Monday, January 31, 2011

पंजाब में तीन सौ करोड़ का गड़बड़झाला

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चंडीगढ़. सिंगल गैस कनेक्शन के नाम पर मिलने वाला केरोसिन खुले बाजार में बेचकर डिपो होल्डर हर माह करोड़ों रुपए का घपला कर रहे हैं।

वैसे विभागीय अधिकारियों की मानें तो सिंगल गैस कनेक्शन के नाम पर तीन सौ करोड़ रुपए का हर साल घोटाला होता है। राज्य में जिन लोगों के पास गैस के दो सिलेंडर हैं उन्हें मिट्टी का तेल नहीं मिलता है, जबकि जिनके पास एक सिलेंडर है उन्हें तीन लीटर और जिनके पास नहीं हैं उन्हें पांच लीटर मिट्टी का तेल मिलता है।

चूंकि वर्षो पहले बने राशन कार्ड की किसी ने जांच नहीं की, इसलिए जिन्होंने गैस कनेक्शन ले लिए हैं, उनमें से ज्यादातर के राशन कार्ड में तो यह दर्ज कर के उनका केरोसिन कोटा बंद कर दिया गया है, लेकिन इसकी पूरी जानकारी विभाग को नहीं दी गई है। माना जाता है कि इसमें विभागीय अधिकारियों की भी मिलीभगत है, क्योंकि जिन राशन कार्ड धारकों को गैस कनेक्शन मिल गए हैं, उनके हिस्से का बचता केरोसीन खुले बाजार में 25 रुपए तक बिक रहा है, जबकि राशन कार्ड पर लेने पर इसकी कीमत 12 रुपए प्रति लीटर है।

पूरी कर ली है जांच : कैरों

मंत्री आदेश प्रताप सिंह कैरों का दावा है कि सभी राशन कार्ड धारकों की जांच पूरी कर ली है। अब केरोसिन केवल बीपीएल, नीला और लाल कार्ड धारकों को देने का प्रोग्राम शुरू किया है। राशन कार्ड और गैस कनेक्शन जैसी सुविधाओं को लेने के लिए यूआईडी लेना अनिवार्य किया जा रहा है।

किसी के पास जवाब नहीं

पंजाब में 25 लाख परिवारों को केरोसिन मिल रहा है, लेकिन राज्य में मात्र 4.50 लाख परिवार ही गरीबी रेखा के नीचे हैं। नीले कार्ड और दंगा पीड़ितों के कार्डो की संख्या 15.56 लाख से अधिक नहीं है। शेष परिवारों का केरोसिन कहां जा रहा है? इसका जवाब कोई भी विभागीय अधिकारी देने को तैयार नहीं है

तमतमाए प्रिंसिपल ने छात्रों को कहा आतंकी और की धुनाई by akhlesh bansal

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बरनाला. स्कूल की दीवार पर कोल्ड ड्रिंक गिरने से बरनाला के सेक्रेड हार्ट स्कूल की प्रिंसिपल का पारा इतना चढ़ गया कि दसवीं के पांच छात्रों को उसने सरेआम बेइज्जत कर डाला।


प्रिंसिपल ने इन छात्रों को न केवल आतंकवादी कहा, बल्कि पिटाई के बाद स्कूल से भी बाहर कर दिया। इतना ही नहीं, उसने फोन करके परिजनों को भी बच्चों की शिकायत कर दी। शनिवार को हुए इस घटनाक्रम से बुरी तरह डरे दो छात्र रातभर घर ही नहीं लौटे। बदहवास परिजन रातभर उन्हें ढूंढ़ते रहे।


कड़कड़ाती ठंड में पूरी रात दाना मंडी में बैठे रहने के बाद दोनों छात्र रविवार सुबह अपने हॉकी कोच के पास पहुंचे और आपबीती सुनाई। दोनों की उम्र 16 से 17 साल है। छात्र गुरबल सिंह और अमनदीप ने बताया कि शनिवार को उनसे स्कूल की दीवार पर कोल्ड ड्रिंक गिर गई थी। इस पर प्रिंसिपल रशिम ने उन्हें आतंकवादी कहकर पिटाई कर डाली। उनके साथ पांच छात्रों को स्कूल से बाहर कर दिया। साथ ही परिजनों को फोन करके बच्चों को ले जाने को कहा। तीन छात्रों को तो अभिभवाक ले गए। उनसे स्कूल ने पांच लीटर पेंट भी लिया। लेकिन गुरबल और अमनदीप घर नहीं गए।


एक छात्र के पिता गुरविंदर सिंह ने कहा, उन्हें शनिवार 12 बजे के आसपास स्कूल से फोन आया कि अपने बच्चे को ले जाएं। इस पर उन्होंने कहा कि वे शहर से बाहर हैं और उनकी पत्नी छुट्टी के बाद अपने बेटे को ले जाएगी। जब उनकी पत्नी स्कूल पहुंची तो लड़का वहां नहीं मिला। माता-पिता सारी रात बच्चों को तलाशते रहे। आरोप है कि स्कूल प्रशासन ने बच्चों की तलाशने में भी अभिभावकों की कोई मदद नहीं की।


आरोप बेबुनियाद


मैंने न तो किसी छात्र की पिटाई की है और न ही किसी छात्र को आतंकवादी कहकर अपमानित किया है। ये सभी आरोप बेबुनियाद हैं।


रशिम, प्रिंसिपल, सेक्रेड हार्ट स्कूल, बरनाला

Saturday, January 29, 2011

देश को दस हिस्सों में बांटने की हुई थी मांग !

द्वि-राष्ट्र सिद्धांत पर राजनीतिक सरगर्मी बढ़ी हुई है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के मुताबिक द्वि-राष्ट्र सिद्धांत के तहत देश के बंटवारे के लिए सावरकर जिम्मेदार थे। एक नजर डालते हैं उन तथ्यों के तहत क्या है पूरा मामला।


कब और किसने की अलग राष्ट्र की मांग ?


1930 में शायर मुहम्मद इक़बाल ने भारत के उत्तर-पश्चिमी चार प्रान्तों -सिन्ध, बलूचिस्तान, पंजाब और अफ़गान (सूबा-ए-सरहद)- को मिलाकर एक अलग राष्ट्र का मांग की थी । 1930 में मुस्लिम लीग के अध्यक्ष सर मोहम्मद इक़बाल ने मुसलमानों के लिए अल्पसंख्यक राजनितिक हितों की रक्षा के उद्देश्य से पृथक निर्वाचिका की जरूरत पर जोर दिया। ऐसा कहा जाता है कि बाद में पाकिस्तान की मांग के लिए जो आवाज़ उठी उसका औचित्य उनके इसी बयान से उठा था।


कैंब्रिज में चौधरी रहमत अली नामक एक छात्र ने 1933 में पर्चे छापकर उस अलग देश का नाम पाकिस्तान रखा। रहमत अली ने बाद में 'दि मिल्लत एंड हर टेन नेशंस' नाम से पर्चे छापे। जिसमें देश को दस हिस्सों में बांटने की पैरवी कर दी थी।


मार्च 1940 में मो. अली जिन्ना ने लाहौर अधिवेशन में अलग राष्ट्र की मांग की थी। जिसे कांग्रेस ने ठुकरा दिया था।जिन्ना ने लाहौर प्रस्ताव पर बोलते हुए अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा था कि हमारे हिंदू मित्र इस्लाम तथा हिंदू धर्म की असलियत को नहीं समझ पा रहे हैं। यह मज़हब नहीं है, वास्तव में अलग सामाजिक व्यवस्था है, हिंदुओं और मुसलमानों की अलग धार्मिक विचारधारा, सामाजिक रीति-रिवाज और साहित्य है। न ही इनके आपस में रिश्ते होते हैं न वे इकट्ठे खाते-पीते हैं। वास्तव में उनका संबंध अलग सभ्यताओं से है। ऐसे दो राष्ट्रों को एक साथ नत्थी करने से असंतोष और बढ़ेगा। राष्ट्र की किसी भी परिभाषा से मुसलमान एक राष्ट्र हैं और उन्हें अपना होमलैंड मिलना चाहिये।


कौन हैं वीर सावरकर ?


विनायक दामोदर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। उन्हें प्रायः वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा (हिन्दुत्व) को विकसित करने का बहुत बडा श्रेय सावरकर को जाता है। सावरकर ने हिन्दू राष्ट्र की विजय के इतिहास को प्रमाणिक ढंग से लिपिबद्ध किया है। उन्होंने 1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिख कर ब्रिटिश शासन को हिला डाला था। इसके पहले सभी इतिहासकार इसे सिपाही विद्रोह मानते थे। सावरकर 1904 में अभिनव भारत नामक एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की थी। जिसे मई, 1952 में पुणे में एक विशाल सभा में अभिनव भारत संगठन को उसके उद्देश्य, भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति होने पर भंग किया गया।


सेलुलर जेल, पोर्ट ब्लेयर- जो काला पानी के नाम से कुख्यात थी। नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अंतर्गत इन्हें 7 अप्रैल, 1911 को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया। सावरकर 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे। 5 फरवरी, 1948 को गांधीजी की हत्या के उपरांत इन्हें प्रिवेन्टिव डिटेन्शन एक्ट धारा के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया था।

धर्मशाला के पास 1500 करोड़ की बेनामी संपत्तियां

धर्मशाला। धर्मशाला के पास सिद्धबाड़ी स्थित करमा कग्यू बौद्ध पंथ के 17वें करमापा उग्येन त्रिनले दोरजे के अस्थायी निवास स्थान ग्यूतो तांत्रिक विश्वविद्यालय के कार्यालय में करोड़ों रुपए की देशी और विदेशी मुद्रा बरामद होने से कांगड़ा जिला में बौद्ध मठों के नाम पर बनाई जा रही बेनामी संपत्तियों के मामले का खुलासा हुआ है। पिछले कुछ समय से क्षेत्र में बेनामी संपत्तियों के बढ़ते मामलों के चलते इस संबंध में केंद्रीय खुफिया एजेंसियों ने विदेशी धन के इस्तेमाल की आशंका जताई थी। सीआईडी ने धर्मशाला सहित आसपास के क्षेत्रों में 1500 करोड़ रुपए की बेनामी संपत्तियों को चिह्न्ति कर सरकार को अपनी रिपोर्ट भेजी थी।

इसी आधार पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मैक्लोडगंज सहित जिला कांगड़ा के विभिन्न स्थानों पर बौद्ध मठों के नाम पर खरीदी जा रही बेनामी भू-संपत्तियों के मामलों पर अपनी जांच शुरू की थी। ईडी ने जिला कांगड़ा मुख्यालय धर्मशाला, मैक्लोडगंज, बीड़, गोपालपुर, कोटला सहित अन्य क्षेत्रों में निर्वासित तिब्बतियों की ओर से 5 बौद्ध मठों और संस्थानों के नामों पर खरीदी गई बेनामी संपत्तियों के मामले में जिला राजस्व विभाग से की गई कार्रवाई, भू-राजस्व रिकॉर्ड और मालिकों के नाम और अन्य जानकारियां मांगी थी।

चीन से अमेरिका तक तानाबाना
ईडी के अनुसार इन बेनामी संपत्तियों की खरीद में चीन से आए धन का इस्तेमाल किया गया है। एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत चीन यह राशि पहले बैंकॉक और बैंकॉक से इस धन को अमेरिका हस्तांतरित किया गया है। अमेरिका के माध्यम से इस राशि को भारत में लाया गया है। मैक्लोडगंज स्थित निगमापा सेंटर और डिप छोलिंग सेलुक्पा बौद्ध मठ, 17वें करमापा का अस्थायी निवास स्थान ग्यूतो तांत्रिक विश्वविद्यालय सिद्धबाड़ी, मैक्लोडगंज स्थित जमयांग छोलिंग ननरी और घरोह स्थित शुगसप ननरी के भू मालिकों और इस पर खर्च किए गए धन और त्रिलोकपुर के पास टीएसआर बौद्ध मठ की भूमि के मामले में की गई जांच की रिपोर्ट भी ईडी ने मांगी थी। वीरवार को की गई छापेमारी इसी कड़ी का एक अहम हिस्सा माना जा रहा है।

ढाई हजार कनाल के बेनामी सौदे
धर्मशाला क्षेत्र में लगभग ढाई हजार कनाल के लगभग भूमि बेनामी सौदों के माध्यम से विदेशी या फिर बाहरी उद्योगपतियों की ओर से खरीदी गई है। इन बेनामी संपत्तियों में जहां मात्र एग्रीमेंट्स के माध्यम से ही सैकड़ों कनाल भूमि का लेन-देन होता है, वहीं सरकार को स्टांप ड्यूटी का लाखों रुपए का नुकसान होने के साथ-साथ इस डील में इस्तेमाल किए गए करोड़ों रुपए के धन के न तो स्रोतों की जानकारी मिल पाती है और न ही इन पर किसी तरह का टैक्स देय होता है। राजस्व विभाग के आंकड़ों के अनुसार कुलप्रकाश के नाम पर धर्मशाला के आसपास खाता नंबर 368 में 660.65 वर्ग मीटर जबकि सिद्धपुर में 0.10.18 हैक्टेयर भूमि है। सिद्धपुर में किए जा रहे बौद्ध मठ के लिए भूमि सौदे में सिद्धपुर की भूमि के संबंध में ही एग्रीमेंट होने की संभावना बताई जा रही है।

ऊना में पकड़े युवक रिमांड पर
एक करोड़ की नगदी के साथ गिरफ्तार किए गए संयोग दत्त और आशुतोष को सीजेएम कोर्ट ने एक फरवरी तक रिमांड पर भेज दिया है। तिब्बती ट्र्स्ट प्रबंधक रावजी चौसांग को शुक्रवार को कोर्ट में पेश किया जाएगा।

फेरा और फेमा के तहत दर्ज हो सकता है मामला
ग्यूतो तांत्रिक विश्वविद्यालय सिद्धबाड़ी स्थित करमापा के अस्थायी निवास स्थान के कार्यालय से करोड़ों रुपए की भारतीय के साथ विदेशी मुद्रा बरामदगी के बाद अब इस मामले में फारन एक्सचेंज मैनेजेंट एक्ट (फेमा) और फारन एक्सचेंज रेग्यूलेशन एक्ट (फेरा) की अवहेलना करने का मामला भी दर्ज हो सकता है। देश में विदेशी मुद्रा अधिनियम में विदेशी मुद्रा को लाने संबंधी नियम निर्धारित हैं, लेकिन इस मामले में भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा मिलने के चलते पुलिस इस पर सीधे तौर पर कार्रवाई करने में सक्षम नहीं है। ऐसे में अब फेरा और फेमा के तहत इस मामले में जांच की जाएगी। पांच जनवरी 2000 को धर्मशाला पहुंचे करमा कग्यू बौद्ध पंथ के 17वें करमापा उग्येन त्रिनले दोरजे 28 दिसंबर 1999 को तिब्बत के तशुरफू बौद्ध मठ से अपने 5 अनुयायियों और बड़ी बहन नगदुप पेल्जोन सहित हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों की 1500 किलोमीटर पैदल यात्रा कर छिपते-छिपाते नेपाल होते हुए भारत पहुंचे थे, तब से लेकर वह मीडिया की सुर्खियां बने हुए हैं

हिमाचल: बौद्ध मठ में करेंसी घोटाला! मिले 1.32 करोड़ रुपये के विदेशी नोट!

धर्मशाला. 17वें करमापा उग्येन त्रिनले दोरजे के ग्यात्सो मठ सिद्धबाड़ी में दबिश के दौरान 1.32 करोड़ रुपये की देसी व विदेशी मुद्रा की बरामदगी से पुलिस हैरान है। इसमें 40 हजार से अधिक अमेरिकी डॉलर व भारी मात्रा में ऑस्ट्रेलियाई डॉलर, जर्मन, हांगकांग व चीनी मुद्रा शामिल है। ऐसे में जांच एजेंसियां लामा के चीन से संबंधों को लेकर भी पड़ताल कर रही है।

हिमाचल प्रदेश के डीजीपी डी एस मन्‍हास ने आज कहा कि हमें पूरा संदेह है कि यह धनराशि गैर कानूनी तरीके से राज्‍य में लाई गई और संभव है कि यह हवाला के जरिये लाई गई हो। उन्‍होंने कहा कि केंद्रीय एजेंसियों की मदद से मामले की जांच की जा रही है। राज्‍य पुलिस की टीम दिल्‍ली, चंडीगढ़, अम्‍बाला और धर्मशाला के लिए रवाना हो गई हैं।

पुलिस ने प्राथमिक जांच में कारमे गार्चन ट्रस्ट के ट्रस्टी रूपगे चौसंग, जिसे शक्ति लामा भी बताया जा रहा है, के अलावा दो अन्य को गिरफ्तार किया है। रूपसे चौसंग को शुक्रवार को कोर्ट में पेश किया गया। मैहतपुर से गिरफ्तार दो अन्य व्‍यक्तियों को पहली फरवरी तक पुलिस रिमांड पर भेजा गया है। पुलिस ने यह छापा ऊना जिला के मैहतपुर में नाके के दौरान निजी वाहन की तलाशी में एक करोड़ रुपये बरामद करने के बाद मारा।

इससे पहले सीआईडी ने धर्मशाला सहित आसपास के क्षेत्रों में 1500 करोड़ रुपए की बेनामी संपत्तियों को चिह्न्ति कर सरकार को अपनी रिपोर्ट भेजी थी। इसी आधार पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मैक्लोडगंज सहित जिला कांगड़ा के विभिन्न स्थानों पर बौद्ध मठों के नाम पर खरीदी जा रही बेनामी भू-संपत्तियों के मामलों पर अपनी जांच शुरू की थी। ईडी के अनुसार इन बेनामी संपत्तियों की खरीद में चीन से आए धन का इस्तेमाल किया गया है। एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत चीन यह राशि पहले बैंकॉक और बैंकॉक से इस धन को अमेरिका हस्तांतरित किया गया है। अमेरिका के माध्यम से इस राशि को भारत में लाया गया है।

फेमा और फेमा के तहत दर्ज होगा मामला!
करमापा के अस्थायी निवास स्थान के कार्यालय (तस्‍वीर में) से करोड़ों रुपए की भारतीय के साथ विदेशी मुद्रा बरामदगी के बाद अब इस मामले में फारन एक्सचेंज मैनेजेंट एक्ट (फेमा) और फारन एक्सचेंज रेग्यूलेशन एक्ट (फेरा) की अवहेलना करने का मामला भी दर्ज हो सकता है। देश में विदेशी मुद्रा अधिनियम में विदेशी मुद्रा को लाने संबंधी नियम निर्धारित हैं, लेकिन इस मामले में भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा मिलने के चलते पुलिस इस पर सीधे तौर पर कार्रवाई करने में सक्षम नहीं है। ऐसे में अब फेरा और फेमा के तहत इस मामले में जांच की जाएगी।

कौन हैं करमापा
पांच नवंबर 2000 को धर्मशाला पहुंचे करमा कग्यू बौद्ध पंथ के 17वें करमापा उग्येन त्रिनले दोरजे 28 दिसंबर 1999 को तिब्बत के तशुरफू बौद्ध मठ से अपने 5 अनुयायियों और बड़ी बहन नगदुप पेल्जोन सहित हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों की 1500 किलोमीटर पैदल यात्रा कर छिपते-छिपाते नेपाल होते हुए भारत पहुंचे थे, तब से लेकर वह मीडिया की सुर्खियां बने हुए हैं। उसके बाद से यहीं सिद्धबाड़ी में ग्यात्सो मठ में रह रहे हैं। 1985 में पूर्वी तिब्बत में पैदा हुए करमापा को भारत सरकार ने 2001 में शरणार्थी का दर्जा दिया था। करमापा का मतलब होता है बुद्ध की गतिविधि को आगे बढ़ाने वाला। बचपन में अपो गागा के नाम से जाने जाते उग्येन त्रिनले दोरजे ही 17वें करमापा हैं। करमापा को बौद्ध धर्म मानने वालों का सबसे बड़ा आध्‍यात्मिक गुरू माना जाता है।

काफी पुराना है विवादों से नाता
धर्मशाला में अपनी धनशाला के कारण चर्चा में आए 17वें करमापा का विवादों से नाता पांच जनवरी 2000 से ही है जिस दिन वह भारत यानी धर्मशाला आए थे। यह भी कहा जा सकता है कि वह भारत सरकार का इतना विश्वास कभी भी अर्जित नहीं कर पाए कि उन्हें अपनी मूल गद्दी रूमटेक यानी सिक्किम जाने की अनुमति मिले। इन दस साल में उन्हें विदेश जाने की अनुमति भी महज एक बार मिल पाई है। भारत में वह आ तो गए लेकिन चीन से जुड़ाव के आरोपों की छाया उनका पीछा करती रही। और जिस पैसे को गिनने में पुलिस को घंटों लगे, उसमें चीनी मुद्रा युआन का मिलना भी कई सवाल खड़े करता है।

करमापा के गुरु ताई सीतू रिंपोछे को तो एक बार भारत ने देश भी छुड़वा दिया था यानी डिपोर्ट कर दिया था। इसी प्रकार करमापा के दो सहायकों को भी देश से जाने के लिए कहा गया था। संदिग्ध परिस्थितियों में करीब दस साल पहले भारत पहुंचे 17वें करमापा को राजनीतिक शरणार्थी के दर्जे से लेकर उनकी उम्र को लेकर पहले काफी बवाल मचा रहा और उसके बाद बेनामी संपत्तियों को लेकर खूब अंगुलियां उठीं।

Friday, January 28, 2011

( हाशिए पर बैठे अफसर भी अहम पदों को पाने की दौड़ में)पंजाब में उच्च् स्तरीय फेरबदल की तैयारी प्रमुख गृह सचिव एआर तलवार का नाम सबसे ऊपर

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चंडीगढ़। वित्तायुक्त राजस्व रोमिला दूबे का नाम पंजाब स्टेट इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन की चेयरपर्सन के लिए क्लीयर होने के बाद अब उच्च स्तर पर भारी फेरबदल होने की संभावना प्रबल हो गई है। उच्च पदों पर आसीन अफसरों में अचानक हलचल काफी तेज हो गई है और लंबे समय से हाशिए पर बैठे अफसर भी अहम पदों को पाने की दौड़ में शामिल हो गए हैं।

मुख्यमंत्री बादल के विदेश में होने के कारण रोमिला दूबे को इस पद की शपथ नहीं दिलाई जा सकी है लेकिन मुख्य सचिव के पद के सबसे महत्वपूर्ण वित्तायुक्त राजस्व के पद के लिए अधिकारियों में दौड़ शुरू हो गई है। इस पद के लिए दिल्ली में 1977 बैच के डीएस कल्हा जो प्रिंसिपल रेजिडेंट कमिश्नर (उद्योग तालमेल) हैं और प्रमुख गृह सचिव एआर तलवार का नाम सबसे ऊपर चल रहा है।

वैसे इस पद को पाने की दौड़ में डीएस जसपाल भी हाथ आजमा रहे हैं। काबिले गौर है कि डीएस कल्हा को पिछले तीन महीनों से महत्वपूर्ण पद दिए जाने की बात चल रही है। कल्हा मनप्रीत बादल और आदेश प्रताप सिंह के भी करीबी माने जाते हैं। यह भी कहा जा रहा है कि यदि उनको यह पद नहीं मिलता है तो वह फिर से केंद्र में लौटने के इच्छुक हैं। यदि प्रमुख गृह सचिव एआर तलवार को यह पद मिलता है तो इस पद को पाने के लिए भी कई अधिकारी लाइन में हैं। किसी समय सुखबीर बादल के करीबी माने जाने वाले डीएस बैंस भी गृह सचिव या एफसीडी पद की इच्छा रखते हैं। हालांकि पंजाब एंड सिंध बैंक के चेयरमैन कम एमडी के नाम के लिए भी उनकी चर्चा चल रही है। यदि बैंस को एफसीडी का पद मिलता है तो इस पद पर आसीन नवनीत कंग को प्रमुख गृह सचिव का पद मिल सकता है।

Friday, January 21, 2011

-ਵਿਅੰਗ





ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਦਾ ਹਲਕਾ ਫੁਲਕਾ ਇਤਿਹਾਸਕ ਤੇ ਵਰਤਮਾਨ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਨ




ਦਿੱਲੀ 'ਚ ਅਸੀਂ ਕਹੇ ਜਾਂਦੇ ਕਿੱਤਾਕਾਰੀ ਪੱਤਰਕਾਰ ਜਿੰਨੀਆਂ ਮਹਿਫਲਾਂ 'ਚ ਬੈਠਦੇ ਹਾਂ, ਇਹਨਾਂ ਮਿੱਥੀਆਂ, ਅਣਮਿੱਥੀਆਂ ਜਾਂ ਸਬੱਬੀ ਮਹਿਫਲਾਂ 'ਤੇ ਖੁਸ਼ਾਮਦੀ/ਚਾਪਲੂਸੀ/ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਦਾ ਵਿਸ਼ਾ ਭਾਰੂ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ।ਮੈਂ ਇਹਨਾਂ ਮਹਿਫਲਾਂ ਨੂੰ ਕਦੇ ਸੋਫੀ ਤੇ ਕਦੇ ਸ਼ਰਾਬੀ ਕਿਸੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨੀ ਵਾਂਗੂੰ ਨੇੜਿਓਂ ਵੇਖਦਾ ਰਿਹਾਂ।ਇਹਨਾਂ ਮਹਿਫਲੀ ਪਲੇਟਫਾਰਮਾਂ 'ਤੇ ਕਈ ਵਾਰ ਚਮਚੇ ਭਾਵੁਕ ਤੇ ਜ਼ਮੀਰਵਾਲੇ ਨਰਾਜ਼ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਨੇ।ਚਮਚੇ ਦਾ ਪੁਲਿੰਗੀ ਸ਼ਬਦ ਜ਼ਮੀਰਵਾਲੇ ਇਸ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਨੂੰ ਲਗਦਾ ਕਿ ਚਮਚਿਆਂ ਦੀ ਕੋਈ ਜ਼ਮੀਰ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ। ਜ਼ਿੰਦਗੀ 'ਚ ਜਦੋਂ ਅਸੀਂ ਸੰਸਥਾਗਤ ਹੋਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੁੰਦੇ ਹਾਂ ਤਾਂ ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਸਾਡੇ ਸਨਮੁੱਖ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਮੈਂ ਅਪਣੀ ਸੁਰਤ ਸੰਭਲਣ ਤੋਂ ਲੈਕੇ (ਜਿਹੜੀ ਅੰਤ ਤੱਕ ਸੰਭਲਦੀ ਰਹੂ) ਹੁਣ ਤੱਕ ਦੇ ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਦੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਜਦੋਂ ਸਮਝਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਮੈਨੂੰ ਲੱਗਿਆ ਕਿ ਇਹ ਖਤਰਨਾਕ ਵਰਤਾਰਾ ਅਚੇਤ ਰੂਪ 'ਚ ਬਚਪਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲੀ ਸੰਸਥਾ ਸਕੂਲ ਤੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਮੈਂ ਯਾਦ ਕਰਨ ਲੱਗਿਆ ਕਿ ਮੇਰੀ ਸਕੂਲੀ ਯਾਤਰਾ 'ਚ ਕਿਹੜੇ ਕਿਹੜੇ ਵਰਗਾਂ ਤੇ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਜਮਾਤ ਦੇ ਮਨੀਟਰ ਵਗੈਰਾ ਬਣਦੇ ਰਹੇ ਹਨ। ਸਕੂਲੀ ਜੀਵਨ 'ਚ ਮਨੀਟਰ ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਇਕਾਈ ਹੈ। ਜਿਥੇ ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਦੀ ਹਰਾਰਕੀ ਦੇ ਆਲੇ ਦੁਆਲੇ ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਚੇਤ ਅਚੇਤ ਰੂਪ ਕਿਸ ਕੋਹਲੂ ਦੇ ਬਲਦ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਘੁੰਮਦੀ ਹੈ। ਓਸ ਦੌਰ ਤੋਂ ਹੁਣ ਤੱਕ ਦੇ ਤਜ਼ਰਬਿਆਂ ਤੇ ਅੰਕੜਿਆਂ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨਾਲ ਰਲਗੱਡ ਕਰਦਿਆਂ ਮੈਂ ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਤੇ ਵਰਤਮਾਨ ਨੂੰ ਰਾਜਨੀਤੀ ਦੀ ਕਸੌਟੀ 'ਤੇ ਪਰਖਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ।

