यदि आतंकवाद का सहारा लेने वाले साधु-संतों का तर्क यह है कि उनका आतंकवाद सिर्फ जवाबी आतंकवाद है, तो मैं कहूंगा कि यह तर्क बहुत बोदा है। आप जवाब किसे दे रहे हैं? बेकसूर मुसलमानों को? आपको जवाब देना है तो उन कसूरवार मुसलमान आतंकवादियों को दीजिए, जो बेकसूर हिंदुओं को मारने पर आमादा हैं। आतंकवाद कोई करे, किधर से भी करे, मरने वाले सब लोग बेकसूर होते हैं।
क्या आतंक का कोई रंग होता है? कोई मजहब होता है? होता तो नहीं है, लेकिन मुख-सुख के लिए लोग उसका वैसा नामकरण कर देते हैं। यह नामकरण बड़ा विनाशकारी सिद्ध होता है। कुछ सिरफिरों का उन्माद उनसे संबंधित सारे समुदाय के लिए कलंक का टीका बन जाता है। यह टीका कभी सिखों के सिर पर लगा, कभी मुसलमानों के और अब यह हिंदुओं के सिर पर लग रहा है। जब से असीमानंद का तथाकथित बयान ‘लीक’ हुआ है, देश में अजीब-सी राजनीति शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि यह भगवा आतंकवाद है, हिंदू आतंकवाद है और संघी आतंकवाद है। जिस व्यक्ति को संघी आतंकवाद का सूत्रधार बताया जा रहा है, उसे पाकिस्तानी आईएसआई का एजेंट भी कहा जा रहा है। क्या खूब है यह राजनीति?
जो लोग आतंकवाद की राजनीति कर रहे हैं, वे बहुत भोले मालूम पड़ते हैं। वे यह क्यों नहीं समझ रहे कि आतंकवाद और हिंदू, इन दो शब्दों को आपस में जोड़कर वे करोड़ों शांतिप्रिय हिंदुओं को ठेस पहुंचा रहे हैं? वे अनायास ही अपने लाखांे-करोड़ों वोटों को खोने का इंतजाम कर रहे हैं। बिल्कुल वैसे ही जसे कुछ कट्टरपंथी आतंकवादियों के कारण देश के सारे मुसलमानों को बदनाम करने की कोशिश की गई थी। भला इस्लाम का आतंकवाद से क्या लेना-देना? जिस धर्म के नाम का अर्थ ही शांति और सलामती है, उसके मत्थे इस्लामी आतंकवाद शब्द मढ़ देना कहां तक उचित है? इसी प्रकार हिंदुत्व और आतंकवाद में तो 36 का आंकड़ा है। जो हिंदू ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ यानी समस्त प्राणियों में स्वयं को ही देखता है, वह किसी बेकसूर की हत्या कैसे कर सकता है? आतंकवाद तो शुद्ध कायरता है। उसमें बहादुरी कहां होती है? जो लुक-छिपकर वार करे, बेकसूर को मारे और मारकर भाग जाए, उसे बहादुर कौन कहेगा? कोई भी आतंकवादी न तो योद्धा होता है और न ही क्रांतिकारी! योद्धा तो लड़ने के पहले बाकायदा युद्ध की घोषणा करता है और अगर उसके प्रतिद्वंद्वी के हाथ में शस्त्र नहीं होता है तो वह उसे शस्त्र देता है। इसके अलावा वह युद्ध के नियमों और मर्यादाओं का पालन भी करता है। क्या कोई आतंकवादी ऐसा करता है?
हमारे स्वाधीनता संग्राम के अनेक महान सेनानी जसे सावरकर, चाफेकर बंधु, भगतसिंह, बिस्मिल, आजाद वगैरह ने भी हिंसा का सहारा लिया, लेकिन हम उन्हें कभी आतंकवादी नहीं मान सकते। इसके कई कारण हैं। पहला तो उनकी हिंसा सिर्फ विदेशी शासकों तक सीमित थी। उनकी हरचंद कोशिश होती थी कि किसी भी भारतीय का खून नहीं बहे, लेकिन दुनिया के ज्यादातर आतंकवादी अपने ही लोगों की हत्या सबसे ज्यादा करते हैं। कश्मीरी आतंकवादियों ने सबसे ज्यादा किनको मारा? क्या कश्मीरियों और मुसलमानों को नहीं? तालिबान किनको मार रहे हैं? सबसे ज्यादा वे पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मुसलमानों को मार रहे हैं। श्रीलंका के उग्र आतंकवादियों ने सिंहलों के साथ-साथ तमिल नेताओं को मारने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। भारत के आतंकवादी चाहे वे सिख हों या मुसलमान या हिंदू, क्या उन्होंने कोई ऐसा बम बनाया है, जिससे सिर्फ पराए लोग ही मारे जाएं और उनके अपने लोग बच जाएं? अमेरिका में क्लू क्लक्स क्लान के आतंकवादियों का निशाना कौन होते थे? क्या उनके अपने ईसाई लोग नहीं? हमारे माओवादी क्या कर रहे हैं? वे सबसे ज्यादा मार्क्सवादियों को ही मार रहे हैं। मार्क्स तो माओ के पितामह थे, अगर लेनिन को माओ का पिता मानें तो! हमारे बंगाल के आतंकवादी तो पितृहंता नहीं, पितामहहंता सिद्ध हो रहे हैं।
