दें तो 39 पर्सेंट यानी एनडीए को मिले मतों के बराबर मत दूसरी पार्टियों के खाते में गए।

क्या एनडीए को मिले 38.5 पर्सेंट वोट किसी सत्ताधारी पार्टी या गठबंधन को मिले सबसे कम वोट हैं? ऐसा नहीं है। कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए-1 ने 35.9 पर्सेंट वोट हासिल कर सरकार बनाई थी। 1991 में बनी पीवी नरसिम्हा राव की अल्पमत सरकार के लिए कांग्रेस को 38.2 पर्सेंट वोट मिले थे। लेकिन यह भी एक तथ्य है यूपीए-1 सरकार को बाहर से भी समर्थन था।

2004 में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन को 36 पर्सेंट से कुछ कम वोटों के साथ 220 सीटें मिली थीं। लेकिन यूपीए को एसपी, लेफ्ट और पीडीपी का समर्थन मिला था। जिनके पास करीब 11.2 पर्सेंट वोट शेयर के साथ 100 सीटें थीं। इस तरह यूपीए-1 के साथ कुल 320 सांसद और 47 पर्सेंट वोट थे।

इसी तरह 1989 में कांग्रेस (एस), जनता दल, डीएमके, टीडीपी वाले नैशनल फ्रंट ने 146 सीटें जीती थीं। उन्हें 23.8 पर्सेंट वोटे मिले थे। इसमें बीजेपी की 85 सीटें और 11.5 पर्सेंट वोट, लेफ्ट की 52 सीटें और 10.2 पर्सेंट वोट मिला दें तो यह कुल 283 सीटें व 45.3 पर्सेंट वोट शेयर बैठता है।

ਪੰਜਾਬ ਮੰਤਰੀ ਮੰਡਲ ‘ਚ ਹੋਵੇਗਾ ਫੇਰਬਦਲ : ਲੋਕ ਸਭਾ ਚੋਣਾਂ ਬਣਨਗੀਆਂ ਕਾਰਗੁਜ਼ਾਰੀ ਦਾ ਆਧਾਰ

 

* ਕਈ ਹਲਕਿਆਂ ਵਿਚ ਢਿੱਲੀ ਰਹੀ ਮੰਤਰੀਆਂ ਦੀ ਕਾਰਗੁਜ਼ਾਰੀ
* ਤਿੰਨ ਮਾਲਵੇ ਦੇ, ਇੱਕ  ਦੋਆਬੇ ਦਾ ਅਤੇ ਦੋ ਮਾਝੇ ਦੇ ਮੰਤਰੀਆਂ ਹੋਣਗੇ ਇਧਰੋਂ ਉਧਰ
* ਮਾਲਵੇ ਦੇ ਦੋ ਮੰਤਰੀਆਂ ‘ਚੋਂ ਮਲੂਕਾ ਨੇ ਬਾਜ਼ੀ ਮਾਰੀ
ਚੰਡੀਗੜ-ਲੋਕ ਸਭਾ ਚੋਣਾਂ ਦੇ ਨਤੀਜਿਆਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਮੰਤਰੀ ਮੰਡਲ ਵਿਚ ਅਕਾਲੀ ਕੋਟੇ ਦੇ ਮੰਤਰੀਆਂ ਦੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਫੇਰਬਦਲ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਇਸ ਸਬੰਧੀ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਅਕਾਲੀ ਦੇ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਨੇ ਲੋਕ ਸਭਾ ਚੋਣ ‘ਚ ਮੰਤਰੀਆਂ ਅਤੇ ਮੁੱਖ ਸੰਸਦੀ ਸਕੱਤਰਾਂ ਦੇ ਹਲਕਿਆਂ ਵਿਚ ਵੋਟ ਬੈਂਕ ਦੀ ਕਾਰਗੁਜ਼ਾਰੀ ਰਿਪੋਰਟ ਤਿਆਰ ਕਰਵਾਈ ਹੈ। ਜਿਸ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉਤੇ ਮੰਤਰੀ ਮੰਡਲ ਵਿਚ ਰੱਦੋਬਦਲ ਅਤੇ ਵਿਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਫੇਰਬਦਲ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇਗਾ। ਮਾਲਵੇ ਦੇ ਇੱਕ ਮੰਤਰੀ ਦੀ ਭਾਵੇਂ ਆਪਣੇ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਕਾਰਗੁਜ਼ਾਰੀ ਵਧੀ ਰਹੀ ਪ੍ਰੰਤੂ ਉਸ ਨੇ ਖੁਦ ਹੀ ਆਪਣਾ ਵਿਭਾਗ ਬਦਲਣ ਲਈ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਨੂੰ ਅਪੀਲ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਹੈ।
ਮੰਤਰੀਆਂ ਤੇ ਮੁੱਖ ਸੰਸਦੀ ਸਕੱਤਰਾਂ ਦੀ ਵੋਟ ਬੈਂਕ ਦੀ ਕਾਰਗੁਜ਼ਾਰੀ ਨੂੰ ਮਾਝਾ, ਮਾਲਵਾ ਅਤੇ ਦੋਆਬੇ ਦੇ ਜ਼ੋਨਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ  ਹੈ। ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਦਫ਼ਤਰ ਤੋਂ ਮਿਲੀ ਇਸ ਗੁਪਤ ਰਿਪੋਰਟ ਵਿਚ ਦੱਸਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਰਾਮਪੁਰਾ ਫੂਲ ਤੋਂ ਵਿਧਾਇਕ ਤੇ ਸਿੱਖਿਆ ਮੰਤਰੀ ਸਿਕੰਦਰ ਸਿੰਘ ਮਲੂਕਾ ਦੇ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਅਕਾਲੀ ਉਮੀਦਵਾਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਮੁਕਾਬਲਾ ਆਪ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਉਮੀਦਵਾਰ ਨਾਲ ਸੀ। ਮਲੂਕਾ ਦੇ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਆਪ ਦੇ ਉਮੀਦਵਾਰ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਸਾਧੂ ਸਿੰਘ ਨੂੰ 30159 ਅਤੇ ਅਕਾਲੀ ਉਮੀਦਵਾਰ ਪਰਮਜੀਤ ਕੌਰ ਗੁਲਸ਼ਨ ਨੂੰ 39872 ਵੋਟਾਂ ਮਿਲੀਆਂ ਜਦੋਂ ਕਿ ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਜੋਗਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਪੰਜਗਰਾਈਂ ਨੂੰ 39168 ਵੋਟਾਂ ਮਿਲੀਆਂ।
ਇਸੇ ਤਰ•ਾਂ ਮਾਲਵੇ ਦੇ ਸਿੰਚਾਈ ਮੰਤਰੀ ਜਨਮੇਜਾ ਸਿੰਘ ਸੇਖੋਂ ਦੇ ਮੌੜ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਅਕਾਲੀ ਉਮੀਦਵਾਰ ਹਰਸਿਮਰਤ ਕੌਰ ਬਾਦਲ ਨੂੰ 54705 ਜਦੋਂ ਕਿ ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਬਾਦਲ ਨੂੰ 52929 ਵੋਟਾਂ ਪਈਆਂ ਜਦੋਂ ਕਿ ਪਿਛਲੀ ਵਾਰ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਉਨ•ਾਂ ਦੇ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਅਕਾਲੀ ਵੋਟਾਂ ਦੀ ਲੀਡ ਘੱਟ ਰਹੀ। ਮੰਤਰੀਆਂ ਦੀ ਕਾਰਗੁਜ਼ਾਰੀ ਵਿਚੋਂ ਸਭ ਤੋਂ ਘੱਟ ਵੋਟਾਂ ਸੇਖੋਂ ਦੇ ਹਲਕੇ ਵਿਚੋਂ ਰਹੀਆਂ।
ਸੁਨਾਮ ਹਲਕੇ ਤੋਂ ਵਿੱਤ ਮੰਤਰੀ ਪਰਮਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਢੀਂਡਸਾ ਦੇ ਹਲਕੇ ਅੰਦਰ ਅਕਾਲੀ ਉਮੀਦਵਾਰ ਸੁਖਦੇਵ ਸਿੰਘ ਢੀਂਡਸਾ ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਵਿਰੋਧੀ ਆਪ ਦੇ ਉਮੀਦਵਾਰ ਮੁਕਾਬਲੇ 50745 ਜਦੋਂ ਕਿ ਭਗਵੰਤ ਮਾਨ ਨੂੰ 63979 ਵੋਟਾਂ ਪਈਆਂ ਅਤੇ ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਉਮੀਦਵਾਰ ਵਿਜੇਇੰਦਰ ਸਿੰਗਲਾ ਨੂੰ 23408 ਵੋਟਾਂ ਪਈਆਂ।
ਪਟਿਆਲਾ ਦੇ ਸਮਾਣਾ ਹਲਕੇ ਤੋਂ ਪੇਂਡੂ ਤੇ ਪੰਚਾਇਤ ਮੰਤਰੀ ਸੁਰਜੀਤ ਸਿੰਘ ਰੱਖੜਾ ਦੇ ਜ਼ੱਦੀ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਵੀ ਅਕਾਲੀ ਉਮੀਦਵਾਰ ਦੀਪਇੰਦਰ ਸਿੰਘ ਢਿੱਲੋਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਮੁੱਖ ਵਿਰੋਧੀ ਆਪ ਦੇ ਉਮੀਦਵਾਰ ਧਰਮਵੀਰ ਗਾਂਧੀ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ 41694 ਜਦੋਂਕਿ ਧਰਮਵੀਰ ਗਾਂਧੀ ਨੂੰ 48867 ਅਤੇ ਕਾਂਗਰਸ ਉਮੀਦਵਾਰ ਪ੍ਰਨੀਤ ਕੌਰ ਨੂੰ 41008 ਵੋਟਾਂ ਪਈਆਂ। ਰੱਖੜਾ ਦੇ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਵੀ ਅਕਾਲੀ ਉਮੀਦਵਾਰ ਦੀ ਲੀਡ ਘੱਟ ਰਹੀ।
ਫਤਿਹਗੜ• ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਾਹਨੇਵਾਲ ਹਲਕੇ ਤੋਂ ਪੀਡਬਲਯੂਡੀ ਮੰਤਰੀ ਸ਼ਰਨਜੀਤ ਸਿੰਘ ਢਿੱਲੋਂ ਦੇ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਅਕਾਲੀ ਉਮੀਦਵਾਰ ਕੁਲਵੰਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ 56188, ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਸਾਧੂ ਸਿੰਘ ਨੂੰ 51620 ਅਤੇ ਆਪ ਦੇ ਹਰਿੰਦਰ ਖਾਲਸਾ ਨੂੰ 35415 ਵੋਟਾਂ ਪਈਆਂ। ਢਿੱਲੋਂ ਦੇ ਹਲਕੇ ਦੀ ਕਾਰਗੁਜ਼ਾਰੀ ਵਿਰੋਧੀ ਧਿਰ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਠੀਕ ਮੰਨੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ।
ਉਧਰ ਜਲੰਧਰ ਦੇ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਹਲਕੇ ਤੋਂ ਜੇਲ• ਮੰਤਰੀ ਸਰਵਣ ਫਿਲੌਰ ਦੇ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਵੀ ਅਕਾਲੀ ਉਮੀਦਵਾਰ ਪਵਨ ਟੀਨੂੰ ਨੂੰ ਹਾਰ ਮਿਲੀ ਹੈ। ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਹਲਕੇ ‘ਚ ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਚੌਧਰੀ ਸੰਤੋਖ ਸਿੰਘ ਨੂੰ 48561 ਅਤੇ ਪਵਨ ਟੀਨੂੰ ਨੂੰ 35962 ਵੋਟਾਂ ਮਿਲੀਆਂ।
ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੇ ਅਟਾਰੀ ਹਲਕੇ ਤੋਂ ਪਸ਼ੂ ਪਾਲਣ ਮੰਤਰੀ ਗੁਲਜ਼ਾਰ ਸਿੰਘ ਰਾਣੀਕੇ ਦੇ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਵੀ ਅਕਾਲੀ ਭਾਜਪਾ ਉਮੀਦਵਾਰ ਅਰੁਣ ਜੇਤਲੀ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ। ਅਟਾਰੀ ਵਿਚ ਕੈਪਟਨ ਅਮਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ 55595 ਅਤੇ ਅਕਾਲੀ ਭਾਜਪਾ ਦੇ ਅਰੁਣ ਜੇਤਲੀ ਨੂੰ 45655 ਵੋਟਾਂ ਪਈਆਂ।
ਭਾਜਪਾ ਦੇ ਜਲੰਧਰ ਪੱਛਮੀ ਤੋਂ ਮੰਤਰੀ ਚੁੰਨੀ ਲਾਲ ਭਗਤ ਦੇ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਵੀ ਅਕਾਲੀ ਉਮੀਦਵਾਰ ਟੀਨੂੰ ਨੂੰ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਹਾਰ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰਨਾ ਪਿਆ। ਇਸ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਚੌਧਰੀ ਨੂੰ 48599 ਅਤੇ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੇ ਸ੍ਰੀ ਟੀਨੂੰ ਨੂੰ 27118 ਵੋਟਾਂ ਮਿਲੀਆਂ।
ਇਸੇ ਤਰ•ਾਂ ਜਲੰਧਰ ਦੇ ਸ਼ਾਹਕੋਟ ਹਲਕੇ ਅਕਾਲੀ ਮੰਤਰੀ ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਕੋਹਾੜ ਜ਼ੱਦੀ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਵੀ ਅਕਾਲੀ ਉਮੀਦਵਾਰ ਨੂੰ ਵੱਡੀ ਲੀਡ ਮਿਲੀ। ਸ਼ਾਹਕੋਟ ਤੋਂ ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਸ੍ਰੀ ਚੌਧਰੀ ਨੂੰ 29199 ਅਤੇ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੇ ਸ੍ਰੀ ਟੀਨੂੰ ਨੂੰ 47862 ਵੋਟਾਂ ਮਿਲੀਆਂ।
ਫੂਡ ਐਂਡ ਸਪਲਾਈ ਮੰਤਰੀ ਆਦੇਸ਼ ਪ੍ਰਤਾਪ ਸਿੰਘ ਕੈਰੋਂ ਦੇ ਪੱਟੀ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬ੍ਰਹਮਪੁਰਾ ਨੂੰ ਵੱਡੀ ਲੀਡ ਮਿਲੀ ਹੈ। ਪੱਟੀ ਤੋਂ ਬ੍ਰਹਮਪੁਰਾ ਨੂੰ 62326 ਅਤੇ ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਹਰਮਿੰਦਰ ਗਿੱਲ ਨੂੰ 47630 ਵੋਟਾਂ ਮਿਲੀਆਂ।
ਮਾਲ ਮੰਤਰੀ ਬਿਕਰਮ ਸਿੰਘ ਮਜੀਠੀਆ ਦੇ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਵੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੀ ਕਾਰਗੁਜ਼ਾਰੀ ਵਧੀਆ ਰਹੀ। ਮਜੀਠਾ ਹਲਕੇ ਤੋਂ ਅਰੁਣ ਜੇਤਲੀ ਨੂੰ 60201 ਅਤੇ ਕੈਪਟਨ ਅਮਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ 39550 ਵੋਟਾਂ ਪਈਆਂ।
ਸਿਹਤ ਮੰਤਰੀ ਸੁਰਜੀਤ ਕੁਮਾਰ ਜਿਆਣੀ ਦੇ ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਵੀ ਅਕਾਲੀ ਨੂੰ ਲੀਡ ਮਿਲੀ ਹੈ। ਫਾਜ਼ਿਲਕਾ ਤੋਂ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਘੁਬਾਇਆ ਨੂੰ 61013, ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਸੁਨੀਲ ਜਾਖੜ ਨੂੰ 50966 ਵੋਟਾਂ ਪਈਆਂ।
ਮੰਤਰੀਆਂ ਦੇ ਹਲਕਿਆਂ ਦੀ ਕਾਰਗੁਜ਼ਾਰੀ ਵਿਚ ਸਭ ਤੋਂ ਘੱਟ ਵੋਟਾਂ ਭਾਜਪਾ ਦੇ ਮੰਤਰੀ ਅਨਿਲ ਜੋਸ਼ੀ ਦੇ ਹਲਕੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਉਤਰੀ ਵਿਚ ਦੇਖਣ ਨੂੰ ਮਿਲੀ। ਸ੍ਰੀ ਜੋਸ਼ੀ ਦੇ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਅਰੁਣ ਜੇਤਲੀ ਨੂੰ 44667 ਅਤੇ ਕੈਪਟਨ ਅਮਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਨੂੰ 63393 ਵੋਟਾਂ ਪਈਆਂ।
ਸਥਾਨਕ ਸਰਕਾਰਾਂ ਬਾਰੇ ਮੰਤਰੀ ਮਦਨ ਮੋਹਨ ਮਿੱਤਲ ਦੇ ਹਲਕੇ ਵਿਚ ਵੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਉਮੀਦਵਾਰ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਪ੍ਰੇਮ ਸਿੰਘ ਚੰਦੂਮਾਜਰਾ ਨੂੰ ਲੀਡ ਮਿਲੀ ਹੈ।

