बठिंडा/फरीदकोट. मालवा की महिलाओं के सीने में कैंसर के दर्द की टीस राज्य की सेहत मंत्री तक नहीं पहुंच पा रही। आकाश में मंडराते आला नेताओं और नौकरशाहों के हेलीकॉप्टर कभी जमीन की परवाह नहीं कर पाए। मानो आरओ वाटर पीने वाली सरकार ने जनता के संहार का ठेका ले लिया है।
मौत का कारण बन रहे भूजल को पीने के काबिल बनाने के लिए किसी ने हाथ भी बढ़ाया तो उसे ऐसा झटका मारा कि सहयोग करने के लिए दोबार सोच भी न सके । इलाके की पानी टंकियों से छलांग लगाते युवक - युवतियों में आत्मघाती प्रवृतियों का विकास सरकार के सामने बेबसी और हताशा का प्रदर्शन बन गया है। किसानों को ९क् के दशक की यादें डराने लगी हैं जब अमरीकन सुंडियों के हमले के आगे हार मानते हुए 1800 से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली थी।
रिसर्च रिपोर्ट ही दबा दी
मालवा के बठिंडा, फरीदकोट, मुक्तसर, मानसा और फाजिल्का में पानी के प्रदूषित होने के वैज्ञानिक प्रमाण आने के साथ ही सरकारी और नौकरशाही अडंगा शुरू हो गया। वर्ष 2005 में गुरु नानक देव विश्वविद्यालय (जीएनडीयू), अमृतसर की रिपोर्ट की पहले तो अनदेखी की गई।
प्रोफेसर डा. सुरेंद्र सिंह के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने खुलासा किया कि मालवा के लोग पानी में प्रति दिन 138.41 माइक्रोग्राम, दूध में 2.38 माइक्रोग्राम और खाद्यपदार्थो में 47 माइक्रोग्राम हैवी मेटल्स का सेवन कर रहे हैं। स्थानीय संस्थाओं ने दबाव बढ़ाया तो २क्क्८ में भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर, ट्रांबे के विशेषज्ञों से जांच की बात कर ‘अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं’ मुहैया कराने के नेताओं के दावे शुरू हो गए। वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. एसके मलहोत्रा के नेतृत्व में पांच मेंबरी टीम ने सैंपल लिए। जो रिपोर्ट 10 दिन में मिलनी थी, उसका अभी तक खुलासा नहीं हो सका।
इसके बाद ग्रीन पीस इंडिया नाम की संस्था ने खेती विरासत मिशन के साथ मिलकर 2009 में एकबार फिर इलाके के भूजल में यूरेनियम, फ्लोराइड और नाइट्रेट आदि की हानिकारक उपस्थिति का खुलासा किया। जांच में पता चला कि क्षेत्र के भूजल में 2.2 माइक्रोग्राम से लेकर 244 माइक्रोग्राम तक हैवी मैटल्स हैं। डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रति लीटर 14 माइक्रोग्राम से अधिक हैवी मैटल्स की मौजदूगी को खतरनाक मानता है।
जिम्मेदारी से पलायन
यूरेनियम और अन्य हैवी मेटल्स की रिपोर्ट आने के बाद राज्य सरकार ने केंद्र सरकार की जिम्मेदारी बताते हुए पलायन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। 13 जून को सार्वजनिक हुई जर्मनी की माइक्रो ट्रेस मिनरल लैबोरेट्री की रिपोर्ट को सेहत मंत्री प्रो. लक्ष्मीकांता चावला ने सिरे से खारिज कर दिया है। वह कहती हैं, राज्य सरकार के पास संसाधन सीमित हैं। केंद्र सरकार को पूरे मामले की रिपोर्ट भेज दी गई है।
इतने बड़े मामले में केंद्र को खुद पहल करनी चाहिए। दूसरी तरफ सारे तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए नौकरशाहों की कमेटी ने हैवी मैटल्स की उपस्थिति को सामान्य करार दिया है। जर्मन लैबोरेट्री की रिपोर्ट आने के बाद सेहत विभाग ने एकबार फिर टीम का गठन कर दिया है। सिविल सर्जन डा. हरजीत भारती के अनुसार उन्हें रिपोर्ट बनाकर राज्य सरकार को भेजने को कहा गया है। आगे की कार्रवाई सरकार के स्तर से होनी है।
सरकार या संहारक
खेती विरासत मिशन के उमेंद्र शर्मा सरकार की नीति को संहारक करार देते हैं। वर्ष 2005 में इलाके के कैंसर और मनोरोग के बढ़ते कारणों का खुलासा होने के बाद पिछले पांच साल से सिर्फ रिपोर्टे ही तैयार हो रही हैं। कपास उत्पादक क्षेत्र के किसान पहले अमेरिक सुंडी के हमले में तबाह हुए। १८क्क् से अधिक ने कर्ज में डूबने के कारण आत्महत्या कर ली। अब इलाके के लोग सरकारी अनदेखी की वजह से मारे जा रहे हैं।
बीमारियों के इलाज पर इतना अधिक खर्च है कि हर घर कर्ज में डूब गया है। पिछले आठ साल में इलाके के ५क्क्क् हजार से अधिक लोग कैंसर से मर चुके हैं। बाबा फरीद सेंटर फार स्पेशल चिल्ड्रन फरीदकोट के प्रितपाल सिंह सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हैं कि इलाके में 40 हजार से अधिक विकलांग हैं। इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो रही। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार इसलिए भी चुप्पी साधे है कि उसे जवाबदेही नहीं स्वीकारनी पड़ जाए।
बाबा फरीद सेंटर ने सौंपा अपना रिकार्ड
फरीदकोट . बाबा फरीद सेंटर फॉर स्पेशल चिल्ड्रन फरीदकोट ने सोमवार को स्वास्थ्य विभाग की जांच टीम को रिकार्ड सौंप दिया। सेंटर इंचार्ज प्रीतपाल सिंह ने बताया कि इस रिकार्ड में सेंटर की रजिस्ट्रेशन का सर्टिफिकेट, टीम सदस्यों की योग्यता संबंधी सर्टिफिकेट, सेंटर के शुरू होने से लेकर अब तक कार्य प्रणाली का ब्योरा, ट्रीटमेंट ले रहे मंदबुद्धि बच्चों के नाम-पते, ठीक हो चुके बच्चों का ब्योरा, सेंटर के किए गए ऑडिट की कापी, यूरेनियम संबंधी अब तक करवाई गई जांचों की रिपोर्ट, यूरेनियम से बच्चे के मंदबुद्धि होने संबंधी सबूत शामिल हैं।
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