Wednesday, June 30, 2010

 
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ढाई हजार फीट की ऊंचाई पर पैदा होगा सेब

ढाई हजार फीट की ऊंचाई पर पैदा होगा सेब


सोलन. प्रदेश में ढाई हजार फीट की ऊंचाई पर भी सेब की पैदावार हो सकेगी। डॉ. वाईएस परमार वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के वैज्ञानिकों ने ढाई हजार फीट की ऊंचाई पर पैदा होने वाले सेब की दो प्रजातियां विकसित की हैं।

अन्ना और स्कलोमिट प्रजातियों का ट्रायल प्रदेश के कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सफल रहा है। आम तौर पर सेब की पैदावार चार हजार फीट की ऊंचाई से ऊपर होती है, लेकिन अब यह इससे कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी पैदा हो सकेगा। नौणी में डॉ. यशवंत सिंह परमार यूनिवर्सिटी की स्थापना के बाद ओच्छघाट में रेड डिलिशियस सेब के पौधे लगाए गए थे। यहां सेब की अच्छी पैदावार हुई। नौणी यूनिवर्सिटी चार हजार फीट की ऊंचाई पर है।

सोलन शहर में भी टाइडमैन और मोलस डिलिशियस नामक प्रजातियां लगाई गई हैं। इसके अलावा बिलासपुर के धधोल और पट्टा गांव में सेब की लो चिलिंग वैरायटी अन्ना और स्कलोमिट लगाई गई थी। यहां भी पौधों से अच्छी पैदावार ली गई है। विश्वविद्यालय के निदेशक विस्तार शिक्षा डॉ. डीआर गौतम ने बताया कि विवि में बागबानों के लिए लो चिलिंग सेब की प्रजातियां तैयार की गई है। यह प्रजातियां निचले हिमाचल के लिए मुफीद साबित होगी।

मजबूत होगी आर्थिक स्थिति

उन्होंने बताया कि प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में भी इन प्रजातियों के ट्रायल किए जाएंगे। इससे बागबानों की आर्थिकी मजबूत होगी। निचले क्षेत्रों में माइक्रो क्लाईमेट का सेब पैदा होगा। उन्होंने बताया कि ग्लोबल वार्मिग के चलते सेब उत्पादन पट्टी लगातार ऊपरी क्षेत्रों की ओर खिसक रही है। ऐसे में कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सेब की पैदावार बढ़ाने के लिए यह प्रजातियां कारगर सिद्ध होंगी

टी स्टाल से पहले खुल जाते हैं शराब के ठेके

Punjab सरकार की दरियादिली और ठेकेदारों की मनमानी नशामुक्त पंजाब का मजाक उड़ा रही है। ठेके खुलने का समय सुबह सात से रात 12 बजे तक है पर शटर काटकर बनाए गए ‘चोर मोर’ 24 घंटे उपलब्ध हैं।

चंडीगढ़ में सुबह 10 से रात 11 बजे तक शराब की दुकानें खुलती हैं और हरियाणा में नौ से रात 12 बजे तक। यहां के ग्रामीण इलाकों में ठेके एक घंटा पहले ही 11 बजे बंद होते हैं। सरकार की जब चाहो, तब पिओ की अघोषित नीति की बदौलत कई लोग ब्रेकफास्ट ही दारू से करने लगे हैं।

पंजाब की एक्साइज पालिसी में ठेके खुलने का निर्धारित दूसरे राज्यों से ज्यादा तो है ही, 15 अगस्त और 26 जनवरी को भी शराब बेचने की छूट है। पड़ोसी राज्यों में 15 अगस्त और 26 जनवरी को 24 घंटे ठेके बंद रखने का प्रावधान है। पंजाब में इन दिनों सुबह सात से शाम पांच बजे तक ठेके बंद रखने और रात बारह बजे तक खोलने का प्रावधान है। समय से पहले ठेके खुलने पर जालंधर डिवीजन एक्साईज एंड टैक्सेशन कमिश्नर पीएस गिल का कहना है कि अगर ऐसा हो रहा है तो वे कार्रवाई करेंगे। राष्ट्रीय अवकाश पर ठेके खोलने की बात पर उन्होंने कहा कि पंजाब में यह पहले से ही चला आ रहा है।

शराब की कमाई

नशा मुक्त पंजाब के नाम पर वोट बटोरने वाली सरकार अब ज्यादा से ज्यादा शराब बेचने के टारगेट बना रही है। 2010-11 में सरकार ने शराब से 2501 करोड़ की कमाई का लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य वर्ष 2009-10 से 500 करोड़ ज्यादा है। 2010-11 की एक्साइज पॉलिसी में देसी शराब का कोटा भी पिछले साल के मुकाबले 15 फीसदी बढ़ाया गया है। इस साल दुकानों की संख्या में भी दो फीसदी बढ़ी है।

अध्यक्ष भी जिम्मेदारी से बरी नहीं हो सकते a tragedy 1984

हिंदुस्तान के तत्कालीन इतिहास में 1984 एक ऐसा वर्ष है, जिस पर कई दुखद घटनाओं के निशान हैं। operation blue star, प्रधानमंत्री की हत्या, सिख विरोधी दंगे और फिर भोपाल गैस त्रासदी, जिसमें तकरीबन 15,000 से 20,000 लोग मारे गए। दोनों ही मामलों में जनजीवन की भयानक क्षति हुई, लेकिन किसी प्रभावी और जिम्मेदार व्यक्ति को इसके लिए दोषी नहीं ठहराया गया और न ही दंडित किया गया। इस दौरान हममें से अधिकांश लोग न्याय की हत्या पर बस कभी-कभार कुछ शेखी बघारते या रिरियाते हुए मूकदर्शक बने रहे।