केजरीवाल से दिल्ली में फिर से सरकार बनाने का अनुरोध

नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी में लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद आम आदमी पार्टी के कुछ विधायकों ने शुक्रवार को भाजपा या कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में एक बार फिर से सरकार बनाने का सुझाव दिया।
कहा जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल सहित कुछ शीर्ष नेताओं के साथ बैठक में आप के करीब 20 विधायकों ने नेतृत्व से कहा कि पार्टी को सरकार बनाने का फिर से प्रयास करना चाहिए। 
सूत्रों ने कहा कि पार्टी विधायक राजेश गर्ग ने फरवरी में 49 दिन में सरकार से इस्तीफा देने के अरविंद केजरीवाल के फैसले को लोकसभा चुनावों में आप के खराब प्रदर्शन की मुख्य वजह बताते हुए यह विचार रखा। माना जा रहा है कि रोहिणी के विधायक ने कहा कि पार्टी को सरकार बनाने पर विचार करना चाहिए ताकि जनता को इस फैसले से लाभ मिले।
आप के एक विधायक ने कहा, ‘बैठक में मौजूद आप के करीब 20 विधायकों ने इस प्रस्ताव का सकारात्मक रू प से स्वागत किया। केजरीवाल और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने विधायकों के विचार सुने लेकिन टिप्पणी नहीं की। विधायकों ने इस बारे में फैसला राजनीतिक मामलों की समिति पर छोड़ दिया।’
इस बीच, आप विधायक के प्रस्ताव की खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए दिल्ली कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता मुकेश शर्मा ने कहा, ‘केजरीवाल ने दिल्ली की जनता को धोखा दिया और अगर यह पार्टी फिर से सरकार बनाने का प्रयास करती है तो कांग्रेस उन्हें समर्थन देने के बारे में नहीं सोच रही है।’

एनडीए पर भी मजबूत होगी मोदी की पकड़

 नई दिल्ली
अटल बिहारी वाजपेयी की तर्ज पर नरेंद्र मोदी भी पीएम और एनडीए चेयरमैन, दोनों पद संभाल सकते हैं। बीजेपी सूत्रों ने बताया कि एनडीए के कार्यकारी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी को यह संदेश दिया गया है कि मोदी प्रधानमंत्री के साथ गठबंधन के भी बॉस होंगे, ताकि सरकार और गठबंधन का काम सुचारू रूप से चलता रहे।

इससे मोदी को सरकार और बीजेपी, दोनों जगहों पर कंट्रोल करने में सहूलियत होगी। बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी सरकार में शामिल होने को इच्छुक हैं। इसका मतलब यह है कि मोदी अपनी चॉइस के शख्स को पार्टी का अगला अध्यक्ष बना सकते हैं।

लोकसभा में 282 सीटों के साथ बीजेपी बहुमत में है, लिहाजा एनडीए के सहयोगी सरकार के लिए मुश्किलें नहीं खड़ी कर सकते। वाजपेयी और उनकी टीम को जयललिता जैसी सहयोगी के रवैये से मुश्किल झेलनी पड़ी थी।

सूत्रों के मुताबिक, आडवाणी अगले लोकसभा स्पीकर हो सकते हैं। बीजेपी के एक सीनियर नेता ने बताया, 'एनडीए सरकार में वह मोदी के अंदर काम नहीं कर सकते हैं और उन्हें एनडीए चेयरमैन का पद छोड़ना होगा। उनके लोकसभा अध्यक्ष बनने की संभावना है।'

पार्टी सूत्रों ने बताया कि आडवाणी राष्ट्रपति भवन में पद खाली होने तक स्पीकर बने रह सकते हैं। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का टर्म 2017 में पूरा हो रहा है। हालांकि, तब तक आडवाणी 90 साल के हो चुके होंगे।

इस बीच, राजधानी में रविवार को पार्टी के कुछ नेताओं ने मोदी से मुलाकात की, जो शनिवार शाम वाराणसी से दिल्ली लौटे थे। इस मुलाकात में कैबिनेट के गठन के अलावा बिहार में सीएम नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद बदले घटनाक्रम पर चर्चा हुई। बिहार के बीजेपी प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान और मोदी के खास अमित शाह ने भी गुजरात भवन में मोदी से मुलाकात की। बीजेपी के एक और जनरल सेक्रेटरी जे पी नड्डा भी मोदी से मिले। बीजेपी के अध्यक्ष पद की दावेदारी में उनके नाम की भी चर्चा है।

पार्टी के सीनियर नेता अरुण जेटली ने भी रविवार दोपहर में मोदी से मुलाकात की। राजस्थान की सीएम वसुंधरा राजे, अनंत कुमार और बी एस येदियुरप्पा भी मोदी से मिले। अनंत कुमार और येदियुरप्पा भी मोदी सरकार का हिस्सा हो सकते हैं। इसके अलावा, नेशनल पीपल्स पार्टी के चीफ पी ए संगमा, एलजीपी चीफ रामविलास पासवान भी मोदी से मिले।

Saturday, May 17, 2014

नरेंद्र मोदी को अब अपने ही दल से है चुनौती

 नई दिल्ली
नरेंद्र मोदी और बीजेपी के लिए भले ही कांग्रेस या अन्य विरोधी पार्टियां अब कोई बड़ी चुनौती न रही हों, लेकिन ऐसा नहीं है कि मोदी के सामने अब कोई चुनौती बची ही नहीं है। दरअसल, अब मोदी को जिस चुनौती का सामना करना पड़ेगा वह होगी- इस भारी बहुमत को बनाए रखना। वजह यह है कि भले ही मोदी का रुतबा बेहद बढ़ गया हो, लेकिन पार्टी के भीतर अब भी एक वर्ग ऐसा है, जो मोदी की सोच से सहमत नहीं है। आने वाले दिनों में मोदी और बीजेपी के लिए कई चुनौतियां सामने आने वाली हैं।

सीनियर लीडरों की भूमिका
यह सही है कि मोदी पीएम बनेंगे, लेकिन मोदी के लिए सबसे बड़ी मुसीबत अपने सीनियर लीडरों के लिए पद खोजने की होगी। इनमें लालकृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी हैं। हालांकि सुषमा स्वराज भी आडवाणी खेमे की हैं, लेकिन अगर उन्हें मंत्री पद दिया जाता है तो उसमें ज्यादा अड़चन नहीं आएगी। लेकिन आडवाणी को मंत्री पद देना संभव नहीं है, क्योंकि कायदे से मंत्री, पीएम के मातहत ही होता है। ऐसे में आडवाणी को स्पीकर के पद के लिए मनाना एक बड़ी चुनौती है। बीजेपी के एक सीनियर लीडर के मुताबिक, अगर आडवाणी स्पीकर पद न लेकर सिर्फ सांसद की भूमिका में ही रहने की जिद करते हैं, तो इससे मोदी के लिए भविष्य में कई मुश्किलें खड़ी होंगी। यही स्थिति डॉ. जोशी की भी है। उन्हें भी संतुष्ट करना मोदी के लिए आसान नहीं होगा।

कैबिनेट का गठन
यह सही है कि बीजेपी को अभूतपूर्व सफलता मिली है लेकिन इतनी ज्यादा सीटें मिलने के बाद अब मोदी के लिए उनमें से कैबिनेट लायक सांसदों को चुनना भी कठिन चुनौती होगी। चूंकि मंत्री पद तो सीमित ही हैं, ऐसे में इतनी बड़ी तादाद में सांसदों को संतुष्ट करना एक बड़ा चैलेंज होगा। इसमें सबसे बड़ी चिंता यह है कि अगर महत्वाकांक्षी सांसदों को मंत्री पद नहीं मिला तो फिलहाल वे कुछ माह तक चुप रहें, लेकिन आगे चलकर ऐसे सांसद मुंह खोल सकते हैं

पार्टी स्तर पर भी होगा बदलाव
इस चुनाव के बाद बीजेपी के भीतर भी जबरदस्त बदलाव होंगे। इसकी वजह यह है कि अब तक पार्टी के कई पदाधिकारियों को मंत्री बनाया जाएगा। खुद पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के भी कैबिनेट में जाने की चर्चा है। ऐसे में हो सकता है कि आने वाले दिनों में पार्टी संगठन में ही परिवर्तन नजर आए

Friday, May 16, 2014

संगरूर हल्का केन्दर की मिनिस्ट्री से एक बार फिर रहा वांजा

आज दोस्तों मन बाड़ा उदास है क्यों के संगरूर दे लोका ने अपनी आदात अनुसार एक वार फेर संगरूर लोकसभा हलके तो एक दरवेश पुरष स सुखदेव सिंह ढींडसा  नु हरा दिया है और आम आदमी पार्टी के (खास ) स्टार उमीदवार स भगवंत मान को एक बाड़ी लीड से जीता कर लोकसभा में भेज दिया है
विधान सभा बरनाला और लोकसभा संगरूर दे लोक पता नहीं क्यों हमेशा सारे देश तो वखरा ही फैसला करते है ,ते फेर कहते है के संगरूर पिछड़ा हुआ है ! भाई वोट डालते समय देखना चाहिए के केंद्र में किसकी सरकार आ रही है और कौन केंद्र में मिनिस्टर बन कर हलके का विकास कर सकता है !
हालाकि स मान एक अच्छे हास्य कलाकार के साथ साथ एक अच्छे इंसान भी है परन्तु विपक्ष में बैठ कर हलके के विकास में क्या योगदान डाल सकते है ये आप सब अच्छी तरह जानते है  ! स भगवंत मान के मुताबिक वो हलके के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे !परन्तु सरकार में रह कर  जो विकास किया जा सकता है वो विपक्ष में बैठकर नहीं हो सकता !
श्री विजेंदर सिंगला की उदाहरण आपके सामने है !
मुझे लगता है आज के समीकरण में संगरूर के लिए स ढींडसा का जीतना ज्यादा फायदेमंद रहता ! स ढींडसा को हार जीत से ज्यादा अंतर नहीं पड़ा होगा क्यों के वो राज्यसभा से पहले ही मेंबर है ! अब् अगर उन्हें सेंटर में मिनिस्टर नहीं लेंगे तो भी कम से कम किसी अच्छी स्टेट का गवर्नर बना कर भेज दिया जायेगा !परन्तु हलके का जो विकास वोह मिनिस्टर रहते हुए करवा सकते थे ! वैसा विकास अब करवाना संभव नहीं हो सकता !
स ढींडसा की  हार के लिए जहा पर मेरे हलके के लोगो का हाथ हो सकता है वाही पर स ढींडसा के साथी भी अपनी  जिमेवारी से इंकार नहीं कर सकते !
नए लोगो का पार्टी में आना भी पुराने साथिओ  नागवार गुजरा लग रहा है !
कुश पार्टी के अपने साथिओ के अनुसार स ढींडसा को जबरदस्ती चुनाव लड़ाया गया और ऐसा माहोल बना दिया के चुनाव जितना मुश्किल हो जाये ! अगर स ढींडसा चुनाव न लड़ते तो राज्यसभा में होने के कारन वो केंद्र में एक बड़े महकमे के मिनिस्टर होते !अब स ढींडसा के चुनाव हरने से संगरूर के साथ लगती बठिंडा सीट से जीते उमेदवार बीबा हरसिमरत कौर बादल की केंदर में दावेदारी मजबूत  हो गयी है !

