नई दिल्ली
कांग्रेस १६% मुस्लिम वोट्स के दम पर केन्देर पर ६० साल तक काबिज रही ! देश में पहली बार हुआ है के मोदी के नाम पर हिन्दुओ ने एक जुट हो कर भाजपा को वोट दिया है ! भाजपा को इस गलत फहमी में नहीं रहना चाहिए के मुस्लिम या मिनिओरिटी वोट उसे मिले है या कभी भविष्य में मिलने की सम्भावना है !
'सेक्युलर' पार्टियों ने बहुत कोशिशें कीं कि मुस्लिम बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर वोट करें, इसके बावजूद बीजेपी ने इतनी बड़ी जीत जिस वजह से दर्ज की, उसे 'रिवर्स पोलराइजेशन' कहा जा सकता है।
यूपी और बिहार में बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की, जबकि दोनों जगहों पर मुसलमानों की अच्छी-खासी संख्या है। नतीजे घोषित होने के बाद बीजेपी के जनरल-सेक्रटरी अमित शाह ने हमसे बात करते हुए कहा, 'पार्टी ने इसलिए सफलता पाई है क्योंकि ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा है, जो वोट बैंक की पॉलिटिक्स का हिस्सा नहीं हैं।'
2011 की जनगणना के मुताबिक भारत के 1.2 अरब लोगों में करीब 15 फीसदी मुसलमान हैं। 35 सीटों पर वोटरों में उनकी संख्या करीब एक-तिहाई है। 38 सीटों पर वोटरों में उनकी संख्या 21-30 फीसदी है। अगर उन 145 सीटों को भी शामिल किया जाए, जहां मुसलमान वोटर 11-20 फीसदी हैं, तो यह माना जा सकता है कि मुस्लिम वोटर 218 सीटों के नतीजों पर असर डालने की क्षमता रखते हैं। यूपी और बिहार मिलाकर लोकसभा की 120 सीटें हैं, जिसमें से यूपी में 18 फीसदी और बिहार में 16 फीसदी मुस्लिम हैं। इसलिए 'सेक्युलर' दांव अतार्किक नहीं था।
अकेले यूपी की 80 में से 32 सीटों पर मुसलमानों की संख्या करीब 15 फीसदी या इससे ज्यादा है। लेकिन इन 32 सीटों में से समाजवादी पार्टी को केवल 2 सीटें मिलीं और 30 सीटों पर बीजेपी जीती।
बीजेपी ने उन 8 क्षेत्रों में जीत दर्ज की, जहां मुसलमानों की संख्या 40 फीसदी के करीब है, जिनमें सहारनपुर, अमरोहा, श्रावस्ती, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद और रामपुर शामिल हैं। भारत के इतिहास में पहली बार उत्तर प्रदेश से कोई मुस्लिम सांसद नहीं है।
यही ट्रेंड बिहार में भी है। बिहार में जिन 17 सीटों पर मुस्लिमों की संख्या 15 फीसदी से ज्यादा है, वहां बीजेपी ने 12 सीटें जीती हैं। बाकी 5 में से जेडी(यू) को 1 सीट मिली है और बाकी आरजेडी-कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन को गई हैं।
महाराष्ट्र में मुस्लिमों की संख्या 14 फीसदी है। यहां पर बीजेपी और सहयोगी पार्टियों ने 48 में से 42 सीटों पर जीत दर्ज की है। ज्यादा मुस्लिम वोटरों वाली सभी सीटों पर बीजेपी और सहयोगी पार्टियों ने जीत दर्ज की। मुंबई और महाराष्ट्र के बाकी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के मुस्लिम पॉकेट्स में कम वोटिंग हुई। इसके अलावा कांग्रेस-एनसीपी और आम आदमी पार्टी के बीच वोट बंटने की वजह से वे बेअसर हो गए।