हमारे क्रांतिकारी बम फेंककर कायरों की तरह जान बचाते नहीं फिरते थे। वे हंसते-हंसते फांसी पर झूल जाते थे। पकड़े जाने पर वे मानवाधिकार या वकीलों या नोबेल लॉरिएटों की शरण में नहीं जाते थे। वे पहले शेर की तरह दहाड़कर बाद में चूहे की मुद्रा धारण नहीं करते थे। इसीलिए अगर कुछ हिंदू संन्यासियों और साध्वियों और कार्यकर्ताओं ने आतंकवाद का सहारा लिया है तो उन्हें अपना अपराध खुलकर स्वीकार करना चाहिए और भारत के कानून को उनके साथ किसी भी प्रकार की नरमी नहीं बरतनी चाहिए। उन्हें इस बात पर भी शर्म आनी चाहिए कि उनके कारण सारा हिंदू समाज ही नहीं, अपना प्यारा भारतवर्ष भी बदनाम हो रहा है। क्या उन्हें पता नहीं कि उनके कारण पाकिस्तान का मनोबल कितना ऊंचा हो गया है? पाकिस्तान को सारी दुनिया उद्दंड राष्ट्र मानती है। अपने तथाकथित साधु-संतों के कारण अब हम भी उसी श्रेणी में पहुंच रहे हैं। यदि आतंकवाद का सहारा लेने वाले साधु-संतों का तर्क यह है कि उनका आतंकवाद सिर्फ जवाबी आतंकवाद है, तो मैं कहूंगा कि यह तर्क बहुत बोदा है। आप जवाब किसे दे रहे हैं? बेचारे बेकसूर मुसलमानों को? आपको जवाब देना है तो उन कसूरवार मुसलमान आतंकवादियों को दीजिए, जो बेकसूर हिंदुओं को मारने पर आमादा हैं। यह कितनी शर्म की बात है कि कुछ बेकसूर नौजवान जेल में सिर्फ इसलिए सड़ रहे हैं कि वे मुसलमान हैं? आतंकवाद कोई करे, किधर से भी करे, मरने वाले सब लोग बेकसूर होते हैं। सारे आतंकवादियों की जात एक ही है और सारे मरनेवालों की भी जात एक ही है। इसीलिए आतंकवाद का जवाब आतंकवाद कभी नहीं हो सकता जसे कि मूर्खता का जवाब मूर्खता नहीं हो सकती।
आतंकवाद कभी भी किसी बात का जवाब नहीं हो सकता, क्योंकि जवाब देने के लिए अक्ल की जरूरत होती है। अक्ल के चौपट हुए बिना आतंकवाद की शुरुआत ही नहीं हो सकती। आतंकवाद तो शुद्ध उन्माद है। भारतीय मनोविज्ञान में जिसे बौद्धिक सन्निपात कहते हैं, आतंकवाद उसकी पराकाष्ठा है। इस्लाम के नाम पर यह सन्निपात पाकिस्तान के मगज की नस-नस में घुस गया है। वरना पैगंबर मुहम्मद जसे महान क्षमादानी के नाम पर सलमान तासीर को कत्ल क्यों किया गया? पाकिस्तान ने अपने कारनामों से इस्लाम को बदनाम कर दिया है। क्या अब भारत हिंदुत्व को भी बदनाम करना चाहता है? तासीर की हत्या पर पाकिस्तान के सभी नेताओं और दलों की घिग्घी बंध गई है। गर्व की बात है कि भारत में ऐसा नहीं हुआ। यह अच्छा हुआ कि संघ ने तथाकथित ‘हिंदू आतंकवादियों’ से अपने को अलग कर लिया और हिंसक गतिविधियों की खुली निंदा की। यदि वह ऐसा नहीं करता तो उसकी दशा भी हमारे वामपंथियों की तरह हो जाती, जो माओवादियों को बचाने की प्रच्छन्न कोशिश करते हैं।
देश का यह बड़ा दुर्भाग्य होगा कि आतंकवाद पर राजनीति की जाए। जसे भ्रष्टाचार सबके लिए निंदनीय है, वैसे ही आतंकवाद भी होना चाहिए। आतंकवाद और भ्रष्टाचार, ये दोनों दैत्य देश के दुश्मन हैं। इन्हें मार भगाने के लिए सभी राजनीतिक दल, सभी नेता, सभी संप्रदाय, मजहब, प्रांत, सभी धर्मध्वजी एकजुट नहीं होंगे तो देश अंदर से खोखला और बाहर से जर्जर होता चला जाएगा। आतंकवाद को न तो रंगों में बांटा जा सकता है और न ही हमारे और तुम्हारे खांचों में! यह बंटवारा नहीं, राजनीति है। आतंकवाद का समूलोच्छेद तब तक नहीं हो सकता, जब तक कि उसे संपूर्ण राष्ट्र का समान शत्रु न माना जाए।
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