Thursday, May 15, 2014

आज 16 मई को मेरी हार निश्चित!

मैं इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन हूँ, प्यार से मुझे ईवीएम भी कहते हैं।  लगभग 20 साल पहले जब भारत के चुनावों में मेरा पदार्पण हुआ था तो मेरा स्वागत बड़े जोर-शोर से हुआ था।  चुनावों में होने वाले धांधली पर नकेल कसने की मेरी क्षमता की बड़ी सराहना हुई और देश भर में होने वाले चुनावों में मेरे इस्तेमाल की पुरज़ोर वकालत हुई।  धीरे-धीरे कागज़ पर ठप्पा लगा कर वोट देने की पारम्परिक प्रणाली को मैंने पीछे छोड़ दिया और मेरा नाम "स्वच्छ चुनाव" का प्रयाय बन गया। चुनाव में कोई भी पार्टी जीतती, जीत का सेहरा मेरे ही सर पर बाँधा जाता और मुझे निष्पक्ष चुनाव करवाने का ज़रूरी औजार माना जाने लगा। 
पर समय हमेशा एक सा नहीं रहता।  16 मई 2014 का चिर-प्रतीक्षित दिन आएगा और जब मेरा कलेजा फाड़ कर चुनावी नतीजे निकाले जायेंगे तब जीत चाहे किसी भी दल या गठबंधन की दर्ज हो मुझे मेरी हार साफ़ नज़र आ रही है। 
इसका एक बड़ा कारण तो यह है कि यह चुनाव बेहद अहम और पूर्ववर्ती चुनावों से काफी अलग हैं। चुनाव प्रचार के दौरान भी जिस तरह की कटुता देखने को मिली है उससे यह बात तो पक्की है कि कोई भी दल अपनी हार और विरोधी की जीत को आसानी से स्वीकार नहीं कर पायेगा और चुनाव आयोग और मुझ पर पक्षपात के आरोप अवश्य लगेंगे।
इससे पहले भी कई बार यह आरोप लगे हैं कि ईवीएम, यानि मैं , इतनी विश्वसनीय नहीं हूँ और मुझ से छेड़छाड़ करके कोई भी दल नतीजों को अपने पक्ष में मोड़ सकता है - पर मेरी वकालत करने वालों ने और खुद चुनाव आयोग ने ऐसे आरोपों को राजनीति से प्रेरित करार दे कर किनारे कर दिया। 
पर शायद समय आ गया है कि राजनैतिक दुर्भावना को ही हमेशा अपनी ढाल बनाने की आदत से बच कर मैं खुद अपने गरेबान में झाँकने की कोशिश करुँ। 
1. इस बात से तो हर कोई इत्तफाक रखता ही होगा कि जब 1980 के दशक में मेरा जन्म हुआ था तब से आज तक टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भरी बदलाव आ चुके हैं।  मेरा डिज़ाइन तो लगभग वही है जो मेरे जन्म के समय था,लेकिन पिछले 20 सालों में बदली तकनीक, जो सस्ती और आसान भी हो चुकी है, बड़े आराम से उन सेंधमारों के हाथ की ताकत बन चुकी है जो बड़े आराम से मेरे पुराने और बेकार हो चुके सुरक्षा घेरे को तोड़ सके।  इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि राजनैतिक दल अथवा कोई 'समझदार'नेता चंद पैसे में मेरी कमियों का फायदा उठा कर नतीजों पर प्रभाव डाल सकता है। 
जानकारों का मानना है चुनाव से पहले, वोट डालने के समय और बाद में जब बंद मशीनें सुरक्षित कमरों में सो रही होती हैं और मतगणना के दिन का इंतज़ार कर रही होती है तब भी दूर बैठा कोई सेंधमार मुझ से छेड़छाड़ कर सकता है। 
2. मेरी वकालत करने वाले हमेशा यह दलील देते रहे हैं कि मेरे आने से बूथ पर कब्जा होने की घटनाएं बहुत कम हो गई है पर ऐसी खबरें हर तरफ से आ रहीं हैं कि बूथ पर कब्जा करना कम नहीं हुआ है बल्कि और आसान हो गया है। यह सब इतनी चतुराई से और चुपचाप हो जाता है कि ऊपर से देखने पर लगता है कि कुछ हुआ ही नहीं पर अंदरखाने गड़बड़ हो भी जाती है। यह खबरें भी आई हैं कि बूथ पर चुनाव करवाने वाले अफसरों के दल में भी लोग मेरे बारे में पूरी जानकारी नहीं रखते और ऐसी स्थिति में जानबूझ कर अथवा अनजाने में भी गलतियाँ होने की सम्भावना बनी रहती है। 
3. ऐसा नहीं है कि सिर्फ जान बूझ कर ही मेरे साथ छेड़छाड़ की जाती है, जानकारों का मानना है कि अनजाने में भी ऐसी गड़बड़ें हो सकती है जो मेरी विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करती हैं। जैसे अत्यधिक गर्मी, धूल, नमी और ठण्ड जैसे हालातों में मेरा परीक्षण पूरी तरह से हो सका है या नहीं इस पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। अत्यधिक गर्मी, या ठण्ड या धूल आदि में मेरे सर्कट में गड़बड़ होने पर बाहर से देखने में कुछ फ़र्क चाहे न दिखे पर वोटों की गिनती यहाँ की वहाँ हो सकती है। 
अंत में मेरी तरफ से चुनाव आयोग से सिर्फ इतनी ही प्रार्थना है कि मेरी विश्वसनीयता बरकरार रखने के लिए जल्दी कुछ कीजिये क्योंकि मेरे कन्धों पर भारत के लोकतंत्र का भविष्य टिका है। और कोई हारे या जीते मैं हारना नहीं चाहती, मेरी जीत का सेहरा मुझे वापिस दिलवाइये।   

चुनावी कुरुक्षेत्र में क्या फिर से राजनीति ही जीतेगी?

लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व में जहाँ एक ओर कई उम्मीदवार अपना भाग्य आजमाकर भविष्य सँवारने को निकलते हैं, वहीँ कोई प्रधानमन्त्री बनने के तो कई प्रधानमंत्री की केबिनेट में मंत्री होने की भी पूरी जुगत रखते हैं | सभी 9 चरणों का मतदान पूरा हो चुका है, सभी बाहुबलियों का भाग्य अब ईवीएम नाम के चिराग में क़ैद है, 16 मई को उस चिराग में से निकला जिन्न अपने आका का चयन कर लेगा और उन्हीं का हुक्म बजायेगा | लेकिन सवाल यह है कि इस कुरुक्षेत्र - धर्मक्षेत्र में कभी धर्म भी विजयी होगा या राजनीति की कंटीली नोंक जनता की आशाओं के रंगीन गुब्बारों की हवा निकालती रहेगी |
पिछले 68 सालों का स्वतंत्र भारत का इतिहास तो यही कहता है कि तथाकथित राजनीति अपना रंग वोट के बेलेट पर अपना रंग मिलाने में अक्सर कामयाब रही है |
भारत की पहली सरकार जिस तरह बनी और उसके बाद अब तक जिस तरह बनती आई है उसमे कोई दल या कोई व्यक्ति ही जीता है |
सरदार पटेल के सबसे मजबूत और नेक व्यक्तित्व और प्रधानमन्त्रीत्व के सारे गुण होने के बावज़ूद जिस प्रकार राजनीति ने नेहरु को डोर सौंप दी वह सिलसिला आजतक नहीं रुका है |
1984 में इंडिया इज़ इंदिरा और इंदिरा इज़ इंडिया का जो माहौल बना वह राजनीतिक सहानुभूति का परिणाम था | जे.पी. आन्दोलन से ज़रूर आस जगी कि अब राजनीति नहीं जनता जीतेगी, लेकिन यह सुखद स्वप्न भी क्षणिक ही रहा, जीत तो राजनीतिक दल की होती दिखी |
संजय गाँधी की नीतियों का जो डर हुकूमत में फैला वह राजनीति से उनके जाने तक कायम रहा | नसबंदी नीति ने लोगों में और सरकारी हाकिमों में जो खौफ पैदा किया उसके किस्से आज भी सुने जा सकते हैं | इंदिरा से राजीव गाँधी के राजनीति में आने के बाद तक हर तरफ एक दल का ही वर्चस्व था | और राजीव के बाद उनके परिवार से साथ सहानुभुति का जो भाव जुदा उसका तिलिस्म महंगाई के जिन्न ने तोड़ा और फिर जो सरकार बनी वह “कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा” की तर्ज़ पर बनी थी | जिसमे 1 अनार और 28 बीमार थे | हश्र यह हुआ कि अनार ही सड़ गया | फसल फिर से बोई गयी, चुनावों के पासों ने एक अटल सरकार पर दांव खेला लेकिन जनता की मेहनत का रंग फीका पड़ता नज़र आया | कुछेक उपब्धियों या कहें वाकयों को छोड़कर सरकार जनता का विशेष भरोसा हासिल नहीं कर पाई | और 2004 में जनता ने एक बार फिर अपने पुराने हुकूमतदारों में विश्वास दिखाया और लगातार दो बार दिखाया |लेकिन दस सालों में सिर्फ राजनीतियो हुई, दोनों बार जनता पर राजनीति हावी दिखी | बरसों पुराना चुनाव चिन्ह हावी दिखा | लोगों के मानस पर कोई नया चुनाव चिन्ह अंकित कर पाने की हिम्मत अभी तक कोई नहीं दिखा पाया था | अपने 10सालों (2004-2014) के रिपोर्टकार्ड में दर्ज करने को सरकार के पास ज्यादा कुछ नहीं था | भ्रष्टाचार, कालाधन, महंगाई, भ्रष्ट नेताओं की संख्या में इज़ाफ़ा, पाकिस्तानी आतंकवाद, बांग्लादेशी और चीनी घुसपैठ, पूर्वोत्तर में और दिल्ली-बेंगलुरु जैसे राज्यों में पूर्वोत्तर के प्रति हिंसा, नक्सलवाद, अलगाववाद जैसे राष्ट्रीय मुद्दे इस बार चुनावों में ज़ोरों से गूँज रहे हैं |
लेकिन सबसे ज़ोरदार उपस्थिति दर्ज कराई अन्ना आन्दोलन के बाद मास्टरमाइंड अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में उपजी ‘आम आदमी पार्टी’ ने | और वह भी ऐसी कि मात्र एक साल पहले बनी पार्टी ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र की राजधानी दिल्ली के विधानसभा चुनावों में 70 में से 28 सीटों पर धमाकेदार जीत हासिल की | इस बार पहली बार लगा कि दिल्ली में जनता जीती है | जनता की आवाज़ को हुक्म मानकर केजरीवाल ने सरकार भी बना ली और फिर जिस तेज़ी से सरकार का काम शुरू हुआ लगा कि दिल्ली की आम जनता अब आम से खास बनेगी | लेकिन 49 वें दिन सरकार को ग्रहण लगा गया | जो मान-सम्मान जनता ने आम आदमी पार्टी को या कहें अरविन्द केजरीवाल को दिया था अब वही जनता उन्हें भगोड़ा भी कहने लगी | केजरीवाल और उनकी टीम पर रैलियों और सभाओं में जूते, स्याही और चांटे बरसने लगे | और एक बार फिर से राजनीति जीत गयी | और राजनीति भी कैसी ? मुख्यमंत्री से सीधा प्रधानमन्त्री बनने की |
इस सब के बीच एक शख्स ने आंधी की तरह पूरे देश में अपने नाम की लहर पैदा की और लहर ऐसी कि जीत के लिए उनकी पार्टी को सिर्फ उनके ही नाम का सहारा रह गया इसलिए उन्हें प्रधानमन्त्री पद तक का उम्मीदवार घोषित कर दिया | जिसका परिणाम दिल्ली, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राज्यस्थान के विधानसभा के चुनावों में देखने को मिला |
लेकिन क्या यहाँ जनता जीत रही थी ? नहीं... यहाँ भी व्यक्ति ही जीत रहा था, उसके भाषण जीत रहे थे | राजनीतिक रंग जीत रहा था | और हर दल का यही हाल है |
12 मई को चुनाव प्रक्रिया पूरी हो चुकी | कल 16 मई है | अब चुनावी नतीजे तय करेंगे कि अगले 5 साल देश की जनता का भाग्य किनके हाथों में होगा |
लेकिन प्रश्न फिर भी रह जाएगा उत्तर की खोज में कि – “धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे चुनावी महासमर में क्या कभी जनता की भी जीत होगी जैसे27अप्रैल1994को दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला जीते थे या फिर राजनीति के रंग से चरित्र पर कालिख मल चुके नेता अपना काला चेहरा जनता से छुपा ले जायेंगे ?” आखिर इंतज़ार कब तक ? कभी तो आवाम को तपस्या का फल मिलेगा ही |