गोवंडी से समाजवादी पार्टी काउंसिलर रईस शेख कहते हैं, 'मुंबई नॉर्थ-ईस्ट के मुस्लिम बहुल इलाके गोवंडी में 40 फीसदी वोट पड़े, जबकि इसी लोकसभा क्षेत्र के गुजराती बहुल मुलुंड में 60 फीसदी वोट पड़े। मुस्लिम वोट मेधा पाटकर और एनसीपी के वर्तमान सांसद संजय दीना पाटिल के बीच बंट गए। इसकी वजह से बीजेपी के किरीट सोमैय्या की जीत आसान हो गई।'
चुनाव विश्लेषक पिछले चुनावों के ट्रेंड को देखते हुए कहते हैं कि मुस्लिम वोटों का वहां पर सबसे ज्यादा असर दिखता है, जहां वे करीब 10 फीसदी हैं। कई उम्मीदवारों के बीच एक उम्मीदवार के लिए उनकी वोटिंग से रिजल्ट तय हो जाता है। जहां पर मुस्लिम 20 फीसदी या इससे ऊपर हैं, वहां पर उनका वोट बेअसर हो जाता है क्योंकि वहां कई मुस्लिम कैंडिडेट की वजह से वोट बंट जाता है। चुनाव विश्लेषक कहते हैं कि कई बार हिंदू वोटों का काउंटर-पोलराइजेशन होता है। ऐसा लगता है कि यूपी में काउंटर-पोलराइजेशन की वजह से बीजेपी को मदद मिली। ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के एमए खालिद कहते हैं, 'भविष्य में मुस्लिमों को अपनी स्ट्रैटिजी बदलनी होगी और अपने विकल्प खुले रखने होंगे।'अंत यही कहा जा सकता है के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के मुस्लिम वोट कांग्रेस-एनसीपी , समाजवादी पार्टी ,बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच वोट बंटने की वजह से वे बेअसर हो गए है ! इसका जयादा श्रेय आम आदमी पार्टी को ही जाता है !
कांग्रेस १६% मुस्लिम वोट्स के दम पर केन्देर पर ६० साल तक काबिज रही ! देश में पहली बार हुआ है के मोदी के नाम पर हिन्दुओ ने एक जुट हो कर भाजपा को वोट दिया है ! भाजपा को इस गलत फहमी में नहीं रहना चाहिए के मुस्लिम या मिनिओरिटी वोट उसे मिले है या कभी भविष्य में मिलने की सम्भावना है !
'सेक्युलर' पार्टियों ने बहुत कोशिशें कीं कि मुस्लिम बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर वोट करें, इसके बावजूद बीजेपी ने इतनी बड़ी जीत जिस वजह से दर्ज की, उसे 'रिवर्स पोलराइजेशन' कहा जा सकता है।
यूपी और बिहार में बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की, जबकि दोनों जगहों पर मुसलमानों की अच्छी-खासी संख्या है। नतीजे घोषित होने के बाद बीजेपी के जनरल-सेक्रटरी अमित शाह ने हमसे बात करते हुए कहा, 'पार्टी ने इसलिए सफलता पाई है क्योंकि ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा है, जो वोट बैंक की पॉलिटिक्स का हिस्सा नहीं हैं।'
2011 की जनगणना के मुताबिक भारत के 1.2 अरब लोगों में करीब 15 फीसदी मुसलमान हैं। 35 सीटों पर वोटरों में उनकी संख्या करीब एक-तिहाई है। 38 सीटों पर वोटरों में उनकी संख्या 21-30 फीसदी है। अगर उन 145 सीटों को भी शामिल किया जाए, जहां मुसलमान वोटर 11-20 फीसदी हैं, तो यह माना जा सकता है कि मुस्लिम वोटर 218 सीटों के नतीजों पर असर डालने की क्षमता रखते हैं। यूपी और बिहार मिलाकर लोकसभा की 120 सीटें हैं, जिसमें से यूपी में 18 फीसदी और बिहार में 16 फीसदी मुस्लिम हैं। इसलिए 'सेक्युलर' दांव अतार्किक नहीं था।