ਇਸੇ ਦੌਰਾਨ ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਬਾਰੇ ਹੁਣ ਤੱਕ ਕੁਝ ਲਿਖਿਆ ਲੱਭਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ ਵੀ ਕੀਤੀ ਪਰ ਕੁਝ ਖਾਸ ਹੱਥ ਨਹੀਂ ਲੱਗਿਆ। ਅਸਲ 'ਚ ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਇਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਖਾਸਾ ਹੈ। ਜਿਹੜਾ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਕੁਝ ਖਾਸ ਵਰਗਾਂ ਤੇ ਜਾਤਾਂ ਨਾਲ ਜੁੜਿਆ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਆਰਥਿਕ ਇਤਿਹਾਸ ਦੇ ਪੰਨਿਆਂ 'ਤੇ ਜਦੋਂ ਅਸੀਂ ਨਜ਼ਰ ਮਾਰਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਕੁਝ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਵਰਗ ਤੇ ਜਾਤਾਂ ਰਹੀਆਂ ਨੇ,ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀਆਂ ਗਤੀਵਿਧੀਆਂ ਨਾਲ ਕਦੀਂ ਕੋਈ ਸਬੰਧ ਨਹੀਂ ਰਿਹਾ। ਇਹੀ ਉਹ ਵਰਗ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸਕ ਤੌਰ 'ਤੇ ਸੱਤਾ ਨਾਲ ਕਦੇ ਵੀ ਕੋਈ ਅੰਤਰਵਿਰੋਧ ਨਹੀਂ ਰਿਹਾ,ਸੱਤਾ ਨਾਲ ਰਲ ਮਿਲਕੇ ਜਾਂ ਚਾਕਰੀ ਕਰਕੇ ਖਾਣਾ ਇਹਨਾਂ ਦਾ ਭਰਪੂਰ ਸੱਭਿਆਚਾਰ ਰਿਹਾ। ਇਸਦਾ ਲੇਖਾ-ਜੋਖਾ ਸੱਤਾ ਵਿਰੋਧੀ ਮਨੁੱਖੀ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਲਈ ਚੱਲੀਆਂ ਲਹਿਰਾਂ 'ਚ ਅਜਿਹੇ ਵਰਗਾਂ ਦੀ ਸ਼ਮੂਲੀਅਤ ਤੋਂ ਵੀ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ। ਸੱਤਾ ਦੇ ਇਹ ਚਮਚੇ ਤੁਹਾਨੂੰ ਇਤਿਹਾਸ ਦੀ ਹਰ ਲਹਿਰ ਤੋਂ ਭਗੌੜੇ ਨਜ਼ਰ ਆਉਣਗੇ। ਸੱਤਾ ਦਾ ਮਤਲਬ ਸਿਰਫ ਸਰਕਾਰਾਂ ਹੀ ਨਹੀਂ, ਬਲਕਿ ਹਰ ਉਹ ਸਥਾਪਤੀ ਜਿਸਦੇ ਮੂਹਰੇ ਇਹ ਅਪਣੇ ਗੋਡੇ ਟੇਕਦੇ ਰਹੇ ਹਨ। ਇਹਨਾਂ ਵਰਗਾਂ ਤੇ ਜਾਤਾਂ ਦੀ ਨਿੱਜੀ ਆਰਥਿਕਤਾ ਹਮੇਸ਼ਾ ਹੀ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਤੇ ਚਾਕਰੀ 'ਤੇ ਟਿਕੀ ਰਹੀ ਹੈ।ਅੱਜ ਇਹ ਰੰਗ ਰੂਪ ਬਦਲਕੇ ਨਵੇਂ ਭੇਸ਼ 'ਚ ਆਉਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਅਪਣਾ ਭੈੜ ਭਰਿਆ ਸ਼ਾਨਾਮੱਤੀ ਇਤਿਹਾਸਕ ਖ਼ਜ਼ਾਨਾ ਆਪਣੇ ਅੰਦਰ ਸਮੋਈ ਬੈਠੇ ਹਨ।

ਇਤਿਹਾਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗੱਲ ਵਰਤਮਾਨ ਦੀ ਕਰੀਏ ਤਾਂ ਨਿਊ ਇਕੌਨਮੀ (ਨਵੀਂ ਅਰਥਵਿਵਸਥਾ) ਦੇ ਇਸ ਦੌਰ 'ਚ ਜਿੱਥੇ ਸੱਤਾ ਦੇ ਜ਼ਰੀਏ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੇ ਅਰਥ ਤੇ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਬਦਲਣੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਈਆਂ,ਓਥੇ ਹੀ ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਵੀ ਅਪਣੇ ਨਵੇਂ ਮਖੋਟੇ ਦੇ ਰੂਪ 'ਚ ਸਾਹਮਣੇ ਆਈ ਹੈ।ਇਸੇ ਨਵੀਂ ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਨੂੰ ਸਹੀ ਸਿੱਧ ਕਰਨ ਦੇ 90ਵਿਆਂ ਦੇ ਦਹਾਕੇ 'ਚ ਪ੍ਰਫੈਸ਼ਨਲਿਜ਼ਮ (ਕਿੱਤਕਾਰਤਾ) ਨਾਂਅ ਦੀ ਨਵੀਂ ਮੱਦ ਸਾਡੇ ਸਾਹਮਣੇ ਆਈ।ਅੱਜਕਲ੍ਹ ਪ੍ਰੋਫੈਸ਼ਨਲਿਜ਼ਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਮੌਜੂਦਾ ਸੰਸਥਾਵਾਂ 'ਚ ਇਸ ਪੱਧਰ ਤੱਕ ਭਾਰੂ ਹੈ ਕਿ ਸੋਚਣ ਵਾਲੇ ਨੂੰ ਲਗਦਾ ਕੀ ਇਸਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿੱਤਾਕਾਰੀ/ਕਿੱਤਾਕਾਰਤਾ ਨਾਂਅ ਦੀ ਕੋਈ ਚੀਜ਼ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਸਾਰੀ ਵਿਚਾਰ ਚਰਚਾ ਪ੍ਰੋਫੈਸ਼ਨਲਿਜ਼ਮ 'ਤੇ ਕੇਂਦਰਿਤ ਹੋਈ ਤੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਗਲਤ ਚੀਜ਼ ਨੂੰ ਸਹੀ ਸਾਬਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਪ੍ਰੋਫੈਸ਼ਨਲਿਜ਼ਮ ਦਾ ਸਹਾਰਾ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਰਿਹਾ ਤੇ ਹੈ। ਅਸਲ ਅਰਥਾਂ 'ਚ ਪ੍ਰੋਫੈਸ਼ਨਲਿਜ਼ਮ ਦੀ ਪ੍ਰੀਭਾਸ਼ਾ ''ਕਿਸੇ ਸੰਸਥਾ ਜਾਂ ਕਿਸੇ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਮਨੁੱਖ ਪ੍ਰਤੀ ਅਸੰਵੇਦਨਸ਼ੀਲ, ਗੈਰ ਮਨੁੱਖੀ ਤੇ ਸ਼ੋਸ਼ਣਕਾਰੀ ਵਿਵਹਾਰ ਹੈ''। ਜਿਸਦੇ ਰਾਹੀਂ ਇਕ ਸਿਸਟਮ, ਸੰਸਥਾ ਤੇ ਮਨੁੱਖ ਲਈ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਮਨੁੁੱੱਖ ਇਕ ਮਸ਼ੀਨ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ ਤੇ ਉਹ ਮਸ਼ੀਨ ਜਦੋਂ ਤੱਕ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕੰਮ ਕਰਦੀ ਹੈ, ਉਸਦੇ ਅਰਥ ਵੀ ਓਨੇ ਸਮੇਂ ਤੱਕ ਜਾਂ ਤੁਸੀਂ ਕਿੰਨੀ ਚਾਕਰੀ ਕਰਦੇ ਹੋ, ਇਸ ਨਾਲ ਹੀ ਤੁਹਾਡਾ ਪ੍ਰੋਫੈਸ਼ਨਲਿਜ਼ਮ ਤੈਅ ਹੋਵੇਗਾ।ਇਸੇ ਚੱਕਰ-ਕੁਚੱਕਰ 'ਚੋਂ ਹੀ ਨਿਊ ਇਕੌਨਮੀ 'ਚ ਅਪਣੇ ਪੁਰਾਣੇ ਮੁੱਲਾਂ ਦੇ ਅਧਾਰ 'ਤੇ ਖੜ੍ਹੀ ਨਿਊ ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਹੁੰਦਾ ਹੈ।ਇਸ ਨਿਊ ਇਕੌਨਮੀ ਦੇ ਪ੍ਰਫੈਸ਼ਨਲਿਜ਼ਮ ਦੀ ਛਤਰ ਛਾਇਆ ਹੇਠ ਉਹਨਾਂ ਹੀ ਵਰਗਾਂ ਤੇ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਚਮਚੇ ਨਵੇਂ ਰੂਪ ਤੇ ਨਵੇਂ ਢੰਗ ਦੀਆਂ ਜੀਅ ਤੋੜ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਨਾਲ ਅਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਪ੍ਰੋਫੈਸ਼ਨਲਿਸਟ ਸਿੱਧ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ 'ਚ ਜੁਟੇ ਹੋਏ ਹਨ। ਨਵੇਂ ਦੌਰ 'ਚ ਫਰਕ ਸਿਰਫ ਏਨਾ ਕਿ ਪੁਰਤਾਨਪੰਥ ਨੂੰ ਆਧੁਨਿਕਤਾ 'ਚ ਲਪੇਟਕੇ ਪ੍ਰੋਫੈਸ਼ਲਿਸਟਾਂ,ਜੋ ਸਿਸਟਮ ਦੇ ਦਲਾਲ ਜਾਂ ਚਮਚੇ ਬਣਦੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰੋਫੈਸ਼ਨਲਜ਼ ਦਾ ਨਾਂਅ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾਂ ਹੈ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਕ ਤੀਰ ਨਾਲ ਦੋ ਨਿਸ਼ਾਨੇ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਨੇ। ਸੱਪ ਵੀ ਮਰ ਜਾਂਦੈ ਤੇ ਸੋਟੀ ਵੀ ਬਚ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਭਾਵ ਚਮਚੇ ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਵੀ ਕਰ ਲੈਂਦੇ ਨੇ ਤੇ ਸਥਾਪਤੀ ਉਹਨਾਂ 'ਤੇ ਸਰਵਉੱਤਮ ਹੋਣ ਦਾ ਠੱਪਾ ਵੀ ਲਗਾ ਦਿੰਦੀ ਹੈ। ਇਹਨਾਂ ਆਧੁਨਿਕ ਤੇ ਪੁਰਾਤਨ ਸਬੰਧਾਂ 'ਚ ਚਮਚਿਆਂ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਗਤੀਵਿਧੀਆਂ 'ਚ ਸ਼ਾਮਿਲ ਨਾ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਗੱਲ ਬਿਲਕੁਲ ਸਾਂਝੀ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਮੌਜੂਦਾ ਸਮੇਂ ਚਮਚਿਆ 'ਚ ਮੁਕਾਬਲਾ ਵੀ ਵਧਦਾ ਤੇ ਹਰ ਚਮਚਾ ਸਥਾਪਤੀ ਦੇ ਘਰ ਦੀਆਂ ਪੌੜੀਆਂ ਦੇ ਜ਼ਰੀਏ ਸਥਾਪਿਤ ਹੋਣ ਦੀ ਜੱਦੋਜਹਿਦ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ।

ਤੇਰਾ ਕੁੱਤਾ-ਕੁੱਤਾ, ਸਾਡਾ ਕੁੱਤਾ ਟੋਮੀ ਵਾਲੀ ਕਹਾਵਤ ਵਾਂਗ ਚਮਚੇ ਵੀ ਅਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਜ਼ਮੀਰਵਾਲੇ ਸਾਬਿਤ ਕਰਨ ਦੀ ਗੁਆਂਢੀ ਜਾਂ ਸੰਗੀ ਸਾਥੀ ਚਮਚਿਆਂ ਦੀ ਭਰਪੂਰ ਨਿੰਦਿਆ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਕੁਝ ਏਨੇ ਸਪੱਸ਼ਟ ਚਮਚੇ ਵੀ ਹਨ, ਜਿਹੜੇ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਕਿ ਇਹ ਤਾਂ ਮੌਕਾ ਹੈ ਜਿਸਨੂੰ ਵੀ ਮਿਲੇਗਾ,ਉਹ ਇਸਨੂੰ ਕੈਸ਼ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰੇਗਾ। ਸਾਨੂੰ ਮੌਕਾ ਮਿਲਿਆ,ਅਸੀਂ ਮੌਕਾਪ੍ਰਸਤ ਹੋ ਗਏ। ਇਹ ਬਿਨਾਂ ਭੇਦਭਾਵ ਸਭਨੂੰ ਇਕੋ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਵੇਖਦੇ ਨੇ,ਇਸੇ ਲਈ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਲਗਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮੌਕੇ ਮਿਲਣ 'ਤੇ ਸਾਡੇ ਵਾਂਗ ਮੌਕਾ ਵੇਖਦਿਆਂ ਹੀ ਸਾਰੇ ਜ਼ਮੀਰ ਵੇਚ ਦੇਣਗੇ,ਪਰ ਏਨੀ ''ਇਮਾਨਦਾਰੀ'' ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਵੀ ਇਹ ਚਮਚੇ ਹਮੇਸ਼ਾ ਦੋ ਲਿਬਾਸਾਂ 'ਚ ਰਹਿੰਦੇ ਨੇ, ਜਿਥੇ ਜਿਹੜਾ ਲਿਬਾਸ ਸੂਟ ਕਰੇ, ਉਹੋ ਪਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ।ਖੈਰ, ਮੇਰੀ ਚਮਚਿਆਂ ਨੂੰ ਇਹੋ ਅਪੀਲ ਹੈ ਕਿ ਜੇ ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਕਰੇ ਬਿਨਾਂ ਰਹਿ ਨਹੀਂ ਸਕਦੇ ਤਾਂ ਘੱਟੋ ਘੱਟੋ ਦੋਗਲਾਪਣ ਨਾ ਕਰੋ।ਬਾਕੀ ਤਹਾਨੂੰ ਪਤੈ ਕਿ ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਦੇ ਨਾਲ ਤੁਸੀਂ ਅਪਣੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਵੀ ਲੈਕੇ ਤੁਰੋ ਹੋਏ ਓ। ਕੋਈ ਗੁਰੂ ਦਾ ਲਾਡਲਾ ਸਿੱਖ(ਵੈਸੇ ਮਸੰਦ ਐ), ਕੋਈ ਦੁਰਗਾ, ਕਾਲੀ ਦਾ ਭਗਤ, ਮਨੁੱਖਵਾਦੀ,ਮਾਰਕਸਵਾਦੀ ਤੇ ਕਈ ਵਿਚਾਰੇ ਅਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਸੁਤੰਤਰ ਤੇ ਨਿਰਪੱਖ ਦੱਸਣ ਵਾਲੇ ਭੋਲੇ ਭਾਲੇ ਵੀ ਨੇ।ਤੁਹਾਨੂੰ ਸਭ ਨੂੰ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਜੇ ਗਰੰਥਾਂ ਜਾਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਨੂੰ ਥੋੜ੍ਹਾ ਬਹੁਤਾ ਪੜ੍ਹਦੇ ਹੋਵੋਂਗੇ ਤਾਂ ਥੋੜ੍ਹੀ ਜਿਹੀ ਜ਼ਮੀਰ ਜਗਾ ਲਓ ਜਾਂ ਇਹ ਲਿਬਾਸ/ਚੋਲੇ ਲਾਹ ਦਿਓ ਜਾਂ ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਕਰਨੀ ਛੱਡ ਦਿਓ। ਵੈਸੇ ਮੈਨੂੰ ਲਗਦੈ ਕਿ ਧਾਰਮਿਕ ਚਮਚਿਆਂ ਨੂੰ ਇਹ ਗਿਆਨ ਕਿ ਸਭ ਸਵਰਗ ਨਰਕ ਹੇਠਾਂ ਹੀ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਕਿਸੇ ਇਲਾਹੀ ਸ਼ਕਤੀ ਤੋਂ ਡਰਨ ਦੀ ਲੋੜ ਨਹੀਂ ਤੇ ਨਾਸਤਿਕਾਂ ਨੂੰ ਪਤਾ ਕਿ ਇਸ ਤੋਂ ਚੰਗੀ ਕੋਈ ਦੁਕਾਨਦਾਰੀ ਨਹੀਂ,ਨਾਲੇ ਚੋਪੜੀਆਂ,ਨਾਲੇ ਦੋ-ਦੋ ਨੇ।ਵੈਸੇ ਇਤਿਹਾਸ ਦੀ ਮਹਾਨਤਾ ਦੇ ਅਰਥ ਚਾਹੇ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਨਾ ਪਤਾ ਹੋਣ,ਪਰ ਇਹਨਾਂ ਦੀ ਅਸਿਹਜਤਾ ਤੋਂ ਅੰਦਾਜ਼ਾ ਲਗਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦੈ ਕਿ ਇਤਿਹਾਸ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਚੇਤ ਰੂਪ ਚਪੇੜਾਂ ਮਾਰ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਬਾਕੀ ਮੈਂ ਚਮਚਾਗਿਰੀ 'ਤੇ ਲਿਖਣ ਬਾਰੇ ਕਾਫੀ ਲੰਮੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਸੋਚ ਰਿਹਾ ਸੀ, ਪਰ ਹਰ ਵਾਰ ਲਗਦਾ ਸੀ ਕਿ ਲਿਖਣ ਲਈ ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਹੈ। ਇਸ ਵਾਰ ਟਾਈਮ ਵੀ ਸੀ ਤੇ ਮੈਨੂੰ ਵੀ ਬੁੱਧ ਵਾਂਗ ਗਿਆਨ ਹੋਇਆ ਕਿ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਹਰ ਵਿਸ਼ੇ ਦੀ ਮਹੱਤਤਾ ਬਰਾਬਰ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਮੁੱਖਧਾਰਾ 'ਚ ਕੇਂਦਰਿਤ ਰਹਿੰਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਸਾਨੂੰ ਹਾਸ਼ੀਏ 'ਤੇ ਨਹੀਂ ਸੁੱਟਣਾ ਚਾਹੀਦਾ। ਇਸ ਲਈ ਮੈਂ ਸਾਡੇ ਸਮਿਆਂ ਦੀ ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਦਾ ਹਲਕਾ ਫੁਲਕਾ ਇਤਿਹਾਸ ਤੇ ਵਰਤਮਾਨ ਕਲਮਬੰਦ ਕਰਨ ਬੈਠ ਗਿਆ।

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ਵਿਅੰਗ ਮਰਵਾ ਦਿੱਤਾ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ੀ ਨੇ -ਡਾ. ਫ਼ਕੀਰ ਚੰਦ ਸ਼ੁਕਲਾ-

ਮੈਲਬੌਰਨ (ਆਸਟ੍ਰੇਲੀਆ)ਆਇਆਂ ਹਾਲੇ ਮੈਨੂੰ ਥੋੜਾ ਚਿਰ ਹੀ ਹੋਇਆ ਸੀ।ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਕਿਉਂ ਕੁਝ ਦਿਨਾਂ ਤੋਂ ਮੈਨੂੰ ਕੁਝ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੀ ਠੰਢ ਮਹਿਸੂਸ ਹੋਣ ਲੱਗੀ ਸੀ ਤੇ ਹਰ ਵੇਲੇ ਕਾਂਬਾ ਜਿਹਾ ਛਿੜਿਆ ਰਹਿੰਦਾ। ਭਾਵੇਂ ਘਰ ਵਿਚ ਇੰਟਰਨਲ ਹੀਟਿੰਗ ਦਾ ਬੰਦੋਬਸਤ ਸੀ, ਪਰ ਮੈਂ ਸਾਰਾ ਦਿਨ ਘਰੇ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਬੈਠੇ ਰਹਿਣਾ ਸੀ। ਕੰਮ ਕਾਜ ਵੀ ਤਾਂ ਕਰਨਾ ਸੀ।..ਤੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੀਟਿੰਗ ਦਾ ਵਾਧੂ ਬਿਲ ਵੀ ਤਾਂ ਮੈਨੂੰ ਹੀ ਭਰਨਾ ਪੈਣਾ ਸੀ।
ਮੈਂ ਕਿੰਨੇ ਸਾਰੇ ਕਪੜੇ ਪਾ ਲਏ। ਪਰ ਇਸ ਤਰਾ੍ਹਂ ਤੁਰਨ ਵੇਲੇ ਔਖਿਆਈ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਥੋੜਾ ਤੁਰਨ ਮਗਰੋਂ ਹੀ ਸਾਹ ਚੜ੍ਹ ਜਾਂਦਾ। ਆਖਿਰਕਾਰ ਮੈਂ ਥੌਰਨਬਰੀ ਦੇ ਲਾਗੇ ਇਕ ਫਾਰਮੇਸੀ ਤੇ ਦਵਾਈ ਲੈਣ ਲਈ ਚਲਾ ਗਿਆ। ਪਰ ਕਾਊਂਟਰ ਤੇ ਖਲੋਤੀ ਗੋਰੀ ਕੁੜੀ ਨੇ ਡਾਕਟਰ ਦੀ ਪਰਿਸਕਰਿਪਸ਼ਨ ਤੋਂ ਬਿਨਾ ਦਵਾਈ ਦੇਣ ਤੋਂ ਨਾਹ ਕਰ ਦਿੱਤੀ। ਮੈਂ ਡੰਡਾਸ ਸਟ੍ਰੀਟ, ਮੁਰਰੇ ਰੋੜ ਅਤੇ ਹਾਈ ਵੇ ਸਟਰੀਟ ਤੇ ਸਥਿਤ ਫਾਰਮੇਸੀਆਂ ਤੇ ਵੀ ਗਿਆ, ਪਰ ਕੋਈ ਵੀ ਦੁਆਈ ਦੇਣ ਲਈ ਨਹੀਂ ਮੰਨਿਆ।

ਮੈਨੂੰ ਬੜੀ ਖਿਝ ਆਈ। ਲ਼ੈ ਹੁਣ ਐਨੀ ਕੁ ਗੱਲ ਲਈ ਡਾਕਟਰ ਕੋਲ ਜਾਣਾ ਪਵੇਗਾ? ਲੁਧਿਆਣੇ ਹੁੰਦਾ ਤਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਹੀ ਬਥੇਰੀਆਂ ਦਵਾਈਆਂ ਦੱਸ ਦੇਣੀਆਂ ਸਨ, ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਕੈਮਿਸਟ ਨੇ ਆਪੇ ਦੇ ਦੇਣੀ ਸੀ।

ਵਾਕਿਫ਼ ਬੰਦਿਆਂ ਤੋਂ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਕਿ ਐਥੇ ਤਾਂ ਡਾਕਟਰ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸਮਾਂ ਲੈਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਨਹੀਂ ਕਿ ਜਦੋਂ ਜੀਅ ਕੀਤਾ ਮੂੰਹ ਚੁੱਕ ਕੇ ਤੁਰ ਪਏ।
ਇਕ ਚੀਨੀ ਡਾਕਟਰ ਗਾਵਰ ਸਟਰੀਟ ਤੇ ਸੀ। ਉਸ ਬਾਰੇ ਕਹਿੰਦੇ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਹੋਰਾਂ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ 'ਚ ਘੱਟ ਡਾਲਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ। ਫੋਨ ਕਰਕੇ ਪਤਾ ਕੀਤਾ। ਉਸ ਕੋਲ ਤਾਂ ਰਾਤ ਤੱਕ ਵਾਰੀ ਨਹੀਂ ਆਉਣੀ ਸੀ। ਪਰ ਹਾਈ ਵੇ ਵਾਲੇ ਡਾਕਟਰ ਨੇ ਗਿਆਰਾਂ ਵਜੇ ਦਾ ਸਮਾਂ ਦੇ ਦਿੱਤਾ।

ਮੈਂ ਸਮੇਂ ਸਿਰ ਉਸ ਦੀ ਕਲੀਨਿਕ ਤੇ ਜਾ ਪੁੱਜਾ। ਡਾਕਟਰ ਨੇ ਆਪਣਾ ਪਰੀਚੈ ਮੈਨੂੰ ਦਿੱਤਾ ਤੇ ਪੁੱਛਿਆ ਕਿ ਉਹ ਮੇਰੇ ਲਈ ਕੀ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ।
''ਡਾਕਟਰ ਆਈ'ਮ ਫੀਲਿੰਗ ਕੋਲਡ'' ਮੈਂ ਉਸ ਨੂੰ ਦੱਸਿਆ ਤਾਂ ਉਸ ਮੈਨੂੰ ਫੇਰ ਪੁੱਛਿਆ-''ਕਦੋਂ ਤੋਂ..?''

''ਜੀ, ਤਿੰਨ ਚਾਰ ਦਿਨ ਤਾਂ ਹੋ ਹੀ ਗਏ''।
''ਕੀ ਥੋਡਾ ਨੰਕ ਬੰਦ ਰਹਿੰਦੈ ਜਾਂ ਵਗਦੈ?'' ਉਸ ਫੇਰ ਪੁੱਛਿਆ।
''ਨੋ ਡਾਕਟਰ?''
''ਛਿੱਕਾ ਆਉਂਦੀਆਂ ਨੇ?''
''ਨੋ ਸਰ?''
''ਗਲੇ 'ਚ ਖਰਾਸ ਜਾਂ ਦਰਦ..?''
''ਨਹੀਂ ਡਾਕਟਰ?''
''ਖਾਂਸੀ ਆਉਂਦੀ ਐ? ਬਲਗਮ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਨਿਕਲਦੀ?''

''ਨਹੀਂ ਡਾਕਟਰ ਸਾਹਿਬ, ਅਜਿਹਾ ਤਾਂ ਕੁਝ ਵੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ?'' ਮੇਰੇ ਇੰਜ ਆਖਣ ਤੇ ਡਾਕਟਰ ਜਿਵੇਂ ਕੁਝ ਸੋਚਣ ਲੱਗਾ ਸੀ। ਮੈਂ ਵੀ ਸੋਚੀਂ ਪੈ ਗਿਆ ਸੀ । ਕਿਤੇ ਡਾਕਟਰ ਮੇਰੇ 'ਕੋਲਡ' ਆਖਣ ਨੂੰ ਜ਼ੁਕਾਮ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਸਮਝ ਰਿਹਾ। ਪਰ ਜ਼ੁਕਾਮ ਨੂੰ ਤਾਂ ਅੰਗ੍ਰਜ਼ੀ ਵਿਚ 'ਬੈਡ ਕੋਲਡ' ਆਖਦੇ ਹਨ, ਮੈਂ ਸੋਚਿਆ।

ਡਾਕਟਰ ਨੇ ਸਟੈਥੋਸਕੋਪ ਨਾਲ ਮੇਰੇ ਦਿਲ ਦੀ ਧੜਕਨ ਵੇਖੀ। ਮੇਰੀ ਬਾਂਹ ਤੇ ਇਕ ਪਟਾ ਜਿਹਾ ਲਪੇਟ ਦਿੱਤਾ ਤੇ ਇਕ ਮਸ਼ੀਨ ਰਾਹੀਂ ਮੇਰਾ ਬਲੱਡ ਪਰੈਸ਼ਰ ਅਤੇ ਪਲਸ ਰੇਟ ਵੀ ਮਾਪਿਆ। ਉਸ ਕੁਝ ਹੋਰੇ ਤਰਾ੍ਹਂ ਦਾ ਥਰਮਾਮੀਟਰ ਮੇਰੇ ਕੰਨ ਵਿਚ ਲਾ ਕੇ ਟੈਂਪਰੇਚਰ ਨੋਟ ਕੀਤਾ। ਮੇਰੇ ਲਈ ਹੈਰਾਨੀ ਵਾਲੀ ਗੱਲ ਸੀ ਕਿ ਟੈਂਪਰੇਚਰ ਕੰਨ ਰਾਹੀਂ ਵੀ ਵੇਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।

ਤੇ ਮੈਂ ਇਹ ਸੋਚਦਿਆਂ ਕਿ ਡਾਕਟਰ ਕਿਤੇ ਮੈਨੂੰ ਜ਼ੁਕਾਮ ਹੋਇਆ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਸਮਝ ਰਿਹਾ, ਮੁੜ ਆਖਿਆ-''ਆਈ ਡਾਂਟ ਹੈਵ ਕੋਲਡ, ਬਟ ਫੀਲਿੰਗ ਕੋਲਡ।''
''ਸੌਰੀ ਮੈਨੂੰ ਸਮਝ ਨਹੀਂ ਆ ਰਿਹਾ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਕਹਿ ਰਹੇ ਹੋ'' ਡਾਕਟਰ ਬੋਲਿਆ-''ਪਲੀਜ ਟਰਾਈ ਟੂ ਐਕਸਪਲੇਨ ਪਰੋਪਰਲੀ।'' (ਮੈਨੂੰ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਮਝਾਓ)
ਮੈਂ ਸੋਚਿਆ ਠੰਢ ਦੀ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ੀ 'ਕੋਲਡ' ਸ਼ਾਇਦ ਇਸ ਨੂੰ ਸਮਝ ਨਹੀਂ ਆਈ। ਮੈਨੂੰ ਕਈ ਵਾਰੀ ਕਾਂਬਾ ਜਿਹਾ ਵੀ ਲੱਗਦਾ ਸੀ। ਇਸ ਲਈ ਮੈਂ ਝੱਟ ਆਖਿਆ-''ਆਈ ਐਮ ਸ਼ਿਵਰਿੰਗ ਆਲਸੋ।'' (ਮੈਨੂੰ ਕਾਂਬਾ ਵੀ ਲਗਦੈ)

''ਓ ਆਈ ਸੀ'' ਡਾਕਟਰ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਬੈੱਡ ਤੇ ਲੇਟਣ ਦਾ ਇਸ਼ਾਰਾ ਕੀਤਾ।
''ਤੁਸੀਂ ਕਦੇ ਬਲੱਡ ਟੈਸਟ ਕਰਵਾਇਐ?''
''ਹਾਂ ਜੀ, ਡਾਕਟਰ।''
''ਹੀਮੋਗਲੋਬਿਨ ਕਿੰਨੀ ਸੀ?''
''ਜੀ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਤਾਂ ਚੇਤੇ ਨੀ, ਪਰ ਵਾਹਵਾ ਸੀ।'' ਮੈਂ ਦੱਸਿਆ।
''ਤੁਸੀਂ ਵੈੱਜ ਹੋ ਜਾਂ ਨੌਨ ਵੱੈਜ?''
''ਜੀ ਮੈਂ ਤਾਂ ਪੱਕਾ ਵੈਜੀਟੇਰੀਅਨ ਹਾਂ। ਆਂਡਾ ਵੀ ਨਹੀਂ ਖਾਂਦਾ।''

''ਤੁਹਾਨੂੰ ਬਲੱਡ ਟੈਸਟ ਕਰਵਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ। ਕਮਜੋਰੀ ਕਰਕੇ ਵੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਠੰਢ ਮਹਿਸੂਸ ਹੋਣ ਲਗਦੀ ਹੈ। ਨਾਲੇ ਵੈਜੀਟੇਰੀਅਨ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਆਮ ਤੌਰ ਤੇ ਹਿਮੋਗਲੋਬਿਨ ਦੀ ਘਾਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।'' ਡਾਕਟਰ ਨੇ ਆਪਣੀ ਰਾਇ ਦੱਸੀ।

ਉਸ ਮੇਰੀਆਂ ਉਂਗਲਾਂ ਦੇ ਨਹੁੰ, ਜੀਭ ਅਤੇ ਅੱਖਾਂ ਦੀਆਂ ਪਲਕਾਂ ਦਾ ਅੰਦਰਲਾ ਪਾਸਾ ਚੈੱਕ ਕੀਤਾ।

ਮੈਂ ਬੈੱਡ ਤੇ ਲੰਮਾ ਪੈ ਗਿਆ ਸੀ। ਉਸ ਮੇਰੇ ਸ਼ਰੀਰ ਤੇ ਕਈ ਥਾਵਾਂ ਤੇ ਹੱਥ ਨਾਲ ਦਬਾ ਕੇ ਪੁੱਛਿਆ ਕਿ ਉੱਥੇ ਦਰਦ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ। ਹੱਥ ਫੇਰਦਿਆਂ ਫੇਰਦਿਆਂ ਉਸ ਨੇ ਹੱਥ ਨਾਲ ਜਦੋਂ ਮੇਰੀ ਛਾਤੀ ਤੇ ਦਿਲ ਦੇ ਲਾਗੇ ਦੱਬਿਆ ਤਾਂ ਮੇਰੇ ਮੂੰਹ 'ਚੋਂ 'ਹਾਇ' ਨਿਕਲ ਗਈ।

''ਕੀ ਐਥੇ ਦਰਦ ਹੁੰਦੈ?'' ਮੇਰੇ ਚਿਹਰੇ ਦੇ ਭਾਵ ਪੜ੍ਹਦਿਆਂ ਉਸ ਪੁੱਛਿਆ।
''ਜੀ ਹਾਂ।''
''ਕਦੋਂ ਤੋਂ?''