मेनका ने मोदी की योजना को बताया खतरनाक

पीलीभीत
पीलीभीत लोकसभा सीट से बीजेपी कैंडिडेट मेनका गांधी ने मोदी की एक ड्रीम योजना को न केवल खतरनाक बल्कि घटिया भी ठहरा दिया है। मेनका गांधी ने कहा कि नदियों को जोड़ने वाली मोदी की महत्वाकांक्षी योजना बेहत खतरनाक है और उन्होंने ही पूर्व पीएम वाजपेयी को इस काम से रोका था।

पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी की नदियों को जोड़ने वाली योजना का मोदी ने इस बार के चुनावी प्रचार में जमकर इस्तेमाल किया है। मोदी ने बार-बार दावा किया है कि अगर वह पीएम बने तो वाजपेयी की इस महत्वाकांक्षी योजना को जरूर पूरा करेंगे। इसी संबंध में जब पीलीभीत में गोमती और शारदा नदी को जोड़े जाने का सवाल हुआ, तो मेनका गांधी योजना पर ही बिफर पड़ीं।

मेनका गांधी ने कहा, 'मैंने ही अटलजी को इस योजना पर काम करने से रोका था। दुनिया में इससे घटिया कोई स्कीम हो ही नहीं सकती। हर नदी का अपना ईकोसिस्टम है, अपनी मछलियां हैं, अपनी पीएच वैल्यू है। अगर आप एक नदी को दूसरी से जोड़ देंगे, तो दोनों नदिया मर जाएंगी। यह बेहद खतरनाक है।'

मेनका गांधी ने कहा कि नदियों को जोड़ने के लिए जितनी जमीन चाहिए उनती जमीन आएगी कहां से। मेनका ने सुझाव दिया कि इसकी जगह पर नहरें बनाई जा सकती हैं। मगर गंगा और गोमती को अगर जोड़ने की कोशिश की गई, तो दोनों नदियां मर जाएंगी।

नरेंद्र मोदी के खिलाफ कांग्रेस का 'आखिरी वार'

नई दिल्ली
लोकसभा चुनावों के परिणाम आने में महज कुछ घंटे ही बाकी हैं। बीजेपी जहां एग्जिट पोल्स में दिख रही भारी बढ़त के बाद सरकार बनाने की तैयारी में जुटी है, वहीं कांग्रेस समेत अन्य दल राजनीति की बिसात पर मोदी को सत्ता से बाहर रखने की तैयारी में जुटे हैं। इसी संदर्भ में कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने सभी सेकुलर दलों को एकजुट होकर ममता बनर्जी को नेता चुनने की बात कह राजनीति के पारे को और गर्म कर दिया है।

राशिद अल्वी ने कांग्रेस की कमजोर स्थित को स्वीकार करते हुए कहा, 'सरकार बनाने हमारे लिए कठिन हो सकता है, लेकिन मोदी को सत्ता से बाहर रखने के लिए सभी सेक्युलर दलों को एकजुट होना चाहिए।' कांग्रेस नेता ने सुझाव दिया कि क्षेत्रीय दलों को अपना नेता ममता बनर्जी को चुनना चाहिए, जो कि संदेह के परे धर्मनिरपेक्ष, सक्षम और ईमानदार हैं।

इस बीच थर्ड फ्रंट की सुगबुगाहट भी काफी तेज हो गई है। समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव भारतीय राजनीति के सबसे अहम दिन से ठीक पहले दिल्ली में मौजूद हैं और थर्ड फ्रंट को साकार करने की अपनी योजना पर तेजी से काम कर रहे हैं। मुलायम सिंह ने इस संबंध में कोई बयान तो नहीं जारी किया, लेकिन उन्होंने पार्टी के भीतर एग्जिट पोल्स की विश्वसनियता पर सवाल खड़े किए हैं।

अभी तक मोदी की स्वभाविक सहयोगी समझे जाने वाली एआईएडीएमके सुप्रीमो जयललिता ने भी मोदी के खिलाफ कड़े तेवर दिखा दिए हैं। जयललिता ने अपनी पार्टी के पूर्व सांसद मलयसामी को केवल इसलिए पार्टी से निष्कासित कर दिया, क्योंकि उन्होंने जयललिता को मोदी की दोस्त बता दिया। साफ है, जयललिता नतीजों से पहले किसी तरह का संकेत देने से बच रही हैं और मोदी की तारीफ भी स्वीकार नहीं कर रही हैं।

बीजू जनता दल के नवीन पटनायक भी अभी अपने पत्ते खोलने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। मंगलवार को बीजेडी के कुछ नेताओं के बयानों से जैसे ही संकेत मिला कि पार्टी एनडीए के लिए सकारात्मक रुख रख रही है, नवीन पटनायक ने इसका खंडन कर दिया। नवीन पटनायक ने कहा कि अभी पोस्ट इलेक्शन गठबंधन को लेकर किसी से भी कोई बात नहीं हुई है।

मंगलवार को एक और बड़ी खबर एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार की तरफ से भी एक बड़ी खबर आई। एनसीपी सुप्रीमो ने एग्जिट पोल्स पर सवाल खड़े करते हुए मोदी और एनडीए को रोकने के लिए तमाम क्षत्रपों से संपर्क साधा। शरद पवार ने एआईएडीएमके सुप्रीमो जयललिता, तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी, वाईएसआर कांग्रेस के जगन और बीजेडी के नवीन पटनायक से फोन पर संपर्क किया है।

एनसीपी के सीनियर नेता डीपी त्रिपाठी ने आधिकारिक बयान जारी करते हुए यहां तक कह दिया कि एनडीए या मोदी को समर्थन देने का सवाल ही नहीं उठता है। बीजेपी को छोड़ कांग्रेस समेत तमाम क्षेत्रीय दलों ने एग्जिट पोल्स की विश्वसनियता को चैलेंज किया है। यही वजह है कि कांग्रेस की लीडरशिप भी अब थर्ड फ्रंट के विचार को गंभीरता से समर्थन देने का मन बनाती नजर आ रही है। ऐसे में यह देखना काफी रोचक है कि मोदी के खिलाफ यह चक्रव्यूह कितना कारगर साबित होगा।

बीजेपी में ये पांच होंगे सत्ता के केंद्र

नई दिल्ली
चंद घंटे बचे हैं इस बात की घोषणा में कि भारत में किसकी सरकार बनेगी। एग्जिट पोल्स में बीजेपी को सहयोगियों के साथ बहुमत मिलने का अनुमान जताया जा रहा है और पार्टी में बैठकों का दौर जारी है। इन बैठकों की तस्वीर को देखें, तो साफ हो जाता है कि बीजेपी में सत्ता का केंद्र बदल चुका है। यह वह तस्वीर है, जिनमें न तो वाजपेयी दिखते हैं (चूंकि सक्रिय राजनीति से दूर हैं) और न ही बीजेपी के 'पितामह' यानी आडवाणी।

बीजेपी के नए 'हम पांच' हैं, यानि नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, अरुण जेटली और अमित शाह। बुधवार को गांधीनगर में मोदी के साथ बीजेपी की टॉप लीडरशिप की बैठक हुई। इस बैठक में अमित शाह को छोड़ ऊपर गिनाए गए चारों नाम शामिल रहे। अमित शाह की अहमियत यूपी चुनाव में उनकी भूमिका और नरेंद्र मोदी से उनकी नजदीकी के आधार पर पहले ही जगजाहिर है।
सूत्रों का कहना है कि इस बैठक में सरकार बनने, संभावित सहयोगी और बीजेपी के सीनियर नेताओं (आडवाणी-जोशी) की भूमिका जैसे कई अहम मुद्दों पर बात हुई। पार्टी सूत्रों की मानें तो इस बैठक में सुषमा स्वराज पर भी बात हुई, जिन्हें फिलहाल मोदी का कुछ खास करीबी नहीं समझा जा रहा है।

वैसे तो बीजेपी में सत्ता के समीकरण 2009 लोकसभा चुनाव के बाद से ही बदलने शुरू हो गए थे। जब लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में एनडीए को हार मिली थी। लेकिन, असल बदलाव की शुरुआत नवंबर-दिसंबर 2012 में हुए गुजरात विधानसभा चुनावों के बाद हुई। मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को गुजरात में लगातार तीसरी जीत मिली और मोदी राष्ट्रीय नेतृत्व के तौर पर सामने आए।

लोकसभा चुनाव 2014 आते-आते तो सारे समीकरण पूरी तरह बदल गए। नई तस्वीर अब आपके सामने है। अनौपचारिक तौर पर ही सही, यह बीजेपी का नया कोर ग्रुप है। इस ग्रुप के एक सशक्त चेहरे राजनाथ सिंह फिलहाल पार्टी अध्यक्ष हैं, जिन्हें यह भूमिका गडकरी से लेकर सौंपी गई थी। तब गडकरी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। अब चुनाव में राजनाथ सिंह के टीम मैनेजमेंट की तारीफ की जा रही है।

गडकरी पर लगे आरोप भी अब पुरानी बात हो चुकी है और उन्हें इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से क्लीन चिट मिल चुकी है। आज गडकरी संघ और बीजेपी के बीच एक सेतु का काम तो कर ही रहे हैं, बीजेपी में नाखुश चल रहे सीनियर नेताओं (आडवाणी-जोशी-सुषमा) से बात की जिम्मेदारी भी संभाले हुए हैं। जेटली मोदी के पुराने साथियों में से एक हैं। मामला मोदी के ऊपर विरोधियों के हमले का हो, या फिर जो भी, जेटली हमेशा मोदी के लिए खड़े नजर आए हैं।

अब बात अमित शाह की। माना जाता है कि बीजेपी में मोदी को कोई सबसे खास है, तो वह अमित शाह ही हैं। गुजरात में लगे फर्जी एनकाउंटर के आरोप और फिर गुजरात में नहीं जाने के कोर्ट के आदेश के बाद भी मोदी अमित शाह के साथ को नहीं छोड़ पाए। दरअसल यह अमित शाह का तिलिस्मी मैनेजमेंट है, जिसकी बानगी गुजरात के विधानसभा चुनावों में मोदी देख चुके हैं। इस बार भी मोदी यूपी में अमित शाह के भरोसे चमत्कार की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

Tuesday, May 13, 2014

केन्दर  मे कोइ भि सरकर आ जाएं आम भारतीओ को रहत मिल्ने के आसार कम हि दिखाईं दे रहे है मेरे प्यारे भरत वासियो में एक ज़िम्मेदार मीडिया कर्मी होने के नाते चेताना अपना फ़र्ज़ समझता हूँ। यह सर्वे का झूठा जाल गऱीब जन्ता को लूटने के लिये बुना जाता  है। सट्टा बाज़ार में लोग इन्के धोके में फ़स कर अपनि गाढी कमई ने लुटायें क्योँ कि यह खैल तुम्हे लूटने के लिये ही खेला गया है यह अलग बात है कि भजपा का यह लाभ भी है कि छोटे दल अपनी एहमियत कम होते देख भाजपा से गठजोड़ करने को टेबल पर जल्दी आजायेंगे। आप २००४ और २००९ के ओपिनियन पोल्स से अंदाजा लग सकते है  टी वी चैनल्स की ओपिनियन पोल कैसे होते है ये आप सब जानते है किस ने पूषा है अपसे के आप ने किस्को वोट किय है इसमेँ कोइ शक नहि के आम अदमी पार्टी ज्यदा नूकसान कांग्रेस और रीजनल पार्टीज को देगी परन्तु तीसरे मोर्चे को भी नहि भूलना चाहिये खास कर जै ललिता को 

Monday, May 12, 2014

ਕੁਝ ਨੀ ਪਵੇਗਾ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੇ ਪੱਲੇ, ਹੋਵੇਗੀ 'ਆਪ' ਦੀ ਬੱਲੇ-ਬੱਲੇ!