हाल ही में भोपाल गैस त्रासदी के मामले में हुए फैसले ने सहनशीलता की आखिरी हद भी लांघ दी है। इसके नतीजे में हमारी नाराजगी और विद्रोह का स्वर यह बताता है कि एक राष्ट्र, जनसमूह, सरकार और न्याय व्यवस्था के रूप में हममें कहीं-न-कहीं कुछ गलत तो है, जहां एक कॉरपोरेशन की लापरवाही के कारण असंख्य लोगों की जानें गईं, लेकिन उन्हें कोई सजा नहीं हुई, पूरे मामले को तोड़-मरोड़कर कालीन के नीचे दबा दिया गया, किसी को दोषी नहीं ठहराया गया, जुर्माने के रूप में मामूली सी रकम थमा दी गई और सबसे महत्वूपर्ण बात यह कि पीड़ितों के पुनर्वास और राहत के लिए बड़े दयनीय ढंग से मामूली सी मदद की गई।

हमारी सरकार व्यवस्था में कुछ है, जो बहुत परेशान करने वाला और दुखद है, जहां अपने ही लोगों के दुखों और तकलीफों के प्रति इतनी कम चिंता है। जो लोग कहते हैं कि इस पूरी बहस में बहुत भावुकता और आवेग है, उनसे मेरा कहना है कि इस मामले में यह भावुकता और आवेग बिलकुल उचित है। मृत्यु और इंसानी जिंदगी की क्षति ऐसे मुद्दे हैं, जिनके प्रति भावुक होना चाहिए।

अब जितनी बहसें और विचारों की जुगाली की जा रही है, मैं उम्मीद करता हूं कि एक बात को लेकर हम बिलकुल स्पष्ट हो सकें कि भोपाल त्रासदी के मामले में ठोस जिम्मेदारी तय करने और दोषियों को सजा दिलवाने के मामले में हम कोई समझौता न करें। हम जिस तरह के लोकतांत्रिक देश हैं, वह लोकतंत्र तभी काम कर सकता है, जबकि नियम-कानून एक आम नागरिक से लेकर धनी और कॉरपोरेटों तक सबके ऊपर समान रूप से लागू हों। हमारे देश में लोकतंत्र, सरकार और मीडिया पर पहले ही कॉरपोरेटों और धन का बहुत ज्यादा प्रभाव है।

राजनीति और राजनीतिक विमर्श में बड़े धन का प्रभाव लगातार बढ़ता ही जा रहा है। दुनिया के अन्य विकसित लोकतंत्रों की तरह भारत को भी सबको यह संदेश देना चाहिए, ‘हम नियम-कानून वाले राष्ट्र हैं, आप कानून तोड़िए और आपको उसके नतीजों का सामना करना पड़ेगा। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं।’ भोपाल त्रासदी के मामले में भी यही बात लागू होती है। हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि भोपाल भी ऐसा मामला नहीं है, जहां अपराध को कालीन के नीचे दबा दिया जाए। भोपाल के हजारों दुखी और टूटे हुए परिवारों को न्याय की दरकार है और हम उनके प्रति जिम्मेदार हैं, भले ही अपराधी कितना भी धनी और ताकतवर क्यों न हो।

देश की इस जागी हुई अंतरात्मा को सहलाने के कुछ-न-कुछ प्रयास तो होंगे ही। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। इसलिए जब मैंने मुंबई के फायनेंशियल आइकॉन दीपक पारेख का ऐसा ही एक वक्तव्य पढ़ा तो मुझे तनिक भी आश्चर्य नहीं हुआ, जिसमें वह कहते हैं, ‘मैं मानता हूं कि भोपाल सबसे भयानक त्रासदी थी, लेकिन हम उसे लेकर भावुक नहीं हो सकते। सिर्फ किसी चेअरमैन या सीईओ को जेल में डाल देने से समस्या का समाधान नहीं हो जाएगा।’

यह बहुत ही आश्चर्यजनक वक्तव्य है, जो बताता है कि हमारी व्यवस्था कितनी समझौतापरस्त और पक्षपाती है। श्री पारेख के अनुसार हमें यह भूल जाना चाहिए कि इस लापरवाही के लिए कोई दोषी और जिम्मेदार भी है, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह कोई चेअरमैन या सीईओ है या किसी रसूखदार का मित्र है। श्री पारेख यहां गलत हैं। चेअरमैन या सीईओ को दोषी ठहराना कोई बहुत महान बात नहीं है। अगर कोई हमारे देश का कानून तोड़ता है तो चाहे वह चेअरमैन हो या सीईओ या श्री पारेख का मित्र हो, उस व्यक्ति को दोषी ठहराया जाना चाहिए और उसे हमारी व्यवस्था के अंतर्गत इसके नतीजों का भी सामना करना चाहिए।