''ਕੁਝ ਦਿਨਾਂ ਤੋਂ''। ਮੈਂ ਆਖ ਤਾਂ ਦਿੱਤਾ ਪਰ ਉਸੇ ਵੇਲੇ ਮੈਨੂੰ ਖਿਆਲ ਆਇਆ ਕਿ ਮੇਰੀ ਛਾਤੀ ਤੇ ਤਾਂ ਬਾਲ ਤੋੜ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਡਾਕਟਰ ਦੇ ਦੱਬਣ ਨਾਲ ਪੀੜ ਹੋਈ ਸੀ। ਮੈਂ ਡਾਕਟਰ ਨੂੰ ਇਹ ਦੱਸਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸਾਂ ਪਰ ਮੈਥੋਂ ਬਾਲ ਤੋੜ ਦੀ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ੀ ਹੀ ਨਹੀਂ ਬਣ ਰਹੀ ਸੀ। ਮੈਂ ਹਾਲੇ ਸੋਚੀਂ ਹੀ ਪਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ਕਿ ਉਸ ਮੈਨੂੰ ਫੇਰ ਪੁੱਛ ਲਿਆ-''ਜਦੋਂ ਦਰਦ ਹੁੰਦੈ ਤਾਂ ਕੀ ਖੱਬੀ ਬਾਂਹ ਵੱਲ ਵੀ ਜਾਂਦੈ?''

''ਜੀ ਕਦੇ ਕਦਾਈ ਇੰਜ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ।''

ਪਰ ਉਸੇ ਵੇਲੇ ਮੈਨੂੰ ਖਿਆਲ ਆਇਆ ਕਿ ਬਾਂਹ 'ਚ ਪੀੜ ਤਾਂ ਇਸ ਕਰਕੇ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਨੂੰ ਸੌਣ ਵੇਲੇ ਸਿਰ ਹੇਠਾਂ ਬਾਂਹ ਲੈਣ ਦੀ ਆਦਤ ਹੈ। ਪਰ ਹਾਲੇ ਮੈਂ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ੀ ਬਣਾ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸਕਿਆ ਸੀ ਕਿ ਡਾਕਟਰ ਨੇ ਕੁਝ ਟੈਸਟ ਕਰਵਾਉਣ ਦੀ ਸਲਾਹ ਦਿੱਤੀ।

ਮੈਂ ਸੋਚਣ ਲੱਗਾ ਕਿ ਕਿਤੇ ਮੇਰੇ ਬਾਲ ਤੋੜ ਅਤੇ ਬਾਂਹ ਵਿਚ ਹੁੰਦੀ ਪੀੜ ਕਰਕੇ ਡਾਕਟਰ ਹਾਰਟ ਪ੍ਰਾਬਲਮ ਨਾਲ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਮੇਲ ਰਿਹਾ।
ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਵੱਲੋਂ ਉਸ ਨੂੰ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ੀ ਵਿਚ ਬਥੇਰਾ ਸਮਝਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ ਕੀਤੀ ਪਰ ਕੋਈ ਫਾਇਦਾ ਨਾ ਹੋਇਆ।

ਮੈਨੂੰ ਡਾਕਟਰ ਤੇ ਖਿਝ ਵੀ ਆ ਰਹੀ ਸੀ ।ਇਹ ਕਿੱਦਾਂ ਦਾ ਡਾਕਟਰ ਹੈ ਜਿਹੜਾ ਐਨੀ ਗੱਲ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸਮਝ ਸਕਦਾ।

ਅਚਾਨਕ ਹੀ ਮੈਨੂੰ ਆਪਣੇ ਪਿੰਡ ਖਿਜ਼ਰਾਬਾਦ 'ਚ ਪੜ੍ਹਨ ਵੇਲੇ ਦੇ ਦਿਨ ਚੇਤੇ ਆ ਗਏ। ਸਾਨੂੰ ਪੜਾਉਣ ਵਾਲੇ ਗਿਆਨੀ ਜੀ ਪੜਾਉਂਦੇ ਤਾਂ ਪੰਜਾਬੀ ਸਨ ਪਰ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ੀ ਨੂੰ ਵੀ ਲੋੜੋਂ ਵੱਧ ਮੂੰਹ ਮਾਰਦੇ ਸਨ।

ਗਿਆਨੀ ਜੀ ਕਿਸੇ ਮੁੰਡੇ ਨੂੰ ਕਿਤੇ ਜਾਣ ਲਈ ਆਖਦੇ, ਤੇ ਜੇ ਉਹ ਰਤਾ ਕੁ ਵੀ ਨਾਹ ਨੁੱਕਰ ਕਰਦਾ ਤਾਂ ੳਹ ਝੱਟ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ੀ ਵਿਚ ਆਖਦੇ-''ਯੂ ਗੋ, ਨੌਟ ਗੋ, ਵਟ ਮਾਈ ਗੋ'' ਯਾਨੀ ਜਾਣੈ ਜਾਹ, ਨਹੀਂ ਜਾਣੈ ਨਾ ਜਾਹ, ਮੈਨੂੰ ਕੀ।''

ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜੇ ਉਹਨਾਂ ਨਾਲ ਗੱਲ ਕਰਦਿਆਂ ਕੋਈ ਟੋਕ ਦਿੰਦਾ ਤਾਂ ਉਹ ਗੁੱਸੇ ਵਿਚ ਆਖਿਆ ਕਰਦੇ-''ਵੇਨ ਆਈ ਟੌਕ,ਹੀ ਟੌਕ, ਵਾਈ ਯੂ ਮਿਡਲ ਮਿਡਲ ਟੌਕ''..ਤੇ ਅਸੀਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ੀ ਸਮਝ ਜਾਇਆ ਕਰਦੇ ਸਾਂ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਕਹਿਣ ਦਾ ਮਤਲਬ ਹੈ ਕਿ ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਤੇ ਉਹ ਗੱਲਾਂ ਕਰ ਰਹੇ ਹਾਂ ਤਾਂ ਤੂੰ ਵਿਚਕਾਰ ਕਿਉਂ ਬੋਲਦਾ ਏ..।

ਪਰ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਇਹ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ ਡਾਕਟਰ ਕਿੱਥੋਂ ਦਾ ਪੜ੍ਹਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ਜਿਸ ਨੂੰ ਮੇਰੀ ਗੱਲ ਹੀ ਸਮਝ ਨਹੀਂ ਆ ਰਹੀ ਸੀ।
ਸਾਡੇ ਪਿੰਡ ਦੀ ਇਕ ਕੁੜੀ ਲੰਡਨ 'ਚ ਵਿਆਹੀ ਹੋਈ ਸੀ। ਇਕ ਵਾਰੀ ਉਸ ਦਾ ਮੁੰਡਾ ਥੋੜਾ ਢਿੱਲਾ ਪੈ ਗਿਆ। ਉਹ ਉਸ ਨੂੰ ਇਕ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ ਡਾਕਟਰ ਕੋਲ ਲੈ ਗਈ ਤੇ ਉਸ ਦੀ ਬੀਮਾਰੀ ਦੱਸਣ ਲੱਗੀ-''ਜੀ, ਨਾ ਤਾਂ ਏਹ ਈਟਦਾ, ਨਾ ਡਰਿੰਕਦਾ, ਬਸ ਵੀਪਦਾ ਈ ਵੀਪਦਾ।''

ਡਾਕਟਰ ਤੁਰਤ ਸਮਝ ਗਿਆ ਤੇ ਬੋਲਿਆ-''ਨੋ ਈਟਿੰਗ, ਨੋ ਡਰਿੰਕਿੰਗ, ਆਲਵੇਜ਼ ਵੀਪਿੰਗ''..ਤੇ ਉਸ ਚੈੱਕ ਕਰਕੇ ਦਵਾਈ ਦੇ ਦਿੱਤੀ।

ਮੈਂ ਲਗਭਗ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਪਰੈਸਟਨ ਵਿਖੇ ਡੈਰੀਬਨ ਲਾਈਬ੍ਰੇਰੀ ਵਿਚ ਜਾਇਆ ਕਰਦਾ ਸੀ। ਉੱਥੇ ਇਕ ਚੀਨੀ ਕੁੜੀ ਨਾਲ ਦੋਸਤੀ ਹੋ ਗਈ ਸੀ। ਕਿਸੇ ਕਾਰਨ ਮੈਂ 7-8 ਦਿਨ ਲਾਈਬ੍ਰੇਰੀ ਨਾ ਜਾ ਸਕਿਆ। ਜਦੋਂ ਗਿਆ ਤਾਂ ਉਹ ਚੀਨਣ ਮੈਨੂੰ ਵੇਖਦਿਆਂ ਸਾਰ ਹੀ ਬੋਲੀ-''ਲੌਂਗ ਟਾਈਮ, ਨੋ ਸੀ।'' ਪਹਿਲਾਂ ਤਾਂ ਮੇਰੇ ਕੁਝ ਪੱਲੇ ਨਾ ਪਿਆ ਪਰ ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਗਿਆਨੀ ਜੀ ਦੀ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਮੇਲ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਤੁਰਤ ਸਾਰੀ ਗੱਲ ਸਮਝ ਆ ਗਈ ਕਿ ਉਸ ਦੇ ਕਹਿਣ ਦਾ ਮਤਲਬ ਸੀ ਕਿ ਲੰਮੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਵਿਖਾਈ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ।'ਲੌਂਗ ਟਾਈਮ' ਯਾਨੀ ਲੰਮਾ ਸਮਾਂ ਅਤੇ 'ਨੋ ਸੀ,' ਨਹੀਂ ਵੇਖਿਆ।

ਇਕ ਦਿਨ ਪੁਲਿਸ ਵੱਲੋਂ ਫੋਨ ਆਇਆ ਸੀ। ਸਵੈਨਸਟਨ ਰੋਡ ਤੇ ਕਿਸੇ ਵਾਕਿਫ਼ ਦਾ ਐਕਸੀਡੈਂਟ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ। ਅਸੀਂ ਤਿੰਨ ਜਨੇ ਉੱਥੇ ਜਾ ਪੁੱਜੇ। ਇਕ ਗੋਰੀ ਕੌਪਸ (ਸਿਪਾਹੀ) ਉਸ ਤੋਂ ਪੁੱਛ ਗਿੱਛ ਕਰ ਰਹੀ ਸੀ ਕਿ ਉਸ ਨੇ ਕਿਵੇਂ ਐਕਸੀਡੈਂਟ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਪਰ ਸਾਡਾ ਐਮ.ਐਸ-ਸੀ. ਪਾਸ ਨੌਜਵਾਨ ਉਸ ਨੂੰ ਸਮਝਾ ਨਹੀਂ ਪਾ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਆਖਿਰਕਾਰ ਉਹ ਗੋਰੀ (ਸਿਪਾਹੀ) ਬੱਚਿਆਂ ਦੀਆਂ ਖੇਡਣ ਵਾਲੀਆਂ ਦੋ ਕਾਰਾਂ ਉਸ ਕੋਲ ਲੈ ਆਈ ਤੇ ਕਹਿਣ ਲੱਗੀ-''ਏਹ ਦੋ ਕਾਰਾਂ ਨੇ। ਸਮਝ ਲੈ ਇਕ ਤੇਰੀ ਟੈਕਸੀ ਹੈ ਤੇ ਦੂਜੀ ਜਿਸ ਨਾਲ ਤੂੰ ਐਕਸੀਡੈਂਟ ਕੀਤੈ। ਹੁਣ ਮੈਨੂੰ ਸਮਝਾ ਤੂੰ ਏਹ ਐਕਸੀਡੈਂਟ ਕਿਵੇਂ ਕੀਤਾ?''
ਮੁੰਡੇ ਨੇ ਜਿਵੇਂ ਤਿਵੇਂ ਸਮਝਾ ਦਿੱਤਾ।

ਆਖਿਰ ਉਹ ਗੋਰੀ ਸਿਪਾਹੀ ਬੋਲੀ-''ਵੇਖਣ ਨੂੰ ਤਾਂ ਤੂੰ ਪੜ੍ਹਿਆ ਲਿਖਿਆ ਸਾਊ ਜਿਹਾ ਬੰਦਾ ਜਾਪਦੈ। ਫੇਰ ਟੈਕਸੀ ਗਲਤ ਮੋੜ ਕੇ ਏਹ ਐਕਸੀਡੈਂਟ ਕਿਵੇਂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ?''

ਉਸ ਦੇ ਇੰਜ ਪੁੱਛਣ ਤੇ ਸਾਡੇ ਪੰਜਾਬੀ ਨੌਜਵਾਨ ਨੇ ਆਪਣੀ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ੀ ਦੇ ਤਾਂ ਜਿਵੇਂ ਫੱਟੇ ਚੁੱਕ ਸੁੱਟੇ-''ਮੀ ਟਾਇਰ, ਸਰਕਲਜ਼ ਇਨ ਹੈੱਡ।''
ਉਸ ਗੋਰੀ ਨੂੰ ਤਾਂ ਕੀ ਪੱਲੇ ਪੈਣਾ ਸੀ, ਪਹਿਲਾਂ ਤਾਂ ਸਾਡੇ ਵੀ ਉੱਪਰੋਂ ਦੀ ਲੰਘ ਗਈ। ਆਖਿਰ ਨਾਲ ਗਏ ਬੰਦੇ ਨੇ ਗੋਰੀ ਨੂੰ ਸਮਝਾਇਆ ਕਿ ਉਸ ਦੇ ਕਹਿਣ ਦਾ ਮਤਲਬ ਹੈ-''ਉਹ ਥੱਕਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ਤੇ ਉਸਦਾ ਸਿਰ ਚਕਰਾ ਰਿਹਾ ਸੀ'' ਤਾਂ ਉਹ ਗੋਰੀ ਵੀ ਮੁਸਕਰਾ ਪਈ।

ਇਕ ਸਾਡਾ ਇੰਜਨੀਅਰ ਵੀ ਐਥੇ ਆਕੇ ਸਕਯੋਰਟੀ ਯਾਨੀ ਚੌਕੀਦਾਰੀ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਇਕ ਵਾਰੀ ਉਹ ਸਾਡੇ ਨਾਲ ਸੜਕ ਤੇ ਤੁਰਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਉਸਦਾ ਵਾਕਿਫ਼ ਇਕ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ ਮਿਲ ਗਿਆ। ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਪੁੱਛਿਆ-''ਹਾਊ ਆਰ ਯੂ ਗੋਇੰਗ ਬਡੀ, ਯਾਨੀ ਕਿਵੇਂ ਗੁਜ਼ਰ ਰਹੀ ਏ ਦੋਸਤ?'' ਪਰ ਸਾਡੇ ਇੰਜਨੀਅਰ ਨੇ ਸਮਝ ਲਿਆ ਕਿ ਉਹ ਪੁੱਛ ਰਿਹਾ ਕਿ ਕੰਮ ਤੇ ਕਿਵੇਂ ਜਾਂਦੈ। ਉਸ ਤੁਰਤ ਆਖਿਆ, ''ਬਾਈ ਬਸ।''
ਉਸ ਦਾ ਜਵਾਬ ਸੁਣ ਕੇ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ ਤਾਂ ਜਿਵੇਂ ਡੌਰ-ਭੌਰ ਹੀ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ।

ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਮੈਨੂੰ ਏਹ ਗੱਲਾਂ ਕਿਉਂ ਚੇਤੇ ਆਉਣ ਲੱਗੀਆਂ। ਇਹ ਵੀ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਹੋਸਲਾ ਦੇ ਰਿਹਾ ਹੋਵਾਂ ਕਿ ਫਿਕਰ ਨਾ ਕਰ, ਤੂੰ ਇਹਨਾਂ ਨਾਲੋਂ ਫੇਰ ਵੀ ਚੰਗਾ ਹੈ। ਇਹ ਲੋਕ ਤਾਂ ਇੰਡੀਆ ਤੋਂ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ੀ ਦਾ ਟੈਸਟ ਆਈਲੈਟਸ ਪਾਸ ਕਰਕੇ ਐਥੇ ਆਏ ਹਨ। ਰੱਬ ਜਾਣੇ, ਇਹ ਟੈਸਟ ਕਿਵੇਂ ਪਾਸ ਕਰ ਲੈਂਦੇ ਹਨ।

...ਤੇ ਡਾਕਟਰ ਨੂੰ ਮੇਰੀ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ੀ ਦੀ ਸਮਝ ਨਹੀਂ ਪਈ ਜਾਪਦੀ ਸੀ। ਉਸ ਚੈੱਕਅੱਪ ਕਰਨ ਮਗਰੋਂ ਆਖਿਆ-''ਇੰਜ ਤਾਂ ਕੋਈ ਅੇਬਨਾਰਮੇਲਟੀ ਨਹੀਂ ਜਾਪਦੀ। ਮੈਂ ਏਹ ਟੈਸਟ ਲਿਖ ਦਿੱਤੇ ਨੇ। ਇਹਨਾਂ ਦੀ ਰਿਪੋਰਟ ਆਉਣ ਮਗਰੋਂ ਹੀ ਮੈਂ ਕੋਈ ਇਲਾਜ ਕਰ ਸਕਾਂਗਾ।''

ਪਰ ਘਰ ਨੂੰ ਵਾਪਸ ਆਉਂਦਿਆਂ ਮੈਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਵੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਠੰਢ ਮਹਿਸੂਸ ਹੋਣ ਲੱਗੀ ਸੀ। ਸ਼ਾਇਦ ਇਸ ਕਰਕੇ ਵੀ, ਕਿਉਂ ਕਿ ਡਾਕਟਰ ਨੇ 55 ਡਾਲਰ ਲੈ ਲਏ ਸਨ। ਮੇਰੇ ਆਖਣ ਤੇ ਕਿ ਇਹ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹਨ, ਉਸ ਸਪਸ਼ੱਟ ਕੀਤਾ ਸੀ-''ਵੀਹ ਮਿੰਟਾ ਤੱਕ 35 ਡਾਲਰ,ਤੇ ਵੀਹ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸਮਾਂ ਲੱਗਣ ਤੇ 55 ਡਾਲਰ। ਪਰ ਤੁਸੀਂ ਤਾਂ ..ਲੋੜੋਂ ਵੱਧ ਸਮਾਂ ਲੈ ਲਿਆ।'' ਡਾਕਟਰ ਜਿਵੇਂ 55 ਡਾਲਰ ਲੈ ਕੇ ਵੀ ਖੁਸ਼ ਨਹੀਂ ਜਾਪ ਰਿਹਾ ਸੀ।

ਮੈਂ ਸੋਚ ਰਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਜੇ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ੀ ਦੇ ਵਾਜ਼ਿਬ ਲਫ਼ਜ਼ ਸੁੱਝ ਜਾਂਦੇ ਤਾਂ ਇੰਜ ਰਗੜਾ ਤਾਂ ਨਾ ਲੱਗਦਾ। ਪਰ ਅਗਲੇ ਹੀ ਪਲ ਮਨ ਵਿਚ ਇਹ ਖਿਆਲ ਵੀ ਆ ਰਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਮੈਂ ਰਿਹਾ ਤਾਂ ਬਾਹਮਣ ਦਾ ਬਾਹਮਣ ਹੀ। ਏਸ ਨਾਲੋਂ ਤਾਂ ਚੰਗਾ ਹੁੰਦਾ 15-20 ਡਾਲਰਾਂ ਦੀ ਵਧੀਆ ਕਿਸਮ ਦੀ ਵਾਈਨ ਦੀ ਬੋਤਲ ਖਰੀਦ ਲੈਂਦਾ। ਦੋ ਚਾਰ ਘੁੱਟ ਅੰਦਰ ਜਾਂਦਿਆ ਸਾਰ ਹੀ ਠੰਢ ਵੀ ਦੂਰ ਹੋ ਜਾਣੀ ਸੀ, ਤੇ ਮਨ ਵਿਚ ਇਹ ਗਿਲਾ ਵੀ ਨਹੀਂ ਰਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਮਰਵਾ ਦਿੱਤਾ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ੀ ਨੇ। ਕਿਉਂਕਿ ਦੋ ਘੁੱਟ ਲਾਉਣ ਮਗਰੋਂ ਤਾਂ ਅਨਪੜ੍ਹ ਬੰਦਾ ਵੀ ਅੰਗ੍ਰੇਜ਼ੀ ਬੋਲਣ ਲੱਗਦਾ ਐ, ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਤਾਂ ਸੁੱਖ ਨਾਲ ਫੇਰ ਵੀ ਕਈ ਵੱਡੀਆਂ-ਵੱਡੀਆਂ ਡਿਗਰੀਆਂ ਹਨ

ਵਿਅੰਗ ਮੈਂ ਵਿਕਾਊ ਹਾਂ -ਹਰਬੀਰ ਸਿੰਘ ਭੰਵਰ-

ਮੈਂ ਵਿਕਾਊ ਹਾਂ। ਮੇਰਾ ਕੋਈ ਸਿਧਾਂਤ ਨਹੀਂ ਹੈ , ਕੋਈ ਅਸੂਲ ਨਹੀਂ ਹੈ, ਕੋਈ ਜਮੀਰ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਬਸ ਮੈਂ ਤਾਂ ਚੌਧਰ ਦਾ ਭੁੱਖਾ ਹਾਂ, ਸੱਤਾਧਾਰੀ ਪਾਰਟੀ ਤੇ ਕੁਰਸੀ ਦੇ ਨੇੜੇ ਰਹਿਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ, ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਚਾਰ ਪੈਸੇ ਜੇਬ ਵਿਚ ਪਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ। ਮੈਂ ਆਪਣੀ ਕੀਮਤ ਵੀ ਖੁੱਦ ਹੀ ਨਿਸਚਿਤ ਕਰ ਲਈ ਹੈ, ਖਰੀਦਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹੋ ਤਾਂ ਖਰੀਦ ਲਓ।

ਮੈਂ ਇਕ ਰਾਜਸੀ ਨੇਤਾ ਹਾਂ। ਰੱਬ ਦਾ ਸ਼ੁਕਰ ਹੈ ਕਿ ਧੰਨ ਦੌਲਤ ਦੀ ਕੋਈ ਕਮੀ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਤਿੜਕਮਬਾਜ਼ੀ ਕਰਕੇ ਗੈਸ ਏਜੰਸੀ, ਪੈਟਰੋਲ ਪੰਪ, ਬੱਸ ਜਾਂ ਟਰੱਕ ਦਾ ਪਰਮਿਟ, ਕੋਈ ਡੀਪੂ ਆਦਿ ਲੈਣ ਲਈ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦਾ ਰਿਹਾਂ, ਕੁਝ ਨਾ ਕੁਝ ਮਿਲ ਹੀ ਜਾਂਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਆਪਣੀ ਪਾਰਟੀ ਲਈ ਫੰਡ ਇਕੱਠਾ ਕਰ ਕੇ ਗਾਹੇ ਬਗਾਹੇ ਦਿੰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹਾਂ। ਪਿਛਲੀਆਂ ਚੋਣਾ ਸਮੇਂ ਆਪਣੀ ਪਾਰਟੀ ਨੂੰ ਚੋਖਾ ਤਕੜਾ ਫੰਡ ਦਿੱਤਾ, ਜਿਸ ਚੋਂ ਆਪਾਂ ਵੀ ਆਪਣਾ ਹਿੱਸਾ ਰਖ ਲਿਆ ਸੀ। ਇਸ ਮਾਇਕ ਸੇਵਾ ਸਦਕਾ ਯਾਰਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਟਿਕਟ ਮਿਲ ਗਈ। ਚੋਣਾਂ ਸਮੇਂ ਹਵਾ ਸਾਡੀ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿਚ ਚੱਲ ਰਹੀ ਸੀ, ਜਿਸ ਦਾ ਕਾਰਨ ਮਹਾਤੜ ਵੀ ਜਿੱਤ ਕੇ ਆਪਣੇ ਹਲਕੇ ਤੋਂ ਸੁਬੇ ਦੀ ਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਦੇ ਮੈਂਬਰ ਬਣ ਗਏ। ਸਿਆਸਤ ਵਿਚ ਮੇਰਾ ਕੋਈ ''ਗਾਡ ਫਾਦਰ'' ਨਹੀਂ ਹੈ, ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਮੰਤਰੀ ਨਾ ਬਣ ਸਕਿਆ। ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਦੀ ਚਮਚਾਗਿਰੀ ਵਿਚ ਕੋਈ ਕਸਰ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਛੱਡੀ ਸੀ ਪਰ ਮੈਥੋਂ ਵੀ ਕਈ ਵੱਡੇ ਅਤੇ ਪੁਰਾਣੇ ''ਚਮਚੇ'' ਬੈਠੇ ਸਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਦਾਅ ਲੱਗ ਗਿਆ। ਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਵਿਚ ਸਾਡੀ ਪਾਰਟੀ ਨੂੰ ਇਤਨੀ ਜਿਆਦਾ ਬਹੁ-ਗਿਣਤੀ ਹੈ ਕਿ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਮੇਰੇ ਵਰਗੇ ਐਮ.ਐਲ.ਏ. ਦੀ ਉਕਾ ਹੀ ਪ੍ਰਵਾਹ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਸਨ। ਕਿਸੇ ਨਿੱਕੇ ਮੋਟੇ ਕੰਮ ਲਈ ਵੀ ਮੰਤਰੀਆਂ ਦੇ ਤਰਲੇ ਕਰਨੇ ਪੈਂਦੇ ਸਨ।

ਪਿਛਲੇ ਕੁਝ ਦਿਨਾਂ ਤੋਂ ਸਾਡੀ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਇਕ ਬਜ਼ੁਰਗ ਨੇਤਾ ਝੰਡਾ ਸਿੰਘ ਜੋ ਖੁਦ ਵੀ ਇਕ ਮੰਤਰੀ ਹਨ, ਨੇ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਵਿਰੁੱਧ ਬਗਾਵਤ ਦਾ ਝੰਡਾ ਚੁਕ ਲਿਆ ਅਤੇ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਹੈ ਕਿ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਨੂੰ ਬਦਲਿਆ ਜਾਏ। ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਜੀ ਦਾਅਵਾ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ ਕਿ ਵਿਧਾਇਕਾਂ ਦੀ ਬਹੁ-ਗਿਣਤੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਹੈ, ਜਦੋਂ ਕਿ ਝੰਡਾ ਸਿੰਘ ਵੀ ਜਵਾਬੀ ਦਾਅਵਾ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ, ਕਿ ਬਹੁਤੇ ਵਿਧਾਇਕ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਖੜੇ ਹਨ। ਸਾਡੀ ਪਾਰਟੀ ਦੀ ਹਾਈ-ਕਮਾਂਡ ਹਾਲੇ ਚੁੱਪ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਖਿਆਲ ਹੈ ਕਿ ਦੱਧ ਦੇ ਉਬਾਲ ਵਾਂਗ ਛੇਤੀ ਹੀ ਸ਼ੁਭ ਕੁਝ ਸ਼ਾਂਤ ਹੋ ਜਾਏਗਾ। ਸੱਚੀ ਗੱਲ ਤਾਂ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਹਾਈ ਕਮਾਂਡ ਵੀ ਵੰਡੀ ਹੋਈ ਹੈ। ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਅਤੇ ਝੰਡਾ ਸਿੰਘ ਦੋਨਾਂ ਦੇ ਹੀ ਉਥੇ ''ਗਾਡ ਫਾਦਰ'' ਬੈਠੇ ਹਨ।

