Wednesday, March 27, 2013

हिंदू अपमानित तो क्या भारत गौरवान्वित?

   
   
गृहमंत्री श्री शिंदे साहब द्वारा विश्व के सबसे बड़े हिंदू संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा देश के प्रमुख विपक्ष भाजपा पर आतंकवादी तैयार करने के शिविर चलाने और हिंदू आतंकवाद फैलाने का नाम लेकर जो आरोप लगाया गया, वह इतना आत्मदैन्य से भरा गैर जिम्मेदाराना बयान है कि जिसके बारे में सिर्फ केवल इतना ही कहा जा सकता है कि सर, अगर कोई देश के कानून और संविधान के विरुद्ध काम कर रहा है, उसे पकडि़ये, सजा दीजिए पर उस पर हल्के स्तर का राजनीतिक खेल तो मत करिए।
जिस हिंदू समाज ने पिछले एक हजार साल से विदेशी बर्बर आक्रमणकारियों का सामना किया, जिस विधर्मी और अधर्मी आक्रमणकारियों ने हमारे तीन हजारे से अधिक मंदिर नष्ट किए, हम्पी जैसा विश्वविख्यात नगर जला दिया, 18 बार दिल्ली को लूटा और यहां नरसंहार किया, तलवार के बल पर धर्मांतरण किया, उसके बावजूद जिसने उन तमाम मतावलंबियों के प्रति नफरत न रखते हुए खंडित आजादी के बाद भी सबको समान अधिकार दिए, तीन-तीन मुस्लिम राष्ट्रपति, वायुसेना अध्यक्ष, सर्वोच्च न्यायाधीश, मंत्रिमंडलीय सचिव, आईबी के प्रमुख, आनंद और सम्मान के साथ होने दिए, क्या उस हिेंदू के मानस में ऐस घृणा का तत्व हो सकता है कि जिसे पहचान कर शिंदे साहब ने आतंकवाद के साथ हिंदू शब्द जोड़ने की जरूरत समझी?
आतंकवाद कायरों का काम है। जो डरपोक और चोर-उचक्कों की तरह आघात करना चाहते हैं वे आतंकवाद का सहारा लेते हैं। वीर युद्ध करते हैं और या तो शत्रु को नियमों के अंतर्गत लड़े गए युद्ध में परास्त करते हैं या वीरगति को प्राप्त होते हैं। जिस वर्ष हम दुनिया के सबसे महान और क्रांतिकारी हिंदू संन्यासी स्वामी विवेकानंद की 150वीं जयंती मना रहे हैं, उसी वर्ष वही सरकार जिसने 150वीं जंयती का शासकीय स्तर पर कार्यक्रम आयोजित किया, हिंदुओं पर एक सामान्यीकृत लांछन लगा रही है। आश्चर्य की बात यह है कि हिंदू आतंकवाद का शब्द प्रयोग किए जाने पर वे राजनीतिक दल भी चुप रहे जिनमें 90-95 प्रतिशत तक हिेंदू हैं और जो बार-बार इस बात पर आपत्ति करते हैं कि आतंकवाद के साथ इस्लामी शब्द नहीं जोड़ना चाहिए। शायद वे मानते हैं कि जब हिंदुओं पर आघात होता है तो उसका अर्थ है केवल और केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा भाजपा पर आघात, इसलिए उस आघात का जवाब देने की जिम्मेदारी भी इन्हीं संगठनों पर है।
यह एक मानसिकता है जो लगातार विदेशी आक्रमणों के कारण आम हिंदू को दब्बू तथा अपने हिंदुपन के प्रति क्षमा तथा लज्जा का बोध रखने वाला बना गयी। दुनिया में केवल हिंदुओं में ही ऐसे लोग मिलेंगे जो हिंदू कहे जाने पर अचकचाकर संकोच के साथ कहेंगे- साहब, मैं तो इंसान हूं, मैं सब धर्मों में यकीन करता हूं। अपने को आग्रहपूर्वक हिंदू कहने का कोई अर्थ नहीं है। केवल हिंदू धर्म के आश्रमों, मठों और मंदिरों में अक्सर अल्लाह, जीसस तथा जरथुस्त्र के प्रतीक मिलते हैं और वहां लिखा रहता है- सब धर्मों का सार एक है, ईश्वर एक है, अल्लाह को भजो या जीसस की उपासना करो, पहुंचोगे उसी एक निराकार, परम ब्रह्म की ओर।
