Monday, April 20, 2015

नेताजी' सुभाष चंद्र बोस की हत्या हुई या मृत्यु?

भारत की स्वतंत्रता के लिए आजाद हिंद फौज का नेतृत्व करने वाले सुभाष चंद्र बोस की मौत एक रहस्य बनी हुई है। हाल में इस मुद्दे पर फिर राजनीतिक हलकों और बुद्धिजीवियों के बीच तीखी बहस छिड़ गई है।

आखिर 'नेताजी' सुभाष बोस किन परिस्थियों में गायब हुए या फिर उनकी मौत हुई? क्यों कई जाने-माने लोग उनकी मौत की खबर पर भरोसा नहीं कर रहे है?

जियाउद्दीन ने इंटेलिजेंस को चकमा दिया


अठारह जनवरी, 1941, रात एक बज कर पैंतीस मिनट पर 38/2, एलगिन रोड, कोलकाता पर एक जर्मन वांडरर कार आ कर रुकी।

कार का नंबर था बीएलए 7169, लंबी शेरवानी, ढीली सलवार और सोने की कमानी वाला चश्मा पहने बीमा एजेंट मोहम्मद जियाउद्दीन ने कार का पिछला दरवाजा खोला।

ड्राइवर की सीट पर उनके भतीजे बैठे हुए थे। उन्होंने जानबूझ कर अपने कमरे की लाइट बंद नहीं की। चंद घंटों में वो गहरी नींद में सोए कोलकाता की सीमा पार कर चंदरनागोर की तरफ बढ़ निकले।

वहां भी उन्होंने अपनी कार नहीं रोकी। वो धनबाद के पास गोमो स्टेशन पर रुके। उनींदी आंखों वाले एक कुली ने जियाउद्दीन का सामान उठाया।कोलकाता की तरफ से दिल्ली कालका मेल आती दिखाई दी। वो पहले दिल्ली उतरे। वहां से पेशावर होते हुए काबुल पहुंचे... वहाँ से बर्लिन... कुछ समय बाद पनडुब्बी का सफर तय कर जापान पहुंचे।

कई महीनों बाद उन्होंने रेडियो स्टेशन से अपने देशवासियों को संबोधित किया... 'आमी सुभाष बोलची।'

अपने घर में नजरबंद सुभाष चंद्र बोस बीमा एजेंट जियाउद्दीन के भेस में 14 खुफिया अधिकारियों की आखों में धूल झोंकते हुए न सिर्फ भारत से भागने में सफल रहे, बल्कि लगभग आधी दुनिया का चक्कर लगाते हुए जापान पहुंच गए।
दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हो चला था। जापान को आत्मसमर्पण किए हुए अभी तीन दिन हुए थे। 18 अगस्त 1945 को सुभाष बोस का विमान ईंधन लेने के लिए ताइपे हवाई अड्डे पर रुका था।

दोबारा उड़ान भरते ही एक जोर की आवाज सुनाई दी थी। बोस के साथ चल रहे उनके साथी कर्नल हबीबुररहमान को लगा था कि कहीं दुश्मन की विमानभेदी तोप का गोला तो उनके विमान को नहीं लगा है।

बाद में पता चला था कि विमान के इंजन का एक प्रोपेलर टूट गया था। विमान नाक के बल जमीन से आ टकराया था और हबीब की आंखों के सामने अंधेरा छा गया था।जब उन्हें होश आया तो उन्होंने देखा कि विमान के पीछे का बाहर निकलने का रास्ता सामान से पूरी तरह रुका हुआ है और आगे के हिस्से में आग लगी हुई है। हबीब ने सुभाष बोस को आवाज दी थी, "आगे से निकलिए नेताजी।"

बाद में हबीब ने याद किया था कि जब विमान गिरा था तो नेताजी की खाकी वर्दी पेट्रोल से सराबोर हो गई थी। जब उन्होंने आग से घिरे दरवाजे से निकलने की कोशिश की तो उनके शरीर में आग लग गई थी। आग बुझाने के प्रयास में हबीब के हाथ भी बुरी तरह जल गए थे।
उन दोनों को अस्पताल ले जाया गया था। अगले छह घंटों तक नेता जी को कभी होश आता तो कभी वो बेहोशी में चले जाते। उसी हालत में उन्होंने आबिद हसन को आवाज दी थी।

"आबिद नहीं है साहब, मैं हूँ हबीब." उन्होंने लड़खड़ाती आवाज में हबीब से कहा था कि उनका अंत आ रहा है। भारत जा कर लोगों से कहो कि आजादी की लड़ाई जारी रखें।

उसी रात लगभग नौ बजे नेता जी ने अंतिम सांस ली थी। 20 अगस्त को नेता जी का अंतिम संस्कार किया गया। अंतिम संस्कार के पच्चीस दिन बाद हबीबुररहमान नेता जी की अस्थियों को लेकर जापान पहुंचे।
1945 में ही अगस्त के आखिरी महीने में नेताजी की पत्नी एमिली अपने वियना के फ्लैट के रसोईघर में अपनी मां और बहन के साथ बैठी हुई ऊन के गोले बना रही थीं।