जब एक आम आदमी पर कानून तोड़ने के लिए मुकदमा चलाया जाता है, तब तो मैं श्री पारेख को ऐसा कहते नहीं सुनता। दरअसल वे दोहरे कानूनों की बात कर रहे हैं। श्री पारेख, माफ करिए, मुमकिन है २६ सालों से ऐसा होता आया हो, लेकिन अब ऐसा बिलकुल नहीं होगा। हम कानून के मामले में इस दोहरेपन को अब बिलकुल चलने नहीं दे सकते। इसी तरीके से हमारी व्यवस्था कानून तोड़ने वालों को एक संदेश दे सकती है। कानून का उल्लंघन करो और तुम्हें इसकी सजा मिलेगी। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किसी फायनेंशियलन आइकॉन के मित्र हैं या नहीं हैं। हम भोपाल के हजारों बेघर दुखी परिवारों के लिए उत्तरदायी हैं।

देश के लिए एक साल

जरूरी नहीं कि केवल कंपनियों, सरकार या स्थानीय प्रशासन को ही संसाधन की बर्बादी की समस्या से दो-चार होना पड़ता हो। दुखद सच्चाई यह है कि संपदा या संसाधन की बर्बादी का नाता आप और मुझ जैसे व्यक्तियों से भी हो सकता है।

इससे भी दुखद यह कि मुमकिन है आप और हम भी ऐसे लोगों की श्रेणी में आते हों, जो व्यर्थ गंवा दिए गए संसाधनों की तरह हों। जरा इस बारे में सोचें।
गर्मियां बीत चुकी हैं। लेकिन मैं उम्मीद करता हूं कि गर्मियों में अक्सर नजर आने वाला यह दृश्य आपने जरूर देखा होगा: खाली पड़े स्कूली मैदानों को अपनी कदमताल की आवाज से गुंजाते एनसीसी (नेशनल कैडेट कोर) के नौजवान कैडेट्स। यह नजारा बहुत आम है।

हर सुबह देशभर के अनेक स्कूलों से विद्यार्थी बसों में सवार होकर एनसीसी के निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने के लिए चल पड़ते हैं। आखिर क्या है वह लक्ष्य, जिसके लिए हमारे युवा मुस्तैदी से जुटे हैं? और उस लक्ष्य को वे किस तरह हासिल करना चाहते हैं? वह लक्ष्य है भारत के युवाओं को भविष्य के साहसी, अनुशासित और राष्ट्रभक्त नेताओं के रूप में तैयार करना। अपनी इस मंजिल को वे धूल उड़ाती परेडों के जरिए हासिल करना चाहते हैं। अगर प्रसंग से हटकर देखें तो यह अपने आपमें एक महान और सराहनीय आदर्श मालूम हो सकता है, लेकिन जमीनी सच्चाई की बात करें तो यह बेतुका विचार है। खाकी यूनिफॉर्म और हरी टोपी में चाकचौबंद 13 लाख से ज्यादा युवा और किशोर एनसीसी कैडेट्स क्या हमें यह सोचने पर मजबूर नहीं कर देते कि हम किस तरह अपनी राष्ट्रीय संपत्ति को नाहक जाया कर रहे हैं?

अगर 2001 की जनगणना से मिले आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलेगा कि देशभर में 14 से 18 वर्ष की आयु के माध्यमिक स्कूल विद्यार्थियों की संख्या अनुमानित रूप से 310 लाख है। अनुमान है हर साल तकरीबन 50 से 60 लाख विद्यार्थी हायर सेकंडरी के इम्तिहान पास करते हैं और ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए कॉलेजों का रुख करते हैं। संभव है उन्हें हमारे गुदड़ी के लालों की तरह तैयार नहीं किया गया हो या उन्हें ‘भविष्य के अनुशासित नेताओं’ के रूप में नहीं गढ़ा गया हो। अलबत्ता हम तो यही उम्मीद करेंगे कि ऐसा हो। लेकिन वे नौजवान हैं, चुस्त-दुरुस्त हैं और उनमें कुछ नया सीखने की गहरी ललक है। और किसे पता अगर हम खुशनसीब साबित हुए तो मुमकिन है इन नौजवानों के भीतर हमारा बेहतर कल गढ़ने का सपना भी पल रहा हो।

इनमें से ज्यादातर विद्यार्थी जल्द ही कॉलेज में दाखिला लेने की जद्दोजहद शुरू कर देंगे। शायद वे अपने कॅरियर के चयन को लेकर भ्रमित और अनिश्चित भी हों। यह सवाल हमें सोचने को मजबूर कर सकता है कि इससे पहले कि ये नौजवान अकादमिक जिंदगी की पेचीदगियों और कॉपरेरेट कॅरियर के आकर्षण में उलझ जाएं, क्या उनका इस्तेमाल बेहतर भारत के निर्माण के लिए नहीं किया जा सकता?

