भाजपा उम्मीदवार सूद भाजपा में नंबर एक के पद पर विराजमान हैं। कांग्रेस की रणनीति सूद को पटखनी देने की है। पहली बार पीपीपी मैदान में है तो वोट टूटेगा ही। गठबंधन का या कांग्रेस का।
मैं सियासत का लालची नहीं, पिछले 16 सालों से संगरूर हलके में मैं अपनी उम्मीद फाउंडेशन के जरिए लोगों की सेवा कर रहा हूं। सौ के करीब मोबाइल वैन गांव गांव जाकर लोगों को सेहत सुविधाएं उपलब्ध करवाती हैं। 7500 से ज्यादा महिलाएं सिलाई सेंटरों के जरिए रोजगार पर लगी हुई हैं। इन पर मैं अपनी जेब से पैसा खर्च कर रहा हूं। सियासत का लालची होती तो किसी भी छोटी पार्टी को पैसा देता और राज्य सभा की सीट खरीद लेता।
अकाली दल के प्रत्याशी गोबिंद सिंह लोंगोवाल और सांझा मोर्चा के गगनजीत सिंह बरनाला लोगों को बताने में लगे हैं कि कांग्रेस ने जिस प्रत्याशी को खड़ा किया है, उसका तो किसी को ठिकाना ही नहीं पता, आप अपनी समस्याएं लेकर किसे बताओगे। इसलिए हलके के लोग ऐसा प्रत्याशी चुनें, जो जनता के बीच रहे।
कैप्टन अमरिंदर सिंह के अति नजदीकी माने जाने वाले अरविंद खन्ना को संगरूर हलके में न रहने जैसे आरोपों का जवाब देना मुश्किल हो रहा है। लेकिन धूरी के लोगों के लिए मुश्किल यह है कि तीनों पार्टियों के प्रत्याशी बाहरी हैं और उन पर थोपे गए हैं।
अकाली प्रत्याशी गोबिंद सिंह लोंगोवाल जिला संगरूर योजना कमेटी के चेयरमैन रहे हैं। लेकिन हलके के विकास को देखकर नहीं लगता कि उन्होंने इस ओर कुछ ध्यान दिया है। चूंकि हलके में गांवों की वोट अधिक है, इसलिए उन्हें इस वोट बैंक पर ही उम्मीद है। यदि धूरी जंक्शन के वासियों का गाड़ियों की आमद के कारण अक्सर बंद रहने वाले फाटक पर पुल बनाने को छोड़ दिया जाए तो शहर में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसे लोंगोवाल विकास के कामों के नाम पर पेश कर सकें। उनके लिए मुश्किल यह भी है कि उनको टिकट मिलने से नाराज सुरिंदर ¨सह धूरी जैसे नेता अकाली दल छोड़कर कांग्रेस के साथ जा मिले हैं।
साझा मोर्चा के उम्मीदवार गगनजीत सिंह बरनाला हैं। बरनाला परिवार राजनीतिक खींचतान में रहा। शिरोमणि अकाली दल ने किनारे कर दिया। कोशिशों के बाद भी कांग्रेस में बात नहीं बनी, शर्त ही ऐसी थी। कहीं बात नहीं बनते देख न चाहते हुए भी साझ मोर्चा का हिस्सा बनना पड़ा।
गांवों पर ध्यान नहीं
धूरी की जो समस्याएं हैं, उन पर आज तक किसी का ध्यान नहीं गया। हलके सबसे बड़े गांव बालियां में चार हजार से ज्यादा वोट है। यहां जट्टों और अनुसूचित जाति के लोग के बीच दूरियां हैं। राजनेताओं को सभी को साथ लेकर चलना मुश्किल हो रहा है। वह अपने अपने क्षेत्र में रैली करना चाहते हैं, एक दूसरे के साथ नहीं। बालियां के लखवीर सिंह बताते हैं, गांव सभी आसपास के शहरों से 25 किमी दूर है। न कॉलेज है न सीनियर सेकंेडरी स्कूल। गांव की लड़कियां पढ़ने कहां जाएं।
धूरी के संजय बत्तरा कहते हैं कि सड़कें और पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं मिलनी चाहिए, जीते चाहे जो भी लेकिन इस ओर तो ध्यान दे।
इस बार बदली सी है फिजा
डिलीमिटेशन के बाद हलके की फिजा बदल चुकी है। मौजूदा अकाली विधायक अब अमरगढ़ में डटे हैं। शेरपुर हलके को खत्म करके उसके तीन हिस्से अमरगढ़, धूरी और नए बने हलका महलकलां से जोड़ दिए गए हैं। ज्यादातर ग्रामीण एरिया तीनों विधानसभा हलकों में बंट गया है। यही वोट जीत-हार तय करेंगे।