ਮੇਰੇ ਵਰਗੇ ਅਣਗੌਲੇ ਵਿਧਾਇਕਾਂ ਲਈ ਦੋਨੋ ਲੀਡਰਾਂ ਦੀ ਆਪਣੀ ਲੜਾਈ ਬੜੀ ਲਾਹੇਬੰਦ ਸਿੱਧ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ, ਹੁਣ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰੀ ਸਾਡੀ ਪੁਛ ਗਿਛ ਹੋਣ ਲਗੀ ਹੈ।ਅਜੇਹੀ ਹਾਲਤ ਵਿਚ ਹੁਣ ਦੋਨੋ ਧੜੇ ਅਪਣੇ ਅਪਣੇ ਵਲ ਖਿੱਚਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ ਅਤੇ ਸਬਜ਼ ਬਾਗ਼ ਦਿਖਾ ਰਹੇ ਹਨ। ਮੈਂ ਹਾਲੇ ਕਿਸੇ ਨੰ ਹਾਮੀ ਨਹੀਂ ਭਰੀ, ਹਾਲਾਤ ਦਾ ਜਾਇਜ਼ਾ ਲੈ ਰਿਹਾ ਹਾਂ, ਜਿਹੜਾ ਪਲੜਾ ਭਾਰੀ ਲਗੇ ਗਾ,ਆਪਾਂ ਟਪੂਸੀ ਮਾਰ ਕੇ ਉਧਰ ਜਾ ਖੜਾਂ ਗੇ। ਮੁਖ ਮੰਤਰੀ ਨੇ ਜੇ ਮੈਨੂੰ ਵੀ ਝੰਡੀ ਵਾਲੀ ਕਾਰ ਜਾਂ ਕਿਸੇ ਨਿਗਮ ਜਾਂ ਬੋਰਡ ਦਾ ਚੇਅਰਮੈਨ ਬਣਾ ਦਿਤਾ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਖੜਾਂ ਗਾ, ਨਹੀਂ ਤਾ ਬਾਗ਼ੀ ਧੜੇ ਨਾਲ ਯਾਰੀ ਨਿਭਾਵਾਂ ਗਾ।ਇਸ ਸਮੇਂ ਤਾਂ ਯਾਰਾਂ ਦੇ ਦੋਨੋ ਹੱਥ ਲੱਡੂ ਹਨ।

ਮੈਂ ਇਕ ਬੁਧੀਜੀਵੀ ਹਾਂ। ਰੱਬ ਦੀ ਮਿਹਰ ਨਾਲ ਚੰਗਾ ਨਾਂਅ ਹੈ। ਸਾਡੀ ਸਿਆਸੀ ਪਾਰਟੀ ਦੀਆਂ ਤਿੰਨ ਚਾਰ ਬੁਧੀਜੀਵੀ ਕੌਂਸਲਾਂ ਹਨ, ਜੋ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਇਕ ਲੀਡਰ ਨਾਲ ਜੁੜੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਹਨ। ਸਾਡੇ ਮੁਖ ਮੰਤਰੀ, ਜੋ ਪਾਰਟੀ ਪ੍ਰਧਾਨ ਵੀ ਹਨ, ਤੇ ਬਜ਼ੁਰਗ ਨੇਤਾ ਝੰਡਾ ਸਿੰਘ ਵਿਚ ਪਿਛਲੇ ਕੁਝ ਦਿਨਾਂ ਤੋਂ '' ਸੁਪਰਮੇਸੀ'' ਲਈ ਰੇੜਕਾ ਚਲ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਸਾਰੇ ਬੁਧੀਜੀਵੀ ਵੀ ਵੰਡੇ ਹੋਏ ਹਨ, ਕੋਈ ਮੁਖ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿਚ ਬਿਆਨ ਦਾਗ਼ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਕੋਈ ਝੰਡਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿਚ। ਮੈਂ ਤਾਂ ਹਾਲੇ ਰੰਗ ਢੰਗ ਰੇਖ ਰਿਹਾ ਹਾਂ, ਵੈਸੇ ਅੱਖ ਮਟੱਕਾ ਦੋਨਾਂ ਨਾਲ ਚਲ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਪੇਸ਼ੇ ਵਜੋਂ ਮੈਂ ਇਕ ਪ੍ਰਾਈਵੇਟ ਕਾਲਜ ਵਿਚ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਦੇ ਤੌਰ 'ਤੇ ਕੰਮ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹਾਂ। ਸਾਡੇ ਸੂਬੇ ਵਿਚ ਇਕ ਦਰਜਨ ਦੇ ਕਰੀਬ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ ਹਨ। ਮੁਖ ਮੰਤਰੀ ਕਿਸੇ ਯੁਨੀਵਰਸਿਟੀ ਦਾ ਵਾਈਸ-ਚਾਂਸਲਰ ਜਾਂ ਪ੍ਰੋ-ਵਾਈਸ-ਚਾਂਸਲਰ ਬਣਾ ਦੇਣ, ਜੋ ਮਰਜ਼ੀ ਹੈ ਬਿਆਨ ਦਿਲਵਾ ਲੈਣ, ਕੋਰੇ ਕਾਗ਼ਜ਼ ਤੇ ਹਸਤਾਖਰ ਕਰ ਕੇ ਦੇਣ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਹਾਂ। ਨਹੀਂ ਥਾ ਝੰਡਾ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਹੀ ਯਾਰੀ ਨਿਭਾਵਾਂਗੇ।

ਮੈਂ ਇਕ ਪੱਤਰਕਾਰ ਹਾ।ਦਰਅਸਲ ਪੱਤਰਕਾਰੀ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਸਬੱਬ ਨਾਲ ਹੀ ਆ ਗਿਆ, ਪੜ੍ਹ ਲਿਖ ਕੇ ਬੜੇ ਯਤਨ ਕੀਤੇ, ਕਿਤੇ ਨੌਕਰੀ ਨਹੀਂ ਮਿਲੀ। ਦੇਖਿਆ ਕਿ ਪੱਤਰਕਾਰਾਂ ਦੀ ਬੜੀ ਟੌਹਰ ਹੈ, ਸਰਕਾਰੇ ਦਰਬਾਰੇ ਉਨ੍ਹਾ ਦੀ ਕਦਰ ਹੈ, ਵੱਡੇ ਵੱਡੇ ਅਫਸਰਾਂ ਦੁ ਦਫਤਰਾਂ ਵਿਚ ਸਿੱਧੇ ਜਾ ਵੜਦੇ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾ ਦੇ ਸਾਰੇ ਕੰਮ ਮਿੰਟਾਂ ਸਕਿੰਟਾਂ ਵਿਚ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਇਹ ਵੀ ਦੇਖਿਆ ਐਰਾ ਗੈਰਾ ਨੱਥੂ ਖਰਾ ਪੱਤਰਕਾਰ ਬਣਿਆ ਫਿਰਦਾ ਹੈ, ਨਾ ਡਾਕਟਰਾਂ ਤੇ ਵਕੀਲਾਂ ਵਾਗ ਕਿਸੇ ਵਿਸ਼ੇਸ ਸਿਖਿਆ ਤੇ ਟਰੇਨਿੰਗ ਦੀ ਲੋੜ। ਇਕ ਛੋਟੇ ਜਿਹੇ ਅਖ਼ਬਾਰ ਦਾ ਪੱਤਰ ਪ੍ਰੇਰਕ ਘਸੀਟਾ ਸਿੰਹੁ ਮੇਰੇ ਨਾਲੋਂ ਵੀ ਪੜ੍ਹਣ ਲਿਖਣ ਨੂੰ ਢਿੱਲਾ ਸੀ, ਪਰ ਅਜ ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਕੁਲਦੀਪ ਨਈਅਰ ਜਾਂ ਖੁਸ਼ਵੰਤ ਸਿੰਘ ਵਰਗਾ ਵੱਡਾ ਪੱਤਰਕਾਰ ਸਮਝ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਬਸ ਕਿਸੇ ਪੱਤਰਕਾਰ ਪਾਸ ਚਾਰ ਦਿਨ ਬੈਠੇ , ਪੱਤਰਕਾਰੀ ਆ ਗਈ, ਮੈਂ ਵੀ ਉਸ ਪਾਸ ਚਾਰ ਦਿਨ ''ਟਰੇਨਿੰਗ'' ਲੈ ਕੇ ਉਸ ਨਾਲ ਪੱਤਰਕਾਰ ਬਣ ਗਿਆ ਹਾਂ। ਹੁਣ ਮਿੱਤਰਾਂ ਦੀ ਵੀ ਚਾਂਦੀ ਹੈ, ਸਾਰੇ ਲੀਡਰ ਆਪਣੇ ਯਾਰ ਬਣੇ ਹੋਏ ਹਨ, ਕੋਈ ਕੰਮ ਰੁਕਦਾ ਨਹੀਂ। ਲੀਡਰਾਂ ਨੂੰ ਬਲੈਕ-ਮੇਲ ਵੀ ਦੱਬ ਕੇ ਕਰੀਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਤੇ ਆਪਣੇ ਯਾਰਾਂ ਮਿੱਤਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮ ਵੀ ਕਰਵਾਈਦੇ ਹਨ, ਇਸ ਨਾਲ ਵੀ ਮੈਨੂੰ ਚਾਰ ਪੈਸੇ ਬਣ ਜਾਂਦੇ ਹਨ।

ਜੀ ਹਾਂ, ਮੈਂ ਇਕ ਅਖ਼ਬਾਰ ਦਾ ਮਾਲਕ ਵੀ ਹਾਂ ਤੇ ਮੁਕ-ਸੰਪਾਦਕ ਵੀ। ਆਪਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰੈਸ ਦੇ ਨਿਯਮਾਂ, ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਤੇ ਨੈਤਿਕ ਕਦਰਾਂ ਕੀਮਤਾਂ ਦੀ ਕੋਈ ਪਰਵਾਹ ਨਹੀਂ। ਅਖ਼ਬਾਰ ਵਾਸਤੇ ਇਸ਼ਤਿਹਰ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਲਈ ਕਿਸੇ ਵੀ ਸਰਕਾਰੀ ਜਾਂ ਗੈਰ-ਸਰਕਾਰੀ ਅਦਾਰੇ, ਸਨਅਤੀ ਅਦਾਰੇ, ਰਾਜਸੀ ਜਾਂ ਧਾਰਮਿਕ ਨੇਤਾ, ਕਿਸੇ ਅਧਿਖਾਰੀ ਆਦਿ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿਚ ਜਾਂ ਵਿਰੋਧ ਵਿਚ ਕੋਈ ਵੀ ਖ਼ਬਰ ਜਾਂ ਤਸਵੀਰ ਲਗਵਾ ਸਕਦਾ ਹਾਂ, ਭਾਵੇਂ ਇਸ ਨਾਲ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਗਿੰਸਾ ਭੜਕ ਉਠੇ, ਬੱਸ ਮੇਰੇ ਅਖ਼ਬਾਰ ਦੀ ਸਰਕੂਲੇਸ਼ਨ ਵੱਧਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਤੇ ਇਸ਼ਤਿਹਾਰ ਮਿਲਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਰੁਧ ਖ਼ਬਰ ਆਈ ਹੋਵੇ,ਤਾਂ ਇਸ਼ਤਿਹਾਰ ਜਾਂ ਪੈਸੇ ਲੈ ਕੇ ਰੁਕਵਾ ਸਕਦਾ ਹਾਂ।

ਇਹ ਜਿਹੜਾ ਸਾਡੇ ਮੁਖ ਮੰਤਰੀ ਤੇ ਝੰਡਾ ਸਿੰਘ ਵਿਚਕਾਰ ''ਸੁਪਰਮੇਸੀ'' ਲਈ ਸੀਤ ਯੁਧ ਚਲ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਦੋਨੋ ਧੜੇ ਮੇਰੇ ਪਾਸ ਖਬਰਾਂ ਲਗਵਾਉਣ ਲਈ ਦੌੜੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਮੈਂ ਕਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਆਪਣੀ ਕਲਮ ਤਾਂ ਵਿਕਾਊ ਹੈ,ਜੋ ਮਰਜ਼ੀ ਹੈ, ਖਬਰ ਲਿਖਵਾ ਲਓ। ਕਿਸੇ ਨੇ ਕੋਈ ਖਬਰ ਲਗਵਾਉਣੀ ਹੋਵੇ, ਆਪਾਂ ਵਿਸਕੀ ਦੀ ਬੋਤਲ ਤੇ ਪੈਸੇ ਪਹਿਲਾਂ ਧਰਾ ਲਈਦੇ ਹਨ, ਜਿੰਨਾ ਗੁੜ ਉਤਨਾ ਹੀ ਮਿੱਠਾ, ਮੈਂ ਇਸ ਵਿਚ ਸ਼ਰਮ ਵਾਲੀ ਕੋਈ ਗਲ ਨਹੀਂ ਸਮਝਦਾ, ਮੇਰੇ ਕਿਹੜਾ ਹਲ ਚਲਦੇ ਹਨ, ਆਖਰ ਪੈਸੇ ਦੀ ਮੈਨੂੰ ਵੀ ਲੋੜ ਹੈ। ਮੁਖ ਮੰਰੀ ਵਲੋਂ ਆਪਣੇ ਹੱਕ ਵਿਚ ਖਬਰਾਂ ਲਗਵਾਉਣ ਲਈ ਜ਼ਿਆਦਾ ਦਬਾਓ ਪੈ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਮੈਂ ਉਨ੍ਹਾ ਦੇ ਚਮਚਿਆਂ ਨੂੰ ਕਹਿ ਦਿਤਾ ਹੈ ਕਿ ਭਾਵੇਂ ਮੇਰੇ ਬਾਜ਼ੀ ਨੇਤਾ ਝੰਡਾ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਵੀ ਚੰਗੇ ਸਬੰਦ ਹਨ ਪਰ ਮੁਖ ਮੰਤਰੀ ਜੀ ਮੈਨੂੰ ਰਾਜ ਸਭਾ ਵਿਚ ਭਿਜਵਾਉਣ ਦਾ ਵਾਂਅਦਾ ਕਰ ਲੈਣ ਜਾਂ ਪਬਲਿਕ ਸਰਵਿਸਜ਼ ਕਮਿਸ਼ਨ ਦਾ ਛਵੀ ਮਿੱਧੂ ਵਾਂਗ ਚੇਅਰਮੈਨ ਬਣਾ ਦੇਣ, ਮੈਥੋਂ ਜੋ ਮਰਜ਼ੀ ਹੈ ਲਿਖਵਾ ਲੈਣ, ਆਪਾਂ ਝੰਡਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪੱਤਰੇ ਉਡਾ ਦੇਵਾਂ ਗੇ, ਮੇਰਾ ਕਿਹੜਾ ਉਹ ਮਾਸੀ ਦਾ ਪੁੱਤ ਹੈ।ਜੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਹਾਮੀ ਨਾ ਭਰੀ ਤਾਂ ਆਪਾਂ ਝੰਡਾ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਾਥ ਦਿਆਂ ਗੇ ਅਤੇ ਮੁਖ ਮੰਤਰੀ ਨੂੰ ਦਿਨੇ ਹੀ ਤਾਰੇ ਦਿਖਾ ਦਿਆਂ ਗੇ।

ਮੈਂ ਇਕ ਵਕੀਲ ਹਾਂ, ਮੇਰਾ ਕੰਮ ਆਪਣੇ ਸਾਇਲ ਦੇ ਕੇਸ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਲਈ ਸਾਰਾ ਜ਼ੋਰ ਲਗਾਉਣਾ ਹੈ, ਅਦਾਲਤ ਵਿਚ ਝੂਠ ਨੂੰ ਸੱਚ ਅਤੇ ਸੱਚ ਨੂੰ ਝੂਠ ਬਣਾ ਕੇ ਪੇਸ਼ ਕਰਨਾ ਹੈ। ਆਪਾਂ ਨੂੰ ਤਾਂ ਪੈਸੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ, ਭਾਵੇ ਕਿਸੇ ਕਾਤਲ ਜਾਂ ਕੱਤਲ ਹੋਏ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ, ਕਿਸੇ ਲੁਟੇ ਗਏ ਵਿਅਕਤੀ ਜਾਂ ਡਾਕੂ ਦਾ ਬਲਾਤਕਾਰ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਕੋਈ ਮਜ਼ਲੂਮ ਔਰਤ ਜਾਂ ਬਲਾਤਕਾਰੀ, ਕੋਈ ਦੇਵਤੇ ਵਰਗਾ ਵਿਅਕਤੀ ਜਾਂ ਸ਼ੈਤਾਨ ,ਕੋਈ ਸ੍ਰੀਫ ਮਾਲਕ ਮਕਾਨ ਜਾਂ ਮੱਕਾਰ ਕਿਰਾਏਦਾਰ, ਕੋਈ ਦੇਸ਼ ਭਗਤ ਜਾਂ ਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਗੱਦਾਰੀ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਦਾ ਵੀ ਕੇਸ ਹੋਵੇ, ਆਪਾਂ ਮੋਟੀ ਤਕੜੀ ਰਕਮ ਚਾਹੀਦੀ ਹੇ, ਉਹ ਲੈ ਕੇ ਕੇਸ ਲੜਾਂ ਗੇ। ਕਿਤੇ ਕੋਰਟ ਵਿਚ ਮੁਕੱਦਮਾ ਲੜ ਰਹੀਆਂ ਦਾ ਸਮਝੌਤਾ ਹੋਣ ਲਗੇ, ਆਪਾਂ ਹੋਣ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦੇ, ਜੇ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਮਝੌਤੇ ਹੋਣ ਲਗੇ, ਤਾਂ ਸਾਨੂੰ ਕੌਣ ਪੁਛੇ ਗਾ ? ਅਪਣੀ ਕੋਈ ਜ਼ਮੀਰ ਨਹੀਂ, ਕੋਈ ਸਿਧਾਂਤ ਨਹੀਂ, ਬਸ ਪੈਸਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਮੈਂ ਤਾਂ ਪੈਸੇ ਲੈ ਕੇ ਆਪਣੇ ਸਾਇਲ ਨਾਲ ਉਸਦੀ ਵਕਾਲਤ ਕਰਨ ਲਈ ਧਰਮ-ਰਾਜ ਦੀ ਅਦਾਲਤ ਵਿਚ ਜਾਣ ਲਈ ਵੀ ਤਿਆਰ ਹਾਂ।

ਜੀ ਹਾਂ, ਮੈਂ ਵਿਕਾਊ ਹਾਂ। ਆਪਣੀ ਕੀਮਤ ਆਪ ਹੀ ਮਿੱਥ ਕੇ ਅਤੇ ਸੀਸ ਹਥੇਲੀ 'ਤੇ ਰਖ ਰਖ ਕੇ ਵਿੱਕਣ ਲਈ ਤੁਰ ਪਿਆ ਹਾਂ, ਖਰੀਦਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹੋ ਤਾਂ ਖਰੀਦ ਲਓ।

जानिए पूरा बोफोर्स घोटाला

बोफोर्स घोटाले ने राजनीतिक पारा चढ़ा दिया है। प्रमुख विपक्षी दल को भ्रष्टाचार पर चल रहे महाभारत में एक और बाण चलाने का मौका हाथ लग गया है। आयकर अपीलीय ट्रिब्यूनल ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि इस मामले में स्वर्गीय विन चड्ढा और इटली के व्यापारी ओत्तावियो क्वात्रोच्चि को 41 करोड़ रुपए की दलाली दी गई थी। लिहाजा, इस आय पर भारत में कर चुकाना उनका या वारिस का दायित्व बनता है। जबकी आज दिल्ली हाईकोर्ट में सीबीआई की क्वात्रोच्चि के खिलाफ आपराधिक मामलों को निरस्त किए जाने की अर्जी पर सुनवाई है। आइए हम आपको बताते है क्या है कहानी बोफोर्स घोटाले की....



क्या थी बोफोर्स डील ?

24 मार्च 1986: भारत सरकार और स्वीडन की हथियार बनाने वाली कंपनी एबी बोफोर्स के बीच 155mm की 400 होवित्जर फील्ड गन की आपूर्ति के लिए 15 अरब अमेरिकी डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट।

बोफोर्स तोप दलाली मामले में कब हुआ खुलासा ?

सन् 1987 में यह बात सामने आयी थी कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिये 80 लाख डालर की दलाली चुकायी थी। उस समय केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी, जिसके प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। स्वीडन की रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इसका खुलासा किया। इसे ही बोफोर्स घोटाला या बोफोर्स काण्ड के नाम से जाना जाता है।

किन पर लगा आरोप ?

सीबीआई ने विन चड्ढा, क्वात्रोची, पूर्व रक्षा सचिव एसके भटनागर और बोफोर्स के पूर्व प्रमुख मार्टिन अर्बदो के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी।

किसने की जांच ?

6 अगस्त 1987 – मामले की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन। 30 जनवरी 1997 – सीबीआई ने जांच के लिए विशेष जांच दल का गठन किया।

सरकार की साख और सीबीआई पर उठा सवाल

20 अप्रैल 1987: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लोकसभा को आश्वस्त किया कि बोफोर्स मामले में कोई बिचौलिया नहीं था और किसी को कोई दलाली नहीं दी गई।

घोटाले के खुलासे का असर यह हुआ कि 1989 में कांग्रेस की सरकार को हार का मुंह देखना पड़ा । काफी समय तक राजीव गांधी का नाम भी इस मामले के अभियुक्तों की सूची में शामिल रहा लेकिन उनकी मौत के बाद नाम फाइल से हटा दिया गया। सीबीआई को इस मामले की जांच सौंपी गयी लेकिन सरकारें बदलने पर सीबीआई की जांच की दिशा भी लगातार बदलती रही। एक दौर था, जब जोगिन्दर सिंह सीबीआई चीफ थे तो एजेंसी स्वीडन से महत्वपूर्ण दस्तावेज लाने में सफल हो गयी थी। जोगिन्दर सिंह ने तब दावा किया था कि केस सुलझा लिया गया है। बस, देरी है तो क्वात्रोक्की को प्रत्यर्पण कर भारत लाकर अदालत में पेश करने की। उनके हटने के बाद सीबीआई की चाल ही बदल गयी। इस बीच कई ऐसे दांवपेंच खेले गये कि क्वात्रोक्की को राहत मिलती गयी। दिल्ली की एक अदालत ने हिंदुजा बंधुओं को रिहा किया तो सीबीआई ने लंदन की अदालत से कह दिया कि क्वात्रोक्की के खिलाफ कोई सबूत ही नहीं हैं। अदालत ने क्वात्रोक्की के सील खातों को खोलने के आदेश जारी कर दिये। नतीजतन क्वात्रोक्की ने रातों-रात उन खातों से पैसा निकाल लिया।

2007 में रेड कार्नर नोटिस के बल पर ही क्वात्रोक्की को अर्जेन्टिना पुलिस ने गिरफ्तार किया। वह बीस-पच्चीस दिन तक पुलिस की हिरासत में रहा। सीबीआई ने काफी समय बाद इसका खुलासा किया। सीबीआई ने उसके प्रत्यर्पण के लिए वहां की कोर्ट में काफी देर से अर्जी दाखिल की। तकनीकी आधार पर उस अर्जी को खारिज कर दिया गया, लेकिन सीबीआई ने उसके खिलाफ वहां की ऊंची अदालत में जाना मुनासिब नहीं समझा। नतीजतन क्वात्रोक्की जमानत पर रिहा होकर अपने देश इटली चला गया। 31 दिसंबर 2005 सीबीआई ने माना कि उन्हें क्वात्रोची के लंदन के दो बैंक एकाउंट की रकम और बोफोर्स की रिश्वत का कोई संबंध नहीं मिला।

एक तरफ सीबीआई ने क्वात्रोक्की को बोफोर्स मामले में दलाली खाने के मामले में क्लीन चिट दे दी है। तो दूसरे तरफ आयकर ट्रिब्यूनल कुछ और ही कहानी बयां कर रहा है।

गुजरात में 10 साल पहले भूकंप से मची थी भारी तबाही, भूकंप की कुछ प्रमुख घटनाएं

नई दिल्‍ली. पाकिस्‍तान के उत्‍तर पश्चिम इलाके में कल देर रात आए भीषण भूकंप ने भारत समेत एशिया के कई देशों को हिलाकर रख दिया है। भूकंप आज भी ऐसा प्रलय माना जाता है जिसे रोकने या काफी समय पहले सूचना देने की कोई प्रणाली वैज्ञानिकों के पास नहीं है। प्रकृति के इस तांडव के आगे सभी बेबश हो जाते हैं। सामने होता है तो बस तबाही का ऐसा मंजर जिससे उबरना आसान नहीं होता है।

क्वेटा का इतिहास भी वर्ष 1935 में एक ऐसा भूकंप देख चुका है जिसने क्वेटा को लगभग पूरी तरह से तबाह कर दिया था। वर्ष 1935 में आए भूकंप में 30 हजार से ज्‍यादा लोगों की मौत हो गई थी। लेकिन भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील पाकिस्तान और भारत के उत्तरी हिस्सों में इस चुनौती से निपटने की तैयारियों को लेकर हमेशा चिंता व्यक्त की जाती रही है।कई विश्लेषकों और संगठनों का मानना है कि सरकारों का रुख आपदाओं से निपटने के प्रति बेहद गंभीरता लिए हुए नहीं रहा है।

आइए डालते हैं देश और दुनिया में आए कुछ भीषण भूकंप पर एक नजर...

12 जनवरी 2010: कैरेबियाई देश हैती में आए शक्तिशाली भूकंप में एक लाख से अधिक लोगों की मौत। रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता 7.3 आंकी गई थी।

अक्‍टूबर 2009: इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप में आए भूकंप में 500 से अधिक लोग मारे गए।

02 फरवरी 2008 : चीन के सिचुआन प्रांत में आए भूकंप से हुई भारी तबाही में करीब 15 हजार लोग मारे गए और हजारों जख्‍मी हुए।

27 मई, 2006 : इंडोनेशिया के जकार्ता में आए भूकंप में छह हजार लोग मारे गए और 15 लाख बेघर हो गए।

08 अक्तूबर, 2005 : पाकिस्तान में 7.6 तीव्रता वाला भीषण भूकंप आया जिसमें करीब 75 हजार लोग मारे गए। करीब 35 लाख लोग बेघर हुए। इस भूकंप के झटके भारत में भी महसूस किए गए।

26 जनवरी 2001: भारत के गुजरात में रिक्टर पैमाने पर 7.9 तीव्रता का एक शक्तिशाली भूकंप आया। इसमें कम से कम 30 हजार लोग मारे गए और करीब 10 लाख लोग बेघर हो गए। भुज और अहमदाबाद पर भूकंप का सबसे अधिक असर पड़ा।

29 मार्च 1999: भारत के उत्तरकाशी और चमोली में दो भूकंप आए और इनमें 100 से अधिक लोग मारे गए।

30 सितंबर 1993: भारत के पश्चिमी और दक्षिणी हिस्सों में आए भूकंपों में क़रीब दस हजार लोगों की मृत्यु हो गई।

घोटालों का आदर्श

साठ साल के गणतंत्र में जब कानून का आदर्श कायम होना चाहिए था, तब घोटालों का आदर्श कायम होना बेचैन कर देता है। इस बेचैनी के बीच पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश का 31 मंजिला आदर्श सोसायटी को ढहाने का आदेश एक आश्वस्ति भी है। जयराम रमेश का आदेश यह उम्मीद जगाता है कि यूपीए सरकार के मंत्रिमंडल में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो ठोस कार्रवाई की हिम्मत रखते हैं। समुद्रतटीय और इमारत संबंधी कानूनों को ठेंगा दिखाते हुए बनी इस इमारत के भीतर राजनीति व नौकरशाही की भ्रष्ट महत्वाकांक्षाओं की दुरभिसंधि है। इसीलिए इसमें रहने वालों को उम्मीद थी कि जब मुख्यमंत्री के रिश्तेदार तक मौजूद हैं तो किसकी हिम्मत है कि कानूनों को ताक पर रखकर उसे मंजूरी न दे।

उनके इसी भ्रष्ट आत्मविश्वास ने उन कम शक्तिशाली लोगों को भी झांसे में ले लिया, जिन्होंने रिटायर होने के बाद अपनी सारी कमाई इस सोसायटी में लगा दी थी। जाहिर है अब वहां गेहूं के साथ घुनों के भी पिसने की स्थिति पैदा हो गई है। इन विडंबनाओं के बावजूद उम्मीद इस बात से बनती है कि देश में अभी भी ऐसे लोग हैं, जो कुछ आदर्श कायम करने के लिए लड़ रहे हैं। सूचना अधिकार कानून ने उन्हें ताकत दी है और एनएपीएम से जुड़े सिमप्रीत सिंह और सामाजिक कार्यकर्ता योगानंद आचार्य के प्रयासों के चलते कानूनों के खुले उल्लंघन को पकड़े जाने में मदद मिली है। पर विकास के अंधे उत्साह में पर्यावरण और शहरी विकास कानूनों का उल्लंघन हो रहा है। दिल्ली में सरकार की नाक के नीचे अक्षरधाम मंदिर और खेल गांव खड़ा हो जाता है। इन पर स्वयं पर्यावरण मंत्री ने भी चिंता जताई है। सवाल यह है कि हम कानून का उल्लंघन करने वाली आदर्श इमारतें खड़ी करने के बजाय क्या विकास की आदर्श स्थितियां तैयार कर पाएंगे?

