शीर्षक पढ़कर आपको झटका जरुर लगेगा, लेकिन यदि गहराई से सोचे तो यह बात बिलकुल सत्य है। याद करें पिछले गुजरात विधानसभा के चुनाव को। मोदी की लगातार जीत के क्रम को तोडऩे के लिए कांग्रेस आतुर थी लेकिन विकल्प नहीं दिखाऊ पड़ रहा था। गुजरात में मोदी के खिलाफ कांग्रेस के अलावा केशुभाऊ पटेल और तमाम अन्य दल भी खड़े थे। तभी मोदी को हराने के लिए कांग्रेस ने एक नया पासा फेंका, प्रचार किया जाने लगा कि यदि मोदी जीत गए गए तो आडवाणी और सुषमा स्वराज्य के पीएम बनने की आशाओं पर पानी फिर जाएगा, क्योंकि तब भाजपा कार्यकर्ता और संघ दोनों ही मोदी को पीएम बनाने का प्रयास करेंगे। उस समय तक मोदी केवल गुजरात तक सीमित थे और उनके भाजपा के पीएम उम्मीदवार बनने के बारे में कोई बात नहीं चल रही थी, कांग्रेस ने उस समय यह पासा इसलिए चला जिससे मोदी को भाजपा के शीर्ष नेतत्व का समर्थन न मिल सके। कांग्रेस की यह चाल कुछ हद तक कामयाब भी हो गई और लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात में कम दौरे किए, लेकिन मोदी ने गुजरात चुनाव में अपने पीएम होने की बात का ठीक ठाक प्रचार किया और मोदी को नुकसान से ज्यादा फायदा हुआ। याद करिए मोदी जीत के बाद तुरंत केशुभाई के घर इसी लिए गए जिससे वह अपनी दरियादिली और सबको साथ लेकर चलने की योग्यता का प्रदर्शन कर सके और उनकी इस बात से संघ खुश भी हुआ।
कांग्रेस ने फिर गलती की जब मोदी के नाम पर संघ और भाजपा ने विचार करना शुरू किया तो कांग्रेस ने अपने भष्ट्राचार से उपजे जनता के गुस्से निपटने के लिए मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाने में रूचि दिखाना शुरू किया, कांग्रेस को लगा कि मोदी का नाम आने से लोगों का ध्यान उसकी विफलताओं और महंगाई से हट जाएगा और ऐसा हुआ भी लेकिन कांग्रेस को तब यह अनुमान नहीं था कि मोदी को आगे बढ़ाना उसे कितना महंगा पड़ सकता हैं। याद रखिए मोदी के नाम पर जब भाजपा और संघ में चर्चा हुई तो कांग्रेस के नेताओं ने बयान पर बयान दिए। तब तक तीसरे मोर्चे के नेताओं ने मोदी को तवज्जो देना शुरू नहीं किया। नीतीश के चलते भी मोदी के नाम को उछाला कांग्रेस को लगा कि मोदी के नाम पर यदि भाजपा आगे बढ़ेगी तो नीतीश जैसे साथी उससे दूर होंगे इससे कांग्रेस को बिहार में फायदा मिलेगा और हुआ भी यही लेकिन नीतीश भाजपा से अलग तो हुए पर कांग्रेस के साथ नहीं आए, इससे भाजपा को बिहार में नुकसान की जगह फायदा मिल गया और पासवान के साथ आने से वह आज बिहार में सबसे आगे दिखाई पड़ रही हैं, इसी बीच लालू के जेल जाने से कांग्रेस को झटका लग गया और आज बिहार में कांग्रेस सबसे पीछे दिखाई पड़ रही हैं। मुलायम की सलाह नहीं मानी याद करिए मोदी के नाम उछलने के छोड़े दिनों बाद ही मुलायम सिंह ने आडवाणी की तारीफ करके भाजपा में मोदी को उभरने से रोकने की कोशिश की थी लेकिन कांग्रेस अपने भष्ट्राचार से इतना परेशान थी कि वह मुलायम के राजनैतिक अनुभव का फायदा नहीं उठा सकी और मोदी पर बयानबाजी करती रही। मुलायम ने अपनी पार्टी लाइन से बाहर जाते हुए आडवाणी की तारीफ करके मोदी को आगे आने से रोकने की कोशिश की थी, मुलायम शुरू से मोदी पर बोलने से बचते रहे, क्योंकि मुलायम जानते थे कि एक बार मोदी पर बयानबाजी शुरू हुई तो सारे मुद्दे पीछे हो जाएंगे और मोदी-मोदी होने लगेगा, लेकिन मुलायम की बात पर कांग्रेस ने ध्यान नहीं दिया और अंत में कांग्रेस की बयानबाजी से तंग आकर मुलायम को भी मोदी के खिलाफ बयानबाजी के लिए उतरना पड़ा।
नरेंद्र मोदी के प्रति मुसलमानों का रुख कौन सा मोड़ ले रहा है?
सकारात्मक हो रहा है नकारात्मक हो रहा है जैसा पहले था आज भी वैसा ही है
लेकिन कांग्रेस को तब यह अनुमान नहीं था कि मोदी को आगे बढ़ाना उसे कितना महंगा पड़ सकता हैं।?