साढ़े बारह हजार वोट। नौ पंचायत। नौ सरपंच। हजार शिकायतें और सैकड़ों शिकवे। महराज की बैलेंस शीट इस बार कांग्रेस के खाते में नुकसान दर्ज करवा सकती है। किसी पर पर्चा दर्ज हुआ और उसकी मदद के लिए पार्टी आगे नहीं आई तो किसी के फोन का जवाब नहीं दे पाए स्थानीय विधायक। वजहें कई हैं और उनका नतीजा
सिर्फ एक नाराजगी। पंजाब के सबसे बड़े गांव होने का मान रखने वाले महराज के तेवर सख्त हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ अपने पुश्तैनी कनेशन को भी इस बार यहां के वोटर परे रख देने के मूड में दिखाई दे रहे हैं। अब तक गांव वाले हमेशा कैप्टन के साथ वफादारी और मुहबत निभाने के लिए कांग्रेस के हाथ को ही मजबूत बनाते रहे हैं।
क्या इस बार भी ऐसा हो सकेगा .? परख करने पर पता चलता है कि यहां के लोग खासे खफा हैं। कारण.खुद कैप्टन या कांग्रेस नहीं बल्कि स्थानीय विधायक गुरप्रीत सिंह कांगड़ की उदासीनता है। वोटर कहते हैं, विधायक के
पास हमारे लिए वक्त ही नहीं है। गांव के बुजुर्ग हरबंस सिंह सिद्धृ दुखी हैं-कब तक राजा के नाम पर उनके बंदों को जिताते रहें.? बाद में यहां कोई आकर पूछता तक नहीं। किसी काम से उन्हें फोन करो तो जवाब मिलता है कि वे तो चंडीगढ़ गए हैं। हमें ऐसे नेता का क्या करना जो काम पड़ने पर मिले ही नहीं।
पंचों के प्रधान सरदार परगट सिंह का मानना है-यहां जो भी वोट कांग्रेस को मिले वे हमेशा कैप्टन के नाम पर मिले। लेकिन ऐसा हमेशा नहीं चल सकता। अकाली दल प्रत्याशी सिकंदर सिंह मलूका हारने के बावजूद यहां आकर लोगों से मिलते रहे और काम भी करवाते रहे। इसीलिए इस बार गांव के लोगों का झुकाव अकाली दल की तरफ ज्यादा है दिख रहा है।
रामपुरा फूल अंसेबली सीट पर महराज की वोटिंग किसी भी प्रत्याशी को जिताने में अहम भूमिका निभाती है। इसीलिए हारने के बावजूद मलूका की दिलचस्पी इस गांव में बनी रही। इस बार समीकरण बदल गए हैं..? जवाब देते हैं चौबीस वर्षीय अमनदीप-मैंने अब तक कांग्रेस को ही वोट डाली है लेकिन इस बार मन टूट गया है।
जरूरी है याद दिलाना
2007 के असेंबली चुनाव में इस सीट से कांग्रेसी विधायक गुरप्रीत सिंह कांगड़ जीते थे। लेकिन प्रदेश की सत्ता अकाली-भाजपा गठबंधन के हाथ लगी। 2008 में यहां पंचायत चुनाव हुए और हालात बदल गए यानी सभी 9 पंचायत अकालियों के हिस्से आ गईं। अब इसे भी आधार बनाकर कहा जा रहा है कि इस बार ये सीट कांग्रेस के लिए जीतना उतनी आसान नहीं रहेग। कई कारणों से यहां की वोट कांग्रेस के पंजे से छीन न पाएं इसके लिए जरूरी है कि यहां आकर कैप्टन बार फिर से अपनी जड़ों से जुड़े होने की याद दिलाएं।