हमेशा की तरह वो रेडियो पर शाम का समाचार भी सुन रही थीं। तभी समाचार वाचक ने कहा कि भारत के 'देश द्रोही' सुभाषचंद्र बोस ताइपे में एक विमान दुर्घटना में मारे गए हैं।

एमिली की मां और बहन ने स्तब्ध हो कर उनकी ओर देखा। वो धीरे से उठीं और बगल के शयन कक्ष में चली गईं, जहां सुभाष बोस की ढ़ाई साल की बेटी अनीता गहरी नींद में सोई हुई थी।

सालों बाद एमिली ने याद किया कि वो बिस्तर के बगल में घुटने के बल बैठीं और 'सुबक-सुबक कर रोने लगीं।'
हालांकि सुभाष बोस के साथ उस विमान में सवार हबीबुररहमान ने पाकिस्तान से आकर शाहनवाज समिति के सामने गवाही दी कि नेता जी उस विमान दुर्घटना में मारे गए थे और उनके सामने ही उनका अंतिम संस्कार किया गया था।

लेकिन भारत में बहुत बड़ा तबका ये मानता रहा कि सुभाष बोस उस विमान दुर्घटना में जीवित बच निकले थे और वहां से रूस चले गए थे।भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी कहते हैं कि विमान दुर्घटना के समय ताइवान जापानियों के कब्जे में था। उसके बाद उस पर अमरीकियों का कब्जा हो गया। दोनों देशों के पास इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि उस दिन वहां कोई विमान दुर्घटना हुई थी।

उन्होंने कहा, "1991 के सोवियत विघटन के बाद एक सोवियत स्कॉलर ने मुझे बताया था कि नेता जी तो ताइवान गए ही नहीं थे। वो साएगोन से सीधे मंचूरिया आए थे, जहां उन्हें हमने गिरफ्तार किया था। बाद में स्टालिन ने उन्हें साइबेरिया की यकूत्स्क जेल में भिजवा दिया था जहां 1953 में उनकी मौत हो गई थी।"स्वामी नेहरू के स्टोनोग्राफर श्याम लाल जैन की शाहनवाज जांच समिति के सामने दी गई गवाही का जिक्र भी करते हैं।

जैन ने आयोग के सामने कहा था कि 1946 में उन्हें एक रात नेहरू का संदेश मिला कि वो उनसे तुरंत मिलने आ जाएं। उनके निवास तीन मूर्ति पर नहीं बल्कि आसफ अली के यहां जो उस जमाने में दरियागंज में रहा करते थे।

जैन के अनुसार नेहरू ने उन्हें ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली के लिए एक पत्र डिक्टेट कराया था, जिसमें कहा गया था कि उन्हें स्टालिन से संदेश मिला है कि सुभाष बोस जीवित हैं और उनके कब्जे में हैं।

स्वामी के अनुसार स्टालिन बोस से इसलिए नाराज़ थे क्योंकि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने उनके सबसे बड़े दुश्मन हिटलर से हाथ मिलाया था।सुब्रह्मण्यम स्वामी ने बीबीसी को बताया कि इसका दूसरा बड़ा सबूत उन्हें तब मिला जब वो चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल में मंत्री बने।

उन्होंने बताया, "हमारे पास जापान से अनुरोध आया कि रिंकोजी मंदिर में सुभाष बोस की जो अस्थियां रखी हैं, उनको आप ले लीजिए, लेकिन एक शर्त पर कि आप इसका डीएनए टेस्ट नहीं कराएंगे।"

स्वामी कहते हैं कि उन्हें पता चला था कि इंदिरा गांधी ने अपने कार्यकाल में नेता जी पर एक पूरी फाइल को अपने सामने फड़वाया (श्रेड करवाया) था, लेकिन इस बात की पुष्टि किसी और सूत्र से नहीं हो पाई है।सुभाष बोस की मौत पर 'इंडियाज बिगेस्ट कवर-अप' नाम की किताब लिखने वाले अनुज धर कहते हैं कि उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय से मांग की थी कि उन्हें वो दस्तावेज उपलब्ध कराए जाएं जिसमें सोवियत संघ में सुभाष बोस के होने की जांच की गई।

अनुज बताते हैं, "पीएमओ ने ये कह कर इसे देने से इंकार कर दिया कि इससे विदेशी ताकतों से हमारे संबंधों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।"

धर कहते हैं कि विदेशी संबंध तो एक बहाना है। असली भूचाल तो इस देश के अंदर ही आएगा।
नेता जी के प्रपौत्र और उन पर 'हिज मैजेस्टीज अपोनेंट' नाम की किताब लिखने वाले सौगत बोस भी कहते हैं कि विदेश से संबंध खराब होने की बात गले नहीं उतरती।