अकेले यूपी की 80 में से 32 सीटों पर मुसलमानों की संख्या करीब 15 फीसदी या इससे ज्यादा है। लेकिन इन 32 सीटों में से समाजवादी पार्टी को केवल 2 सीटें मिलीं और 30 सीटों पर बीजेपी जीती।
बीजेपी ने उन 8 क्षेत्रों में जीत दर्ज की, जहां मुसलमानों की संख्या 40 फीसदी के करीब है, जिनमें सहारनपुर, अमरोहा, श्रावस्ती, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद और रामपुर शामिल हैं। भारत के इतिहास में पहली बार उत्तर प्रदेश से कोई मुस्लिम सांसद नहीं है।
यही ट्रेंड बिहार में भी है। बिहार में जिन 17 सीटों पर मुस्लिमों की संख्या 15 फीसदी से ज्यादा है, वहां बीजेपी ने 12 सीटें जीती हैं। बाकी 5 में से जेडी(यू) को 1 सीट मिली है और बाकी आरजेडी-कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन को गई हैं।
महाराष्ट्र में मुस्लिमों की संख्या 14 फीसदी है। यहां पर बीजेपी और सहयोगी पार्टियों ने 48 में से 42 सीटों पर जीत दर्ज की है। ज्यादा मुस्लिम वोटरों वाली सभी सीटों पर बीजेपी और सहयोगी पार्टियों ने जीत दर्ज की। मुंबई और महाराष्ट्र के बाकी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के मुस्लिम पॉकेट्स में कम वोटिंग हुई। इसके अलावा कांग्रेस-एनसीपी और आम आदमी पार्टी के बीच वोट बंटने की वजह से वे बेअसर हो गए।
गोवंडी से समाजवादी पार्टी काउंसिलर रईस शेख कहते हैं, 'मुंबई नॉर्थ-ईस्ट के मुस्लिम बहुल इलाके गोवंडी में 40 फीसदी वोट पड़े, जबकि इसी लोकसभा क्षेत्र के गुजराती बहुल मुलुंड में 60 फीसदी वोट पड़े। मुस्लिम वोट मेधा पाटकर और एनसीपी के वर्तमान सांसद संजय दीना पाटिल के बीच बंट गए। इसकी वजह से बीजेपी के किरीट सोमैय्या की जीत आसान हो गई।'
चुनाव विश्लेषक पिछले चुनावों के ट्रेंड को देखते हुए कहते हैं कि मुस्लिम वोटों का वहां पर सबसे ज्यादा असर दिखता है, जहां वे करीब 10 फीसदी हैं। कई उम्मीदवारों के बीच एक उम्मीदवार के लिए उनकी वोटिंग से रिजल्ट तय हो जाता है। जहां पर मुस्लिम 20 फीसदी या इससे ऊपर हैं, वहां पर उनका वोट बेअसर हो जाता है क्योंकि वहां कई मुस्लिम कैंडिडेट की वजह से वोट बंट जाता है। चुनाव विश्लेषक कहते हैं कि कई बार हिंदू वोटों का काउंटर-पोलराइजेशन होता है। ऐसा लगता है कि यूपी में काउंटर-पोलराइजेशन की वजह से बीजेपी को मदद मिली। ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के एमए खालिद कहते हैं, 'भविष्य में मुस्लिमों को अपनी स्ट्रैटिजी बदलनी होगी और अपने विकल्प खुले रखने होंगे।'अंत यही कहा जा सकता है के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के मुस्लिम वोट कांग्रेस-एनसीपी , समाजवादी पार्टी ,बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच वोट बंटने की वजह से वे बेअसर हो गए है ! इसका जयादा श्रेय आम आदमी पार्टी को ही जाता है !