Thursday, January 30, 2014

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में

फिर दंगे की बात उभर आई। इस बार आवाज 2002 दंगों की नहीं है। इस बार आवाज सन 1984 के दंगों की है। एक टीवी चैनल पर इंटरव्यू में पहली बार गांधी खानदान के चश्मो चिराग ने माना कि हां, कुछ कांग्रेसी भी इसमें शामिल रहे हो सकते हैं। बात शुरू हुई तो दूर तक जाएगी। सबने सवाल उठाए कि जब मानते हो तो कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की।इसका कांग्रेसी बड़ा मरा हुआ सा तर्क देते फिर रहे हैं कि ये गुजरात की तरह प्रायोजित दंगा नहीं था। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कोई एसआईटी नहीं बनाई। इसमें कई लोगों को सजा हुई है। कई कांग्रेसी जिन पर इनमें शामिल होने का शक था उनका करियर इससे प्रभावित हुआ है
अजीब हालत है। मुझे बशीर साहब का एक शेर याद आता है।
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में
इस देश की एक बदकिस्मती है कि कई घिनौने काम जो राजनीतिक पार्टियों ने किए हैं राजनीतिक फायदे के नाम पर उसकी कभी जवाबदेही नहीं हो सकी है। क्यों समय वहीं जाकर रुकता नहीं है, क्यों न्याय के लिए एक अदालत खुले में नहीं लगती, क्यों हमारा सारा तंत्र मौन हो जाता है। जब 84 हुआ तब भी भारत में एक तंत्र था और जब 2002 हुआ तब भी भारत में एक तंत्र था। ये तंत्र मौन क्यों हो जाता है। क्या बात है कि जब सिखों और मुसलमानों पर अत्याचार होता है तो राजनीतिक पार्टियों बार-बार भूल जाने को कहती हैं। क्या जो मरे वो भारतीय नहीं थे, क्या जो मरे वो कोई आतंकवादी थे, क्या जिनके साथ बलात्कार हुआ वो भारतीय महिलाएं नहीं थीं। इस निर्लज्ज मौन तंत्र को अभी तक शर्म क्यों नहीं आती। हमारे पुरखों ने इस तंत्र को क्यों बनाया है।
 कई बार लोग कहते है कि यार ये माइनोरिटी के लोग बार-बार दंगों का रोना क्यों रोने लगते हैं। हकीकत ये है कि वो इस पीड़ा से नहीं गुजरे हैं। ये सही समय है जब इस देश में पिछले जख्मों को भरने के लिए एक स्वायत्त राष्ट्रीय जांच आयोग का गठन किया जाए जिसकी परिधि में सन 84, सन 2002 समेत विगत में हुए कई दंगों जिनमें न्याय नहीं मिल सका उसकी जांच शुरू हो.. देश की दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टिय़ों के तब के कार्यकलापों को भी इसकी जांच की परिधि में लाया जाए। बात अभी अधूरी है खत्म नहीं हुई। इस आयोग की जांच की परिधि में गांधी परिवार, कांग्रेस मोदी समेत बीजेपी के कुछ लोग लाए जाएं। ये जो भी हैं लेकिन देश के लोकतंत्र से बढ़ कर नहीं हैं।पर वही लाख टके का सवाल कि किसमें हिम्मत है ये पहल करने की... केजरीवाल ने 84 के दंगों पर एसआईटी जांच की मांग करके एक बार फिर राजनेताओं के जनदायित्व को निभाने की कोशिश की है। बेशक अकाली दल और बीजेपी ने इस बात का समर्थन किया है पर सवाल ये है देश के सारे राजनीतिक दल मिलकर इस बात पर सहमति बनाएंगे कि देश में दंगों पर एक राष्ट्रीय जांच आय़ोग बने जो पिछले सारे दंगों की फिर से जांच शुरू कर सके।


मत भूलिय़े न्याय से मुंह चुराने और राजनीतिक नकारापन के कारण इस देश को सिख आतंकवाद और इंडियन मुजाहिदीन जैसे आतंक का सामना करना पड़ा है। देश का तंत्र पिछले कई बार फेल हुआ है और कीमत आम भारतीय ने चुकाई है। ये सही समय है जब हम सबके लिए न्याय की मुहिम चलाएं फिर चाहे वो बहुसंख्यक हों या अल्पसंख्यक।मुझे अच्छी तरह पता है कि देश की ये दोनों बड़ी पार्टियों ऐसी किसी पहल को नहीं होने देंगी लेकिन मुझे हमारी न्याय व्यवस्था और नए उभरते राजनीति के दिग्गजों से जरूर उम्मीद है कि पिछे की गलतियों को सही करने के लिए जोरदार पहल का आगाज जरूर करेंगे। निश्चित तौर पर ये देश किसी मोदी, किसी गांधी की बपौती नहीं है। ये देश सवा सौ करोड़ लोगों की बपौती है जिसमें देश का हर तबका शामिल है और न्याय पाने का हक रखता है। हम नहीं चाहते कि हमारी आने वाली पीढ़ियां एक दूसरे को नफरत की नजर से देखें और एक दूसरे को भारतीय कहने के बजाए सिख, मुस्लिम, हिंदू कहें। जय हिंद

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