टाट पर देश का भविष्य

अमृतसर। कंपकंपाती ठंड का हो या चिलचिलाती धूप शिक्षा रूपी फल का स्वाद चखने के लिए नन्हें-मुन्ने सजा झेलने को बेबस हैं। शिकायतों के बाद जब टीम ने शहर के कुछेक एलीमैंट्री स्कूलों का मौका-ए-मुआयना किया तो बचपन की बेहाली का ऐसा आलम दिखा की पत्थरदिल भी पसीज जाए।

देश के हुक्मरान चाहे मिड-डे मील का कार्यRम चला कर अपनी पीठ थपथपा रहे हों, लेकिन हकीकत में जिले के एलीमैंट्री स्कूलों में पढऩे वाले 51 फीसदी बच्चे अभी भी टाट पर बैठने को मजबूर हैं। मात्र 49 फीसदी बच्चों को ही बैठने के लिए बैंच नसीब हैं।

ठंड का दंश
एसीबी टीम जब सरकारी एलीमैंट्री स्कूल नवांकोट पहुंची तो यहां पहली जमात के बच्चे भविष्य संवारने के लिए टाट पर बैठ कर पढ़ते दिखे। वहीं कुछेक तो ठंड की मार से बचने के लिए टाट से पीछा छुड़ाने के लिए इधर-उधर खड़े दिखे। यहां दो सैक्शनों के करीब 63 बच्चे टाट पर ही बैठे थे। वहीं बिल्डिंग में ही चल रहे सरकारी एलीमैंट्री स्कूल डैमगंज में भी हालात इससे जुदा नहीं थे। यहां पहली कक्षा के 70 विद्यार्थी और दूसरी कक्षा के करीब 43 बच्चे टाट पर ही बैठकर किताबों के पन्ने पलट रहे थे।

बैंचों की स्थिति
कुल एलीमैंट्री के स्टूडेंट्स : 95,000
बैंचों पर बैठने वाले बच्चे : 46,032
टाट पर बैठने वाले बच्चे : 48968

Thursday, January 20, 2011

ਜੀਵਨ ਦੇ ਵਿਚ ਕੰਮ ਕੋਈ ਐਸਾ ਕਰ ਜਾਵਾਂ।
ਫੇਰ ਭਾਂਵੇ ਮੈਂ ਅਗਲੇ ਪਲ ਹੀ ਮਰ ਜਾਵਾਂ।

ਇਸ ਧਰਤੀ ਦਾ ਤਪਦਾ ਸੀਨਾ ਠਾਰ ਦਿਆਂ,
ਬੱਦਲ ਬਣ ਕੇ ਮਾਰੂਥਲ ਵਿਚ ਵਰ੍ਹ ਜਾਵਾਂ।

ਸ਼ਾਮ ਢਲੀ ਤਾਂ ਪੰਛੀ ਵੀ ਮੁੜ ਆਉਂਦੇ ਨੇ,
ਮੈਨੂੰ ਸਮਝ ਨਾ ਆਵੇ ਕਿਹੜੇ ਘਰ ਜਾਵਾਂ।

ਉਹ ਵੀ ਦਿਨ ਸਨ ਮੌਤ ਵੀ ਸਾਥੋਂ ਕੰਬਦੀ ਸੀ,
ਅੱਜਕਲ ਆਪਣੇ ਸਾਏ ਤੋਂ ਮੈਂ ਡਰ ਜਾਵਾਂ।

ਕਤਰਾ ਕਤਰਾ ਰੋਜ਼ ਮਰਨ ਤੋਂ ਚੰਗਾ ਏ,
ਕਿਓਂ ਨਾ ਇਕ ਦਿਨ ਸਾਰਾ ਹੀ ਮੈਂ ਮਰ ਜਾਵਾਂ।

ਜਿੱਤਣ ਦੇ ਲਈ ਹਰ ਕੋਈ ਬਾਜ਼ੀ ਲਾਉਂਦਾ ਏ,
ਮੈਂ ਹਰ ਵਾਰੀ ਜਾਣ ਬੁੱਝ ਕੇ ਹਰ ਜਾਵਾਂ।

ਤੁਰ ਜਾਵਣ ਦੇ ਬਾਦ ਵੀ ਹਰ ਕੋਈ ਯਾਦ ਕਰੇ,
ਮਹਿਫਲ ਦੇ ਵਿਚ ਰੰਗ ਕੋਈ ਐਸਾ ਭਰ ਜਾਵਾਂ
ਅਣਖ ਜਿਸ ਦੀ ਮਰ ਗਈ ਜਿਊਂਦਿਆ ਹੀ ਮਰ ਗਿਆ।
ਮਰ ਕੇ ਵੀ ਸਦਾ ਜੀਂਵਦਾ ਜੋ ਅਣਖ ਖਾਤਿਰ ਮਰ ਗਿਆ।

ਅੱਜ ਹਰ ਕਲੀ ਉਦਾਸ ਹੈ ਫੁੱਲ ਵੀ ਖਿੜਣ ਤੋਂ ਡਰ ਰਿਹਾ,
ਲ਼ਗਦਾ ਹੈ ਚਮਨ ਨਾਲ ਕੋਈ ਮਾਲੀ ਗ਼ਦਾਰੀ ਕਰ ਗਿਆ।

ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਦੇ ਪੱਥਰਾਂ ਉਸ ਦਾ ਨ ਕੁਝ ਵਿਗਾੜਿਆ,
ਸੱਜਣਾਂ ਦੇ ਮਾਰੇ ਇਕ ਫੁੱਲ ਨਾਲ ਈ ਉਹ ਮਰ ਗਿਆ।

ਸੂਏ ਦੇ ਸੁੱਕੇ ਪੁਲ ਹੇਠੋਂ ਲਾਸ਼ ਮਿਲੀ ਉਸ ਸ਼ਖਸ ਦੀ,
ਆਖਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ਜਿਹੜਾ ਚਾਰੇ ਪੱਤਣ ਤਰ ਗਿਆ।

ਇਨਸਾਨ ਤੋਂ ਸ਼ੈਤਾਨ ਤੇ ਹੈਵਾਨ ਕੀ ਕੁਝ ਬਣ ਗਿਆ,
ਵਾਹ ਵਾਹ ਵੇਖੋ ਮਨੁੱਖ ਕਿੰਨੀ ਤਰੱਕੀ ਕਰ ਗਿਆ।

ਅੱਜ ਦਾ ਇਨਸਾਨ ਕਿੰਨਾ ਖਤਰਨਾਕ ਹੋ ਗਿਆ,
ਕੱਲ ਆਦਮੀ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਕਬਰਾਂ 'ਚ ਭੂਤ ਡਰ ਗਿਆ।

ਝੂਠ ਦੇ ਸਿੰਗਾਂ ਤੇ ਬਹਿ ਕੇ ਸੱਚ ਝੂਟੇ ਲੈ ਰਿਹਾ,
ਲ਼ਾਲੋ ਦਾ ਡੁੱਬਦਾ ਵੇਖਿਆ ਭਾਗੋ ਦਾ ਬੇੜਾ ਤਰ ਗਿਆ।

ਸੂਰਜਾਂ ਦੀ ਰੋਸ਼ਨੀ ਉਸ ਦਾ ਕੀ ਕਰੂ ਮੁਕਾਬਲਾ,
ਅੱਖਰਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਸ਼ਾਇਰ ਰੋਸ਼ਨੀ ਜੋ ਕਰ ਗਿਆ।
ਨਾਟਕਕਾਰ ਸਰਬਜੀਤ ਸਿੰਘ ਔਲਖ ਨਾਲ ਇਕ ਮੁਲਾਕਾਤ
ਗੁਰਦੇਵ ਸਿੰਘ ਘਣਗਸ




ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਸਰਬਜੀਤ ਸਿੰਘ ਔਲਖ ਪੰਜਾਬੀ ਦੇ ਇੱਕ ਸਿਰਕੱਢ ਨਾਟਕਕਾਰ ਹਨ। ਐਸ ਡੀ ਕਾਲਜ ਬਰਨਾਲਾ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬੀ ਪੜ੍ਹਾਉਂਦੇ ਹ ਮੈਂ ਜਲੰਧਰ ਦੇ ਗਦਰੀ ਬਾਬਾ ਯਾਦਗਾਰੀ ਹਾਲ ਵਿੱਚ ਹੋ ਰਹੀ ਤੀਜੀ ਵਿਸ਼ਵ ਪੰਜਾਬੀ ਕਾਨਫਰੰਸ ਦੇਖਣ ਚਲਾ ਗਿਆ । ਉਸ ਵਿਚ ਇੱਕ ਰਾਤ ਨਾਟਕਾਂ ਲਈ ਰਾਖਵੀਂ ਸੀ । ਉਦੋਂ ਮੈਂ ਸਰਬਜੀਤ ਸਿੰਘ ਔਲਖ ਵੱਲੋਂ ਖੇਡਿਆ ਇਕ ਨਾਟਕ ਦੇਖਿਆ ਜੋ ਮੇਰੇ ਤੇ ਇਤਨਾ ਪਰਭਾਵ ਛੱਡ ਗਿਆ ਕਿ ਮੈਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਲਿਖੀ ਕਵਿਤਾ ਵੀ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹਦਾ ਹਾਂ। ਪਿਛਲੇ ਮਹੀਨੇ ਉਹ ਆਪਣੇ ਇੱਕ ਨਵੇਂ ਨਾਟਕ (ਪੱਤਣਾਂ ਤੇ ਰੋਣ ਖੜ੍ਹੀਆਂ) ਦੀ ਪੇਸ਼ਗੀ ਲਈ ਅਮਰੀਕਾ ਆਕੇ ਵਾਪਸ ਪਰਤ ਗਏ ਹਨ। ਪੱਤਣਾਂ ਤੇ ਰੋਣ ਖੜ੍ਹੀਆਂ 8 ਜਨਵਰੀ 2011 ਨੂੰ ਕੈਲੇਫੋਰਨੀਆ ਦੇ ਸ਼ਹਿਰ ਹੇਵਰਡ ਦੇ ਛੈਬਟ ਕਾਲਜ ਵਿੱਚ ਸੁਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਧਨੋਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਾਥੀਆਂ ਵਲੋਂ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। ਨੱਕੋ-ਨੱਕ ਭਰਿਆ ਹਾਲ ਇਸ ਗੱਲ ਦੀ ਗਵਾਹੀ ਭਰਦਾ ਸੀ ਕਿ ਔਲਖ ਜੀ ਨਾਟਕ-ਕਲਾ ਵਿਚ ਆਪਣੀ ਠੁੱਕ ਬਣਾ ਚੁੱਕੇ ਹਨ। ਇੱਕ ਦਿਨ ਮੈਂ ਮਿਲਣ ਗਿਆ ਤਾਂ ਔਲਖ ਅਤੇ ਧਨੋਆ ਜੀ ਨਾਟਕ ਦੀ ਤਿਆਰੀ ਵਿਚ ਇਤਨੇ ਮਗਨ ਦਿਸਦੇ ਸਨ ਕਿ ਮੈਂ ਪੰਜ ਕੁ ਮਿੰਟਾਂ ਬਾਅਦ ਹੀ ਹੱਥ ਵਿਚ ਫੜੇ ਸਵਾਲ ਔਲਖ ਜੀ ਨੂੰ ਫੜਾਕੇ ਵਾਪਸੀ ਲਈ ਰਵਾਨਾ ਹੋ ਗਿਆ।


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ਨਾਟਕਕਾਰ ਸਰਬਜੀਤ ਸਿੰਘ ਔਲਖ ਨਾਲ ਇਕ ਮੁਲਾਕਾਤ---

? ਔਲਖ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਪਹਿਲਾਂ ਆਪਣੇ ਜਨਮ, ਜਨਮ ਅਸਥਾਨ ਬਾਰੇ ਕੁਝ ਦੱਸੋ। ਬਚਪਨ, ਮੁੱਢਲੀ ਵਿੱਦਿਆ ਅਤੇ ਪਰਿਵਾਰ ਬਾਰੇ ਦੱਸੋ। ਘਰ ਵਿਚ ਪਹਿਲਾ ਮਾਹੌਲ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਸੀ? ਤੁਹਾਡੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਵਤੀਰਾ ?
= ਮੇਰਾ ਜਨਮ ਪਿੰਡ ਠੀਕਰੀਵਾਲਾ ਵਿਖੇ 16 ਨਵੰਬਰ 1964 ਨੂੰ ਪਿਤਾ ਸ. ਭਰਪੂਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਘਰ ਮਾਤਾ ਸ੍ਰੀਮਤੀ ਸੁਰਜੀਤ ਕੌਰ ਦੇ ਕੁੱਖੋਂ ਹੋਇਆ। ਬਚਪਨ ਪਿੰਡ ਵਿੱਚ ਹੀ ਗੁਜ਼ਰਿਆ ਅਤੇ ਮੁੱਢਲੀ ਵਿਦਿਆ ਪਿੰਡ ਦੇ ਸਰਕਾਰੀ ਸਕੂਲ ਵਿੱਚੋਂ ਦਸਵੀਂ ਤੱਕ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ। ਸਕੂਲ ਦਾ ਨਾਂ ਪਰਜਾ ਮੰਡਲ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਸ਼ਹੀਦ ਸ. ਸੇਵਾ ਸਿੰਘ ਠੀਕਰੀਵਾਲਾ ਦੇ ਨਾਂ ਉੱਤੇ ਰੱਖਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਮੇਰੇ ਪਰਿਵਾਰ ਵਿੱਚ ਮੇਰੀ ਪਤਨੀ ਅਮਰਜੀਤ ਕੌਰ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਬੇਟੀ ਹਰਪ੍ਰੀਤ ਕੌਰ, ਦੋ ਬੇਟੇ ਹਰਕਮਲਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਵਿਸ਼ਵਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ਹਨ। ਅਸੀਂ ਦੋ ਭਰਾ ਅਤੇ ਦੋ ਭੈਣਾ ਹਨ। ਮੇਰੇ ਦਾਦਾ ਜੀ ਫੌਜ ਵਿੱਚੋਂ ਸੂਬੇਦਾਰ ਰਿਟਾਇਰ ਹੋਏ ਸਨ। ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਸ. ਸੁਰਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬਰਨਾਲਾ ਨਾਲ ਅਕਾਲੀ ਲਹਿਰ ਵਿੱਚ ਜੇਲਾਂ ਵੀ ਕੱਟੀਆਂ ਅਤੇ ਜੇਲ ਵਿੱਚ ਸ. ਬਰਨਾਲਾ ਸਾਹਿਬ ਨਾਲ ਨਾਟਕ ਖੇਡਦੇ ਰਹੇ ਸਨ। ਮੇਰੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਵੀ ਆਪਣੀ ਕਾਲਜ ਲਾਈਫ ਦੌਰਾਨ ਨਾਟਕ ਖੇਡਦੇ ਰਹੇ ਸਨ ਪਰੰਤੂ ਨਾਟਕ ਖੇਡਣ ਅਤੇ ਲਿਖਣ ਦਾ ਕਾਰਜ ਮੈਂ ਪੰਜਵੀਂ ਜਮਾਤ ਵਿੱਚ ਪੜ੍ਹਦੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਕੇ ਅੱਜ ਤੱਕ ਨਿਰੰਤਰ ਕਾਰਜਸ਼ੀਲ ਹਾਂ। ਨਾਟਕ ਲਿਖਣ, ਡਾਇਰੈਕਟ ਕਰਨ ਅਤੇ ਖੇਡਣ ਵਿੱਚ ਮੈਂਨੂੰ ਮੇਰੇ ਪਰਿਵਾਰ ਵੱਲੋਂ ਪੂਰਨ ਸਹਿਯੋਗ ਮਿਲਦਾ ਹੈ, ਹਰ ਸਮੇਂ ਮੇਰੀ ਮੱਦਦ ਲਈ ਮੇਰੇ ਮਾਤਾ ਪਿਤਾ, ਪਤਨੀ ਅਤੇ ਬੱਚੇ ਮੇਰਾ ਪੂਰਾ ਸਾਥ ਦਿੰਦੇ ਹਨ। ਪੂਰਾ ਪਰਿਵਾਰ ਨਾਟਕ ਲਈ ਸਮਰਪਿਤ ਹੈ।
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? ਉੱਚ ਵਿੱਦਿਆ ਕਿੱਥੋਂ ਲਈ, ਕਿੱਥੋਂ ਪੜ੍ਹੇ ਅਤੇ ਉਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਕੀ ਕੀਤਾ?
= ਉਚ ਵਿਦਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਪਹਿਲਾਂ ਮੈਂ ‘ਬੇਰਿੰਗ ਯੂਨੀਅਨ ਕਰਿਸਚਨ ਕਾਲਜ, ਬਟਾਲਾ’ ਵਿੱਚ ਮੈਡੀਕਲ ਵਿੱਚ ਦਾਖਲਾ ਲਿਆ ਅਤੇ ਫਿਰ ਐਸ.ਡੀ.ਕਾਲਜ ਬਰਨਾਲਾ ਵਿੱਚ ਨਾਨ-ਮੈਡੀਕਲ ਵਿੱਚ ਦਾਖਲਾ ਲਿਆ। ਪਰ ਮੇਰੇ ਪੱਲੇ ਅਸਫਲਤਾ ਹੀ ਪਈ। ਉਸਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮੈਂ ਦਸ ਸਾਲ ਖੇਤੀ ਕੀਤੀ। ਦਸ ਸਾਲਾਂ ਬਾਅਦ ਖੇਤੀ ਕਰਦੇ ਕਰਦੇ ਨੇ ਖੇਤ ਬੈਠ ਕੇ ਹੀ ਪੰਜਾਬੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ, ਪਟਿਆਲਾ ਦੇ ਕਰਾਸਪੌਂਡੈਂਸ ਡਿਪਾਟਮੈਂਟ ਰਾਹੀਂ ਬੀ. ਏ., ਐਮ. ਏ. ਪੰਜਾਬੀ, ਐਮ.ਏ. ਸ਼ੋਸ਼ੋਆਲੋਜੀ, ਬੀ. ਐਡ., ਐਮ. ਐਡ.ਕੀਤੀ। ਕਾਲਜ ਲੈਕਚਰਾਰ ਵਾਸਤੇ ਯੂ. ਜੀ. ਸੀ. ਦਾ ਇੰਡੀਆ ਪੱਧਰ ਦਾ ਟੈਸਟ ਨੈਟ ਪਾਸ ਕੀਤਾ। ਅੱਜ ਕੱਲ੍ਹ ਮੈਂ ਐਸ. ਡੀ. ਕਾਲਜ ਬਰਨਾਲਾ ਵਿਖੇ ਪੰਜਾਬੀ ਵਿਭਾਗ ਵਿੱਚ ਐਸੋਸੀਏਟ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਦੀ ਡਿਊਟੀ ਨਿਭਾਅ ਰਿਹਾ ਹਾਂ।
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? ਤੁਸੀਂ ਸਾਹਿਤ ਵੱਲ ਕਦ ਘੱਤੇ, ਲਿਖਣ ਦੀ ਚੇਟਕ ਕਦੋਂ ਲੱਗੀ?ਤੇ ਕਿਉਂ? ਕੀ ਤੁਸੀਂ ਲਗਾਤਾਰ ਲਿਖਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹੋ?
= ਸਾਹਿਤ ਵੱਲ ਮੇਰਾ ਰੁਝਾਨ ਤਾਂ ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਹੀ ਸੀ ।ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਹੀ ਮੈਂ ਆਪਣੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਦੁਬਾਰਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਸਕਿਆ ਹਾਂ। ਖੇਤੀ ਕਰਦੇ ਸਮੇਂ ਵੀ ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਖੇਤ ਕਿਤਾਬਾਂ ਪਈਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ। ਮੈਂ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾ ਨਾਟਕ ਨੌਵੀਂ ਕਲਾਸ ਵਿੱਚ ਪੜ੍ਹਦੇ ਨੇ ਲਿਖਿਆ ਜਿਸ ਦਾ ਨਾਂ ਸੀ -ਦੁਖੀ ਸੁਖੀ- ਪਰ ਉਹ ਸਟੇਜ ਉਤੇ ਨਾ ਖੇਡ ਸਕਿਆ। ਮੈਂ ਲਗਾਤਾਰ ਨਹੀਂ ਲਿਖਦਾ । ਸਿਰਫ ਉਦੋਂ ਹੀ ਲਿਖਦਾ ਹਾਂ ਜਦੋਂ ਕੋਈ ਵਿਚਾਰ ਜਾਂ ਪਲਾਟ ਮੇਰੇ ਅੰਦਰ ਖੌਰੂ ਪਾਉਣ ਲੱਗ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਮੈਂ ਧੱਕੇ ਨਾਲ ਲਿਖਣ ਵਾਸਤੇ ਕਦੇ ਨਹੀਂ ਲਿਖਿਆ ।
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? ਤੁਹਾਡਾ ਅਮਰੀਕਾ ਆਉਣ ਦਾ ਸਬੱਬ ਕਦੋਂ ਤੇ ਕਿਵੇਂ ਬਣਿਆ ?
= ਇਹ ਗੱਲ 16 ਫਰਵਰੀ 2007 ਦੀ ਹੈ ਜਦੋਂ ਜਲੰਧਰ ਦੇ ਗਦਰੀ ਬਾਬਾ ਯਾਦਗਾਰੀ ਹਾਲ ਵਿੱਚ ਤੀਜੀ ਵਿਸ਼ਵ ਪੰਜਾਬੀ ਕਾਨਫਰੰਸ ਹੋਈ ਸੀ। ਉਸ ਵਿਚ ਇੱਕ ਰਾਤ ਨਾਟਕਾਂ ਲਈ ਰਾਖਵੀਂ ਸੀ । ਪ੍ਰੋ. ਅਜਮੇਰ ਸਿੰਘ ਔਲਖ ਨੇ ਮੈਂਨੂੰ ਉਥੇ ਨਾਟਕ ਖੇਡਣ ਲਈ ਕਿਹਾ। ਮੈਂ ਆਪਣਾ ਲਿਖਿਆ ਤੇ ਡਾਇਰੈਕਟ ਕੀਤਾ ਨਾਟਕ ‘ਸਰਦਲ ਦੇ ਆਰ-ਪਾਰ’ ਉਥੇ ਖੇਡਿਆ । ਜਿਹੜਾ ਕਿ ਦਰਸ਼ਕਾਂ ਨੇ ਬਹੁਤ ਪਸੰਦ ਕੀਤਾ । ਦਰਸ਼ਕਾਂ ਵਿੱਚ ਅਮਰੀਕਾ ਤੋਂ ਆਏ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸੂਝਵਾਨ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬੀ ਸਾਹਿਤ ਦੇ ਰਸੀਏ ਸ. ਸੁਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਧਨੋਆ ਵੀ ਨਾਟਕ ਦੇਖ ਰਹੇ ਸਨ। ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਮੇਰਾ ਨਾਟਕ ਬਹੁਤ ਪਸੰਦ ਆਇਆ । ਸ. ਸੁਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਧਨੋਆ ਮੇਰੀ ਟੀਮ ਤੇ ਮੇਰੀ ਪਤਨੀ ਨੂੰ ਮਿਲੇ। ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇਹ ਨਾਟਕ ਮੈਂ ਅਮਰੀਕਾ ਦੀ ਧਰਤੀ ‘ਤੇ ਖੇਡਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ। ਸਾਡੀ ਫੋਨ ਉਤੇ ਗੱਲ-ਬਾਤ ਹੁੰਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਸੀ। ਸ. ਧਨੋਆ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਮੇਰਾ ਨਾਟਕ 26 ਜੁਲਾਈ 2008 ਨੂੰ ਹੇਵਰਡ-ਸ਼ਹਿਰ ਦੇ -ਛੱਬੋ ਕਾਲਜ- ਵਿੱਚ ਖੇਡਿਆ ਤੇ ਮੈਂ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਧਨੋਆ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਕੈਲੀਫੋਰਨੀਆ ਆ ਕੇ ਹੀ ਮਿਲਿਆ ਜਦੋਂ ਮੇਰਾ ਨਾਟਕ ਖੇਡਿਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਅਮਰੀਕਾ ਆਉਣ ਲਈ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਹੀ ਸਾਰੇ ਕਾਗਜ਼ ਪੱਤਰ ਤਿਆਰ ਕਰਕੇ ਮੈਂਨੂੰ ਬੁਲਾਇਆ ਸੀ ਹੁਣ ਦੂਸਰੀ ਵਾਰ 8 ਜਨਵਰੀ 2011 ਨੂੰ -ਛੱਬੋ ਕਾਲਜ- ਦੇ ਉਸੇ ਥੀਏਟਰ ਵਿੱਚ ਮੇਰਾ ਨਾਟਕ, ਪੱਤਣਾਂ ਤੇ ਰੋਣ ਖੜ੍ਹੀਆਂ -ਸੁਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਧਨੋਆ- ਦੀ ਨਿਰਦੇਸ਼ਨਾ ਹੇਠ ਖਿਡਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਦੂਸਰੀ ਵਾਰ ਵੀ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਬਦੌਲਤ ਹੀ ਮੈਂ ਅਮਰੀਕਾ ਦੀ ਧਰਤੀ ਉਤੇ ਪੈਰ ਰੱਖਿਆ ਹੈ।
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? ਕੋਈ ਬਰਨਾਲੇ ਦੀ ਦੰਦ ਕਥਾ?
= ਸਾਹਿਤ ਦਾ ਮੱਕਾ। ਪੰਜਾਬੀ ਦੇ ਨਾਮਵਰ ਲੇਖਕ ਬਰਨਾਲੇ ਦੀ ਧਰਤੀ ਤੇ ਪੈਦਾ ਹੋਏ। ਕੁਝ ਕੁ ਨਾਂ ਹਨ: ਸਵ ਰਾਮ ਸਰੂਪ ਅਣਖੀ, ਓਮ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਗਾਸੋ, ਪ੍ਰੋ ਰਵਿੰਦਰ ਭੱਠਲ, ਮਿੱਤਰ ਸੈਨ ਮੀਤ, ਟੀ ਆਰ ਵਿਨੋਦ, ਸਵ ਪ੍ਰੋ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਿੰਘ ਰਾਹੀ, ਸੰਤ ਰਾਮ ਉਦਾਸੀ, ਦੇਵਿੰਦਰ ਸਥਿਆਰਥੀ, ਅਤੇ ਹੋਰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੇਖਕ ਹਨ ਜਿਹੜੇ ਬਰਨਾਲੇ ਨਾਲ ਸਬੰਧਤ ਹਨ ।
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? ਪੰਜਾਬ ਵਾਰੇ, ਅਮਰੀਕਾ ਬਾਰੇ?
= ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਛੇਵਾਂ ਦਰਿਆ ਵੱਗਣ ਲੱਗ ਪਿਆ ਹੈ । ਨਵੀਂ ਪੀੜ੍ਹੀ ਨਸ਼ਿਆਂ ਵਿੱਚ ਰੁੜਦੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ । ਪੰਜਾਬੀ ਸੱਭਿਆਚਾਰ ਤੇ ਵਿਰਸੇ ਨੂੰ ਕੋਹ-ਕੋਹ ਕੇ ਮਾਰਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਅਮਰੀਕਾ ਵਿੱਚ ਮੈਂਨੂੰ ਜਿਹੜੀ ਗੱਲ ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਲੱਗੀ ਉਹ ਹੈ ਅਮਰੀਕਨ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਦਾ ਪੰਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ, ਸੱਭਿਆਚਾਰ ਅਤੇ ਵਿਰਸੇ ਪ੍ਰਤੀ ਮੋਹ ਅਤੇ ਉਸਦੀ ਸੰਭਾਲ ਦੇ ਯਤਨ ਹਨ।
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? ਦਾਣਾ ਪਾਣੀ, ਮਨ ਭਾਉਂਦਾ ਖਾਣਾ?
= ਦਾਣਾ ਕਣਕ, ਮੱਕੀ ਤੇ ਬਾਜਰੇ ਦੀ ਰੋਟੀ ਅਤੇ ਪਾਣੀ ਫੋਕਾ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਅੱਧਾ ਵਿਸਕੀ ਦਾ ਪੈਗ । ਮਨ ਭਾਉਂਦਾ ਖਾਣਾ ਮੂੰਗੀ ਦੀ ਦਾਲ ਨਾਲ ਰੋਟੀ । - - - - - - - - -

