नई दिल्ली
चंद घंटे बचे हैं इस बात की घोषणा में कि भारत में किसकी सरकार बनेगी। एग्जिट पोल्स में बीजेपी को सहयोगियों के साथ बहुमत मिलने का अनुमान जताया जा रहा है और पार्टी में बैठकों का दौर जारी है। इन बैठकों की तस्वीर को देखें, तो साफ हो जाता है कि बीजेपी में सत्ता का केंद्र बदल चुका है। यह वह तस्वीर है, जिनमें न तो वाजपेयी दिखते हैं (चूंकि सक्रिय राजनीति से दूर हैं) और न ही बीजेपी के 'पितामह' यानी आडवाणी।
बीजेपी के नए 'हम पांच' हैं, यानि नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, अरुण जेटली और अमित शाह। बुधवार को गांधीनगर में मोदी के साथ बीजेपी की टॉप लीडरशिप की बैठक हुई। इस बैठक में अमित शाह को छोड़ ऊपर गिनाए गए चारों नाम शामिल रहे। अमित शाह की अहमियत यूपी चुनाव में उनकी भूमिका और नरेंद्र मोदी से उनकी नजदीकी के आधार पर पहले ही जगजाहिर है।
सूत्रों का कहना है कि इस बैठक में सरकार बनने, संभावित सहयोगी और बीजेपी के सीनियर नेताओं (आडवाणी-जोशी) की भूमिका जैसे कई अहम मुद्दों पर बात हुई। पार्टी सूत्रों की मानें तो इस बैठक में सुषमा स्वराज पर भी बात हुई, जिन्हें फिलहाल मोदी का कुछ खास करीबी नहीं समझा जा रहा है।
वैसे तो बीजेपी में सत्ता के समीकरण 2009 लोकसभा चुनाव के बाद से ही बदलने शुरू हो गए थे। जब लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में एनडीए को हार मिली थी। लेकिन, असल बदलाव की शुरुआत नवंबर-दिसंबर 2012 में हुए गुजरात विधानसभा चुनावों के बाद हुई। मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को गुजरात में लगातार तीसरी जीत मिली और मोदी राष्ट्रीय नेतृत्व के तौर पर सामने आए।
लोकसभा चुनाव 2014 आते-आते तो सारे समीकरण पूरी तरह बदल गए। नई तस्वीर अब आपके सामने है। अनौपचारिक तौर पर ही सही, यह बीजेपी का नया कोर ग्रुप है। इस ग्रुप के एक सशक्त चेहरे राजनाथ सिंह फिलहाल पार्टी अध्यक्ष हैं, जिन्हें यह भूमिका गडकरी से लेकर सौंपी गई थी। तब गडकरी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। अब चुनाव में राजनाथ सिंह के टीम मैनेजमेंट की तारीफ की जा रही है।
गडकरी पर लगे आरोप भी अब पुरानी बात हो चुकी है और उन्हें इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से क्लीन चिट मिल चुकी है। आज गडकरी संघ और बीजेपी के बीच एक सेतु का काम तो कर ही रहे हैं, बीजेपी में नाखुश चल रहे सीनियर नेताओं (आडवाणी-जोशी-सुषमा) से बात की जिम्मेदारी भी संभाले हुए हैं। जेटली मोदी के पुराने साथियों में से एक हैं। मामला मोदी के ऊपर विरोधियों के हमले का हो, या फिर जो भी, जेटली हमेशा मोदी के लिए खड़े नजर आए हैं।
अब बात अमित शाह की। माना जाता है कि बीजेपी में मोदी को कोई सबसे खास है, तो वह अमित शाह ही हैं। गुजरात में लगे फर्जी एनकाउंटर के आरोप और फिर गुजरात में नहीं जाने के कोर्ट के आदेश के बाद भी मोदी अमित शाह के साथ को नहीं छोड़ पाए। दरअसल यह अमित शाह का तिलिस्मी मैनेजमेंट है, जिसकी बानगी गुजरात के विधानसभा चुनावों में मोदी देख चुके हैं। इस बार भी मोदी यूपी में अमित शाह के भरोसे चमत्कार की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