ਨਵੀਂ ਦਿੱਲੀ—ਲੋਕ ਸਭਾ ਚੋਣਾਂ 'ਚ ਆਮ ਆਦਮੀ ਪਾਰਟੀ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ 'ਚ ਵਧੀਆ ਨਤੀਜੇ ਦੇਖਣ ਨੂੰ ਮਿਲ ਸਕਦੇ ਹਨ। ਇਕ ਆਰਥਕ ਅਖਬਾਰ ਮੁਤਾਬਕ 30 ਅਪ੍ਰੈਲ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ 'ਚ ਹੋਈਆਂ ਚੋਣਾਂ 'ਚ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਨੂੰ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਝਟਕਾ ਲੱਗ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਇਕ ਅਖਬਾਰ ਨੇ ਇੰਟੈਲੀਜੈਂਸ ਬਿਓਰੋ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਪੁਲਸ ਦੇ ਸੂਤਰਾਂ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਨਾਲ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਆਮ ਆਦਮੀ ਪਾਰਟੀ ਉੱਥੇ ਸੱਤਾਧਾਰੀ ਪਾਰਟੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਅਤੇ ਕਾਂਗਰਸ ਦੋਹਾਂ ਦੀਆਂ ਵੋਟਾਂ 'ਚ ਸੇਂਧ ਲਗਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਇਸ ਦਾ ਫਾਇਦਾ ਉਸ ਨੂੰ ਸੀਟਾਂ ਦੇ ਰੂਪ 'ਚ ਮਿਲ ਸਕਦਾ ਹੈ।
ਅਖਬਾਰ ਨੇ ਬਿਓਰੋ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਨਾਲ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ਕਿ ਆਮ ਆਦਮੀ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਉਮੀਦਵਾਰ ਭਗਵੰਤ ਮਾਨ ਅਤੇ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਸਾਧੂ ਸਿੰਘ ਸੰਗਰੂਰ ਅਤੇ ਫਰੀਦਕੋਟ ਤੋਂ ਜਿੱਤ ਸਕਦੇ ਹਨ। ਇੰਟੈਲੀਜੈਂਸ ਬਿਓਰੋ ਦੀ ਇਹ ਰਿਪੋਰਟ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਭੇਜੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ। ਪੁਲਸ ਵੀ ਆਪਣੀ ਰਿਪੋਰਟ ਦੇਣ ਵਾਲੀ ਹੈ। ਅੰਦਾਜ਼ਾ ਲਗਾਇਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਪਟਿਆਲਾ ਅਤੇ ਗੁਰਦਾਸਪੁਰ 'ਚ ਆਪ ਦੇ ਉਮੀਦਵਾਰਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਕਾਫੀ ਵੋਟਾਂ ਮਿਲੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਇਸ ਕਾਰਨ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਖੇਤਰਾਂ 'ਚ ਵਧੀਆ ਨਤੀਜੇ ਆ ਸਕਦੇ ਹਨ। 
ਸਾਬਕਾ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਕੈਪਟਨ ਅਮਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਦੀ ਪਤਨੀ ਪਰਨੀਤ ਕੌਰ ਪਟਿਆਲਾ ਤੋਂ ਕਾਂਗਰਸੀ ਉਮੀਦਵਾਰ ਹੈ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਦੇ ਡੀ. ਐੱਸ. ਢਿੱਲੋਂ ਖੜੇ ਹਨ, ਜੋ ਕਦੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਹੀ ਨਾਲ ਆਪ ਦੇ ਉਮੀਦਵਾਰ ਡਾ. ਧਰਮਵੀਰ ਗਾਂਧੀ ਮਜ਼ਬੂਤੀ ਨਾਲ ਖੜ੍ਹੇ ਹਨ। ਇਹ ਤਿਕੋਣੀ ਮੁਕਾਬਲਾ ਬਣ ਚੁੱਕਾ ਹੈ। ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ 'ਚ ਸਭ ਤੋਂ ਮੰਨਿਆ ਗਿਆ ਮੁਕਾਬਲਾ ਅਰੁਣ ਜੇਤਲੀ ਅਤੇ ਕੈਪਟਨ ਅਮਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਵਿਚਕਾਰ ਹੈ। ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ 'ਚ ਇਸ ਮੁਕਾਬਲੇ 'ਚ ਅਮਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ, ਅਰੁਣ ਜੇਤਲੀ 'ਤੇ ਭਾਰੀ ਪੈਂਦੇ ਦਿਖਾਈ ਦੇ ਰਹੇ ਹਨ। ਗੁਪਤ ਸੂਤਰਾਂ ਮੁਤਾਬਕ ਇਹ ਵੀ ਮੰਨਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਅਕਾਲੀ-ਭਾਜਪਾ ਗਠਜੋੜ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ 13 ਸੀਟਾਂ 'ਚੋਂ ਪੰਜ ਸੀਟਾਂ ਤੱਕ ਆ ਸਕਦੀਆਂ ਹਨ।

अंतिम चरण का मतदान आज, काशी में क्षेत्रीय दलों की साख दावं पर

नयी दिल्ली !   लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में सोमवार को तीन राज्यों में 41 निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान होगा. इस चरण में भाजपा-कांग्रेस के साथ ही तृणमूल कांग्रेस, सपा व बसपा जैसे क्षेत्रीय दलों की साख दावं पर है. चुनाव के इस नौवें चरण में करीब नौ करोड़ मतदाता 606 उम्मीदवारों के राजनीतिक भाग्य का फैसला करेंगे, जिसमें नरेंद्र मोदी,अरविंद केजरीवाल व मुलायम सिंह यादव भी शामिल हैं. इस चरण में देश की निगाहं वाराणसी सीट पर टिकी हैं.
रिजल्ट 16 मई को : दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की इस बड़ी कवायद का परिणाम 16 मई को सभी 543 सीटों की मतगणना के बाद सामने आयेगा. पहले चरण में सात अप्रैल को मतदान हुआ था और तब से लेकर आठ चरणों में 502 लोकसभा क्षेत्रों के लिए 66.27 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया है.
दावा और भरोसा
बनारस सीट पर चुनौती दे रहे केजरीवाल का कहना है कि अगर मोदी वाराणसी से हारते हैं तो वह प्रधानमंत्री नहीं बन सकते, जबकि कांग्रेस के अजय राय को ‘स्थानीय बनाम बाहरी’ की जंग में जीत का भरोसा है. वहीं दूसरी ओर, भाजपा इस सीट पर मोदी की रिकार्ड जीत के लिए आश्वस्त है क्योंकि वाराणसी की सीट दो दशक से अधिक समय से भाजपा का गढ़ रहा है.
बनारस सीट से सर्वाधिक 42 उम्मीदवार, मुकाबला त्रिकोणीय
वाराणसीः उत्तर प्रदेश की वाराणसी लोकसभा सीट जहां सबसे महत्वपूर्ण मुकाबले की गवाह बनने जा रही है. इस साल के लोकसभा चुनाव में सर्वाधिक उम्मीदवारों के मामले में भी यह सीट जानी जायेगी जिस पर चेन्नई दक्षिण की तरह ही 42 प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं. हालांकि मुकाबला त्रिकोणीय माना जा रहा है.
यहां करीब 16 लाख मतदाता मैदान में हैं. वाराणसी में प्रमुख उम्मीदवारों में प्रधानमंत्री पद के भाजपा के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी, आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस के अजय राय, बसपा के विजय प्रकाश जायसवाल और सपा के कैलाश चौरसिया हैं.

41 सीटों पर पड़ेंगे वोट
बिहार 06 सीट
यूपी  18 सीट
बंगाल 17 सीट

Friday, May 9, 2014

ਗੁਰੁ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਬੇਅਦਬੀ ਨਾਲ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਸਮਗਲਿੰਗ ਕਰਨਾ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਕਮੇਟੀ ਲਈ ਮਾੜੀ ਗੱਲ : ਰਾਣੂੰ

ਰਾਇਕੋਟ -ਪਿਛਲੇ ਦਿਨੀਂ ਦਿੱਲੀ ਗੁਰਦਵਾਰਾ ਰਕਾਬਗੰਜ ਸਾਹਿਬ ਦਿੱਲੀ ਵਿਖੇ 27 ਅਪ੍ਰੈਲ ਨੂੰ ਯੂਨਾਈਟਿਡ ਸਿੱਖ ਮਿਸ਼ਨ ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੇ ਇਕ ਟਰੱਕ ਕੰਟੇਨਰ ਸਮੇਤ ਫੜਿਆ, ਜਿਸ ਵਿਚ 150 ਦੇ ਕਰੀਬ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਸਰੂਪ ਲੱਦੇ ਹੋਏ ਸਨ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਮਗਲਿੰਗ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਸੀ। ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਕੰਮ ਕਿਸੇ ਅਖੌਤੀ ਬਾਬੇ ਜਾਂ ਸਾਧ ਦਾ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਕਮੇਟੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਤੇ ਦਿੱਲੀ ਦੋਵਾਂ ਦਾ ਹੀ ਸੀ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ ਤਖਤ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਜਥੇਦਾਰ ਗਿਆਨੀ ਗੁਰਬਚਨ ਸਿੰਘ ਦੀ 2009 ਵਿਚ ਲਿਖੇ ਇਕ ਪੱਤਰ ਰਾਹੀਂ ਪ੍ਰਵਾਨਗੀ ਮਿਲੀ ਹੋਈ ਸੀ ਤੇ ਹੁਣ ਇਸ ਮਾਮਲੇ ਬਾਰੇ ਖੁਲਾਸਾ ਹੋਣ ਉਪਰੰਤ ਦੋਬਾਰਾ 27 ਅਪ੍ਰੈਲ ਨੂੰ ਜਥੇਦਾਰ ਨੇ ਚਿੱਠੀ ਲਿਖ ਕੇ ਇਸ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਰੂਪ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਜਾਣ 'ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਲਾ ਦਿੱਤੀ ਹੈ। ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਸਹਿਜਧਾਰੀ ਸਿੱਖ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਕੌਮੀ ਪ੍ਰਧਾਨ ਡਾ. ਪਰਮਜੀਤ ਸਿੰਘ ਰਾਣੂੰ ਨੇ ਪ੍ਰਗਟ ਕੀਤੇ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸਾਡੇ ਸਿੱਖ ਲੀਡਰ ਕਰੋੜਾਂ ਦਾ ਖਰਚਾ ਜਹਾਜ਼ਾਂ ਵਿਚ ਸਫ਼ਰ ਕਰਨ 'ਤੇ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਕੀ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਜਗਤਗੁਰੂ, ਜਗਦੀ ਜੋਤ ਹਾਦਰਾ ਹਜ਼ੂਰ ਮੰਨਦੇ ਹਾਂ, ਦੇ 150 ਸਰੂਪਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਜਾਣ ਵਾਸਤੇ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਕਮੇਟੀ ਇਕ ਚਾਰਟਰ ਫਲਾਈਟ ਦਾ ਇੰਤਜ਼ਾਮ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੀ ਸੀ? ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਗੁਰੂ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦਾ ਜੋ ਸਰੂਪ 2500 ਰੁਪਏ ਦਾ ਮਿਲਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਵਿਦੇਸ਼ ਵਿਚ 3 ਲੱਖ ਦਾ ਵਿਕਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਸਾਡੇ ਸਿੱਖ ਲੀਡਰ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਕਮੇਟੀ ਤੇ ਅਕਾਲ ਤਖਤ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਜਥੇਦਾਰ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਸਮਗਲਿੰਗ ਦਾ ਧੰਦਾ 2009 ਤੋਂ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਹ ਕੰਟੇਨਰ ਦਿੱਲੀ ਤੋਂ ਤੁਗਲਕਾਬਾਦ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਫਿਰ ਇਸ ਦੀ ਜਾਂਚ ਕਸਟਮ ਕਲੀਅਰੈਂਸ ਲਈ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਸਿਕਿਓਰਟੀ ਚੈਕਿੰਗ ਸਮੇਂ ਹਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਇਸ ਦੇ ਅੰਦਰ ਵੜ ਕੇ ਬੇਅਦਬੀ ਨਾਲ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਰੂਪਾਂ ਨੂੰ ਗੰਦੇ-ਮੰਦੇ ਹੱਥ ਲਾ ਕੇ ਚੈਕ ਕਰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਇਸ ਵਿਚ ਕੋਈ ਹਥਿਆਰ ਤਾਂ ਨਹੀਂ। ਫਿਰ ਇਹ ਚੈਕਿੰਗ ਮੁੰਬਈ ਦੇ ਸਮੁੰਦਰੀ ਪੋਰਟ 'ਤੇ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਸਮੁੰਦਰੀ ਜਹਾਜ਼ ਵਿਚ ਲੱਦਣ ਤੋਂ 2-3 ਮਹੀਨੇ ਬਾਅਦ ਇਸ ਨੂੰ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਪੋਰਟ 'ਤੇ ਉਤਾਰਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਥੇ ਫਿਰ ਇਸ ਨੂੰ ਹਰ ਕਿਸਮ ਤੇ ਲੋਕ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਅਦਬ ਦੇ ਦੋਬਾਰਾ ਚੈਕ ਕਰਦੇ ਹਨ ਤੇ ਕਲੀਅਰੈਂਸ ਦਿੰਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਤਾੜ ਕੇ ਬੇਅਦਬੀ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਤਾਂ ਭਨਿਆਰੇ ਵਾਲੇ ਤੇ ਸਰਸੇ ਵਾਲੇ ਬਾਬੇ ਜਾਂ ਹੋਰਨਾਂ ਤੋਂ ਵੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਗੁਨਾਹਗਾਰ ਹਨ। ਇਹੀ ਕੰਮ ਅੱਜ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਨੇ ਕੀਤਾ ਹੁੰਦਾ ਤਾਂ ਜਥੇਦਾਰਾਂ ਨੇ ਅੱਗਾਂ ਲਾ ਕੇ ਦੰਗੇ ਕਰਵਾ ਦੇਣੇ ਸੀ ਪਰ ਹੁਣ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ ਕੌਣ ਦੇਵੇਗਾ? ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪੰਥ ਵਿਚੋਂ ਛੇਕਣ ਵਾਲਾ ਕੀ ਕੋਈ ਮਾਈ ਦਾ ਲਾਲ ਨਹੀਂ ਹੈ? ਕੀ ਇਸ ਵਿਸ਼ੇ 'ਤੇ ਮੱਕੜ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਕੋਈ ਬਿਆਨ ਨਹੀਂ ਆਵੇਗਾ? ਕੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਧਰਤੀ 'ਤੇ ਰਾਜ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਅਖੌਤੀ ਸਰਕਾਰ ਵੀ ਚੁੱਪ ਹੀ ਰਹੇਗੀ? ਇਹ ਕਈ ਸਵਾਲ ਅੱਜ ਸਿੱਖ ਕੌਮ ਵਿਚ ਵਧ ਰਹੇ ਬੇਚਾਰੇਪਨ ਤੇ ਖ਼ੁਦਗ਼ਰਜ਼ੀ ਨੂੰ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਤੋਂ ਪਤਾ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ਕੇ ਸਾਡੇ ਆਪਣੇ ਹੀ ਸਾਡੇ ਧਰਮ ਦੇ ਦੁਸ਼ਮਣ ਬਣ ਚੁੱਕੇ ਹਨ। ਡਾ. ਰਾਣੂੰ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕੇ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ ਤਖਤ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਜਥੇਦਾਰ ਗਿਆਨੀ ਗੁਰਬਚਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਜ਼ਮੀਰ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਸੁਣ ਕੇ ਇਸ ਮਾਮਲੇ ਦੀ ਸੰਜੀਦਗੀ ਨਾਲ ਜਾਂਚ ਕਰਵਾਉਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਤੇ ਅੱਗੇ ਤੋਂ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬਾਨ ਦੀ ਬੇਅਦਬੀ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਠੋਸ ਪ੍ਰਬੰਧ ਉਠਾਉਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ ਤੇ ਮੌਜੂਦਾ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਕਮੇਟੀ ਪ੍ਰਧਾਨ ਖਿਲਾਫ ਤੇ ਦਿੱਲੀ ਕਮੇਟੀ ਦੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲੋਕਾਂ ਜੋ ਇਸ ਮਾਮਲੇ ਨਾਲ ਸਬੰਧਿਤ ਹਨ, ਨੂੰ ਵੀ ਤਨਖਾਹ ਲਾਉਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ। 