लेकिन यह बात किसी ईसाई या मुसलमान से आप कहें तो वह छाती तानकर, माथा उठाकर सीधे-सीधे बोलेगा कि मुझे गर्व है कि मैं ईसाई या मुसलमान हूं और मैं केवल अपने मत या मज़हब के अलावा बाकी सभी मतों और मजहबों को झूठा तथा जन्नत तक ले जाने में असमर्थ मानता हूं इसलिए उन सबके मतांतरण के लिए मैं दुनिया भर से चंदे इकट्ठा करके प्रभु के सच्चे प्रकाश की ओर ले चलने का अधिकार सुरक्षित रखता हूं।
जिस देश में हिंदुओं का बहुमत हो और जिन्होंने एक हजार साल तक विदेशी आक्रमणकारियों के जुल्म् और अत्याचार झेले हों, उन्होंने यह नहीं कहा कि कम से कम अब आजादी के बाद तो हमें अपने धर्म, मंदिर और आस्था के सांस्कृतिक तौर-तरीकों की सुरक्षा का संवैधानिक अधिकार दो तथा हमारे गरीब, अनपढ़ और मजबूर लोगों का अन्य मतों में मतांतरण पूरी तरह से काननून बंद करने का प्रावधान बनाओ। हिंदू तो इतने उदारवादी और अपने ही समाज को खत्म तथा तोड़ने की साजिशों के प्रति उदासीन रहे कि उन्होंने गैर-हिंदू अल्पसंख्यकों को वे विशेषाधिकार भी दे दिए जो खुद उन्हें प्राप्त नहीं है।
अगल-बगल में जहां कहीं हिंदू अल्पसंख्यक तथा मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, वहां मंदिर तोड़े जाते हैं, शमशान घाट तक खत्म् कर दिए जाते हैं, हिंदू बच्चे स्कूल में अपने धर्म के प्रतीक पहनकर नहीं जा सकते, अपने धर्म ग्रंथ संस्कृत में पढ़ने की सुविधा नहीं पाते, उन्हें नागरिकता के समान अधिकार नहीं मिलते और यहां तक कि अपने ही देश में एकमात्र मुस्लिम बहुल प्रांत जम्मू-कश्मीर के कश्मीर खंड से हिंदुओं को प्रताडि़त और अपमानित करके निकाल दिया गया।
फिर भी हिंदुओं में से कोई ऐसा संगठन नहीं खड़ा हुआ जिसने हिंदू राज के लिए गैर हिंदुओं के समापन का ऐलान किया हो। बल्कि दुनिया के सबसे बड़े और शक्तिशाली हिंदू संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिंदू राज की थियोक्रेसी यानी सांप्रदायिक या पंथ पर टिकी शासन व्यवस्था का निषेध किया। हम भारत के सेक्यूलर संविधान और उसकी लोकतांत्रिक, बहुलतावादी अवधारणा को ही भारत के लिए सर्वश्रेष्ठ मानते हैं।
फिर भी यदि कोई हिंदू आतंकवाद जैसा शब्द इस्तेमाल करता है तो क्या यह भारत की गौरवशाली सभ्यता, परम्परा और उसके इतिहास का अपमान नहीं? यदि केवल कुछ व्यक्तियों के गलत आचरण के कारण पूरे समाज को दोषी ठहराना है तो क्या नैना साहनी हत्याकांड या 1984 के बर्बर सिख नरसंहार के लिए समूची कांग्रेस को दोषी ठहराते हुए कांग्रेसी आतंकवाद जैसे शब्द प्रयोग प्रचलन में लाये जाने चाहियें? हिंदू समाज और उसकी महान परंपरा भारत की पहचान है। इसीलिए स्वामी विवेकानंद ने आह्वान किया था कि- गर्व से कहो कि तुम हिंदू हो और केवल तभी तुम स्वयं को हिंदू कहाने योग्य कहे जाओगे जब तुम अपना आदर्श और अपना नायक गुरु गोविंद सिंह को मानो। उनकी शक्ति और भक्ति से प्रेरणा लेकर ही तुम इस भारत की सच्ची संतान हो सकते हो। शिंदे साहब क्या आपने यह सब पढ़ा है?

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