चंद घंटे बचे हैं इस बात की घोषणा में कि भारत में किसकी सरकार बनेगी। एग्जिट पोल्स में बीजेपी को सहयोगियों के साथ बहुमत मिलने का अनुमान जताया जा रहा है और पार्टी में बैठकों का दौर जारी है। इन बैठकों की तस्वीर को देखें, तो साफ हो जाता है कि बीजेपी में सत्ता का केंद्र बदल चुका है। यह वह तस्वीर है, जिनमें न तो वाजपेयी दिखते हैं (चूंकि सक्रिय राजनीति से दूर हैं) और न ही बीजेपी के 'पितामह' यानी आडवाणी।
बीजेपी के नए 'हम पांच' हैं, यानि नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, अरुण जेटली और अमित शाह। बुधवार को गांधीनगर में मोदी के साथ बीजेपी की टॉप लीडरशिप की बैठक हुई। इस बैठक में अमित शाह को छोड़ ऊपर गिनाए गए चारों नाम शामिल रहे। अमित शाह की अहमियत यूपी चुनाव में उनकी भूमिका और नरेंद्र मोदी से उनकी नजदीकी के आधार पर पहले ही जगजाहिर है।
सूत्रों का कहना है कि इस बैठक में सरकार बनने, संभावित सहयोगी और बीजेपी के सीनियर नेताओं (आडवाणी-जोशी) की भूमिका जैसे कई अहम मुद्दों पर बात हुई। पार्टी सूत्रों की मानें तो इस बैठक में सुषमा स्वराज पर भी बात हुई, जिन्हें फिलहाल मोदी का कुछ खास करीबी नहीं समझा जा रहा है।
वैसे तो बीजेपी में सत्ता के समीकरण 2009 लोकसभा चुनाव के बाद से ही बदलने शुरू हो गए थे। जब लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में एनडीए को हार मिली थी। लेकिन, असल बदलाव की शुरुआत नवंबर-दिसंबर 2012 में हुए गुजरात विधानसभा चुनावों के बाद हुई। मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को गुजरात में लगातार तीसरी जीत मिली और मोदी राष्ट्रीय नेतृत्व के तौर पर सामने आए।
लोकसभा चुनाव 2014 आते-आते तो सारे समीकरण पूरी तरह बदल गए। नई तस्वीर अब आपके सामने है। अनौपचारिक तौर पर ही सही, यह बीजेपी का नया कोर ग्रुप है। इस ग्रुप के एक सशक्त चेहरे राजनाथ सिंह फिलहाल पार्टी अध्यक्ष हैं, जिन्हें यह भूमिका गडकरी से लेकर सौंपी गई थी। तब गडकरी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। अब चुनाव में राजनाथ सिंह के टीम मैनेजमेंट की तारीफ की जा रही है।
गडकरी पर लगे आरोप भी अब पुरानी बात हो चुकी है और उन्हें इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से क्लीन चिट मिल चुकी है। आज गडकरी संघ और बीजेपी के बीच एक सेतु का काम तो कर ही रहे हैं, बीजेपी में नाखुश चल रहे सीनियर नेताओं (आडवाणी-जोशी-सुषमा) से बात की जिम्मेदारी भी संभाले हुए हैं। जेटली मोदी के पुराने साथियों में से एक हैं। मामला मोदी के ऊपर विरोधियों के हमले का हो, या फिर जो भी, जेटली हमेशा मोदी के लिए खड़े नजर आए हैं।
अब बात अमित शाह की। माना जाता है कि बीजेपी में मोदी को कोई सबसे खास है, तो वह अमित शाह ही हैं। गुजरात में लगे फर्जी एनकाउंटर के आरोप और फिर गुजरात में नहीं जाने के कोर्ट के आदेश के बाद भी मोदी अमित शाह के साथ को नहीं छोड़ पाए। दरअसल यह अमित शाह का तिलिस्मी मैनेजमेंट है, जिसकी बानगी गुजरात के विधानसभा चुनावों में मोदी देख चुके हैं। इस बार भी मोदी यूपी में अमित शाह के भरोसे चमत्कार की उम्मीद लगाए बैठे हैं।