? ਤੁਸੀਂ ਕਿਹੜੇ ਕਿਹੜੇ ਮੁਲਕਾਂ ਵਿਚ ਗਏ ਹੋ? ਕਿੱਦਾਂ ਲਗਦਾ ਹੈ ਇਹ ਦੇਸ ਤੁਹਾਡੀਆਂ ਨਜ਼ਰਾਂ ਵਿਚ, ਚੰਗੇ ਮਾੜੇ ਅਨੁਭਵ।
= ਹੁਣ ਤੱਕ ਮੇਰਾ ਯੂ ਕੇ, ਯੂ ਐਸ ਏ, ਨੀਦਰਲੈਂਡ, ਬੈਲਜੀਅਮ, ਫਰਾਂਸ ਘੁੰਮਣ ਅਤੇ ਨਾਟਕ ਖੇਡਣ ਦਾ ਸਵੱਬ ਬਣਿਆ ਹੈ । ਅਮਰੀਕਾ ਬਹੁਤ ਖੁੱਲਮ-ਖੁੱਲਾ ਦੇਸ਼ ਹੈ । ਮੈਂ ਦੂਜੀ ਵਾਰ ਅਮਰੀਕਾ ਆਇਆ ਹਾਂ, ਮੈਂਨੂੰ ਇਥੋਂ ਦੇ ਪੰਜਾਬੀ ਭਰਾਵਾਂ ਵੱਲੋਂ ਜੋ ਪਿਆਰ ਅਤੇ ਸਤਿਕਾਰ ਮਿਲਿਆ ਹੈ ਉਹ ਮੈਂ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ ਕਦੇ ਵੀ ਭੁਲਾ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ । ਮੇਰੀਆਂ ਦੋਨਾਂ ਫੇਰੀਆਂ ਦੌਰਾਨ ਅਜੇ ਤੱਕ ਕਿਸੇ ਮਾੜੇ ਅਨੁਭਵ ਨਾਲ ਵਾਹ ਨਹੀਂ ਪਿਆ ।
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? ਅਮਰੀਕਾ ਦੇ ਪੰਜਾਬੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦਾ ਭਵਿੱਖ ? ਤੁਹਾਡੀ ਨਜ਼ਰੇ ਸਾਨੂੰ ਇਕ ਦੂਜੇ ਨਾਲ ਕਿੱਦਾਂ ਨਹੀਂ ਵਰਤਣਾ ਚਾਹੀਦਾ?
= ਪੰਜਾਬੀ ਭਾਈਚਾਰੇ ਦਾ ਭਵਿੱਖ ਉੱਜਲ ਹੈ। ਜਿੰਨੀ ਮਿਹਨਤ ਅਤੇ ਸਿਰੜ ਨਾਲ ਸਾਡੇ ਪੰਜਾਬੀ ਇਥੇ ਕੰਮ-ਕਾਰ ਕਰਕੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਪ੍ਰਫੁੱਲਤ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ ਉਸਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਤਾਂ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ਕਿ ਆਉਣ ਵਾਲਾ ਸਮਾਂ ਅਮਰੀਕਾ ਦੇ ਅਰਥਚਾਰੇ ਦੀ ਡੋਰ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਦੇ ਹੱਥ ਫੜਾ ਦੇਵੇਗਾ । ਮੇਰੀ ਨਜ਼ਰ ਵਿੱਚ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਆਪਣੀ ਕਾਬਲੀਅਤ ਨੂੰ ਹੋਰ ਤੇ ਹੋਰ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਤਤਪਰ ਰਹਿਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਲੱਤ ਖਿੱਚੋ-ਹੇਠਾਂ ਸੁੱਟੋ ਦੀ ਖੇਡ ਤੋਂ ਦੂਰ ਰਹਿਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਇਹੋ ਹੀ ਤੁਹਾਡੀ ਸ਼ਖਸ਼ੀਅਤ ਦਾ ਸਾਕਾਰਤਮਿਕ ਪਹਿਲੂ ਹੈ ।
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? ਤੁਸੀ ਹੁਣ ਤੱਕ ਕੀ ਕੁਝ ਲਿਖਿਆ ਹੈ? ਅੱਜਕਲ ਕੀ ਲਿਖ ਰਹੇ ਹੋ?
= ਹੁਣ ਤੱਕ ਮੈਂ ਸਾਹਿਤ ਦੀਆਂ ਕਾਫੀ ਵਿਧਾਵਾਂ ਉਪਰ ਆਪਣੀ ਕਲਮ ਅਜਮਾਈ ਕਰ ਚੁੱਕਿਆ ਹਾਂ ਜਿਵੇਂ ਕਵਿਤਾ, ਕਹਾਣੀ, ਵਿਅੰਗ, ਵਾਰਤਕ ਅਤੇ ਨਾਟਕ । ਪਰ ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਨਾਟਕ ਵੱਲ ਕੇਂਦਰਤ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਹੁਣ ਮੈਂ -ਪੱਤਣਾਂ ਤੇ ਰੋਣ ਖੜ੍ਹੀਆਂ- ਇਕ ਨਵਾਂ ਨਾਟਕ ਲਿਖਿਆ ਹੈ, ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮੈਂ ਇਕ ਹੋਰ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸੰਵੇਦਨਸ਼ੀਲ ਨਾਟਕ ਲਿਖਣ ਵਿਚ ਮਸ਼ਰੂਫ ਹਾਂ।
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? ਕੀ ਪੜ੍ਹਦੇ ਹੋ ਅੱਜਕਲ? ਕੋਈ ਮਨ ਪਸੰਦ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦੇ ਨਾਂ?
=ਜੋ ਵੀ ਸਮਕਾਲੀ ਸਾਹਿਤ ਰਚਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਉਸਨੂੰ ਨਿਰੰਤਰ ਪੜ੍ਹਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹਾਂ । ਪੰਜਾਬੀ ਦੇ ਦਸ ਬਾਰਾਂ ਦੇ ਕਰੀਬ ਸਾਹਿਤਕ ਮੈਗਜ਼ੀਨ ਮੈਂ ਲਗਵਾਏ ਹੋਏ ਹਨ ਜਿਹਨਾਂ ਨਾਲ ਮੇਰੀ ਸਾਹਿਤਕ ਸੂਝ ਵਿੱਚ ਵਾਧਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਮਨਪਸੰਦ ਕਿਤਾਬਾਂ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਹਨ ਪਰ ਰਸੂਲ ਹਮਜਾਤੋਵ ਦੀ ਕਿਤਾਬ, ਮੇਰਾ ਦਾਗਿਸਤਾਨ-ਭਾਗ ਪਹਿਲਾ ਮੇਰੀ ਮਨਭਾਉਂਦੀ ਕਿਤਾਬ ਹੈ ।
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? ਤੁਹਾਡਾ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲਿਖਾਰੀਆਂ ਨਾਲ ਵਾਹ ਪਿਆ ਹੈ। ਮੇਰੇ ਤੋਂ ਬਗੈਰ ਇਹਨਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਕੀ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਹਨ?
= ਪੰਜਾਬੀ ਵਿੱਚ ਲਿਖਣ ਵਾਲੇ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸੂਝਵਾਨ ਅਤੇ ਦੀਰਘ ਅਧਿਐਨ ਵਾਲੇ ਲੇਖਕ ਦੀ ਸੰਗਤ ਦਾ ਮੌਕਾ ਵੀ ਮਿਲਿਆ ਹੈ ਅਤੇ ਕੱਚਘੜ ਲੇਖਕਾਂ ਨਾਲ ਵੀ ਬੈਠਕ ਉਠਕ ਹੁੰਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਮੈਂਨੂੰ ਆਪਣੇ ਬਾਰੇ ਨਹੀਂ ਪਤਾ ਕਿ ਮੈਂ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਾ ਲਿਖਦਾ ਹਾਂ ਪਰ ਇੱਕ ਗੱਲ ਜ਼ਰੂਰ ਹੈ ਕਿ ਕੁਝ ਕੁ ਲੇਖਕਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜਨੀਤੀ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ ਤਪਦਿਕ ਵਾਂਗ ਲੱਗ ਚੁੱਕੀ ਹੈ ਜਿਹੜੀ ਕਿ ਸਾਹਿਤ ਦੀਆਂ ਜੜ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਖੋਖਲ਼ੀਆਂ ਕਰੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਸਾਹਿਤ ਅਤੇ ਰਾਜਨੀਤੀ ਦਾ ਮੇਲ ਮੇਰੀ ਆਪਣੀ ਸੋਚ ਅਨੁਸਾਰ ਨਾਵਾਜਿਬ ਹੈ । ਸਾਹਿਤ ਵਿੱਚ ਰਾਜਨੀਤੀ ਉਹ ਵੀ ਇਨਾਮਾਂ ਸਨਮਾਨਾਂ ਲਈ ਗਾੜਾ ਰੁਝਾਣ ਹੈ । ਗੁੱਟ ਬੰਦੀਆਂ, ਜੁਗਾੜ ਇਹ ਸਭ ਕੁੱਝ ਠੀਕ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਤੁਸੀਂ ਇਸ ਸਭ ਕੁਝ ਤੋਂ ਮੁਕਤ ਹੋ, ਮੈਂਨੂੰ ਖੁਸ਼ੀ ਹੈ ਤੁਹਾਡੇ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਿਰਦਾਰ ਉਤੇ । ਤੁਹਾਡੀ ਲਿਖਤ ਹੀ ਤੁਹਾਡੀ ਪਹਿਚਾਣ ਹੋਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।
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? ਕੁਝ ਚੰਗੇ ਲਿਖਾਰੀਆਂ ਦੇ ਨਾਂ?
= ਮੇਰੇ ਲਈ ਸਾਰੇ ਹੀ ਚੰਗੇ ਹਨ । ਭਾਵੇਂ ਕੋਈ ਵਧੀਆ ਲਿਖਦਾ ਹੈ ਜਾਂ ਨਿਮਨ ਪੱਧਰ ਦਾ ਪਰ ਉਹ ਆਪਣੀ ਮਾਂ ਬੋਲੀ ਲਈ ਯਤਨ ਤਾਂ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ ਜਿੰਨਾ ਕੁ ਉਸ ਵਿੱਚ ਵਿਤ ਹੈ।
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? ਕੋਈ ਲਤੀਫਾ?
= ਆਪਣੀ ਕਵਿਤਾ ਸੁਣਾ ਕੇ ਭੱਜੋ ਨਾ ; ਦੂਸਰੇ ਕਵੀ ਨੂੰ ਉਸਦੀ ਕਵਿਤਾ ਸੁਣਾਉਣ ਲਈ ਆਪਣੇ ਪਿੱਛੇ ਨਾ ਦੌੜਨਾ ਪਵੇ।
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? ਔਲਖ ਸਾਹਿਬ ਜੀ, ਮੇਰੇ ਖਿਆਲ ਵਿਚ ਤੁਹਾਨੂੰਮਾਣ ਸਨਮਾਨ ਜਰੂਰ ਮਿਲਣਗੇ। ਜੇ ਕੋਈ ਮਿਲ ਚੁੱਕਾ ਹੈ ਤਾਂ ਜਰੂਰ ਸਾਂਝ ਪਾਵੋ। ਤੁਹਾਡੇ ਸਨਮਾਨਾਂ ਵਾਰੇ ਕੀ ਵਿਚਾਰ ਹਨ?
= ਤੁਹਾਡਾ ਮਾਨ ਸਨਮਾਨ ਤੁਹਾਡੇ ਪਾਠਕ ਅਤੇ ਦਰਸ਼ਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਮੈਂ ਨਾਟਕ ਨਾਲ ਸਬੰਧਤ ਹਾਂ, ਮੇਰਾ ਸਨਮਾਨ ਤਾਂ ਉਦੋਂ ਹੀ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਦੋਂ ਦਰਸ਼ਕਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਇਕ ਵੀ ਸ਼ਾਬਾਸ਼ ਦੇਣ ਸਟੇਜ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਰਸਮੀਂ ਤੌਰ ਉਤੇ ਸਨਮਾਨ ਤੁਹਾਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਤਾਂ ਕਰਦੇ ਹਨ ਪਰ ਜੇ ਉਹ ਤੁਹਾਡੀ ਕਾਬਲੀਅਤ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਮਿਲੇ ਹੋਣ । ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ ਮੈਂ ਕਿਸੇ ਸਨਮਾਨ ਦੇ ਕਾਬਿਲ ਨਾਂ ਹੋਵਾਂ ਤੇ ਜੁਗਾੜ ਲਾ ਕੇ ਸਨਮਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲਵਾਂ, ਉਹ ਸਨਮਾਨ ਵਿਖਾਵਾ ਹੋਵੇਗਾ ਪਰੰਤੂ ਅੰਦਰੋਂ ਖੋਖਲਾਪਣ।
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? ਤੁਸੀਂ ਕਵਿਤਾ ਵੀ ਲਿਖਦੇ ਹੋ ਪਰ ਨਾਟਕ ਤੁਹਾਡੀ ਜਾਣ-ਪਛਾਣ ਵਾਲਾ ਖੇਤਰ ਹੈ, ਤੁਸੀਂ ਇਸ ਦੇ ਭਵਿੱਖ ਬਾਰੇ ਕੀ ਕੁਝ ਸਾਂਝਾ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਹੋ? = ਮੈਂ ਆਪਣਾ ਸਾਹਿਤਕ ਸਫਰ ਕਵਿਤਾ ਤੋਂ ਹੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਪਰ ਨਾਟਕ ਮੇਰੀ ਜ਼ਿੰਦਜਾਨ ਹੈ । ਹੁਣ ਤੱਕ ਮੈਂ ਸੈਂਕੜੇ ਨਾਟਕ ਖੇਡ ਚੁੱਕਿਆ ਹਾਂ । ਲਿਖੇ ਹਨ, ਨਿਰਦੇਸ਼ਨ ਦਿੱਤਾ ਹੈ, ਪਰ ਮੈਂਨੂੰ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਇਹੋ ਹੀ ਲੱਗਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਸਤੋਂ ਵਧੀਆ ਨਾਟਕ ਅਜੇ ਖੇਡਣਾ ਬਾਕੀ ਹੈ । ਨਾਟਕ ਦਾ ਭਵਿੱਖ ਉਜਵਲ ਹੈ, ਇਹ ਸਾਹਿਤ ਦੀ ਜ਼ਿੰਦਾ ਤੇ ਜਿਉਂਦੀ ਜਾਗਦੀ ਵਿਧਾ ਹੈ ਜਿਹੜੀ ਕਿ ਦਰਸ਼ਕਾਂ ਉਪਰ ਗਹਿਰਾ ਅਤੇ ਸਿੱਧਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਾਉਂਦੀ ਹੈ । ਘਰ ਫੂਕ ਤਮਾਸ਼ਾ ਵੇਖਣ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਵੀ ਨਾਟਕ ਅੱਗੇ ਹੋਰ ਅੱਗੇ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਪੂਰੀ ਦੁਨੀਆਂ ਵਿੱਚ ਨਾਟਕ ਦਾ ਸਥਾਨ ਇੰਨਾਂ ਉਚਾ ਹੇ ਜਿਹੜਾ ਕਿ ਫਿਲਮਾਂ ਨਹੀਂ ਲੈ ਸਕੀਆਂ । ਜੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਵਿਚ ਨਾਟਕ ਪਿੰਡਾਂ, ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਕਸਬਿਆਂ ਵਿਚ ਖੇਡੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ ਤਾਂ ਦੁਨੀਆਂ ਦੇ ਉਹਨਾਂ ਮੁਲਕਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਪੰਜਾਬੀ ਨਾਟਕ ਉਸੇ ਸ਼ਿੱਦਤ ਨਾਲ ਖੇਡੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ ਜਿਵੇਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ।
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? ਕਮਾਈ ਦੇ ਸਾਧਨ?
= ਕਾਲਜ ਵੱਲੋਂ ਮਿਲਦੀ ਤਨਖਾਹ ਤੇ ਜ਼ਮੀਨ ਦਾ ਠੇਕਾ ।
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? ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਮੁਸ਼ਕਲ ?
= ਨਾਟਕ ਖੇਡਣਾ, ਇਸਦੀ ਤਿਆਰੀ ਅਤੇ ਕਲਾਕਾਰਾਂ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ । ਬਾਕੀ ਸਾਰੀਆਂ ਮੁਸ਼ਕਿਲਾਂ ਇਸ ਤੋਂ ਨਿਗੂਣੀਆਂ ਹਨ । ਇਹ ਅਮਰੀਕਾ ਹੋਵੇ ਜਾਂ ਪੰਜਾਬ । ਜਿਹੜੇ ਨਾਟਕ ਕਰਦੇ ਨੇ ਉਹ ਇਸ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਨੂੰ ਭਲੀ ਭਾਂਤ ਜਾਣਦੇ ਹਨ।
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? ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਖ਼ੁਸ਼ੀ?
= ਨਾਟਕ ਦੀ ਪੇਸ਼ਕਾਰੀ ਵਧੀਆ ਹੋ ਜਾਵੇ ।
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? ਕੋਈ ਦਿਲੀ ਤਮੰਨਾ ਜੋ ਪੂਰੀ ਕਰਨਾ ਲੋਚਦੇ ਹੋਵੋ ?
= ਲੇਖਕਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਸਰਕਾਰ ਦਾ ਸਹਿਯੋਗ।
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? ਕੋਈ ਸਵਾਲ ਜੋ ਮੈਂ ਪੁੱਛ ਨਾ ਸਕਿਆ ਹੋਵਾਂ ?ਜਾਂ ਕੋਈ ਗੱਲ ਜੋ ਤੁਸੀਂ ਖੁਦ ਦੱਸਣੀ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹੋਵੋ।
= ਤੁਸੀਂ ਸਾਰੇ ਕੋਨੇ ਪੂਰੇ ਕਰ ਲਏ ਹਨ । ਪਰ ਇੱਕ ਛੋਟੀ ਜਿਹੀ ਗੱਲ ਕਿ ਲੇਖਕ ਇੱਕ ਆਮ ਇਨਸਾਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ । ਬਹੁਤ ਸੰਵੇਦਨਸ਼ੀਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਲੱਖ ਗਲਤੀਆਂ ਕਰਨ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਵੀ ਸਮਾਜ ਦੀ ਬਿਹਤਰੀ ਲਈ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਤਤਪਰ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ।
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? ਲਿਖਾਰੀਆਂ ਦੀ ਕਿਹੜੀ ਗੱਲ ਸਭ ਤੋਂ ਪਸੰਦ ਹੈ?
= ਮਸਤੀ - - - ਬੁੱਲੇ ਸ਼ਾਹ ਵਰਗੀ ਮਸਤ ਮਲੰਗੀ।
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? ਲਿਖਾਰੀਆਂ ਦੀ ਕਿਹੜੀ ਗੱਲ ਸਭ ਤੋਂ ਨਾ-ਪਸੰਦ ਹੈ?
= ਜੁਗਾੜ-ਪੁਣਾ ਤੇ ਪਾਲਟਿਕਸ ।
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? ਅਮਰੀਕਾ ਦੇ ਲਿਖਾਰੀਆਂ, ਪਾਠਕਾਂ, ਸਰੋਤਿਆਂ ਲਈ ਕੋਈ ਸੁਨੇਹਾ ?
= ਆਪਣੀ ਮਾਂ ਧਰਤੀ ਤੋਂ ਦੂਰ ਬੈਠ ਕੇ ਵੀ ਜੇ ਤੁਸੀਂ ਮਾਂ ਬੋਲੀ ਦੀ ਸੇਵਾ ਕਰ ਰਹੇ ਹੋ ਤਾਂ ਮੇਰੇ ਵੱਲੋਂ ਮੁਬਾਰਕਾਂ - - - - ਪਰ ਜੇ ਕੇਵਲ ਇੱਕ ਲੇਖਕ ਬਨਣ ਲਈ ਲਿਖ ਰਹੇ ਹੋ ਤਾਂ ਮਾਯੂਸੀ- - - - । ਮੈਂ ਇਥੇ ਆ ਕੇ ਦੇਖਿਆ ਹੈ ਕਿ ਜਿੰਨਾ ਪਿਆਰ ਆਪਣੀ ਮਾਂ ਬੋਲੀ ਲਈ ਅਮਰੀਕਾ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਉਤਨਾ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਦੇਖਣ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ - - - - ਮੈਂਨੂੰ ਯਕੀਨ ਹੈ ਕਿ ਜਿਹੜੇ ਲੋਕ ਪੰਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ 50 ਸਾਲਾਂ ਬਾਅਦ ਮੁੱਕ ਜਾਣ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ ਇੱਕ ਦਿਨ ਮੇਰੇ ਪੰਜਾਬੀ ਅਮਰੀਕਣ ਵੀਰਾਂ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਜ਼ੁਬਾਨ ਨੂੰ ਜਿੰਦਰੇ ਲਾ ਦੇਣੇ ਹਨ । ਇੱਕ ਸੁਲੱਗ ਪੁੱਤ ਵੀ ਘਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਮੱਥਾ ਬਦਲ ਕੇ ਰੱਖ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਅਮਰੀਕਾ ਦੀ ਧਰਤੀ ਉਤੇ ਤਾਂ ਪੰਜਾਬੀ ਮਾਂ ਦੇ ਅਨੇਕਾਂ ਸਪੂਤ ਉਸਦੀ ਰਖਵਾਲੀ ਲਈ ਆਪਣੀਆਂ ਤਲਵਾਰਾਂ-ਵਰਗੀਆਂ ਕਲਮਾਂ ਲਈ ਮੈਦਾਨ-ਏ-ਜੰਗ ਵਿਚ ਖੜ੍ਹੇ ਹਨ - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - ?
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= ਪ੍ਰੋ. ਸਰਬਜੀਤ ਸਿੰਘ ਔਲਖ ਪਿੰਡ ਤੇ ਡਾਕਖਾਨਾ: ਠੀਕਰੀਵਾਲਾ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ: ਬਰਨਾਲਾ ਫੋਨ ਨੰ: 981 572 7094

Monday, January 17, 2011

एक महिला नीरा राडिया ने सबको नंगा कर दिया

नई दिल्ली।
करीब पौने दो लाख करोड़ के भारतीय दूरसंचार घोटाले ने कई भीष्म पितामहों को नंगा कर दिया। जिनके बारे में फिलहाल कोई सार्वजनिक बड़ा विवाद अभी कर उजागर नहीं हुआ था। इस घोटाले ने उन लोगों की प्रतिष्ठाओं को चकनाचूर कर दिया जिन्हें अपने क्षेत्र के लिए किसी युग पुरूष से कम नहीं समझा जाता था। चलिए अब सीधे ख़बरों पर आते हैं। ये वे महारथी हैं जिनका गुनाह होते हुए भी उन्हें आसानी से गुनाहगार नहीं ठहराया जा सकता। आइए एक - एक करके उन महान आत्माओं की चर्चा करते हैं। जो अभी तक कहीं न कहीं सुर्खियों में छाए रहे। वो भी नीरा राडिया जैसी महिला के चक्कर में पड़कर।

रतन टाटा के बारे में अब तक मैं भी वही जानता था जो भारत और दुनिया का एक सामान्य आदमी जानता है। अब तक रतन टाटा एक निर्विवाद महापुरूष के तौर पर जाने जाते रहे।लेकिन व्यवसायी तो व्यवसायी होता है वह अपने फायदे की ही बात करता है और यही जानता भी है। दूरसंचार के इस दुर्लभ घोटाले में रतन टाटा की प्रतिष्ठा की लंगोट उतर गयी और वे नंगे हो गये। 70-75 साल के आस-पास के रतन टाटा की पिछले 50 सालों में जो इज्जत बनी थी वह नीरा राडिया नामक महिला ने कुछ ही महीनों में नेस्तानबूत कर दिया। घोटाले की परत जब सार्वजनिक हुए और टेपों के आने से बड़ों बड़ो के इज्जत तार-तार होने लगे तो उससे पता चला कि कुंवारे रतन टाटा कितने रसिया हैं।

टेपों से यह भी जग जाहिर हुआ कि रतन टाटा के अंदर भी कहीं न कहीं कामदेव पींगे मार रहे थे। जो इस घोटाले से सार्वजनिक हो गया। टेपों में नीरा राडिया और रतन टाटा के श्रृंगार रस के वर्णन सार्वजनिक हो चुके हैं जिनका बार-बार वर्णन करना ठीक नहीं हैं। दूरसंचार घोटाला हुआ ही औरतों की त्रिया-चरित्र में फंसकर। नीरा राडिया एक ऐसी त्रिजटा के रूप में सामने आयी जिसने बड़ों बड़ों के पांव को झकझोर कर रख दिया। अब अगर किसी व्यक्ति का नाम नीरा-राडिया के साथ लिया जाता है तो वैसा ही आभास होता है जैसे उस व्यक्ति का नाम आईएसआई और दाउद गिरोह के नाम से जुड़ा हुआ हो। भारत सरकार भी नीरा राडिया के बारे में कह चुकी है कि वह एक विदेशी खुफिया एजेंट है।


नीरा राडिया का नाम जिन-जिन लोगों के साथ लिया गया उसमें भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, कर्नाटक के ताकतवर भाजपा नेता कहे जाने वाले अंनत कुमार, पूर्व दूरसंचार मंत्री राजा साहब तो राजा साहब हैं ही जो राडिया के शायद ऋणी भी हों। मीडिया की कई हस्तियों के नाम भी राडिया के साथ जुडें हैं। उनमें प्रमुख रूप से प्रभु चावला, एनडीटीवी की बरखा दत्त, हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक रहे वीर सांघवी ये वो नाम हैं जिनका संबंध रहा राडिया के साथ रहा या फिर राडिया के नाम के साथ किसी न किसी रूप में लिया गया। नीरा राडिया आज एक ऐसा खौफवाला नाम हो गया है जिसके साथ शायद ही कोई अपना नाम लिया जाना पसंद करता हो।

यही नहीं नीरा राडिया जिसका दूरसंचार घोटाले के साथ सीधा संबंध बताया जा रहा है जब सीबीआई नीरा राडिया के घर पूछ-ताछ के लिए पहुंची तो राडिया ने तपाक से कहा कि वह सिर्फ भारत के गृहमंत्री के साथ बात करेंगी। कहा जाता है कि एक वरिष्ठ सीबीआई अधिकारी ने नीरा राडिया को इस बेहूदे और दुस्साहस के लिए बड़े जोर से डांटा और कहा कि पहले जो पूछा जाए उसका जवाब दो बाद में गृहमंत्री से मिल लेना। फिलहाल जांच चल रही है, जांच भी सीबीआई ही कर रही है जिसके जांच का कुछ पता नहीं होता है। आखिरकार एक महिला ने सबको नंगा कर दिया। जिनकी आबरू और इज्जत बची हुई थी उसे नीरा राडिया जैसी औरत ने धोकर रख दिया।
सोनिया से जुड़े हैं बोफोर्स के तार

गुवाहाटी
१० जनवरी २०११।
गुवाहाटी में संपन्न हुई भारतीय जनता पार्टी की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कांग्रेस को हर संभव मंच पर घेरने और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ विरोध तेज़ करने का फ़ैसला किया गया है. इस अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की एक रैली में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोनिया गांधी पर आरोप लगाया कि बोफ़ोर्स घोटाले से उनका सीधा संबंध है.

आडवाणी ने कहा, "आयकर न्यायाधिकरण ने साफ-साफ कहा है कि बोफोर्स डील में क्वात्रोकी को रिश्वत दी गई थी. सोनिया जी कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षा हैं. क्या वो सीबीआई की बात को नकार सकती हैं? क्या वो उस ड्राइवर की बात नकार सकती हैं जिसका कहना है कि क्वात्रोकी का सोनिया गांधी के निवास पर खूब आना-जाना था?" आयकर न्यायाधिकरण ने कहा है कि बोफोर्स डील में क्वात्रोकी को रिश्वत दी गई थी. सोनिया जी सीबीआई की बात को नकार सकती हैं? क्या वो उस ड्राइवर की बात नकार सकती हैं जिसका कहना है कि क्वात्रोकी का सोनिया गांधी के निवास पर खूब आना-जाना था?" नितिन गडकरी, भाजपा अध्यक्ष

आडवाणी ने कहा कि घोटालों से भरा साल 2010-2011 भारत के इतिहास में उसी तरह निर्णायक साबित होगा जिस तरह बोफ़ोर्स घोटाले ने 1980 में राजनीति की तस्वीर बदल दी थी. बोफ़ोर्स मामले में रिश्वत दिए जाने संबंधी कुछ खबरों के सामने आने के बाद भाजपा ने घोषणा की कि वो इस मामले को हरसंभव क़ानूनी मंच पर उठाएगी. भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दे पर गुवाहटी में बुलाई गई रैली में एनडीए के नेताओं ने कांग्रेस पर जमकर प्रहार किया. रैली में केंद्र सरकार के स्तर पर ही नहीं बल्कि राज्य सरकार के स्तर पर हो रहे कथित भ्रष्टाचार की तरफ भी लोगों का दिलाने की कोशिश की गई. टकराव जारी रहने के संकेत - इस रैली में भाग लेने आई आम जनता में खासा जोश देखने को मिला और भाषा का अंतर भी लोगों की जिज्ञासा को रोक नहीं पाया. भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा, "ये जो भ्रष्टाचार की बारात है, उसमें भले ही दूल्हा ए राजा हों, लेकिन इस बारात में अनेक भ्रष्टाचारी शामिल हैं". भाजपा जनता का ध्यान आरएसएस पर उठ रहे सवालों की ओर नहीं जाने देना चाहती और इसलिए भ्रष्टाचार के मुद्दे के खिलाफ अपनी मुहिम की गति को पार्टी बरकरार रखे हुए है.


मंच पर मौजूद लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा, "संसद के शीतकालीन सत्र ने ये साबित कर दिया कि कई बार संसद का न चलना, संसद के चलने से ज़्यादा प्रभावी होता है". पार्टी ने संकेत दिए कि अगर घोटालों को लेकर संयुक्त संसदीय समिति की मांग को स्वीकार नहीं किया गया, तो वो बजट सत्र में भी विरोध जारी रखेगी. साथ ही असम में गोगोई की कांग्रेस सरकार पर लग रहे आरोपों को भी पार्टी ने जनता के बीच रखा और मुख्यमंत्री गोगोई को चुनौती दी कि वे इन आरोपों को झूठा साबित कर दिखाएँ. लेकिन जब भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही भाजपा के कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा पर लगे आरोपों के बारे में सवाल किए गए तो पार्टी कोई जवाब नहीं दे पाई.