कोई भी यह नहीं कह रहा है कि एनसीसी पौधारोपण, कुष्ठ निवारण और एड्स जागरूकता की दिशा में काम नहीं करे। न ही किसी को इस पर एतराज है कि हर साल तकरीबन 20 हजार कैडेट्स को विभिन्न आर्मी कमांड मुख्यालयों में लगा दिया जाता है, जहां उन्हें 15 दिनों का प्रशिक्षण दिया जाता है। न ही विभिन्न सैन्य अस्पतालों में लगा दिए जाने वाले एक हजार सीनियर विंग गर्ल कैडेट्स और जल और वायु सेना में लगा दिए जाने वाले लगभग 700 युवा कैडेट्स पर किसी तरह की आपत्ति है। लेकिन इन सबके बावजूद तकरीबन 12.78 लाख एनसीसी कैडेट्स बचे रह जाते हैं, जिन्हें राष्ट्रसेवा के वास्तविक और जरूरी कार्यो में लगाया जा सकता है। देश और समाज के हित में इन विद्यार्थियों की ऊर्जा और क्षमता को प्रबंधित करने का कोई वास्तविक तरीका हाल फिलहाल तो हमारे पास नहीं है।

मुमकिन है भविष्य में हमें 10+2+1+3 जैसी किसी शिक्षा प्रणाली की जरूरत हो। कॉलेज में दाखिला लेने से पहले विद्यार्थी देश की सेवा के लिए 12 महीनों का समय निकालें। रक्तदान जैसी गतिविधियां अपनी जगह पर ठीक हैं, लेकिन युवाओं को किसानों के सहायक के रूप में भी काम करना चाहिए।

उन्हें बुनियादी ढांचे के प्रोजेक्टों पर काम करना चाहिए। उन्हें प्राथमिक स्कूल के बच्चों के प्रबंधन और उनकी शिक्षा में सहायक की भूमिका भी निभानी चाहिए, ताकि प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की पढ़ाई के दौरान स्कूल छोड़ देने वाले बच्चों की संख्या घटाई जा सके। उन्हें स्टाफ की समस्या से जूझ रही कानून व्यवस्था की मशीनरी के साथ काम करना चाहिए। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि 60 लाख विद्यार्थियों के भीतर छिपी संभावनाओं का पूरी तरह इस्तेमाल करने के मायने क्या होंगे? हमारे ये युवा देश के निर्माण में इंच-दर-इंच और मील-दर-मील अपना योगदान दे सकते हैं। और यह तो जाहिर ही है कि वयस्क होने के बाद वे उस व्यवस्था के प्रति ज्यादा जवाबदेह होंगे, जिसे बनाने में उन्होंने योगदान दिया है।

शायद यह विचार सेना में अनिवार्य भर्ती जैसा लग सकता है। फिर एक साल के लिए हमारी तमाम युवा आबादी को सरकार के नियंत्रण में रखने पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं भी होंगी। कुछ लोगों को यह एक महान विचार लगेगा तो कहीं इसका विरोध भी होगा। मुमकिन है इसकी मुखालफत में हिंसक प्रदर्शन भी हों। ऐसा भी नहीं है कि विरोध के कोई कारण नहीं होंगे। आखिर कौन यह चाहेगा कि हमारी आने वाली पीढ़ी ग्रेजुएशन से पहले ही बाबू संस्कृति के प्रभाव में आ जाए? यह भी तो मुमकिन है कि देश पर गर्व करने वाले ६क् लाख विद्यार्थियों के स्थान पर हमें ऐसे ६क् लाख विद्यार्थी हासिल हों, जो नाकारा और भ्रष्ट बाबुओं की राह पर चलने को तैयार हों।

मजे की बात तो यह है कि हमारे पास नेशनल सर्विस स्कीम (एनएसएस) जैसी योजना भी है। वर्ष 1958 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मंशा जताई थी कि ग्रेजुएशन से पहले विद्यार्थी समाज सेवा की गतिविधियों में मुब्तिला हों। नतीजा यह निकला कि वर्ष 1969 में उनके इसी विचार को थोड़ा बदला स्वरूप देते हुए एनएसएस की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य था समाज सेवा की गतिविधियों के मार्फत विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का विकास। देशभर के 200 से अधिक विश्वविद्यालयों सहित कॉलेजों, पोलिटेक्निकों और हायर सेकंडरी स्कूलों में एनएसएस के 26 लाख से ज्यादा स्वयंसेवक हैं। लेकिन यह योजना अब अपने लक्ष्य से भटक चुकी है। आज एनएसएस अस्पष्ट लक्ष्यों के लिए काम कर रही है। उसके सामने कोई ठोस लक्ष्य नहीं रह गया है। असल चुनौती तो यही है कि एनएसएस के पास पहले से ही जो सिस्टम और बुनियादी ढांचा मौजूद है, उसका इस्तेमाल नौजवानों को प्रेरित करने के लिए कैसे किया जाए। क्या यह तस्वीर बदली जा सकती है?

