Tuesday, April 30, 2013

अब एक बार फिर छिड़ेगी 'जंग' और भारतीय सैनिकों से धूल चाटेंगे चीन के सैनिक- भारत-चीन जंग युद्ध पर फिल्म

अब एक बार फिर छिड़ेगी 'जंग' और भारतीय सैनिकों से धूल चाटेंगे चीन के सैनिक


 

नई दिल्ली. ढाई साल तक नौकरशाही की सांप सीढ़ी के खेल से गुजरते हुए आखिरकार रक्षा मंत्रालय ने 1९६२ की भारत-चीन जंग तथा 1965 एवं 1971 के युद्ध पर फिल्म बनाने और सीमावर्ती इलाकों में इनके लिए शूङ्क्षटग करने की अनुमति दे दी है।
बार्डर और एलओसी जैसी मशहूर फिल्मों के जरिए भारतीय जनमानस को फौजियों की बहादुरी से परिचित कराने वाले फिल्म निर्माता एवं निर्देशक जे. पी. दत्ता ने आखिर रक्षा मंत्रालय से हरी झंडी हासिल करने में जीत हासिल कर ली।
वह इन तीनों युद्धों को सिनेमा के बड़े परदे पर लाने के काम में जुट गए हैं और बालीवुड के माध्यम से भारत की तीन लड़ाइयों का दिलचस्प इतिहास सामने आएगा।
फिल्मकार जे. पी. दत्ता ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि उन्हें रक्षा मंत्रालय से मंजूरी लेने में ढाई साल का समय लग गया लेकिन उन्हें समय लगने का मलाल नहीं बल्कि स्वीकृति मिलने की खुशी है।
उन्होंने कहा कि वह इन फिल्मों के बारे में अपने कुछ सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं करना चाहते थे और उन्हें इस बात की खुशी है कि वह मंत्रालय को अपने तर्कों से राजी करने में कामयाब हो गए।
सामने लाना चाहते हैं   सैनिकों की गाथा
दत्ता का कहना है कि वह बार्डर की अगली कड़ी में कोई फिल्म नहीं बना रहे हैं बल्कि ये तीनों फिल्में अपने आप में अलग होंगी। इनमें वह लड़ाई के राजनीतिक कारणों, गलतियों और कूटनीति में जाने के बजाय सीमा पर बहादुरी से लडऩे वाले सैनिकों की गाथा को सामने लाना चाहते हैं।
फिल्मकार ने इन युद्धों में हिस्सा लेने वाले सेना, वायुसेना और नौसेना के पूर्व अफसरों से मिलने का अभियान छेड़ा हुआ है। हाल ही में वह परमवीर चक्र विजेता अरुण खेत्रपाल की मां से मिले थे। दत्ता ने बताया कि यह मुलाकात झकझोरने वाली थी।
बातचीत के बाद उनकी मां मुझे कार तक छोडऩे आईं और जब मैं चलने लगा तो हाथ जोड़कर कहने लगीं कि मेरी आंख मुंदने से पहले यह फिल्म बना लेना ताकि मैं अपने बेटे की शौर्य की कहानी देख सकूं।
ऐसे ही उन्होंने बताया कि परमवीर चक्र से सम्मानित तारापुरवाला के नाम पर एक सड़क का नाम है। उनकी बेटी ने बताया कि इस स्ट्रीट पर जो स्कूल है, वहां के बच्चे यह नहीं जानते कि इस सड़क का नाम तारापुरवाला स्ट्रीट क्यों है।
दत्ता ने बताया कि वह इन फिल्मों में उस समय इस्तेमाल होने वाले हथियारों को शूङ्क्षटग के लिए नए सिरे से सृजित करना चाहेंगे और उनकी पूरी कोशिश होगी कि भारत की युवा पीढ़ी को आजाद भारत की इन लड़ाइयों और उनमें सैन्य बलों के योगदान से परिचित करा सकें। उन्हें उम्मीद है कि इससे युवाओं को फौज में जाने की प्रेरणा मिलेगी और भारतीयता पर गर्व महसूस होगा।

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