ਗਰੀਬਾਂ ਲਈ ਅੱਜ ਵੀ ਫਰਿੱਜ ਹੈ ਘੜਾ

ਬਰਨਾਲਾ - ਅੱਜ ਦੇ ਇਸ ਮਸ਼ੀਨੀ ਯੁੱਗ ਵਿਚ ਵੀ ਹੱਥ ਦੇ ਬਣੇ ਬਰਤਨਾਂ ਦਾ ਆਪਣਾ ਹੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਮਹੱਤਵ ਹੈ। ਅਮੀਰਾਂ ਲਈ ਜਿੱਥੇ ਫਰਿੱਜ ਬਣ ਗਏ ਹਨ, ਉਥੇ ਗਰੀਬਾਂ ਲਈ ਘੜਾ ਅੱਜ ਵੀ ਕਿਸੇ ਫਰਿੱਜ ਤੋਂ ਘੱਟ ਨਹੀਂ ਹੈ ਅਤੇ ਗਰਮੀਆਂ ਵਿਚ ਇਹ ਜਮ ਕੇ ਵਿਕ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਕਿਸੇ ਮਹੂਰਤ, ਹਵਨ ਯੱਗ ਵਿਚ ਅੱਜ ਵੀ ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਬਰਤਨਾਂ ਦਾ ਹੀ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਚੀਕਣੀ ਮਿੱਟੀ ਨਾਲ ਬਣੇ ਘੜੇ ਦਾ ਠੰਡਾ ਪਾਣੀ ਤਾਜ਼ਗੀ ਅਤੇ ਸਕੂਨ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਕ ਜ਼ਮਾਨਾ ਸੀ ਜਦੋਂ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਆਬਾਦੀ ਇਸਦਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕਰਦੀ ਸੀ। ਪੇਂਡੂ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ ਇਸ ਨੂੰ ਅੱਜ ਵੀ ਦੇਸੀ ਫਰਿੱਜ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਘੜਿਆਂ ਵਿਚ ਰੱਖੇ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਪੀਣ ਨਾਲ ਸਿਹਤ 'ਤੇ ਵੀ ਕੋਈ ਬੁਰਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨਹੀਂ ਪੈਂਦਾ ਪ੍ਰੰਤੂ ਹੁਣ ਬਦਲਦੇ ਜ਼ਮਾਨੇ ਵਿਚ ਘੜੇ ਦੀ ਜਗ੍ਹਾ ਫਰਿੱਜ ਅਤੇ ਵਾਟਰ ਕੂਲਰ ਨੇ ਲੈ ਲਈ ਹੈ। ਪਹਿਲਾਂ ਗਰਮੀਆਂ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਹੁੰਦਿਆਂ ਹੀ ਘੜੇ ਵਿਕਣ ਲਈ ਗਲੀਆਂ, ਮੁਹੱਲਿਆਂ ਵਿਚ ਆ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਲੋਕ ਉਸ ਸਮੇਂ ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਭਾਂਡੇ ਖਰੀਦਣਾ ਵੀ ਪਸੰਦ ਕਰਦੇ ਸਨ ਕਿਉਂਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮੰਨਣਾ ਸੀ ਕਿ ਸਰਦੀਆਂ ਵਿਚ ਬਣੇ ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਬਰਤਨਾਂ ਵਿਚ ਪਾਣੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਠੰਡਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਪ੍ਰੰਤੂ ਅੱਜਕੱਲ ਘੜੇ ਵੇਚਣ ਵਾਲੇ ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਨਾਮਾਤਰ ਹੀ ਰਹਿ ਗਏ ਹਨ। 
ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਘੜੇ ਬਣਾਉਣ ਵਾਲੇ ? :  ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਘੜੇ ਬਣਾਉਣ ਵਾਲੇ ਲਾਲ ਚੰਦ ਪੁੱਤਰ ਸੁਖਰਾਜ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਉਹ ਪਿਛਲੇ ਕਰੀਬ 40 ਵਰ੍ਹਿਆਂ ਤੋਂ ਇਸ ਕਿੱਤੇ ਨਾਲ ਜੁੜਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਉਦੋਂ ਇਸ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਫਰਿੱਜ, ਵਾਟਰ ਕੂਲਰ ਅਤੇ ਕੈਂਪਰਾਂ ਨਹੀਂ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸ ਸਮੇਂ ਘੜੇ ਅਤੇ ਸੁਰਾਹੀਆਂ ਦੀ ਵਿਕਰੀ ਪੂਰੇ ਜ਼ੋਰਾਂ 'ਤੇ ਹੁੰਦੀ ਸੀ। ਵੈਸਾਖ ਦੇ ਮਹੀਨੇ ਵਿਚ ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਭਾਂਡੇ ਆਦਿ ਦਾਨ ਵਿਚ ਦੇਣ ਦਾ ਮਹੱਤਵ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਘੜਾ ਭਾਲਿਆਂ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ਮਿਲਦਾ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਜਿੱਥੇ ਅੱਜ ਦੇ ਜ਼ਮਾਨੇ ਵਿਚ ਘੜਿਆਂ ਦੀ ਵਿਕਰੀ ਘੱਟ ਗਈ ਹੈ, ਉਥੇ ਅੱਜ ਇਹ ਧੰਦਾ ਵੀ ਬਹੁਤ ਮਹਿੰਗਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ। ਮਿੱਟੀ ਦੀ ਇਕ ਟਰਾਲੀ ਜੋ ਲਗਭਗ 3500 ਰੁਪਏ ਵਿਚ ਸਾਨੂੰ ਖਰੀਣਦੀ ਪੈ ਰਹੀ ਹੈ ਅਤੇ ਘੜਾ ਬਣਾ ਕੇ ਅਸੀਂ ਹੋਲਸੇਲ ਵਿਚ 35 ਤੋਂ 40 ਰੁਪਏ ਤੱਕ ਵੇਚਦੇ ਹਾਂ, ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਅੱਜ ਦੀ ਮਹਿੰਗਾਈ ਦੇ ਯੁੱਗ ਵਿਚ ਦੋ ਡੰਗ ਦੀ ਰੋਟੀ ਕਮਾਉਣਾ ਵੀ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਹੋਇਆ ਪਿਆ ਹੈ।  
ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਘੜੇ ਵੇਚਣ ਵਾਲੇ? : ਘੜੇ ਵੇਚਣ ਵਾਲੇ ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਮਨੀਸ਼ ਕੁਮਾਰ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਕ ਘੜਾ ਉਹ 60 ਤੋਂ 65 ਰੁਪਏ ਤੱਕ ਵੇਚਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਵਿਕਰੀ ਵਿਚ ਪਿਛਲੇ ਕੁਝ ਸਾਲਾਂ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਵਿਚ ਹੁਣ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਘੜੇ ਅਤੇ ਹੋਰ ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਬਰਤਨ ਬਣਾਉਣ ਵਾਲਿਆਂ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਉਤਸ਼ਾਹ ਦੇਵੇ ਤਾਂ ਕਿ ਇਹ ਕਲਾ ਬਣੀ ਰਹੇ।

भाजपा का सपना पूरा कर सकती है आम आदमी पार्टी

 भारतीय जनता पार्टी दिल्ली और देश की सत्ता के लिए पिछले 10 सालों से तरस रही है। उसे ना तो दिल्ली की कुर्सी हासिल हुई और ना ही देश की सत्ता, लेकिन अब लगता है कि भाजपा का सपना पूरा हो जाएगा।और सपना पूरा करेगी आम आदमी पार्टी। आप सोच रहे है के क्या लिख रहा हु मै  भारत की तथाकथित आजादी के  बाद कांग्रेस ही ज्यादा  तर केंदर मे क़ाबिज़ रहीं है ! एक बार  जनता पार्टी ,एक बार भारतीयजनता पार्टी ,तीसरा मोर्चा कुश १२ बरस तक और हमेशा रही काबिज कांग्रेस ! क्या भारत की जनता ने हर बार कांग्रेस को चुना ,नहीं ,कांग्रेस ज़ोड तोड़ क़ी राजनीती कर साटा पर काबीज होतीं रहीं है 
भारत में ६ नेशनल पोलिटिकल पार्टीज इलेक्शन कमीशन से मानता प्रापत है
१  इंडियन नेशनल कांग्रेस 
२ भारतीयजनता पार्टी 
३ बहुजन समाज पार्टी 
४ कामनुइस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया 
५ कामनुइस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (म )
६ समाज वादी  पार्टी 
कांग्रेस को छोड़ कर बाकी सारी पार्टीज पुरे देश मे आज भी सारी सीट्स पर चुनाव लड़ने मे असमर्थता दिखातीं दिखाई देती है  
ऐसा क्या हो गया  के आम आदमी पार्टी सिर्फ़ एक बरस कि उम्र मे ही देश की ४३४ सीट्स पर लोकसभा चुनाव लड़ने मे समरथ हो गयी ! कुश लोग इसे लोगो का मेह्गाई ने  कांग्रेस के प्रति लोगो क बढ्ता गुसा। देश में बड़ रहा भर्ष्टाचार ,घोटालो को जिमेवार भी मानते  है लोग बद्लाव चाहते है 
लेकिन प्रशन ये उठता है के ये बद्लाव सिर्फ  २०१४ के लोकसभा चुनाव में ही चाह्ते है! इस्से पहले क्या लोगो ने बद्लाव नहि चाहा था ! कया आज से पहले भरष्टाचार नहि था ? था १९४७ से लेकर आज तक मेह्गाई और भरष्टाचार लागातार बढ़ते ही जा रहे है! हर चुनाव मे लोगो ने बदलाव  लाना चाहा ,जिस्के कारन  ६ नेशनल और अनेको रीजनल पॉलिटिकल पार्टीज का जनम हुआ ! लेकिन बदलाव नहि हुआ कारन ज़ोड टोड कि राजनीती ! NDA और U P A 
भरष्टाचार और घोटालों के आरोप हर सरकार पर लगे ! मेह्गाई और बेरोजगारी हर सरकार के दौर मे बड़ी !
धार्मिक उन्माद और दंगे भी रोक्ने मे लग्भग सारी सरकारेँ असफल रही ! चाहे वो राम मन्दिर बाबरी मस्जिद ,देल्ही मे सिख नस्लकुशी ,गुजरात मे गोदरा कान्ड ,गुजरात मे मुस्लिम विरोधी दंगे ,उत्तर प्रदेश मे दंगे ,असम मे ,जम्मुकश्मीर मे ,और अन्य      , 
करीब सभी पोलिटिकल पार्टिओ ने अपने राजनितिक मुफ़ाद के लिये धार्मीक उन्माद को बडावा देने की कथित कोशिश की ! हिन्दू वोट बैंक को भुनाने के लिये हि भाजपा ने मोदी को प्राइम मिनिस्टर पद का उम्मीद्वार बना कर मोदि के नाम पर वोट मांगे है !
मुझे लगता है कि कांग्रेस चाहे कितनी भि कम सीट्स ले जाएं उसे केंदर से बाहार करणा असान नहि है भारत  कि ज्यतातर पॉलिटिकल पार्टीज  को भारतीयजनता पार्टी से परहेज है सिवा अकालीदल बदल के !
उत्तरप्रदेश से चाहे मायावती जीते चाहेँ मुलायम सिंह समर्थन। …… कांग्रेस को ! बिहार से लालू प्रशाद या नीतीष समर्थन। …… कांग्रेस ! ममता दीदी या लेफ्ट समर्थन। …कांग्रेस ! देश के  ज्यादातर राज्यों क हाल यहि है 
कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने के लिये पंजाब मे एक फॉर्मूले पर काम किया गया जो के १००% कामयाब रहा (p p p) पीपल पार्टी ऑफ़ पंजाब  !
पीपल पार्टी ऑफ़ पंजाब ने पंजाब मे अकालीदल बादल और भारतीयजनतापार्टी कि सरकार बनाने मे मुख्य भुमिका आदा की ! पीपल पार्टी ऑफ़ पंजाब ने शिरोमणि गुरद्वारा परबंदक कमैटी के  चुनाव मे अपने कैंडिडेट ख़ड़े नही किए  जंहा पर अकालीदल के वोट बंक को    नुक़सान किय जां सकता था  ,विधान सभा चुनाव लड़ा और सिर्फ़ कॉँग्रेस वोट बैंक को तोडा, शहिदो कि बात कीं  भरष्टाचार कि बात कीं ,निजाम बदलणे कि बाते क़ी ,वही एजेंड़ा उठा कर बनी है आम आदमी पार्टी दोनो पार्टीज क एजेंड़ा एक है चुनाव मनोरथ पतर एक है पंजाब  जैसे फॉर्मूले से कांग्रेस को केंदर से दूर राख्ने कि कोशिश कि गयी है 
जिसमे कितनी कामयाबी मिलती है ये तो आने वाला वक्त्त हि बताएगा फिल्हाल तो यहि कह  सकते है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के वोट बैंक के साथ साथ रीजनल पार्टीज के वोट बैंक पर भी झाड़ू चला सकती है , आम आदमी पार्टी ने भी पीपल पार्टी ऑफ़ पंजाब कि तरह जैसे पीपल पार्टी ऑफ़ पंजाब ने पंजाब मे सिख वोट बैंक को नहि छेडा था उसी तरह आम आदमी पार्टी ने भी हिन्दु वोट बैंक को नहि छेड़ा है बल्कि माइनॉरिटीज मुस्लिम और बैक्वोरिड वोट बंक को हि निषाना बनाय है इस्लिये कयास लगया जां सकता है के  भाजपा का सपना पूरा कर सकती है  आम आदमी पार्टी  !