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Tuesday, June 29, 2010

 
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४२ साल की उम्र में २५ के दिखते हंै सुखपाल

४२ साल की उम्र में २५ के दिखते हंै सुखपाल

व्यक्ति में अगर हिम्मत हो तो वो हर काम कर सकता है। बठिंडा के सुखपाल सिंह ढिल्लों इसका जीता जागता प्रमाण है। जिस उम्र में आम तौर पर बॉडी बिल्डर गेम से सन्यास लेने के कागार पर होता है। उस उम्र में सुखपाल ने बॉडी बिल्डिंग शुरू की। ४२ वर्ष की आयु में सुखपाल का शरीर देख २२ साल के लड़के शर्मा जाते है। सचमुच वो आयु के ४०वें पड़ाव में २५ से अधिक के नही दिखते है।

सुखपाल कहते है कि उनको बचपन से ऐसा कोई शौक नही था कि वो बॉडी बिल्डिंग करे, बस शौकिया तौर पर उन्होंने नौ साल पहले अपनी बॉडी को मेनटेन करने की सोची और २००० में हुए बॉडी बिल्डिंग मुकाबले में गोल्ड मैडल झटक लिया। सुखपाल सिंह कहते है बस तब से बॉडी बिल्डिंग उनके जीवन का अहम हिस्सा बन गई, धीरे -धीरे इस दौर में वो मिस्टर बठिंडा, मालवा, पंजाब बनने के बाद अब नार्थ में हुई गेम में भी गोल्ड मैडल हासिल कर उत्तराखंड में होने जा रही नेशनल फैडरेशन कप के लिए चयनित हो गए। सुखपाल कहते है कि वो फिल्मों में जाने के शौकीन है और शहीद-ए-आजम फेम मशहूर फिल्म के डायरैक्टर बूटा सिंह शाहेद ने उनको ऑफर भी की है।

कैसे शुरू हुआ दौर: सुखपाल सिंह बताते है कि उनका जन्म १९६८ बठिंडा में हुआ। कराटे का शौक होने के कारण आर्मी के ए.शक्ति वैल से कराटे की ट्रेनिंग लेने लगे और तीन साल ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने गोवा टेस्ट में ब्लैक बैल्ट हासिल कर बठिंडा के गुरू नानक देव पब्लिक हाई स्कूल में कराटे सिखाने लगे। उनकी प्रतिभा और जोश को देखते हुए बिना इंटरव्यू के ही उनको बठिंडा कैंट स्कूल के केवी-१,४ और ५ में कराटे की ट्रेनिंग देने के लिए कोच रख लिया। तीन साल की जर्बदस्त ट्रेनिंग दे उन्होंने तकरीबन २५० से अधिक खिलाडिय़ों को नेशनल प्रतियोगिता तक पहुंचाया व कई गोल्ड मैडलिस्ट बनाए। उनके सिखाने के अंदाज से प्रभावित खिलाड़ी उनके घर पर आने लगे और जिस कारण १९९५ में उन्होंने स्टेली मार्शल आर्ट के नाम से घर पर भी ट्रेनिंग देनी शुरू क र दी। २००१ में बॉडी बिल्डिंग के शौक ने उनको पहली बार मिस्टर बठिंडा बॉडी बिल्डिंग का खिताब दिलाया। उसी दौरान उन्होंने अपना ब्रूनी नाम पर जिम चलाना शुरू किया। सीनियर बॉडी बिल्डिंग स्टेट जांलधर में भी उनका प्रभाव अन्य बॉडी बिल्डरों से देखे न बना और जीत उनको को मिली। इसके मास्टर वेट में उन्होंने २००७ में तरनतारन में भाग लिया और दूसरा स्थान हासिल किया। एज ग्रुप होने के कारण ४३वीं उत्तराखंड २००८ नार्थ बीकानेर में उनकी हिम्मत और हौसलों ने उनको गोल्ड मैडल से नवाजा गया। इसके बाद २००८ लुधियाना में हुई शेरू कलासक मास्टर गुप्र बॉडी बिल्डिंग में उनका सैकेंड प्लेस रहा। साल २००९ में ओपन मिस्टर मालवा में सुखपाल सिंह का स्थान तीसरा रहा। इसी जीत के दौर वो आगे बढते गए और ३१वीं मिस्टर पंजाब में उनको फिर से पंजाब का सबसे बेहतर बॉडी बिल्डिर बना दिया, और जनवरी में होने वाले ४८वीं नेशनल फैडरेशन कप, उत्तराखंड में उनकी सलेंक्शन हो गई है।

कड़ी मेहनत से बनती है बॉडी: सुखपाल मानते है कि यदि बॉडी की को सही आकार देना है तो जरूरी रोजाना खाने वाला डाईट पर भी ध्यान दिया जाए। सुखपाल बताते है कि उनकी डायईट उनकी प्रसनेल्टी का असली राज है। वो रोज सुबह छह बजे उठ कर हाई प्रोटीन शेक लेकर दो घंटे लगातार कसरत करते है। उसके बाद एक घंटे बाद नौ बजे ब्रेकफास्ट करते है जिसमें वो १० उबले हुए अंडों का सफेद भाग मल्टीविटामिन व हॉटमील्स का सेवन करते है व साथ में विटामीन-सी की मात्रा १००० एमजी लेते है जो साधारण व्यक्ति के लिए ५०० एमजी काफी होती है।

दोपहर दो बजे चावल के उबला हुआ चिकन, दही व सलाद लेते है। इस दौरान वो घंटे बाद एक गिलास पानी का सेवन करते रहते है। शाम को छह बजे प्रोटिन शेक लेने के बाद सात बजे से नौ बजे तक कसरत करते है। नौ बजे रात्रि के भोजन में अमीनो ऐसिड, १० उबले अंडों का सफेद भाग, दाल, दो चपाती, सलाद व दही लेते है। एक घंटे के बाद पानी पी कर सो जाते है। सुखपाल बताते है कि उनका सारा खाना यूएसए मील से मंगवाते है। जिसकारण उनके माह के खाने की कीमत लगभग १५ हजार से २० हजार रुपए तक आ जाता है।

