अहमदाबाद। स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी, स्वतंत्र भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री। कुशल नेतृत्व, त्वरित फैसले लेने की क्षमता और प्रभावपूर्ण कार्यों के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। राजनीतिक दुनिया में अब भी वे पहले की तरह ही चर्चित हैं, चाहे राजनीतिक मामलों से हटकर यह बात आपातकाल की ही क्यों न हो?
इंदिरा गांधी पहली बार किस तरह प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंची और इसके पीछे का राजनीतिक खेल क्या था, आईए डालते हैं इस पर एक नजर ..
इंदिरा गांधी गुजरात के लाल और भूतपूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को हराकर प्रधानमंत्री बनीं थीं। प्रधानमंत्री बनने के लिए इंदिरा को उस समय देश के 16 में से 11 राज्यों का समर्थन प्राप्त था। इन राज्यों के नेताओं ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने का पूर्ण विश्वास भी दिलाया था।
दिलचस्प बात यहां यह थी कि इंदिरा की लड़ाई अपने की पक्ष के नेताओं गुलजारीलाल नंदा और मोरारजी देसाई से थी। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की अचानक मृत्यु के बाद कार्यकारी प्रधानमंत्री बने गुलजारी लाल नंदा ने प्रधानमंत्री पद की रेस से अपना नाम वापस ले लिया और इस तरह इंदिरा का रास्ता आसान कर दिया।
अब इंदिरा की सीधी लड़ाई गुजराती नेता मोराजी देसाई से बची थी। हालांकि मोरारजी देसाई पर भी अपनी उम्मीदवारी वापस लेने का बहुत दबाव डाला गया लेकिन मोरारजी टस से मस न हुए। उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस नहीं ली।
इस समय लगभग पूरा देश यही मानता था कि प्रधानमंत्री पद के लिए इंदिरा के सामने खड़े मोरारजी देसाई को कांग्रेस के 525 सांसदों में से 100 से भी कम सांसदों का समर्थन मिलेगा। लेकिन जब चुनाव हुआ तो आंकड़े काफी चौंकाने वाले सामने आए। मोरारजी देसाई को इस समय 169 सांसदों के समर्थन मिला। लेकिन यह आंकड़ा उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए बहुत कम था। इस तरह इंदिरा गांधी 19 जनवरी 1966 को देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। मोराजी देसाई नेे इंदिरा को शुभकामनाएं प्रेषित कीं।
यह दूसरा मौका था जब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री पद की दौड़ से बाहर हुए थे। इसके पहले जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए उनके प्रतिस्पर्धी लाल बहादुर शास्त्री थे, लेकिन इस समय खुद मोरारजी देसाई ने उम्मीदवारी से अपना नाम वापस ले लिया था।
इंदिरा गांधी पहली बार किस तरह प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंची और इसके पीछे का राजनीतिक खेल क्या था, आईए डालते हैं इस पर एक नजर ..
इंदिरा गांधी गुजरात के लाल और भूतपूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को हराकर प्रधानमंत्री बनीं थीं। प्रधानमंत्री बनने के लिए इंदिरा को उस समय देश के 16 में से 11 राज्यों का समर्थन प्राप्त था। इन राज्यों के नेताओं ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने का पूर्ण विश्वास भी दिलाया था।
दिलचस्प बात यहां यह थी कि इंदिरा की लड़ाई अपने की पक्ष के नेताओं गुलजारीलाल नंदा और मोरारजी देसाई से थी। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की अचानक मृत्यु के बाद कार्यकारी प्रधानमंत्री बने गुलजारी लाल नंदा ने प्रधानमंत्री पद की रेस से अपना नाम वापस ले लिया और इस तरह इंदिरा का रास्ता आसान कर दिया।
अब इंदिरा की सीधी लड़ाई गुजराती नेता मोराजी देसाई से बची थी। हालांकि मोरारजी देसाई पर भी अपनी उम्मीदवारी वापस लेने का बहुत दबाव डाला गया लेकिन मोरारजी टस से मस न हुए। उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस नहीं ली।
इस समय लगभग पूरा देश यही मानता था कि प्रधानमंत्री पद के लिए इंदिरा के सामने खड़े मोरारजी देसाई को कांग्रेस के 525 सांसदों में से 100 से भी कम सांसदों का समर्थन मिलेगा। लेकिन जब चुनाव हुआ तो आंकड़े काफी चौंकाने वाले सामने आए। मोरारजी देसाई को इस समय 169 सांसदों के समर्थन मिला। लेकिन यह आंकड़ा उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए बहुत कम था। इस तरह इंदिरा गांधी 19 जनवरी 1966 को देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। मोराजी देसाई नेे इंदिरा को शुभकामनाएं प्रेषित कीं।
यह दूसरा मौका था जब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री पद की दौड़ से बाहर हुए थे। इसके पहले जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए उनके प्रतिस्पर्धी लाल बहादुर शास्त्री थे, लेकिन इस समय खुद मोरारजी देसाई ने उम्मीदवारी से अपना नाम वापस ले लिया था।