10 साल बाद सत्ता में लौटेगी भाजपा, दिल्ली पर होगा राज: सर्वे

नयी दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी दिल्ली और देश की सत्ता के लिए पिछले 10 सालों से तरस रही है। उसे ना तो दिल्ली की कुर्सी हासिल हुई और ना ही देश की सत्ता, लेकिन अब लगता है कि भाजपा का सपना पूरा हो जाएगा। एनडीटीवी और हंसा रिसर्च ग्रुप ने देश का सबसे बड़ा ओपिनियन पोल करने का दावा किया है। सर्वे में 283 सीटों का अनुमान लगाया गया है। इनमें भाजपा और उसके सहयोगी दलों को 160 सीटें हालिस करते हुए दिखाया गया है जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को 54 सीटें वहीं तीसरे मोर्चे की आस लगाकर बैठे अन्य के खाते में 69 सीटें मिलती दिखाई गई है। भाजपा कांग्रेस अन्य 14.3% 28.6% 57.1% जहां ये ओपिनियन पोल भाजपा की बड़ी जीत की ओर बढ़ती दिखाई दे रही है तो वहीं ये पोल इशारा करता है कि दिल्ली में भाजपा की सत्ता 10 सालों बार लौटंगी। एनडीटीवी और हंसा रिसर्च ग्रुप के ताजा सर्वे के मुताबिक, 11 राज्योंी की 283 सीटों में से एनडीए को 160 सीटें मिल सकती हैं। ये पोल महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, राजस्थान, दिल्ली, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, सीमांध्र और तेलंगाना शामिल हैं। एक अन्य1 पोल सीएसडीएस ने सीएनएन-आईबीएन चैनल के लिए किया है। दिल्लीक में 10 सालों तक भाजपा सत्ता से दूर रही। भाजपा के लिए 3-4, आप के लिए 2-3 और कांग्रेस के लिए 0-1 सीट की भविष्यहवाणी की गई है।

अमेरिकी पुरुष ने दान किया दुनिया का सबसे लंबा लिंग

वॉश‍गटन। खबर की हेडिंग पढ़ने के बाद आपको हंसी आयी होगी, लेकिन यह सच है और वो भी अजब-गजब। जी हां आइसलैंड के म्यूजियम की यह खबर है, जहां दुनिया के उस व्यक्त‍ि ने अपना लिंग दान करने की हामी भर दी है। सबसे पहले हम आपको बता दें कि मैनहैटन, यूएसए का रहने वाला जोनाह फैल्कन वो आदमी है, जिसका लिंग दुनिया में सबसे लंबा है। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी उसका नाम दर्ज है। उसके लिंग की लंबाई 34 सेंटीमीटर यानी 13.39 इंच है। 43 वर्षीय जोनाह ने आईसलैंड के म्यूजियम को पत्र लिखकर कहा है, "मुझे खुशी होगी यदि मेरे मरने के बाद मेरा लिंग आपके म्यूजियम में संजोकर रखा जाये। इसके लिये जो भी कागजी कार्रवाई करनी है, मैं उसके लिये तैयार हू
बेंगलुरु। वॉश‍िंगटन से खबर आयी कि मैनहैटन में रहने वाले 43 वर्षीय जोनाह फैल्कन ने आइसलैंड के एक म्यूजियम को अपना लिंग दान किया है। इस अजब गजब खबर के चर्चा में आने के बाद आइसलैंडिक फलोलोजिकल म्यूजियमम भी अचानक चर्चा में आ गया। तमाम सवाल आने शुरू हो गये- ये कैसा म्यूजियम है, किसने ऐसा म्यूजियम खोला, कैसे हुई स्थापना, क्या-क्या है इसके अंदर, वगैरह-वगैरह। तो चलिये हम आपको वो बातें बताते हैं, जिन्हें पढ़ने के बाद आपके भी होश उड़ जायेंगे। फलोलोजिकल म्यूजियक की स्थापना आईसलैंड का एक बच्चा सिगुरोर जार्टरसन आइसलैंड के गांव में रहता था, जहां पशुओं को चराने के लिये उसे रस्सी जैसी दिखने वाली एक वस्तु दी गई। यह बात 1974 की है। वो उस वस्तु को देख चकित था, उसने अपने दोस्त से उसके बारे में पूछा तो पता चला कि वह सांड का लिंग है, जिसे सुखाकर पशुओं को चराने के लिये उसे दिया गया है। सिगुरोर चकित रह गया। उसके दोस्त ने चार अन्य सांडों के लिंग लाकर उसे दिये। सिगुरोर ने वो सारे लिंग घर में संभालकर रख लिये। कुछ महीने बाद उसे समुद्री तट पर स्थ‍ित व्हेलिंग स्टेशन पर जाने का मौका मिला, जहां उसे व्हेल के लिंग देखने को मिले। वह वहां से भी एक व्हेल का लिंग लेकर घर आ गया। इस छोटे से कलेक्शन ने सिगुरोर के अंदर लिंग इकठ्ठा करने की प्रेरणा जाग उठी और उसने तभी से अलग-अलग जानवरों के लिंग इकठ्ठा करने शुरू कर दिये। यही बच्चा आगे चलकर इतिहास का टीचर बना। हैमरेल्ड कॉलेज में पढ़ाने लगे। 1997 में 37 वर्ष की उम्र में उन्होंने रिटायरमेंट ले लिया और अपने पुराने शौक की ओर चल पड़े। म्यूजियम और मौत सिगुरोर ने आइसलैंड में एक म्यूजियम की स्थापना की। जिसमें आज 300 से ज्यादा जीवों के लिंग व यौन अंग रखे हुए हैं। जब म्यूजियम में 93 छोटे जीव, 55 व्हेल, 36 सील अैर 118 जमीन पर रहने वाले जानवरों के लिंग एकत्र कर लिये, तब एक मानव लिंग की जरूरत महसूस हुई। जुलाई 2011 में अमेरिका के एक व्यक्त‍ि ने अपने लिंग को डोनेट करने पर हामी भर दी। उस वक्त म्यूजियम के डॉक्टरों की एक टीम फॉरमेलिन के जार में उस पेनिस को एकत्र करने के लिये पहुंची, लेकिन सही कार्य सही ढंग से नहीं हो पाने पर डोनर की मौत हो गई। उसका साइज मध्यम आकार का है। म्यूजियम को अभी भी उससे बड़ी या छोटी पेनिस की तलाश है। बड़ी की तलाश अब अमेरिका के जोनाह ने पूरी कर दी है।

Thursday, May 8, 2014

ਸੁਪਰੀਮ ਕੋਰਟ ਇਕ ਇਤਿਹਾਸਕ ਫ਼ੈਸਲਾ

ਸੁਪਰੀਮ ਕੋਰਟ ਦੇ ਹਾਲ ਹੀ ਦੇ ਇਕ ਤਾਜ਼ਾ ਫ਼ੈਸਲੇ ਨਾਲ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਮੌਜੂਦ ਵਿਆਪਕ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਖ਼ਾਸ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਕਾਫੀ ਮਦਦ ਮਿਲਣ ਦੀ ਸੰਭਾਵਨਾ ਹੈ। ਸੁਪਰੀਮ ਕੋਰਟ ਨੇ ਆਪਣੇ ਇਸ ਫ਼ੈਸਲੇ ਵਿਚ ਕਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਕੇਂਦਰੀ ਜਾਂਚ ਬਿਊਰੋ ਨੂੰ ਭਵਿੱਖ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਉੱਚ-ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਅਧਿਕਾਰੀ ਵਿਰੁੱਧ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਸਬੰਧੀ ਕੇਸ ਦਰਜ ਕਰਨ ਅਤੇ ਦੋਸ਼ਾਂ ਦੀ ਜਾਂਚ ਕਰਨ ਲਈ ਸਰਕਾਰ ਤੋਂ ਪ੍ਰਵਾਨਗੀ ਲੈਣ ਦੀ ਲੋੜ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗੀ। ਬਿਨਾਂ ਸ਼ੱਕ ਇਸ ਨਾਲ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ 'ਤੇ ਕੁਝ ਹੱਦ ਤੱਕ ਹੀ ਸਹੀ, ਰੋਕ ਲੱਗਣ ਦੀ ਇਕ ਆਸ ਬੱਝੀ ਹੈ। ਸੁਪਰੀਮ ਕੋਰਟ ਦੇ ਸੰਵਿਧਾਨਕ ਬੈਂਚ ਨੇ ਇਹ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੁਝ ਸਿਆਸੀ ਪਾਰਟੀਆਂ ਵੱਲੋਂ ਦਾਇਰ ਕੀਤੀ ਗਈ ਇਕ ਪਟੀਸ਼ਨ ਦੀ ਸੁਣਵਾਈ ਕਰਦਿਆਂ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਇਹ ਫ਼ੈਸਲਾ ਨਿਆਇਕ ਅਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਪੱਖੋਂ ਸੱਚਮੁੱਚ ਇਤਿਹਾਸਕ ਸਾਬਤ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੁੰਦਾ ਇਹ ਆਇਆ ਹੈ ਕਿ ਸੰਯੁਕਤ ਸਕੱਤਰ ਪੱਧਰ ਦੇ ਕਿਸੇ ਵੱਡੇ ਅਧਿਕਾਰੀ ਵਿਰੁੱਧ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਆਦਿ ਸਬੰਧੀ ਗੰਭੀਰ ਦੋਸ਼ਾਂ ਦੀ ਪੁਸ਼ਟੀ ਹੋ ਜਾਣ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਉਸ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਸੀ.ਬੀ.ਆਈ. ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ ਤੋਂ ਪ੍ਰਵਾਨਗੀ ਲੈਣੀ ਪੈਂਦੀ ਸੀ। ਇਹ ਪ੍ਰਵਾਨਗੀ ਹਾਸਲ ਕਰਨ ਵਿਚ ਕਈ ਵਾਰ ਵਰ੍ਹਿਆਂ ਦਾ ਸਮਾਂ ਲੱਗ ਜਾਂਦਾ ਸੀ। ਏਨੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਜਾਂ ਤਾਂ ਸਾਰੇ ਸਬੂਤ ਖੁਰਦ-ਬੁਰਦ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ਜਾਂ ਸਮੁੱਚਾ ਘਟਨਾਕ੍ਰਮ ਹੀ ਬਦਲ ਜਾਂਦਾ ਸੀ। ਇਸ ਨਾਲ ਇਕ ਪਾਸੇ ਜਿੱਥੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਵਿਹਾਰ ਵਿਚ ਧੱਕੇਸ਼ਾਹੀ ਦਾਖ਼ਲ ਹੁੰਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਸੀ, ਉਥੇ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਨਿਰਾਸ਼ਾ ਅਤੇ ਹਤਾਸ਼ਾ ਦਾ ਮਾਹੌਲ ਬਣਦਾ ਸੀ। ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਇਹ ਧਾਰਨਾ ਬਣ ਗਈ ਸੀ ਕਿ ਕੋਈ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਅਧਿਕਾਰੀ ਜਿੰਨਾ ਵੱਡਾ ਹੋਵੇਗਾ, ਉਸ ਵਿਰੁੱਧ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਦਰਜ ਕਰਾ ਕੇ ਨਿਆਂ ਹਾਸਲ ਕਰਨਾ ਓਨਾ ਹੀ ਔਖਾ ਹੋਵੇਗਾ। ਸ਼ਾਇਦ ਇਸੇ ਸਥਿਤੀ ਦੇ ਮੱਦੇਨਜ਼ਰ ਅਦਾਲਤ ਨੇ ਇਕ ਵਾਰ ਸੀ.ਬੀ.ਆਈ. ਨੂੰ ਪਿੰਜਰੇ 'ਚ ਬੰਦ ਤੋਤੇ ਦਾ ਦਰਜਾ ਵੀ ਦਿੱਤਾ ਸੀ।ਇਹ ਫ਼ੈਸਲਾ ਸੁਣਾਉਂਦਿਆਂ ਸੁਪਰੀਮ ਕੋਰਟ ਨੇ ਜੋ ਟਿੱਪਣੀ ਕੀਤੀ ਹੈ, ਉਸ ਨਾਲ ਇਕ ਪਾਸੇ ਜਿਥੇ ਇਸ ਫ਼ੈਸਲੇ ਦੀ ਅਹਿਮੀਅਤ ਵਧ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਉਥੇ ਇਸ ਫ਼ੈਸਲੇ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ ਪੈਣ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ਦਾ ਵੀ ਅੰਦਾਜ਼ਾ ਲੱਗ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਅਦਾਲਤ ਨੇ ਫ਼ੈਸਲਾ ਸੁਣਾਉਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਦੁਸ਼ਮਣ ਬਣ ਕੇ ਉੱਭਰਿਆ ਹੈ। ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਸਬੰਧੀ ਛੋਟੇ ਅਤੇ ਵੱਡੇ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਦਾ ਵਖਰੇਵਾਂ ਕਰਕੇ ਲੋੜੀਂਦੇ ਨਤੀਜੇ ਹਾਸਲ ਨਹੀਂ ਕੀਤੇ ਜਾ ਸਕਦੇ। ਅਦਾਲਤ ਨੇ ਇਹ ਵੀ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸੀਨੀਆਰਤਾ ਦੇ ਆਧਾਰ 'ਤੇ ਕਿਸੇ ਇਕ ਵਰਗ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਨੂੰ ਛੋਟ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ। ਅਦਾਲਤ ਨੇ ਇਸ ਫ਼ੈਸਲੇ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਸੰਨ 2003 ਵਿਚ ਸੀ.ਬੀ.ਆਈ. ਦੀ ਨਿਯਮਾਵਲੀ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਿਲ ਕੀਤੇ ਗਏ ਉਸ ਨਿਰਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਵੀ ਰੱਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਤਹਿਤ ਸੀ.ਬੀ.ਆਈ. ਦੇ ਇਸ ਅਧਿਕਾਰ 'ਤੇ ਰੋਕ ਲਗਦੀ ਸੀ।ਅਸੀਂ ਸਮਝਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਬਿਨਾਂ ਸ਼ੱਕ ਸਰਬਉੱਚ ਅਦਾਲਤ ਦਾ ਇਹ ਫ਼ੈਸਲਾ ਸਹੀ ਸਮੇਂ 'ਤੇ ਸਹੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਨੂੰ ਪ੍ਰਗਟਾਉਂਦਾ ਹੈ ਪਰ ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਸਮਾਜ ਦੇ ਇਕ ਵਰਗ ਵੱਲੋਂ ਜ਼ਾਹਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਇਹ ਖਦਸ਼ਾ ਵੀ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਿਰਮੂਲ ਨਹੀਂ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਆਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਕਿਤੇ ਸੀ.ਬੀ.ਆਈ. ਦੀ ਨਿਰੰਕੁਸ਼ਤਾ ਨਾ ਵਧ ਜਾਵੇ। ਇਹ ਵੀ ਬਹੁਤ ਸੰਭਵ ਹੈ ਕਿ ਸਰਕਾਰ ਬਦਲਣ 'ਤੇ ਪਿਛਲੀ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਨਵੀਂ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਸਿਆਸਤਦਾਨਾਂ ਵੱਲੋਂ ਨਜ਼ਲਾ ਝਾੜਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਨਾਲ ਬਦਲੇ ਦੀ ਇਕ ਨਿਰੰਤਰ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਵਰਗੀ ਜੇ ਕੋਈ ਕਵਾਇਦ ਸ਼ੁਰੂ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਇਹ ਦੇਸ਼ ਜਾਂ ਸਮਾਜ ਦੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਵਰਗ ਦੇ ਹਿਤ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗੀ। ਅਜਿਹੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿਚ ਨਿਸਚਿਤ ਤੌਰ 'ਤੇ ਸੀ.ਬੀ.ਆਈ. ਦੀਆਂ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀਆਂ ਅਤੇ ਫ਼ਰਜ਼ਾਂ ਦਾ ਘੇਰਾ ਹੋਰ ਵਿਸ਼ਾਲ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਫ਼ੈਸਲੇ ਦੇ ਮੱਦੇਨਜ਼ਰ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਅਤੇ ਸੱਤਾਧਾਰੀ ਵਰਗ ਦੇ ਫ਼ਰਜ਼ਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਵਾਧਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਦੇਸ਼ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਆਪਕ ਹਿਤਾਂ ਦੇ ਮੱਦੇਨਜ਼ਰ ਇਹ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ਕਿ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਪੱਧਰ 'ਤੇ ਹੋਵੇ, ਉਸ ਵਿਰੁੱਧ ਪੂਰੀ ਸਖ਼ਤੀ ਨਾਲ ਕਾਰਵਾਈ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ। ਅਸੀਂ ਸਮਝਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਕੁੱਲ ਮਿਲਾ ਕੇ ਸੁਪਰੀਮ ਕੋਰਟ ਦਾ ਇਹ ਫ਼ੈਸਲਾ ਦੇਸ਼ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਆਪਕ ਹਿਤ ਵਿਚ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਫ਼ੈਸਲੇ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਵਿਰੁੱਧ ਸਟੀਕ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕਾਰਵਾਈ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਦਾ ਰਾਹ ਹੋਰ ਪੱਧਰਾ ਹੋਵੇਗਾ। ਇਸ ਨਾਲ ਨਿਆਇਕ ਪੱਧਰ 'ਤੇ ਸਾਰੇ ਵਰਗਾਂ ਦੀ ਸਮਾਨਤਾ ਦਾ ਆਧਾਰ ਵੀ ਹੋਰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਹੋਵੇਗਾ ਅਤੇ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਨਿਆਂ ਹਾਸਲ ਹੋਣ ਦੀਆਂ ਸੰਭਾਵਨਾਵਾਂ ਵੀ ਵਧਣਗੀਆਂ।