सरकार ने लिया संहार का ठेका

बठिंडा/फरीदकोट. मालवा की महिलाओं के सीने में कैंसर के दर्द की टीस राज्य की सेहत मंत्री तक नहीं पहुंच पा रही। आकाश में मंडराते आला नेताओं और नौकरशाहों के हेलीकॉप्टर कभी जमीन की परवाह नहीं कर पाए। मानो आरओ वाटर पीने वाली सरकार ने जनता के संहार का ठेका ले लिया है।



मौत का कारण बन रहे भूजल को पीने के काबिल बनाने के लिए किसी ने हाथ भी बढ़ाया तो उसे ऐसा झटका मारा कि सहयोग करने के लिए दोबार सोच भी न सके । इलाके की पानी टंकियों से छलांग लगाते युवक - युवतियों में आत्मघाती प्रवृतियों का विकास सरकार के सामने बेबसी और हताशा का प्रदर्शन बन गया है। किसानों को ९क् के दशक की यादें डराने लगी हैं जब अमरीकन सुंडियों के हमले के आगे हार मानते हुए 1800 से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली थी।



रिसर्च रिपोर्ट ही दबा दी



मालवा के बठिंडा, फरीदकोट, मुक्तसर, मानसा और फाजिल्का में पानी के प्रदूषित होने के वैज्ञानिक प्रमाण आने के साथ ही सरकारी और नौकरशाही अडंगा शुरू हो गया। वर्ष 2005 में गुरु नानक देव विश्वविद्यालय (जीएनडीयू), अमृतसर की रिपोर्ट की पहले तो अनदेखी की गई।



प्रोफेसर डा. सुरेंद्र सिंह के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने खुलासा किया कि मालवा के लोग पानी में प्रति दिन 138.41 माइक्रोग्राम, दूध में 2.38 माइक्रोग्राम और खाद्यपदार्थो में 47 माइक्रोग्राम हैवी मेटल्स का सेवन कर रहे हैं। स्थानीय संस्थाओं ने दबाव बढ़ाया तो २क्क्८ में भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर, ट्रांबे के विशेषज्ञों से जांच की बात कर ‘अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं’ मुहैया कराने के नेताओं के दावे शुरू हो गए। वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. एसके मलहोत्रा के नेतृत्व में पांच मेंबरी टीम ने सैंपल लिए। जो रिपोर्ट 10 दिन में मिलनी थी, उसका अभी तक खुलासा नहीं हो सका।



इसके बाद ग्रीन पीस इंडिया नाम की संस्था ने खेती विरासत मिशन के साथ मिलकर 2009 में एकबार फिर इलाके के भूजल में यूरेनियम, फ्लोराइड और नाइट्रेट आदि की हानिकारक उपस्थिति का खुलासा किया। जांच में पता चला कि क्षेत्र के भूजल में 2.2 माइक्रोग्राम से लेकर 244 माइक्रोग्राम तक हैवी मैटल्स हैं। डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रति लीटर 14 माइक्रोग्राम से अधिक हैवी मैटल्स की मौजदूगी को खतरनाक मानता है।



जिम्मेदारी से पलायन



यूरेनियम और अन्य हैवी मेटल्स की रिपोर्ट आने के बाद राज्य सरकार ने केंद्र सरकार की जिम्मेदारी बताते हुए पलायन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। 13 जून को सार्वजनिक हुई जर्मनी की माइक्रो ट्रेस मिनरल लैबोरेट्री की रिपोर्ट को सेहत मंत्री प्रो. लक्ष्मीकांता चावला ने सिरे से खारिज कर दिया है। वह कहती हैं, राज्य सरकार के पास संसाधन सीमित हैं। केंद्र सरकार को पूरे मामले की रिपोर्ट भेज दी गई है।



इतने बड़े मामले में केंद्र को खुद पहल करनी चाहिए। दूसरी तरफ सारे तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए नौकरशाहों की कमेटी ने हैवी मैटल्स की उपस्थिति को सामान्य करार दिया है। जर्मन लैबोरेट्री की रिपोर्ट आने के बाद सेहत विभाग ने एकबार फिर टीम का गठन कर दिया है। सिविल सर्जन डा. हरजीत भारती के अनुसार उन्हें रिपोर्ट बनाकर राज्य सरकार को भेजने को कहा गया है। आगे की कार्रवाई सरकार के स्तर से होनी है।



सरकार या संहारक



खेती विरासत मिशन के उमेंद्र शर्मा सरकार की नीति को संहारक करार देते हैं। वर्ष 2005 में इलाके के कैंसर और मनोरोग के बढ़ते कारणों का खुलासा होने के बाद पिछले पांच साल से सिर्फ रिपोर्टे ही तैयार हो रही हैं। कपास उत्पादक क्षेत्र के किसान पहले अमेरिक सुंडी के हमले में तबाह हुए। १८क्क् से अधिक ने कर्ज में डूबने के कारण आत्महत्या कर ली। अब इलाके के लोग सरकारी अनदेखी की वजह से मारे जा रहे हैं।



