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होली
भारत का एक प्रमुख सौहार्द भरा पर्व है। इस त्यौहार पर मस्ती और धमाल भी
जमकर होता है। रंगों का यह पर्व प्राचीन काल से ही वसन्तोत्सव के रूप में
मनाया जाता रहा है। महाभारत काल में भी होली का त्यौहार मनाया जाता था और
मुग़ल काल में भी खूब हर्षोल्लास के साथ होली खेली जाती थी। तब होली खेलने
हेतु रंग बनाने के लिए अनेक प्राकृतिक पदार्थों का ही उपयोग किया जाता था।
विभिन्न फल, फूल और पलों का प्रयोग होता था। इस प्रकार प्राप्त रंग आदि
त्वचा और कपड़ों को हानि नहीं पहुंचाते थे अपितु वे त्वचा में निखार ही
लाते थे। पर आज ऐसा नहीं है। हम जाने−अनजाने उन तमाम हानि रहित पदार्थों से
दूर हो गये हैं। अब विज्ञान की अनेक खोजों और बढ़ती जनसंख्या के कारण
रंगों की दुनिया ही बिलकुल बदल गयी है।
आजकल
बड़े पैमाने पर विभिन्न रसायनों के प्रयोग से कम खर्च में अधिक सामग्री
तैयार की जाती है। इस प्रकार तैयार रंगों में ऐसे अनेक रसायन होते हैं जो
त्वचा और कपड़ों के लिए नुकसानदेह होते हैं। घटिया और सस्ते रंग प्रायः डाई
आधारित होते हैं। यही हाल गुलाल का भी है। ये रंग−गुलाल दिखने में गहरे,
आकर्षक होते हैं पर वास्तव में होते खतरनाक हैं। प्रायः रंग तीन तरह के
होते हैं− बेसिक, डायरेक्टर और एसिड रंग। बेसिक रंग बहुत चमकीले होते हैं।
ये सूती कपड़ों को अधिक हानि नहीं पहुंचाते, साथ ही धूप से ये रंग उड़ भी
जाते हैं। साबुन से धोने पर ये रंग आसानी से छूट जाते हैं। डायरेक्टर रंग
सूती कपड़ों पर जल्दी चढ़ जाते हैं। लाल, नीले और काले रंगों के रूप में
मिलने वाले इन्हीं रंगों का प्रायरू होली पर प्रयोग खूब किया जाता है। एसिड
रंग सभी तरह के कपड़ों पर आसानी से चढ़ जाते हैं। धुलाई के बाद कपड़ों पर
इनके धब्बे रह जाते हैं। इन्हें छुड़ाने के लिए सूती, रेशमी और सिंथेटिक
कपड़ों को नमक के पानी में एक या अधिक बार डुबाकर रखने के बाद धोना चाहिए।
सफलता न मिलने पर पानी में सोडियम थियोसल्फाइट व वाशिंग सोडा बराबर मात्रा
में मिलाकर गर्म करने के बाद उसमें डुबाकर कपड़े धोने चाहिए। गर्म पानी में
साधारण नमक मिला कर भी उपयोग किया जा सकता है। रेशमी और ऊनी कपड़ों से रंग
छुड़ाने के लिए सोडियम हाइड्रोसल्फाइट का उपयोग करना चाहिए। ये रंग त्वचा
के लिए बहुत नुकसानदेह होते हैं अतः इनके प्रयोग से बचना चाहिए। विभिन्न
रंगों का हमारी त्वचा पर शीघ्र प्रभाव पड़ता है। इसलिए यथाशीघ्र रंग
छुड़ाने का प्रयास करना चाहिए। रंगों से आंख, कान, नाक, मुंह, बाल ही नहीं
अपने शरीर की त्वचा को भी बचाना आवश्यक है।
बाजार
में उपलब्ध अधिकांश रंग हमारे लिए घातक ही सिद्ध होते हैं। विशेष रूप से
रासायनिक रंग बहुत नुकसान पहुचाते हैं। त्वचा से रंग छुड़ाने के लिए पहले
नहाने के साबुन और पानी का इस्तेमाल करें। इसके अलावा पानी में फिटकरी
डालकर उपयोग में लाएं। पानी में भिगोए हुए नींबू या आंवले के सूखे टुकड़े
या पानी में निचोड़ा गया नींबू या पानी में फिटकरी मिलाकर रंग छुड़ाने के
लिए उपयोग में लाए जा सकते हैं। कुछ लोग होली पर पेंट, ग्रीस, तारकोल जैसे
पदार्थ भी उपयोग करते हैं। इन्हें छुड़ाने के लिए प्रभावित स्थान पर मुलायम
कपड़े में मिट्टी का तेल लगाकर थोड़ा रगड़ कर साफ करना चाहिए। फिर कपड़े
में साबुन लगाकर साफ करना चाहिए। इसके बाद गुनगुने पानी में मेंहदी या
कच्चा दूध डालकर नहाना चाहिए। शरीर पर लगे गुलाल को पहले उसे झाड़कर साफ
करें उसके बाद ही साबुन या शेम्पू का प्रयोग करें। गुलाल छुड़ाने के लिए
मिट्टी के तेल का उपयोग नहीं करना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कम
से कम आप तो ऐसे हानिकारक रंगों का उपयोग न करें। आजकल बाजार में अनेक
सुरक्षित रंग और गुलाल मिल रहे हैं जिनका उपयोग करना अच्छा विकल्प है।
आप
चाहें तो घर में ही विभिन्न फल, फूल, सब्जी, पलों आदि से निरापद रंग बना
सकते हैं। इस तरह बनाकर उपयोग में लाए गये रंग न आपको और न ही किसी और को
किसी तरह का नुकसान पहुंचाएंगे। गेंदे के सूखे फूलों की पंखुडि़यों, पिसी
हल्दी, बेसन और पानी के उपयोग से पीला रंग बनाएं। हरा रंग बनाने के लिए
पालक, पुदीना या मेंहदी पाउडर और पानी का उपयोग करें। जकरांडा के सूखे
फूलों को पानी के साथ पीसने से नीला रंग, चुकन्दर को कद्दूकस कर पानी में
मिलाकर गुलाबी−लाल रंग, लाल अनार के छिलकों या सूखे लाल गुलाब की
पंखुडि़यों को पानी में उबालकर लाल रंग बनाया जा सकता है। रंग बनाने में
टेसू के फूलों का उपयोग तो सर्विवदित है ही। यह सभी सामग्री घर−बाजार में
आसानी से मिल जाती है, बस थोड़ा समय और सूझबूझ चाहिए।
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Wednesday, March 27, 2013
होली के रंगों में घातक कैमिकल भी होते हैं
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