मैं सियासत का लालची नहीं, पिछले 16 सालों से संगरूर हलके में मैं अपनी उम्मीद फाउंडेशन के जरिए लोगों की सेवा कर रहा हूं। सौ के करीब मोबाइल वैन गांव गांव जाकर लोगों को सेहत सुविधाएं उपलब्ध करवाती हैं। 7500 से ज्यादा महिलाएं सिलाई सेंटरों के जरिए रोजगार पर लगी हुई हैं। इन पर मैं अपनी जेब से पैसा खर्च कर रहा हूं। सियासत का लालची होती तो किसी भी छोटी पार्टी को पैसा देता और राज्य सभा की सीट खरीद लेता।
अकाली दल के प्रत्याशी गोबिंद सिंह लोंगोवाल और सांझा मोर्चा के गगनजीत सिंह बरनाला लोगों को बताने में लगे हैं कि कांग्रेस ने जिस प्रत्याशी को खड़ा किया है, उसका तो किसी को ठिकाना ही नहीं पता, आप अपनी समस्याएं लेकर किसे बताओगे। इसलिए हलके के लोग ऐसा प्रत्याशी चुनें, जो जनता के बीच रहे।
कैप्टन अमरिंदर सिंह के अति नजदीकी माने जाने वाले अरविंद खन्ना को संगरूर हलके में न रहने जैसे आरोपों का जवाब देना मुश्किल हो रहा है। लेकिन धूरी के लोगों के लिए मुश्किल यह है कि तीनों पार्टियों के प्रत्याशी बाहरी हैं और उन पर थोपे गए हैं।
अकाली प्रत्याशी गोबिंद सिंह लोंगोवाल जिला संगरूर योजना कमेटी के चेयरमैन रहे हैं। लेकिन हलके के विकास को देखकर नहीं लगता कि उन्होंने इस ओर कुछ ध्यान दिया है। चूंकि हलके में गांवों की वोट अधिक है, इसलिए उन्हें इस वोट बैंक पर ही उम्मीद है। यदि धूरी जंक्शन के वासियों का गाड़ियों की आमद के कारण अक्सर बंद रहने वाले फाटक पर पुल बनाने को छोड़ दिया जाए तो शहर में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिसे लोंगोवाल विकास के कामों के नाम पर पेश कर सकें। उनके लिए मुश्किल यह भी है कि उनको टिकट मिलने से नाराज सुरिंदर ¨सह धूरी जैसे नेता अकाली दल छोड़कर कांग्रेस के साथ जा मिले हैं।
साझा मोर्चा के उम्मीदवार गगनजीत सिंह बरनाला हैं। बरनाला परिवार राजनीतिक खींचतान में रहा। शिरोमणि अकाली दल ने किनारे कर दिया। कोशिशों के बाद भी कांग्रेस में बात नहीं बनी, शर्त ही ऐसी थी। कहीं बात नहीं बनते देख न चाहते हुए भी साझ मोर्चा का हिस्सा बनना पड़ा।
गांवों पर ध्यान नहीं
धूरी की जो समस्याएं हैं, उन पर आज तक किसी का ध्यान नहीं गया। हलके सबसे बड़े गांव बालियां में चार हजार से ज्यादा वोट है। यहां जट्टों और अनुसूचित जाति के लोग के बीच दूरियां हैं। राजनेताओं को सभी को साथ लेकर चलना मुश्किल हो रहा है। वह अपने अपने क्षेत्र में रैली करना चाहते हैं, एक दूसरे के साथ नहीं। बालियां के लखवीर सिंह बताते हैं, गांव सभी आसपास के शहरों से 25 किमी दूर है। न कॉलेज है न सीनियर सेकंेडरी स्कूल। गांव की लड़कियां पढ़ने कहां जाएं।
धूरी के संजय बत्तरा कहते हैं कि सड़कें और पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं मिलनी चाहिए, जीते चाहे जो भी लेकिन इस ओर तो ध्यान दे।
इस बार बदली सी है फिजा
डिलीमिटेशन के बाद हलके की फिजा बदल चुकी है। मौजूदा अकाली विधायक अब अमरगढ़ में डटे हैं। शेरपुर हलके को खत्म करके उसके तीन हिस्से अमरगढ़, धूरी और नए बने हलका महलकलां से जोड़ दिए गए हैं। ज्यादातर ग्रामीण एरिया तीनों विधानसभा हलकों में बंट गया है। यही वोट जीत-हार तय करेंगे।