बीमारियों के इलाज पर इतना अधिक खर्च है कि हर घर कर्ज में डूब गया है। पिछले आठ साल में इलाके के ५क्क्क् हजार से अधिक लोग कैंसर से मर चुके हैं। बाबा फरीद सेंटर फार स्पेशल चिल्ड्रन फरीदकोट के प्रितपाल सिंह सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हैं कि इलाके में 40 हजार से अधिक विकलांग हैं। इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो रही। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार इसलिए भी चुप्पी साधे है कि उसे जवाबदेही नहीं स्वीकारनी पड़ जाए।



बाबा फरीद सेंटर ने सौंपा अपना रिकार्ड



फरीदकोट . बाबा फरीद सेंटर फॉर स्पेशल चिल्ड्रन फरीदकोट ने सोमवार को स्वास्थ्य विभाग की जांच टीम को रिकार्ड सौंप दिया। सेंटर इंचार्ज प्रीतपाल सिंह ने बताया कि इस रिकार्ड में सेंटर की रजिस्ट्रेशन का सर्टिफिकेट, टीम सदस्यों की योग्यता संबंधी सर्टिफिकेट, सेंटर के शुरू होने से लेकर अब तक कार्य प्रणाली का ब्योरा, ट्रीटमेंट ले रहे मंदबुद्धि बच्चों के नाम-पते, ठीक हो चुके बच्चों का ब्योरा, सेंटर के किए गए ऑडिट की कापी, यूरेनियम संबंधी अब तक करवाई गई जांचों की रिपोर्ट, यूरेनियम से बच्चे के मंदबुद्धि होने संबंधी सबूत शामिल हैं।

कश्मीर में हालात बेकाबू, मुख्यमंत्री ने सेना की मदद मांगी

कश्मीर में हालात बेकाबू, मुख्यमंत्री ने सेना की मदद








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नई दिल्‍ली: जम्‍मू कश्‍मीर के हालात एकाएक काबू के बाहर हो गए हैं। मुख्‍यमंत्री उमर अब्‍दुल्‍ला ने आज राज्‍य में कानून-व्‍यवस्‍था की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए हालात पर काबू पाने के लिए केंद्र से सेना की मदद मांगी है। हालांकि अभी इसपर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है लेकिन राज्‍य की स्थिति को देखते हुए सेना को अलर्ट रहने को कह दिया गया है। यदि आने वाले समय में स्थिति नियंत्रण के बाहर हुई तो जम्‍मू-कश्‍मीर के उपद्रवगस्‍त क्षेत्रों को सेना के हवाले किया जा सकता है।





इसके साथ ही मुख्‍यमंत्री ने इस मामले में एक उच्‍च स्‍तरीय टीम का भी गठन किया है। यह टीम घाटी के हिंसा प्रभावित राज्‍यों में जाएगी और वहां के हालात का जायजा लेगी। यह टीम हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में शांति बहाली के लिए स्‍थानीय प्रशासन की मदद करेगी। इस टीम में लोक स्‍वास्‍थ्‍य यांत्रिकी मंत्री ताज मोहिरुद्दीन, कृषि मंत्री गुलाम हसन मीर, मुख्‍यमंत्री के सलाहकार मुबारक गुल तथा सड़क एवं भवन निर्माण राज्‍य मंत्री जाविद अहमद डार शामिल हैं।

अनंतनाग में आज हुई हिंसा की ताजा घटनाओं 2 लोग मारे गए और 3 गंभीर रूप से घायल हो गए। बीते दो हफ्ते के दौरान घाटी मेंहिंसा की घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों की संख्‍या 10 तक पहुंच गई है। राज्‍य की उमर अब्‍दुल्‍ला सरकार पूरी तरह दबाव में आ गई है और उसने इस सारी स्थिति के लिए केंद्र पर आरोप मढ़ा है।

उधर पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि राज्‍य सरकार पूरी तरह विफल हो चुकी है। उन्‍होंने कहा है‍ कि राज्‍य सरकार स्थिति पर काबू पाने में पूरी तरह विफल रही है और हालात उसके काबू से बाहर हो चुके हैं। घाटी में सेना की तैनाती का विरोध करते हुए महबूबा ने कहा है कि सेना सभी समस्‍याओं का हल नहीं है।


कश्‍मीर में सोमवार को दो तथा रविवार को तीन लोग सुरक्षा बलों की फायरिंग में मारे जा चुके हैं। मंगलवार को भी घाटी के कई स्‍थानों पर प्रदर्शनकारियों एवं सुरक्षा बलों के बीच झड़प हुई है जिसमें कई लोग घायल हुए हैं। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस की कई गाडि़यों को आग के हवाले कर दिया।

संघ प्रमुख मोहन भागवत की हत्या के षडयंत्र

मुंबई. संघ प्रमुख मोहन भागवत की हत्या के कथित षडयंत्र के मद्देनजर उनकी सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं। महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने यह जानकारी सोमवार को बांबे हाईकोर्ट में दी।

2008 में मालेगांव में हुए बम विस्फोट के आरोपी समीर कुलकर्णी ने अपने एक पत्र में कहा था कि मालेगांव मामले की चार्जशीट पढ़ते वक्त उसे दो गवाहों के इस बयान की जानकारी मिली थी कि संघ प्रमुख मोहन भागवत को मारने की साजिश रची गई थी। हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते इस पत्र को आपराधिक रिट याचिका में तब्दील करते हुए महाराष्ट्र सरकार और एटीएस से पूछा था कि पत्र में जताई गई आशंका के मद्देनजर वे क्या कदम उठाने जा रहे हैं।