बढ़ा आत्मविश्वास- 2010 में बिहार चुनाव में मिली जीत के बाद भाजपा के मनोबल में खासी मज़बूती देखी जा रही है और पार्टी की नज़र न केवल इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों पर है, बल्कि 2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर भी है. पार्टी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा, "जिस तरह से कांग्रेसपोषित भ्रष्टाचार देश पर प्रभावी है, 2010 और 2011 देश के लिए निर्णायक वर्ष साबित होंगें. अगर ये स्थिति बनी रही तो 2014 में भाजपा के अगुवाई में एनडीए सरकार केंद्र में वापस आएगी". पार्टी भ्रष्टाचार को मुख्य मुद्दा बनाने का फ़ैसला कर चुकी है. समझौता एक्सप्रेस रेल में धमाके के मामले में भूमिका को लेकर आए स्वामी असीमानंद के बयान के बाद भाजपा बचाव की मुद्रा में नज़र आई. पार्टी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस भगवा चरमपंथ का मुद्दा अपने फायदे के लिए उठा रही है. उनका कहना था, "भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवाद की संयुक्त राष्ट्र समेत पूरी दुनिया के मंचों पर जितनी भी शिकायतें की हैं उसमें समझौता ब्लास्ट में पाकिस्तानियों के हाथ होने की स्पष्ट रुप से कही है और आज वे इसे भगवा आतंकवाद बता रहे हैं.

जहां तक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की बात है, तो कांग्रेस को उस पर राजनीति नहीं करनी चाहिए". बात साफ है. भाजपा जनता का ध्यान आरएसएस पर उठ रहे सवालों की ओर नहीं जाने देना चाहती और इसलिए भ्रष्टाचार के मुद्दे के खिलाफ अपनी मुहिम की गति को पार्टी बरकरार रखे हुए है. आने वाले दिनों में पार्टी की योजना है कि वो जनता को कांग्रेस के भ्रष्टाचार के बारे में जागरूक बनाने के लिए देश भर में अनेक रैलियाँ आयोजित करेगी. और अगर ये मुहिम यूं ही चलती रही तो कांग्रेस की मुश्किलें बजट सत्र में भी बरकरार रहेंगी
आइए श्री गणेश करते हैं




आइए श्री गणेश करते हैं। प्रारंभ करते हैं, बिसमिल्लाह करते हैं। अभी तो आग़ाज़ है, इप्तदा है अर्थात बिगनिंग है। ऐसे ही कुछ शब्द बोल कर किसी बात का प्रारंभ होना माना जाता है। सनातन-धर्म में प्रत्येक शुभ-कार्य का प्रारंभ गणपति, विनायक, विघ्ननाशक, लम्बोदर, एकदंत अर्थात श्री गणेश जी के नामों से किया जाता है। प्रत्येक धार्मिक संस्कार, नवग्रह पूजन, यज्ञ आदि में गणेश जी की पूजा पहले करने का विधान है। भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों जैसे चीन, जापान, अमेरिका, नेपाल, तिब्बत, म्यांमार, जावा, सुमात्रा, कम्बोडिया, ग्रीक, ईरान, मिश्र आदि में भी किसी न किसी रुप में गणेश पूजन की प्रथा है।
विश्व भर में जितनी भी सिद्धियॉ हैं, उन्हें गणेश जी की दासियॉ माना जाता है। वह गर्भ से उत्पन्न न होकर अमैथुनी सृष्टि के अनादि और स्वयंभू देवता माने जाते हैं। चूहे को उनका वाहन माना जाता है। मनुष्य के समान मस्तक न होकर उनका गज अर्थात हाथी का सिर है। हाथी के समान ही उनके बड़े कान और सूंड है। बहुत बड़ा पेट होने के कारण उनको लम्बोदर कहा जाता है। प्रत्येक देवी देवताओं में से पूजा के लिए सर्वप्रथम उन्हें चुना गया है।
नर और गज स्वरुप का मिला-जुला यह विचित्र रुप मात्र चित्रकार की कल्पना का परिणाम है? क्या उनका स्वरुप वास्तव में ऐसा ही है? यह प्रश्न प्राय: मन में उठते हैं।
हिन्दू संस्कारों में कोई भी ऐसा शुभ कर्म नहीं है जो गणेश जी की पूजा से प्रारंभ न होता हो। शाब्दिक अर्थ में तो श्री गणेश 'प्रारंभ' का ही पर्याय हो गया है या कहें कि गणेश जी 'प्रारंभ' अर्थ में ही आरुढ़ हो गए हैं।
गणेश जी को गज के मस्तक वाला बताया गया है। गज का मस्तक अर्थात सिर एक बहुत ही संवेदनशील अंग है। तभी तो महावत खूंखार से खूंखार हाथी को उसके मस्तक पर अंकुश चुभा कर नियंत्रित कर लेता है। प्रत्येक बौद्धिक व्यक्ति असंयमी, दुष्ट और अहंकारी से व्यर्थ ही सिर नहीं भिड़ाता। ये मर्म केवल गज के सिर में ही माना गया है। गणेश जी के सिर से भी हमें यह शिक्षा मिलती है कि व्यर्थ में किसी अविवेकी कार्य को लेकर सिर नहीं भिड़ाना चाहिए। यही बात कभी किसी चित्रकार से पहले किसी ग्रंथकार की समझ में आई होगी जो उसने गणेश जी की बुद्धि-विवेक की तुलना गज-मस्तक से की और उसी को लेकर चित्रकार ने गणेष जी का साकार चित्र खींच दिया। वही कल्पना धीरे-धीरे गणपति जी के गज सिर के रुप में साकार प्रचलित हो गई।
ऋ ग्वेद में स्पष्ट लिखा है कि देवाधिदेवों में गणपति जी सर्वज्ञ हैं, उनके बिना कोई भी शुभ कर्म आरंभ नहीं किया जाता।
गणेश पुराण में भी स्पष्ट है कि गणपति जी को शैव, शक्ति और वैष्णव तथा प्रत्येक संप्रदाय के मानने वाले दैहिक, भौतिक अथवा वैदिक शुभाशुभ प्रत्येक कार्यों में सर्वप्रथम पूजनीय मानते हैं।
गणेश जी की नाक को लेकर प्रश्न उठता है कि इतनी बड़ी नाक वाला भी कोई देव हो सकता है? आपने तो सुना ही होगा कि जितनी बड़ी नाक, उतनी अधिक प्रतिष्ठा अर्थात व्यक्ति उतना ही बड़ा प्रतिष्ठावान। प्रतिष्ठा कम हुई, कहीं अपमान की स्थिति आई तो यह भी कह दिया जाता है कि उसकी तो नाक कट गई। अब कोई पूछे कि भई प्रतिष्ठा और नाक में क्या मेल? बस यह समझिए कि यह एक मुहावरा बन गया, एक प्रचलित संबोधन बना दिया गया प्रतिष्ठा का। बौद्धिक और सभ्य समाज के साथ-साथ प्रत्येक वर्ग में यही शिक्षा दी जाती है कि व्यक्ति को कभी कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे की समाज में उसकी नाक कट जाय। नाक का इतना सम्मान! नाक की इतनी प्रतिष्ठा! नाक का इतना बड़प्पन! नाक की इतनी चर्चा! समाज में सब कुछ जैसे नाक के चारों ओर हो रहा है। हम सब जैसे अपनी नाक बचाने के लिए ही समाज में जी रहे हैं। फिर हमारी नाक लंबी क्यों न हो। हम क्योंकर मान लें कि हमारी नाक किसी से छोटी है। हम क्यों अपनी नाक पर मक्खी बैठने दें।
इन समस्त बातों की शिक्षा हमें हाथी की लंबी सूंड से मिलती है। नभ, थल और जल के किसी जीव की नाक हाथी जितनी बड़ी नहीं है। इसीलिए कल्पना कार गणपति जी के हाथी की लम्बी नाक लगाने के पक्ष में रहे होंगे और आज गणपति जी का यह रुप प्रचलित हुआ होगा।
गणपति जी को समस्त विघ्न बाधाओं को दूर करने वाला विघ्नेश्वर भी कहा जाता है। उन्हें किसी भी आगामी विघ्न का पूर्व ही आभास हो जाता है। वह किसी अशुभ को पहले अनुमान कर लेते हैं। यह आभास कल्पनाकार ने लम्बी सूंड के रुप में दर्शाया। जैसे कि वह किसी भी अनिष्ट को पहले से सूंघ लेते हों। यह लंबी नाक इसी बात का प्रतीक कि वह समस्त विघ्न-बाधाओं को सूंघ कर जान लेते हैं। यह समझें कि जितनी बड़ी नाक होगी उतनी ही शीघ्रता से अप्रिय घटना का आभास हो जाएगा।
प्रभू की लीला भी विचित्र है। हाथी के सिर के अनुपात में ही उसने उसे दो बड़ी ऑखें भी दी हैं। उसकी आंखों में भी कहते हैं कि विचित्रता है। उसे सामने की वस्तु वास्तविक आकार से कई गुना बड़ी दिखाई देती है-ठीक एक आतिशी शीशे की तरह। संभवत: यह गुण इसलिए रहा हो कि हाथी को यह लगे कि वह ही संसार में भीमकाय जीव नहीं है और उसे यह भी अहंकार न हो जाए कि सब तुच्छ हैं और इसी दर्प में वह छोटे-बड़े जीव को कुचलता हुआ ना चले। हाथी के इस गुण से यह शिक्षा मिलती है कि अपने को दूसरों से छोटा समझों अर्थात अपने में अहम् मत आने दो। गणेश जी की ऑखें इसी शिक्षा की प्रतीक हैं। उनकी बड़ी ऑखों वाला रुप चित्रकार द्वारा आज साकार रुप में पूजनीय है।
गणेश जी के लंबे कान और तुंदल पेट भी चित्रों में दिखाये जाते हैं। कान सब सुनते हैं। बड़े कान सतर्कता के प्रतीक हैं। परंतु सुनी हुई बात को अपने में पचाने की कितनी अधिक सामर्थ्य है कि पेट को फूला हुआ ही दिखा दिया। कान का कच्चा होना ओछापन कहलाता है। यह भी कह देते हैं कि उसके कान बहुत छोटे हैं। इसका अर्थ यही निकलता है कि उसमें अच्छी-बुरी बात पचाने की सामर्थ्य नहीं है। उसे इस बात का संयम नहीं है कि वह किसी बात को गुप्त रख सके। ओछे कान इस बात का भी प्रतीक हैं कि वह बिना समझे-बूझे किसी बात पर भी विश्वास कर लें। गणेश जी के बड़े कान उनके संयम का प्रतीक हैं और लंबा उदर, जिसके कारण वह लंबोदर कहलाते हैं, यह दर्शाता है कि छोटी-बड़ी बात पचाने की कितनी अधिक शक्ति उनमें है।
चूहा गणेश जी का वाहन निर्धारित किया गया है। कहाँ यह लंबोदर कहाँ यह सूक्ष्म थलचर! कैसे गजानन इस छोटे से जानवर पर सबारी कर पाते होंगे? यह भी एक हास्यास्पद प्रश्न है। कल्पनाकार ने किसी बात से प्रभावित होकर यह रुप गढ़ा होगा। यह निम्न तर्क से स्पष्ट हो जाएगा।
व्यक्ति की शंकालु प्रवृत्ति, अनावश्यक तर्क-वितर्क, व्यर्थ में इधर-उधर की चर्चा वाली आदत उसे जीवन में अधोमुखी बनाती है। उसका पतन निश्चित है -यह कह दें तो त्रुटि नहीं होगी। व्यर्थ में तार्किक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति का सर्वनाश होता है। चूहे महाराज को तर्क का प्रतीक माना जाता है। यह तर्क रुपी अपनी दांतों की कैंची से अकारण ही किसी भी वस्तु को कुतरकर उसे नष्ट कर देता है। विश्व में क्या पूरे ब्रह्माण्ड में जहां कही भी चूहा होगा उसे विधी द्वारा यही स्वाभाव मिलेगा।
वितर्कों से बचने के लिए चूहे के वाहन से उपयुक्त और कोई पशु नहीं मिला होगा इसीलिए उसे गणेश जी का वाहन निर्धारित किया गया। चूहे के वाहन सहित गणेश जी का रुप हमें यही शिक्षा देता है कि तर्क को नियंत्रण में रखा जाए, उसे व्यर्थ में स्वतंत्र में विचरण के लिए नहीं छोड़ देना चाहिए।
दूसरी ओर यह प्रथा भी प्रचलित है कि जहां चूहे मरने लगते हैं वहां अकाल, महामारी और अनेक प्रकार की बीमारियों का प्रादुर्भाव होने लगता है। यह भी मान्यता है कि चूहे समृद्ध और वैभवशाली घर में निवास करते है। दरिद्र के घर से चूहे तक भाग जाते है। लोग यहां तक मानते हैं कि जिस घर में चूहे निश्चिंतता से विचरण कर रहे हों उसे घर को कोई विपदा, आपत्ति और चिंता घेर ही नहीं सकती। संभवत: चूहे महाराज को इतना शुभ होने के कारण ही गणेश जी का वाहन माना गया है।
जिस घर में गणपति देव का ध्यान, पूजन आदि श्रद्धा भाव से किया जाता है वहां कैसा भी विघ्न, व्याधि अथवा विशेष रुप से वास्तु प्रदत्त कोई दोष व्यक्ति को नहीं सताता। देव का तो नाम ही है - विघ्नविनाशक। समयाभाव अथवा आलस्यवश यदि विधिविधान पूर्वक आप यदि देव का ध्यान-पूजन नहीं भी कर पा रहे है तो एक छोटा सा उपाय अवश्य प्रारंभ कर दें। दैहिक, भौतिक और अध्यात्मिक तीनों सुखों की अनुभूति आपको स्वत: ही होने लगेगी।
किसी शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी की एक ऐसी प्रतिमा, फोटो, पोस्टर, कैलण्डर आदि उपलब्ध कर लें जिसमें उनकी सूंड उनके दाहिने हाथ की ओर मुड़ी हो। इसी प्रतिमा को अपने घर के मुख्या द्वार पर इस प्रकार से स्थापित कर दें कि देव का मुंह घर के अंदर की ओर रहे। इसके ठीक सामने लक्ष्मी जी अथवा कुबेर जी का कोई यंत्र, फोटो अथवा विग्रह आदि रख दें।
नित्य गणेश जी की प्रतिमा पर दूब घास धोकर चढ़ाए। पुरानी दूब को नई चढ़ाने के बाद घर से बाहर छोड़ दें। इसी प्रकार यदि संभव हो सके तो लक्ष्मी जी यंत्र पर लाल रंग के पुष्प नित्य चढ़ा दिया करें। दूब और पुष्प चढ़ाते समय जैसी भी श्रद्धा भाव से पूजा-अर्चना बन पड़े कर लिया करें। पूरी तरह दीन होकर गणेश जी के नेत्रों में त्राटक करके निम्नलिखित स्तुति कम से कम एक बार अवश्य पढ़ लिया करें। पंक्तियॉ पढऩे की संख्या जो प्रथम बार हो वही नित्य रहनी चाहिए।
निरन्तर यह भावना बनाएं रखें कि दुर्भाग्य का आपके परिवार से धीरे-धीरे पलायन हो रहा है और सौभाग्य का उसकी जगह पर आगमन प्रारम्भ हो रहा है। इस सरलतम छोटे से परन्तु उतने ही प्रभावशाली प्रयोग से आप कुछ ही समय में अनुभव करने लगेंगे कि प्रभु की कृपा आप तथा आपके समस्त परिवार पर होनी प्रारम्भ हो गई है। यह भी निरन्तर विश्वास बनायें रखें कि एक बार प्राप्त हुई प्रभु की कृपा सर्वदा स्थाई होती है

ईमानदार पारदर्शी एस.एस.पी. के साथ ऐसा क्यों ?

चंडीगढ़ चंडीगढ़ के समाचार पत्रों में रोजाना ही अपराधों के बढ़ते ग्राफ के साथ-साथ एस.एस.पी. नौ निहाल सिंह की लगातार फजीहत के पीछे कौन से ग्रह और नक्षत्र काम कर रहे हैं, ये जानने की जिज्ञासा हर कोई मन में दबाये हुए है कि आखिर पंजाब जैसे सूबे में अपराधों के खात्मे का नाम बन चुके नौ निहाल सिंह अपने ही पसंदीदा शहर चंडीगढ़ में किन कारकों और कारणों से नाकामी का शिकार हो रहे हैं। एक वारदात सुलझती नहीं कि दूसरी घटित हो जाती है और लाख कोशिशों और दावे व वादों के बावजूद पुलिस के हत्थे कुछ नहीं चढ़ता है। कुछ अख़बार इसको अपने ही विभिषनों का कारनामा करार दे रहे है। ऐसा भी नहीं कि कोई डी.एस.पी. या इंस्पैक्टर पुलिस अफसर साहब को को आपरेट नहीं कर रहा है। हर मुजरिम को पकडऩे के लिए सिद्धस्त डी.एस.पी. रात दिन एक किये हुए हैं और इनके चुंगल से अपराधी इनको ही धत्ता दिखा कर आखिर कहाँ और कितने दिन छुपे रहेंगे, ये सवाल भी अखरते हैं। चंडीगढ़ पुलिस की कारगुजारी फि़लहाल नाकाम और ठंडी जरुर है पर उसके चुंगल से बचना अपराधिक तत्वों के लिए मुश्किल रहेगा। पुलिस का खुफिया तन्त्र और क्राइम सैल अपनी मुस्तैदी कई मर्तबा दिखा करके मुजरिमों को सुदूर प्रान्तों तक से गिरफ्तार कर सींखचों के पीछे धकेल चुके हैं। नेहा और कश्मीर सिंह के बाद खुशप्रीत सिंह के अपहरण और फिर बेरहमी से कत्ल के बाद करोड़ों रूपये की डकैती चंडीगढ़ की हाई प्रोफाइल पुईस के लिए चुनौती जरुर है पर ऐसा नहीं की पुलिस के पास इसका तोड़ ना हो। पब्लिक को भी इन अनसुलझे केसों को सुलझाने में मदद कर्णी चाहिए। ये सब का नैतिक और इंसानी फर्ज बनते हैं। आखिर पुलिस भी तो पब्लिक के सुरक्षा और शांति के लिए कार्य करती है। कमाना करते हैं कि पुलिस के दामन पर कोई दाग ला लगे और हर अपराधी जेल में हो और पब्लिक में पुलिस के प्रति कोई संदेह ना जागे

Save India

- Save India
Dear All
1. Provide our soldiers and policemen the right equipment to fight crime, terror and goondas

2. Provide our soldiers and policemen the right salaries for good living so that they do not think of corrupt activities
3. Provide infrastructure to entire India
4. Provide jobs to the jobless. This is only possible if we all get together as people of India and revolt.
Yes we need a revolution and we should be ready to spend time to do whatever is required.
Let us get ready for the second independence struggle,!
Jai Hind “

Indians are poor but India is not a poor country”. Says one of the Swiss bank directors. He says that “280 lac crore (280,00,000,000,0000) of Indian rupees is deposited in Swiss banks which can be used for ‘taxless’ budget for 30 yrs. Can give 60 crore jobs to all Indians. From any village to Delhi 4 lane roads.
Forever free supply to more than 500 social projects. Every citizen can get monthly 2000/- for 60 yrs. No need of world bank & IMF loan.
Think how our money is blocked by rich politicians. We have full right against corrupt politicians. Don’t forget CWGames…..Adarsh building Ghotala…..
latest 2g spectrum telecommunication ghotala…. Itna forward karo ki pura INDIA padhe.
Take this seriously, you can forward jokes, then why not this? Be a responsible citizen.

Sunday, January 16, 2011

डीयर को पिलाएं बीयर

यूं तो छोटे बच्‍चे को डॉक्‍टर ठंड से बचने के‍ लिए डॉक्‍टर ब्रांडी पिलाने की सलाह देते हैं लेकिन वैज्ञानिकों की मानें तो रोजाना बीयर की एक केन लेने से आप सभी बीमारियों से दूर रह सकते हैं।
स्पेन के शोधकर्ताओं ने शोध मे यह भी पाया है कि बीयर पीने से ब्लड प्रेशर और डायबिटीज नहीं होता साथ ही वजन भी नियंत्रित रहता है। शोध में पाया गया है कि बीयर में मछली और फलों जितनी पौष्टिकता होती है। इसमें फोलिक एसिड, विटामिन, आयरन और कैल्शियम पर्याप्त मात्रा में होता है।
लेकिन अगर इसे फैट वाले भोजन या चिप्स के साथ लिया जाए तो मोटापा बढ़ सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि रोजाना एक केन बीयर का सेवन कर लंबे समय तक स्‍वस्‍थ रहा जा सकता है।

9 साल तक पुरुष बन महिलाओं के साथ सेक्स करती रही!

लंदन. ब्रिटेन में एक महिला पर पुरुष बनकर दो महिलाओं से नौ साल तक शारीरिक संबंध रखने का आरोप लगा है। एक समाचार पत्र कि रिपोर्ट के मुताबिक समाथा ब्रूक्स नाम की इस 26 वर्षीय महिला ने एक युवती को तो शादी तक के लिए प्रपोज कर दिया।



रिपोर्ट के मुताबिक पुरुष बनी इस समांथा का एक अफेयर तो आठ साल तक चला जबकि दूसरा भी आठ महीने तक चला। अब समांथा पर धोखा देकर शारीरिक संबंध रखने के आरोप लगे हैं। फिलहाल समांथा के खिलाफ स्कॉटलैंड के ग्लासगो हाई कोर्ट में मुकदमा चल रहा है।



मामले की सुनवाई के दौरान सामने आया कि समांथा ने अपनी प्रेमिकाओं से कहा कि उसे टेस्टीकुलर कैंसर (पुरुष अंग में होने वाला कैंसर) है और इस कारण वो संभोग नहीं कर सकती। यही नहीं अपनी ब्रेस्ट को छुपाने के लिए भी उसने झूठ बोला और कहा कि उसकी कमर पर जलने के निशान हैं इसलिए उसे अपने ब्रेस्ट पर बेंडेज बांधने पड़ते हैं। दूसरी महिला से उसने कहा कि उसके सीने में किसी ने चाकू घोंप दिया था जिसके चलते उसे ब्रेस्ट पर बेंडेज बांधना पड़ता है।



समांथा पर यह भी आरोप है कि उसने किसी चीज पर कंडोम पहनाकर उसे लिंग के रूप में अपनी प्रेमिकाओं को दिखाया और फिर उनसे नजदीकियां बढ़ाने में सफलता प्राप्त की। वो यूं तो दोनों महिलाओं के सामने नहाई भी लेकिन अपना शरीर छुपाने के लिए उसने बबल बॉथ लिया ताकि झाग में उसका शरीर छुप सके।



खुद को पुरुष दिखाने के लिए वो खड़े होकर ही पेशाब भी करती थी। लेकिन उसने कभी भी अपने शरीर को अपनी प्रेमिकाओं के सामने नंगा नहीं किया। उसकी प्रेमिका रही दोनों महिलाएं कभी भी उसके ब्रेस्ट नहीं देख पाईं। हालांकि कोर्ट में समांथा ब्रूक्स पर कई आरोप लगे हैं लेकिन उसने किसी को भी स्वीकारने से इंकार कर दिया है। मामले की सुनवाई जारी है

लालबत्ती लगाने पर अवतार सिंह नगला की कार का चौथी बार चालान

जीरकपुर. नेताओं का लालबत्ती लगाकर आम जनता के सामने खुद को वीआईपी जताने का चाव छूटे नहीं छूट रहा। ऐसे ही एक नेता केंद्रीय शिल्प विभाग के डायरेक्टर अवतार सिंह नगला बिना मंजूरी के अपनी कार पर लालबत्ती इस्तेमाल करते चौथी बार धर लिए गए।

जीरकपुर पुलिस ने शनिवार को उनका चालान काटकर एक बार फिर उनका वाहन जब्त कर लिया। इससे पहले अवतार सिंह नगला की चार अलग अलग लालबत्ती गाड़ियांे का चालान किया जा चुका है। दिसंबर, 2008 में तो उन्हें बिना परमिशन एक साथ दो वाहनों पर लालबत्ती व हूटर तक इस्तेमाल करते हुए धर लिया गया था।

जीरकपुर में एक विवाह समारोह में सीएम प्रकाश सिंह बादल समेत मंत्रियों को लेकर पुलिस सुरक्षा बंदोबस्त में जुटी थी। इस बीच अवतार सिंह नगला की अंबेसडर कार को जांच के लिए रोका गया। अवतार सिंह लालबत्ती की परमिशन व गाड़ी के दस्तावेज दिखाने में असफल रहे। मौके पर मौजूद एसपी ट्रैफिक एसएस पंधेर ने उनकी कार जब्त कर ली। अवतार सिंह को एक बार फिर पैदल लौटना पड़ा।

इससे पहले 4 दिसंबर, 2008 को डेराबस्सी में नगला की स्कॉर्पियों के अलावा उसे एस्कॉर्ट कर रही कार को भी बिना मंजूरी के लालबत्ती इस्तेमाल करते जब्त कर लिया गया था। दोनों वाहनों पर लालबत्ती के अलावा गवर्नमेंट ऑफ इंडिया लिखा था। स्कॉर्पियों वाहन पर तो दो हूटर, छत पर दो सर्च लाइटें भी लगी थीं। अवतार सिंह की इसी कोरोला कार का चार महीने पहले भी मुबारिकपुर में बिना परमिशन लालबत्ती के इस्तेमाल पर चालान किया गया था। तब लालबत्ती बारे अवतार सिंह का डेराबस्सी थाने में दिया गया बयान भी पुलिस के लिए हास्यास्पद था।

अवतार का कहना था कि हाईवे पर टोल बचाने व सुरक्षा के लिए वे लालबत्ती का इस्तेमाल करते आ रहे थे। उन्होंने बताया कि पंजाब सरकार द्वारा उन्हें सुरक्षा गार्ड न दिए जाने पर वे लालबत्ती लगाकर खुद को महफूज फील करते थे। उन्होंने बताया कि कार व मंजूरी के दस्तावेज मौके पर दिखाने में असफल रहे, परंतु उन्होंने दावा किया वे जल्द ही दस्तावेज सहित पेश होंगे।

हरियाणा में दो युवतियों ने रचाई शादी, मांगी सुरक्षा

अम्बाला. अम्बाला की दो युवतियों को एक-दूसरी का साथ इस कदर भाया कि दोनों ने मंदिर में साथ जीने मरने की कसमें खा लीं। एक युवती कंप्यूटर हार्डवेयर विशेषज्ञ है, जबकि दूसरी प्राइवेट स्कूल में टीचर है।


दोनों ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट से साथ रहने की अनुमति व सुरक्षा मांगी है। कई दिन तक घर से गायब रहने के बाद शनिवार को वे महेशनगर थाने पहुंची। पुलिस ने भी इस बात की पुष्टि की है कि दोनों 7 जनवरी को ‘शादी’ कर चुकी हैं।


शनिवार को दोनों अपने-अपने घर चली गईं। दोनों युवतियां बालिग हैं। इनमें से एक एकता विहार की है और दूसरी प्रभु प्रेम पुरम की। दोनों के बीच काफी समय से गहरे संबंध थे। एकता विहार रहने वाली युवती का पहनावा और रहन सहन लड़कों जैसा है। दोनों के परिवार वाले भी इस रिश्ते से खुश नहीं हैं।


थाना महेशनगर के जांच अधिकारी लख्मी चंद ने कहा कि दोनों शनिवार को थाने आई थीं और बताया कि 7 जनवरी को एक मंदिर में शादी कर चुकी हैं। थाने में दोनों के परिजनों को समझा दिया है कि कानून को हाथ में न लें।


याद आया खुशबू अरोड़ा का केस


एडवोकेट अजय वर्मा के मुताबिक वर्ष 2009 में खुशबू अरोड़ा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस खूब चर्चा में रहा था। जब दिल्ली हाईकोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में कहा था कि लड़की के लड़की के साथ सेक्सुअल संबंध (लेस्बियन) अपराध नहीं है। यदि दोनों बालिग हैं और अपने निर्णय लेने के काबिल हैं। संविधान में भी सभी को अपने तरीके से जीने का अधिकार दिया है। दिल्ली हाईकोर्ट के इस फैसले पर देशभर में खूब हो हल्ला हुआ था।


कानून नहीं देता इजाजत


हिंदू मैरिज एक्ट के जाने माने अधिवक्ता एवं केंद्र व राज्य सरकार के केस देखने वाले अजय वर्मा कहते हैं कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 5 में शादी की शर्ते उल्लेखित हैं। शादी लड़के व लड़की के बीच ही हो सकती है। हिंदू मैरिज एक्ट से अलग स्पेशल मैरिज एक्ट भी है। जिसमें गैर हिंदू या विदेशी से शादी का जिक्र है। मगर इसमें भी शर्ते हिंदू मैरिज एक्ट वाली ही हैं। ऐसे में लड़की से लड़की की शादी नहीं हो सकती।

इंद्रेश कुमार के समर्थन में आया मुस्लिम राष्ट्रीय मंच

नई दिल्ली. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय संयोजक मोहम्मद अफजाल ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस हिन्दू व मुस्लिम को मजहबी आधार पर बांटकर सिर्फ वोट की राजनीति कर रही है। साथ ही, राष्ट्रवादी इंसान इंद्रेश कुमार को आतंकी गतिविधियों में फंसाने की साजिश कर रही है।


प्रेस क्लब में पत्रकारों से वार्ता करते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने देश में भ्रष्टाचार को चरम पर पहुंचा दिया है। वोट बैंक की राजनीति करते हुए पूरे समाज में नफरत का माहौल बना दिया है।


उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने मुस्लिमों को अल्पसंख्यक बताकर उन्हें अहसास-ए-कमतरी का शिकार बनाया और षड्यंत्र के तहत ही मुस्लिमों को शिक्षा से दूर रखा गया है। इस वजह से उनकी तरक्की नहीं हो रही है और सेहत के साथ भी खिलवाड़ हो रहा है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने आजादी के बाद से अब तक मुस्लिमों के लिए कुछ नहीं किया है।


इसका सबूत सच्चर कमेटी की रिपोर्ट है। कांग्रेस वोट पाने के लिए मुस्लिमों के उत्थान का दिखावा करती है। अफजाल ने कहा कि कांग्रेस आतंकवाद को धर्म से जोड़कर समाज को बांटने में लगी हुई है। पहले सिख आतंकवाद, फिर इस्लामी और अब भगवा आतंक का नारा उछाल कर समाज को बांट रही है।


उन्होंने कहा कि इंद्रेश कुमार संघ से जुड़े हैं और पिछले दस साल से समाज में एकता की अलख जगाने का काम रहे हैं। उन्हें आतंकी गतिविधियों में शामिल बताकर देश को तोड़ने की साजिश चल रही है।


एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के बाद देश को एकता की डोर में पिरोने का काम इंद्रेश कुमार ने किया है। उन्होंने कश्मीर में हो रहे जुल्म के खिलाफ आवाज उठाई है और वह मुस्लिमों को विदेशी नहीं मानते हैं। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय मुस्लिम मंच इंद्रेश कुमार के मार्गदर्शन में काम कर रहा है। इसके अलावा कई उलेमा संगठन को चलाने में मदद करते हैं।


मुस्लिमों के उत्थान के लिए संगठन दीनी तालीम के साथ-साथ दुनियावी इल्म भी मदरसों में सिखा रहा है। उन्होंने कहा कि इंद्रेश कुमार के पर हुए अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए राजस्थान से संगठन आंदोलन की शरुआत करेगा। इस मौके पर संगठन से जुड़े मौलाना कलीम कुरैशी, डॉ. बिलकीस बानो, हसन इमाम, इमरान चौधरी, शाहनाज बेगम आदि मौजूद थे।

सेक्स, पॉलिटिक्स और मर्डर मिस्ट्री की पूरी दास्तां........................................