Wednesday, May 7, 2014

कांग्रेस ने बनाया नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार


 शीर्षक पढ़कर आपको झटका जरुर लगेगा, लेकिन यदि गहराई से सोचे तो यह बात बिलकुल सत्य है। याद करें पिछले गुजरात विधानसभा के चुनाव को। मोदी की लगातार जीत के क्रम को तोडऩे के लिए कांग्रेस आतुर थी लेकिन विकल्प नहीं दिखाऊ पड़ रहा था। गुजरात में मोदी के खिलाफ कांग्रेस के अलावा केशुभाऊ पटेल और तमाम अन्य दल भी खड़े थे। तभी मोदी को हराने के लिए कांग्रेस ने एक नया पासा फेंका, प्रचार किया जाने लगा कि यदि मोदी जीत गए गए तो आडवाणी और सुषमा स्वराज्य के पीएम बनने की आशाओं पर पानी फिर जाएगा, क्योंकि तब भाजपा कार्यकर्ता और संघ दोनों ही मोदी को पीएम बनाने का प्रयास करेंगे। उस समय तक मोदी केवल गुजरात तक सीमित थे और उनके भाजपा के पीएम उम्मीदवार बनने के बारे में कोई बात नहीं चल रही थी, कांग्रेस ने उस समय यह पासा इसलिए चला जिससे मोदी को भाजपा के शीर्ष नेतत्व का समर्थन न मिल सके। कांग्रेस की यह चाल कुछ हद तक कामयाब भी हो गई और लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात में कम दौरे किए, लेकिन मोदी ने गुजरात चुनाव में अपने पीएम होने की बात का ठीक ठाक प्रचार किया और मोदी को नुकसान से ज्यादा फायदा हुआ। याद करिए मोदी जीत के बाद तुरंत केशुभाई के घर इसी लिए गए जिससे वह अपनी दरियादिली और सबको साथ लेकर चलने की योग्यता का प्रदर्शन कर सके और उनकी इस बात से संघ खुश भी हुआ। 
 कांग्रेस ने फिर गलती की जब मोदी के नाम पर संघ और भाजपा ने विचार करना शुरू किया तो कांग्रेस ने अपने भष्ट्राचार से उपजे जनता के गुस्से निपटने के लिए मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाने में रूचि दिखाना शुरू किया, कांग्रेस को लगा कि मोदी का नाम आने से लोगों का ध्यान उसकी विफलताओं और महंगाई से हट जाएगा और ऐसा हुआ भी लेकिन कांग्रेस को तब यह अनुमान नहीं था कि मोदी को आगे बढ़ाना उसे कितना महंगा पड़ सकता हैं। याद रखिए मोदी के नाम पर जब भाजपा और संघ में चर्चा हुई तो कांग्रेस के नेताओं ने बयान पर बयान दिए। तब तक तीसरे मोर्चे के नेताओं ने मोदी को तवज्जो देना शुरू नहीं किया। नीतीश के चलते भी मोदी के नाम को उछाला कांग्रेस को लगा कि मोदी के नाम पर यदि भाजपा आगे बढ़ेगी तो नीतीश जैसे साथी उससे दूर होंगे इससे कांग्रेस को बिहार में फायदा मिलेगा और हुआ भी यही लेकिन नीतीश भाजपा से अलग तो हुए पर कांग्रेस के साथ नहीं आए, इससे भाजपा को बिहार में नुकसान की जगह फायदा मिल गया और पासवान के साथ आने से वह आज बिहार में सबसे आगे दिखाई पड़ रही हैं, इसी बीच लालू के जेल जाने से कांग्रेस को झटका लग गया और आज बिहार में कांग्रेस सबसे पीछे दिखाई पड़ रही हैं। मुलायम की सलाह नहीं मानी याद करिए मोदी के नाम उछलने के छोड़े दिनों बाद ही मुलायम सिंह ने आडवाणी की तारीफ करके भाजपा में मोदी को उभरने से रोकने की कोशिश की थी लेकिन कांग्रेस अपने भष्ट्राचार से इतना परेशान थी कि वह मुलायम के राजनैतिक अनुभव का फायदा नहीं उठा सकी और मोदी पर बयानबाजी करती रही। मुलायम ने अपनी पार्टी लाइन से बाहर जाते हुए आडवाणी की तारीफ करके मोदी को आगे आने से रोकने की कोशिश की थी, मुलायम शुरू से मोदी पर बोलने से बचते रहे, क्योंकि मुलायम जानते थे कि एक बार मोदी पर बयानबाजी शुरू हुई तो सारे मुद्दे पीछे हो जाएंगे और मोदी-मोदी होने लगेगा, लेकिन मुलायम की बात पर कांग्रेस ने ध्यान नहीं दिया और अंत में कांग्रेस की बयानबाजी से तंग आकर मुलायम को भी मोदी के खिलाफ बयानबाजी के लिए उतरना पड़ा।
 नरेंद्र मोदी के प्रति मुसलमानों का रुख कौन सा मोड़ ले रहा है? 
सकारात्मक हो रहा है नकारात्मक हो रहा है जैसा पहले था आज भी वैसा ही है
 लेकिन कांग्रेस को तब यह अनुमान नहीं था कि मोदी को आगे बढ़ाना उसे कितना महंगा पड़ सकता हैं।?

गोपाल कांडा ने बनाया नया दल- हरियाणा लोकहित पार्टी

गोपाल कांडा ने बनाया नया दल- हरियाणा लोकहित पार्टी
गुड़गांव। सिरसा के निर्दलीय विधायक गोपाल कांडा ने अक्षय तृतीया के अवसर पर हरियाणा को एक और क्षेत्रीय दल हरियाणा लोकहित पार्टी के रूप में दिया। सर्वप्रथम कार्यक्रम में मौजूद सभी लोगों को लोकहित में काम करने की शपथ दिलवाई गई। ऑडिया-वीडियो के माध्यम से हाईटैक तकनीक द्वारा पार्टी की नीतियों को प्राथमिक कार्यकर्ताओं को दिखाया गया। इसके पश्चात गोपाल कांडा ने अपने गुरु बाबा तारा को नमन् करने के बाद भाषण शुरू किया। अपने भाषण में कांडा ने मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा व सिरसा से सांसद डा. अशोक तंवर पर सीधे-सीधे वार किए। उन्होंने दोनों नेताओं को प्रदेश की तरक्की में रोड़ा बताया। उन्होंने कहा कि हरियाणा में आज कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं है बल्कि दो घरानों ने मात्र प्रदेश को लूटने का काम किया है। चंद राजनीतिक परिवारों ने हाथों में हरियाणा की बागडोर 48 बरस तक रही है लेकिन किसी ने विकास नहीं किया। कांडा ने कहा कि प्रदेश की जनता को नेताओं की नहीं सेवा करने वालों की जरूरत है। ओपिनियन पोल क्या हरियाणा में कांग्रेस का पतन शुरू हो गया है? 
 कांडा ने कहा कि आज के बाद प्रदेश में हरियाणा लोकहित पार्टी और लोकहित में काम करने वालों की सरकार रहेगी। जातिवाद हरियाणा के सभी मुख्यमंत्रियों ने अपने-अपने समय खूब फैलाया। कांडा ने पुलिस कर्मचारियों का वेतन पंजाब की तर्ज पर करने की बात कहते हुए कहा कि गृहराज्यमंत्री रहते उन्होंने मुख्यमंत्री के आगे यह सुझाव रखा था परन्तु किसी कारण से वह स्वीकार नहीं किया गया। खेल विभाग के मंत्री रहते भी मुझे खिलाडिय़ों के पक्ष में बड़ा निर्णय लेने से रोका गया। तभी मेरे मन में हरियाणा को नया विकल्प देने की बात आई। सिरसा के सांसद को रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए बड़े उद्योग स्थापित करने की हिमाचल की बद्दी की तर्ज पर सिरसा-हिसार के बीच में औद्योगिक क्षेत्र स्थापित करने की बात रखी थी परन्तु उन्होंने मेरा कोई साथ नहीं दिया। कांडा ने कहा कि राज्य में सारी सत्ता एक ही हाथ में है। बाकी सब नाम के लोग हैं। परन्तु शीघ्र ही बदलाव आने वाला है। हरियाणा लोकहित पार्टी का 'घोषणापत्र' हरियाणा में विधानसभा चुनावों की अभी आहट भर है लेकिन गोपाल कांडा ने अपना चुनावी घोषणा पत्र आज मंच से ही मौखिक रूप में जारी कर दिया। उन्होंने उनकी सरकार बनने पर फिल्म सिटी, स्पोट्र्स सिटी बनाने, छात्र संघ चुनावों पर रोक हटवाने जैसी युवाओं को लुभाने वाली घोषणाएं कीं तो लंबे समय से जारी मांगों पर भी अपना रुख स्पष्ट कर दिया। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार बनने पर हरियाणा प्रदेश टोल फ्री होगा, हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को मान्यता दी जाएगी, पुलिसकर्मियों को पंजाब से भी अधिक वेतनमान दिया जाएगा। इसके अलावा उन्होंने बुजुर्गों को 5 हजार रुपए सम्मान भत्ता देने का भी ऐलान किया।

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