एटीएस की ओर से पेश हरुई वरिष्ठ वकील रोहिणी सालियान ने जस्टिस बीएच मारलापल्ले के नेतृत्व वाली बेंच को बताया कि संघ प्रमुख की सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं। इसके लिए एफआईआर दर्ज करने और भागवत की हत्या के षडयंत्र की विस्तृत जांच कराने की कुलकर्णी की मांग पर भी सरकार विचार करेगी।

कुलकर्णी के मुताबिक, मालेगांव मामले के गवाह कैप्टन नितिन जोशी और श्याम आप्टे ने अपने बयान में कहा था कि जब भागवत पुणो में एक कार्यक्रम में गए थे तब उनकी हत्या की साजिश रची गई थी।

Wednesday, June 9, 2010

राज्यसभा चुनाव : छह राज्यों में होगा मतदान

नईदिल्ली. बारह राज्यों की 49 सीटों के लिए हो रहे राज्यसभा चुनावों में राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार, कर्नाटक और उड़ीसा में मतदान होने के आसार हैं। वहीं, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, पंजाब में सभी प्रत्याशियों का जाना तय हो गया है। हालांकि इनके निर्वाचन की घोषणा 10 जून को नाम वापसी का निर्धारित समय समाप्त होने के बाद होगी। आंध्रप्रदेश से कांग्रेस के जयराम रमेश समेत सभी 6 प्रत्याशी पहले ही तय हो चुके हैं।


5 राज्य जहां नाम तय


उत्तर प्रदेश (11): कांग्रेस नेता सतीश शर्मा, भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी, बसपा नेता सतीश मिश्रा, एसपी सिंह बघेल, अंबेद राजन, जुगुल किशोर, नरेंद्र कश्यप, मोहम्मद सलीम अंसारी, राजपाल सैनी, सपा के मोहन सिंह व पूर्व केंद्रीय मंत्री राशिद मसूद, का राज्यसभा पहुंचना तय हो गया है।तमिलनाडु (6): द्रमुक के टीएम सेलवगनपथी, केपी रामलिंगम, एस थंगावेलू, अन्नाद्रमुक के पीएच मनोज पांडियन, केवी रामलिंगम और कांग्रेस के ईएम सुदर्शन नचियप्पन की जीत भी तय है।उत्तराखंड (1): नामांकन पत्र की जांच के बाद राज्य से एकमात्र प्रत्याशी भाजपा के तरुण विजय का चुना जाना तय हो गया है।छत्तीसगढ़ (2): कांग्रेस से मोहसिना किदवई और भाजपा के नंद कुमार साय ने पर्चा भरा है।पंजाब (2): कांग्रेस से अंबिका सोनी और अकाली दल से बलविंदर सिंह भूंदड़ ने नामांकन भरा है।


6 राज्य जहां चुनाव संभावित


राजस्थान (4+1): यहां 5 सीटों पर 6 उम्मीदवार मैदान में हैं। कांग्रेस के आनंद शर्मा, पूर्व मंत्री अश्क अली टाक, सांसद नरेंद्र बुडानिया, भाजपा के राम जेठमलानी, वीपी सिंह और कांग्रेस समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी संतोष बागड़ोदिया मैदान में हैं। इनमें से बुडानिया ने उपचुनाव के लिए नामांकन भरा है।


कर्नाटक (4): यहां 4 सीटों पर 5 उम्मीदवार मैदान में हैं। कांग्रेस के आस्कर फर्र्नाडीस, टीवी मारुति, निर्दलीय विजय माल्या, भाजपा के वेंकैया नायडू व अयनूर मंजूनाथ ने पर्चा भरा है।


उड़ीसा (3): यहां 3 सीटों के 4 दावेदार हैं। बीजद के शशि भूषण बेहरा, वैष्णब परीदा, प्यारी मोहन महापात्रा और कांग्रेस समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी तारा पटनायक मैदान में हैं। भाजपा ने वोटिंग से दूर रहने की घोषणा की है।


झारखंड (2): यहां से 2 सीटों पर 3 दावेदार हैं। भाजपा के अजय मारू, धीरज साहू और झामुमो से केडी सिंह ने नामांकन भरा है।


बिहार(5): यहां 6 उम्मीदवार 5 सीटों के लिए जोर आजमाइश करेंगे। लोजश प्रमुख रामविलास पासवान, भाजपा के राजीव प्रताप रूडी, जदयू के आरसीपी सिंह, उपेंद्र कुशवाह, राजद के राम कृपाल सिंह और निर्दलीय बीजी उदय मैदान में हैं।


महाराष्ट्र(6): यहां से 6 सीटों पर 7 उम्मीदवार हैं। कांग्रेस के विजय दर्डा, अविनाश पांडे, एनसीपी के तारिक अनवर, ईश्वर जैन, भाजपा के पीयूष गोयल, शिव सेना के संजय राउत और निर्दलीय कन्हैयालाल गिडवानी मैदान में हैं। गिडवानी को कांग्रेस का समर्थन है।

Tuesday, June 8, 2010

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