पूर्णिया/ पटना। 4 जनवरी 2010 की सुबह। पूर्णिया जिले का सिपाही टोला। यहां सदर से भाजपा विधायक राजकिशोर केशरी के घर पर जनता दरबार लगा हुआ था। राजहंस पब्लिक स्कूल की प्राचार्या रूपम पाठक जनता दरबार में आकर बैठ गई। उसने विधायक से अकेले में बात करने की इच्छा जतायी।


विधायक निर्धारित स्थल से हटकर बगल में उससे बातचीत करने लगे। इतने में उसने अपनी शॉल में छुपा चाकू निकाल कर विधायक के पेट पर वार कर दिया। चाकू लगते ही विधायक जमीन पर गिर गये। इस मंजर को देख वहां के लोगों के होश फाख्ता हो गए। जब तक लोग कुछ समझ पाते तब तक केशरी के प्राण पखेरू उड़ चुके थे।

इस घटना के बाद आक्रोशित लोगों ने रूपम की जमकर पिटाई की। इस पिटाई में घायल उसे कटिहार मेडिकल कालेज अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां उसकी स्थिति नाजुक बनी रही। कई बार तो उसके मरने की खबर भी उड़ी। होश में आने के बाद रूपम ने कहा कि उसने जो किया है, वो सही किया है। उसे पछतावा नहीं है। पर वह अब जीना नहीं चाहती है। उसे भी मार दिया जाय। पुलिस ने रुपम को गिरफ्तार कर लिया। उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत मिली है।

रूपम चीख-चीख कर कह रही थी कि विधायक उसका रेप करता रहा है। केवल वह ही नहीं उसके गुर्गे ने भी उसका रेप किया है। इनका मन उससे नहीं भरा तो अब उसकी 17 साल की बेटी की मांग कर रहे थे। उसकी बेटी का भी रेप करना चाहते थे। जब रूपम ने मना किया, तो उसे फोन पर धमकियां देने लगे। परिवार को सारी बात बता देने का डर दिखा कर स्कूल में जाकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाया करते थे। पर जब बात बेटी पर आ गई तो मां ने चंडी का रूप धारण कर लिया।

यह घटना पूरे देश में आग की तरह फैल गई। चूंकि मामला सियासत से जुड़ा था, इसलिए राजनीति होनी तय थी। इस घटना के तुरंत बाद सूब के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने विधायक पर रेप का आरोप लगाने वाली रुपम को ब्लैकमेलर कहा। उन्होंने कहा कि उसने पूर्णिया के एक अंग्रेजी अखबार लिंक एक्सप्रेस में खबर प्रकाशित करवा कर और इसके आधार पर 2007 की तथाकथित घटना के तीन साल बाद विधायक पर यौन शोषण का झूठा आरोप लगाया। फिर 14 जून 2010 को रुपम ने शपथपत्र दायर कर कहा कि किसी के बहकावे में आ कर उसने विधायक श्री केशरी के खिलाफ बलात्कार का केस दर्ज किया है। विधायक और उसके पीए विपिन राय से उसका किसी तरह का विवाद नहीं है।

मोदी के बयान के बाद पूरा बिहार रूपम के पक्ष मे आ गया। मोदी के इस्तीफे की मांग की जाने लगी। महिला संगठन लामबंद हो गई। सभी ने एक सुर में सीबीआई जांच की मांग की। आखिरकार मामले की गंभीरता और लोगों की मांग को देखकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सीबीआई जांच की केंद्र से अनुशंसा कर दी। अब सीबीआई इस केस की जांच करेगी।

मामले का फ्लैश बैक

इस मर्डर और रेप केस की मिस्ट्री समझने के लिए फ्लैश बैक में चलते हैं। रूपम पाठक पूर्णिया में राजहंस पब्लिक स्कूल चलाती हैं। स्कूल के एक वार्षिकोत्सव में विधायक केशरी मुख्यअतिथि बनकर आये। यहां आने और रूपम से बातचीत करने के बाद केशरी की नीयत खराब हो गई। 18 अप्रैल 2007 को रूपम प्रोग्राम की फोटो देने के लिए विधायक के घर गई। वहां उनके साथ जबरन दुष्कर्म किया गया। बाद में उसके पीए विपिन ने रूपम का उसके ही विद्यालय के क्लास में रेप किया। इसके बाद विपिन उसे परिवार वालों को बता देने की धमकी दे कर यौन शोषण करता रहा।

रूपम के साथ विधायक का मन भर गया था। रूपम की 17 साल की बेटी पर उसकी नजर लग गई थी। कुछ दिन पहले ही विधायक ने अपनी ईच्छा जाहिर की थी। रूपम नाराज हो गई। विधायक को सख्त लहजे में मना किया। केशरी मानने वाला कहां था, इस जबरन कोशिश से रूपम नाराज हो गईं।

उसने 28 मई 2010 को यौन शोषण का मामला दर्ज कराया। पुलिस ने कांड संख्या 182/10 में विधायक राज किशोर केसरी एवं उनके एक सहयोगी विपिन राय को आरोपी बनाया था। इस घटना ने बिहार और पूर्णिया की राजनीति में हलचल मचा दी। मामले को सलटाने के लिए दोनों पक्षों के बीच सुलह कराई गई। उस समय मामला शांत हो गया। रूपम ने केस वापस ले लिया।

रिपोर्ट के मुताबिक, 31 दिसंबर की रात विधायक अपने गुर्गों के साथ न्यू ईयर की पार्टी मना रहा था। वह रूपम के घर पहुंच कर उससे जबर्दस्ती करने लगे। इस घटना से रूपम आपे से बाहर हो गई। बात अब बेटी की भी आन पर आ गई थी। उसने विधायक को सबक सिखाने की सोची। वह एक जनवरी को ही विधायक जी के आवास पर पहुंचीं, पर भारी भीड़ के कारण मौका नहीं मिल पाया। वह वापस लौट आईं। पर 4 जनवरी के सुबह 9.30 को उसे मौका मिल गया। और उसने विधायक का चाकू घोपकर मर्डर कर दिया।

मर्डर के बाद रूपम का परिवार

इस मर्डर के बाद रूपम के घर की स्थिति दयनीय हो गई है। पुलिस और प्रशासन के प्रेशर के कारण रूपम का परिवार भटक रहा है। सूत्रों की माने तो उसके घर पर पुलिस ने कब्जा कर रखा है। स्कूल में ताला जड़ दिया गया है। रूपम की मां को प्रताड़ित किया जा रहा है। इस भयंकर ठंड में एक वृद्ध भटकने के लिए मजबूर है। वह चाह कर भी अपनी बेटी से नहीं मिल पा रही है। उसे अपनी बेटी के किए पर पछतावा नहीं है। मां कहती है कि यदि विपिन मेरे सामने आ जाए तो उसका खून पी जाएंगी। विधायक और उसके गुर्गों ने उनकी बेटी का जीवन नरक बना दिया था।

मर्डर के बाद विधायक राजकिशोर केशरी का परिवार

लोगों की माने विधायक को तो अपने किए की सजा मिल चुकी है। पर उनका परिवार तड़प रहा है। वह अपने पीछे भरे-पूरे परिवार के साथ पत्नी और बेटा छोड़ गए हैं। जहां पहले हमेशा चहल-पहल रहा करती थी। जनता का दरबार लगा करता था। विधायक फैसले सुनाया करते थे। आज वहां अगर कुछ है तो सिर्फ सन्नाटा। हर ओर मातम और मायूसी। कोई किसी से बात तक करने की स्थिति में नहीं। जहां लोगों का मेला लगा करता था, आज वहां मातम है। यहां ऐसी स्थिति हो जाएगी, इसकी तो किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। पर, होनी को कुछ और ही मंज़ूर था। विधायक राजकिशोर केशरी के मधुबनी टोला स्थित घर पर ख़ामोशी है। परिजन और परिचित आ जरुर रहे हैं, लेकिन मुंह पर चुप्पी साधे। घर के परिसर में श्राद्ध के लिए पंडाल लगभग बन कर तैयार हो गया है। वहीं पर एक टेबल पर विधायक की तस्वीर लगी है, जिस पर फूलों का माला लटका हुआ है।

क्या है लोगों का कहना

इसके घटना के बाद ज्यादतर लोगों का कहना है कि रूपम ने जो किया वह ठीक है। रूपम को लोगों को आपार समर्थन मिल रहा है। लोग गंदी राजनीति और राजनेता से अब उब चुके हैं। सीबीआई जांच पर भी लोगों को भरोसा नहीं है।

Saturday, January 15, 2011

वोट की जंग में उतरे नेता

मुक्तसर। मुक्तसर की जनसभा में सरकार और कैप्टन के मुकाबले मनप्रीत की रैली में भारी संख्या में लोगों ने उमड़कर इनके खिलाफ खतरे की घंटी बजा दी। बगैर कोई राजनीतिक संगठन खड़ा किए मनप्रीत ने शानदार रैली कर विरोधियों को अपनी ताकत का एहसास कराया। वहीं जनता ने भी यह जाहिर कर दिया है कि वह बगैर किसी दबाव के रैली में आई। इसका अंदाजा मुक्तसर के चारों ओर लगे लंबे जामों से लगाया जा सकता था। मुक्तसर जिला प्रशासन रैली के रश को नियंत्रित करने में बिल्कुल नाकाम रहा। अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल ने भी रश इकट्ठा करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी, लेकिन कैप्टन की सभा में लोगों का जोश कम नजर आया।

मनप्रीत की सभा में भारी संख्या में आए लोगों को हालांकि यह आशा थी कि वह आज यहां कोई प्रोग्राम देंगे लेकिन उन्होंने केवल इतना कहा, मैं यहां वोट मांगने नहीं, बल्कि आप लोगों को इंसाफ और इंकलाब के लिए तैयार करने आया हूं। इससे रैली में आए लोगों में निराशा हुई। यही नहीं उन्होंने नई राजनीतिक पार्टी बनाने के बारे में भी कुछ नहीं बोला। बेशक उनके मंच से उनके समर्थक बीर दविंदर सिंह ने प्रस्ताव पारित करते हुए यह जरूर कहा कि 23 मार्च तक राजनीतिक पार्टी की संभावनाओं की तलाश जरूर की जाए।

दूसरी ओर अकाली दल की रैली में मुख्यमंत्री ने अपना भाषण केंद्र सरकार की नाकामी और भ्रष्टाचार पर केंद्रित रखा तो उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल अपनी सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यो को गिनवाते रहे। कैप्टन ने फिर से अपना सुर बादल परिवार पर केंद्रित रखते हुए अफसरों को सबक सीखाने की चेतावनी दी।

अकाली नेताओं की क्लास लगाएंगे सुखबीर
सुखबीर सिंह बाजवा चंडीगढ़। मनप्रीत की रैली की सफलता ने शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस को सोचने पर मजबूर कर दिया। मेले में सबसे ज्यादा भीड़ शिअद की रैली में और उससे कम मनप्रीत बादल की रैली में रही। इस मामले में कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही। मनप्रीत की रैली की सफलता को देखते हुए शिरोमणि अकाली दल के कई नेताओं की क्लास लगनी तय मानी जा रही है। मनप्रीत ने मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उपमुख्यमंत्री सुखबीर चिंता बढ़ा दी है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि अब उन नेताओं की खैर नहीं, जिनकी ड्यूटियां माघी मेले में भीड़ जुटाने के लिए लगी थी। जल्द ही उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल ऐसे नेताओं की क्लास लेंगे, जो ड्यूटी ढंग से नहीं निभा पाए। सुखबीर भीड़ जुटाने वाले नेताओं की रिपोर्ट तलब करेंगे।

कांग्रेस को भी सोचने पर किया मजबूर
मनप्रीत की रैली की सफलता ने कांग्रेस को मंथन पर मजबूर कर दिया है। पंजाब में पहले कांग्रेस का मुकाबला अकाली-भाजपा से ही था, लेकिन मनप्रीत की लगातार दूसरी रैली की सफलता ने कांग्रेस को जता दिया कि अब मुकाबला अकाली-भाजपा के साथ-साथ मनप्रीत से भी है। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पार्टी इस पर मंथन करेगी।

विधानसभा चुनाव में नुकसान करेंगे मनप्रीत
मनप्रीत की बढ़ती लोकप्रियता और उनकी रैलियों की सफलता देखते हुए राजनीतिक गलियारों में चर्चा गरम हो गई है कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में शिअद और कांग्रेस दोनों को नुकसान पहुंचाएंगे। पहले जहां शिअद मनप्रीत को गंभीरता से नहीं ले रहा था, वहीं कांग्रेस भी उन्हें हल्के में ले रही थी। लेकिन उनकी रैलियों की सफलता देखते हुए अब दोनों पार्टियों ने उन्हें गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है

आतंकवाद का धर्म से क्या नाता?

यदि आतंकवाद का सहारा लेने वाले साधु-संतों का तर्क यह है कि उनका आतंकवाद सिर्फ जवाबी आतंकवाद है, तो मैं कहूंगा कि यह तर्क बहुत बोदा है। आप जवाब किसे दे रहे हैं? बेकसूर मुसलमानों को? आपको जवाब देना है तो उन कसूरवार मुसलमान आतंकवादियों को दीजिए, जो बेकसूर हिंदुओं को मारने पर आमादा हैं। आतंकवाद कोई करे, किधर से भी करे, मरने वाले सब लोग बेकसूर होते हैं।

क्या आतंक का कोई रंग होता है? कोई मजहब होता है? होता तो नहीं है, लेकिन मुख-सुख के लिए लोग उसका वैसा नामकरण कर देते हैं। यह नामकरण बड़ा विनाशकारी सिद्ध होता है। कुछ सिरफिरों का उन्माद उनसे संबंधित सारे समुदाय के लिए कलंक का टीका बन जाता है। यह टीका कभी सिखों के सिर पर लगा, कभी मुसलमानों के और अब यह हिंदुओं के सिर पर लग रहा है। जब से असीमानंद का तथाकथित बयान ‘लीक’ हुआ है, देश में अजीब-सी राजनीति शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि यह भगवा आतंकवाद है, हिंदू आतंकवाद है और संघी आतंकवाद है। जिस व्यक्ति को संघी आतंकवाद का सूत्रधार बताया जा रहा है, उसे पाकिस्तानी आईएसआई का एजेंट भी कहा जा रहा है। क्या खूब है यह राजनीति?

जो लोग आतंकवाद की राजनीति कर रहे हैं, वे बहुत भोले मालूम पड़ते हैं। वे यह क्यों नहीं समझ रहे कि आतंकवाद और हिंदू, इन दो शब्दों को आपस में जोड़कर वे करोड़ों शांतिप्रिय हिंदुओं को ठेस पहुंचा रहे हैं? वे अनायास ही अपने लाखांे-करोड़ों वोटों को खोने का इंतजाम कर रहे हैं। बिल्कुल वैसे ही जसे कुछ कट्टरपंथी आतंकवादियों के कारण देश के सारे मुसलमानों को बदनाम करने की कोशिश की गई थी। भला इस्लाम का आतंकवाद से क्या लेना-देना? जिस धर्म के नाम का अर्थ ही शांति और सलामती है, उसके मत्थे इस्लामी आतंकवाद शब्द मढ़ देना कहां तक उचित है? इसी प्रकार हिंदुत्व और आतंकवाद में तो 36 का आंकड़ा है। जो हिंदू ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ यानी समस्त प्राणियों में स्वयं को ही देखता है, वह किसी बेकसूर की हत्या कैसे कर सकता है? आतंकवाद तो शुद्ध कायरता है। उसमें बहादुरी कहां होती है? जो लुक-छिपकर वार करे, बेकसूर को मारे और मारकर भाग जाए, उसे बहादुर कौन कहेगा? कोई भी आतंकवादी न तो योद्धा होता है और न ही क्रांतिकारी! योद्धा तो लड़ने के पहले बाकायदा युद्ध की घोषणा करता है और अगर उसके प्रतिद्वंद्वी के हाथ में शस्त्र नहीं होता है तो वह उसे शस्त्र देता है। इसके अलावा वह युद्ध के नियमों और मर्यादाओं का पालन भी करता है। क्या कोई आतंकवादी ऐसा करता है?

हमारे स्वाधीनता संग्राम के अनेक महान सेनानी जसे सावरकर, चाफेकर बंधु, भगतसिंह, बिस्मिल, आजाद वगैरह ने भी हिंसा का सहारा लिया, लेकिन हम उन्हें कभी आतंकवादी नहीं मान सकते। इसके कई कारण हैं। पहला तो उनकी हिंसा सिर्फ विदेशी शासकों तक सीमित थी। उनकी हरचंद कोशिश होती थी कि किसी भी भारतीय का खून नहीं बहे, लेकिन दुनिया के ज्यादातर आतंकवादी अपने ही लोगों की हत्या सबसे ज्यादा करते हैं। कश्मीरी आतंकवादियों ने सबसे ज्यादा किनको मारा? क्या कश्मीरियों और मुसलमानों को नहीं? तालिबान किनको मार रहे हैं? सबसे ज्यादा वे पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मुसलमानों को मार रहे हैं। श्रीलंका के उग्र आतंकवादियों ने सिंहलों के साथ-साथ तमिल नेताओं को मारने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। भारत के आतंकवादी चाहे वे सिख हों या मुसलमान या हिंदू, क्या उन्होंने कोई ऐसा बम बनाया है, जिससे सिर्फ पराए लोग ही मारे जाएं और उनके अपने लोग बच जाएं? अमेरिका में क्लू क्लक्स क्लान के आतंकवादियों का निशाना कौन होते थे? क्या उनके अपने ईसाई लोग नहीं? हमारे माओवादी क्या कर रहे हैं? वे सबसे ज्यादा मार्क्‍सवादियों को ही मार रहे हैं। मार्क्‍स तो माओ के पितामह थे, अगर लेनिन को माओ का पिता मानें तो! हमारे बंगाल के आतंकवादी तो पितृहंता नहीं, पितामहहंता सिद्ध हो रहे हैं।

हमारे क्रांतिकारी बम फेंककर कायरों की तरह जान बचाते नहीं फिरते थे। वे हंसते-हंसते फांसी पर झूल जाते थे। पकड़े जाने पर वे मानवाधिकार या वकीलों या नोबेल लॉरिएटों की शरण में नहीं जाते थे। वे पहले शेर की तरह दहाड़कर बाद में चूहे की मुद्रा धारण नहीं करते थे। इसीलिए अगर कुछ हिंदू संन्यासियों और साध्वियों और कार्यकर्ताओं ने आतंकवाद का सहारा लिया है तो उन्हें अपना अपराध खुलकर स्वीकार करना चाहिए और भारत के कानून को उनके साथ किसी भी प्रकार की नरमी नहीं बरतनी चाहिए। उन्हें इस बात पर भी शर्म आनी चाहिए कि उनके कारण सारा हिंदू समाज ही नहीं, अपना प्यारा भारतवर्ष भी बदनाम हो रहा है। क्या उन्हें पता नहीं कि उनके कारण पाकिस्तान का मनोबल कितना ऊंचा हो गया है? पाकिस्तान को सारी दुनिया उद्दंड राष्ट्र मानती है। अपने तथाकथित साधु-संतों के कारण अब हम भी उसी श्रेणी में पहुंच रहे हैं। यदि आतंकवाद का सहारा लेने वाले साधु-संतों का तर्क यह है कि उनका आतंकवाद सिर्फ जवाबी आतंकवाद है, तो मैं कहूंगा कि यह तर्क बहुत बोदा है। आप जवाब किसे दे रहे हैं? बेचारे बेकसूर मुसलमानों को? आपको जवाब देना है तो उन कसूरवार मुसलमान आतंकवादियों को दीजिए, जो बेकसूर हिंदुओं को मारने पर आमादा हैं। यह कितनी शर्म की बात है कि कुछ बेकसूर नौजवान जेल में सिर्फ इसलिए सड़ रहे हैं कि वे मुसलमान हैं? आतंकवाद कोई करे, किधर से भी करे, मरने वाले सब लोग बेकसूर होते हैं। सारे आतंकवादियों की जात एक ही है और सारे मरनेवालों की भी जात एक ही है। इसीलिए आतंकवाद का जवाब आतंकवाद कभी नहीं हो सकता जसे कि मूर्खता का जवाब मूर्खता नहीं हो सकती।

आतंकवाद कभी भी किसी बात का जवाब नहीं हो सकता, क्योंकि जवाब देने के लिए अक्ल की जरूरत होती है। अक्ल के चौपट हुए बिना आतंकवाद की शुरुआत ही नहीं हो सकती। आतंकवाद तो शुद्ध उन्माद है। भारतीय मनोविज्ञान में जिसे बौद्धिक सन्निपात कहते हैं, आतंकवाद उसकी पराकाष्ठा है। इस्लाम के नाम पर यह सन्निपात पाकिस्तान के मगज की नस-नस में घुस गया है। वरना पैगंबर मुहम्मद जसे महान क्षमादानी के नाम पर सलमान तासीर को कत्ल क्यों किया गया? पाकिस्तान ने अपने कारनामों से इस्लाम को बदनाम कर दिया है। क्या अब भारत हिंदुत्व को भी बदनाम करना चाहता है? तासीर की हत्या पर पाकिस्तान के सभी नेताओं और दलों की घिग्घी बंध गई है। गर्व की बात है कि भारत में ऐसा नहीं हुआ। यह अच्छा हुआ कि संघ ने तथाकथित ‘हिंदू आतंकवादियों’ से अपने को अलग कर लिया और हिंसक गतिविधियों की खुली निंदा की। यदि वह ऐसा नहीं करता तो उसकी दशा भी हमारे वामपंथियों की तरह हो जाती, जो माओवादियों को बचाने की प्रच्छन्न कोशिश करते हैं।

देश का यह बड़ा दुर्भाग्य होगा कि आतंकवाद पर राजनीति की जाए। जसे भ्रष्टाचार सबके लिए निंदनीय है, वैसे ही आतंकवाद भी होना चाहिए। आतंकवाद और भ्रष्टाचार, ये दोनों दैत्य देश के दुश्मन हैं। इन्हें मार भगाने के लिए सभी राजनीतिक दल, सभी नेता, सभी संप्रदाय, मजहब, प्रांत, सभी धर्मध्वजी एकजुट नहीं होंगे तो देश अंदर से खोखला और बाहर से जर्जर होता चला जाएगा। आतंकवाद को न तो रंगों में बांटा जा सकता है और न ही हमारे और तुम्हारे खांचों में! यह बंटवारा नहीं, राजनीति है। आतंकवाद का समूलोच्छेद तब तक नहीं हो सकता, जब तक कि उसे संपूर्ण राष्ट्र का समान शत्रु न माना जाए।

मनप्रीत की रैली की सफलता I कांग्रेस को भी सोचने पर किया मजबूर I अकाली नेताओं की क्लास लगाएंगे सुखबीर

चंडीगढ़. मनप्रीत की रैली की सफलता ने शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस को सोचने पर मजबूर कर दिया। मेले में सबसे ज्यादा भीड़ शिअद की रैली में और उससे कम मनप्रीत बादल की रैली में रही। इस मामले में कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही। मनप्रीत की रैली की सफलता को देखते हुए शिरोमणि अकाली दल के कई नेताओं की क्लास लगनी तय मानी जा रही है। मनप्रीत ने मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उपमुख्यमंत्री सुखबीर चिंता बढ़ा दी है।

पार्टी सूत्रों का कहना है कि अब उन नेताओं की खैर नहीं, जिनकी ड्यूटियां माघी मेले मंे भीड़ जुटाने के लिए लगी थी। जल्द ही उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल ऐसे नेताओं की क्लास लेंगे, जो ड्यूटी ढंग से नहीं निभा पाए। सुखबीर भीड़ जुटाने वाले नेताओं की रिपोर्ट तलब करेंगे।

कांग्रेस को भी सोचने पर किया मजबूर

मनप्रीत की रैली की सफलता ने कांग्रेस को मंथन पर मजबूर कर दिया है। पंजाब में पहले कांग्रेस का मुकाबला अकाली-भाजपा से ही था, लेकिन मनप्रीत की लगातार दूसरी रैली की सफलता ने कांग्रेस को जता दिया कि अब मुकाबला अकाली-भाजपा के साथ-साथ मनप्रीत से भी है। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पार्टी इस पर मंथन करेगी।

विधानसभा चुनाव में नुकसान करेंगे मनप्रीत

मनप्रीत की बढ़ती लोकप्रियता और उनकी रैलियों की सफलता देखते हुए राजनीतिक गलियारों में चर्चा गरम हो गई है कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में शिअद और कांग्रेस दोनों को नुकसान पहुंचाएंगे। पहले जहां शिअद मनप्रीत को गंभीरता से नहीं ले रहा था, वहीं कांग्रेस भी उन्हें हल्के में ले रही थी। लेकिन उनकी रैलियों की सफलता देखते हुए अब दोनों पार्टियों ने उन्हें गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है

Friday, January 14, 2011

सिख कत्लेआम कमेटी जत्था व दंगा पीड़ित नेता में हाथापाई

लुधियाना.1984 में हुए सिख कत्लेआम के पीडि़तों को शहीदों में शामिल करवाने की मांग को लेकर पटियाला से अकाल तखत साहिब, अमृतसर को रवाना हुए जत्थे के नुमाइंदों पर स्थानीय दंगा पीडि़त संगठन में हाथापाई हो गई। 1984 सिख कत्लेआम पीड़ित एक्शन कमेटी के चेयरमैन चरणजीत सिंह की अध्यक्षता में यह जत्था भारत नगर चौक, लुधियाना में धरना प्रदर्शन के उपरांत एडीसी एस.आर कलेर को ज्ञापन सौंपने पहुंचे।

जहां उन्होंने स्थानीय दंगा पीडि़तों के नेता सुरजीत सिंह दुगरी पर जाली लाल कार्ड बनवाने के आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ जांच की मांग की। करीब दस लोगों के जत्थे के मिनी सचिवालय से बाहर निकलते ही सुरजीत सिंह ने अपने साथियों के साथ घेर लिया। दोंनो गुटों में जमकर हाथापाई हुई। पुलिस द्वारा मौके पर छुड़ाए जाने के बाद दोनों ही गुट मेडिकल जांच के लिए सिविल अस्पताल रवाना हो गए।

चरणजीत सिंह ने बताया कि उनका जत्था अकाल तखत साहेब के जत्थेदार से मिलने जा रहा है। उनकी प्रमुख मांग 1984 के सिख कत्लेआम के शहीदों को रोजाना अरदास में शहीदों का जिक्र होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि स्थानीय दंगा पीड़ित नेता पिछले 26 वर्षों से लाल कार्ड बनवाने एवं सरकारी मुआवजा दिलवाने के नाम पर प्रभावित परिवारों का शोषण कर रहा है। उन्होंने कहा कि शिरोमणि अकाली दल बादल ऐसे भ्रष्ट नेताओं को शिरोमणि अकाली दल से निकाल कर उनके खिलाफ जांच करवानी चाहिए।

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