उनके अनुसार उन्होंने अपने शोध में पाया कि विंस्टन चर्चिल ने 1942 में सुभाष बोस की हत्या के आदेश दिए थे लेकिन इसका अर्थ ये नहीं हुआ कि इस मुद्दे पर भारत आज ब्रिटेन से अपने संबंध खराब कर ले।

स्वामी भी कहते हैं, "पहली बात सोवियत संघ अब है नहीं। उस जमाने में जनसंहार के जिम्मेदार माने गए स्टालिन पूरी दुनिया में बदनाम हो चुके हैं। पुतिन को इस बात की कोई परवाह नहीं होगी अगर स्टालिन पर सुभाष बोस को हटाने का दाग लगता है।"
सौगत बोस कहते हैं कि उन्हें ये जान कर बहुत आश्चर्य हुआ कि नेहरू के कार्यकाल में इंटेलिजेंस ब्यूरो उनके पिता, चाचा और सुभाष बोस की पत्नी एमिली की चिट्ठियाँ खोलता रहा, पढ़ता रहा और उसकी प्रतियाँ बनाता रहा।

उनका कहना है, "किसी व्यक्ति की निजता में सेंध लगाने का इससे बड़ा उदाहरण नहीं मिलता। और ये तब जब कि निजी तौर पर नेहरू मेरे पिता को बहुत मानते थे। जब भी वो दिल्ली जाते थे, उन्हें अपने यहां नाश्ते पर बुलाते थे। कमला नेहरू की अंत्येष्टि में खुद सुभाष चंद्र बोस मौजूद थे।"

सौगत बोस ने बताया, "नेता जी ने आजाद हिंद फौज की एक रेजिमेंट का नाम नेहरू के नाम पर रखा था और जब 1945 में बोस की कथित मौत की खबर आई थी तो नेहरू की आखों से आंसू बह निकले थे।"सवाल उठता है कि क्या सुभाष बोस के परिवार पर हो रही जासूसी की जानकारी नेहरू को व्यक्तिगत तौर पर थी।

भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ में विशेष सचिव के पद पर काम कर चुके सी बालाचंद्रन कहते हैं कि ये एक ऐसी परंपरा है जो आजाद भारत की खुफिया एजेंसियों ने ब्रिटेन से ग्रहण की है।

उन्होंने कहा, "1919 के बाद से ही ब्रिटिश सरकार के लिए कम्युनिस्ट आंदोलन एक चुनौती रहा है। उन्होंने शुरू से ही उन लोगों पर नजर रखना शुरू किया जिनका कहीं न कहीं सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी से संबंध रहा है।"

बालाचंद्रन कहते हैं, "इसी सिलसिले में बोस की भी जासूसी शुरू की गई। एक इनसाइडर के तौर पर मैं बता सकता हूं कि खुफिया एजेंसियों में जो चीज एक बार शुरू हो जाती है, वो बहुत लंबे समय तक जारी रहती है।
लेकिन अनुज धर बालाचंद्रन के इस आकलन से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि इस तरह की जासूसी नेहरू की जानकारी के बगैर नहीं हो सकती थी।

धर कहते हैं कि आईबी वाले कोई भी काम बिना अनुमति के नहीं करते। सुभाष बोस के बारे में उनका हर नोट आईबी के बड़े अफसर मलिक और काव तक पहुंचता था।

अनुज धर के मुताबिक, "मेरे पास ऐसे दस्तावेज हैं जिसमें नेहरू ने अपने हाथों से आईबी को चिट्ठी लिख कर निर्देश दिया है कि पता लगाओ कि बोस का पौत्र अमिय बोस जापान क्यों गया है और वहां क्या कर रहा है? क्या वो रेंकोजी मंदिर भी गया था?"भारतीय जनता पार्टी के नेता और जाने माने पत्रकार एमजे अकबर का मानना है कि इस पूरे प्रकरण से यही संकेत मिलता है कि कहीं न कहीं नेहरू के मन में संदेह था कि बोस उस विमान दुर्घटना में नहीं मरे थे।

अकबर कहते हैं, "कॉमन सेंस कहता है वो अपने परिवार से ज़रूर संपर्क करते। शायद इसलिए नेहरू उनके पत्रों की निगरानी करवा रहे थे।"

किन परिस्थितियों में सुभाष बोस की मौत हुई और बीस वर्षों तक उनके परिवार पर क्यों नजर रखी गई, ये तो उनसे संबंधित दस्तावेज सार्वजनिक होने के बाद ही पता चल पाएगा।

लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं उन्होंने इस कहावत को गलत साबित करने में एड़ी चोटी का जोर लगा दिया कि ब्रिटिश साम्राज्य में सूरज कभी अस्त नहीं होता और अपनी इस मुहिम में बहुत हद तक वो सफल भी रहे।

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